मंगलवार, 24 जनवरी 2012

विशेष स्मृति-माधुरी जीजी




20जनवरी की रात मे नरेश का अचानक फोन आया कि 19 जनवरी 2012 की दोपहर दो बजे माधुरी जीजी इस दुनिया को छोड़ गई हैं। 21 ता .की शाम को उनके निवास पर शान्ति हवन होगा और उसमे मुझे शामिल होने को उन्होने कहा। जहां तक माधुरी जीजी का प्रश्न था उनका व्यवहार सभी के साथ मधुर था मेरे प्रति भी। अतः उनके इस कार्यक्रम मे शामिल होने मे हर्ज नहीं था। पूनम को भी वही एकमात्र ऐसी नन्द लगीं जिन्हें उनसे लगाव रहा। इसीलिए उनके निधन के समाचार से पूनम को रुदन आ गया जबकि अपने माता-पिता के निधन के समय भी पूनम संयम बनाए रहीं। इच्छा उनकी भी थी माधुरी जीजी के घर चलने की किन्तु कुछ उनकी तबीयत और कुछ मेरे अपने राजनीतिक कार्यक्रमों के कारण उन्हें साथ ले चलना संभव नहीं हुआ। मुझे घर से 11 बजे निकालना था क्योंकि 12 बजे पार्टी कार्यालय मे हमारी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र जारी करने की प्रेस वार्ता थी एवं उसके बाद जिला काउंसिल की बैठक भी। लिहाजा ढाई बजे मै बैठक समाप्त होते ही वरिष्ठ नेताओं को बता कर राजीपुरम के लिए चला। अमीनाबाद से टेम्पो पकड़ कर उनके घर तीन बज कर 53 मिनट पर पहुँच गया। हवन मेरे सामने ही प्रारम्भ हुआ और 04-45 पर समाप्त भी हो गया। आर्यसमाजी पुरोहित थे परंतु उन्होने विधान के अनुसार हवन नही कराया था क्योंकि उन्हें कहीं दूसरी जगह भी जाना था।




                                                      (1996  मे लिया गया माधुरी जीजी का चित्र)

हवन के बाद मैंने जीजी के बड़े पुत्र शरद से पूछा कि उनकी बीमारी के समय क्यों नहीं सूचित किया?शरद ने मौन रखा और अपने ऋषि मामा की ओर मुखातिब हो लिए। उमेश जो यहीं अशरफाबाद मे रहते हैं उनसे पूछा तो जवाब था तब जल्दी इलाज की थी। नरेश का जवाब था आपका फोन नंबर गायब हो गया था फिर गुड़िया (माधुरी जीजी की बेटी) से लेकर सूचित किया था। वस्तुतः 2009 मे लखनऊ आने के बाद हम सबसे पहले माधुरी जीजी के ही घर जाना चाहते थे किन्तु दरियाबाद से नरेश ने सूचित किया उनकी बेटी हमारी ही कालोनी मे है उससे मिल लूँ। गुड़िया ने तब बताया था कि जीजी को डायलिसिस कराना पड़ रहा है जब हम 20जनवरी 2010 को गुड़िया के घर गए थे। अतः 27 जनवरी 2010 को हम माधुरी जीजी के घर गए वह तो काफी उल्लास के साथ मिली थी। शरद को ही हमारा जाना शायद अच्छा न लगा था। वह अपने मौसा महेंद्र (कमलेश बिहारी के अजीज -ओ-अजीज हम प्याला  साढ़ू) के यहाँ भी मुझे जाने का दबाव बना रहे थे जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया था। शरद की पत्नी ने हम लोगों से उमेश के घर जाने को कह कर बीच का रास्ता निकाला था। उमेश ने भी  अपने घर अन्यमनसकता ही प्रदर्शित की थी। गुड़िया के घर अभय जी की जन्मपत्री देने गए थे तो वह भी अन्यमनसक ही दिखे। यही कारण था कि फिर मै किसी के भी घर नहीं गया। एक-ही दो दिन पहले पूनम ने कहा था कि माधुरी जीजी के घर चलना चाहिए उनका व्यवहार अच्छा है बच्चों के व्यवहार पर मै ध्यान न दूँ। मैंने कहा भी था कि किसी दिन चलेंगे किन्तु उसकी नौबत न आ पाई और जीजी दुनिया ही छोड़ गई ।

