गुरुवार, 24 जनवरी 2013

21 दिसंबर 12 और 23 जनवरी 13 की दास्तान---विजय राजबली माथुर

21 दिसंबर 2012 को माया केलेनडर के अनुयायी 'जियो टी वी' आदि ने 'प्रलय दिवस' के रूप मे प्रचारित कर रखा था।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ,लखनऊ के ज़िला मंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने इसी दिन अपनी एक पुत्री की शादी की सायत रखी थी।   उससे एक  दिन  पूर्व रात्रि से ही मौसम मे अचानक ठंड काफी बढ़ गई थी सुबह काफी घना कोहरा था किन्तु बाद मे दिन मे धूप अच्छी हो गई थी। शाम को उनके यहाँ कार्यक्रम  मे आए कई कामरेड्स से मुलाक़ात हुई। प्रदेश के एक पदाधिकारी साहब मुझ से ज्योतिष के प्रश्न पर वार्ता करने लगे। ज्योतिष विरोधी यह कामरेड कुछ ही दिन पूर्व अपनी पुत्री के विवाह हेतु मुझसे ज्योतिषीय परामर्श ले चुके थे और उसका लाभ भी उठाया था। उनकी सफाई थी कि,एक कम्युनिस्ट होने के नाते उनका ज्योतिष पर विश्वास नहीं है परंतु लड़के वालों की इच्छानुरूप जन्मपत्री देनी होती है। 

मैंने उनको उपरोक्त संदर्भित लिंक पोस्ट का हवाला देकर बताया कि हम भी अंध-विश्वास-पाखंड और ढोंग का प्रबल विरोध करते हैं किन्तु ग्रह-नक्षत्रों के वैज्ञानिक प्रभाव को नकारना मानव अहित मे मानते हैं। तब उन्होने एक अलग कहानी बता कर उनके द्वारा ज्योतिष का विरोध करने की प्रवृत्ति को जायज ठहराया। उनका कथन था कि जब उनके बाबाजी (grand father)का देहावसान हुआ तब वह दो-ढाई वर्ष के थे और उनके पिताजी अवैतनिक छुट्टी पर रह कर लखनऊ मे उनका इलाज करा रहे थे और उस वक्त उनकी जेब मे मात्र एक रुपया ही शेष था। चूंकि उनके बाबाजी तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्र भानु गुप्त जी तथा IAS/IPS अधिकारियों के गुरु रहे थे अतः वे सब प्रतिदिन बलरामपुर अस्पताल मे उनको देखने आते रहते थे और व्यवस्था कराते रहते थे। उनकी अंतिम क्रिया की व्यवस्था भी प्रशासनिक तौर पर हुई। इस घटना के बाद उन पदाधिकारी साहब के पिताजी ने ब्राह्मण वंश मे होते हुये भी तेरहन्वी आदि कुसंस्कारों का परित्याग करके सदा के लिए 'धर्म-कर्म' को त्याग दिया था वह खुद भी उसी परंपरा का अनुसरण करते हुये ही कम्युनिस्ट बने हैं। 

चाहें कम्युनिस्ट हों या और कोई प्रगतिशील या वैज्ञानिक धर्म को अफीम कहते हैं। नतीजा यह होता है कि,'धर्म' जिसका आशय शरीर और ज्ञान को धारण करना है यथा- 'सत्य,अहिंसा (मनसा-वाचा-कर्मणा),अस्तेय,अपरिग्रह,ब्रह्मचर्य' को वे ठुकरा देते हैं और असफलता का सामना करते हैं जैसा कि 1991 मे रूस मे साम्यवादी शासन के पतन से सिद्ध हो जाता है। भारत मे भी 'स्टालिन' की सलाह की उपेक्षा करके वे रूसी लकीर के फकीर बने चले आ रहे हैं। इस सब का दुष्परिणाम यह होता है कि शोशंणकारी/उत्पीडंनकारी शक्तियाँ जनता के समक्ष 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' को धर्म के रूप मे पेश करके उसे उल्टे उस्तरे से मूढ़ने मे सफल हो जाती हैं।  

