आपात काल के दौरान मेरठ का जाब गँवाने के बाद सोचा था कि अब नए जाब में यूनियन की गतिविधियों में भाग नहीं लेंगे परंतु परिस्थियों वश मुझे आगरा में भी यूनियन गतिविधियों में भाग लेना ही पड़ा था जिन सब का विवरण इसी ब्लाग में पूर्व में दिया जा चुका है और आज ही के दिन 30 वर्ष पूर्व 25 अप्रैल,1984 को मुझे 'होटल मुगल शेरटन,आगरा' से निलंबित किए जाने का पत्र सौंपा गया था उन सब बातों का भी विस्तृत वर्णन इसी ब्लाग में पहले ही हो चुका है। अतः उन बातों का दोहराव नहीं करना है परंतु इस घटना का व्यक्तिगत,सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव क्या रहा उसकी समीक्षा करने हेतु आज का समय अत्यंत उपयुक्त है क्योंकि आजकल 16 वीं संसद के लिए निर्वाचन प्रक्रिया चल रही है और समाज में एक भय का माहौल व्याप्त है कि क्या संसदीय लोकतन्त्र आगे भी कायम रहेगा या अर्द्ध सैनिक तानाशाही के चपेटे में देशवासी गिरफ्त हो जाएँगे?
1975 में मेरठ में तथा 1985 में आगरा में मेरा सस्पेंशन और टर्मिनेशन करवाने में तत्कालीन यूनियन प्रेसीडेंट्स का प्रबल हाथ था। अतः मैंने अब किसी बड़े संस्थान की अपेक्षा छोटी-छोटी दुकानों में स्वतंत्र रूप से अकौन्ट्स जाब करके गुज़ारा करना शुरू किया। साथ ही ITC जैसी मल्टीनेशनल कंपनी से अन्यायपूर्ण बर्खास्त्गी के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी संत कामरेड अब्दुल हफीज साहब से संपर्क किया जिन्होने 'मजदूर भवन' पर कामरेड हरीश आहूजा साहब के पास भेज दिया । आहूजा साहब ने केस लगा दिया और सप्ताह में एक दिन मजदूर भवन बुलाने लगे जहां CPI नेतागण कामरेड्स रमेश मिश्रा,डॉ महेश चंद्र शर्मा और डॉ जवाहर सिंह धाकरे क्रमिक रूप से आकर मजदूर समस्याओं और उनके समाधान पर प्रकाश डालते थे। अक्तूबर 1986 में मुझे भी CPI में शामिल कर लिया गया और 'मजदूर भवन' के स्थान पर मुझे पार्टी कार्यालय में सहयोग करने हेतु बुलाया गया। एक वर्ष के भीतर ही मुझे पार्टी की ज़िला काउंसिल में भी शामिल कर लिया गया।
पार्टी की विशेष बैठकों में कामरेड्स लल्लू सिंह चौहान,जगदीश नारायण त्रिपाठी,रामनारायन उपाध्याय आदि आते रहते थे और इस प्रकार इन स्वाधीनता सेनानियों के विचार भी जानने -समझने के अवसर मिलते रहे। लखनऊ मेरा जन्मस्थान होने के कारण लखनऊ में होने वाले प्रदर्शनों में भाग लेने खुशी-खुशी आता रहता था जबकि नजदीक ही स्थित दिल्ली के सिर्फ एक ही प्रदर्शन में भाग ले सका। बाबूजी के सहपाठी और रूममेट कामरेड भीखा लाल जी से मिलने की काफी इच्छा थी और मैंने इसका ज़िक्र कामरेड डॉ महेश चंद्र शर्मा जी से किया था।बेगम हज़रत महल पार्क में पूरे प्रदेश से आए पार्टी कामरेड्स 'सांप्रदायिकता विरोधी रैली' में भाग लेने को एकत्र थे। भीखा लाल जी पूर्व प्रदेश सचिव थे और उस समय तत्कालीन प्रदेश सचिव कामरेड सरजू पांडे जी से कुछ चर्चा कर रहे थे जब डॉ शर्मा जी मुझे उनके पास ले गए थे ;हमारे आगरा के तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी भी पांडे जी के ही साथ थे। कामरेड भीखा लाल जी ने बाबू जी के नाम का सिर्फ 'ताजराज' शब्द सुनते ही मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा कि,तुम ताजराज बली के बेटे हो तुम उनके बारे में क्या बताओगे हम तुम्हें