शनिवार, 31 दिसंबर 2011

2011 को अच्छा मानें या बुरा?

आज 2011 वर्ष का समापन होने जा रहा है। पूरे वर्ष की गतिविधियों और उनके परिणाम पर दृष्टिपात करके इस वर्ष को अच्छा या बुरा नहीं कह सकते। इस वर्ष ब्लाग-लेखन द्वारा कई ब्लागर्स से जो संपर्क था वह व्यक्तिगत मुलाकातों के रूप मे भी सामने आया। कई गोष्ठियों मे श्रोता के रूप मे  भाग लिया और अनुभव प्राप्त किए। राजनीतिक रूप से जहां अपनी कम्युनिस्ट पार्टी के धरना  व प्रदर्शनों मे भाग लिया वहीं AISF  तथा प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यक्रमों मे भी उपस्थित रहा। पार्टी की कई बैठकों मे भी भाग लेने का अवसर मिला। कई ब्लागर्स की व्यक्तिगत समस्याओं हेतु ज्योतिषीय समाधान देने के भी अवसर मिले। एकमात्र मनोज कुमार जी ही ऐसे ब्लागर रहे जिनहोने अपने कार्य-संपन्नता की औपचारिक सूचना ई-मेल द्वारा दी। एक और ब्लागर ने पूछने पर स्वीकार किया कि उन्हें पहले से अब लाभ है। परंतु अधिकांश ने लाभ होने अथवा न होने की कोई सूचना देना मुनासिब नहीं समझा। एक ब्लागर की इच्छा का आदर करते हुये 'जन हित मे' स्तुतियाँ देना प्रारम्भ की ,परंतु उन ब्लागर ने ही उन्हे देखने की जरूरत नहीं समझी।

इसी वर्ष मार्च माह मे एक परिचित बैंक अधिकारी के पुत्र की तबीयत होली खेलने के बाद ऐसी खराब हुई कि डाक्टरों ने बचने के बारे मे ही संदेह व्यक्त कर दिया और बचने पर 'दिमाग' विकृत होने की बात कह दी। उन्होने चिकत्सा विश्वविद्यालय के ICU मे भरती अपने पुत्र के पास बुला कर ज्योतिषीय समाधान मांगा। मेरे द्वारा बताए मंत्रों के प्रयोग से उनका पुत्र सकुशल स्वस्थ होकर आया और परीक्षा परिणाम भी उसका अनुकूल ही आया। इस जानकारी से मन काफी संतुष्ट हुआ।

एक ब्लागर साहब और एक परिचित के पुत्र को पूर्ण लाभ होना मेरे ज्योतिषीय सिद्धांतों की वैज्ञानिकता को ही पुष्ट करता है। जबकि फेसबुक तथा ब्लाग्स मे कई लोग मेरी पद्धति का मखौल उड़ाते हैं,उन्हे प्रचलित दक़ियानूसी  पोंगा-पंथ ही भाता है।

इसी वर्ष हमारी बहन डॉ शोभा और बहनोई श्री कमलेश बिहारी माथुर S/O स्व.सरदार बिहारी माथुर,रेलवे अधिकारी (अलीगढ़),द्वारा हमारे विरुद्ध संलिप्त रहने का पर्दाफाश भी हो गया। हम तो छोटी बहन-बहनोई समझ कर उन पर विश्वास करते रहे और वे हमारे विरुद्ध लोगों को उकसाते व भड़काते रहे। 5 वर्ष से उनकी गतिविधियां संदिग्ध लग रही  थीं परंतु पूनम और यशवन्त मिलकर मुझे चुप करा देते थे। इस बार अप्रैल मे जब वे अपने भाई दिनेश की बेटी की शादी मे लखनऊ आ रहे थे तो फोन पर कई ऐसी बातें बहन जी द्वारा कही गई कि मैंने पूनम से कह दिया था कि इस बार तो अपने माता-पिता की पुत्री-दामाद होने के नाते अपने घ्रर  आने पर उनका स्वागत कर लेंगे परंतु भविष्य मे उन लोगों का स्वागत करना मेरे लिए संभव नहीं है।

यशवन्त को कमलेश बाबू चौराहे तक ले जाने की बात कह कर अपने साथ ले गए फिर हजरतगंज होते हुये अमीनाबाद तक जाकर लौटे बिफर कर यह कहते हुये कि यह न तो आलू की टिक्की खाता है न कुल्फी हम इसे अपने साथ नहीं ले जाया करेंगे। अगले दिन उन्हे फ्लाईट पकडनी थी लिहाजा मै खामोश रहा वरना पूछता कि क्या मैंने उसे आपके साथ लगाया था?उसे साथ ले जाने से  उसका साइबर ही ठप्प रहा। रास्ते मे उससे पूछते हैं 'मोपेड़' कितने मे बेची? आगरा छोडते समय काफी सामान काफी घाटे मे बेचना पड़ा खराब हो गई मोपेड़ भी घाटे मे ही बेची थी। उसकी खरीद मे जो रूपये लगे थे उनमे से आठ हजार शालिनी के थे शायद इसी लिए कमलेश बाबू को उसकी बिक्री के पैसों की फिक्र थी,जबकि जिस दिन मोपेड़ खरीद कर लाये थे उस दिन डॉ शोभा उपस्थित थीं और भौंचक रह गई थीं। डॉ शोभा ने मोपेड़ लाने की खुशी मे अपनी माँ द्वारा दी मिठाई का एक टुकड़ा भी न चखा था और उनके पति को उसकी बिक्री के पैसों की व्यापक चिंता थी।

आगरा का मकान मैंने मेरठ मे अपनी नौकरी के बचे पैसों से सिक्योरिटी जमा करके तथा 15 वर्षों तक मासिक 'किश्तें' जमा करके खरीदा था जिसे बेच कर लखनऊ मे घाटे मे आए थे। 1976 मे कमलेश बाबू ने हमारे बाबूजी द्वारा तीन मकान खरीदने की बात हमारी माँ से कही थी। बाबूजी की हैसियत एक भी मकान खरीदने की न थी क्योंकि दो वर्ष बाद ही उनका रिटायरमेंट था।बाद मे बहन जी ने माँ को सूचित किया था कि कमलेश बाबू अपनी बी एच ई एल,हरिद्वार की नौकरी छोड़ कर दरियाबाद की खेती सम्हाल लेंगे -बस बाबूजी अपना हिस्सा ले लें। ऐसा न होने के कारण ही मेरे लखनऊ आने पर मथुरानगर,दरियाबाद के ऋषिराज,नरेश ,उमेश को डॉ शोभा और कमलेश बाबू ने मेरे खिलाफ कुछ गलत-सलत भड़का दिया। निवाजगंज,लखनऊ मे कमल दादा ने फरवरी मे बताया था कि शोभा बचपन से ही टेढ़ी है। उनके निधन के बाद हवन के समय शैल जीजी ने भी कहा था कि शोभा चिढ़ोकारी है। अगस्त मे उनका भी निधन हो गया। मै संदेह के बावजूद चुप इसलिए रहता था कि ये लोग तिकड़म से पहले ही अजय को भी भड़का कर अलग-थलग कर चुके थे और इसका शक माईंजी पर डाल दिया था। ब्लाग जगत मे उनकी छोटी  पुत्री-मुक्ता(जिसके पति साफ्टवेयर इंजीनियर तथा कुक्कू के रिश्तेदार के रिश्तेदार हैं) जो सोनू नाम की फेक आई डी से यशवन्त और मेरे विरुद्ध अनर्गल प्रचार करके शक एक बार फिर माईंजी पर डाल चुकी थी।

अतः 1978 मे मेरा मकान एलाट होते ही कमलेश बाबू मेरे विरुद्ध साज़िशों मे लग गए जिंनका पता अब  लखनऊ आने पर ही चल सका और पुष्टि उनके 2011 मे हमारे घर आने पर हो सकी कि 'मधू' पत्नी कुक्कू तो कमलेश बाबू की भतीजी थीं। कमलेश बाबू ने हमारे तब के ज्योतिषीय सलाहकार डॉ रामनाथ को कुक्कू द्वारा खरीद कर शालिनी से 14 गुणों को 28 बता कर विवाह तय करवाया था। होटल मुगल से बरखास्तगी और राजनीतिक उठा- पटक मे भी कमलेश बाबू-कुक्कू-शरद मोहन(तीनों के पिता रेलवे के साथी रहे) गठजोड़ का ही हाथ था। इसी लिए वे लोग हमारे लखनऊ आने का शुरू से विरोध कर रहे थे। यह पता लगने  पर कि यशवन्त की ख़्वाहिश पर हमने घाटे मे भी लखनऊ आने का निर्णय किया था तो वे लोग उसके भी विरुद्ध मशगूल हो गए। अंततः मुझे उससे 'बिग बाजार' का जाब छुड़वाकर घर पर साइबर खुलवाना पड़ा जबकि डॉ शोभा-कमलेश बाबू अपने परिचित 'लुटेरिया' बिल्डर के यहाँ उसे जाब पर रखवाना चाहते थे। उसी लुटेरिया के माध्यम से उन्होने हमे यहाँ परेशान रखने का उपक्रम किया हुआ है।

