रविवार, 5 फ़रवरी 2012

सठिया गये



(विजय,पूनम एवं यशवन्त माथुर)


अक्सर लोगों को कहते सुना है कि वह या यह सठिया गया है। वैसे लोग किस संदर्भ मे कहते हैं वे ही जानें। परंतु मै समझता हूँ कि जब कोई जीवन के साठ वर्ष पूर्ण कर ले तो उसे सठियाया कहते होंगे। यदि ऐसा ही है तब अब मै भी सठिया गया। मेरा ब्लाग का प्रारम्भिक लेख था-'आठ और साठ  घर मे नहीं'। 02 जून 2010 को ब्लाग मे प्रकाशन से पूर्व यह लेख लखनऊ के एक स्थानीय अखबार मे प्रकाशित हो चुका था। इसके मुताबिक मुझे अब घर छोड़ कर 'वानप्रस्थ'ग्रहण कर लेना चाहिए। परंतु समाज मे व्यावहारिक रूप से आज ऐसी व्यवस्था नहीं है। अतः आज 61वे वर्ष मे प्रवेश के बावजूद घर मे ही मेरी उपस्थिती बरकरार रह गई है। हालांकि मै चाहता हूँ कि घर मे न उलझा रह कर 'राजनीति' एवं लेखन  के माध्यम से समाज सेवा/जन सेवा मे अधिकाधिक अपना समय लगाऊ । यों तो राजनीति मे मै किसी न किसी रूप मे युवावस्था से ही हूँ। 22 वर्ष की अवस्था मे मै 'सारू मजदूर संघ',मेरठ की कार्यकारिणी मे था और कुछ समय कार्यवाहक कोषाध्यक्ष  भी रहा था। न चाहते हुये भी 26 वर्ष की अवस्था मे 'होटल मुगल कर्मचारी संघ',आगरा का महामंत्री (SECRETARY GENERAL)बनना पड़ा था। 25 वर्ष की अवस्था मे 'जनता पार्टी'(चंद्रशेखर की अध्यक्षता वाली) का साधारण सदस्य और 28-29 वर्ष की अवस्था मे ए बी बाजपाई की अध्यक्षता वाली 'भाजपा' का सक्रिय सदस्य था। 34 वर्ष की आयु से 'भाकपा' मे आया (42 वर्ष आयु से 54 वर्ष आयु तक मुलायम सिंह की अद्यक्षता वाली 'समाजवादी पार्टी' मे -पूर्वी विधान सभा क्षेत्र ,आगरा का महामंत्री फिर बाद मे डॉ डी.सी .गोयल के महानगर अध्यक्ष बनने पर उनकी नगर कार्यकारिणी मे भी रहा और राज बब्बर से भी पहले 'सपा'छोड़ कर खाली बैठा था कि आगरा-भाकपा के मंत्री के आग्रह पर वापिस 'भकपा'मे लौट आया)और आज 'सठियाते समय' लखनऊ -भाकपा की जिला काउंसिल मे हूँ।


जहां अधिकांश लोगों को कहते सुना जाता है कि राजनीति भले लोगों के लिए नहीं है वहीं इसके ठीक विपरीत मेरा सुदृढ़ अभिमत है कि 'राजनीति' है ही भले लोगों के लिए और राजनीति को 'गंदा' करने के लिए जिम्मेदार हैं तथाकथित 'भद्र जन'जो छुद्र स्वार्थों के कारण राजनीति से दूर रहते है और इसे गंदे लोगों के लिए खाली छोड़ देते हैं। MAN IS A POLITICAL BEING -यह कथन है सुकरात (प्लूटो)का जो अरस्तू (एरिस्टाटल )का गुरु था। अर्थात Man is a social animal -मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है-कहने वाले के गुरु का कहना है कि ' मनुष्य जन्म से ही एक राजनीतिक प्राणी है'। समाँज मे तो मनुष्य जन्म के बाद ही आता है तब जब वह सक्रिय होता है किन्तु राजनीति मे तो वह जन्मते ही शामिल हो जाता है। फिर कैसे 'राजनीति' गंदे लोगों के लिए है?दरअसल ऐसा कहने वाले लोग ही गंदे होते हैं जो समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नही करना चाहते-उनका मूल मंत्र होता है-मेरा पेट हाऊ मै न जानूँ काऊ ।