उनके बारे में बताएँगे। फिर उन्होने सन-तारीख बताते हुये किस-किस क्लास में और हास्टल में साथ-साथ रहे कहा कि वह और मेरे बाबूजी इतना घनिष्ठ रहे हैं जितने कि मेरे बाबूजी अपने घर-परिवार में अपने भाइयों से भी न रहे होंगे। भीखा लाल जी ने यह भी बताया कि 1939 में मेरे बाबूजी के दिवतीय विश्व युद्ध में जाने और 1945 में वापिस लौट कर आने की उनको सूचना है पर फिर संपर्क नहीं हो पाया था ,वह इस बात से बेहद खुश हुये थे कि मैं उनसे मिलने गया। भीखा लाल जी ने मुझसे कहा था कि अगली बार जब भी मैं लखनऊ आऊँ तो बाबूजी को भी साथ लाऊं परंतु कुछ समय बाद ही भीखा लाल जी का निधन हो गया था।
कामरेड सरजू पांडे जी एक बार शिवाजी मार्केट,आगरा की बैठक में जब मुख्य वक्ता के रूप में बोलने आए थे तो दोबारा उनको सुनने व देखने का अवसर मिला था। सरजू पांडे जी,भीखा लाल जी और रुस्तम सैटिन साहब आदि कम्युनिस्ट नेतागण बेहद ईमानदार,कर्मठ और स्पष्टवादी थे 'जनहित' उनके लिए सर्वोपरि थे। 1967 में जब रुस्तम सैटिन साहब चौधरी चरण सिंह सरकार में गृह राज्यमंत्री थे तब उन्होने ऐसी व्यवस्था की थी कि कोई भी पुलिस वाला किसी भी गरीब -असहाय तबके के इंसान को नाहक परेशान न कर पाये। लखनऊ में कुछ वरिष्ठ कामरेड्स से यह भी ज्ञात हुआ है कि एक बार पुलिसिया रौब में एक रिक्शे वाले को प्रताड़ित किया गया तो बहैसियत मंत्री रुस्तम सैटिन साहब ने इंचार्ज समेत लखनऊ के उस पूरे थाने को सजा दी थी जिसके बाद पूरे प्रदेश में इसका असर हुआ था।
लेकिन आज कम्युनिस्ट पार्टी में भी ऐसे नेताओं का सर्वथा आभाव है। कामरेड हरीश आहूजा के पार्टी छोडने के बाद रमेश मिश्रा जी ने दूसरे पार्टी कामरेड को मेरे होटल मुगल वाले केस को रेफर कर दिया था जिन्होने 1994 -95 में मेरे परिवार में एक वर्ष के भीतर तीन मौतें हो जाने के बाद मेरी परेशानी के माहौल में होटल मेनेजमेंट के झुकाव में मेरे केस की पैरवी पर ध्यान नहीं दिया और पीठासीन अधिकारी ने 'Petitioner is no more interested' लिख कर मेनेजमेंट के पक्ष में मेरी पिटीशन को रद्द कर दिया। वह कामरेड बाद में आगरा CPI के जिलामंत्री भी बने। वहाँ काफी लोग पार्टी छोड़ कर बसपा,सपा, सी पी एम में चले गए। एक प्राइमरी शिक्षक रमेश कटारा ने उत्तर प्रदेश CPI के कंट्रोल कमीशन में भी स्थान प्राप्त कर लिया था और रमेश मिश्रा जी को तांत्रिक प्रक्रियाओं से वशीभूत कर लिया था। विषम परिस्थितियों में मुझे भी मित्रसेन यादव जी के साथ 1994 में पार्टी को छोडना पड़ गया था।परंतु बाद में मिश्रा जी ने रमेश कटारा को पार्टी से निकलवा दिया और उसके बाद 2006 में मेरे घर आकर मुझको पुनः पार्टी में शामिल होने को कहा। उनके आग्रह पर उनके साथ मैं कार्यक्रमों में भाग लेने लगा था। कमिश्नरी पर सांसद राज बब्बर जी के साथ डॉ गिरीश (अब राज्यसचिव) भी आए थे। डॉ साहब की उपस्थिति में मिश्रा जी ने मुझसे पार्टी फार्म भरवा कर विधिवत शामिल कर लिया। आगरा से 2009 में लखनऊ शिफ्ट हो जाने के कारण मैं यहाँ सक्रिय हूँ। प्रदेश में एक बैंक कर्मी साहब आगरा के रमेश कटारा के अवतार हैं और तांत्रिक प्रक्रियाओं से कुछ बड़े नेताओं को प्रभावित किए हुये हैं तथा छोटे कार्यकर्ताओं को उत्पीड़ित करते रहते हैं।