इतना ही नहीं बी एच ई एल ,हरद्वार मे 'सीटू' से सम्बद्ध यूनियन मे सेक्रेटरी रह चुके कमलेश बाबू ने अपने पुराने संपर्कों के आधार पर सी पी एम से संबन्धित लोगों को पहले मुझ पर सी पी आई छोड़ कर सी पी एम मे शामिल होने का सुझाव भिजवाया। 17 जून 2011 को मेरे घर सी पी एम,मेरठ के कामरेड जो ब्लागर भी हैं आए और इस प्रकार की राय व्यक्त किए,कम से कम जलेस मे लेखन का ही उनका वैकल्पिक सुझाव था। चूंकि मैंने इन सुझावों को स्वीकार नहीं किया तो उन्हीं ब्लागर सी पी एम के कामरेड ने भाकपा के प्रदेश नेता द्वारा संचालित ब्लाग को फालों करके मेरे विरुद्ध अभियान चला दिया। इस अभियान का परिणाम मेरे विरुद्ध देखने के इच्छुक लोग संतुष्ट हो पाते हैं अथवा नहीं इसका पता 2012 मे ही चलेगा।

कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर के 'एकला चलो रे' का मै अनुगामी हूँ और सदैव प्रत्येक के भले के लिए प्रस्तुत रहता हूँ ,इसलिए मुझे नहीं लगता कि कितनी भी बड़ी ताकत बटोर कर मुझे परास्त करने मे किसी को भी सफलता आगे भी मिल सकेगी जैसे अभी तक नहीं मिल सकी है । सन 2012 मे सभी को सद्बुद्धि मिले और सभी समृद्धि कर सकें 2011 के समापन पर यही हमारी मंगल कामनाएं हैं।


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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

आगरा/1992-93/विशेष राजनीतिक (भाग-7 )

गतांक से आगे.....
शाखा लँगड़े की चौकी के मंत्री कामरेड एस कुमार (जिसे कभी मिश्रा जी बड़ा प्यारा कामरेड कहते थे) को कटारा के बेटे ने पार्टी कार्यालय मे ही पीट दिया। अब तो आगरा के कामरेड्स मे मिश्रा जी और कटारा के विरुद्ध उबाल ही आ गया था। एस कुमार जी भी अनुसूचित वर्ग से संबन्धित थे अतः यह माना गया कि मिश्रा जी का गुट कामरेड नेमीचन्द को हतोत्साहित करने हेतु ऐसी ओछी हरकतें जान-बूझ कर कर रहा है। एक बार पुनः राज्य-केंद्र पर अधिकृत तौर पर मिश्रा जी और कटारा साहब के विरुद्ध कारवाई करने का निवेदन किया गया। कामरेड काली शंकर शुक्ला जी का वरद हस्त मिश्रा जी का रक्षा कवच था। कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह ने खुद आगरा आकर सब की सुन कर कोई ठोस निर्णय लेने का आश्वासन दिया। मिश्रा जी ने दिलली  की भाग-दौड़ करके कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह के स्थान पर राज्य सचिव कामरेड मित्रसेन यादव का आना सुनिश्चित करवाया।

दिन मे आगरा की भाकपा जिला काउंसिल की बैठक भी राज्य सचिव के समक्ष हुई । लिखित और मौखिक शिकायतें उनको सौंपी गई। मिश्रा जी बैठक से अलग ले जाकर मित्रसेन यादव जी से मिले और उन्हें कुछ घुट्टी पिला दी। मिश्रा जी और कटारा साहब को पार्टी से हटाने का जो प्रस्ताव था उसे मित्रसेन यादव जी के कहने पर पास नहीं किया गया। उन्होने इन दोनों के सुधर जाने का आश्वासन अपनी तरफ से दिया। उनकी बात न माने जाने का प्रश्न ही न था। रात को राजा-की-मंडी स्टेशन पर 'गंगा-जमुना एक्स्प्रेस' मे मित्रसेन जी को बैठाने जिला मंत्री नेमीचन्द जी ,मै और किशन बाबू श्रीवास्तव साहब तो गए ही कटारा साहब भी मिश्रा जी के सुझाव पर पहुँच गए थे। स्टेशन पर मित्रसेन जी ने कटारा साहब से कहा मिश्रा जी का ख्याल रखो।


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मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

आगरा /1992 -93 ( विशेष राजनीतिक भाग- 6 )

गतांक से आगे.....


भकपा जिला काउंसिल के कार्यालय 'सुंदर होटल',राजा-की-मंडी मे रमेश कटारा ने कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव पर हमला कर दिया । नेमीचन्द समेत हम सभी लोगों ने इसे गंभीर चुनौती के रूप मे लिया । जिस शख्स को मिश्रा जी ने केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला के प्रभाव से यू पी राज्य कंट्रोल कमीशन का सदस्य बनवाया हो वह बगैर मिश्रा जी के समर्थन के डॉ धाकरे के गुट के माने जाने वाले का  श्रीवास्तव पर पार्टी कार्यालय मे हमला करने का साहस नहीं कर सकता था। श्रीमती श्रीवास्तव ने हम लोगों को बताया था कि आतंक का सहारा लेना मिश्रा जी के लिए नई बात नहीं है। पहले भी इसी कार्यालय मे मिश्रा जी और उनके सहयोगी का जगदीश प्रसाद ने डॉ राम विलास शर्मा पर साइकिल की चेन से हमला किया था। डॉ राम विलास जी 'सेंट जौंस कालेज,आगरा' से जाब छोड़ कर दिल्ली चले गए और वहीं बस गए। मिश्रा जी के व्यवहार के कारण एक विद्वान लेखक का नाता आगरा से टूट गया।

हमने अधिकृत रूप से राज्य सचिव कामरेड मित्रसेन यादव जी को सूचित किया। पार्टी कार्य से लखनऊ आने पर कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह से निजी मुलाक़ात करके पूरी घटना और उसमे मिश्रा जी की संलिप्तता का विवरण दिया। उन्होने खेत-मजदूर सभा के नेता और सांसद कामरेड राम संजीवन को आगरा जाकर तहक़ीक़ात करने को कहा। जब कामरेड राम संजीवन आगरा आए तो मिश्रा जी और उनके गुट का कोई सदस्य स्टेशन उनकी अगवानी करने नहीं गया। होटल मे भी मिश्रा जी उनसे नहीं मिले लेकिन कटारा ने अपनी सफाई दी। मैंने कामरेड श्रीवास्तव और उनकी पत्नी की उनसे विशेष रूप से मुलाक़ात करवा दी थी। सुबह की ताज से आकर शाम की ताज से राम संजीवन जी दिल्ली लौट गए। उन्होने अपनी रिपोर्ट लखनऊ भेज दी होगी। आगरा पार्टी के कामरेड्स ने कटारा और मिश्रा जी को पार्टी से निकालने की मांग रखी थी।....  

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शनिवार, 24 दिसंबर 2011

आगरा /1992 -93 ( विशेष राजनीतिक भाग- 5 )

गतांक से आगे---
लगातार नौ वर्षों तक आगरा भाकपा के जिला मंत्री रह चुकने के बाद मिश्रा जी ने अपने हटाये जाने को अपनी करारी हार माना और बदले की कारवाइयों पर अमल करने लगे। उन्हें लगा कि यह उनके विरोधियों की उनके विरुद्ध साजिश है। उन्हें अपना अतीत याद आ रहा था जैसा पुराने कामरेड्स ने बताया था और कभी-कभी मौज मे होने पर वह खुद भी बताते रहते थे। आगरा भाकपा के संस्थापक मंत्री कामरेड महादेव नारायण टंडन के विरुद्ध डॉ जवाहर सिंह धाकरे से मिल कर मिश्रा जी ने खूब गुट-बाजी की थी और उन्हें हटने पर मजबूर किया था । टंडन जी ने भी अपने समर्थक डॉ महेश चंद्र शर्मा के पक्ष मे ही पद छोड़ा था। शर्मा जी को बीच कार्यकाल मे पद छोडने पर डॉ धाकरे और मिश्रा जी ने मजबूर कर दिया था। डॉ धाकरे जिला मंत्री और मिश्रा जी सहायक जिला मंत्री बने थे। डॉ धाकरे के 06 माह हेतु सोवियत रूस पार्टी स्कूल मे जाने की वजह से मिश्रा जी कार्यवाहक जिला मंत्री बने तो जमे ही रहे वापस चार्ज डॉ धाकरे को नहीं दिया तब से ही दोनों मे मन-मुटाव चला आ रहा था। मिश्रा जी को लगा कि यह डॉ धाकरे का खेल है। परंतु डॉ धाकरे तो पिछड़ा वर्ग के ओमप्रकाश जी को भले ही कुबूल कर रहे थे अनुसूचित वर्ग के कारेड नेमी चंद उनकी पसंद के नहीं थे। डॉ धाकरे के भांजा दामाद कामरेड भानु प्रताप सिंह ने मुझ से साफ कहा था कि,माथुर साहब कहने -सुनने मे तो बातें अच्छी लगती हैं -नेमीचन्द से तो मिश्रा जी ही भले थे। हालांकि नेमीचन्द बनेंगे मुझे खुद सम्मेलन के दूसरे दिन ही पता चला था हमारी त्तरफ से तो ओमप्रकाश जी उम्मीदवार थे। परंतु चुने जाने के बाद जैसा दूसरे लोग चाहते थे मै नेमीचन्द जी को हटाये जाने के सख्त खिलाफ था। हालांकि नेमीचन्द जी लिखत-पढ़त कुछ भी नहीं करते थे और यह भार मुझ पर अतिरिक्त था लेकिन मै चट्टान की तरह उनके समर्थन मे डटा रहा। नेमीचन्द जी भी जानते थे कि उनका पद पर कायम रहना केवल मेरे कारण ही संभव हो रहा है। लोगों ने उनके दिमाग मे खलल डालने के लिए उन्हें नेमीचन्द माथुर कहना शुरू कर दिया। परंतु वह विचलित नहीं हुये।



