सोमवार, 1 सितंबर 2014

उसने कहा था का संदेश क्या था?---विजय राजबली माथुर

अपनी तीन कहानियों-उसने कहा था,बुद्धू का काँटा और सुखमय जीवन की रचना करके हिन्दी साहित्य में अमर स्थान प्राप्त करने वाले चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की कहानी 'उसने कहा था' को आधार बना कर बिमल राय साहब ने मोनी भट्टाचार जी के निर्देशन में इसी नाम से निर्मित फिल्म को 1960 में प्रदर्शित किया था। जैसा कि मूल कहानी को दो किश्तों में प्रकाशित करते हुये हिंदुस्तान अखबार में बताया गया है कि सौ वर्ष पूर्व लिखी गई यह कहानी आदर्श प्रेम कहानी है। फिल्म में मूल कहानी के सिक्ख लहना सिंह को गैर सिक्ख नंदू (सुनील दत्त ) के रूप में प्रस्तुत किया गया है।मूल कहानी में वर्णित  युद्ध में यूरोप की  फ्रांस/बेल्जियम सीमा पर जर्मन फौज से भिड़ंत को फिल्म में  एशिया में जापानी फौज से भिड़ंत में बदल दिया गया है। यह परिदृश्य चंद्रधर शर्मा जी और उनकी मूल कहानी 'उसने कहा था' के साथ न्याय नहीं करता है। 

फिल्म में कमली (नंदा ) की शादी कराने वाले मध्यस्थ एक व्यापारी हैं और वह कमली के मामा से युद्ध के दौरान होने वाले बे इंतिहा मुनाफे का ज़िक्र करते हैं। मूल कहानी में भी ज़िक्र है कि भारतीय सैनिक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के मुनाफे की खातिर कुर्बान हुये थे।

 वस्तुतः 28 जून 1914 को आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या की गई थी जिसके बाद युद्ध की चिंगारी सुलग उठी थी ।जर्मन सम्राट विलियम कौसर द्वितीय का प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रिंस बिस्मार्क ने जर्मनी  को ब्रिटेन के मुक़ाबले श्रेष्ठ साबित करने और जर्मन साम्राज्य स्थापित करने में बाधक 'प्रशिया' प्रांत को जर्मनी से निकाल दिया था जबकि प्रशियन जर्मनी में बने रहना चाहते थे और इस हेतु संघर्ष छेड़ दिया था। जर्मनी सामराज्य स्थापना करके ब्रिटेन के लिए चुनौती न प्रस्तुत करे इसलिए ब्रिटेन ने  04 अगस्त 1914 को जर्मनी के विरुद्ध   युद्ध की घोषणा कर दी थी ।

उस समय के प्रभावशाली कांग्रेस नेता बाल गंगाधर तिलक   मांडले जेल मे कैद थे और मोहनदास करमचंद गांधी  अफ्रीका से भारत आ गए थे और  गोपाल कृष्ण गोखले के स्वर मे स्वर मिलाने लगे थे । लाला हरदयाल ने विदेश में जाकर  गदर पार्टी की स्थापना देश को आज़ाद कराने हेतु की थी जिसको  सिंगापूर मे सफलता भी मिली थी।गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार को इस आश्वासन के बाद युद्ध में सहयोग किया था कि युद्ध समाप्त होते ही भारत को आज़ाद कर दिया जाएगा। इस युद्ध में  62 हज़ार मारे गए एवं 67 हज़ार घायल हुये  थे भारतीय सैनिक। उनमें से ही एक थे सरदार लहना सिंह अर्थात फिल्म के नंदू ।

 गुलेरी जी ने लहना सिंह के बचपन के प्रेम को आधार बना कर इस कहानी के माध्यम से युद्ध की विभीषिका,छल-छद्यम,व्यापार मुनाफा,काला बाजारी सभी बातों को जनता के समक्ष रखा है सिर्फ प्रेम-गाथा को नहीं । सैनिकों की मनोदशा,उनके कष्टों तथा अदम्य साहस का वर्णन भी इस कहानी तथा फिल्म दोनों में है। 






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