गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

मिलना जुलना कमजोरी नहीं (भाग-3)---विजय राजबली माथुर


 पिछले अंक से जारी .............

जब मैंने भोपाल या पटना के रिशतेदारों के साथ नहीं लखनऊ मे( यशवन्त की इच्छानुरूप आगरा के मकान को बेच कर)मकान ले लिया तो डॉ शोभा को जो पीड़ा हुई उसे उन्होने उजागर भी कर दिया था।मैं नहीं समझता कि मुझे अपने निर्णय छोटी बहन की इच्छानुरूप क्यों लेने चाहिए थे और पुत्र की इच्छा को क्यों ठुकराना चाहिए था?पूनावासी छोटी भांजी ने इस दरार को खाई मे बदलने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। 06-10-2010 को प्रवासी ब्लागर  डॉ दिव्या श्रीवास्तव जी  ने एक पोस्ट यशवन्त के संबंध मे अपने ब्लाग मे दी थी तब मुक्ता(चंद्र प्रभा)ने पूना से फोन पर बताया था कि उसने डॉ दिव्या  का पूरा प्रोफाईल चेक किया है उसने तत्काल झांसी फोन करके शोभा को बताया था और कमलेश बाबू ने घबराहट भरे शब्दों मे विस्मय व्यक्त किया था।  ब्लागर्स प्रोफाईल  चेक करने मे उन लोगों द्वारा दी टिप्पणियों का मुक्ता ने सहारा लिया था और उसी क्रम मे पटना की मूल निवासी और विमान नगर मे उसकी पड़ौसन रही ब्लागर का भरपूर सहारा लिया। उक्त ब्लागर ने 'क्रांतिस्वर' मे प्रकाशित पूनम की एक कविता को 'वटवृक्ष' मे 19 नवंबर 2011 को प्रकाशित किया लेकिन धूर्ततापूर्वक ऊपर एक तमंचा का फोटो लगा दिया । पूनम को यह बात काफी अखरी थी लेकिन हमने तब विशेष रण-नीति के तहत विरोध नहीं जतलाया था। फिर उसके बाद 27 अप्रैल 2012 को उसी ब्लागर ने एक तीसरे ब्लाग पर मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई और उस टिप्पणी को पिछले कई  पोस्ट मे भी  उद्धृत किया है।

 (रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM





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आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
मेरी भी शुभकामना है)


मई 2012 के 'वटवृक्ष' के पृष्ठ 28 पर (जिसकी स्कैन कापी नीचे देखें) एक परिचर्चा उक्त ब्लागर ने बतौर संपादक दी थी।


पहली चर्चा जिस सौरभ प्रसून की है उससे उक्त ब्लागर को अपनी पुत्री का विवाह करना है।इसकी भी जन्मपत्री बनाने को ईमेल आया था और एक वर्ष के अंतर के दो डिटेल भेजे गए थे।  दूसरी चर्चा जिस छात्रा शिखा श्रीवास्तव की है उसकी जन्मपत्री द्वारा  अपने पुत्र मृगाङ्क से विवाह हेतु गुण मिलाने को मुझे  ईमेल पर कहा था। यह अलग बात है कि बाद मे फेक आई डी द्वारा उक्त ब्लागर ने शिखा के विरुद्ध इन्टरनेट जगत मे भारी अनर्गल दुष्प्रचार किया था।उक्त ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों का निशुल्क परामर्श प्राप्त करने के बाद मेरे विरुद्ध घृणित अभियान अपने IBN7 वाले चमचे तथा और एक-दो लोगों द्वारा चलवा रखा है। 


इस क्रम मे तीसरी चर्चा मे यशवन्त का नाम क्यों और किस षड्यंत्र के तहत शामिल किया गया ?इस पर मुझे भारी आपत्ति है। जहां दो चर्चाए संपादक महोदया ने अपने परिवार से सम्बद्ध होने वालों की शामिल की थीं वहीं उनके साथ मेरे पुत्र यशवन्त की चर्चा क्यों और किस हैसियत से शामिल की गई?एक ओर तो मेरे तथा मेरी पत्नी के प्रति खौफनाक दृष्टिकोण और दूसरी ओर मेरे पुत्र को अपने खेमे मे दिखाना सरासर षड्यंत्र नहीं तो और क्या है?

इस षड्यंत्र मे वटवृक्ष के प्रधान संपादक और प्रबंध संपादक भी शामिल हैं अथवा केवल संपादिका की अपनी भूमिका है ?यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है किन्तु रहस्य छिपा हुआ नहीं है। उक्त संपादिका ने अपने IBN7 वाले चमचा ब्लागर से (जिससे 27 अप्रैल को लेख लिखवाया तथा बाद मे 'ज्योतिष एक मीठा जहर')27 अगस्त 2012 के ब्लागर सम्मेलन के बाद 'वटवृछ' के प्रधान संपादक के विरुद्ध विष-वमन करवाया था लेकिन आज भी उनके साथ बतौर 'संपादक' डटी हुई हैं। हाल ही मे उस सम्मेलन के सहयोगी आयोजक ने अपने ब्लाग पर ज्योतिष के विरुद्ध एक लेख लिखा है और उस पर मेरे द्वारा की गई टिप्पणी का अभद्र जवाब दिया है। जबकि वही महाशय पहले मेरे 'क्रांतिस्वर' की समीक्षा 'जन संदेश टाईम्स' मे  मार्च 2011 मे निकाल चुके थे और उसे उन्होने अपने ब्लाग पर भी प्रकाशित किया था।किसी दूसरे ब्लागर से रचना चोरी के इल्जाम लगने  पर तब मुझसे अपने पक्ष मे टिप्पणी लिखने का अनुरोध किया था ,27 अगस्त के ब्लागर सम्मेलन मे भाग लेने हेतु 26 को उन्होने मुझसे फोन पर अनुरोध भी किया था ('वटवृक्ष'के प्रबंध संपादक ने भी 23 तारीख को फोन करके मुझसे उस सम्मेलन मे भाग लेने का अनुरोध किया था और आश्वस्त किया था की,"रश्मि प्रभा जी लखनऊ नहीं आ रही हैं")और अब  वह सह-संयोजक उस संपादिका के जाल मे उलझ कर मेरे ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं। उनके प्रमाण पत्र की कोई आवश्यकता या अहमियत नहीं है।

एक सोची-समझी रण -नीति के तहत उक्त 'वटवृक्ष' की संपादक ब्लागर द्वारा मेरे ज्योतिषीय ज्ञान पर प्रहार लगातार किया जा रहा है। लेकिन क्या इससे मेरे ज्ञान को कुंद किया जा सकेगा?और इस धृष्ट अभियान का लाभ किसको मिलेगा?