आज सठियाते समय मै तो सामान्य से अधिक सक्रिय हूँ अपने शौक(Hobby)-राजनीति मे और लेखन मे भी  क्योंकि अभी हमारे उत्तर प्रदेश मे विधान सभा चुनाव चल रहे हैं। आज से दो सप्ताह बाद हमारे नगर लखनऊ मे मतदान होना है। इस बार हमारी भाकपा ने पूरे प्रदेश मे अपने 55 और सम्पूर्ण बामपंथ ने 115 प्रत्याशी चुनाव मे उतारे हैं एक मजबूत विपक्ष विधानसभा मे बनाने हेतु जो दबे-कुचले,शोषित-उपेक्षित ,किसानों-मजदूरों की समस्याओं पर सदन के भीतर ही सशक्त आवाज बुलंद करेगा। एक मजबूत विपक्ष के आभाव मे सरकारें निरंकुश और भ्रष्ट होती रही हैं। भ्रष्टाचार मुक्त पार्टी-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी इस बार के चुनावों के माध्यम से सरकार को अंकुश मे रखने का प्रयास कर रही है। सभी भद्र जनों को हमारे इस प्रयास मे सहयोग करना चाहिए। 'एकला चलो रे' सिद्धान्त के अनुसार मै तो इस अभियान मे संलिप्त हूँ ही और इस सठियाने के बाद और अधिक सक्रिय रहने का प्रयास करूंगा।

11 माह की नौकरी करने के बाद स्तीफ़ा मांगे जाने का विरोध करके डटे रहने के कारण 'सारू मजदूर संघ ',मेरठ के कोषाध्यक्ष ने मुझ से कहा था जब अपने लिए संघर्ष कर सकते हो तो सब के भले के लिए यूनियन मे शामिल हो जाओ और पिछ्ले समय से सदस्यता देकर मुझे कार्यकारिणी मे शामिल कर लिया गया था। आगरा मे भी मुझ पर दबाव था कि मै आगे आ कर यूनियन के गठन मे सहयोग दूँ परंतु पहले मै दूर ही रहा। किन्तु 'होटल मुगल कर्मचारी संघ',आगरा का रेजिस्ट्रेशन होने से पूर्व ही महामंत्री का चयन बैंक आफ बरोदा मे DRO के रूप मे हो गया। मँझधार मे छूटी यूनियन का मुझे सीधे महामंत्री घोषित कर दिया गया और फिर बाद मे मुझे पिछले समय से सदस्यता ग्रहण करनी पड़ी थी। जनता पार्टी सरकार बनने के बाद मुगल होटल मे सहयोगी केरल वासी विजय नायर साहब ने एक रुपया लेकर जबर्दस्ती 'जनता पार्टी' की सदस्यता दे दी थी। क्योंकि 'होटल मुगल कर्मचारी संघ',आगरा के रेजिस्ट्रेशन के वक्त बी एम एस नेताओं ने मदद की थी अतः उनके प्रस्ताव को नजरंदाज न कर पाने के कारण 'भाजपा' का सक्रिय सदस्य बनना मजबूरी का सबब था। 25 लोगों से एक-एक रुपया लेकर रसीद बुक जमा कर देने के कारण 'सक्रिय सदस्यता' प्रदान कर दी गई थी। जब किसी से एक पान भी  खाये बगैर ही सबका कार्य सम्पन्न कराया हो तब सीट पर बैठे-बैठे एक-एक रु.की रसीद तो सम्पूर्ण 450 लोगों की काटी जा सकती थी 25 की क्या  कोई बात थी?एक-आध बार बैठकों मे भाग लिया तो समझ आया कि यह-भाजपा  तो व्यापारियों और पोंगापंथियों की पोषक पार्टी है  ,आम जनता के हितों से इसका कोई सरोकार नहीं है । अंदरूनी बैठकों मे इसके नेता और कार्यकर्ता कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ते हैं। अतः गुप-चुप तरीके से अलग हो गया।

