बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

पहचान षड्यंत्रकारी छिपे खिलाड़ियों की



 http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html

   प्रस्तुत लिंक पर मेरा लेख ---'


बृहस्पतिवार, 19 अप्रैल 2012


रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना 

 



 
और इत्तिफ़ाक से 26 अप्रैल 2012 को राष्ट्रपति महोदया प्रतिभा पाटील जी ने 'रेखा जी' को अन्य दो के साथ 'राज्यसभा' मे मनोनीत कर दिया। मेरा ज्योतिषीय विश्लेषण एक सप्ताह मे सही सिद्ध होने पर अब ज्योतिष को 'मीठा जहर'  बताने वाले कारपोरेट चेनल IBN7 के प्रतिनिधि ने अगले ही दिन 27 अप्रैल को इसकी आलोचना मे पोस्ट दी जिस पर  ये  दो टिप्पणिया उन दोनों की मनोदशा को उजागर करने हेतु पर्याप्त हैं।



कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला





  • आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
    मेरी भी शुभकामना है

     एक तीसरे ब्लाग पर पाखंड विरोधी लेख पर मेरी  टिप्पणी को ठुकराने का आग्रह इन महाशय ने पोस्ट लेखिका से किया था और मैंने इनके कुतर्क पर क्या कहा था एक नज़र उस पर भी---



     ज़ाहिर है कि कारपोरेट चेनल्स के दलाल/कारिंदे नहीं चाहते कि जनता को जागरूक किया जाये और ढोंग-पाखंड-आडंबर का पर्दाफाश करके उनको शोषण व उत्पीड़न से बचाया जाये। अतः अपने आकाओं के व्यापारिक हितों के संरक्षणार्थ ऐसे लोग सच्चाई को बर्दाश्त नहीं करते और उसका भोंडा विरोध करते हैं । IBN7 और दैनिक जागरण निरंतर जन-विरोधी समाचार देने के लिए जाने जाते हैं।

    इस कारपोरेट दलाल की मन्त्र्दाता और उसकी शिष्य द्वारा  चार-चार जन्मपत्रियाँ निशुल्क विश्लेषण करवाने के बाद जिस प्रकार इस  गैंग ने 'ज्योतिष' और मेरे ज्ञान पर प्रहार किए उसी कारण 'जनहित मे' नमक ब्लाग को सार्वजनिक रूप से प्रतिबंधित कर रखा है जिसके माध्यम से उपयोगी 'स्तुतियाँ' प्रस्तुत की थीं। यदि ब्लागर्स /फेसबुक साथी इस गैंग  की निंदा करके  उस ब्लाग से सार्वजनिक लाभ उठाना चाहेंगे तो पुनः 'सार्वजनिक' किया जा सकता है। 
    http://janhitme-vijai-mathur.blogspot.in/?zx=a15232c1af410425 

     इसी प्रकार 14-10-2012 को ज्योतिष एक मीठा जहर शीर्षक से जो लेख इन महोदय ने लिखा था उस पर दो पत्रकारों की टिप्पणिया ये हैं---

    1. मुझे लगता है कि हमे उन्ही विषयो पर लिखना या टिपण्णी करनी चाहिये जिसके बारे मे कुछ समझ रखते हो। ज्योतिष सही है या गलत इस संबंध मे आपने किसी ज्योतिषी की राय नही ली कि आखिर आधार क्या है योटिश का। बेहतर होता आप राय लेकर के उसे तर्को के सहारे कातते । रह गई ग्रह नक्षत्रो की बाद तो ज्वार भाटा के आने का कारण चंद्र्मा की स्थिति मे परिवर्तन है। इन गर्हो के मुमवेंट का असर आदमी के मन और दिमाग पर भी पडता है जिससे बहुत सारे काम और काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। क्षमा करे , परन्तु आपका यह लेख सतही है।






      1. मदन भाई साहब आप यहां आए स्वागत है।
        आप बताएं फिर तो सबसे पहले मीडिया हाउस को बंद कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि हम मेडिकल के बारे में बारे में लिखते है, मैं एमबीबीएस तो है नहीं, रेलवे की इंजीनियरिंग सिस्टम पर हम लिखते हैं हमने इंजीनियरिंग भी नहीं की है। सेना को कवर करने जाते हैं किसी ने सैन्य प्रशिक्षण तो लिया नहीं।

        खैर लेख लिखने के पहले हमने ज्योतिष के बारे में पढने के बाद ही लिखा है। अच्छा होता कि आप लेख में जहां खामियां है उस पर मेरा ध्यान केंद्रित करते।
        फिर भी आपने वक्त दिया ब्लाग पर मैं आभारी हूं..
    2. महेंद्र जी, आप सन्दर्भ बिलकुल सही है और शायद हमें इसी तरह के लेख की जरुरत आज के समय में है. लेकिन एक शिकायत जो आप के साथ साथ सभी मीडिया के साथियों से है वो यह की आप कृपया अपने लेख के शीर्षक का ध्यान रखें. ज्योतिष यानि मीठा जहर का अर्थ एक सामान्य मनुष्य को येही आएगा की आप ज्योतिष को को गलत बता रहे हैं. पर आपने इसने नाम पे जो बुराइयाँ उजागर की हैं वो अति सुन्दर है. शेष अति सुन्दर...
    3. महेंद्र जी, आप सन्दर्भ बिलकुल सही है और शायद हमें इसी तरह के लेख की जरुरत आज के समय में है. लेकिन एक शिकायत जो आप के साथ साथ सभी मीडिया के साथियों से है वो यह की आप कृपया अपने लेख के शीर्षक का ध्यान रखें. ज्योतिष यानि मीठा जहर का अर्थ एक सामान्य मनुष्य को येही आएगा की आप ज्योतिष को को गलत बता रहे हैं. पर आपने इसने नाम पे जो बुराइयाँ उजागर की हैं वो अति सुन्दर है. शेष अति सुन्दर...