यदि जनता को वास्तविक धर्म और वास्तविक 'भगवान'=भ (भूमि)+ग (गगन-आकाश)+व (वायु-हवा)+I(अनल-अग्नि)+न(नीर-जल) जो खुद ही बने होने के कारण ' खुदा' कहलाते हैं और उत्पत्ति,स्थिति,संहार = G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय) की प्रवृत्ति के कारण GOD भी कहे जाते हैं के बारे मे समझाया जाये तो वह व्यापारियों/उद्योगपतियों के ढोंगवाद को धर्म के धोखे मे न पूजे। किन्तु साईंसदा/प्रगतिशील कहलाने वाले लोग ही पाखंड और ढोंग के लिए खुला मैदान छोड़े रख कर उसे पोसते हैं।

23 जनवरी 2013 को मुझे सोशलिस्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष और फारवर्ड ब्लाक के प्रदेशाध्यक्ष महोदय ने तीन विद्यालयों मे 'नेताजी सुभाष चंद्र बोस'के विषय मे अपने लेख से परिचित कराने को कहा था। 

जिस दिन मैंने उनको कार्यक्रम मे भाग लेने की सहमति दी उसी दिन रात्रि 08-30 बजे एक पुराने क्लाईंट 23 जनवरी 2013 को ही अपने मकान का गृह-प्रवेश हवन मुझसे करवाने का आग्रह लेकर आए। यह मुहूर्त उन्होने एक कांग्रेसी सांसद के पुरोहित से निकलवाया था जो उनके लिए उचित भी नहीं था किन्तु वह सबको निमंत्रण पत्र भेज चुके थे। अतः उस दिन उनके लिए शुभ समय चुन कर उनको हामी भर दी जिसके लिए 'नेताजी सुभाष' के कार्यक्रमों को छोड़ने का खूब मलाल रहा। हमेशा ढंग से नियमानुसार हवन करने वाले उन साहब ने बहुत महत्वपूर्ण हवन भी अनमनेपन से किया ,मेरे बताने के बावजूद मेरी राय की उपेक्षा करके उन्होने अपने निवास मे 'मंदिर' भी बनवा कर खुद ही वास्तु-विकार भी उत्पन्न कर रखा है। अपने कर्मों का मर्म वे ही जानें मैंने अपनी ओर से पूर्ण विधि-नियमों के अनुसार उनका हवन सम्पन्न करा दिया है। 

उनके पिताजी ने अपने जीवन की कारुणिक गाथा का ज़िक्र मुझसे निजी वार्ता मे  किया कि उनकी 06 वर्ष की आयु मे उनके पिताजी (अर्थात क्लाईंट के पितामह) का निधन हो गया था वह श्रम-मजदूरी करते थे और उनके निधन के बाद उनकी माताजी ने बड़े कष्टों से उन लोगों को पाला-पोसा और पढ़ाया। बड़े होने पर उनको खुद भी रात्रि मे मजदूरी करके दिन मे अपनी पढ़ाई जारी रखनी पड़ी। LLb करके वह न्यायिक सेवा मे आ गए तथा हाई कोर्ट ,अलाहाबाद से सेवा निवृत होने के बाद भी 72 वर्ष की आयु तक विभिन्न आयोगों के सदस्य के रूप मे अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। उनके तीनो  पुत्र क्रमशः डाक्टर,एस पी,इंजीनियर हैं। पुत्रियाँ भी अच्छे खानदानों मे हैं । वह इस सब को अपने लिए परमात्मा की कृपा-प्रसाद मानते हैं। अपने बचपन मे जो कठोर श्रम और अध्यन उन्होने किया उसका प्रतिफल उनकी संतानों को भी मिल रहा है उनके अनुसार यह सब उनकी ईमानदारी का प्रतिफल है। उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है।

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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

