रविवार, 19 जुलाई 2015

कुछ आज की :कुछ कल की ' टाईम नहीं है ' --- विजय राजबली माथुर

टाईम नहीं है :

कल दो पहर पौने दो बजे एक साहब का फोन आया कि यदि शाम को पानी नहीं बरसा तो वह अपने भाई साहब के काम से आएंगे। शाम तक मौसम सूखा रहने पर पौने छह बजे उनकी सूचना आई कि कुछ तकनीकी कारणों से वह न आ सकेंगे फिर कल -वल में देखेंगे।
इस प्रसंग ने कुछ पुरानी यादें ताज़ा कर दीं। बात 15 वर्ष पुरानी 2000 ई .की हैं। मैंने सरला बाग,दयालबाग (आगरा ) में अपना ज्योतिष कार्यालय खोला था। आर्यसमाज के नेता और व्यापारी एस पी कुमार साहब का सुझाव था कि खुद को व्यस्त दिखाओ और जब कोई बुलाये तो उसको कहो कि टाईम नहीं है बाद में समय लेना। इसी प्रकार हमारे पड़ौसी नरेंद्र चौहान साहब का सुझाव था कि एक पर्दा लगा कर पार्टीशन कर लो तथा बाहर लोगों से इंतज़ार करवाओ जिससे लगे कि काफी व्यस्त हो।
कुमार साहब को हार्ट अटेक हुआ और उनकी दुकान में चोरी भी हो गई ,वह व्यापार समेट कर बंगलौर चले गए। चौहान साहब पर भी हार्ट अटेक ने धावा किया। सब को त्वरित उपचार की ज़रूरत थी यदि तब डॉ/चिकित्सक भी टाईम के नाम पर उनसे इंतज़ार करवाते तो उन पर कैसी बीतती?
मैंने उनमें से किसी के सुझाव को नहीं माना था और लोगों को तत्काल उपलब्ध रहता था। यह अलग बात है कि जिनको मैंने मदद की उन लोगों में से अधिकांश ने मतलब निकल जाने के बाद लात ही मारी। किन्तु वक्त पर मुझे अनजान-अपरिचित लोगों की सहायता मिलती रही है।
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कुछ अराजक व शरारती स्वभाव के लोग जब अपने खास संबंधियों को भी न बख्शें और किसी अन्य से यह अपेक्षा करें कि वह/वे उनके बहकावे में आकर उनके जाल मे फंस जाएँगे। तब इसे उन ज़रूरत से ज़्यादा चालाक लोगों की 'परले दर्जे की मूर्खता' ही माना जाएगा।
Satyanarayn Tirpathi पर ऐसेलोग ही अपने को सबसेज्यादा होशियार मान के चलते है पर समाज मेउनकाआत्मिक सम्मान उनकास्वय कापरिवार ही नहीकरता ॽ
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 टाईम या समय की बात पर ध्यान आता है कि हमारे नानाजी डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब (सुपुत्र श्याम सुंदर लाल, मुंसरिम साहब ) जब किसी से मिलने जाते थे तो जितना समय घर से निर्धारित जिसके लिए करते थे उसका पूरी तरह पालन करते थे। एक वर्ष होली मिलने मुझे भी साथ ले गए थे। शाहजहांपुर के मशहूर वकील रहे भगवती प्रसाद जी के दामाद ओंकार बाबू, वकील साहब के यहाँ ठीक दस मिनट बाद उठ लिए। बहादुरगंज निवासी एक परिचित के यहाँ से बीस मिनट बाद उठ लिए । उनके पिताजी के एक मित्र पहले लकड़ी की टाल चलाते थे जो उस समय अवस्था के कारण केवल विश्राम पर रहते थे उनको 'चाचा' का सम्बोधन देते थे जबकि वह रिश्तेदार नहीं थे उनके लिए तीस मिनट का समय निर्धारित किया था जिसे उनके कहने पर बढ़ाते-बढ़ाते डेढ़ घंटा हो गया था तब मेरा बहाना करके बोले कि इसकी माँ इसे याद कर रही होगी अब इजाजत दें जिस पर उन्होने जाने दिया। मैं ग्यारह वर्ष का रहा हूंगा और नानाजी के साथ होने से माँ को चिंता का सवाल भी नहीं था। 
लौटते में नानाजी से मैंने ऐसा कहने का कारण पूछा तो उनका कहना था कि तुम साथ न होते और ऐसा न कहते तो वह दो-तीन घंटा और रोकते। नानाजी मरीजों को निशुल्क दवा वितरित करते थे फिर भी उनका इतना ख्याल करते थे कि वे खाली न लौट जाएँ। समय के बाद भी जो मरीज उनके पास आ गया उसे वह लौटाते नहीं थे चाहे पूजा बीच में ही छोड़ कर उठना पड़े उसका हाल जान कर दवा ज़रूर देते थे। गरीबों के प्रति उनको हमेशा हमदर्दी रहती थी यद्यपि खुद भी अमीर नहीं थे। अपनी पेंशन से ही परोपकार के लिए भी खर्च करते थे। 
जहां गरीब मरीजों के लिए उनके द्वार चौबीसों घंटे खुले थे वहीं रिशतेदारों के व्यवहार के अनुसार उनसे मिलने का समय : टाईम निर्धारित करते थे। गैर रिश्तेदार किन्तु पिता के मित्र 'चाचा' के लिए निर्धारित समय से तीन गुना अधिक समय दिया तो उनके असीम प्रेम के कारण ही।  मेरे ही सामने की बात है कि एक बार जब नानाजी कुछ कमरे बनवा रहे थे वह मिलने आए थे नानाजी ने उनसे ज़िक्र किया मरम्मत के नाम पर सिर्फ पाँच बोरी सीमेंट का परमिट मिला है बड़ी दिक्कत है। वह बोले नहीं थे लेकिन अपने नाम से पाँच बोरी का परमिट बनवा कर नानाजी को दे गए और बोले इसमें से एक बोरी उनको देकर बाकी चार बोरी वह रख लें और उस एक बोरी सीमेंट का मूल्य नानाजी को सौंप गए थे। ऐसे  मददगार गैर रिश्तेदार 'चाचा' के लिए अधिक टाईम : समय देना न्याय संगत ही है। 
उस तुलना में जब अब देखता हूँ तो लगता है कि नानाजी के समय : टाईम की बात और थी आज के समय में किसी के लिए अपना समय या टाईम निकाल कर मदद कर देना बड़ी मूर्खता ही है क्योंकि जिसको मदद देते हैं वह एहसान मानने की बजाए मुझको ही गरजू = जरूरतमन्द समझ कर मेरा ही उपहास उड़ाता है। अतः जो लोग टाईम नहीं है का बहाना बना कर अपने सगे-संबंधियों को धोखा देते हैं वे ही आज के व्यावहारिक जीवन में सफल व सम्मानित होते हैं।

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