      1. आप यहां तक आए, यही काफी है।
        बाकी आप मीडिया के बारे में कितना जानते हैं, मुझे नहीं पता।

        ज्योतिष को मीठा जहर बताने पर जहां चापलूसों की फौज ने उन दोनों का पुरजोर समर्थन किया वहीं 'बिहार मीडिया'के संचालक और एडवोकेट साहब ने विमत व्यक्त किया जिस पर इस गरूरी ब्लागर ने -''मदन भाई साहब आप यहां आए स्वागत है।
        आप बताएं फिर तो सबसे पहले मीडिया हाउस को बंद कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि हम मेडिकल के बारे में बारे में लिखते है, मैं एमबीबीएस तो है नहीं, रेलवे की इंजीनियरिंग सिस्टम पर हम लिखते हैं हमने इंजीनियरिंग भी नहीं की है। सेना को कवर करने जाते हैं किसी ने सैन्य प्रशिक्षण तो लिया नहीं।''
        यह लिख कर ज़ाहिर भी कर दिया विषय-विशेष के ज्ञान के बगैर उसकी आलोचना करना उनके जाब का हिस्सा है।

        दूसरे पत्रकार जो 'सहारा समय' चेनल मे कार्य कर चुकने के बाद अब रायपुर,छत्तीसगढ़ मे एक  दैनिक अखबार बतौर सम्पादक निकाल रहे हैं  और उनका समर्थन भी कर रहे हैं,सिर्फ 'शीर्षक' पर आपत्ति थी उनको ,तो इस कारपोरेट दलाल ने यह कह कर लताड़ ही दिया-''



        1. आप यहां तक आए, यही काफी है।
          बाकी आप मीडिया के बारे में कितना जानते हैं, मुझे नहीं पता।''
          कितने मज़े की बात है कि,जिसे कुछ नहीं पता होता है वह कितनी अल्हड्ता से ब्लाग सुविधा का दुरुपयोग करता है। क्यों करता है?जानें इस चित्र से ---

          IBN7के प्रतिनिधि (ज्योतिष को मीठा जहर लिखने वाले )और उनकी मन्त्र्दाता,विमान नगर,पूना मे पाँच घंटों के प्रवास मे   गुफ्तगू करते  हुये

          पर्यावरण को शुद्ध रखना और ग्रह नक्षत्रों का शमन करना ज्योतिष विज्ञान सिखाता है.हम ज्योतिष के वैज्ञानिक नियमों का पालन कर के अनूठी दुनिया  का अधिक से अधिक लुत्फ़ उठा सकते हैं.आवश्यकता है सच को सच स्वीकार करने की और अपनी इस धरती को तीन लोक से न्यारी बनाने की. 
          http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_27.html

          चार-चार जन्म्पत्रियों का विश्लेषण पूना के ब्लागर व उनकी पटना की शिष्य ने निशुल्क प्राप्त करने के बाद जो ज्योतिष विरोधी मुहिम चला रखी है वह कितना वाजिब है?

          इस सम्बंध मे पिछले अंक मे  विस्तृत वर्णन दिया जा चुका है---
         इस पोस्ट पर अपने विचार (टिप्पणी) देने के लिये कृपया यहाँ क्लिक करे।
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    शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

    मीठा जहर कौन?

    पहले कारपोरेट जगत के खिलाड़ी ब्लागर साहब की कुछ  सुर्खियां देखें---

    Saturday, 13 October 2012


    ज्योतिष यानि मीठा जहर ... 


    दरअसल कुछ तथाकथित अनाड़ियों ने इस ज्योतिष विज्ञान की ऐसी तैसी कर दी और इसे एक व्यवसाय बना डाला है।

     मेरी व्यक्तिगत राय में तो ज्योतिष और त्योतिषी दोनों मीठे जहर के समान हैं, जिसके भी जीवन में ये घुल जाते हैं, उसे कहीं का नहीं छोड़ते। ज्योतिष भय प्रधान है जो मुख्य कर्म में हमेशा बाधक बनता है। 


    यहां आपको ये भी बता दूं कि नोबेल पुरस्कार विजेता डा. वेंकटरमन रामा कृष्णन ने पूरे ज्योतिष शास्त्र को ही फर्जी बता दिया है।  

    पूजा,प्रार्थना को ज्योतिषी से जोड़कर नहीं देखना है,क्योंकि प्रार्थना यानि पूजा प्रभु के आगे याचक की तरह खड़ा होना है .... होनी,अनहोनी जो भी है-वह इश्वर के हाथ में है-जिसके लिए हम दुआ कर सकते हैं मन के सुकून के लिए,पर मूल्य के हिसाब से उसमें रद्दो बदल हास्यास्पद है . ऐसा होना होता तो गुरु वशिष्ठ राम को वन नहीं जाने देते , अपनी विद्या से रावण को छू कर देते .
    आलेख बहुत ही बढ़िया है










    1. जी बिल्कुल, इसी बात का जिक्र मैने भी करने की कोशिश की है।
      मुझे लगता है कि ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने वाला अभी धरती पर कोई नहीं होगा। विधि का विधान बदलना संभव नहीं है।
    2. वो तो कभी नहीं होगा ....


