गुरुवार, 22 सितंबर 2016

यादें तो यादें हैं कब क्यों याद पड़ जाएँ ------ विजय राजबली माथुर

इकतालीस वर्ष पूर्व जब तेईस वर्ष की अवस्था में नब्बे दिनों बेरोजगार रह कर निर्माणाधीन  होटल मुगल ओबराय के अकाउंट्स विभाग में 22 सितंबर 1975 को जाब ज्वाईन किया था तो तब यह खास तारीख थी। फरवरी 1985 में होटल मुगल शेरटन , आगरा का जाब छोडने तक का वर्णन इसी ब्लाग में समयानुसार किया जा चुका है। फिर एकदम अचानक से वहाँ ज्वाईन करने का ज़िक्र क्यों छेड़ा क्योंकि आज 22 सितंबर 2016 को एक और महत्वपूर्ण घटना का सामना करना पड़ा है। 

यों तो छोटों की गलतियों को नज़रअंदाज़ कर देना मेरी  आदत का हिस्सा है। लेकिन आज जब लगभग उतनी ही उम्र के एक छात्र फेसबुक फ्रेंड को अंनफ्रेंड करना और विभिन्न ग्रुप्स से हटाना पड़ा तब यह तारीख फिर से महत्वपूर्ण हो गई है। चार दिन पूर्व 18 सितंबर को छात्र नेता कन्हैया कुमार यहाँ लखनऊ सम्बोधन हेतु आए थे उनके सम्बोधन के अपने को खास लगे अंशों को अपने ब्लाग 'साम्यवाद COMMUNISM ' पर रात्रि 08 : 20 (20 : 20 ) pm पर प्रकाशित किया था। कानपुर के एक छात्र 'मयंक चकरोबरती ने उसे 10 :24 pm पर अपने नाम से कापी पेस्ट करके पब्लिश कर दिया। चूंकि यह छात्र हमारी पार्टी भाकपा का भी सदस्य है अतः कानपुर के ही एक बड़े प्रभावशाली कामरेड नेता के संज्ञान में सम्पूर्ण तथ्यों को डाला। ऊपरी दबाव में वह बड़े नेता भी इस छात्र के दुष्कृत्य को निंदनीय न ठहरा सके। वस्तुतः यू पी में भाकपा  अब एक ऐसे परिवार की पाकेट पार्टी है जिसमें पति,पत्नी,साली व दत्तक पुत्र की मर्ज़ी ही पार्टी नीति है और वैधानिक पदाधिकारी भी खुद को असहाय पाते हैं। अतः उनके प्रश्रय की प्रबल संभावना के मद्देनज़र उस छात्र को अपनी फेसबुक फ्रेंडशिप से हटाना पड़ा। यह पहला मौका है जब बेहद छोटे व्यक्ति पर बेमन से ही  कारवाई करनी पड़ी है। 



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