Saturday, November 19, 2011


कुछ तो लगता है 

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/11/blog-post_19.html








ख़ुशी में भय
और झूठ में ख़ुशी ...
इस बदली हवा ने सारे मायने बदल दिए हैं
सब उल्टा पुल्टा ही अच्छा लगता है !!!

रश्मि प्रभा

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कुछ तो लगता है

त्योहारों से मुझे अब डर लगता है
बचपन बीता
सब कुछ सपना सा लगता है
रिश्ता एक छलावा लगता है..
छल-बल दुनिया के नियम
कौन किसका
सबको अब अपना अहम् अच्छा लगता है
ऊपर उठाना-गिराना अब यही सच्चा धर्म लगता है
खून-खराबा - अब यही धर्म सब को अच्छा लगता है
त्योहारों का मौसम है
सब को 'नमस्ते' कहना अच्छा लगता है
दुबारा न मिलने का यह संदेश अच्छा लगता है
राम-रहीम का ज़माना पुराना लगता है
बुजुर्गों का कुछ भी कहना बुरा लगता है
मारा-मारी करना अच्छा लगता है
खुदगरजी का जमाना अच्छा लगता है
नैनो से तीर चलाने का ज़माना अब पुराना लगता है
गोली-बारी चलाना अच्छा लगता है
भ्रष्टाचार और घूस कमाना अच्छा लगता है
बदलते दुनिया का नियम अच्छा लगता है
शोर-शराबा करना अच्छा लगता है
हिटलर और मुसोलिनी कहलाना अच्छा लगता है
हिरोशिमा की तरह बम बरसाना अच्छा लगता है
अब गांधी-सुभाष बनना किसी को अच्छा नही लगता है
शहीदों की कुर्बानी बेमानी लगती है
मैं ' आज़ाद हूँ
दुनिया मेरी मुट्ठी में है - कहना अच्छा लगता है
अपने को श्रेष्ठ ,दूसरे को निकृष्ट कहना अच्छा लगता है
चिल्लाना और धमकाना अच्छा लगता है
बेकसूर को कसूरवार बनाना अच्छा लगता है
न्यायालय में झूठा बयान देना अच्छा लगता है
औरों को सता कर 'ताज' पहनना अब अच्छा लगता है
झूठ को सच कहना अच्छा लगता है
दिलों को ठेस पहुंचाना अच्छा लगता है
किसी ने कहा-क्या शर्म नहीं आती
शर्म को ख़ाक करना अच्छा लगता है
अब यह सब करना ही अच्छा लगता है....





(पूनम माथुर)

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मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

मिलना जुलना कमजोरी नहीं है(भाग-2)---विजय राजबली माथुर

जारी---

बारह बरस पाईप मे सीधा रखने के बाद भी जो सीधा न रह सके कुछ उस तरह के लोग हैं ये पूना प्रवासी ब्लागर और उसके चमचे। 'जेवरी जले पर उसके बल न जले' भी एक पुरानी -प्रसिद्ध कहावत है जो इन लोगों पर हू-ब -हू लागू होती है। अपने तोड़-फोड़ अभियान के तहत उस पूना प्रवासी ने अपनी पटना स्थित शिष्य को 25 अप्रैल 2012 को हमारे घर मिलने-जुलने के नाम पर भेजा था लेकिन अब पता चला है कि उसका उद्देश्य हमारे मकान का वेल्यूएशन करना था । पू प्र का उद्देश्य यशवन्त को गुमराह कर आर्थिक क्षति पहुंचाना था जिससे कि हमे अपना यह मकान भी बेच कर उसे बचाना पड़े। इन लोगों का उद्देश्य हमे सड़क पर पहुंचाना था। यदि यह पहले आभास हो जाता तो 13-05-2012 को पटना मे सोनिया बहुखंडी गौड़ के घर न जाते और न ही 12 को उसके पति प्रदीप गौड़ से उनके आफिस मे मिलते। इस संबंध मे मेरे फोन पर जो sms आए थे उनका विवरण यह है-

"Aap kal jarur aayen.Kal aapki kitne b je ki train h?"12-05-2012 ,09-00-11 am--- प्रदीप गौड़ ने अपने आफिस मे 12 मई की साँय 05 बजे मिलने बुलाया था। ---

"Pls come around 5 pm ".12-05-2012 ,11-00-32 am ---
"Kab tak aayenge aap dono?"13-05-2012 ,08-15-08 am ---

पहले सोनिया बहुखंडी ने यशवन्त को पूना मे कोई सर्विस ज्वाइन करने को कहा था जिसे मेरे कहने पर उसने मना कर दिया था। फिर प्रदीप उसे अपने आफिस मे  रु 10000/-पर नियुक्ति दिलवा रहे थे। जिसके लिए भी मैंने टलवा दिया था। अगले दिन उनके निवास पर भी मैंने स्पष्ट कर दिया था कि यशवन्त की ख़्वाहिश पर ही हम आगरा से लखनऊ घाटे पर शिफ्ट हुये हैं अतः लखनऊ के बाहर जाब नहीं करने देंगे।

जब यशवन्त मेरठ से कानपुर 'बिग बाज़ार' मे ट्रांसफर लेकर आ गया था और हमे जल्द से जल्द लखनऊ आने को कह रहा था तब डॉ शोभा ने हमे फोन पर कहा था कि उससे कानपुर मे जाब छुड़वा दो और वह कमलेश बाबू के मित्र लिटोरिया बिल्डर के यहाँ लखनऊ मे जाब कर ले। मैंने उनके सुझाव को न मानते हुये जाब छुड़वाने के बाद घर पर ही उसे साईबर खुलवा दिया था जिसके सहारे ही हम लोग ब्लाग जगत से संपर्क स्थापित कर सके। तब डॉ शोभा की पूनावासी छोटी बिटिया( जो विमान नगर मे प्रवासी ब्लागर की पड़ौसन रही है)ने ब्लाग्स मे यशवन्त व मुझे प्राप्त टिप्पणियों के माध्यम से ढुलमुल-ढुलमुल ब्लागर्स को टटोल कर उन्हे हम लोगों के विरुद्ध उकसाया/भड़काया।
 
(रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM



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मेरी भी शुभकामना है)