      अब देखिये  एक फेसबुक फ्रेंड के  15-10-2012 का मेसेज और उनको जवाब  ---

      agar aap uske liye kuchh charge karte hain to i'm also ready for dat

      ---'साहब फीस के चार्ज की बात नहीं थी । रश्मी प्रभा और सोनिया बहुखंडी ने चार-चार कुंडलियाँ निशुल्क बनवाई थीं लेकिन अब वे दोनों और एक कुंडली निशुल्क  बनवाने वाले अरुण प्रकाश मिश्रा फेसबुक व ब्लाग्स मे मेरे तथा ज्योतिष के ज्ञान के खिलाफ लेख व टिप्पणियाँ लिख रहे हैं। IBN7 के महेंद्र श्रीवास्तव उनकी वकालत मे 'ज्योतिष मीठा जहर' जैसे लेख ब्लाग मे डाल रहे हैं। इसी कारण आपका व एक और शर्मा जी का काम रोक दिया था। यदि काम करवाने के बाद आप उन लोगों की तरह मेरी मुखालफत न करने का आश्वासन दें एवं उन चारों की निंदा का मेसेज दें तो उसके बाद काम शुरू कर सकता हूँ। यह झगड़ा न खड़ा हुआ होता तो अब तक आप समाधान पा चुके होते।

       Allah ko hazir wa nazir maan kar asam khata hu'n ki mai is tarah ka koi kaam nahi karunga (Ghaddaari waala)

      ab khush? Ehsan Faramoshi hamaare blood me nahi hai sir
      wink

      • mai un charo ki tarah ehsaan faramosh nahi hu na hi meri aankho me suwar ka baal hai jo mai apne shubhchintak ke hi khilaaaf zaher uglu'n ....... aap befikr rahe'n waise bhi mai blog ki duniya se door hu us din aise hi check kar lia tyha smile
      • aapka blog
      • is it ok sir? ab to hjo jayega na mera kaam?

         OK,please wait for 3 days

         ji will be waiting

        10 अक्तूबर 2012 को प्रकाशित मेरे  लेख

        संसार का मूलाधार है---त्रैतवाद 

          का प्रतिवाद है 13 अक्तूबर का कारपोरेट दलाल का  उपरोक्त वर्णित लेख ठीक उसी प्रकार जैसे कि19 अप्रैल 2012 के लेख मे मैंने 'रेखा के राजनीति मे आने की संभावना' लिखा और वह 26 अप्रैल को राज्यसभा मे मनोनीत हो गई तब 27 अप्रैल 2012 को इन महान विद्वान साहब ने अपने लेख मे उसकी खिल्ली उड़ाई। साँच को आंच कहाँ -प्रत्यक्ष देखिये---


        बावजूद इस चेतावनी के उक्त ब्लागर ने अपनी हेंकड़ी जारी रखते हुये दूसरे ब्लागो पर टिप्पणियों मे भी मेरे 'रेखा' वाले ज्योतिषीय विश्लेषण पर हमला जारी रखा जैसा कि नीचे स्पष्ट है और यशवन्त को भी ई-मेल मे 'गनीमत' शब्द लिख कर ठेस पहुंचाई जबकि वह उक्त ब्लागर का दिया टास्क अपनी भूख-प्यास छोड़ कर करता रहा है। अतः इसी 'गनीमत'पर उसने भी उक्त ब्लागर की हकीकत उजागर कर दी है। 


        (रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM

        कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला



        आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
        मेरी भी शुभकामना है)


        *=एक दूसरे ब्लाग पर उक्त ब्लागर की टिप्पणी इसलिए उद्धृत की है कि सभी को पता चल जाये कि उक्त ब्लागर मेरे विश्लेषण को किस कदर गलत साबित करने पर उतारू रहा कि विश्लेषण एक सप्ताह मे ही सही सिद्ध होने पर बौखलाहट मे अपनी तुलना 'रेखा' से करने की ज़रूरत पड़ गई। कौन सी  पार्टी आत्मघाती कदम (अपनी पार्टी को तहस-नहस करने और अपनी सरकार की छीछालेदार करवाना) उठाना चाहेगी जो उक्त ब्लागर को  राज्य-सभा सदस्य बनवाएगी ? क्योंकि उक्त ब्लागर तो अपनी ही संतानों का भी सगा नहीं है जो 'राष्ट्र और समाज' की सेवा क्या खाकर करेगा?-(आत्म-भंजक पार्टी से मै भी उक्त ब्लागर को राज्य सभा मे भिजवाने की सिफ़ारिश करता हूँ )- 


        उक्त ब्लागर की इच्छा पर गलत सलाह न देने के कारण उक्त ब्लागर ने मेरे पुत्र के साथ भी झूठ-छल का प्रयोग किया ,जिस कारण-शबाना आज़मी,रेखा और प्रस्तुत विश्लेषण सार्वजनिक रूप से देने पड़े हैं। 


        उक्त ब्लागर ने मेरे अतिरिक्त बोकारो की एक ज्योतिषी से भी निशुल्क परामर्श लिया था और उसे भी नहीं माना था।चूंकि वह सब ब्यौरा मेरे पास भी उपलब्ध है  अतः अब 'जन्मकुंडलिया गलत होती हैं' सरीखे वाक्यांश अपने पिटठू से लिखवाये हैं। क्योंकि शबाना जी ,रेखा जी एवं X-Y के दिये विश्लेषणों से स्पष्ट है कि जन्मपत्र द्वारा एक सटीक आंकलन प्रस्तुत किया जा सकता है और उन ब्लागर को भय है कि यदि उनकी पोल-पट्टी सबके सामने आ गई तो उनके छल-व्यापार -ठगी का धंधा चौपट हो जाएगा। अपनी धनाढ्यता के रौब मे मुझे दबाव डाल कर गलत विश्लेषण न प्राप्त कर पाने के कारण अपने चाटुकार से ज्योतिष-विरोधी लेख लिखवाने शुरू करवाए हैं। 



        http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_10.html


        आचार्य डॉ सोमदेव शास्त्री,संपादक निष्काम परिवर्तन पत्रिका


        यह लेख आर्यसमाज -कमलनगर,आगरा मे डॉ सोमदेव शास्त्री जी द्वारा दिये प्रवचनों के एक अंश का सार मात्र है । इस लेख की खास-खास बातें ये हैं---