मिश्रा जी के समक्ष स्पष्ट था कि जब तक मै नेमीचन्द जी के साथ हूँ तब तक उनकी दाल नहीं गल पाएगी। मुझे झुका-दबा या खरीद लेने की फितरत उनके पास नहीं थी। इसलिए उन्होने षड्यंत्र का सहारा लिया। एक बार अचानक कार्यकारिणी बैठक मे मिश्रा जी ने मुझे पार्टी से निकालने का प्रस्ताव रख दिया। शायद वह पहले से लामबंदी कर चुके थे। नेमीचन्द जी भी कुछ न बोले। उस समय बाहर बारिश हो रही थी मैंने अपना छाता उठाया और बैठक से उठ कर घर चल दिया। कामरेड जितेंद्र रघुवंशी ने कहा कि बारिश बंद होने के बाद चले जाना तेज बारिश मे छाता भी बेकार है। मैंने कहा जब आप लोगों ने पार्टी से अकारण मुझे निकाल ही दिया तो चिंता क्यों?यह अवैधानिक फैसला है और मै इसे चुनौती दूंगा।




मैंने जिला मंत्री कामरेड नेमीचन्द से  बाद मे मिल कर कहा कि उनके समर्थन न देने के बावजूद मै कार्यकारिणी के इस अवैध्य फैसले को संवैधानिक चुनौती दे रहा हूँ और इस आशय का लिखित पत्र उनको सौंप दिया। उन्होने मुझे आश्वासन दिया कि वह जिला काउंसिल मे इस विषय पर मेरे साथ रहेंगे। कार्यकारिणी चूंकि मिश्रा जी द्वारा तोड़ ली गई थी वह चुप रहे थे। राज्य-केंद्र पर भी मैंने इस फैसले को चुनौती की सूचना भेज दी थी। मलपुरा शाखा के कामरेड्स जिंनका बहुमत था मेरे साथ थे ,उन्होने तो यहाँ तक कह दिया था कि यदि मिश्रा जी पीछे नहीं हटे तो वे सब भी पार्टी छोड़ देंगे। जिस दिन जिला काउंसिल की बैठक हुई मिश्रा जी ने कामरेड राजवीर सिंह चौहान को बैठक का सभापति घोषित करा दिया जिन्हें वह पहले ही सेट कर चुके थे। उन्होने सभापति बनते ही मुझे बैठक से बाहर कर दिया। अंदर धुआंधार बहस होती रही और मै इतमीनान से छत पर मौजूद रहा। डॉ जवाहर सिंह धाकरे ने आते ही मुझसे सवाल किया कि बैठक से बाहर क्यों हो ?मैंने कहा सभापति चौहान साहब का यही निर्णय है।

डॉ धाकरे से मेरे द्वारा पहले ही पार्टी संविधान पर चर्चा हो चुकी थी। उन्होने बैठक मे पहुँचते ही सभापति जी से संविधान की धाराओं पर चर्चा की और उन्हें बताया कि उनका फैसला एक और असंवैधानिक कारवाई है। कार्यकारिणी समिति का गठन जिला काउंसिल ने किया था और जिला काउंसिल का गठन सम्मेलन ने अतः कार्यकारिणी समिति जिला काउंसिल के सदस्य को हटा ही नहीं सकती थी। सभापति अगर अपना फैसला नहीं बदलेंगे तो उनके विरुद्ध भी संविधान-विरोधी कारवाई करने का प्रस्ताव पारित किया जाएगा। चौहान साहब की ठाकुर ब्रादरी के धाकरे साहब ने जब उन्हें चुनौती दी तो उन्होने अपना फैसला पलटते हुये दो-तीन वरिष्ठ कामरेड्स भेज कर मुझे बैठक के भीतर बुलवाया। उन्होने यह भी सूचित किया कि जिला काउंसिल ने कार्यकारिणी का फैसला रद्द कर दिया है अतः मै न केवल पार्टी मे बल्कि अपने सभी पदों पर पूर्ववत कार्य करता रहूँ। संवैधानिक जीत तो हासिल हो गई ,किन्तु एक बारगी इज्जत पर  तो नाहक  हमला हुआ ही इसलिए मन ही मन मौका मिलते ही पार्टी से खुद ही अलग हो जाने का निश्चय कर लिया और किसी से इस संबंध मे कुछ न कहा तथा कार्य पहले की भांति ही करता रहा।

एक बार जिला कचहरी पर कोई धरना  प्रदर्शन था मै वहाँ भी (उस घटना के बाद मैंने मिश्रा जी से बोलना बंद कर दिया था) मिश्रा जी से न बोला। मिश्रा जी मेरे पास आए और बोले माथुर साहब यह सब तो चलता ही रहता है,हम लोग एक ही पार्टी मे हैं ,उद्देश्य एक ही हैं ,काम एक साथ कर रहे हैं तो बोल-चाल बंद करने का क्या लाभ। मजबूरन उनका अभिवादन करना ही पड़ा वह वरिष्ठ थे और खुद मेरे पास चल कर आए थे । हम लोग उनके हित मे थे वह हमें गलत समझ रहे थे। कटारा ने तांत्रिक प्रक्रिया से उनके सोचने की शक्ति कुंन्द कर दी थी।

मिश्रा जी ने शायद यह भी मान लिया था कि वह मुझे हरा न पाएंगे। इसलिए उन्होने और गंभीर चाल चली जो अपने समय पर ही लिखित स्थान प्राप्त करेगी।


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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

आगरा /1992-93(राजनीतिक विशेष-भाग-4 )

गतांक से आगे.....
हम लोगों ने मलपुरा के ग्राम प्रधान कामरेड ओमप्रकाश को मिश्रा जी के विरुद्ध जिला मंत्री पद पर खड़े होने को राजी कर लिया था। किन्तु मिश्रा जी ने अपना चक्र चला कर उन्हे पीछे हटने को राजी कर लिया ,मुझे इन बातों की खबर न थी। लेकिन मिश्रा जी के पारिवारिक हितैषी कामरेड्स ज्यादा चतुर थे,उन्होने मिश्रा जी के ही घनिष्ठ साथी नेमिचन्द को तैयार कर लिया था,ओम प्रकाश जी ने भी उन्हें समर्थन देना स्वीकार कर लिया था । इस कहानी की खबर न मुझे थी न मिश्रा जी को। राज्य-पर्यवेक्षक के रूप मे कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह के स्थान पर राज्य सचिव का मित्रसेन यादव द्वारा पूर्व राज्य-सचिव का जगदीश त्रिपाठी(जिंनका 17 दिसंबर 2011को लखनऊ मे निधन हुआ है) ,पूर्व सह-सचिव का अशोक मिश्रा(जो बाद मे राज्य  सचिव भी रहे) और आगरा क्षेत्र के इंचार्ज का डॉ गिरीश(वर्तमान राज्य सचिव) को संयुक्त रूप से भेजा गया था। मिश्रा जी खुश थे कि इन लोगों की मौजूदगी मे वह अपनी कलाकारी दिखा लेंगे।