 27-04-2012 से मेरे ज्योतिषीय आंकलन के सही सिद्ध  होने   से बौखला कर (19 को मैंने 'रेखा राजनीति मे आने की संभावना'लेख ब्लाग मे दिया और राष्ट्रपति महोदया ने उन्हे 26 को राज्यसभा मे मनोनीत कर दिया था  ) मेरे विरुद्ध पूना प्रवासी ब्लागर द्वारा एक मुहिम चलाई गई। तब पटना मे उसकी शिष्या सोनिया बहुखंडी ने हमसे उसकी आलोचना की थी और हमे मेसेज मे भी उसके विरुद्ध लिखा था जो सब धोखा देने हेतु था।


सोनिया बहुखंडी गौड़
  • मैं अभी भी नहीं समझ पा रही की रश्मि प्रभा जी ने खिल्ली उढ़ाई होगी आपकी किन्तु मैं आपके ज्ञान की पूरी पूरी इज्जत करती हूँ। आप लोग बात करें ना करें हमेशा करती रहूँगी। सादर

    सोनिया बहुखंडी गौड़
    • नहीं चाचा जी मैं उस समय वहाँ नहीं थी प्रदीप थे और ये मुझे कोई बात शेर नहीं करते मुझे सुंनकर बहुत बुरा लग रहा है। ये सच बात है मुझे मोटी मोटी बात पता थी अगर वो इतना गलत काम आपके संग कर रही हैं तो मैं उनके साथ मित्रता कैसे रख सकती हूँ। विश्वास करिए की मैं आपको वास्तव मे दिल से अच्छे संबंध की तरह देखती हूँ। हाँ यशवंत को ठगा ये बात मुझे पता थी। आपके मैसेज से मुझे बहुत ही अच्छे रिश्ते की पहचान हूइ। मुझे आभाष हो गया था की आपने ही यश को माना किया होगा। दिल से किसी को नहीं निकाला जा सकता ये भी मैं जानती हूँ। रश्मि जी ने जब मेरे से कविता मांगी थी तो मैंने यश से पूछा था अगर आप मन से मुझे बेटी मानते तो बोलते की कोई जरूरत नहीं। देने की.... बिना पिता की बेटी हूँ आपसे स्नेह मिला तो लगा पापा फिर से मिल गए। आप यश को रोक सकते हैं आपका बेटा है। मैं तो बस दो दिन की ही बहन बन पाई दुख हुआ दिल से। अगर लगे की मैं सच कह रही हूँ तो यश से कहना की मेरे से बात करे। frown आप लोगों की मुझे जादा जरूरत है नाकी रश्मि जी की

      सोनिया बहुखंडी गौड़
      • Mujhe unse koi profit nahi. Hindi yugm k publisher ne mujhe niji msg de kar gujarish ki thi review likhne k liye. Wo review apne aap me ek kataksh tha dronacharya wala ex. Jiska uttar aap ne apne cmnt me de diya tha. Eklavya ka. Aur adhikar aapka bhi kuch bhi kahne ka ek baar phn to karte aap daante mujhe. Aap logon ne to mera phn bhi nahi pick kiya


       पूना प्रवासी ब्लागर ने पूनम के भाइयों को भी क्षेत्रवाद और जातिवाद के आधार पर हमारे विरुद्ध कर दिया था इसका कुछ-कुछ आभास प्रदीप जी के अपने आफिस मे की गई  चर्चा से हो गया था। बालाघाट वाले उनके छोटे भाई जिनको डॉ शोभा बहुत  अच्छा बताती हैं उन्हें हवाई जहाज मे बैठा कर जल्दी से जल्दी  लखनऊ रवाना करने का दबाव अपने भाई-भाभी पर बना रहे थे। अतः एक बार फिर घर मे ताला लगा कर उन्हे लेने यशवन्त और मैं पटना गए किन्तु उनके घर नहीं गए। गोलघर(पैसे वालों को जूते की ठोकर और पटना का गोलघर)आदि मे समय व्यतीत कर दिया और उनके घर के बिलकुल निकट से पूनम को साथ ले लिया। चूंकि कमलेश बाबू के भतीज दामाद कुक्कू-शरद पार्सल बाबू के कारनामों के कारण उनसे संपर्क नहीं रखा था और खुद डॉ शोभा के द्वारा  अप्रैल 2011 मे यशवन्त  को 'पूत-कपूत' कहने के बाद  से उन लोगों से भी संपर्क नहीं था अतः उन लोगों ने पूना प्रवासी ब्लागर के माध्यम से पूनम के भाइयों को भी तोड़ लिया।हालांकि आगरा मे जब विकट आर्थिक स्थिति आ गई थी और मेरे पास कुल रु 2000/- मात्र ही शेष रह गया था( और हमारी छोटी बहन  डॉ शोभा हेल्प मांग लेने का आश्वासन आगरा फोर्ट स्टेशन पर जयपुर जाते समय देकर भी फोन पर मदद मांगने पर चुप्पी साध गईं थीं तब)पूनम द्वारा अपनी भाभी जी  से ज़िक्र करने पर उन्होने तत्काल रु 5000/- का ड्राफ्टभेज दिया था। यह अलग बात है कि हमे वे रुपए खर्च नहीं करने पड़े और हमे अपने मकान के सौदे का एडवांस मिल गया था फिर भी त्वरित सहायता हेतु उनके एहसान को भुलाया नहीं जा सकता।

आगरा छोडने से पूर्व 2009 मे पूनम के आग्रह पर हम लोग पटना गए थे तब उनकी आरा वाली चाची का व्यवहार खटकने वाला था जिनकी बेटी भी पूना मे ही रहती है और पूना प्रवासी ब्लागर से संबन्धित है। उसी के माध्यम से पूनम के बड़े भाई-भाभी के दिमाग मे क्षेत्रीयता और जातीय संकीर्ता का प्रवेश करवाया गया। लखनऊ आने के बाद से पूनम का लगातार आग्रह पटना मिलने जाने  को था अतः मई 2012 मे हम लोग उनको वहाँ छोडने गए थे जब बहुखंडी ने sms भेजकर बुलाया था।



लखनऊ आकर मिलने के क्रम मे बड़े ताऊजी की बेटियों मे सबसे छोटी जो मुझसे छह माह ही छोटी हैं के घर न जा सके थे तो पूनम के पटना से लौटने के बाद 02 अक्तूबर 2012 को उनके घर भी गए थे। हाई कोर्ट मे एडवोकेट उनके पति जिनहोने 1992 मे ऋषिराज की शादी के वक्त अपने घर आने को बहुत ज़ोर दिया था अब 20 वर्ष बाद बहुत बदले हुये थे या डॉ शोभा और उमेश की लामबंदी का यह असर रहा हो सकता है। 