बउआ बताया करती थीं कि माधुरी जीजी जो मुझसे 10 वर्ष बड़ी थीं दरियाबाद मे मुझसे  06 माह छोटी अपनी बहन को छोड़ कर मुझे ही गोद मे लेकर खेला करती थी। ताईजी इस बात पर उनसे नाराज भी होती थीं कि अपनी बहन को छोड़ कर वह चचेरे भाई को क्यों प्यार करती हैं। माधुरी जीजी से बड़े हैं गिरिराज भाई साहब जो आजकल अलीगंज के नए मंदिर मे अपनी इंडिका गाड़ी के साथ रहते हैं वह पहले हेमवती नन्दन बहुगुड़ा आदि नेताओं के प्रिय थे और अब IAS अधिकारियों के प्रिय हैं। गुड़िया की शादी मे इन्होने अपनी भांजी हेतु रु 100/- भेंट किए थे तब माधुरी जीजी ने मुझे व पूनम को शिकायती लहजे मे नोट दिखते हुये  बताया था कि दादा ने गुड़िया के लिए यह दिया है। बड़े ताऊ जी के निधन पर भी मै आगरा से दरियाबाद होकर लौट गया तब तक वह वहाँ लखनऊ से नहीं पहुंचे थे। हवन/भोजन के बाद नरेश  ने मुझे उनकी गाड़ी मे बैठा कर उनसे कपूरथला पर छोड़ देने को कहा था। चूंकि वह चौक होते हुये लौटे अतः मै नींबू पार्क पर उतर कर टेम्पो द्वारा घर आ गया।

माधुरी जीजी के बाद वाली अंजली जीजी दरियाबाद मे थीं वह न मिलीं। जब उमेश के घर 27-01-2010 को गए थे तो वह दूर बरामदे मे अलग-थलग बैठाई गई थीं हमारे पूछने पर उन्हे मिलने को उमेश की पत्नी ने बुलाया था। उनके बाद वाली रीता जीजी का निधन पहले कभी हो गया था ,हमे लखनऊ आने पर पता चला। उनके बाद वाली मीरा जीजी और महेंद्र जीजाजी डॉ शोभा एवं कमलेश बाबू के सलाहकार हैं,इस वक्त शहर से बाहर थे ,अच्छा हुआ जो नहीं मिले ।उनके बाद वाली बीना ही मुझसे 06 माह छोटी है वह और हरी मोहन जी मिले थे। मै उमेश ,शरदआदि के व्यवहार को देखते हुये उनसे पहले  नहीं मिला था। उनके बाद वाले ऋषिराज,नरेश और उमेश मिले थे और दरियाबाद आने को कह रहे थे। दरअसल दिसंबर 2011 मे सुरेश भाई साहब के निधन के बाद से मै दरियाबाद (रायपुर) नहीं पहुंचा हूँ और मथुरा नगर इन लोगों के यहाँ जाने का मतलब उन लोगों के विरुद्ध इन लोगों के साथ होना है अतः फिलहाल कोई प्रश्न नहीं उठता है। कमलेश बाबू/उमेश चैनल ने हमारी पार्टी के एक वकील कामरेड को मिला कर उनसे यह शोशा उठवाया था कि मुझे पुश्तैनी जायदाद मे अपना हिस्सा मांगना चाहिए वह वकील साहब स्वेच्छा से मदद करेंगे। एक बार वही वकील साहब मुझसे कह रहे थे कि,"माथुर साहब बिना स्वार्थ  के  आजकल पानी पीने को भी  कोई नहीं पूछता है" , फिर यह मेहरबानी क्यों? उनसे मैंने जवाब मे कहा था कि ,"हमारे अपने कजिंस से संबंध मधुर नहीं हैं फिर भी हम टकराव नहीं चाहते हैं"। फिर भी आज दिन मे उन्होने फोन करके किसी कर्मचारी से यह कह कर बात करवाई कि वह हमारे पिताजी के मित्र के पुत्र  हैं। हमे  दरियाबाद के केवल भवानी शंकर तिवारी जी का उनके मित्र होने का पता है और उनसे 1992 तथा 1996 मे मुलाक़ात भी हुई थी उनके पुत्र भी उस दिन जीजी के घर मिले थे किन्तु किन्ही चतुर्वेदी जी की हमे कोई जानकारी नहीं है। उन्नाव के कामरेड भीका लाल जी भी बाबूजी के सहपाठी और रूम मैट थे उनसे भी कामरेड सरजू पांडे जी के जमाने मे एक रैली के दौरान लखनऊ मे मुलाक़ात हो चुकी थी।