पहले दिन की सम्मेलन कारवाई के बाद बाह मे ही एक जनसभा भी रखी गई थी। दिन मे सचिव की रिपोर्ट के बाद प्रतिनिधियों ने अपने विचार रखे थे और कहीं से भी मिश्रा जी को यह आभास नहीं मिला था कि कोई भी उन्हें हटाने की कारवाई कर सकता है ,मुझे भी यही लगा था कि मिश्रा जी ही पुनः पदारूढ़ होने जा रहे हैं। डॉ रामनाथ शर्मा और एडवोकेट सुरेश बाबू शर्मा तो खिन्न होकर आगरा वापस लौट भी गए थे। वे मुझे भी लौट चलने का दबाव बना रहे थे परंतु मै साधारण प्रतिनिधि के साथ-साथ तब तक कोशाध्यक्ष के पद पर था और इस तरह सम्मेलन का बहिष्कार करना भी मुझे पसंद नहीं था लिहाजा मै उनके साथ न जाकर अगले दिन के लिए वहीं रुका रहा था । परंतु मै सभा-मंच पर न बैठ कर सामने मैदान मे दरी पर दूसरे प्रतिनिधियों ,स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं आम जनता के साथ बैठा था। संचालन कर रहे का हर विलास दीक्षित से मिश्रा जी ने अनाउंस करवाया कि समस्त कार्यकारिणी सदस्य मंच पर आ जाएँ ,मुझे छोड़ कर सभी पहले से ही मंच पर मौजूद थे। मै दरी पर ही बैठा रहा किन्तु सभा प्रारम्भ करने से पूर्व मिश्रा जी के इशारे पर का दीक्षित ने नाम लेकर कहा कि,का  विजय राज बली माथुर से आग्रह है कि तुरंत मंच पर अपना स्थान ग्रहण कर लें। मुझे आखिरकार मंच पर जाना ही पड़ा ,मिश्रा जी ने कहा भई आज तक तो आप कार्यकारिणी मे हैं ही नीचे क्यों बैठ गए थे?मैंने मौन रहना ही मुनासिब समझा।

बोलने के लिए पुकारे जाने पर भी मैंने अति सूक्ष्म भाषण ही दिया। रात्रि  भोजन के बाद वहीं ठहरने का प्रबंध था। गर्मी का मौसम था अतः मै दो एक लोगों के साथ खुली छत  पर ही रहा कमरों मे पंखों की हवा से बाहर की खुली हवा अच्छी थी। देखा-देखी काफी कामरेड्स छत  पर ही आ गए। अगले दिन खुली छत पर ही नहाना हुआ ,कौन कितनी देर तक गुसलखाना खाली होने का इंतजार करे। अधिकांश लोगों ने इसी प्रक्रिया का अनुसरण किया और शायद महिला कामरेड्स ने ही बाथरूम का प्रयोग किया। नाश्ते के बाद सम्मेलन की कारवाई प्रारम्भ हो गई ,बचे हुये लोगों ने अपनी-अपनी बात रखी। मै खुद भी नहीं बोलना चाहता था और शायद मिश्रा जी भी यही चाहते थे कि मै न बोलूँ। मुझे सम्मेलन के मिनिट्स लिखने का दायित्व सौंप दिया गया था।
दिन के भोजन के बाद मिश्रा जी ने नई जिला काउंसिल का पेनल पेश किया जो सर्व-सम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इससे मिश्रा जी बिलकुल निश्चिंत हो गए कि वह पुनः निर्विरोध जिला मंत्री बनने जा रहे हैं।

चाय पान के बाद नई जिला काउंसिल की बैठक हुई जिसमे मिश्रा जी ने बतौर ड्रामा कहा कि वह काफी थक गए हैं और पद छोडना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद थी कि पूर्व की भांति कामरेड्स उनसे विनती करेंगे कि उनका कोई विकल्प नहीं है(जैसा कामरेड सी राजेश्वर राव की उपस्थिती मे भी  हुआ था) अतः वही जिला मंत्री बने रहें। उनकी आशा के विपरीत किसी ने उनसे ही दूसरा नाम सुझाने का अनुरोध कर दिया। अब तो मिश्रा जी को काटो तो खून नहीं। मजबूरन उन्होने अपने विश्वस्त साथी और आड़ीटर कामरेड जगदीश प्रसाद का नाम ले दिया किन्तु उन्होने तत्काल कह दिया कि वह बलि का बकरा नहीं बनेंगे। मुझसे सम्मेलन मे मिश्रा जी द्वारा नया पेनल पेश करने के दौरान कान मे आकर उनके ज़मीनों के धंधे के साथी कामरेड पूरन खाँ ने कहा था कि पेनल का विरोध न करवाना का ओमप्रकाश पीछे हट गए हैं उनके स्थान पर नेमीचनाद का नाम आ रहा है ,आप समर्थन कर देना। मिश्रा जी के ही दूसरे विश्वस्त का दीवान सिंह ने का नेमीचन्द का नाम प्रस्तावित कर दिया जिसका तालियों की गड़गड़ाहट ने समर्थन कर दिया । अब तो मिश्रा जी की जमीन छिन चुकी थी। उन्होने तत्काल सहायक जिलामंत्री पद हेतु का दीवान सिंह का नाम ले दिया यह कहते हुये कि आपने का नेमीचन्द को जिला मंत्री बनवाया है उन्हें कामयाब बनाना आप ही की ज़िम्मेदारी है अतः आप उनके सहायक जिला मंत्री होंगे। सबने समर्थन कर दिया। मिश्रा जी ने का नेमीचन्द को सुझाव दिया कि एक पदाधिकारी पुराना भी होना चाहिए अतः का माथुर को कोशाध्यक्ष बनाए रखें। ऐसा ही हुआ भी । राज्य-केंद्र के तीनों पर्यवेक्षकों के लिए हस्तक्षेप का प्रश्न ही नहीं था कहीं कोई विरोध हुआ ही नहीं और मिश्रा जी अपनी ही बिछाई बिसात पर मुंह की खा गए।मुझे  मक्खी की तरह मसल डालने और हरा देने के उनके  दावे धरे के धरे रह गए। कटारा का कुसंग उन्हें ले डूबा।सबसे बड़ी बात यह थी कि यह मिश्रा जी के विरोधियों की जीत नहीं थी बल्कि उन्हीं के पारिवारिक हितैषियों ने उनके ही परिवार को बिखरने से बचाने हेतु उन्हें पदच्युत किया था। किन्तु मिश्रा जी अभी भी जागे नहीं थे......... 

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रविवार, 18 दिसंबर 2011

आगरा /1992-93(राजनीतिक विशेष-भाग-3)

गतांक से आगे.....
मिश्रा जी के समर्थकों ने उनके परिवार को कटारा के चंगुल से मुक्त कराने हेतु उन्हे पार्टी के जिला मंत्री पद से हटाने का फैसला कर लिया था और मुझ से कहा था कि मै इसकी भनक मिश्रा जी को न लगने दूँ। उधर राज्य-सम्मेलन के अकाउंट्स मे हेरा-फेरी न हो पाने की दशा मे मिश्रा जी और कटारा साहब मुझसे बुरी तरह खफा थे,वे जानते थे कि जैसे का तैसा विवरण पेश होने पर उन्हें जिला सम्मेलन मे फजीहत का सामना करना पड़ेगा। पहले कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह राज्य-पर्यवेक्षक के रूप मे आने वाले थे ,मिश्रा जी ने एडी-चोटी का ज़ोर लगा कर उन्हे रुकवाया। जिला सम्मेलन से ठीक एक दिन पहले  कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव के माध्यम से मुझे अपने घर पर बुलाया और अंतिम बार पूछा कि मै अकाउंट्स चेंज करूंगा या नहीं। मैंने उनसे कहा सारे दस्तावेज़ शीशे की तरह साफ हैं जो भी एडजस्टमेंट करेगा फँसेगा। वह बोले कामरेड जगदीश आडिट कर रहे हैं वह आपकी गलतिया सब के सामने रख  देंगे और कल सम्मेलन मे आपकी बुरी हार होगी। मैंने मिश्रा जी को जवाब दिया यदि मै हार गया तो मुझे खुशी होगी। मिश्रा जी चौंक पड़े और पूछ कि हारने पर क्यों खुशी होगी। मैंने स्पष्ट किया कि मेरे हारने पर आपकी जीत है और मै आपका एहसानमंद हूँ अतः मुझे अपनी हार और आपकी जीत की खुशी होगी। यदि मै जीता तो आप हारेंगे और आपकी एक प्रतिष्ठा है जिसे आघात पहुंचेगा अतः मै आपकी प्रतिष्ठा गिरने से चिंतित हूँ। मिश्रा जी बोले कि ऐसा है तब आप मेरा कहना मान कर अकाउंट्स क्यों नहीं दोबारा रात भर मे तैयार कर देते?(मुझे मिश्रा जी का यह वक्तव्य भी पता चला था कि उन्होने ऐलान किया था-'हमारी बिल्ली ,हमी से म्याऊँ'-'माथुर को मक्खी की तरह मसल कर फेंक देंगे'। मैंने संदेश वाहक से कहा था कि मक्खी क्यों मै तो उससे भी छोटा 'चींटी' हूँ और मिश्रा जी विशालकाय हाथी मै तो उनके पैरों तले पलक झपकते ही कुचल जाऊंगा। लेकिन मिश्रा जी को ध्यान रखना होगा कि चींटी उनकी सूंड मे न घुसने पाये)। अतः मैंने मिश्रा जी को सुझाव दिया कि वह कटारा को बचाने के लिए नकली अकाउंट्स बनवाने की जिद्द छोड़ कर इसे स्वीकार करते हुये कटारा के विरुद्ध खुद ही एक्शन ले लें उनकी प्रतिष्ठा मे चार चाँद लग जाएँगे। हँसते हुये मिश्रा जी ने कहा कल सम्मेलन मे आप मुंह की खा जाओगे और इतिहास की वस्तु बन जाओगे। .......  