'' न गरज है न मजबूरी है;मेल रखना क्या ज़रूरी है?" मेरा एक सिद्धान्त है जिस पर तब अमल करता हूँ जब कोई झुकाने-दबाने का प्रयास करता है अन्यथा निस्वार्थ भाव से मैं सबकी मदद करने को सदैव तत्पर रहता हूँ। पहले तो डॉ शोभा ने मुझको कहा था कि मैं या तो उनके भोपाल मे शिफ्ट करूँ या पूनम के पटना मे । स्वतंत्र रूप से लखनऊ मेरा आना उनको नागवार लगा और क्योंकि यशवन्त की ऐसी इच्छा थी इसलिए सारा हमला उसे ही फोकस करके किया गया और पूना प्रवासी ब्लागर के माध्यम से भी उसे क्षति पहुंचाने का प्रयास हुआ। चूंकि लखनऊ आने पर कमलेश बाबू के तमाम पोल-पट्टे खुल गए अतः वह शोभा से मेरे यहाँ आने का विरोध कराते रहे। कमल दादा और शैल जीजी ने शोभा के बारे मे जांनकारीया  दी थीं उन दोनों का निधन 2011 मे हो गया  और माधुरी जीजी ने कमलेश बाबू के बारे मे  जिंनका निधन जनवरी 2012 मे हो गया। इन लोगों की सोच है यदि मेरा भी  निधन हो जाये तो वे यशवन्त को आसानी से दबोच सकते हैं। पूना प्रवासी ब्लागर के IBN7 मे कार्यरत चमचा ब्लागर ने तो पूरे परिवार को उड़ा देने की धमकी सितंबर मे दी थी।

हमे मिलना जुलना और मेल रखना तो पसंद है परंतु झुक-दब कर नहीं। इस सन्दर्भ मे पहले भी बिजौली के क्रांतिकारी जन कवि 'विजय सिंह,पथिक' जी का यह प्रेरक वचन  प्रस्तुत कर चुका हूँ फिर से दोहरा रहा हूँ---

"यश -वैभव-सुख की चाह नहीं,परवाह नहीं जीवन न रहे। ।
इच्छा है यह है-जग मे स्वेच्छाचार  औ'    दमन न 
 रहे । । "

क्रमशः ..................... 


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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

मिलना-जुलना कमजोरी नहीं है ---विजय राज बली माथुर

मौलिक रूप से मुझे मेल-जोल और आना-जाना पसंद है। परंतु साथ-साथ मैं यह भी ध्यान रखता हूँ कि,यदि किसी को मेरा आना-जाना या मेल-जोल रखना पसंद नहीं है या इसे वह मेरी कोई कमजोरी समझ रहा है तो मैं फिर उसके यहाँ आना-जाना और उससे मेल-मुलाक़ात बंद कर देता हूँ।तीन वर्ष पूर्व  लखनऊ आने के बाद छोटों-बड़ों सभी के यहाँ मैं अपनी पहल पर गया था। सबसे पहले एक भांजी जो खानदान की सबसे बड़ी बहन की पुत्री हैं और जिंनका निवास मेरे निवास से कोई डेढ़ किलोमीटर दूर ही होगा ,गया था। फिर उनकी माता अर्थात माधुरी जीजी के यहाँ 18 km दूर गया परंतु भांजी को और जीजी के घर भांजे को शायद हमारा आर्थिक स्तर अपने अनुकूल न लगा। भांजी के घर दोबारा भांजा दामाद साहब की जन्मपत्री का विश्लेषण देने दो दिन बाद ही  गया था  और जीजी के निधन पर उनके शांति हवन मे भाग लेने इस वर्ष जनवरी मे। 

जीजी के घर से जनवरी 2011 मे उनके सबसे छोटे भाई उमेश के घर अशरफाबाद भी गया था। मैंने पाया कि उमेश को शायद अच्छा नहीं लगा था। वह अपनी भांजी के पास हमारी कालोनी मे आते रहते हैं परंतु हमारे घर आना उनको तौहीन लगता है । उनसे दोबारा मुलाक़ात अप्रैल 2011 मे इंदिरानगर मे छोटी बहन के देवर की बेटी की शादी मे हुई थी। उनको कमलेश बाबू ने मुझे चौराहे से विवाह स्थल तक ले आने को भेजा था। डॉ शोभा और कमलेश बाबू से उमेश,उनसे बड़े नरेश और उनसे बड़े ऋषिराज सभी मधुर संबंध रखे हैं। एक तो वह BHEL से फोरमेन के रूप मे रिटायर्ड  हैं दूसरे अब प्राईवेट कंपनी मे इंजीनियर। जो सबसे बड़ी बात है वह यह कि पूनावासी शोभा की छोटी बिटिया की सुसराल से उमेश और ऋषिराज के भी सुसराली रिश्ते हैं। इन तीनों की सुसराल का रिश्ता सीधा-सीधा कुक्कू (कमलेश बाबू के भतीज दामाद जो दिवंगत शालिनी के भाई भी हैं) से है। कुक्कू के पार्सल बाबू भाई हमारे आगरा के मकान पर आँखें गड़ाए हुये थे और आर्थिक व सामाजिक रूप से हमे वहाँ क्षती पहुंचाते रहे थे। 

उमेश के अशरफाबाद से संबन्धित एक विकलांग बैक अधिकारी ने उनके इशारे पर यहाँ कालोनी मे हमारे विरुद्ध लामबंदी करके मेरे तथा यशवन्त के आर्थिक लाभ को अवरुद्ध कर रखा है। कमलेश बाबू ने अपने एक  मित्र  बिल्डर/ ठेकेदार  लिटोरिया के माध्यम से भी हमारे विरुद्ध वातावरण बना रखा है। चूंकि हम लोग अपने निजी आर्थिक हितों की परवाह किए बगैर सार्वजनिक हितों को सम्पन्न कराते रहते हैं इसलिए विपरीत परिस्थितियों मे भी स्वाभिमान से टिके रहते हैं। ब्लाग जगत मे भी यशवन्त लोगों को निशुल्क सहायता करता रहता है और मैं ब्लाग तथा फेसबुक के साथियों को निशुल्क ज्योतिषीय परामर्श देता रहता हूँ। डॉ शोभा/कमलेश बाबू की छोटी बेटी चंद्रप्रभा उर्फ मुकतामणि ने विमान नगर ,पूना मे अपनी पड़ौसन रही मूल रूप से पटनावासी श्रीवास्तव ब्लागर को उकसा/गुमराह करके ब्लाग जगत मे भी  यशवन्त और मेरे विरुद्ध  वातावरण तैयार किया है। इस पूना प्रवासी ब्लागर के दिल्ली वास कर रहे दो  सहयोगियों ने तो निम्नत्तम  स्तर पर जाकर मेरे ज्योतिषीय आंकलनों को गलत करार देने का असफल कुप्रयास भी किया है। जब कि  पूना प्र्वासी ब्लागर खुद मुझसे चार-चार जन्म्पत्रियों के निशुल्क विश्लेषण प्राप्त कर चुका है। खुद को ज़रूरत से ज़्यादा काबिल समझने वाले ये श्रीवास्तव ब्लागर्स यह नहीं समझ रहे हैं कि डॉ शोभा और उनकी बेटी जो श्रीवास्तव लोगों के घोर विरोधी और आलोचक हैं ने किस तिकड़म से उनको उलझाया है। क्योंकि मेरी यह पत्नी पूनम जो पटना के श्रीवास्तव परिवार से हैं उनको नागवार लगती हैं और कांटे से कांटा उखाड़ने के प्रयोग मे  मेरी उन बहन व भांजी ने पटना से ही संबन्धित श्रीवास्तव ब्लागर को मेरे विरुद्ध भिड़ाया है। 