27-01-2010 को हमे माधुरी जीजी ने बताया था कि,कमलेश बाबू और उनके दूसरे भाई अपने सबसे छोटे भाई योगेश से अपनी पुश्तैनी जमीन मे हक मांग रहे हैं जबकि सभी सेटिल हैं और योगेश केवल खेती पर निर्भर हैं। माधुरी जीजी योगेश की पत्नी की माईंजी होने के नाते उनके प्रति सहानुभूति रखती थीं। डॉ शोभा ने माधुरी जीजी की यह कह कर कड़ी आलोचना की थी कि वह हमारी बउआ की उनसे बुराई करती हैं। डॉ शोभा के मुक़ाबले मै अधिक बार माधुरी जीजी से मिला किन्तु उन्होने अपने चाचा- चाची (हमारे माता-पिता) की कभी मुझसे बुराई नहीं की ,अप्रैल 2011 मे यहाँ आने पर डॉ शोभा ने माधुरी जीजी की बुराई की थी जबकि आगरा मे डॉ शोभा खुद ही अपनी माँ से अभिवादन किए बगैर ही झांसी लौटी हैं। अब चूंकि योगेश की आपरेशन बिगड़ने से दोनों आँखों की रोशनी चली गई थी उनसे जमीन मे हिस्सा मांगना कमलेश बाबू को मंहगा पड़ता उन्होने दरियाबाद मे सुसराल की जमीन मे हिस्सा मांगने का उपक्रम तैयार किया है जिस जमीन की खातिर वह 1976 मे BHEL,हरद्वार से स्तीफ़ा देने तक को उद्यत थे। हमने ऐसा सुना है कि दरियाबाद मे बाबूजी के नाम के हिस्से को उन लोगों ने अजय तथा मेरे नाम मे कागजों पर करा रखा है। तब तक लड़कियों को खेती मे हिस्सा नहीं मिलता था,वह कानून बाद मे बना है जिसका लाभ लेने हेतु कमलेश बाबू डॉ शोभा से उम्मीद लगाए हैं। इन लोगों की चाल है कि यदि हम वकील साहब के जाल मे फंस जाएँ तो आज के कानून के हिसाब से अजय और मेरे साथ डॉ शोभा का क्लेम भी बीच मे लगाया जा सके।

ऋषि,नरेश और उमेश सब डॉ शोभा से छोटे हैं,सुरेश भाई साहब के सभी बहन-भाई अब जीवित नहीं हैं। अजय और मेरे अलावा गिरिराज भाई साहब ही डॉ शोभा से बड़े हैं। मंदिर के पुजारी गिरिराज भाई साहब अपने तीनों भाइयों का साथ देंगे। अजय और मुझसे कमलेश बाबू ने डॉ शोभा का झगड़ा करा रखा है। अब यशवन्त समेत हम लोगों का अनिष्ट करना ही कमलेश बाबू और डॉ शोभा का अभीष्ट रह गया है। लेकिन बड़े होने के नाते हम बहन-बहनोई और भाँजियों का अनिष्ट नहीं सोच सकते। माधुरी जीजी अपने भाइयों समेत सभी चचेरे भाइयों की एकता की पक्षधर थीं। हालांकि जीजाजी (स्व.दर्श बिहारी माथुर )से मै कभी नहीं मिला लेकिन अजय ने उनकी काफी तारीफ की है। उस दिन जीजी के यहाँ उनके एक मित्र पांडे जी बता रहे थे कि जीजाजी ने अपने पी एफ से लोन ब्याज पर लेकर बिना ब्याज के अपने साथियों को उधर दिया था जिसकी जानकारी जीजी को न थी किन्तु जीजा  जी की मृत्यु के बाद उनके मुस्लिम साथी कहीं और से बंदोबस्त करके पूरी रकम जीजी को दे गए तभी उन्हें पता चला जबकि हिन्दू साथी  रकम डकार गए , जीजी ने पता चलने पर भी कोई तकाजा नहीं किया था।

मुझे और विशेषकर पूनम को माधुरी जीजी के निधन का वाकई मे काफी दुख हुआ है। हम परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि माधुरी जीजी और दर्श बिहारी जीजाजी की आत्माओं को शांति प्रदान करें। 

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शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