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शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

आगरा /1992 -93 (राजनीतिक विशेष -भाग- 2 )

गतांक से आगे....
पूर्व-पश्चिम के कार्यकर्ताओं मे वैभिन्य था और कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह को पश्चिम के कामरेड्स का समर्थन न मिल सका अतः उन्होने कामरेड मित्रसेन यादव का समर्थन किया जिनहे सर्व-सम्मति से राज्य-सचिव चुन लिया गया। आगरा से जो 5 कामरेड्स राज्य-काउंसिल हेतु चुने गए उनमे मिश्रा जी अपने परम-प्रिय कटारा को स्थान न दिला सके। केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर मिश्रा जी ने कटारा को उत्तर-प्रदेश कंट्रोल कमीशन का सदस्य नामित करवा लिया। कोई कुछ बोल तो न सका परंतु मिश्रा जी ने ऐसा करके अपने सभी हितैषियों को अपने विरुद्ध कर लिया।

राज्य-सम्मेलन समाप्ती के बाद आगरा के जिला सम्मेलन की तैयारी होना था। मिश्रा जी ने मुझ से कहा कि,अपने ज्योतिष से गणना करके जून के महीने मे दो तारीखें बताओ जिससे सम्मेलन शांतिपूर्ण हो जाये ,राज्य सम्मेलन मे तो काफी तनाव रहा। मैंने पत्रा देख कर उन्हे मध्य जून की दो तारीखें बता दी उन्हीं मे उन्होने जिला सम्मेलन करने की घोषणा की। राज्य-सम्मेलन के आय-व्यय का विवरण तैयार होने पर मिश्रा जी भड़क गए क्योंकि लगभग रु 6000/-अधिक (EXCESS ) निकल रहे थे। अकाउंट्स का थोड़ा भी जानकार समझ सकता है कि धन का बच जाना (एक्सेस) क्राईम है जबकि कम पड़ना (शारटेज) होना आम बात है।

मिश्रा जी का भारी दबाव था कि मै अपने अकाउंट्स ज्ञान का प्रयोग करके इस विवरण को इस प्रकार एडजस्ट कर दूँ कि EXCESS न रहे। ईमानदारी और पार्टी के प्रति वफादारी का तकाजा था कि विवरण को जैसे का तैसा रखा जाये और वही मैंने किया भी,चर्चा करने पर मिश्रा जी के सहयोगी और विरोधी सभी मुझसे सहमत थे। इस विवरण को मुद्दा बना कर मिश्रा जी ने मुझे परेशान करने की तिक्ड़मे की तो मैंने उनकी हिदायत की अवहेलना करते हुये राज्य-सम्मेलन के विवरण पर बची रकम को बैंक मे जमा करा दिया उसी अकाउंट मे जिसमे जिले का धन रहता था। अब तो मिश्रा जी एक प्रकार से मेरे शत्रु ही हो गए। कामरेड सरदार रणजीत सिंह काफी पुराने थे और सबके सब हाल जानते थे और उनकी उपेक्षा थी ,मुझसे बोले इस विषय पर पूरी तरह अड़े रहो इस बार मिश्रा एक ईमानदार आदमी से टकरा रहा है उसकी करारी हार हो जाएगी। वह मुझे सुबह 7 बजे मलपुरा ले चलने हेतु मेरे घर पर 6 बजे दयालबाग से आ गए। दोनों अपनी-अपनी साइकिलों से 16 km चले,उनके लिए 72-73 वर्ष की आयु मे इतनी दूर साइकिल से आना-जाना मुश्किल था किन्तु पार्टी-हित मे उन्होने यह कष्ट भी सहा। मलपुरा शाखा पार्टी की सबसे ज्यादा संख्या वाली शाखा थी और पार्टी मे उनका बहुमत भी था। उस शाखा के वरिष्ठ नेताओं से उन्होने संपर्क किया और वस्तु-स्थिति बताई ,सभी ने इस विषय मे मिश्रा जी का विरोध करने और जरूरत पड़ने पर उन्हें जिला सम्मेलन मे हटा देने की बात कही। उन लोगों का कहना था वे सब मिश्रा जी के समर्थक माने जाते हैं इसलिए उनके प्रस्तावों का कामरेड जवाहर सिंह धाकरे विरोध करते हैं अतः उनका भी समर्थन हम लोग प्राप्त कर लें। कामरेड किशन बाबू श्रीवास्तव बाह के थे और वहीं के कटारा साहब भी थे बल्कि वही उन्हें पार्टी मे लाये थे किन्तु उन्होने श्रीवास्तव साहब को उनकी शाखा के मंत्री पद से हटवा दिया था क्योंकि उनकी छवी धाकरे साहब के पिछलग्गू की थी। लिहाजा हम लोगों ने उनसे संपर्क कर के धाकरे साहब से बात करने की जरूरत बताई। डॉ धाकरे तब R.B.S.कालेज के प्रिंसिपल थे उनके कार्यालय मे सरदारजी ,श्रीवास्तव साहब और मै मिले और उन्होने सहर्ष अपना समर्थन दे दिया। कभी भी अपने कालेज -निवास पर मिलने आने की बात भी उन्होने कही जहां ठीक से बात कर सकें।

मिश्रा जी के साथ ज़मीनों का धंधा करने वाले कामरेड पूरन खाँ जो उनके घर मे भी गहरे घुसे हुये थे और उनके सम्पूर्ण परिवार से सहानुभूति रखते थे,मुझसे लगातार कह रहे थे कि मिश्रा जी के परिवार को बचाओ कटारा उनके परिवार को तबाह करना चाहता है और वह कटारा प्रेम मे डूबे हुये हैं। कामरेड दीवान सिंह भी मिश्रा जी के एहसानमंद थे और वह भी उनके परिवार को कटारा से बचाना चाहते थे। मिश्रा जी के साथ जूते की फेकटरी खोलने वाले कामरेड नेमीचन्द भी उनके खैरख्वाह थे और भलीभाँति जानते थे कि उस फेकटरी को फेल करने मे कटारा और उनके बेटे का पूरा-पूरा हाथ था। इन लोगों का कहना था कि कटारा ने किसी तांत्रिक प्रक्रिया से मिश्रा जी को वशीभूत कर लिया है,पार्टी तो सम्हाल ली जाएगी और मिश्रा जी के बगैर भी चलती रहेगी किन्तु उनका परिवार बुरी तरह बिखर जाएगा। लिहाजा कटारा को काबू करने के लिए मिश्रा जी को हटाना जरूरी हो गया था। मलपुरा के कामरेड्स को भी मिश्रा जी से व्यक्तिगत सहानुभूति थी और वे भी कटारा से मुक्ति की मुहिम मे मिश्रा जी को पदच्युत करने के हामी थे। ...... 

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बुधवार, 14 दिसंबर 2011

आगरा /1992 -93 ( विशेष राजनीतिक भाग- 1 )

1992 मे भाकपा की 15 वी राज्य कांग्रेस आगरा मे करने का निर्णय लिया गया और इच्छा न होते हुये भी कामरेड रमेश मिश्रा जी ने राज्य सचिव कामरेड जगदीश नारायण त्रिपाठी जी का प्रस्ताव/निर्देश मान लिया। मिश्रा जी चूंकि अब तक रमेश कटारा साहब के पूरे प्रभाव मे आ चुके थे अतः उन्हे ही तैयारी हेतु इंचार्ज के रूप मे रखा। मै सतर्क था अतः मैंने मिश्रा जी से अनुरोध किया कि राज्य-सम्मेलन हेतु एक अलग बैंक अकाउंट खुलवा लें जिसे उन्होने अस्वीकार कर कर दिया। अतः मैंने राज्य-सम्मेलन से संबन्धित आय-व्यय के रजिस्टर मे रुपए जमा करने वालों के भी हस्ताक्षर लेने का कालम बना लिया। कटारा साहब ने जिनके जरिये मिश्रा जी रुपए जमा करवाते थे इस बात का ऐतराज किया ,उनका दृष्टिकोण था जब खर्च के लिए रुपए निकालेंगे तब हस्ताक्षर करेंगे ,जमा करने वाला क्यों करे?अंततः मिश्रा जी के कहने पर उन्हें मानना पड़ा।

हम लोगों पर भी मिश्रा जी ने दायित्व डाला था कि सम्मेलन हेतु धन-संग्रह मे सहयोग करें। मुझे मांगने की आदत थी ही नहीं परंतु पार्टी का कार्य था तो फर्ज भी निबाहना ही था। हींग की मंडी के सेठ जी और उनके परिचितों से जिक्र किया तो रु 50/-50/-उन लोगों ने चन्दा दे दिया। भाजपाई होते हुये भी उन लोगों को पहली बार  भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की रसीद पर चन्दा देना पड़ा। चूंकि मिश्रा जी पार्सल बाबू शरद मोहन को अपने मकान मे किराये पर रख  चुके थे उन्हें जानते थे उनके माध्यम से मुझे चन्दा संग्रह करने का उन्होने सुझाव दिया। शरद मोहन से मैंने मिश्रा जी की बात बताई तो वह सहर्ष मदद करने को तैयार थे। रसीद बुक उन्हें थमा दी ,उन्होने अपने पार्सल दफ्तर मे बैठे-बैठे व्यापारियों से धन संग्रह करके मुझे कुछ दिनों बाद सौंप दिया और मैंने मिश्रा जी को । धन लेते और देते समय दोनों बार मै संबन्धित कामरेड के हस्ताक्षर रजिस्टर पर लेता था अतः मिश्रा जी को भी इसी प्रक्रिया से दिया।

