(अक्टूबर 2019 में पिताजी स्व ताज राज बली के शताब्दी वर्ष पर प्रकाशित पुस्तक )
पूजा और धर्म मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध बनाने के लिए थे लेकिन आज पूंजी -वाद के युग में इनको विकृत करके विभेद व विभ्रम का सृजक बना दिया गया है। क्या पढे-लिखे और क्या अनपढ़ सभी विभ्रम का शिकार हैं ; कुछ अनजाने में तो कुछ जान-बूझ कर भी।
धर्म शब्द की उत्पत्ति धृति धातु से हुई है जिसका अर्थ है धारण करना अर्थात मानव जीवन व समाज को धारण करने हेतु आवश्यक तत्व ही धर्म हैं अन्य कुछ नहीं, यथा----
सत्य, अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा ), अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य।
आज इन तत्वों/लक्षणों का पालन न करने वाले ही खुद को धर्म का ठेकेदार घोषित किए हुये हैं।
पूजा भगवान की करनी थी जड़ पदार्थों की नहीं, लेकिन आज जड़-पूजक ही खुद को भगवान-भक्त घोषित करके मानवता को कुचलने पर आमादा हैं।
भगवान/खुदा/गाड को समझते नहीं और इनके नाम पर झगड़ा खड़ा करने को तैयार रहते हैं।
राम और कृष्ण को 'भगवान' या भगवान का अवतार बताने वाले इस वैज्ञानिक 'सत्य ' को स्वीकार नहीं करते कि 'भगवान' न कभी जन्म लेता है न उसकी मृत्यु होती है। अर्थात भगवान कभी भी 'नस' और 'नाड़ी' के बंधन मे नहीं बंधता है क्योंकि,-
भ=भूमि अर्थात पृथ्वी।
ग=गगन अर्थात आकाश।
व=वायु।
I=अनल अर्थात अग्नि (ऊर्जा )।
न=नीर अर्थात जल।
प्रकृति के ये पाँच तत्व ही 'भगवान' हैं और चूंकि इन्हें किसी ने बनाया नहीं है ये खुद ही बने हैं इसी लिए ये 'खुदा' हैं। ये पांचों तत्व ही प्राणियों और वनस्पतियों तथा दूसरे पदार्थों की 'उत्पत्ति'(GENERATE),'स्थिति'(OPERATE),'संहार'(DESTROY) के लिए उत्तरदाई हैं इसलिए ये ही GOD हैं। पुरोहितों ने अपनी-अपनी दुकान चमकाने के लिए इन को तीन अलग-अलग नाम से गढ़ लिया है और जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रहे हैं। इनकी पूजा का एकमात्र उपाय 'हवन' अर्थात 'यज्ञ' ही है और कुछ भी कोरा पाखंड एवं ढोंग।
इनकी पूजा का अर्थ है इन तत्वों का संरक्षण व संवर्धन अर्थात प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह भगवान/खुदा/गाड तत्वों की रक्षा करे व उन्हें नष्ट होने से बचाए। लेकिन आज हो क्या रहा है? अलग-अलग नाम पर इनको नष्ट करने का मानवीय दुष्चक्र चल रहा है वह भी धर्म के नाम पर।
ज्योतिष वह विज्ञान है जो मानव जीवन को सुंदर, सुखद व समृद्ध बनाने हेतु चेतावनी व उपाय बताता है। लेकिन आज इस विज्ञान को स्वार्थी व धूर्त लोगों ने पेट-पूजा का औज़ार बना कर इसकी उपादेयता को गौड़ कर दिया व इसे आलोचना का शिकार बना दिया है।
यह संसार एक परीक्षालय(Examination Hall) है और यहाँ सतत परीक्षा चलती रहती है। परमात्मा ही पर्यवेक्षक(Invegilator) और परीक्षक (Examiner) है। जीवात्मा कार्य क्षेत्र में स्वतंत्र है और जैसा कर्म करेगा परमात्मा उसे उसी प्रकार का फल देगा। आप अवश्य ही जानना चाहेंगे कि तब ग्रहों की शांति से क्या तात्पर्य और लाभ हैं?मनुष्य पूर्व जन्म के संचित प्रारब्ध के आधार पर विशेष ग्रह-नक्षत्रों की परिस्थिति में जन्मा है और अपने बुद्धि -विवेक से ग्रहों के अनिष्ट से बच सकता है। यदि वह सम्यक उपाय करे अन्यथा कष्ट भोगना ही होगा। जिस प्रकार जिस नंबर पर आप फोन मिलायेंगे बात भी उसी के धारक से ही होगी,अन्य से नहीं। इसी प्रकार जिस ग्रह की शांति हेतु आप मंत्रोच्चारण करेंगे वह प्रार्थना भी उसी ग्रह तक हवन में दी गयी आपकी आहुति के माध्यम से अवश्य ही पहुंचेगा । .अग्नि का गुण है उसमे डाले गए पदार्थों को परमाणुओं (Atoms) में विभक्त करना और वायु उन परमाणुओं को मन्त्र के आधार पर प्रवाहित कर देता है जिससे ग्रहों की शांति द्वारा उनके प्रकोप से बचा जा सकता है। प्रचलन में लोग अन्य उपाय भी बताते हैं परन्तु उन से ग्रहों की शांति होने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिलता,हाँ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ सकता है।