बात की बात कि बेबात की फिक्र ---विजय राजबली माथुर

 पिछली पोस्ट  मुझे एक ब्लागर साहब द्वारा ब्लाग से हट कर फेसबुक पर सक्रिय होने की बात पर लिखनी पड़ी थी तो यह पोस्ट भी उनके एक पोस्ट मे -नीचे लिखे इनवर्टेड कामा वाले वाक्यांश पर ही आधारित है।
" एक तो वैसे ही एक पोस्ट लिखने में घंटों ख़राब हो जाते हैं, फिर पढने वाले भी जब ज्यादा नहीं मिलते तो लो कॉस्ट बेनेफिट रेशो देखकर दम ख़म ही ख़त्म सा हो जाता है।"वाक्यांश से सिद्ध होता है कि जो लोग ब्लाग लेखन वाह-वाही बटोरने मात्र के लिए करते हैं उनके लिए फेसबुक पीड़ादायक है। ठीक भी है-'जाकी रही भावना जैसी,प्रभू तिन्ह मूरत तीन तैसी।'
फेसबुक और फेसबुक ग्रुप्स तो ब्लाग-पोस्ट पर विजिट बढ़ाने मे खासे कारगर सिद्ध हुये हैं बशर्ते कि ब्लाग पोस्ट जनहित मे हो तो।
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 वाहवाही के ख़्वाहिशमंद लोग वाहवाही न मिलने पर हताश व निराश हो सकते हैं परंतु यदि उद्देश्य वाहवाही न बटोरना होकर केवल जनहित हो तो कहीं भी कोई फर्क नहीं पड़ता है। स्वार्थी और चापलूस लोगों की राय पर किसी लेखक को क्यों निर्भर करना चाहिए?ब्लाग और फेसबुक की वरीयता या श्रेष्ठता का झगड़ा ही क्यों?जिस प्रकार 'चाकू-knife'एक डॉ के हाथ मे सर्जक है लेकिन एक डाकू के हाथ मे जानलेवा तो दोष 'चाकू' का नहीं उसके प्रयोग कर्ता का होगा ठीक उसी प्रकार ब्लाग/फेसबुक के उपयोगकर्ता की मानसिकता पर सदुपयोग/दुरुपयोग निर्भर है न कि किसी की श्रेष्ठता और किसी की निकृष्टता पर। लेखक की शब्दावली नहीं उसके चरित्र पर ध्यान दें।

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  • Salahuddeen Ansari vijay rajbali ji, aapney bilkul theek farmaya. Upkarno ko dosh detey hein aur nirantar unka galat prayog kar sahi parinamo ki asha kartey hein.


  • Bechu Giri mathur sahab , aapne bilkul thik likha hai lisi bhi masale me dosh sadhan ka nahi sadhak ka hota hai ki vah kishke liye tatha kiski keemat par sadhan ka estemal kar raha hai.
    14 minutes ago · Unlike · 1



    दोस्तों
    मेरे वर्ड प्रेस ब्लॉग पर एक अश्लील पोस्ट मेरी नज़र मे आई है। जो मेरी I D से प्रकाशित है।

    इस ब्लोग पर अधिकतर पोस्ट्स मैं ई मेल के द्वारा प्रकाशित करता हूँ जिसका कोड मेल की कोंटेक्ट लिस्ट में भी एड है।

    वास्तव में कई दिन से मुझे इस बात का शक है कि मेरी जी मेल आई डी को हैक करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कौन लोग ऐसा कर रहे हैं या कर सकते हैं इसकी भी मुझे जानकारी होती जा रही है।

    फिलहाल वर्डप्रेस पोस्टिंग कोड और ई मेल पासवर्ड मैंने बादल लिया है पोस्ट को वर्डप्रेस को भी रिपोर्ट कर दिया है

    पाठकों को हुई असुविधा के लिए मुझे बहुत खेद है।

    यशवंत माथुर
    Unlike · · · 18 minutes ago ·

    • You, Sanjog Walter and 2 others like this.
    • Yashwant Mathur यह संभवतः ट्रायल है तभी ब्लॉग्स्पॉट पर ऐसी ओछी हरकत नहीं हुई है। सुरक्षा के मेरे उपाय जारी हैं।
    • Chandrakanta Ck ओह!अब ऐसे गंभीर मंच को भी अपनी खुराफाती गतिविधियों का अड्डा बनाने में जुट गए हैं कुछ लोग ..
      • Vijai RajBali Mathur जहां तक संभावना है इस प्रकार की बेहूदा हरकतों के पीछे पूना प्रवासी भ्रष्ट-धृष्ट ब्लागर के चमचा ब्लागर्स का हाथ हो सकता है।