जैसे-जैसे सम्मेलन की तारीखें नजदीक आ रही थीं कटारा साहब और बाकी कामरेड्स के बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही थीं। इसी कारण मिश्रा जी ने त्रिपाठी जी से विशेष अनुमति मांग ली कि वह आगरा का जिला सम्मेलन ,राज्य -सम्मेलन के बाद करवाएँगे। मिश्रा जी कटारा साहब को राज्य-कार्यकारिणी समिति मे रखवाने के इच्छुक थे लेकिन आगरा मे पुराने और वरिष्ठ कामरेड्स कटरा साहब को राज्य हेतु प्रतिनिधि तक नहीं बनने देना चाहते थे। मिश्रा जी के पुराने सभी शिष्य जिनहोने अतीत मे उनके गलत-सही सभी निर्णयों मे उनके कंधे से कंधा मिला कर साथ दिया था कटारा साहब के मुद्दे पर उनके विरुद्ध लामबंद थे। कोशाध्यक्ष के पद पर होने के कारण मुझ से सभी का संपर्क था। उन सब ने मुझ से कहा कि,माथुर साहब आपकी ईमानदारी निसंदिग्ध है और इसी लिए चौहान साहब ने आपको अपना उत्तराधिकारी चुना है अतः मिश्रा जी से मधुर सम्बन्धों के बावजूद आपको अपना नैतिक दायित्व भी निबाहना है। उन लोगों का तर्क था कि यह पार्टी का कार्यक्रम है ,मिश्रा जी के परिवार का नहीं,कटारा अनाप-शनाप पानी की तरह धन बहा रहा है और कार्यक्रम के बाद मिश्रा जी आप पर दबाव डाल सकते हैं आप डटे रहेंगे तो हम सब आपके पीछे रहेंगे।

01 से 04 मार्च तक राज्य सम्मेलन 'माथुर-वैश्य सभा भवन',पंचकुयिया ,आगरा मे सम्पन्न हुआ। मिश्रा जी ने मुझे सब से अलग-थलग रखने की रण-नीति के तहत आने वाले डेलीगेट्स के वापसी टिकटों का इंतजाम करने का दायित्व सौंपा और इसमे भी पार्सल बाबू शरद मोहन ने अपने तरीके से मदद दिलवा दी। कामरेड चतुरानन मिश्रा जी ने सिर्फ अपना IC नंबर दिया था और उनके लिए 'ताज एक्स्प्रेस' से दिल्ली का रिज़र्वेशन कराना था। काउंटर क्लर्क ने उनका रिज़र्वेशन करके कोच एवं सीट नंबर बता दिया जिसे मैंने उन्हें सूचित कर दिया।

कटारा साहब के चक्कर मे कभी मिश्रा जी का कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह से कोई मन-मुटाव हुआ होगा और वह अक्सर उन्हें कोसते रहते थे। त्रिपाठी जी पद छोडना चाहते थे और आर बी सिंह जी इस पद के दावेदार माने जा रहे थे। अतः मिश्रा जी उनके विरुद्ध लाबीइंग करते रहते थे। मिश्रा जी ने उन्हें बुरा-भला कहने की कवायद मे एक बार यह भी कहा था कि वह आगरा के जिला मंत्री हैं तो भी सिंह साहब उन्हें महत्व नहीं देते जबकि 'बाराबंकी का गधा' भी आ जाएगा तो वह उसे महत्व देते हैं। बात यह थी कि बाराबंकी के पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ सिंह साहब ने त्रिपाठी  जी की बैठक रखी थी जो बंद दरवाजे के भीतर हो रही थी। मिश्रा जी त्रिपाठी जी को अपना आदमी मानते थे अतः दरवाजा खोल कर घुस गए और रामचन्द्र बक्श  सिंह साहब ने उन्हें बाहर जाने को कह दिया। यह बात मिश्रा जी ने गांठ बांध कर रख ली थी।


कार्यक्रम के तीसरे दिन सिंह साहब को कोई पुस्तिका सम्मेलन मे बंटवानी थी वह प्रेस मे हुई त्रुटियों को सुधार रहे थे उन्हें कागज काटने हेतु ब्लेड अथवा चाकू की आवश्यकता थी और तलाश मे थे। मैंने हलवाई से एक नया चाकू ला कर उन्हें दे दिया जिससे उन्होने कागजों को अलग-अलग कर लिया। इसी दौरान उन्होने मुझसे मेरा परिचय पूंछा क्योंकि उन्हें ताज्जुब था कि आगरा मे कोई कामरेड उन्हें क्यों सहयोग कर रहा है जबकि बाकी मिश्रा जी के भय से उनसे दूरी बनाए हुये हैं। पार्टी पद का उल्लेख करते हुये मैंने उन्हें बताया कि मै तो बहौत छोटा कार्यकर्ता हूँ। मैंने उनसे पूंछा कि क्या आप राय धर्म राज बली माथुर और राय जगदीश राज बली माथुर को जानते हैं?उनका जवाब था बेहद अच्छी तरह से और पूंछा तुम्हारा उनसे क्या संबंध है?मैंने स्पष्ट किया कि धर्म राज बली साहब मेरे बाबूजी के चाचा होने के कारण बाबाजी और जगदीश जी बाबूजी के बड़े भाई होने के कारण ताऊ जी होते हैं। कामरेड राम चंद्र बख्श सिंह जी यह परिचय जान कर बेहद खुश हुये और बोले तभी तुमने मेरी मदद कर दी,यहाँ आगरा के लोग तो बड़े रूखे होते हैं । तुम तो हमारे बाराबंकी के हो पहले क्यों नहीं मिले। मैंने कहा आप राज्य के बड़े नेता हैं और मै मामूली कार्यकर्ता। उनका जवाब था हमारे बाराबंकी के हो यह क्या कम था। उन्होने आश्वासन दिया पार्टी मे जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत हो बेझिझक कहना पूरी मदद करूंगा। ........ 

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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

आगरा/1992 -93 (भाग-3 )/दरियाबाद यात्रा

......जारी

हालांकि एक वर्ष पूर्व ही सब तब मिले थे जब मै ताऊ जी के निधन के बाद दरियाबाद आया था परंतु ऋषिराज ने अब फिर नहीं पहचाना था। याद दिलाने पर समझे। हम 2-2 दिन मथुरा नगर और रायपुर रुकने के हिसाब से गए थे। लेकिन ऋषि और उमेश ने बताया कि रायपुर मे जो कोई भी महिला रात को रुकती है वह पागल हो जाती है ऐसा उन लोगों ने कुछ कर रखा है। उदाहरण उन्होने छोटी ताईजी और रेखा जीजी का दिया और यह भी बताया कि सुरेश भाई साहब की एक साली भी जो रात मे रुकी पागल हो गई। लिहाजा हमने वहाँ न रुकने का निर्णय लिया और मात्र एक दिन मिलने जाने का तय किया। सुरेश भाई साहब(08 दिसंबर की रात्रि मे दिल्ली मे जिंनका निधन हो गया हैऔर यह सूचना उनके परिवार के जरिये नाही अन्यत्र से मिली है ) सुबह  आए और स्टेशन पर एक मिठाई की दुकान मे बैठ कर संदेश उनके साथ चलने का भिजवा दिया। मथुरा नगर मे ऋषि और उमेश ही थे अतः खाना-नाश्ता शालिनी ने ही अपने रहने तक बनाया। नाश्ता करके हम लोग स्टेशन पहुंचे और सुरेश भाई साहब ने एक खड़खड़िया के माध्यम से हम लोगों को रायपुर चलने को कहा। शालिनी और यशवन्त के लिए ऐसी गाड़ी पर बैठने का यह पहला अवसर था।

पहुँचते-पहुँचते शायद एक बज गया था और भाभी जी ने सीधे खाना परोसा । रोटियाँ बेहद बड़ी और भारी थीं -यह भी उन दोनों के लिए ताज्जुब की बात थी । यशवन्त ने तो आधी रोटी ही खाई। शालिनी भी एक से ज्यादा न खा सकीं और मै दो से ज्यादा न ले सका। 1964 के बाद रायपुर मे खाने का यह मेरे लिए भी पहला अवसर था । तब तो बाबा जी भी वहाँ थे और ताईजी भी थीं। विपिन वहाँ मिले थे। वह गेरुए लिबास मे अलग कुटिया बना कर रहते थे। डॉ प्रताप नारायण माथुर और उनकी पत्नी ऊषा (जो रिश्ते मे हम लोगों की भतीजी थीं)बाराबंकी से लौटते मे वहाँ आए थे,वैसे एक दिन पूर्व जब रेल से वे जा रहे थे तो स्टेशन पर ऋषिराज ने उनसे मुलाक़ात करवा दी थी। भाभी जी से भी उनका कोई अलग रिश्ता था। शाम की चाय उनके साथ साथ ही हुई।