        1- इस संसार ,इस सृष्टि का नियंता और संचालक परम पिता परमात्मा है। परमात्मा के संबंध मे हमारे देश मे अनेकों मत और धारणाये प्रचलित हैं। इनमे से प्रमुख इस प्रकार हैं---

        अद्वैतवादी- सिर्फ परमात्मा को मानते हैं और प्रकृति तथा आत्मा को उसका अंश मानते हैं जो कि गलत तथ्य है क्योंकि यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो बुरे कर्म नहीं करता और प्रकृति भी चेतन होती जड़ नही।

        द्वैतवादी -परमात्मा (चेतन)और प्रकृति (जड़)तो मानते हैं परंतु ये भी आत्मा को परमात्मा का ही अंश मानने की भूल करते हैं;इसलिए ये भी मनुष्य को भटका देते हैं।

        त्रैतवादी-परमात्मा,आत्मा और प्रकृति तीनों का स्वतंत्र अस्तित्व मानना यही 'त्रैतवाद 'है और 'वेदों' मे इसी का वर्णन है। अन्य किसी तथ्य का नहीं।

        2-वेद आदि ग्रंथ हैं---प्रारम्भ मे ये श्रुति व स्मृति पर आधारित थे अब ग्रंथाकार उपलब्ध हैं। अब से लगभग दो अरब वर्ष पूर्व जब हमारी यह पृथ्वी 'सूर्य' से अलग हुई तो यह भी आग का एक गोला ही थी। धीरे-धीरे करोड़ों वर्षों मे यह पृथ्वी ठंडी हुई और गैसों के मिलने के प्रभाव से यहाँ वर्षा हुई तब जाकर 'जल'(H-2 O)की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी के उस भाग मे जो आज 'अफ्रीका' कहलाता है ,उस भाग मे भी जो 'मध्य एशिया' और 'यूरोप'के समीप है तथा तीसरे उस स्थान पर जो 'त्रिवृष्टि'(तिब्बत)कहलाता है परमात्मा ने 'युवा-पुरुष' व 'युवा-स्त्री' रूपी मनुष्यों की उत्पत्ति की और आज की यह सम्पूर्ण मानवता उन्ही तीनों  पर उत्पन्न मनुष्यों की संतति हैं।

        3- वेदों के अनुसार ---(1 )परमात्मा,(2 )आत्मा और (3 )प्रकृति इन तीन तत्वों पर आधारित इस संसार मे प्रकृति 'जड़' है और स्वयं कुछ नहीं कर सकती जो तीन तत्वों के मेल से बनी है---(1 )सत्व,(2 )रज और (3 )तम। ये तीनों जब 'सम' अवस्था मे होते हैं तो कुछ नहीं होता है और वह 'प्रलय' के बाद की अवस्था होती है। आत्मा -सत्य है और अमर है यह अनादि और अनंत है। 'परमात्मा' ='सत्य' और 'चित्त'के अतिरिक्त 'आनंदमय' भी है---सर्व शक्तिमान है,सर्वज्ञ है और अपने गुण तथा स्वभाव के कारण आत्माओं के लिए प्रकृति से 'सृष्टि' करता है ,उसका पालन करता है तथा उसका संहार कर प्रलय की स्थिति ला देता है,पुनः फिर सृष्टि करता है और आत्माओं को पुनः प्रकृति के 'संयोजन'से 'संसार' मे भेज देता है=G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय)। ये सब कार्य वह खुद ही करता (खुदा ) है।

        4- 'सृष्टि' के नित्य ही 'संसर्ग' करने अर्थात 'गतिमान' रहने के कारण ही इसे 'संसार' कहा गया है। 'आत्मा' ,'परमात्मा' का अंश नहीं है उसका स्वतंत्र अस्तित्व है और वह भी 'प्रकृति' तथा 'परमात्मा' की भांति ही कभी भी 'नष्ट नहीं होता है'। विभिन्न कालों मे विभिन्न रूपों मे (योनियों मे )'आत्मा' आता-जाता रहता है और ऐसा उसके 'कर्मफल' के परिणामस्वरूप होता है। 'मनुष्य'=जो मनन कर सकता है उसे मनुष्य कहते हैं। 'परमात्मा' ने 'मानव जीवात्मा' को इस संसार मे 'कार्य-क्षेत्र' मे स्वतन्त्रता दी है अर्थात वह जैसे चाहे कार्य करे परंतु परिणाम परमात्मा उसके कार्यों के अनुसार ही देता है अन्य योनियों मे आत्मा 'कर्मों के फल भोगने' हेतु ही जाता है। यह उसी प्रकार है जैसे 'परीक्षार्थी' परीक्षा भवन मे कुछ भी लिखने को स्वतंत्र है परंतु परिणाम उसके लिखे अनुसार ही मिलता है जिस पर परीक्षार्थी का नियंत्रण नहीं होता। इस भौतिक शरीर के साथ आत्मा को सूक्ष्म शरीर घेरे रहता है और भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी वह 'सूक्ष्म शरीर' आत्मा के साथ ही चला जाता है। मनुष्य ने अछे या बुरे जो भी 'कर्म' किए होते हैं वे सभी 'गुप्त' रूप से 'सूक्ष्म शरीर' के 'चित्त' मे अंकित रहते हैं और उन्ही के अनुरूप 'परमात्मा' आगामी फल प्रदान करता है---इसी को 'चित्रगुप्त' कहा जाता है।