        उक्त बुद्धिमान ब्लागर साहब को गुमान है कि ब्लाग लेखक फेसबुक लेखक के मुक़ाबले गंभीर और परिपक्व होते हैं उनकी जानकारी के लिए 'यशवंत' के इस फेसबुक स्टेटस को उद्धृत कर रहा हूँ कि,किस प्रकार ब्लाग लेखक निकृष्ट धृष्टता करते हैं जबकि ब्लाग पर उसे रोकने की कोई व्यवस्था भी नहीं है । इसके मुक़ाबले फेसबुक पर धृष्टता करने वाले को 'ब्लाक' किए जाने की सुविधा भी उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त जो सच्चाई है वह यह है कि,-
        Blog and Face book are  supplementary and complimentary  to each other. 

        हम ब्लाग  पोस्ट को फेसबुक और इसके विभिन्न ग्रुप्स मे लिंक देकर अधिक से अधिक लोगों की जानकारी मे पहुंचा सकते हैं जबकि केवल ब्लाग लेखन केवल ब्लाग लेखकों तक ही सीमित रह जाता है। 
        पूना प्रवासी भ्रष्ट-धृष्ट ब्लागर द्वारा मुझसे खुद चार जन्मपत्रियाँ निशुल्क प्राप्त करने के बाद 'रेखा जी' के राज्यसभा मे मनोनीत होने पर मेरा आंकलन सही सिद्ध होने पर मेरे ज्योतिष ज्ञान के  विरुद्ध अपने चमचा ब्लागरों से   
        आधारहीन ब्लाग पोस्ट लिखवाये गए हैं जिनमे ज्योतिष को मीठा जहर और 100 प्रतिशत झूठा बताया गया है। यशवंत के विरुद्ध भी सुनियोजित षड्यंत्र चलाये जा रहे हैं उपरोक्त उद्धृत वारदात भी उसी की एक कड़ी प्रतीत होती है। तो यह है ब्लाग लेखको की घृणित करतूतें जिनकी सराहना वह बुद्धिमान ब्लागर साहब करते हैं वैसे अपनी पोस्ट मे उन साहब ने पूना प्रवासी उस भ्रष्ट-धृष्ट ब्लागर की भी अपार प्रशंसा की थी।  

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गुरुवार, 3 जनवरी 2013

डॉ दराल साः को खुला पत्र ---विजय राजबली माथुर

विगत वर्षों की भांति इस बार मैंने अन्य ब्लाग्स व ब्लागर्स के संबंध मे अपना अवलोकन नहीं दिया था और देना भी नहीं चाहता था परंतु डॉ टी एस दराल सा :  ने अपने अवलोकन के एक खंड की अंतिम पंक्तियों मे मेरा उल्लेख किया है जिसका उत्तर मैंने अपनी टिप्पणी के रूप मे उस लेख पर इस प्रकार दिया था---

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हम से है ज़माना : दिनांक 28-12-2012

अत्यंत गुणवान और क्रातिकारी विचार रखने वाले श्री विजय माथुर जी के विचारों को लोग कम ही समझ पाते हैं. इसलिए वे अब ब्लॉग पर कम और फेसबुक पर ज्यादा नज़र आते हैं.     
विजय राज बली माथुरJanuary 01, 2013 6:47 PM
धन्यवाद डॉ साहब। वैसे मैं ब्लाग्स ('क्रांति स्वर','विद्रोही स्व-स्वर मे','कलम और कुदाल','जनहित मे'लगातार सक्रिय हूँ और श्रीमती जी के ब्लाग 'पूनम वाणी' की टाईपिंग भी खुद ही करता हूँ। शायद विवादों से बचने के कारण ब्लाग्स पर टिप्पणियाँ देने से संकोच करता हूँ इसीलिए आपने ऐसा निष्कर्ष निकाला होगा।
सुंदर है,वाह-वाह,खूब बढ़िया जैसे लच्छेदार शब्द मेरे पास नहीं हैं और लोगों को इनकी ही ख़्वाहिश रहती है अतः टिप्पणी देने से बचने लगा हूँ। 