वर्तमान चुनावों के माध्यम से साम्राज्यवादी /फासिस्ट शक्तियाँ सत्ता पर कब्जा करने की फिराक में हैं और कम्युनिस्ट शक्तियाँ बिखरी हुई हैं। 'संसदीय लोकतन्त्र' को अपनाने के बावजूद कम्युनिस्ट शक्तियों ने पर्याप्त संख्या में प्रत्याशी ही नहीं खड़े किए हैं। जो संसदीय लोकतन्त्र के विरोधी कम्युनिस्ट हैं वे चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं। ऐसे में साम्राज्यवादी/फासिस्ट शक्तियों को खुला मैदान मिल गया प्रतीत होता है। परंतु मुझे पूर्ण विश्वास है कि तमाम थोथी भविष्यवाणियों के बावजूद फासिस्ट शक्तियों की करारी हार होगी इस संबंध में मैंने विगत 11-04-2014 को यह विश्लेषण दिया था:
नरेंद्र मोदी की राजनीति व उनके शुभ समय की जोरदार चर्चाये चल रही हैं । NBT द्वारा एक वर्ष पूर्व प्रकाशित उनकी जन्म कुंडली के अनुसार वह 64वें वर्ष में चल रहे हैं अर्थात अपनी कुंडली के चौथे भाव में जहां 'गुरु' अपनी शत्रु राशि में स्थित है। 'गुरु' का गुण यह भी है कि जहां जिस भाव में बैठता है उसे 'नष्ट' करता है। उनके साथ ऐसा ही रहा भी है विवाहित होकर भी 'विधुर' जैसा जीवन इसी 'गुरु' की कृपा रही है। अब पत्नी की घोषणा करके भी सुखों पर हमलों को उन्होने आमंत्रित कर लिया है। जन्म लग्न में भी परस्पर शत्रु 'चंद्र'-'मंगल' स्थित हैं। ये सम्मिलित रूप से उनके मस्तिष्क को प्रभावित कर रहे हैं जैसा कि उनकी कार्य प्रणाली व वक्तव्यों से सिद्ध होता है। लग्न का चंद्र मस्तिष्क को व्यथित रखता है।
महादशा-अंतर्दशा उनको 'आर्थिक' लाभ पहुंचाने वाली है इसी लिए कारपोरेट घरानों ने उनके लिए लूट की पूंजी के पिटारे खोल दिये हैं। लेकिन उनके 'कर्म' भाव में बैठ कर 'शनि' उनके कर्मफल को नष्ट कर रहा है। संकेत साफ हैं। वह केवल मोहरा ही रहने वाले हैं सफलता उनसे कोसों दूर रहने वाली है।
1975 में मेरठ में तथा 1985 में आगरा में मेरा सस्पेंशन और टर्मिनेशन करवाने में तत्कालीन यूनियन प्रेसीडेंट्स का प्रबल हाथ था। अतः मैंने अब किसी बड़े संस्थान की अपेक्षा छोटी-छोटी दुकानों में स्वतंत्र रूप से अकौन्ट्स जाब करके गुज़ारा करना शुरू किया। साथ ही ITC जैसी मल्टीनेशनल कंपनी से अन्यायपूर्ण बर्खास्त्गी के विरुद्ध संघर्ष करने हेतु स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी संत कामरेड अब्दुल हफीज साहब से संपर्क किया जिन्होने 'मजदूर भवन' पर कामरेड हरीश आहूजा साहब के पास भेज दिया । आहूजा साहब ने केस लगा दिया और सप्ताह में एक दिन मजदूर भवन बुलाने लगे जहां CPI नेतागण कामरेड्स रमेश मिश्रा,डॉ महेश चंद्र शर्मा और डॉ जवाहर सिंह धाकरे क्रमिक रूप से आकर मजदूर समस्याओं और उनके समाधान पर प्रकाश डालते थे। अक्तूबर 1986 में मुझे भी CPI में शामिल कर लिया गया और 'मजदूर भवन' के स्थान पर मुझे पार्टी कार्यालय में सहयोग करने हेतु बुलाया गया। एक वर्ष के भीतर ही मुझे पार्टी की ज़िला काउंसिल में भी शामिल कर लिया गया।