उन लोगों के जाते ही हम भी मथुरा नगर जाना चाहते थे। परंतु भाई साहब भाभी जी एक दिन रुकने पर ज़ोर दे रहे थे ,हम रुकना नहीं चाहते थे। शाम को अंधेरा होते ही यशवन्त जो तब साढ़े आठ वर्ष का ही था जिद्द पर अड़ गया कि यहाँ नहीं रहेंगे ऋषि चाचा के घर चलिये। जब उसने रोना शुरू कर दिया तो भाई साहब भाभी जी बोले बच्चे को रुला कर जबर्दस्ती नहीं रोकेंगे। इतनी देर बाद वहाँ से कोई वाहन भी नहीं मिल रहा था। एक ड्राइंग मास्टर साहब शायद रामसनेही घाट होकर लौट रहे थे ,सुरेश भाई साहब ने उनसे साइकिल मांग ली और बोले अब कल मिलेगी। डंडे पर यशवन्त को और कैरियर पर शालिनी को बैठा कर हम रायपुर से मथुरा नगर चले। स्टेशन पर हलवाइयों की दुकानों पर ऋषि डेरा जमाते थे तब वह वहाँ के ग्राम प्रधान थे। उन्होने हमे साइकिल पर बैठ कर जाते देखा तो आवाज दी होगी जो हमने नहीं सुनी। घर पर फिर ताला!लेकिन हाँफते-कांपते ऋषिराज तुरंत पैदल लपकते हुये पहुँच गए। उन्होने यशवन्त की खूब सराहना की कि,उसने रो कर वहाँ नहीं ठहरने दिया यह अच्छा किया।

रात मे एक भैंस और उसकी पड़िया मे भिड़ंत हो गई होगी तो उमेश उन दोनों को अलग कराने मे लगे होंगे। उमेश तब डेरी खोलने के चक्कर मे कई भैंसें पाले हुये थे उनमे और ऋषि मे संबंध मधुर न होने के कारण वह अकेले ही जूझ रहे थे। शालिनी ने मुझे जगा कर उमेश की मदद करने को कहा। मै गया तो लेकिन उमेश ने कहा जानवर आपको नहीं पहचानते हैं इसलिए आप उनके नजदीक न आयें। जब उन दोनों को अलग-अलग बांध कर उमेश लौटे तब ही हम फिर दोबारा सोये। मई के महीने मे वहाँ छत  पर ठंड पिछली  रात मे लग रही थी अतः इस दिन नीचे कमरे मे सोये थे ।

अगले दिन सुबह हम साइकिल रायपुर पहुंचा आए उसके बाद  ऋषि हम लोगों को लेकर लखनऊ माधुरी जीजी के घर राजाजी पुरम आए। चलते समय ऋषि ने पूछा और मेरे मना करने के बावजूद शालिनी ने चने ले चलना कबूल कर लिया तो एक झोले मे जितने आ सके उन्होने भर दिये और शालिनी ने सील कर पैक कर लिया।  जैसे पिछले वर्ष नरेश ने अपने साथ मेरा भी टिकट लिया था इस बार हम लोगों का ढाई टिकट भी ऋषि ने लिया। आगरा से हम दरियाबाद आए थे तो वहाँ से लखनऊ भी खुद ही आ सकते थे किन्तु वे लोग अपनी अमीरी प्रदर्शित करने हेतु हमारा टिकट भी ले देते थे।

माधुरी जीजी मुझसे दस वर्ष बड़ी हैं और बचपन मे भी अपनी माँ की फटकार खाकर भी अपनी बहन बीना (जो मुझसे मात्र छै माह छोटी हैं)को न लेकर मुझे लेकर खेलने निकल जाती थीं,ऐसा सुना है। जीजाजी के निधन हो जाने के कारण जीजी सचिवालय मे कार्य (एवजी की नौकरी मे)कर रही थीं और तब तक अधिकारी हो गई थीं। जब कभी कम्यूनिस्ट पार्टी की रैली मे लखनऊ आते थे तो रैली के बाद उनके घर मिल कर ही स्टेशन पहुँच कर  रात की अवध एक्स्प्रेस से साथियों के साथ लौटते थे। वह इन लोगों को लाने को कहती रहती थीं दो दिन उनके घर रुकने का कार्यक्रम था किन्तु दरियाबाद मे कम रुकने की वजह से उनके यहाँ अधिक रुक गए। लौटने का रिज़र्वेशन गंगा -जमुना एक्स्प्रेस से आगरा सिटी का कराया था अतः वहाँ रुकते हुये गए।

ताउजी और ताईजी दोनों का निधन हो जाने के कारण उनके द्वारा ऋषि की शादी तोड़ कर उनके महेंद्र जीजा जी(मीरा जीजी के पति) ने दूसरी जगह तय करा दी थी, माधुरी जीजी ने उसमे शामिल जरूर होने का आग्रह किया । हमने शामिल होने की हामी कर दी..........

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मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

आगरा/1992 -93 (भाग-2 )

1992 मे ही पहले भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की राज्य काउंसिल हेतु 15 वी कांग्रेस मे चुनाव हुआ। अपने जिला मंत्री मिश्रा जी के कहने पर मैंने पार्सल बाबू शरद मोहन से चन्दा जमा करने और डेलीगेट्स के वापसी टिकट लेने मे सहयोग को कहा जो मिश्रा जी के नाम पर उन्होने सहर्ष दिया। हालांकि यह ताज्जुब वाली बात थी जो व्यक्ति अपनी बहन से मिलने नहीं आता और जिसे अपनी पत्नी के इलाज के लिए वक्त नहीं मिलता और जिन मिश्रा जी ने कथित रूप से गालियों की बौछार करके उन लोगों को अपने किरायेदार के रूप मे हटाया था उन्हीं मिश्रा जी पर इतनी मेहरबानी क्यों?

सम्मेलन और फिर अपने जिला सम्मेलन का विवरण अलग से 'विशेष राजनीतिक' गतिविधियों के अंतर्गत दे रहे हैं जो कुछ अंतराल के बाद  क्रमवार प्रकाशित होता रहेगा। जिला सम्मेलन से पूर्व हम लोग दरियाबाद भी गए थे जैसा कि बड़ी ताईजी से  तब वायदा किया था जब बड़े ताउजी के निधन के बाद मै वहाँ गया था। हालांकि उसके 06 माह बाद ताईजी का भी निधन हो गया था। रिज़र्वेशन गंगा-जमुना से आगरा सिटी से दरियाबाद का कराया था। गाड़ी रात को जाती थी लेकिन हम लोग मय सामान के शाम को ही शरद मोहन के क्वार्टर पर आ गए थे। खाना घर से ही खा कर चले थे परंतु शालिनी ने अपनी माता के कहने पर थोड़ा कुछ खा लिया था,यशवन्त ने भी चखा होगा ,मैंने तो सिर्फ चाय ही ली। गाड़ी आने से पहले शरद साहब ने किसी को भेज कर सामान उठाने मे मदद की थी वह स्टेशन पर ड्यूटी मे थे। अगले दिन हमने गाड़ी को लखनऊ स्टेशन पर छोड़ दिया क्योंकि उस दिन गाड़ी को सुल्तानपुर होकर जाना था।  'देहरा एक्स्प्रेस' पकड़ कर हम लोग दरियाबाद पहुंचे। स्टेशन से मथुरा नगर के घर पहुँच कर घोर ताज्जुब हुआ जब 'ताला' लगा देखा। बारामदे मे पड़े तख्त पर बैठ गए। मै डाक से वहाँ  पहुँचने का पत्र ऋषिराज के नाम भेज चुका था। शालिनी का व्यंग्य था कि,क्या आपके घर की रस्म  है बहुओं का स्वागत  घर पहुँचने पर  'ताला बंद ' करके चले जाने से होता है? मैंने थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद भी किसी के न आने पर 'रायपुर' सुरेश भाई साहब के घर जाने का निश्चय करा।

कुछ देर मे ऋषिराज आ गए ,वहाँ तब ऋषिराज और उमेश रहते थे तथा नरेश लखनऊ मे माधुरी जीजी के पास राजाजीपुरम मे।

क्रमशः...... 

