http://www.jansandeshtimes.in/index.php?spgmGal=Uttar_Pradesh/Lucknow/Lucknow/09-06-2015&spgmPic=4
इलाहाबाद निवासी और राजर्षि पुरुषोतम दास टंडन विश्वविद्यालय के मास कम्यूनिकेशन विभाग के निदेशक पद से अवकाश प्राप्त प्रोफेसर सतीश चित्रवंशी जी के अथक प्रयासों से फीचर फिल्म 'कागज की चिन्दियाँ ' पूर्ण हो चुकी है तथा शीघ्र ही सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए उपलब्ध होगी। इस सिलसिले में लखनऊ पधारने पर दैनिक 'जन संदेश टाईम्स' ने उनका एक विस्तृत साक्षात्कार कामरेड कौशल किशोर जी के सौजन्य से कल लिया था जिसे आज दिनांक 09 जून 2015 को अपने सांस्कृतिक पृष्ठ पर छापा है। मुझे भी इस साक्षात्कार का साक्षी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।यों तो प्रोफेसर साहब द्वारा दिये गए साक्षात्कार के जो अंश प्रकाशित हुये हैं उनसे सबको ही इस फिल्म के उद्देश्य के बारे में भान हो ही जाता है कि प्रस्तुत फिल्म 'नारी की अस्मिता' पर प्रकाश डालती है। प्रदेश की समाजवादी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी लखनऊ को फिल्म निर्माण के क्षेत्र में विकसित करना चाहते हैं। यह एक सकारात्मक पहल है किन्तु प्रश्न यह है कि क्या मुंबई के स्थापित फ़िल्मकारों को ही प्रोत्साहित किया जाएगा या सरकार प्रदेश में 'विकल्प का सिनेमा' को भी सहयोग,समर्थन व प्रोत्साहन प्रदान करेगी? यदि प्रो .सतीश चित्रवंशी सरीखे विद्वजनों को सरकार सहायता उपलब्ध कराती है तो उत्तर-प्रदेश से सार्थक फिल्म निर्माण संभव हो सकेगा।
मैंने अपने इसी ब्लाग में कुछ देखी गई फिल्मों पर निर्माता-निर्देशक द्वारा फिल्म प्रस्तुत करने के उद्देश्य चिन्हित करते हुये प्रकाश डाला है और 'कागज की चिन्दियाँ ' को देखने के बाद अपने दृष्टिकोण से उसकी समीक्षा प्रस्तुत कर सकूँगा।सार्वजनिक हित से संबन्धित मेरे ब्लाग्स में ये भी प्रमुख स्थान रखते हैं :
सुर - संगीत
http://sur-sangeet-pv.blogspot.in/
सर्वे भवन्तु सुखिनःसर्वे सन्तु निरामयः
http://vijaimathur05.blogspot.in/
(1) शनिवार, 4 जनवरी 2014उमरावजान का आधुनिक सुल्तान कौन?रेखा राजनीति में कैसे??
आज 'आप'/केजरीवाल उसी भूमिका में हैं जिसमें उस वक्त के सुल्तान और नवाब थे। जनता के उत्पीड़न और शोषण से संग्रहीत धन को कारपोरेट घराने इन नए सुल्तानों पर लुटा रहे हैं और ये नए सुल्तान मनमोहनी अदाओं से आज की उमराव जान अर्थात बेगुनाह जनता को दिवा-स्वप्न या ख़्वामख़्वाह के झूठे सब्जबाग दिखा रहे हैं ,जैसे इस सुल्तान ने उमरावजान को दिखाये थे।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/01/blog-post.html
(2)रविवार, 11 मई 2014
टी वी चेनल्स,सोशल मीडिया,कारपोरेट प्रिंट मीडिया एक स्वर से 'सांप्रदायिक तानाशाही' का स्वागत करते प्रतीत हो रहे हैं। उस पार्टी द्वारा 10 हज़ार करोड़ रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए जा चुकने का अनुमान है।
क्या संदेश है नई उम्र की नई फसल का ?http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/05/blog-post_11.html
(3 )बुधवार, 9 जुलाई 2014
'चोरनी' में नीतू सिंह जी द्वारा क्या संदेश दिया गया है?
इस फिल्म के माध्यम से बताया गया है कि किस प्रकार अमीर लोग अप संस्कृति का शिकार होकर समाज को विकृत करते रहते हैं। आज 1982 के बत्तीस वर्षों बाद तो समाज का और भी पतन हो चुका है अतः आज भी इस फिल्म की शिक्षा प्रासंगिक है।
vidrohiswar.blogspot.in/2014/07/blog-post_9.html
(4)शुक्रवार, 18 जुलाई 2014
कितने संदेश हैं कटी पतंग में ?