शत्रु सिर्फ शत्रु होता है और उससे कोई रिश्ता-नाता नहीं होता है। जिनकी बुद्धि पैर के तलवे मे होती है उन्हे कोई समझा भी नहीं सकता है। ब्लाग जगत के इस झगड़े ने फेसबुक तथा ब्लाग जगत मे मेरे ज्योतिषीय विश्लेषणों को अच्छी मान्यता प्रदान कर दी है। अब तक ज्योतिष की आलोचना करने वाले साम्यवादी ब्लागर्स और नेता गण भी मुझसे ज्योतिषीय विश्लेषण इस झगड़े के बाद ले चुके हैं जो संख्या मे 11 हैं। इससे पूर्व एक तथाकथित साम्यवादी फेसबुकिया जो कानपुर से हैं झगड़ालू गुट मे मिल गए थे और मेरे विरुद्ध खूब लामबंदी कर चुके थे जो निष्प्रभावी रही। पूना प्रवासी श्रीवास्तव ब्लागर चाहे जितनी एहसान फरामोशी दिखाये और लामबंदी कर ले दूसरे लोगों को लाभ उठाने से तो वंचित कर सकता है परंतु मेरे ज्ञान को नष्ट नहीं कर सकता। कनाडा प्रवासी एक ब्लागर जो मुझसे ज्योतिषीय विश्लेषण निशुल्क प्राप्त कर चुका था इस पूना प्रवासी के भंवर जाल मे फंस गया तो वही प्रवास कर रहे एक दूसरे ब्लागर ने उसकी परवाह न करते हुये  मेरी सलाह पर चलते हुये भारत मे रोजगार प्राप्त करने मे सफलता प्राप्त कर ली। एहसान फरामोशों की इस दुनिया मे वह ब्लागर एहसानमंद निकला है। अपने विवाह का आमंत्रण जब उस ब्लागर ने दिया और आकांक्षा प्रकट की कि उनके वैवाहिक जीवन की सफलता हेतु मैं आशीर्वाद दूँ तो लगा कि धरा अभी अच्छे लोगों से विहीन नहीं हो गई है। IBN7 वाला चमचा हो या दूसरे ब्लागरों को मेरे विरुद्ध धमकाने वाला दूसरा चमचा पूना प्रवासी ब्लागर को उन लोगों की सहायता से मेरे परिवार को नष्ट करने मे सफलता नहीं मिल सकेगी।

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शनिवार, 24 नवंबर 2012

श्रद्धांजली उसे जो 12 घंटे ही जीवित रहा








आज तीस वर्षों मे पहली बार उसे श्रद्धांजली देने हेतु 07 विशेष आहुतियों से हवन किया। मेरी श्रीमती जी (पूनम) का कहना था कि जब हम परिवार के निकटतम दिवंगत सदस्यों यथा-बाबूजी,बउआ,शालिनी हेतु हवन करते हैं तो हमे उस अनाम संतान हेतु भी हवन करना ही चाहिए।  क्योंकि चाहे वह  12 घंटे ही जीवित रहा हो, था तो परिवार-खानदान का ही सदस्य। बात ठीक थी तो हमने 24 नवंबर 1982 की प्रातः 04 बजे जन्मे और उसी साँय 04 बजे दिवंगत बड़े पुत्र को पहली बार इस प्रकार स्मरण किया।

वह आत्मा जिसका संबंध हमसे रहा है अब चाहे जहां हो जिस अवस्था मे हो उसकी शांति व सद्गति हेतु हवन द्वारा दी आहूतियाँ तत्काल उस तक हमारी श्रद्धा को वायु के माध्यम से पहुंचा देती हैं।

उसके जन्म से पूर्व हमारी बउआ ने शालिनी की इच्छा के अनुरूप उनको उनकी माँ के पास टूंडला भेज दिया था। 24 नवंबर 1982 को प्रातः सात बजे उसके नानाजी आगरा आए और उसके जन्म तथा अस्वस्थता की सूचना दी। तत्काल उनके साथ बउआ व मैं टूंडला गए वहाँ के प्रसिद्ध चाईल्ड स्पेशलिस्ट को दिखाया। उन्होने चिंता न होने की बात कही थी। तीन बजे तक हम लोग वहाँ थे फिर आगरा लौट आए थे। शाम सात बजे पार्सल बाबू शरद मोहन माथुर यह संदेश लेकर आए कि "बच्चे की डेथ हो गई है"। पहले उनकी माता श्री कहती थीं कि शरद खुशखबरी लेकर ही हमारे घर आएगा। राजा-की-मंडी पर रोजाना ड्यूटी करने आने के बावजूद वह कभी अपनी बहन शालिनी से मिलने हेतु भी  इससे पहले कभी  नहीं आए थे।

रात मे मैं उनके साथ चला गया था। बउआ व बाबूजी को धक्का लगा था और वे सफर की स्थिति मे न थे। अगले दिन 25 तारीख को एक पंखे पर उसके पार्थिव शरीर को रख कर टूंडला मे ही दफना दिया। चूंकि मैं ही उसे अपने हाथों ले कर गया था इस पर मेरे माता-पिता का दृष्टिकोण था कि उन लोगों को मेरे द्वारा नहीं भिजवाना चाहिए था। जब लौट कर आ गए थे तब किसी प्रकार हिम्मत करके बउआ व बाबूजी भी पहुंचे । बाबूजी ने उसे बिलकुल भी न देखा था जिसका उन्हे मलाल रहा । बउआ ने तो गोद मे लिया भी था। 