        5- परमात्मा अच्छी के अच्छे व बुरे के बुरे फल प्रदान करता है। इस जन्म के बुरे कर्म देख कर परमात्मा पूर्व जन्म के अच्छे फल नहीं रोकता;परंतु इस जन्म के बुरे कर्म उस मनुष्य के आगामी जीवन का 'प्रारब्ध' निर्धारित कर देते हैं। परंतु अज्ञानी मनुष्य समझता है कि परमात्मा बुरे का साथी है ,या तो वह भी बुरे कार्यों मे लीन होकर अपना आगामी प्रारब्ध बिगाड़ लेता है या व्यर्थ ही परमात्मा को कोसता   रहता है। परंतु बुद्धिमान मनुष्य अब्दुर्रहीम खानखाना की इस उक्ति पर चलता है---

        "रहिमन चुप हुवे  बैठिए,देख दिनन के फेर। 
        जब नीके दिन आईहैं,बनात न लागि है-बेर। । "

        6- जो बुद्धिहीन मनुष्य यह समझते हैं कि अच्छा या बुरा सब परमात्मा की मर्ज़ी से होता है ,वे अपनी गलती को छिपाने हेतु ही ऐसा कहते हैं। आत्मा के साथ परमात्मा का भी वास रहता है क्योंकि वह सर्वव्यापक है। परंतु आत्मा -परमात्मा का अंश नहीं है जैसा कु भ्रम लोग फैला देते हैं। जल का परमाणु अलग करेंगे तो उसमे जल के ,अग्नि का अलग करेंगे तो उसमे अग्नि के गुण मिलेंगे। जल की एक बूंद भी शीतल होगी तथा अग्नि की एक चिंगारी भी दग्ध करने मे सक्षम होगी। यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो वह भी सचिदानंद अर्थात सत +चित्त +आनंद होता। जबकि आत्मा सत और चित्त तो है पर आनंद युक्त नहीं है और इस आनंद की प्राप्ति के लिए ही उसे मानव शरीर से परमात्मा का ध्यान करना होता है। जो मनुष्य संसार के इस त्रैतवादी रहस्य को समझ कर कर्म करते हैं वे इस संसार मे भी आनंद उठाते हैं और आगामी जन्मों का भी प्रारब्ध 'आनंदमय' बना लेते हैं। आनंद परमात्मा के सान्निध्य मे है ---सांसारिक सुखों मे नहीं। संसार का मूलाधार है त्रैतवाद अर्थात परमात्मा,प्रकृति और आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार करना तथा तदनुरूप कर्म-व्यवहार करना।   


      अब देखिये मूल रूप से 04-12-2010 को प्रकाशित और 21 - 09 -2012 को पुनर्प्रकिशित लेख की ये पंक्तियाँ---

    "अब सवाल उस संदेह का है जो विद्व जन व्यक्त करते हैं ,उसके लिए वे स्वंय ज़िम्मेदार हैं कि वे अज्ञानी और ठग व लुटेरों क़े पास जाते ही क्यों हैं ? क्यों नहीं वे शुद्ध -वैज्ञानिक आधार पर चलने वाले ज्योत्षी से सम्पर्क करते? याद रखें ज्योतिष -कर्मकांड नहीं है,अतः कर्मकांडी से ज्योतिष संबंधी सलाह लेते ही क्यों है ? जो स्वंय भटकते हैं ,उन्हें ज्योतिष -विज्ञान की आलोचना करने का किसी भी प्रकार हक नहीं है. ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है. 

    http://krantiswar.blogspot.in/2012/09/blog-post_21.html

    उक्त13-10-2012 वाले  पोस्ट लेखक और टिप्पणी दाता दोनों ही ढोंगियों,पाखंडियों,व्यापारियों,उद्योगपतियों एवं कारपोरेट घरानों के दलाल प्रतीत होते हैं उनका उद्देश्य 'वास्तविक तथ्यों' को लुप्त करके अनर्गल एवं तथ्यहीन बातों द्वारा ग्रेशम के अर्थशास्त्र के सिद्धान्त कि,"खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है"के आधार पर वैज्ञानिक आधार पर ज्योतिष-विश्लेषण करने वालों को नाहक-झूठा बदनाम करके पृष्ठ-भूमि मे धकेलना है जिससे आम लोग फ़रेबियों के चंगुल मे ही फंस कर लुटते रहें। अतः वे दोनों जन-विरोधी ब्लागर्स - स्वतः  ही मीठा जहर उगलने वाले ब्लागर्स हैं।अब ये छली ब्लागर्स सुश्री ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए कार्पोरेटी कपट का सहारा लेंगे ताकि मेरे विश्लेषण को गलत सिद्ध कर सकें। 

    ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं ? 

    http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html 


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    शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