ज्योतिष पूर्णतः एक विज्ञान है। वस्तुतः विज्ञान किसी भी विषय के नियम बद्ध एवं क्रम बद्ध अध्ययन को कहा जाता है। ज्योतिष के नियम खगोलीय गणना पर आधारित हैं और वे पूर्णतः वैज्ञानिक हैं वस्तुतः ज्योतिष में ढोंग पाखण्ड का कोंई स्थान नहीं है। परन्तु फिर भी हम देखते हैं कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों की खातिर जनता को दिग्भ्रमित कर के ठगते हैं और उन्हीं के कारण सम्पूर्ण ज्योतिष विज्ञान पर कटाक्ष किया जाता है। यह एक गलत क्रिया की गलत प्रतिक्रिया है। जहाँ तक विज्ञान के अन्य विषयों का सवाल है वे What & How का तो जवाब देते हैं परन्तु उनके पास Why का उत्तर नहीं है.ज्योतिष विज्ञान में इस Why का भी उत्तर मिल जाता है।
जन्म लेने वाला कोई भी बच्चा अपने साथ भाग्य (प्रारब्ध) लेकर आता है। यह प्रारब्ध क्या है इसे इस प्रकार समझें कि हम जितने भी कार्य करते हैं,वे तीन प्रकार के होते हैं-सद्कर्म,दुष्कर्म और अकर्म।
यह तो सभी जानते हैं की सद्कर्म का परिणाम शुभ तथा दुष्कर्म का अशुभ होता है,परन्तु जो कर्म किया जाना चाहिए और नहीं किया गया अथार्त फ़र्ज़ (duity) पूरा नहीं हुआ वह अकर्म है और इसका भी परमात्मा से दण्ड मिलता है। अतएव सद्कर्म,दुष्कर्म,और अकर्म के जो फल इस जन्म में प्राप्त नहीं हो पाते वह आगामी जन्म के लिए संचित हो जाते हैं। अब नए जन्मे बच्चे के ये संचित कर्म जो तीव्रगामी होते हैं वे प्रारब्ध कहलाते हैं और जो मंदगामी होते हैं वे अनारब्ध कहलाते हैं। मनुष्य अपनी बुद्धि व् विवेक के बल पर इस जन्म में सद्कर्म ही अपना कर ज्ञान के द्वारा अनारब्ध कर्मों के दुष्फल को नष्ट करने में सफल हो सकता है और मोक्ष भी प्राप्त कर सकता है। मोक्ष वह अवस्था है जब आत्मा को कारण और सूक्ष्म शरीर से भी मुक्ति मिल जाती है.और वह कुछ काल ब्रह्मांड में ही स्थित रह जाता है.ऐसी मोक्ष प्राप्त आत्माओं को संकटकाल में परमात्मा पुनः शरीर देकर जन-कल्याण हेतु पृथ्वी पर भेज देता है। भगवान् महावीर,गौतम बुद्ध,महात्मा गांधी,स्वामी दयानंद ,स्वामी विवेकानंद,आदि तथा और भी बहुत पहले मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम एवं योगी राज श्री कृष्ण तब अवतरित हुए जब पृथ्वी पर अत्याचार अपने चरम पर पहुँच गया था।
जब किसी प्राणी की मृत्यु हो जाती है तो वायु,जल,आकाश,अग्नि और पृथ्वी इन पंचतत्वों से निर्मित यह शरीर तो नष्ट हो जाता है परन्तु आत्मा के साथ-साथ कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर मोक्ष प्राप्ति तक चले चलते हैं और अवशिष्ट संचित कर्मफल के आधार पर आत्मा भौतिक शरीर को प्राप्त कर लेती है जो उसे अपने किये कर्मों का फल भोगने हेतु मिला है। यदि जन्म मनुष्य योनी में है तो वह अपनी बुद्धि व विवेक के प्रयोग द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रयास कर सकता है।