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इसी खंड की पाँचवी पंक्ति मे डॉ साहब ने उल्लेख किया है-"रश्मि प्रभा जी की प्रभावशाली रचनाएँ अभी भी मन मोह रही हैं "
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मैंने ब्लाग लेखन के प्रारम्भ मे ही घोषणा की हुई है कि।मेरा लेखन-'स्वांतः सुखाय,सर्वजन हिताय' है। मैंने टिप्पणी बाक्स के ऊपर ही यह भी घोषणा की थी कि 'यह ब्लाग टिप्पणियों का मोहताज नहीं है'। अतः डॉ साहब का यह आरोप कि-"श्री विजय माथुर जी के विचारों को लोग कम ही समझ पाते हैं. इसलिए वे अब ब्लॉग पर कम और फेसबुक पर ज्यादा नज़र आते हैं. "-  मेरी समझ से बाहर है। मैंने अपने एक लेख मे खुद ही स्पष्ट लिखा था कि मैं जानता हूँ कि हमारे समकालीन लोगों को मेरे विचार अच्छे नहीं लगेंगे किन्तु मैं आने वाली पीढ़ियों के हितार्थ अपना लेखन करता हूँ और करता रहूँगा। मैं टिप्पणियों को लेन-देन  की धारणा से नहीं देखता हूँ यदि किसी के विचार अच्छे हैं तो निसंकोच अपनी समझ के अनुसार उसका उल्लेख करता हूँ अन्यथा अपना दृष्टिकोण भी बता देता हूँ किन्तु लेखक को संतुष्ट करने हेतु ख्वाम खाह की झूठी तारीफ़ों के पुल नहीं बांधता हूँ जैसा कि ब्लाग जगत का प्रचलन है। ब्लाग जगत मे कुछ लेखक खुद को खुदा और दूसरों को तुच्छ समझते हैं यही सबसे बड़ा कारण है कि मैंने टिप्पणियाँ देना बंद कर दिया है जिससे डॉ साहब ने यह निष्कर्ष निकाल लिया कि मैंने ब्लाग अध्ययन कम कर दिया है । बात जहां तक फेसबुक की है मैं उसे ब्लाग के 'पूरक'के रूप मे लेता हूँ। फेसबुक ग्रुप्स के माध्यम से काफी ज़्यादा लोगों तक ब्लाग मे व्यक्त विचारों का प्रसारण सुगमता से हो जाता है जबकि केवल ब्लाग जगत के आसरे रहने पर बात कुछ ही लोगों तक पहुँच पाती थी और फिर ब्लागर्स अपने थोथे  अहम व पूर्वाग्रहों  के कारण उसे ठुकरा देते थे। ब्लाग्स के संबंध मे अपनी पुस्तक'मीडिया समग्र' मे प्रो .डॉ जगदीश्वर चतुर्वेदी जी ने लिखा है-
"दसवां खण्ड- ब्लॉग संस्कृतिःतमाशबीनों की दुनिया"
वस्तुतः अधिकांश ब्लाग-लेखक तमाशबीन के तौर पर ही लिखते और एक-दूसरे की झूठी पीठ थपथपाते रहते हैं। मैं इस भेड़-चाल से बहुत दूर हूँ इसीलिए ब्लाग से दूर नज़र आता हूँ। फिर फेसबुक मे यह भी सुविधा है कि जिनसे हमे असुविधा है उनको हम अंफ्रेंड/ब्लाक करके छुटकारा पा सकते हैं किन्तु ब्लाग्स मे ऐसा करना शायद संभव नहीं है। 

डॉ साहब ने जिन नामों का उल्लेख किया है उनमे से डॉ दिव्या श्रीवास्तव व पी सी गोदियाल  जी की इसलिए प्रशंसा कर सकता हूँ कि वे राजनीतिक रूप से मुझसे 180 डिग्री के फासले पर होते हुये भी अभद्र व अश्लील भाषा के प्रयोग से बचे रहे हैं। अतः एक-दूसरे के लेखन पर टिप्पणियाँ न करना ठीक भी है और संतुलित भी। 