आगरा/1992-93/भाग-6

अप्रैल 1985 से जिन सेठ जी के यहाँ काम कर रहे थे और जिन्हें अपीलेट इन्कम टैक्स कमिश्नर श्रीमती आरती साहनी द्वारा जेल भेजने की कारवाई से राहत वकील साहब की राय पर दिलवाई उनके दुर्व्यवहार के कारण एक झटके मे नौकरी तो छोड़ दी किन्तु आर्थिक संकट विकट रूप मे सामने आ गया। एक तो रु 290/- की मकान की किश्त जमा करना होता था और बाद मे रेजिस्टरी के समय लगने  वाले स्टेम्प्स हेतु एक आर डी अकाउंट रु 110/-का खोला था उसकी भी किश्त जमा करनी थी। मैंने शंकर लाल जी से कोई और पार्ट टाईम जाब दिलवाने का निवेदन किया। एक-दो माह आश्वासन देते रहने के बाद जब उन्हें याद लगातार दिलाते रहे तो वह बोले जिन लोगों ने आश्वासन दिया था वे मुकर गए हैं अतः मैं खुद ही अपने यहाँ फ़ुल टाईम रख लेता हूँ और अपने बदले मे पार्ट टाइम अपने छोटे भाई के यहाँ दिला देता हूँ। चूंकि 06 घंटों वाले फुल टाईम के सेठ जी रु 1800/- देते थे अतः शंकर लाल जी ने फुल टाईम 04 घंटे रखते हुये रु 1200/- ही दिये। एक -दो माह बाद एक घंटे का पार्ट टाईम अपने छोटे भाई के यहाँ रु 400/- पर दिला दिया। राहत तो मिली किन्तु आमदनी पहले से कम हो गई। मंहगाई तो निरंतर ही बढ़ती ही रहती है लेकिन यदि स्वाभिमान की रक्षा करना था तो हानि सहना ही था।

जिस दौरान शंकर लाल जी और उनके भाई का जाब नहीं था किसी काम से कमलेश बाबू फरीदाबाद रुकते हुये हमारे पास आगरा आए थे। हमने बाबू जी से  जो उस समय अजय के पास फरीदाबाद मे थे कोई जिक्र नहीं किया था। सुबह का खाना बउआ ने अजय की श्रीमती जी से कमलेश बाबू को खिलवा दिया था। हमारे घर उन्हें चार बजे साँय पहुंचना था ट्रेन राईट टाईम आई थी किन्तु वह पहुंचे पाँच बजे। शालिनी ने सूजी का हलवा और बेसन की पकौड़ी नाश्ते मे चाय के साथ परोसी थीं। चुटकी भर हलवा चख कर पकौड़ी खाने से कमलेश बाबू ने इंकार कर दिया क्योंकि स्टेशन पर उतरने के बाद वह ठेले पर पकौड़ी खा कर,चाय पी कर आए थे। जब हमने यह पूछा की घर आ रहे थे तो स्टेशन के ठेले पर नाश्ता क्यों किया?क्या आपको बाबूजी-बउआ की गैर हाजिरी मे यहाँ भूखा रहने का शक था?उनका जवाब था की भूख ज़ोर से लग रही थी। इसका अर्थ यह हुआ कि फरीदाबाद मे अजय की श्रीमती जी ने उन्हें भरपेट खाना नहीं खिलाया जबकि बाद मे बउआ ने लौटने पर बताया कि वहाँ तो उन्होने पेट भर जाने की बात कही थी। बउआ झूठ नहीं बोलती थीं जिसका अर्थ हुआ कि कमलेश बाबू अजय की श्रीमती जी को नाहक बदनाम कर रहे थे। हालांकि वह उनकी एक ममेरी बहन की नन्द हैं और इसी लिए उनहीने शादी भी तय करवाई थी किन्तु शादी के समय उनके घर 'चार की मेवा' मे शराब की बोतल भेज कर बारात लौटने के बाद अजय से भयंकर झगड़ा भी किया था। कमलेश बाबू से शोभा की एंगेजमेंट के एक-डेढ़ माह के भीतर ही अजय का भयंकर एक्सीडेंट एम जी रोड पर हुआ था जिसमे तीन दिन डाक्टरों ने रिसकी बताए थे। आज तक उसकी पीड़ा से अजय ग्रसित हैं तब भी कमलेश बाबू कैसे-कैसे पाँसे फेंकते रहे हैं। दुर्भाग्य से हम उन्हें समय पर पहचान नहीं पाये। हमने हमेशा छोटे बहनोई के नाते उनकी बातों का  समर्थन किया जिसका खामियाजा भी खूब उठाया लेकिन आँखें नहीं खुलीं और उन्हें अच्छा  ही अच्छा समझने की भूल लगातार करते रहे,नुकसान उठाते रहे और शक दूसरों पर करते रहे।

झांसी लौट कर कमलेश बाबू ने शोभा से बाबूजी को चिट्ठी मे लिखवा दिया कि मेरी फुल टाईम जाब छूट गई है। मैंने या शालिनी ने कुछ नहीं कहा था किन्तु यशवन्त से उन्हें पता चला होगा। बाबूजी ने वहाँ से रु 2500/- का चेक मुझे डाक से भेज दिया। मैंने वह चेक अपने अकाउंट मे जमा करके अपना चेक रु 2500/- का बाबू जी के अकाउंट मे जमा कर दिया। हालांकि बाबूजी ने लौट कर जब पास बुक मे एंट्री कराई तो मुझ पर नाराज भी हुये कि रुपए क्यों लौटाए?प्रतीत होता है कि कमलेश बाबू लगातार आग लगाने-फूट डालने के कृत्य करते रहे ,बाबूजी और बउआ को उनके लक्षण कभी भी पसंद नहीं आए सिर्फ मेरी ही बुद्धि भ्रष्ट चल रही थी जो हर बार मै उनके बचाव मे ढाल बन कर खड़ा होता रहा तब भी जब वह बउआ के निष्कर्ष के मुताबिक यशवन्त को दिमागी ठेस पहुंचाने के कृत्य करते रहे।