होटल मुगल से बर्खास्तगी के विरुद्ध कानूनी लड़ाई लड़ने के वक्त बने संपर्कों के आधार पर 1986 मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मे शामिल कर लिया गया और बाद मे कोषाध्यक्ष भी रहा। 1994 से 2004 तक समाजवादी पार्टी ,आगरा मे रहा, दो वर्ष निष्क्रिय रहने के बाद वापिस सी पी आई  मे आ गया और 2006 से पुनः भाकपा मे सक्रिय हूँ। 45 वर्ष से 52 वर्ष की आयु तक 'बल्केश्वर-कमला नगर आर्यसमाज',आगरा मे भी सक्रिय रहा और इसकी कार्यकारिणी मे भी शामिल किया गया जिससे एक माह मे ही हट गया था। स्वामी दयानन्द सरस्वती से शुरू से ही प्रभावित था 11 वर्ष की उम्र मे उनका 'सत्यार्थ प्रकाश' काफी अच्छा लगा था। 17 से 19 वर्ष की आयु के मध्य मेरठ कालेज ,मेरठ के पुस्तकालय मे उनके प्रवचनों का संग्रह-'धर्म और विज्ञान' भी पढ़ा-समझा था और आज भी उनके विचार सर्वोत्कृष्ट लगते हैं। किन्तु महर्षि द्वारा स्थापित संगठन 'आर्यसमाज' अधिकांशतः उनके विचारों के विरोधी संगठन आर एस एस से प्रभावित लोगों के चंगुल मे फंस गया है अतः गुप-चुप तरीके से संगठन से प्रथक्क हो गया। 49  वर्ष से 53 वर्ष की आयु तक 'कायस्थ सभा',आगरा मे भी सक्रिय रहा और इसकी कार्यकारिणी मे तथा कई सचिवों मे से एक सचिव भी रहा। इसका तथा 'अखिल भारतीय कायस्थ महासभा',आगरा का आजीवन सदस्य होते हुये भी इन संगठनों से निष्क्रिय इसलिए हो गया क्योंकि ये संगठन इनको चलाने वाले नेताओं के व्यापारिक हितों का संरक्षण करते हैं न कि आम लोगों का कल्याण। 

कुछ क्या अधिकांश लोगों को यह हास्यास्पद प्रतीत होता है कि मै कम्युनिस्ट पार्टी मे होते हुये भी 'वैदिक'मत का समर्थक कैसे हूँ?कारण यह है कि लोग भी समझते हैं और कम्युनिस्ट खुद भी अपने को धर्म विरोधी कहते हैं। वस्तुतः 'धर्म' को न समझने के कारण ही ऐसा भ्रम बना हुआ है। साधारणतः लोग ढोंग और पाखंड को धर्म कहते हैं और कम्यूनिज़्म इसी का विरोध करता है और स्वामी दयानन्द ने भी इसी का विरोध किया है। यही कारण है कि ठोस आर्यसमाजी को भी कम्युनिस्टों की भांति ही संशय की दृष्टि से देखा जाता है। जबकि वास्तव मे 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद और समृद्ध' बनाने हेतु दोनों के विचार समान हैं । 'साम्यवाद' जिसे कम्यूनिज़्म कहा जाता है मूल रूप से भारतीय अवधारणा ही है जिसे मैक्स मूलर साहब अपने साथ यहाँ की मूल पांडु लिपियाँ लेकर जर्मनी पहुंचे और वहाँ उनके जर्मन अनुवाद से प्रभावित हो कर कार्ल मार्क्स ने जो निष्कर्ष निकाले वे ही कम्यूनिज़्म के नाम से जाने जाते हैं। सारा का सारा भ्रम साम्राज्यवाद के हितचिंतक संप्रदाय वादी आर एस एस का फैलाया हुआ है। इसी भ्रम को तोड़ना मेरा लक्ष्य है। अधिकाधिक लोगों का कल्याण हो और वे भटकें नहीं इसी विचार को लेकर मै 'हवन विज्ञान' संस्था बनवाना चाहता था और लोगों का हकीकत -सत्य से साक्षात्कार करवाना चाहता था। अपने निकटतम रिशतेदारों ( जो मेरे लखनऊ आने के प्रबल विरोधी रहे और अब संबंध तोड़ लिए )के फैलाये कुचक्र के कारण इस विचार को फिलहाल स्थगित रखा है परंतु उम्मीद है कि भविष्य मे सफल हो सकूँगा।