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शनिवार, 3 दिसंबर 2011

आगरा/1992 -93 (भाग-1)


सेठ जी के मित्र और 'शू चैंबर' के प्रेसीडेंट शंकर लाल मुरजानी साहब अक्सर उनकी दुकान मे आकर सो जाते थे। वह रश्मि एन्क्लेव,कमला नगर मे रहते थे। एक दिन मुझ से बोले माथुर साहब क्या बात है बेहद कमजोर हो गए हो। मैंने कहा साहब जीवन  चलाने हेतु कमजोर होना जरूरी है,तो फिर वह बोले और कमजोर कर दें?मैंने कहा यदि आप उचित समझते हैं तो कर दें। उन्होने कहा कल सुबह मुझे घर पर मिलो। जब अगले दिन मै उनके घर गया तो उन्होने कहा तुम्हारा सेठ बड़ा मतलबी है जब फँसता है मेरे पास आता है,मैंने उससे कहा था कि,माथुर साहब को पूछो मेरे यहाँ पार्ट-टाईम करेंगे? एक साल हो गया कहता है पूछने का टाईम नहीं मिला। इसलिए मैंने तुमसे सीधे बात की। मेरे घर पर आकर डेढ़ घंटा गर्मियों मे 7-30 से 9 और जाड़ों मे 9 से 10-30 सुबह सेल्स टैक्स-इन्कम टैक्स का काम कर देना शुरू मे रु 600/- दूंगा। घर के नजदीक होने तथा उनके व्यापारी नेता होने के कारण उनसे व्यवहार रखना घाटे का सौदा नहीं था,मैंने स्वीकार कर लिया। वह 'शू फेक्टर्स फ़ेडेरेशन ' के वाईस प्रेसिडेंट थे और राज कुमार सामा जी प्रेसिडेंट जो भाजपा के बड़े नेता थे। हालांकि वह जानते थे कि मै भाकपा मे सक्रिय हूँ फिर भी उन्हे स्पष्ट कर दिया। वह बोले हमारा -तुम्हारा संपर्क सिर्फ जाब तक है हम अपनी राजनीति मे तुम्हें नहीं शामिल करेंगे और न तुम्हारी राजनीति मे दखल देंगे।

पता नहीं क्यों सेठ जी उनके घर मेरे काम स्वीकारने से खुश नहीं थे?वह खिचे-खिचे रहने लगे। मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था लेकिन मै और सतर्क हो गया। इससे पूर्व वह खुद मुझे तीन अलग-अलग पार्ट-टाईम जाब दिला चुके थे परंतु उन्हें अपने मित्र के यहाँ मेरा जाब करना अखर गया था। मैंने अपने भाकपा ,जिला मंत्री मिश्रा जी से भी चर्चा की थी। उन्होने बताया कि ये जूता व्यापारी भाजपा के होते हुये भी कम्यूनिस्ट पार्टी से दबते हैं क्योंकि तमाम लोग 'सोवियत यूनियन' को जूता सप्लाई करते हैं। रूस से पेमेंट मिलना निश्चित रहता है। कभी कोई दिक्कत होती है तो पार्टी के बड़े नेताओं से संपर्क साधते हैं। इसी लिए आपका कम्यूनिस्ट होना उन्हे नागवार नहीं लगता है,और वह सेठ भी आपको अपनी तरफ से हटाने की पहल नहीं करेगा।

जब रमेशकान्त लवानिया मेयर थे तब मिश्रा जी ने अपने घर के आस-पास सीवर की समस्या को उनके दफ्तर मे जाकर बताया तो उन्होने कहा था -अरे मिश्रा जी आपने आने की तकलीफ बेकार की फोन कर देते तब भी काम हो जाता। जो काम भाजपा का क्षेत्रीय पार्षद न करा सका वह भाकपा के जिलामंत्री की पहल पर चुटकियों मे हो गया। इस उदाहरण से मिश्रा जी ने मुझे समझाया था कि ये व्यापारी बड़े डरपोक होते हैं जब तक उनकी नब्ज आपकी पकड़ मे है वे आपको हटा नहीं सकते।

राजनीति और आजीविका के क्षेत्र मे सभी कुछ बदस्तूर चलता रहा। सिर्फ घरेलू क्षेत्र मे शालिनी का अपनी भाभी संगीता के प्रति बदला हुआ व्यवहार आश्चर्यजनक रहा। इस वर्ष की गर्मियों मे भी उनकी माँ जब 7-8 रोज के लिए बाहर गई तो शालिनी जल्दी-जल्दी सिटी के क्वार्टर पर जाती थीं। चूंकि तब तक स्कूल बंद नहीं हुये थे और उनकी माँ जल्दी गई थीं। यशवन्त को स्कूल छोडते हये मै शंकर लाल जी के घर चला जाता था। उनके घर से लौटने पर शालिनी साईकिल पर मेरे साथ सिटी क्वार्टर की परिक्रमा करके उसकी छुट्टी से पहले लौट आती थीं। वहाँ दिन भर रुकने की बजाए दो ढाई घंटे मे लौट लेना होता था। मै सेठ जी के यहाँ 6 घंटों की बजाए सिर्फ 3 घंटे काम तब कर पाता था ,खैर वह कहते कुछ नहीं थे। इसी क्रम मे एक बार शालिनी ने संगीता को कुछ इशारा किया और उन्होने मुस्करा कर जवाब दिया हाँ वायदा याद है आप बताइये किस गाने पर डांस करना है। शालिनी ने उन्हें कान मे कुछ कहा और उन्होने कहा ठीक है मौन डांस ही करेंगे गाएँगे नहीं। मै नहीं कह सकता कि कोई गाना भी था या नहीं। डांस मेरे समझ से परे था। मै तो सिर्फ इतना ही समझ सका कि डांस के नाम पर वह शरीर को मटकाना भर था। ऐसी हरकत ने केवल संगीता के शरीर मे उत्तेजना ही व्याप्त की और पूर्व की भांति जब स्वतः वस्त्र न खुले तो संगीता ने भाव-प्रदर्शन के सहारे उन्हे खोला ,नारा ढीला करने के नाम पर नीचे के वस्त्र हटाने से साफ हो गया कि बार-बार एक ही प्रक्रिया का दोहराया जाना किसी खास मकसद की छोटी कड़ी है। डी एस पी इंटेलीजेंस (जो मुगल होटल मे सेक्यूरिटी आफ़ीसर थे जब मैंने 1975 मे ज्वाईन किया था) के साथ बैठकें-चर्चाए व्यर्थ नहीं थीं उनसे कुछ न कुछ सीखा ही था। अच्छी या बुरी किसी प्रकार की प्रतिक्रिया मैंने कभी भी न दी। मैंने घर पर शालिनी से पूछना भी बंद कर दिया कि ऐसा करने का कारण क्या?

1990-91  मे आडवाणी की रथ-यात्रा और रामजन्म भूमि आंदोलन  द्वारा होने वाले अनिष्ट से जनता को आगाह करने हेतु यू पी मे भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने तब की सातों कमिशनरियों के मुख्यालयों पर 'सांप्रदायिकता विरोधी रैली ' के आयोजन का फैसला किया था ।  मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सभी जिलों मे रैली करने का प्रस्ताव किया ,उसी क्रम मे मथुरा मे भी एक रैली हुई थी। मै अपने भाकपा साथियों के साथ ट्रेन से मथुरा गया था। शालिनी का कहना था कि उनकी छोटी बहन सीमा के घर भी हाल-चाल लेता आऊ;  क्योंकि योगेन्द्र चंद्र का क्वार्टर मथुरा जंक्शन पर ही था मैंने साथियों से सीधे रैली स्थल पर मिलने का वादा करके प्लेटफार्म से ही क्वार्टर का रास्ता पकड़ा। तभी थोड़ी देर पहले योगेन्द्र दिल्ली की गाड़ी पकड़ने हेतु गए होंगे और सीमा ने समझा था कि उनकी गाड़ी छूट गई होगी जिससे वह घर लौट आए होंगे । उन लोगों को मेरे पहुँचने की सूचना नहीं थी। सीमा ने दरवाजे खोले तो अस्त-व्यस्त और पुराने-फटे कपड़ों मे थी ,सफाई करते -करते बेल बजने पर यह सोच कर दरवाजा खोला था कि योगेन्द्र ही उल्टे -पैरों लौटे होंगे। उस दशा मे पहले कभी सीमा को नहीं देखा था। सीमा ने सोफ़े पर बैठाने के बाद अपनी बेटी (जो जब 6-7 वर्ष की रही होगी )से पानी भिजवा दिया और खुद कपड़े बदलने के बाद ही आई। यह अंतर था शरद मोहन और उनकी पत्नी संगीता के चरित्र और शरद की छोटी बहन सीमा के चरित्र का ,गफलत की बात और थी जो सीमा ने दरवाजा खोला था तब की दशा मे और फिर बैठ कर बात-चीत करते समय की दशा मे। मुझे ताज्जुब भी था कि आवारा माँ, भाइयों,भाभी का असर सीमा पर भी अपनी और  बहनों की ही तरह  बिलकुल नहीं पड़ा था।बेटियाँ  अपनी माँ के चरित्र से प्रभावित नहीं थीं जबकि बेटे माँ के चरित्र से प्रभावित थे। कमलेश बाबू के जिगरी दोस्त और भतीज दामाद कुक्कू(जिनकी बेटी की नन्द कमलेश बाबू की छोटी बेटी की देवरानी है) तो अश्लील पुस्तकें ला कर बिस्तर के नीचे छिपा कर रखते थे ताकि उनकी बहनें भी पढे और प्रभावित हों परंतु उनकी बहनें अपने आवारा भाई से प्रभावित नहीं हुई। यह एक अच्छी बात रही।

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