एक बार1984 मे  वह रात नौ बजे हमारे घर झांसी से पहुंचे थे ,उन्हें कोई शादी आगरा केंट मे अटेण्ड करनी थी। उपरोक्त चित्र से ज्ञात होगा कि यशवन्त तब कितना बड़ा था। रात के सवा नौ बजे एक बड़ा सेव उसे खाने को पकड़ा दिया वह नही खा पा रहा था उसे घुड़क-घुड़क कर खाने का आदेश देते रहे। सोफ़े और चारपाई के बीच ठंडी जमीन पर उसे बैठा दिया तब तक वह बैठ नाही पाता था और बार-बार गिर जाता था ,उसके सिर मे चोट लगने से  रोने लगता था,मुझे या शालिनी को वह यशवन्त को पकड़ने नहीं दे रहे थे। अंततः बाबूजी ने अपनी गोद मे उसे सहारा दिया तब जाकर चुप हो पाया। वह नाश्ता करके लौट गए क्योंकि शादी की दावत खाना था लिहाजा हमारे घर भोजन नहीं किया। बउआ ने उनके जाने के बाद स्पष्ट कहा था कि शोभा की दोनों लड़कियां हैं इसलिए कमलेश बाबू यशवन्त की खोपड़ी मे चोट लगा कर उसका दिमाग कमजोर करना चाहते थे हालांकि वह उसके लिए खिलौने और मिठाई भी लाये थे जो चित्र मे दीख रहे हैं । पता नहीं क्यों मैंने समझा कर अपनी माँ को चुप कराया ?

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बुधवार, 11 जनवरी 2012

आगरा/1992-93/भाग-5-(बाबरी मस्जिद काण्ड/कर्फ़्यू)

यू पी मे अपनी सरकार बनवा लेने के कारण भाजपाइयों के हौसले बुलंद थे और वे केंद्र की सत्ता पर काबिज होने हेतु कुछ भी करने को तैयार थे। 06 दिसंबर डॉ बी आर अंबेडकर का निर्वाण दिवस होता है और उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता कहा जाता है (क्योंकि वह संविधान निर्मात्री समिति के चेयरमेन थे)और हमारा संविधान धर्म -निरपेक्ष है अतः उस दिन को खास तौर पर चुन कर बाबरी मस्जिद/राम मंदिर को ढहा दिया गया। यह एक ढांचे का ही विध्वंस न था यह संविधान के धर्म निरपेक्ष ताने-बाने का विध्वंस था। सारे देश मे सांप्रदायिक दंगे छिड़ गए और जगह-जगह कर्फ़्यू घोषित हो गए। 'पनवारी काण्ड'के बाद कमलानगर मे दूसरी बार यह कर्फ़्यू लगा था।

हींग की मंडी बाजार मे भी कर्फ़्यू था। शंकर लाल जी के घर (कमला नगर मे ही)पार्ट टाईम जैसे के तैसे करने जाते रहे। कालोनी के अंदरूनी हिस्सों मे पुलिस का पहरा न था। न्यू आगरा स्थित अपने घर पर रेकसन वाले सेठ जी अपनी बुक्स आफ अकाउंट्स ले आए थे और संदेश देकर मुझ से घर पर बुलवा कर कार्य करवा रहे थे। फुल टाईम (06 घंटे) वाले सेठ जी की किताबें दुकान मे होने के कारण उनका कार्य नहीं हो रहा था। जब कर्फ़्यू मे कुछ ढील हुई और घंटे-दो घंटे के लिए खुला तो उन्होने अपने पुत्र को भेज कर मुझ से घर पर मिलने को कहा।
उनके घर भरतपुर हाउस पर जब मै मिला तो  उनके यह कहने पर कि पार्ट टाईम वालों का काम कर रहे हो मेरा ही छोड़ रखा है मैंने कहा मेरे पास तो कर्फ़्यू पास है आप दुकान खोलें मै आने को तैयार हूँ। वह बोले काम हो न हो आप मेरे घर पर उसी तरह आयें जैसे दूसरे सेठ लोग के घर जा रहे हैं। उनके घर अगले दिन जाने पर वह नहीं मिले उनकी माता जी,पत्नी और दोनों बेटों ने अपने-अपने हाथ दिखा कर अपना भविष्य पूछा उनके जवाब बता कर मै लौट लिया। उसके अगले दिन वह मिले और बोले आप चले क्यों गए ?मैंने कहा आपके पास बुक्स नहीं हैं मै करता क्या?उन्होने गेट के पास इशारा करके कहा सिर्फ यहाँ धूप मे बैठे रहते। मै तत्काल उनके घर से उठा और अपनी साइकिल उठा कर चल दिया यह कह कर -मै आपका चौकीदार नहीं हूँ जो गेट पर बैठ कर रखवाली करूँ ,मुझे आपकी नौकरी नहीं करनी है। फिर वह गिड़गिड़ाते रहे और मैंने उनकी परवाह नहीं की।