दूसरे शौक लेखन मे 19 वर्ष की आयु मे 'मेरठ कालेज पत्रिका',मे एक लेख 'रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना' के प्रकाशन के साथ ही शामिल हूँ।21 वर्ष की अवस्था मे आगरा जहां अजय इंजीनियरिंग पढ़ रहे थे घूमने गया था और उनके परिचय से फारवर्ड ब्लाक के एक नेता के अखबार 'युग का चमत्कार' मे पहला लेख-'अंधेरे उजाले' जो महर्षि स्वामी दयानन्द 'सरस्वती'पर था प्रकाशित  हुआ था। आगरा के ही एक अखबार 'पैडलर टाइम्स' मे पहली कविता'यह महाभारत क्यों होता?' प्रकाशित हुई थी।  सारू स्मेल्टिंग,मेरठ मे अकौण्ट्स विभाग मे होने के कारण पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से भी वास्ता पड़ता रहता था। 'पी  सी टाइम्स' के संपादक प्रकाश चंद जी मेरे सभी लेख छापने लगे उस वक्त उम्र 22  वर्ष थी। लेखों के आधार पर पत्र के प्रबन्धक मिश्रा जी ने एक बार मुझसे पूछा था कि आपने एम ए 'राजनीति शास्त्र' मे किया है अथवा 'हिन्दी साहित्य' मे? विनम्रता पूर्वक उन्हे समझाना पड़ा कि ,साहब मैंने तो एम ए ही नहीं किया है मात्र बी ए किया है। उन्होने प्रसन्नतापूर्वक कहा था जब भी इधर आना मुझसे मिले बगैर न जाना। उनके निर्देश का मैंने सहर्ष पालन सदैव किया।

आगरा मे 29 वर्ष की अवस्था से 'सप्त दिवा'साप्ताहिक मे नियमित लेख प्रकाशित होते रहे बाद मे सहायक संपादक तथा उसके बाद उप संपादक के रूप मे भी इससे संबद्ध रहा। 'ब्रह्मपुत्र समाचार' ,आगरा मे 50 वर्ष की आयु से नियमित लेख आदि छपते रहे। 'माथुर सभा','कायस्थ सभा' की मेगजीन्स मे तो लेख छ्पे ही वैश्य समुदाय की 'अग्रमंत्र' त्रैमासिक पत्रिका मे भी उप-संपादक के तौर पर संबद्ध रहकर नियमित लिखता रहा। 58 वर्ष की उम्र मे लखनऊ के एक स्थानीय अखबार मे भी लेख छपे किन्तु जून 2010 से 'क्रांतिस्वर' ब्लाग बन जाने के बाद केवल ब्लाग्स और फेसबुक मे ही लिख रहा हूँ और आगे भी यह शौक बदस्तूर जारी ही रहने की संभावना है।








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