जिन राज भाटिया साहब का डॉ साहब ने उल्लेख किया है उन्होने  'हज़ारे आंदोलन' के दौरान फेसबुक पर मुझे 'नान-सेंस'तथा इंजीनियर सतीश सक्सेना साहब ने 'वाहियात' कह कर संबोधित किया था अतः उन दोनों को ब्लाक करके उनके ब्लाग्स अनफालों कर दिये थे। बाद मे सक्सेना साहब ने ईमेल के जरिये अपने बेटे व बेटी की एंगेजमेंट तथा शादियों पर उनके लिए आशीर्वाद देने को कहा था तो उन बच्चों को ईमेल के मार्फत शुभकामना व आशीर्वाद प्रेषित कर दिया था। एक और हरफन मौला ब्लागर मृत्युंजय कुमार राय की उस लेख पर टिप्पणी मौजूद है उनके व उनके बेटे माधव के ब्लाग्स भी अनफालों व उन दोनों को भी ब्लाक इसलिए करना पड़ा क्योंकि राय साहब ने मुझे 'बंगाल की खाड़ी मे डुबो देने' का ऐलान किया था।

ब्लाग जगत के केवल ये ही नमूने नहीं हैं। डॉ साहब का कहना है-"रश्मि प्रभा जी की प्रभावशाली रचनाएँ अभी भी मन मोह रही हैं "

(रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला

Replies
महेन्द्र श्रीवास्तवApr 27, 2012 11:00 AM
आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें, मेरी भी शुभकामना है)"
प्रस्तुत टिप्पणी के माध्यम  से  'रश्मि प्रभा जी  ने ' ब्लाग जगत मे अपने चमचा ब्लागर्स के जरिये मेरे विरुद्ध अनर्गल और अबाध अभियान चलाया था जो अभी भी गतिमान है वह भी तब जबकि रश्मि प्रभा जी ने चार जन्म पत्रियों  का निशुल्क विश्लेषण मुझसे प्राप्त किया है और उनकी शिष्या ने भी चार जन्म पत्रियों का निशुल्क ही विश्लेषण प्राप्त किया है। 'हवन','ज्योतिष' आदि को निशाना बना कर लेख व टिप्पणियाँ खुले आम लिखे गए हैं। दूसरे ब्लागर्स की पोस्ट तक इन लोगों ने डिलीट कराई हैं अपने चमचों के द्वारा मुझे सपरिवार नष्ट करने की धमकियाँ दिलवाई हैं और वह खुद तांत्रिक प्रक्रियाओं से मेरे विरुद्ध षड्यंत्र चला रही हैं । जिन रश्मि प्रभा जी ने अपने  प्रबल चमचा ब्लागर से ब्लागर सम्मेलन के संयोजक ब्लागर रवीन्द्र प्रभात जी की कड़ी निंदा करवाई थी उनही के अगले आयोजन की अब निर्णायक बन गई हैं । उनके सह-संयोजक डॉ ज़ाकिर अली रजनीश जी से ज्योतिष को 100 प्रतिशत झूठा सिद्ध करवाया है। 

 ऐसे ब्लागजगत के लोगों से यदि 'टिप्पणियात्मक संबंध' मैंने सीमित कर दिया है तो गलत क्या किया है?यदि डॉ साहब को लगता है कि मैं ब्लाग जगत को कम समय दे रहा हूँ तो उसका कारण मेरे द्वारा टिप्पणियाँ न लिखना ही है।

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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

शासन,धन,ऐश्वर्य,बुद्धि मे शुद्ध-भाव फैलावे---विजय राजबली माथुर

अन्न,भूमि,गिरि,भानु,दिशाएँ,मेघ शुभंकर होवें। 

शांति-स्नेह,संतोष सुहावे,कलह-कालिमा धोवे। । 


पवन,प्रकाश,चंद्र,रवि भू पर दुख संताप नसावें। 

दिवस,प्रमोद-पूर्ण रजनी भी सुख-सौन्दर्य बढ़ावे। । 


(ऋग,मण्डल-7/सूक्त-35/मंत्र-3 एवं 4 )


निर्भय होकर पशु प्राणी जगती मे हर्ष मनावें। 

कर्म योनि को पाकर मानव निज कर्तव्य निभावें। ।


(यजु,अध्याय-36/मंत्र-8)


समस्त संसार के समस्त प्राणियों को वर्ष 2013 शुभ एवं मंगलमय हो

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