सेठ जी भागे-भागे शंकर लाल जी के घर आए कि माथुर ने मेरे यहाँ काम छोड़ दिया है आप भी हटाओ किन्तु उन्होने कहा मेरा काम ठीक चल रहा है क्यों हटाएँ?फिर वह न्यू आगरा मुरलीधर जी के घर भी यही प्रस्ताव लेकर गए। उन्होने भी वही जवाब दिया। तीनों सेठ सिन्धी थे लेकिन दो ने अपना हित देखा उनका क्यों देखते?


कर्फ़्यू पास की कहानी

चूंकि मै भकपा,आगरा मे कोशाध्यक्ष के पद पर था और जिलामंत्री नेमीचन्द जी को सफल बनाने की ज़िम्मेदारी भी ओढ़े हुये था अतः हम कुछ लोग किसी प्रकार कर्फ़्यू के दौरान ही राजा-की-मंडी स्थित पार्टी कार्यालय पर एकत्र हुये और पार्टी के लेटर हेड पर 15 लोगों के हस्ताक्षर वेरीफ़ाई करके ए डी एम सिटी के यहाँ कर्फ़्यू पास के लिए आवेदन दिया। हमारे साथ किशन बाबू श्रीवास्तव साहब ,उनकी पत्नी तथा एक-दो और लोग थे। मिसेज श्रीवास्तव दफ्तर मे पास लेने गई तो ए डी एम साहब ने कह दिया अपने जिला अध्यक्ष को भेजिये उन्हें ही ये पास सौंपेंगे। उन्होने बाहर आकर मुझ से कहा आप कोशाध्यक्ष लिख कर पास ले लें। लेकिन मैंने ए डी एम साहब को समझाया कि साहब हमारी पार्टी मे 'जिला मंत्री' ही होता है अध्यक्ष का कोई प्रोविज़न हमारे संविधान मे नहीं है। जिला मंत्री कर्फ़्यू मे फंसे हैं आप पास दें तब वह आ सकते हैं। खैर उन्होने मुझे 10 लोगों हेतु पास दे दिये और कहा कि हमे सभी पार्टियों के प्रतिनिधियों को देने है आप इतने ही से काम चलाओ।

जो पास जारी हुये थे उनमे मिसेज श्रीवस्ताव का तो था लेकिन किशन बाबू श्रीवास्तव का पास जारी नहीं हुआ था। अतः उन्होने एस कुमार का पास खुद रख लिया और एस कुमार को पूरन खाँ का थमा दिया। एस कुमार गोरा-चिट्टा कामरेड तो है ही उर्दू का भी माहिर था । लेकिन एक दिन पार्टी कार्यालय के बिलकुल नजदीक कुछ सिपाहियों ने जो उनके नाम से वाकिफ थे उन्हें पकड़ लिया कि अपने मुस्लिम होने का सुबूत दो वरना बंद कर देंगे। जैसे ही यह खबर पार्टी कार्यालय पहुंची हम लोग मौके पर गए और सिपाहियों को समझा कर एस कुमार को कार्यालय ले आए। आगे से उन्हें आने को मना किया और वह पास कामरेड पूरन खाँ को पहुंचा दिया। 

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शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