    डेढ़ दोस्त


    -अग्र मंत्र,आगरा - मई-जुलाई-2004

    फेसबुक,10-10-2012


    फेसबुक,06-10-2012


    आज के इन्टरनेट के युग मे फेसबुक पर Frend=मित्र=दोस्त का चलन है लेकिन यहाँ भी आदरणीय राजेन्द्र मोहन शेरी साहब की 'बाल कहानी-डेढ़ दोस्त' पूरी तरह सटीक बैठती है। रिश्तों की बात करें तो राजेन्द्र मोहन शेरी साहब हमारे मामाजी लगते हैं (उनके छोटे बहनोई विष्णु दयाल माथुर साहब हमारी नानीजी  के चचेरे भाई के सुपुत्र हैं )। किन्तु राजेन्द्र जी और इनके बड़े भाई साहब ने खुद को मुझसे भाई साहब कहलवाया । आगरा मे इन लोगों के कई विद्यालय हैं और इनके आग्रह पर ही कमला नगर स्थित इनके 'एम एम शेरी कन्या विद्यालय' मे मैंने यशवन्त को दाखिल करवाया था जहां उसने के जी से हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की । इंटर्मेडिएट मे दयालबाग के राजेन्द्र जी के बताए  कालेज मे ही पढ़वाया।

    एम एम शेरी इंटर कालेज,शहज़ादी मंडी से  रिटायर्ड प्रिंसपल राजेन्द्र जी प्रबन्धक की हेसियत से कमला नगर के विद्यालय मे आते रहते थे। अक्सर मै उनसे मिलने चला जाता था। वह अपने तजुर्बों के आधार पर बहुत सी ऐसी बातें बताते रहते थे जो केवल बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के लिए भी शिक्षाप्रद हैं। 'डेढ़ दोस्त' भी ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है जिसे मैंने सहायक सम्पादक की हेसियत से  'अग्र मंत्र,आगरा - मई-जुलाई-2004' मे प्रकाशित करवाया था। बाल ब्लागर -अक्षिता (पाखी )के ब्लाग पर एक टिप्पणी के रूप मे भी इसे उद्धृत किया था। अब अपने इस ब्लाग मे भी इसे प्रकाशित करने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई कि फेसबुक पर अधिकांश लोग और ब्लाग्स पर भी संवेदन हींन  हैं किन्तु कुछ गिने-चुने लोग इन दोनों माध्यम मे भी वाकई गंभीर हैं।

    ऊपर आदरणीय अफलातून जी और डॉ सुनीता द्वारा  फेसबुक पर यशवन्त की वाल पर दी गई टिप्पणियाँ उद्धृत की हैं जिनमे कृतज्ञता व्यक्त की गई है। अफलातून जी बुजुर्ग विद्वान हैं और सुनीता जी आधुनिक एवं युवा विद्वान हैं लेकिन शिष्टाचार का पालन करना दोनों ने अपना फर्ज समझा। सामान्यतः मैं 'नई -पुरानी हलचल' पर यशवन्त को कोई मदद नहीं करता हूँ परंतु कभी-कभी कुछ विशिष्ट पोस्ट्स लगाने की उसे सिफ़ारिश कर देता हूँ। अफलातून जी और सुनीता जी की पोस्ट्स भी प्रारम्भ मे मैंने उसे बता दी थीं और अब वह स्वतः ही उनके ब्लाग्स देख कर चयन कर लेता है।

    इसी क्रम मे पूर्व मे मैंने सविता सिंह जी,श्याम बिहारी श्यामल जी,डॉ मोहन श्रोतरीय जी,डॉ सरोज मिश्रा जी,मदन तिवारी जी,'रश्मी प्रभा साहिबा एवं सोनिया बहुखंडी गौड़ साहिबा' के ब्लाग्स भी यशवन्त को बताए थे। इनमे अंतिम दो साहिबाओं ने यशवन्त से अनेक प्रकार की मदद हासिल की और मुझसे भी 4-4 कुंडलियों का विश्लेषण निशुल्क हासिल किया। शिष्टाचार से कोसों दूर दोनों साहिबाओं ने यशवन्त और मेरे विरुद्ध फेसबुक एवं ब्लाग जगत मे घृणित प्रचार चला कर अपनी 'एहसान फरामोशी' का परिचय दिया जिसमे IBN7 के तिकड़मी पत्रकार ब्लागर ने आग मे घी का कार्य किया । ऐसे मे अफलातून जी एवं सुनीता जी द्वारा यशवन्त को दिया गया धन्यवाद उसके लिए 'आशीर्वाद' स्वरूप है। उनकी बात पर ही राजेन्द्र मोहन जी की 'डेढ़ दोस्त' कहानी एक बार फिर याद आ गई और उसे आप सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया।

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    मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

    लखनऊ मे तीन वर्ष-नफा/नुकसान

    आज  09 अक्तूबर को लखनऊ पुनर्वापिसी के तीन वर्ष पूर्ण हो गए हैं। आज ही के दिन 2009 मे हम जून 1975 से आगरा मे बसने  के 34 वर्ष और 1961 मे लखनऊ छोडने के 48 वर्ष बाद पुनः यहाँ आबाद होने आ गए थे। लखनऊ छोडना तो बाबूजी के सरकारी नौकरी मे तबादले के कारण हुआ था किन्तु वापिस अपने जन्मस्थान आने का निर्णय  यशवन्त की इच्छा और आग्रह के कारण हुआ था। जन्मस्थान होने के कारण लखनऊ फिर आना मेरे लिए दिक्कत की बात न थी किन्तु यशवन्त द्वारा अपने जन्मस्थान आगरा को छोडने की पहल भी अनायास न थी। उसके जन्म के बाद से एक के बाद एक घटना क्रम इस प्रकार चला कि वह इच्छानुसार अपनी शिक्षा प्राप्त  न कर सका एवं आगरा वासियों से उसे अनुकूलता भी न मिल सकी। जाब के सिलसिले मे लखनऊ ट्रेनिंग मे 2006 मे आने के बाद से वह मुझसे लखनऊ शिफ्ट होने को कहता रहा और इसी उप क्रम मे वह पहले मेरठ (जहां मैं 1968 से 1975 तक रहा पढ़ा और प्रथम जाब प्रारम्भ किया )फिर कानपुर ट्रांसफर करा कर आ गया। अतः हमे आगरा का मकान बेच कर लखनऊ मे लेना और बसना पड़ा।

