दीवार के उस पार का दीदार :
1992 में आगरा के तत्कालीन जिलमंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी से सबसे पहले इस बात का ज़िक्र किया था कि आप लोग केवल दीवार पर लिखा या दीवार तक का दृश्य देखते हैं जबकि मैं दीवार के उस पार क्या है देख कर ही कोई विचार, निर्णय या कार्य करता हूँ। यह विवाद भाकपा प्रदेश कंट्रोल कमीशन के सदस्य रमेश कटारा से संबन्धित था। उस वक्त मिश्रा जी कटारा को ठीक समझ रहे थे लेकिन बाद में उनके द्वारा ही कटारा को पार्टी से निकलवाया गया था तब मन में ज़रूर उनको मेरे द्वारा कही बात याद आई होगी तभी तो 2006 मे तत्कालीन प्रदेश सह-सचिव डॉ गिरीश जी की उपस्थिती में मुझे वापिस पार्टी में शामिल किया था।
लेकिन आज डॉ गिरीश जी कटारा के एक नए अवतार से वशीभूत चल रहे हैं और दीवार के उस पार लिखा हुआ अनदेखा कर रहे हैं बावजूद इस तथ्य के कि एक तो भाकपा में नया कौन आ ही रहा है? ऊपर से दिसंबर 2014 तक की राहत के बाद पार्टी की 'मान्यता' एक राष्ट्रीय दल के रूप में समाप्त होने की कगार पर है तो भी कटारा के नए अवतार की रक्षा व बचाव के लिए राष्ट्रीय नेताओं तक से गलत बात लिखवा ले रहे हैं।
यहाँ लखनऊ में तो न ही ज्योति बसु जी की और न ही अभी तक भूपेश गुप्ता जी की शताब्दी का कोई कार्यक्रम ही हुआ है। बल्कि ज़िला काउंसिल में तय होने के बावजूद सी राजेश्वर राव साहब की शताब्दी का भी कोई कार्यक्रम सम्पन्न नहीं हुआ था।
जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर साहब देश की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार में केरल के शिक्षा मंत्री रहे थे। बाद में नेहरू सरकार द्वारा वह सरकार बर्खास्त किए जाने के बाद अय्यर साहब फिर से वकालत करने लगे तथा सर्वोच न्यायालय के न्यायाधीश पद तक पहुंचे। उनके कार्यकाल में मजदूरों के हक में कई फैसले हुये।* इन्दिरा जी के कार्यकाल में विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने हेतु उन्होने पद-त्याग कर दिया था।
ISCUS-इंडो सोवियत कल्चरल सोसाइटी के भी आप काफी समय अध्यक्ष रहे । इसी हैसियत से आगरा में एक कार्यक्रम में अय्यर साहब पधारे भी थे तब उनको देखने व सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था। अपने इस जीवित महान नेता के जन्म दिवस पर भी लखनऊ में अलग से कोई कार्यक्रम होना तो दूर बल्कि 15 नवंबर को ही सम्पन्न ज़िला काउंसिल की बैठक में उनका कोई उल्लेख तक नहीं किया गया जबकि प्रदेश नेतृत्व की भी उपस्थिती थी।
'कथनी और करनी' का अंतर तथा 'सत्य' को स्वीकार न करने की प्रवृति ही भाकपा को जनता से दूर किए हुये है। यदि पार्टी को जन-प्रिय बनाने हेतु सुझाव दिये जाते हैं तो उनको 'जानकारी का आभाव' और 'गलत फैसले' कह कर ठुकरा दिया जाता है। इस प्रकार कटारा के अवतार जैसों को तो निजी लाभ पहुँच जाता है और पार्टी को क्षति होती रहती है। सही को गलत और गलत को सही कह कर जनता का विश्वास नहीं अर्जित किया जा सकता भले ही कार्यकर्ताओं को 'अनुशासन' के 'डंडे ' से चुप करा दिया जाये।
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* 04-12-2014
04 Dec.2014
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