आगरा/1992 -93 (भाग-4)-लखनऊ यात्रा

ऋषिराज की शादी 1992 मे दशहरा के रोज होना था । एक खानदानी परंपरा के अनुसार शादी के समय माँ को  लड़का या लड़की जिस की शादी हो उसके पीछे बैठना होता है। ताईजी का निधन होने के कारण चाची या बड़ी भाभी को बैठना था। चूंकि छोटी ताईजी का भी निधन हो चुका था और उन लोगों से इन लोगों के संबंध भी मधुर नहीं थे अतः अतः भाभी जी (सुरेश भाई साहब की पत्नी)से भी नहीं कहा और हमारी माँ कहीं आने-जाने की शारीरिक स्थिति मे नहीं थी ,इसलिए शालिनी को वह रस्म अदा करने हेतु अनुमति देने का अनरोध -पत्र महेंद्र जीजाजी ने बाबू जी के पास भेजा। जब बाबूजी ने अनुमति दे दी तब महेंद्र जीजाजी ने रु 11/- का money order भेज कर शालिनी के भाई को देने का अनुरोध किया । इसे 'भात का न्यौता 'कहा जाता है जिसका अर्थ है कि,पीहर से पीछे बैठने वाले के परिवार के लिए और उस लड़के( जिसकी शादी है )के लिए कपड़े आदि भेजे जाएँ। यह बात हम लोगों को अच्छी नहीं लगी और बाद मे माधुरी जीजी ने भी कहा कि,महेंद्र ने अपनी माँ के निर्देश पर वह पत्र चाचा को भेज दिया उन्हे खबर नहीं थी वरना वह उन लोगों(शरद मोहन) पर दबाव न डालने देतीं। बहरहाल शालिनी की माँ ने शालिनी,यशवन्त,मेरे तथा ऋषिराज के लिए वस्त्र भिजवाए। इसके बदले मे माधुरी जीजी ने शालिनी की भाभी संगीता के लिए साड़ी भिजवा दी थी (हालांकि रिवाज तो यह है कि यदि किसी विवाहिता को वस्त्र दिये जाते हैं तो साथ मे उसके पति के लिए भी शुगन का कुछ देना होता है जिसका पालन नहीं किया गया था)।

हम लोग आगरा से इस हिसाब से चले थे कि,रवीन्द्र पल्ली जाकार माइंजी से भी मिलेंगे। राजाजीपुरम से उनके यहाँ गए तो घर पर माइंजी और अंगद (शेष का पुत्र )ही मिले थे। शेष और उनकी पत्नी दिल्ली गए हुये थे। उनके घर काफी देर रहे थे,इस बार माइंजी का व्यवहार काफी अच्छा रहा था। उन्होने शेष की 'आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस'की एक डिक्शनरी यशवन्त को भेंट की थी-

यह यादगार डिक्शनरी यशवन्त ने सम्हाल कर रखी हुई है जिससे वह काफी लाभान्वित भी हुआ है। खाने के वक्त तो माईंजी को शालिनी ने उनके साथ मदद की थी किन्तु शाम को जब हम लोग वापिस लौट रहे थे,माईंजी चाय बना रही थी शालिनी ने सोचा उन्हे कष्ट देने की बजाए खुद ही फ्रिज से पानी निकाल कर पी लें। पीने का पानी भभौने,जग आदि मे था, कोई बोतल न थी। माईंजी ने हँसते हुये पूछा कि पानी पीना है तो हमसे क्यों नहीं कहा?जिसका घर होता है उसे ही पता होता है कौन चीज कहाँ है? हम लोगों के घर की यह परंपरा न थी कि किसी के घर जाकर चीजें टटोल-खकोल की जाएँ-यह तो शालिनी के पीहर के संस्कार थे जो वह फ्रिज तलाश रही थीं। मैंने कहा भी था कि माईंजी से पूछ लो। माईंजी ने ग्लास मे पानी दे दिया। यह भी बताया कि लोग-बाग बोतल को मुंह से पीकर रख देते हैं इसलिए वह बोतल रखती ही नहीं हैं क्योंकि झूठा करने से इन्फेक्शन का भय रहता है। उनकी यह बात हमारे बाबूजी और बउआ के विचारों से मेल खाती है।

झांसी से कमलेश बाबू अपनी छोटी बेटी मुक्ता को लेकर आए थे। वह भी माईंजी से मिलना चाहते थे। बीच मे एक ही दिन निकला था अतः पुनः शालिनी नहीं गई। मै,यशवन्त,मुक्ता और कमलेश बाबू ही गए। जब पहुंचे तो वे लोग भोजन कर रहे थे। शेष की पत्नी ने उठ कर फिर से तहारी ही जो वे लोग खा रहे थे और बनाई। कमलेश बाबू ज्यादा नहीं रुके । खाकर चाय पीकर वापिस हो लिए। चूंकि वह माईंजी के लिए भांजा दामाद थे अतः उन्हें व मुक्ता को कुछ रुपए भी माईंजी ने दिये।मुक्ता ने नरेश से किन्ही केसेटो की फरमाईश की होगी सो उन्होने उसे लाकर भेंट कर दिये थे। उन लोगों से ये लोग खुले होंगे जो उनसे फरमाईश की ;मुझसे तो किसी ने कभी कोई फरमाईश नहीं की थी।