पार्टी की विशेष बैठकों में कामरेड्स लल्लू सिंह चौहान,जगदीश नारायण त्रिपाठी,रामनारायन उपाध्याय आदि आते रहते थे और इस प्रकार इन स्वाधीनता सेनानियों के विचार भी जानने -समझने के अवसर मिलते रहे। लखनऊ मेरा जन्मस्थान होने के कारण लखनऊ में होने वाले प्रदर्शनों में भाग लेने खुशी-खुशी आता रहता था जबकि नजदीक ही स्थित दिल्ली के सिर्फ एक ही प्रदर्शन में भाग ले सका। बाबूजी के सहपाठी और रूममेट कामरेड भीखा लाल जी से मिलने की काफी इच्छा थी और मैंने इसका ज़िक्र कामरेड डॉ महेश चंद्र शर्मा जी से किया था।बेगम हज़रत महल पार्क में पूरे प्रदेश से आए पार्टी कामरेड्स 'सांप्रदायिकता विरोधी रैली' में भाग लेने को एकत्र थे। भीखा लाल जी पूर्व प्रदेश सचिव थे और उस समय तत्कालीन प्रदेश सचिव कामरेड सरजू पांडे जी से कुछ चर्चा कर रहे थे जब डॉ शर्मा जी मुझे उनके पास ले गए थे ;हमारे आगरा के तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी भी पांडे जी के ही साथ थे। कामरेड भीखा लाल जी ने बाबू जी के नाम का सिर्फ 'ताजराज' शब्द सुनते ही मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा कि,तुम ताजराज बली के बेटे हो तुम उनके बारे में क्या बताओगे हम तुम्हें उनके बारे में बताएँगे। फिर उन्होने सन-तारीख बताते हुये किस-किस क्लास में और हास्टल में साथ-साथ रहे कहा कि वह और मेरे बाबूजी इतना घनिष्ठ रहे हैं जितने कि मेरे बाबूजी अपने घर-परिवार में अपने भाइयों से भी न रहे होंगे। भीखा लाल जी ने यह भी बताया कि 1939 में मेरे बाबूजी के दिवतीय विश्व युद्ध में जाने और 1945 में वापिस लौट कर आने की उनको सूचना है पर फिर संपर्क नहीं हो पाया था ,वह इस बात से बेहद खुश हुये थे कि मैं उनसे मिलने गया। भीखा लाल जी ने मुझसे कहा था कि अगली बार जब भी मैं लखनऊ आऊँ तो बाबूजी को भी साथ लाऊं परंतु कुछ समय बाद ही भीखा लाल जी का निधन हो गया था।
कामरेड सरजू पांडे जी एक बार शिवाजी मार्केट,आगरा की बैठक में जब मुख्य वक्ता के रूप में बोलने आए थे तो दोबारा उनको सुनने व देखने का अवसर मिला था। सरजू पांडे जी,भीखा लाल जी और रुस्तम सैटिन साहब आदि कम्युनिस्ट नेतागण बेहद ईमानदार,कर्मठ और स्पष्टवादी थे 'जनहित' उनके लिए सर्वोपरि थे। 1967 में जब रुस्तम सैटिन साहब चौधरी चरण सिंह सरकार में गृह राज्यमंत्री थे तब उन्होने ऐसी व्यवस्था की थी कि कोई भी पुलिस वाला किसी भी गरीब -असहाय तबके के इंसान को नाहक परेशान न कर पाये। लखनऊ में कुछ वरिष्ठ कामरेड्स से यह भी ज्ञात हुआ है कि एक बार पुलिसिया रौब में एक रिक्शे वाले को प्रताड़ित किया गया तो बहैसियत मंत्री रुस्तम सैटिन साहब ने इंचार्ज समेत लखनऊ के उस पूरे थाने को सजा दी थी जिसके बाद पूरे प्रदेश में इसका असर हुआ था।
लेकिन आज कम्युनिस्ट पार्टी में भी ऐसे नेताओं का सर्वथा आभाव है। कामरेड हरीश आहूजा के पार्टी छोडने के बाद रमेश मिश्रा जी ने दूसरे पार्टी कामरेड को मेरे होटल मुगल वाले केस को रेफर कर दिया था जिन्होने 1994 -95 में मेरे परिवार में एक वर्ष के भीतर तीन मौतें हो जाने के बाद मेरी परेशानी के माहौल में होटल मेनेजमेंट के झुकाव में मेरे केस की पैरवी पर ध्यान नहीं दिया और पीठासीन अधिकारी ने 'Petitioner is no more interested' लिख कर मेनेजमेंट के पक्ष में मेरी पिटीशन को रद्द कर दिया। वह कामरेड बाद में आगरा CPI के जिलामंत्री भी बने। वहाँ काफी लोग पार्टी छोड़ कर बसपा,सपा, सी पी एम में चले गए। एक प्राइमरी शिक्षक रमेश कटारा ने उत्तर प्रदेश CPI के कंट्रोल कमीशन में भी स्थान प्राप्त कर लिया था और रमेश मिश्रा जी को तांत्रिक प्रक्रियाओं से वशीभूत कर लिया था। विषम परिस्थितियों में मुझे भी मित्रसेन यादव जी के साथ 1994 में पार्टी को छोडना पड़ गया था।