कुछ कारणों से उस बच्चे की जन्मपत्री का विश्लेषण अभी नहीं दे रहे हैं ,फिर कभी मौका लगा तब देंगे। लेकिन एक स्वप्न का ज़िक्र करना अभी ही मुनासिब समझता हूँ। उसके जन्म से लगभग दो माह पूर्व मैंने स्वप्न मे उस बच्चे को सफ़ेद कफन मे लिपटे देखा था। बउआ को बताया तो उन्होने कह दिया कि स्वप्न मे मुर्दा देखना शुभ होता है-स्वप्न शास्त्र का ऐसा ही दृष्टिकोण है भी। किन्तु मैंने तो जन्म से पूर्व बच्चे की स्थिति देखी थी और अक्सर बहुत बातों का मुझे पूर्वाभास होता रहा है अतः मुझे कुछ-कुछ खटका भी था जो सही ही निकला भी।

पहले शालिनी को मानसिक वेदना के भय  से उसका स्मरण नहीं किया फिर इसलिए कि,उसके छोटे भाई यशवन्त को जिसने उसे देखा भी नहीं है कोई वेदना न हो। परंतु अब यह सोच कर पूनम का सुझाव स्वीकार कर लिया कि आने वाले कुछ वर्षों बाद जब यशवन्त हमे श्रद्धांजली देना चाहे  तब अपने बड़े भाई को भी स्मरण मे रख सके अतः अभी अपने समय से ही उस अनाम  संतान को श्रद्धांजली देना प्रारम्भ कर दिया है। 

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बुधवार, 14 नवंबर 2012

जब मैं खुद ज्योतिष विरोधी था

बाबू जी ने भुआ के कहने पर उनके किसी जानकार को हम सब कि,जन्मपत्रियाँ दिखाई होंगी। उन सज्जन ने मेरी जन्मपत्री देख कर कहा था कि यह बालक अपने पिता को 11 वर्ष की अवस्था मे गद्दी पर बैठा देगा। जब मैं 11वे वर्ष मे चल रहा था चीनी आक्रमण के दौरान  नवंबर 1962 मे बाबूजी का तबादला नान फेमिली स्टेशन-सिलीगुड़ी हो गया था। परिवार दो स्थानों पर रहने को बाध्य था अतः उस समय से मेरे मन मे ज्योतिष और ज्योतिषियों के प्रति काफी 'कटु' नफरत थी। बड़ों के साथ-साथ मंदिर जाना मजबूरी थी परंतु मन मे मुझे वह 'ढोंग' नापसंद था। इसका एक कारण तो पाँच वर्ष की अवस्था मे लखनऊ के अलीगंज मंदिर मे भीड़-भड़क्का के बीच कुचलते-कुचलते बचने की घटना थी और दूसरे मूर्तियों के दलाल -पंडितों का दुर्व्यवहार।वृन्दावन के बाँके बिहारी मंदिर से दर्शन करके लौटते ही बाबूजी का तबादला सिलीगुड़ी होने की सूचना मिली थी। यह भी मंदिरों के 'भगवानवाद' पर अविश्वास का प्रबल कारण था। 
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जून 1975 मे एमर्जेंसी के दौरान मेरठ की नौकरी छूटने के बाद सितंबर 1975 मे  आगरा मे होटल मुगल मे दूसरी नौकरी मिल गई थी। 14 सितंबर को लिखित 'टेस्ट' हुआ था जिसमे 20 प्रतिभागी शामिल हुये थे और उनमे से हम चार लोगों का 20 सितंबर को साक्षात्कार हुआ था। साक्षात्कार मे मेरे अतिरिक्त सुदीप्तों मित्रा,विनोद श्रीवास्तव और कोई सक्सेना साहब शामिल थे। मेरे और मित्रा के नियुक्त हो जाने के बाद विनोद श्रीवास्तव यूं ही हम लोगों से मिलने आते रहते थे। अतः उन से हमदर्दी हो गई थी। मेन कंट्रेक्टर लूथरा साहब ने अपने आफिस के लिए विश्वस्त लेखा सहायक बताने को मुझसे कहा और मैंने विनोद श्रीवास्तव का नाम सुझा दिया और वह वहाँ नियुक्त हो गए। इस प्रकार प्रतिदिन अनेकों बार हम लोग परस्पर संपर्क मे रहते थे।


लूथरा साहब के एक विश्वस्त सुपरवाईजर थे-अमर सिंह जी जो बार्डर सिक्योरिटी फोर्स के रिटायर्ड़ सब इंस्पेक्टर थे। वह हस्तरेखा एवं ज्योतिष मे पारंगत थे। विनोद उनसे सलाह मशविरा करते रहते थे। चूंकि मैं तब ज्योतिष का घोर विरोधी था अतः मैं विनोद की इस बात के लिए कड़ी आलोचना करता था। एक दिन सुदीप्तों और विनोद ने ज़बरदस्ती मेरा हाथ अमर सिंह जी को देखने का आग्रह किया जो कुछ उन्होने बताया पिछला सही था । अगले के बारे मे उन्होने कहा कि अधिक से अधिक  कुल 15 वर्ष नौकरी करोगे बाकी 'दिमाग से खाओगे'। 26 वर्ष की उम्र मे अपने मकान मे पहुँच जाओगे और 43 वर्ष की उम्र मे उसके मालिक बन जाओगे 48 वर्ष की उम्र मे 'राजदूत स्तर' का दर्जा मिलेगा।उस समय मुझे रु 275/-मासिक वेतन मिलता था बचत कुछ न थी ,रिश्वत/कमीशन लेता न था मकान कहाँ से बनेगा  मुझे यह सब  हास्यास्पद लगा था और मैंने अपना ऐतराज भी उनको जता दिया था,जिस पर हँसते हुये उन्होने कहा था कि आज तुम मुझ पर हंस रहे हो आने वाले समय मे तुम खुद ही सबको उनका भविष्य समझाओगे। प्रोजेक्ट पूर्ण होने पर कंट्रेक्टर के साथ अमर सिंह जी दिल्ली चले गए। लूथरा साहब ने 'अमर सिंह पामिस्ट एंड एस्ट्रोलाजर' नाम से उनका आफिस खुलवा दिया और अपना परामर्शदाता बना कर अपने निवास पर ही उनको रहने का स्थान प्रदान कर दिया। 

