30 नवंबर को पिताजी के दूसरे चचेरे भाई जब हमसे मिलने आए तो बेहद खुशी हुई कि अभी हमें बुज़ुर्गों ने भुलाया नहीं है। माता-पिता द्वारा पूनम से मेरे पुनर्विवाह का निर्णय लेने के बाद उन दोनों का ही निधन हो जाने के कारण जहां छोटे भाई -बहन सहित अधिकांश रिश्तेदार पूनम से विवाह किए जाने को गलत ठहरा रहे थे इन चाचा ने स्पष्ट कहा कि तुमने भाई साहब -भाभी जी की बात उनके बाद भी मान कर सही निर्णय लिया है।उन्होने मेरे ब्लाग -लेखन को भी सही ठहराया। उन्होने पैतृक संपति न लेने के हमारे पिताजी के निर्णय को भी सही ठहराया। पिताजी की ईमानदारी व परिवार के प्रति निभाए कर्तव्यों की भी चाचा ने सराहना की। इससे यह ढाड़स मिला की अभी भी ईमानदारी अपना कर हमने कुछ भी गलत नहीं किया है और इसी पथ पर आगे भी चलते रहना चाहिए।
1975 में बहन की शादी हुई थी और 1976 में बहनोई साहब ने बहन से माँ को कहलाया था कि बाबूजी को दरियाबाद की पैतृक संपति ले लेनी चाहिए उसकी देख-रेख करने के लिए वह BHEL की अपनी नौकरी भी छोडने को तैयार थे। उनका यह भी कहना था कि यदि बाबूजी मकान बनाते हैं तो उनको एक-एक कमरे के ही सही तीन मकान बनाने होंगे। परंतु बाबूजी जब 1978 में रिटायर हुये तो उनको पूरी पेंशन भी इसलिए न मिली कि वह पहले ही बहन की शादी के वक्त पेंशन बेच चुके थे तो मकान कैसे बनाते? मेरे द्वारा 15 वर्षीय किश्तों पर आगरा में मकान लेना उनको भी नागवार गुजरा था। होटल मुगल में जाब खत्म कराने में उनकी भी भूमिका रही थी जिसका अब जाकर खुलासा हुआ है। वे लोग सोचते थे किश्तें अदा न कर पाने के कारण मेरा एलाटमेंट केन्सिल हो जाएगा। परंतु मैंने भूखे रह कर भी किश्तें चुका दीं थी और उसी मकान को बेच कर अब लखनऊ में घाटे पर लिया है। मेरा लखनऊ आना तो उनको इतना अखरा कि तिकड़म करके मेरे पुत्र का जाब भी खत्म करा दिया। दरियाबाद में बाबूजी के भतीजों को भी अपने साथ लामबंद करके उन्होने हमें अलग-थलग करने की किलेबंदी कर रखी है।
ब्लाग-जगत में दरियाबाद से संबन्धित रांची स्थित एक ब्लागर के माध्यम से पटना के पूना प्रवासी ब्लागर को अपनी छोटी बेटी के संपर्क द्वारा मेरे व पुत्र के लेखन के विरुद्ध भी बवंडर खड़ा किया गया। उन्ही संपर्कों द्वारा हमारी पार्टी के एक प्रदेश नेता को भी मेरे विरुद्ध जुटाया गया जो मेरे लेखन का प्रखर विरोधी और आलोचक बन कर मुझे उत्पीड़ित करने का हर प्रयास करता रहता है।
ऐसी परिस्थितियों के बीच हमारे चाचा ने हमारे घर आकर हमको सही ठहराया यही हमारी वर्ष 2014 की सबसे मूल्यवान उपलब्धि है।
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