बारह राशियों में विचरण करने के कारण आत्मा के साथ चल रहे सूक्ष्म व कारण शरीर पर ग्रहों व नक्षत्रों का प्रभाव स्पष्ट अंकित हो जाता है। जन्मकालीन समय तथा स्थान के आधार पर ज्योतिषीय गणना द्वारा बच्चे की जन्म-पत्री का निर्माण किया जाता है और यह बताया जा सकता है कि कब कब क्या क्या अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ेगा। अच्छे प्रभाव को प्रयास करके प्राप्त किया जा सकता है और लापरवाही द्वारा छोड़ कर वंचित भी हुआ जा सकता है। इसी प्रकार बुरे प्रभाव को ज्योतिष विज्ञान सम्मत उपायों द्वारा नष्ट अथवा क्षीण किया जा सकता है और उस के प्रकोप से बचा जा सकता है। जन्मकालीन नक्षत्रों की गणना के आधार पर भविष्य फल कथन करने वाला विज्ञान ही ज्योतिष विज्ञान है।
प्रारंभ में मैं ज्योतिष समर्थक इसलिए नहीं था कि, तथाकथित ज्योतिषियों के भ्रम - जाल के कारण तमाम लोगों को नुकसान उठाते देखता रहा था। 1976 में जब आई टी सी के होटल मुगल,आगरा में कार्यरत था एक सहकर्मी द्वारा बी एस एफ के रिटायर्ड सब - इंस्पेक्टर साहब से मुलाकात करवाई गई थी जिन्होंने उन साथी के प्रश्न पर मेरे पास 26 वर्ष की उम्र में अपना मकान होने और अंततः दो मकान होने की बात कह दी तब मैंने उनका मखौल ही कर दिया क्योंकि तब मेरा वेतन मात्र रु 275/- मासिक ही था। किन्तु दो वर्ष बाद जब वेतन रु 500/- था तब आवास - विकास परिषद का मकान हायर - पर्चेज योजना में रु 290/- मासिक किश्त पर मिल गया जो 15 वर्ष बाद अपना हो गया और आज तब से 45 वर्षों बाद लखनऊ में दो मकान प्राप्त कर सका हूँ। ज्योतिषियों से संघर्ष करते - करते खुद ज्योतिष का जानकार हो गया और चाहता हूँ कि,जो जानकारियाँ मैंने हासिल की हैं उनको कोई अन्य भी हस्त-गत कर ले जिससे पोंगा - पंडित -वाद से लोगों को निजात दिला सके। पत्नी को जानकारी तो हो गई किन्तु ग्लूकोमा से ग्रस्त हो जाने के कारण उनके द्वारा प्रयोग किया जाना संभव नहीं है। पुत्र को भी जानकारी हासिल करा दी थी लेकिन वह व्यवहार में भी प्रयोग करे तभी सफल हो सकेगा। जिन बी एस एफ के रिटायर्ड सब - इंस्पेक्टर साहब द्वारा मकान की बात कही गई थी उनके द्वारा ही 68 वर्ष से 76 वर्ष तक ' रोग -शय्या ' पर होने की भी बात कही थी लेकिन खुद ज्योतिष की जानकारी हासिल होने के कारण अब तक उससे बचा रह सका हूँ ।
आश्चर्य और दुख दोनों इस बात का है कि, विद्वान ज्योतिषी भी पौराणिक कथाओं का मिश्रण ज्योतिषीय विश्लेषण में कर देते हैं। ' राहू ' और ' केतु ' की जो कहानी अमृत कलश - संघर्ष की गढ़ी जाती है उसका वैज्ञानिक आधार क्या है ?
वस्तुतः हमारी पृथिवी अपनी धुरी पर साढ़े 23 डिग्री झुकी हुई है और यह नारंगी कि भांति दोनों सिरों पर चपटी है जिस कारण सूर्य आदि ग्रहों से आने वाली किरणें पृथिवी पर परावर्तित होकर आती हैं और यहाँ के निवासियों को प्रभावित करती हैं। इसलिए पृथिवी के इन दोनों ध्रुवों को हम ज्योतिष में राहू- केतु के छाया ग्रहों के रूप में गणना करते हैं। सब ग्रहों के साथ पृथिवी भी ब्रह्मांड में परिभ्रमण कर रही है इसके दोनों ध्रुव 180 डिग्री पर स्थित होने के कारण ही विपरीत दिशाओं में परिभ्रमण करते प्रतीत होते हैं।
अपने ब्लागस के जरिए धर्म,ज्योतिष,राजनीति,सामाजिक विषयों पर लिखता रहा था उसमें से कुछ लेखों का संकलन अपने पिताजी के शताब्दी वर्ष में पुस्तकाकार प्रकाशन 2019 में करवाया था । यदि पुत्र चाहेगा और उचित समझेगा तो भविष्य में अन्य लेखों का भी संकलन प्रकाशित करवा लेगा।
शोषण,उत्पीड़न,अन्याय के विरुद्ध संघर्ष में योगदान देने के लिए 1986 में आगरा में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुआ था, लखनऊ आकर भी सक्रिय रहा था किन्तु पत्नी की ग्लूकोमा बीमारी के कारण अब निष्क्रिय हूँ । 2014 के बाद देश और समाज में जो विभेद आए उनका प्रभाव पारिवारिक रिश्तेदारियों पर भी पड़ा है तथा ' एकला चलो ' सिद्धांत पर चल रहा हूँ और चलता रहूँगा।
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