'वात्सल्य प्रेम' कभी भी निष्प्रभावी नहीं हो सकता। निश्छल प्रेम को अबोध बच्चा भी महसूस कर लेता है। माधवी ने पूनम के पुत्र को जो मातृत्व प्रदान किया था वह निस्वार्थ व निश्छल था और इसी का यह परिणाम था कि पूनम के अबोध-नादान पुत्र ने खेल-खेल में जहर की शीशी उठा कर रहस्य से पर्दा उठवा दिया और माधवी निर्दोष सिद्ध हो सकी। अतः प्रकृति-परमात्मा का अनुपम उपहार बच्चों से सदैव प्रेम-व्यवहार रखना चाहिए।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/07/blog-post_18.html
(5 )गुरुवार, 24 जुलाई 2014
पाखंड का 'पर्दाफाश' करती :चित्रलेखा
धर्म के ये ठेकेदार जनता को त्याग,पुण्य-दान के भ्रमजाल में फंसा कर खुद मौज कर रहे हैं। गरीब किसान,मजदूर कहीं अपने हक -हुकूक की मांग न कर बैठें इसलिए 'भाग्य और भगवान्'के झूठे जाल में फंसा कर उनका शोषण कर रहे हैं तथा साम्राज्यवादी साजिश के तहत पूंजीपतियों के ये हितैषी उन गलत बातों का महिमा मंडन कर रहे हैं।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/07/blog-post_24.html
(6 )सोमवार, 4 अगस्त 2014
समाज में विषमता व कृषक उत्पीड़न को उजागर करती है 'दुश्मन'
फ़िल्मकार का दृष्टिकोण 'दंडात्मक' के बजाए 'सुधारात्मक' न्याय व्यवस्था के प्रति लोगों को जागरूक करना था । परंतु लोग बाग तो महज मनोरंजन के दृष्टिकोण से ही फिल्में देखते हैं किसी ओर से भी ऐसी पहल की मांग नहीं उठाई गई आज 43 वर्षों बाद भी लोग 'फांसी-फांसी' के नारों के साथ प्रदर्शन करते हैं और 'मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की ' की तर्ज़ पर नित नए-नए अपराधों की बाढ़ आती जाती है।
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(7 )शुक्रवार, 22 अगस्त 2014
इन्सानी भाई चारे का संदेश है 'काबुलीवाला'
मिनी और उनके पिता श्री द्वारा खान
साहब के प्रति जो उदारता व सदाशयता ' काबुलीवाला ' कहानी में गुरुवर
रवीन्द्र नाथ ठाकुर साहब ने दिखाई थी उसे इस फिल्म में निर्माता बिमल राय व
निर्देशक हेमेन गुप्ता ने ज्यों का त्यों कायम रखा है। 53 वर्ष पूर्व
प्रदर्शित यह फिल्म आज भी ज्यों का त्यों समाज व राष्ट्र के समक्ष
सांप्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष में सहायक है। 16 वीं लोकसभा चुनावों के
पूर्व व पश्चात जिस प्रकार सांप्रदायिकता को उभार कर व्यापार जगत ने
सामाजिक सौहार्द को नष्ट करके मानवता का हनन किया है उसको काबू करने में
'काबुलीवाला ' बहुत हद तक सफल साबित हो सकती है।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/08/blog-post_22.html
(8 )सोमवार, 1 सितंबर 2014
उसने कहा था का संदेश क्या था?
गुलेरी जी ने लहना सिंह के बचपन
के प्रेम को आधार बना कर इस कहानी के माध्यम से युद्ध की
विभीषिका,छल-छद्यम,व्यापार मुनाफा,काला बाजारी सभी बातों को जनता के समक्ष
रखा है सिर्फ प्रेम-गाथा को नहीं । सैनिकों की मनोदशा,उनके कष्टों तथा
अदम्य साहस का वर्णन भी इस कहानी तथा फिल्म दोनों में है।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/09/blog-post.html
(9 )गुरुवार, 18 दिसंबर 2014
दो कलियाँ आज भी प्रेरक फिल्म
वीभत्स आतंकवाद (पेशावर कांड ) के शिकार सवा सौ से अधिक बच्चों के मार्मिक दुखांत ने हमें 1968 में रिलीज़ हुई 'दो कलियाँ' देखने को प्रेरित कर दिया। जिसमें बाल-कलाकार के रूप में नीतू सिंह की मुख्य भूमिका है। निर्देशक द्वय आर कृष्णन व एस पंजू ने इस फिल्म के माध्यम से मनोरंजन करते हुये जो संदेश दिया है वह वास्तव में नितांत गंभीर है। इसके माध्यम से समाज की तमाम विकृतियों, विभ्रम, स्वार्थ-लिप्सा, अनैतिक कार्यों के दृष्टांत प्रस्तुत करते हुये यह भी दिखाया गया है कि इसी पथ -भ्रष्ट समाज में कुछ लोग अपने साहस व लगन के द्वारा उन पर विजय हासिल करने में भी समर्थ हैं। हालांकि फिल्म के उपसंहार में बालाजी पर आस्था व विश्वास के दृश्यों