 
सुदीपतो मित्रा कहीं से कुछ ज्योतिष की किताबें लेकर आए और मुझे पढ़ने को दी ,चूंकि किताबें पढ़ने का तो मैं शौकीन था हीं सबको पढ़ा एवं कुछ खास-खास बातों को नकल उतार कर अपने पास लिपिबद्ध कर लिया। बाद मे हरीश छाबरा ने भी कुछ हस्तरेखा व अंक शास्त्र की पुस्तकें पढ़ने को दी उनसे भी कुछ-कुछ लिख कर रख लिया। प्रकट मे ज्योतिष का विरोध जारी रखते हुये अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकालता रहता था। 1970 मे मेरठ मे  साईकिल से मेरा एक्सीडेंट मेरी ही गलती से हुआ था किन्तु चोट ज़्यादा मोटर साईकिल सवार को लगी थी। नवभारत टाईम्स मे रतन लाल शास्त्री'रतनाम्बर' ने उस दिन के भविष्य फल मे बाबूजी को आर्थिक हानी बताई थी और मेरा ठीक था। गलती होते हुये भी मुझे कम चोट लगी थी। साईकिल टूटी थी और आटा सड़क पर आधा बिखर गया था। अर्थात बाबूजी को आर्थिक हानी तो हुई ही थी इससे इंकार नहीं किया जा सकता था। किन्तु ऊपर से मैंने ज्योतिष का विरोध जारी रखते हुये अब इसके निष्कर्षों पर निगाह रखनी शुरू कर दी थी। अतः 1977 मे चुनावों की घोषणा होते ही मैंने मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने की घोषणा करके अपने निष्कर्ष को सार्वजनिक कर दिया था। मेरा खूब मखौल उड़ाया गया जो लोग यह मानते भी थे कि इन्दिरा जी सत्ता मे न आ सकेंगी उनका आंकलन बाबू जगजीवन राम के प्रधानमंत्री बनने का था। आगरा से सेठ अचल सिंह के हारने  पर राय बरेली से इन्दिरा जी के हारने की भी घोषणा मैंने कर रखी थी। सभी बातें हास्यास्पद थीं जो कि चुनावों के बाद मेरे आंकलन को सही सिद्ध कर गई।
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1972 से 75 तक तीन वर्षों मे रु 3000/- मेरठ मे वेतन से बचा कर उसी फर्म मे एफ डी कर रखे थे। सेवा समाप्ती के बाद वे रिफ़ंड नहीं भेज रहे थे। बाबूजी के एक सहकर्मी आगरा मे 'कंचन डेरी' नाम से व्यवसाय करते थे उन्होने सलाह दी कि उनको लीगल नोटिस भेज दो । अपने मित्र वकील साहब से उनका लेटर हेड लाकर उन्होने दिया और उस पर मैंने सुदीप्तों मित्रा से अपनी भाषा टाईपराईटर द्वारा  लिखवाकर रेजिस्टर्ड डाक से भेज दिया। इधर उसी वर्ष   1976 मे हमारे एक साथी आवास-विकास का मकान के लिए फार्म भर रहे थे मुझ पर भी फार्म भरने का दबाव बनाया। मैंने फार्म तो भर दिया परंतु लीगल नोटिस के जवाब मे वहाँ से दो चेक दिल्ली बैंक पर बना कर वहाँ से भेजे गए थे जिंनका कैश मिलने पर ही ड्राफ्ट बनवा सकता था। इत्तिफ़ाक से 25 मार्च 1977 को जब मोरारजी देसाई दिल्ली के रामलीला मैदान मे  नई सरकार की सभा कर रहे थे मैं आगरा कैंट सेंट्रल बैंक से तीन हज़ार का ड्राफ्ट हाउसिंग बोर्ड के नाम बनवा रहा था।

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 11 माह बाद लखनऊ से मुझे सूचना मिली कि पहली किश्त जमा कर दूँ तो ठीक वरना एलाटमेंट केनसिल हो जाएगा। तब तक वेतन बढ़ कर रु 500/- हो चुका था अतः रु 290/- की मासिक किश्त भरने की दिक्कत न हुई। 1978 मे जब मुझे मकान का पज़ेशन मिला उम्र 26 वर्ष हो गई थी। तब एस्ट्रोलाजर अमर सिंह जी की बात सच साबित होने का  यह प्रमाण था। ठेकेदार के किसी काम से जब वह होटल मुगल आए थे तब उनसे मिल कर मैंने उनकी बात प्रमाणित होने की सूचना दे दी थी। 15 वर्षों की किश्तें पूरी होने के बाद रिश्वत न देने के कारण रेजिस्ट्रेशन मे व्यवधान रहा और अंततः राज्यपाल मोतीलाल बोरा जी से शिकायत करने के बाद ही 1994 मे 42 वर्ष उम्र पूरी करने के बाद ही मेरे नाम रेजिस्ट्रेशन हो सका जिससे अमर सिंह जी के आंकलन पूरी तरह सही सिद्ध हुये।

इसके बाद मैंने ज्योतिष अध्ययन पूरी तल्लीनता से किया लेकिन अब  छिट्ट-पुट्ट बातें विश्वस्त लोगों को बताने भी लगा था। सफलता से इस क्षेत्र मे आगे बढ्ने का उत्साह भी बंढ़ता चला गया। नौकरी के साथ-साथ लोगों को निशुल्क परामर्श देना भी शुरू कर दिया और सन2000 ई .मे नौकरी बिलकुल छोड़ कर 'ज्योतिष' को ही आजीविका बना लिया। ईमानदारी पर चलने और ढोंग-पाखंड का प्रबल विरोध करने के कारण आर्थिक लाभ तो न हुआ। किन्तु मान-सम्मान ज़रूर बढ़ा। इसी कारण पूना प्रवासी कुछ चिढ़ोकरे-एहसान फरामोश ब्लागर्स ने मेरे ज्योतिष ज्ञान को लक्ष्य करके 'ज्योतिष एक मीठा जहर' सरीखे आलेख भी IBN7 के नुमाईन्दे से लिखवाये।  

दूसरे ब्लाग पर मैंने ज्योतिष संबंधी कई आलेख दिये हैं और दुष्प्रचार का माकूल जवाब भी दिया है। ज्योतिष के नाम पर आडंबर का मैंने सख्त प्रतिवाद किया है।