    मेरे आगरा छोडने का प्रबल विरोध हमारे  छोटे बहन -बहनोई की ओर से हुआ । पूनम और उनके बड़े भाई भी मेरे आगरा से हटने के पक्ष मे नहीं थे। बहन का कहना था कि आगरा से हटना है तो भोपाल मे उनके साथ शिफ्ट हो जाऊ अथवा पटना मे शिफ्ट करूँ। आगरा जाना राजनीतिक कारणों से था और वहाँ से राजनीतिक गतिविधियों मे सम्मिलित भी खूब हुआ था किन्तु ईमानदारी के आड़े आ जाने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर भी खूब हुई थी। इसलिए यशवन्त का प्रस्ताव मान लेना ही उचित प्रतीत हुआ। हालांकि उसे कानपुर से लखनऊ ट्रांसफर न हो पाने के कारण जाब छोडना पड़ा और अपना निजी साईबर चलाना पड़ा जिससे आर्थिक लाभ तो न हुआ किन्तु 'ब्लाग-लेखन' से परिचय का विस्तार हुआ। उसके साथ-साथ मैंने भी कंप्यूटर का काम चलाऊ ज्ञान प्राप्त कर 'ब्लाग-लेखन' प्रारम्भ किया। इस वक्त 4-5 ब्लाग्स सार्वजनिक हैं। फेसबुक के माध्यम से भी परिचय और पहचान का दायरा बढ़ा है। कुछ ब्लागर्स से व्यक्तिगत परिचय भी हुआ है। राजनीतिक कार्यक्रमों मे भी ब्लाग्स और फेसबुक से सहायता मिली है।

    किन्तु हमारे लखनऊ आने के बाद हमारी बहन ने भी संबंध तोड़ लिए और हमारे सभी विरोधियों का नेतृत्व ले लिया। जिन लोगों से यशवन्त आगरा मे त्रस्त रहा उनके रिशतेदारों मे बहन ने अपनी दोनों बेटियों की शादी की तथा उन लोगों से घनिष्ठ संबंध स्थापित कर लिए। छोटी भांजी( जिसके पति साफ्टवेयर इंजीनियर हैं )ने पूना मे बैठ कर ब्लागर्स को भी हमारे विरुद्ध करने की मुहिम चलाई। पटना का मूल निवासी एक ब्लागर जो उसके पूर्व निवास वाली कालोनी मे वहाँ रहता है उन लोगों के बहकावे मे आ कर हम लोगों के विरुद्ध ब्लाग जगत मे दुष्प्रचार मे संलग्न हो गया एवं पटना प्रवासी एक और ब्लागर को अपना जासूस बना कर अपनी मुहिम मे शामिल कर लिया बावजूद इसके कि इन दोनों ब्लागर्स ने 4-4 कुंडलियों का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था अब दोनों मिल कर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर ही प्रहार करने लगे जिसमे IBN7 से संबन्धित एक और ब्लागर ज़ोर-शोर से जुड़ गया। चेनल्स का कार्य ही ढोंग-पाखंड -अंधविश्वास को बढ़ावा देना होता है जबकि मैं इन दुर्गुणों का विरोधी हूँ।

    यदि आर्थिक क्षेत्र को नज़रअंदाज़ रखें तो लखनऊ आना हमारे लिए नुकसान का सौदा नहीं है। यहाँ आने पर मकान छोटा मिला उसमे भी आर्थिक हानि  हुई और आय का कोई स्थाई साधन न हो पाने से भी आर्थिक दिक्कत रही। परंतु स्वाभिमान रक्षा के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। कुल मिला कर लखनऊ मे पुनर्वापिसी से मैं और यशवन्त तो संतुष्ट ही हैं लेकिन यही बात हमारे विरोधियों को कचोटती है और वे सम्मिलित रूप से हमारे परिवार को त्रस्त करने के अभियान मे जुटे रहते हैं। यही लेखा-जोखा है हमारे पुनः लखनऊ आने के नफा-नुकसान का।
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    गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

    पैसे वालों को जूते की ठोकर और पटना का गोलघर

     29 सितंबर 2012 का फेसबुक स्टेटस-

     "चार सितंबर 1995 को एक डॉ साहब (जो पहले डीजल इंजिनों का धंधा करते थे और अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर उस समय प्रेक्टिस कर रहे थे )मेरे तत्कालीन निवास-कमलानगर,आगरा पर पधारे एवं मुझ पर किसी खास व्यक्ति से जिससे मैंने संपर्क तोड़ दिये थे पुनः संपर्क कायम करने का दबाव बनाने लगे जिसे मैंने ठुकरा दिया था। चलते -चलते वह डॉ साहब मुझे धमकी देते गए कि,"माथुर साहब पैसे मे बहुत ताकत होती है हम आपको झुका ल
    ेंगे। " अपने एक PCS मित्र के कथन को मैंने उनसे दोहरा दिया-"पैसे वालों को हम जूते की ठोकर पर रखते हैं। "मैंने उनसे यह भी जोड़ कर कहा कि,मिस्टर .... आप पैसे के ज़ोर से मेरी गर्दन तो कटवा सकते हैं लेकिन झुकवा नहीं सकते। अहंकारी वह डॉ साहब किसी फंदे मे फंसे और गैर कानूनी मेडिकल प्रेक्टिस उनको छोडनी पड़ी फिर तो वह अपनी गर्दन झुका कर चलने लगे।
    17 वर्षों बाद भी आज देखता हूँ कि कुछ लोग पैसे के अहंकार मे डूब कर तरह-तरह की धमकियाँ देते रहते हैं चाहे वे IBN7 के कर्मचारी हों अथवा दूसरे कोई तथाकथित ख्याति प्राप्त हस्ती।"