द्वारा समाज में व्याप्त अंध-विश्वास व ढोंग को महिमामंडित कर दिया गया है जिससे जनता में कर्तव्य पथ से परे परा - शक्ति पर भरोसा रखने की प्रवृत्ति को बेजा बढ़ावा मिलता है। यदि फिल्म के अंतिम पाखंडी दृश्यों की उपेक्षा कर दी जाये तो बाकी फिल्म प्रेरक प्रतीत होती है जिसने दो छोटी-छोटी बच्चियों के साहस,बुद्धि-कौशल व दृढ़ निश्चय को दर्शाया है। इन दोनों जुड़वां बहनों ने न केवल अपनी माँ के प्रति उत्पन्न अपने पिता की गलत फहमी को दूर किया वरन अपनी घमंडना नानी को एड़ियों के बल खड़ा होने पर मजबूर कर दिया।
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(10 )रविवार, 1 फ़रवरी 2015
खेल कारपोरेट ट्रेड यूनियनिज़्म का :'नमक हराम' से 'चक्रव्यूह' तक
हालांकि फिल्म निर्माता तो मनोरंजन और
मुनाफे को ध्यान में रख कर आजकल फिल्में बनाते हैं। किन्तु आज़ादी से पहले
और बाद में भी कुछ फिल्मों द्वारा समाज और राजनीति को नई दिशाएँ बताने का
कार्य किया गया है। हाल की चक्रव्यूह और 40 वर्ष पुरानी नमक हराम फिल्में
मालिक द्वारा मजदूर और किसानों के शोषण पर प्रकाश डालती तथा अपना समाधान
प्रस्तुत करती हैं।
'नमक हराम' में बताया गया है कि विक्की
और सोनू दो अलग-अलग समाज वर्गों से आने के बावजूद एक अच्छे मित्र
है।षड्यंत्र पूर्वक मजदूर नेता की हत्या कराये जाने से क्षुब्ध अमीर अपने
धनाढ्य पिता से बदला लेने हेतु खुद हत्या का इल्ज़ाम लेकर जेल चला जाता है
लेकिन पिता के गलत कार्यों में सहयोग नहीं करता है।
'चक्रव्यूह' द्वारा कारपोरेट कंपनियों
की लूट को सामने लाया गया है। इसी लूट के कारण आदिवासी किसानों के मध्य
नक्सलवादी आंदोलन की लोकप्रियता पर भी प्रकाश डाला गया है और इस आंदोलन की
आड़ में स्वार्थी तत्वों द्वारा आंदोलन से विश्वासघात का भी चित्रांकन किया
गया है।
'मजदूर' द्वारा भी मालिक-मजदूर के
सम्बन्धों पर व्यापक प्रकाश डालते हुये पूंजीपति वर्ग की शोषण प्रवृति को
उजागर किया गया है। मजदूरों की संगठित एकता के बल पर समानान्तर रोजगार की
उपलब्धि बताना भी इस फिल्म का लक्ष्य रहा है। IPTA और भाकपा में लोकप्रिय
गीत की प्रस्तुति इस फिल्म में चार चाँद लगा देती है।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2015/02/blog-post.html
(11 )सोमवार, 30 मार्च 2015
स्थापित मान्यताओं पर आधारित 'राम राज्य' एक उत्तम कलात्मक फिल्म
इस फिल्म में यद्यपि लोक प्रचलित
मान्यतों के आधार पर ही प्रदर्शन है किन्तु मैंने अपने कई लेखों के माध्यम
से राम-वनवास तथा सीता-वनवास के राजनीतिक,कूटनीतिक कारणों का उल्लेख किया
है
http://vidrohiswar.blogspot.in/2015/03/blog-post_52.html
(12 )शनिवार, 21 दिसंबर 2013
ब्रह्मचारी 'त्याग'व 'परोपकार' की शिक्षाप्रद मनोरंजक कथा -
जहां एक ओर शीतल की माँ व मामा का चरित्र निकृष्ट रहा जो अपनी बेटी व भांजी का ही अहित करने पर तुले थे। वहीं ब्रह्मचारी व रवि की माँ का चरित्र एक आदर्श दृष्टांत उपस्थित करता है।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/12/blog-post.html
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स्मिता पाटिल जी द्वारा अमिताभ बच्चन जी को जो ज्योतिषीय परामर्श दिया था उस पर भी मैंने अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है :
ज्योतिष का मखौल उड़ाना जितना आसान है उसकी अवहेलना करने पर हानि से बचना नहीं। काश स्मिता जी पूर्ण आयु प्राप्त करतीं तो समाज उनके ज्योतिषीय ज्ञान से लाभ उठा सकता था। परंतु दुनिया का यह दुखद दस्तूर है कि किसी के जीवित रहते उसको उसका वाजिब हक व सम्मान नहीं दिया जाता है। जिन साहब ने मृतयोपरांत स्मिता पाटिल जी के ज्योतिषीय ज्ञान को रेखांकित किया वह साधूवाद के पात्र हैं।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2014/08/blog-post_25.html
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