कमलेश बाबू की महेंद्र जीजाजी से काफी घुटन्त थी। रात मे सबसे ऊपरी छत पर ड्रिंक का कार्यक्रम था। मै शामिल नहीं हुआ तो कमलेश बाबू (जिन्होंने अजय की शादी मे 1988 मे ट्रेन मे शरद मोहन की मौजूदगी मे ढक्कन से मेरे मुंह मे शराब उंडेल दी थी और बाद मे चार की मेवा के साथ शराब की बोतल भी उनकी सुसराल मे भेज दी थी)बोले हम अजय की शादी मे (डॉ शोभा और कमलेश बाबू अजय और उनकी पत्नी का भी  नाम ही पुकारते हैं -भाई साहब या भाभी जी नहीं)खुद आपको ट्रेन मे पिला चुके हैं ,बच नहीं सकते। महेंद्र जीजाजी,कमलेश बाबू गठबंधन ने जबरिया मुझे भी ग्लास भर कर दिया मैंने उसे पानी की तरह पी कर उलट कर नीचे रख दिया उन लोगों की तरह चुसकियाँ लेकर नहीं। अगले दिन शाम को खाने से पूर्व भी ड्रिंक कार्यक्रम था और महेंद्र जीजाजी- कमलेश बाबू गठबंधन ने फिर उसी तरह दबाव बना कर मुझे ग्लास पकड़ाया तो वैसे ही पानी की तरह जल्दी से निगल कर मैंने ग्लास खाली कर दिया। उस वक्त तक न तो कमलेश बाबू शक के घेरे मे आ पाये थे न ही महेंद्र जीजाजी, और न ही रंग मे भंग करना मेरा स्वभाव था अतः उन लोगों का खेल चल गया।

राजाजीपुरम मे ही किसी पार्क मे ऋषिराज की बारात गई थी ,महेंद्र जीजाजी ने लड़की वालों के लिए  वहीं व्यवस्था करा दी थी। ऋषिराज की पत्नी के ताऊजी शालिनी के टेलर मास्टर वही फूफाजी थे जो हमारे फूफाजी के दोस्त थे।खाने का तीन प्रकार का बंदोबस्त था। नवरात्र के व्रतधारियों के लिए फलाहार,शाकाहार और मांसाहार। हम तो शाकाहारियों मे थे।

जिस दिन हम लोग माईंजी के घर गए थे ,लौटते मे अमीनाबाद होते हुये आए थे। कारण यह था कि पार्ट-टाईम वाले (रेकसन फुटवियर)सेठ जी ने अपने एक कस्टमर के यहाँ रिमाईंड करते आने को कहा था। मैंने उनका संदेश दे दिया था । उस दुकान के मालिक एक वृद्ध मुस्लिम सेठ जी थे जो आगरा अक्सर ब्रहस्पतिवार के दिन आते थे जिस दिन अमीनाबाद मे साप्ताहिक अवकाश रहता है। उन्होने 10 दिन मे आगरा आ कर उनका भुगतान करने का आश्वासन दिया और शिष्टाचार वश हम लोगों -शालिनी और यशवन्त समेत मुझे कोल्ड ड्रिंक पिलवाया।

मैंने बाजार से यशवन्त के लिए कुछ वस्त्र ले लिए ,शालिनी ने भी चिकन  का एक सलवार-सूट अपने लिए लिया था। उनकी इच्छा अपनी संगीता भाभी के लिए भी एक सलवार-सूट लेने की थी सो उन्होने उनकी पसंद के मुताबिक झीने गुलाबी  वस्त्र का लिया। उनकी बेटियों के लिए भी कुछ कपड़े लिए थे। अतः परंपरा निर्वाह हेतु मैंने संगीता के पति हेतु एक रूमाल भी रखवा दिया था। हम लोग चारबाग से गंगा-जमुना एक्स्प्रेस से चले थे और आगरा सिटी पर उतरे थे। उन लोगों के क्वार्टर पर ही पहले गए। शालिनी ने अपने लाये और माधुरी जीजी द्वारा भेजे वस्त्र  और पकवान वहाँ निकाल कर दे दिये। रास्ते मे यशवन्त को ओढ़ाने हेतु एक वह बढ़िया कंबल ले गए थे जो मुझे होटल मुगल से एक वर्ष दीपावली गिफ्ट मे मिला था। वह किस प्रकार सिटी क्वार्टर पर छूट  गया या उन लोगों ने छिपा कर रख लिया फिर उसका कोई अता-पता न चला।

दिन होने पर हम लोग अपने घर कमलानगर आ गए। उतनी ही देर मे वहाँ दो बार हम लोगों को चाय पिला दी गई थी। ...........


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