    फेसबुक पर यह स्टेटस इस लिए दिया था क्योंकि मूल रूप से पटना निवासी और पूना -प्रवास कर रहे ब्लागर ने चार जन्म कुंडलियों का विश्लेषण निशुल्क  करवाने के बाद अपनी धनाढ्यता के दम पर मेरे विरुद्ध अनर्गल अभियान फेसबुक व ब्लाग्स मे चला रखा है। उसी के शिष्य ब्लागर ने जो अभी पटना मे बेली रोड पर प्रवास कर रहा है भी चार कुंडलयों का विश्लेषण करवाने के बाद अपने गुरु-'द्रोणाचार्य' पूना-प्रवासी की तर्ज पर ही मेरे विरुद्ध घृणित अभियान चला रखा है। 

    26 सितंबर 2012 का पटना भ्रमण -

    गोलघर,पटना मे बरगद की छांव के नीचे विश्राम (26-09-2012 )


    गोलघर,पटना

    ए एन सिन्हा लिखा है अङ्ग्रेज़ी मे और हिन्दी मे लिखा है अनुग्रह नारायण सिंह। क्या सिन्हा की हिन्दी सिंह है?


    फेसबुक पर पटना के गोलघर के संबंध मे निम्नलिखित जानकारी प्राप्त करने के बाद इस बार वहाँ का भ्रमण करने का निश्चय किया था और वहाँ कई घंटे व्यतीत किए। -

     "1770 में पड़े सूखे के बाद ब्रिटिश कैप्टन जान हास्टिंन ने गोलघर अनाज रखने (ब्रिटिश आर्मी के लिए) के लिए बनवाया था। इसमें 14 लाख टन अनाज रखा जा सकता है। यह 20 जुलाई 1786 में बना था। इसकी मरम्मत 2002 में करवाई गई । इसकी ऊचांई 29 मीटर और दिवाल की मोटाई 3.6 मीटर है। इसमें 145 सिढ़ियां है। इससे गंगा के दृश्यों को देखा जा सकता है।"

    उस समय की 'स्थापत्य कला'के लिहाज से जबकि आधुनिक यंत्रों का प्रचलन नहीं था 'गोलघर' का निर्माण एक अद्भुत धरोहर के रूप मे आज संरक्षित है। इस समय वहाँ आभिजात्य वर्ग की सुविधा के लिए कुछ निर्माण कार्य प्रगति पर था। जितनी देर हम वहाँ रहे देखा कि तमाम विद्यालयों के छात्र समूह वहाँ भ्रमण हेतु आते
    रहे।'मुख्यमंत्री शैक्षणिक भ्रमण'के अंतर्गत सरकार की ओर से विद्यार्थियों को 'गोलघर' की सैर कराई जा रही थी। पिकनिक मनाने के तौर पर छात्र और शिक्षक वहाँ आ-जा रहे थे। छात्रों को इसकी स्थापत्य कला व महत्व के संबंध मे भी जानकारी दी जानी चाहिए थी किन्तु सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था न की हुई थी।   जैसे लोग  बाग दिल्ली के 'कुतुब मीनार' को देख कर वहाँ खाते-पीते मौज करते हैं  वैसे ही पटना के गोलघर मे भी चल रहा था। शायद शिक्षक वर्ग खुद भी इस स्मारक के महत्व से अनभिज्ञ रहा होगा। 

    सरकारी स्कूल के एक शिक्षक महोदय की सहृदयता देख कर विस्मय भी हुआ और प्रसन्नता भी । एक विद्यालय की कुछ छात्राएं और छात्र अपने घर से भोजन आदि न ला पाये थे। उक्त शिक्षक महोदय अपने घर से काफी मात्रा मे पराँठे और भिंडी की सब्जी ले कर आए थे । जहां उन्होने अपने साथी शिक्षकों को भोजन कराया वहीं उन छात्राओं और छात्रों को भी भोजन दिया चूंकी अमूमन शिक्षक विद्यार्थियों से आव-भगत कराते हैं अतः वे विद्यार्थी भोजन लेने मे हिचक रहे थे तो उनको झिड़की देकर उन्होने भोजन लेने और खाने पर मजबूर किया। वास्तव मे वह अज्ञात शिक्षक महान हैं।

    पटना जंक्शन से गांधी मैदान के निकट स्थित 'गोलघर' तक मैंने व यशवन्त ने पैदल ही कूच किया और वापिस भी वहाँ से स्टेशन पैदल ही लौटे। उद्देश्य मार्ग स्थित तमाम परिस्थित्यों का सूक्ष्म अवलोकन करना था। जगह-जगह बोर्ड व होर्डिंग्स पर जो 'हिन्दी' लिखी देखी हमे आश्चर्यजनक लगी। उदाहरणार्थ गोलघर के सामने एक आयुर्वेदिक औषधालय पर लिखा देखा-'प्रहेज' जो कि 'परहेज' के स्थान पर प्रयुक्त हुआ था। वहीं पास मे एक 'संग्रहालय' पर तो अनोखी बात लिखी देखी-

    अङ्ग्रेज़ी मे लिखा था-A N SINHA और हिन्दी मे लिखा था-अनुग्रह नारायण सिंह। 'सिन्हा' और 'सिंह' पर्यायवाची नहीं हैं परंतु 'पटनवी -हिन्दी' मे पर्यायवाची बना दिये गए हैं।

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