परंतु बाद में मिश्रा जी ने रमेश कटारा को पार्टी से निकलवा दिया और उसके बाद 2006 में मेरे घर आकर मुझको पुनः पार्टी में शामिल होने को कहा। उनके आग्रह पर उनके साथ मैं कार्यक्रमों में भाग लेने लगा था। कमिश्नरी पर सांसद राज बब्बर जी के साथ डॉ गिरीश (अब राज्यसचिव) भी आए थे। डॉ साहब की उपस्थिति में मिश्रा जी ने मुझसे पार्टी फार्म भरवा कर विधिवत शामिल कर लिया। आगरा से 2009 में लखनऊ शिफ्ट हो जाने के कारण मैं यहाँ सक्रिय हूँ। प्रदेश में एक बैंक कर्मी साहब आगरा के रमेश कटारा के अवतार हैं और तांत्रिक प्रक्रियाओं से कुछ बड़े नेताओं को प्रभावित किए हुये हैं तथा छोटे कार्यकर्ताओं को उत्पीड़ित करते रहते हैं।
वर्तमान चुनावों के माध्यम से साम्राज्यवादी /फासिस्ट शक्तियाँ सत्ता पर कब्जा करने की फिराक में हैं और कम्युनिस्ट शक्तियाँ बिखरी हुई हैं। 'संसदीय लोकतन्त्र' को अपनाने के बावजूद कम्युनिस्ट शक्तियों ने पर्याप्त संख्या में प्रत्याशी ही नहीं खड़े किए हैं। जो संसदीय लोकतन्त्र के विरोधी कम्युनिस्ट हैं वे चुनावों का बहिष्कार कर रहे हैं। ऐसे में साम्राज्यवादी/फासिस्ट शक्तियों को खुला मैदान मिल गया प्रतीत होता है। परंतु मुझे पूर्ण विश्वास है कि तमाम थोथी भविष्यवाणियों के बावजूद फासिस्ट शक्तियों की करारी हार होगी इस संबंध में मैंने विगत 11-04-2014 को यह विश्लेषण दिया था:
नरेंद्र मोदी की राजनीति व उनके शुभ समय की जोरदार चर्चाये चल रही हैं । NBT द्वारा एक वर्ष पूर्व प्रकाशित उनकी जन्म कुंडली के अनुसार वह 64वें वर्ष में चल रहे हैं अर्थात अपनी कुंडली के चौथे भाव में जहां 'गुरु' अपनी शत्रु राशि में स्थित है। 'गुरु' का गुण यह भी है कि जहां जिस भाव में बैठता है उसे 'नष्ट' करता है। उनके साथ ऐसा ही रहा भी है विवाहित होकर भी 'विधुर' जैसा जीवन इसी 'गुरु' की कृपा रही है। अब पत्नी की घोषणा करके भी सुखों पर हमलों को उन्होने आमंत्रित कर लिया है। जन्म लग्न में भी परस्पर शत्रु 'चंद्र'-'मंगल' स्थित हैं। ये सम्मिलित रूप से उनके मस्तिष्क को प्रभावित कर रहे हैं जैसा कि उनकी कार्य प्रणाली व वक्तव्यों से सिद्ध होता है। लग्न का चंद्र मस्तिष्क को व्यथित रखता है।
महादशा-अंतर्दशा उनको 'आर्थिक' लाभ पहुंचाने वाली है इसी लिए कारपोरेट घरानों ने उनके लिए लूट की पूंजी के पिटारे खोल दिये हैं। लेकिन उनके 'कर्म' भाव में बैठ कर 'शनि' उनके कर्मफल को नष्ट कर रहा है। संकेत साफ हैं। वह केवल मोहरा ही रहने वाले हैं सफलता उनसे कोसों दूर रहने वाली है।
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जवाब देंहटाएंReena Satin Ab sansadeeya pranali mein vishwaas rakhne waale vaampanthee dalon ke paas saath kaam karne ke alaawa koi vikalp naheen hai..See Translation
12 hours ago · Unlike · 2
Sanjeev Kumar · Friends with Atul Kumar Singh Anjan
जब तक बाम दल आपस मेँ तय कर 543सीट पर खड़ा नहीँ कर सकते हैं तब तक कुछ नहीं होगा अभी आप लोगो से वह बाम दल अच्छा हैँ जो चुनाव मेँ भाग नहीँ लिया है आप कभी नितिश के साथ कभी लालुके साथ
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