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बुधवार, 7 नवंबर 2012

कारपोरेट ट्रेड यूनियनिज़्म का खेल/शिकार

"अपने आर्थिक हितों के लिए बनाए गए स्वेच्छिक संघों को श्रम संघ कहते हैं । " यह है ट्रेड यूनियन्स की सर्वमान्य परिभाषा।
15 मई 1972 से 'सारू स्मेल्टिंग प्रा.लि.',मेरठ मे मैंने अकाउंट्स विभाग मे कार्य प्रारम्भ किया था। 11 माह बाद दो और लोगों के साथ मुझसे भी रिज़ाईन करने को कहा गया था,आश्वासन यह था कि दो दिन बाद फिर से नया एप्वाईंट मेंट लेटर मिल जाएगा। उन दो साथियों की सोर्स तब भी मौजूद थी जबकि मुझे जाब दिलवाने वाले फेकटरी इंस्पेक्टर महेश चंद्र माथुर  साहब स्थानांतरित हो चुके थे। मैंने यह सोच कर कि नौकरी यों भी जानी  ही है तो रिज़ाईन क्यों करूँ जब चाहें मेनेजमेंट हटा ही देगा रिज़ाईन करने से इंकार कर दिया। दो दिन के अंतराल दिखा कर उन दोनों को नया एप्वाईंट मेंट लेटर दे दिया गया जबकि कार्य लगातार करते रहे। कुछ दिन बाद फेकटरी मेनेजर बृजेन्द्र कुमार अखोरी साहब द्वारा हस्ताक्षरित 'शो काज नोटिस' मुझे दिया गया।

पूर्व परसोनल आफ़ीसर डॉ मिश्री लाल झा साहब (जो मेरठ यूनिवर्सिटी मे ए आर हो गए थे ) को मैंने वह पत्र दिखाया जिसका उन्होने उत्तर डिक्टेट कर दिया और हिदायत दी कि लिख कर मैं उसे पूर्व फेकटरी मेनेजर जैन साहब को(जो दूसरी फेकटरी मे चले गए थे) दिखा लूँ। जैन साहब ने झा साहब के लिखाये उत्तर को सही बता कर जमा करने को कह दिया। उत्तर पढ़ते ही अखोरी साहब खुद मेरी सीट पर चल कर आए और अपने साथ गैलरी मे ले जाकर बोले मुझसे क्यों लड़ते हो?मैं भी तो कायस्थ हूँ। मैंने कहा साहब तो आपने फिर यह लेटर मुझे क्यों दिया था?उत्तर देना मेरा फर्ज़ था। वह बोले लगता है तुम उस गधे (यह उन्होने झा साहब के लिए कहा था)के पास चले गए वह पंडित दोनों कायस्थों को लड़ाना चाहता है। खैर अब इसकी कापी जो रिसीव कराई है उसे फाड़ दो ओरिजनल भी फाड़ देते हैं। मैंने उनसे कहा मैं कोई कागज नहीं फाड़ सकता आप अपने लेवल पर उसे रिजेक्ट कर सकते हैं। उन्होने कहा कि ठीक है हम कोई एक्शन नहीं लेंगे तुम भी अब चुप रहना।

बात आई गई हो गई। 'सारू मजदूर संघ 'के कोषाध्यक्ष आनंद स्वरूप गुप्ता जी मुझसे बोले जब तुम अकेले अपने लिए लड़ सकते हो तो यूनियन मे शामिल होकर सबके भले के लिए काम करो और इस प्रकार ट्रेड यूनियन मे मेरा पिछली तारीख से प्रवेश हो गया। बाद मे कार्यकारिणी मे भी मैं रहा। किन्तु प्रेसीडेंट सहदेव शर्मा जी को मिला कर जून 1975 मे एमर्जेंसी लागू होने पर मेनेजमेंट ने मुझे बर्खास्त कर दिया।

पहले वहाँ 'मेटल वर्कर्स यूनियन'सक्रिय थी जिसका नेतृत्व एस पी सहगल साहब के पास था,वह जसवंत शुगर मिल के कर्मचारी और यूनियन के महामंत्री रहे थे। किन्तु एक अन स्किल्ड वर्कर ओ पी शर्मा साहब को मेनेजमेंट ने आगे करके 'सारू मजदूर संघ' की स्थापना करा दी थी जो शुरू मे एक पपेट यूनियन थी। फिर सहगल साहब के निर्देश पर सभी कर्मचारी इसी मे प्रवेश कर गए थे और अधिकार कर लिया था ,अंततः नियंत्रण भी सहगल साहब के हाथों मे आ गया था। एस डी शर्मा जी भी ओ पी शर्मा जी की राह पर चल निकले थे और पहला शिकार मुझे बनाया गया था। मेरे हटने के कुछ वर्ष बाद यूनियन दो फाड़ होकर भंग हो गई थी। 

सवा तीन वर्ष के अनुभव के आधार पर निर्माणाधीन 'होटल मोगूल ओबेराय',आगरा मे मुझे 22 सितंबर,1975 से  जाब तो मिल गया परंतु बिना एक्सपीरिएन्स सर्टिफिकेट के वेतन कम मिला। बाद मे चालू होने पर यह 'होटल मुगल शेरेटन'हो गया और मेनेजमेंट को 'स्टैंडिंग आर्डर्स' मे 'होटल एंड रेस्टोरेन्ट वर्कर्स यूनियन' की ओर से दाखिल आपत्तियों से निपटना था। अतः कुछ सुपरवाईजर्सको आगे करके मेनेजमेंट ने एक 'स्टाफ फेल्फेयर कमेटी' का गठन कराने की पहल की। अकाउंट्स विभाग के प्रतिनिधि के रूप मे सुदीपतो मित्रा ने मेरा नाम लिख कर एक कागज पर हस्ताक्षर शुरू कराये थे और तीन हस्ताक्षर हुआ वह कागज जैसे ही मेरे समक्ष आया मैंने उसी पर लिख दिया कि,हम सब सुदीपतो मित्रा को अपना प्रतिनिधि चुनते हैं। शेष 30-35 लोगों ने मेरे कथन का समर्थन कर दिया। बाकी विभागों से सर्व सम्मत एक-एक नाम पहुंचे थे। मित्रा का तर्क था कि बहुमत ने विजय माथुर का समर्थन किया है अतः वही निर्वाचित माना जाए और मेरा तर्क था कि चूंकि मैंने सुदीप्तों मित्रा के लिए समर्थन मांगा है अतः वह निर्वाचित हो चुके हैं -शेर की सवारी कर चुके हैं अब उतर नहीं सकते। पर्सोनेल मेनेजर को मेरा तर्क स्वीकार करना पड़ा। एक तरफ जेनरल मेनेजर की अध्यक्षता वाली यह स्टाफ वेल्फेयर कमेटी कर्मचारियों के हितों की बात उठाती रही दूसरी तरफ स्टाफ के इन कुल  11 सदस्यों ने मेनेजमेंट की शह  पर 'होटल मुगल कर्मचारी संघ' नामक यूनियन का गठन प्रारम्भ कर दिया। समस्या सदयस्ता की थी कुछ सुपरवाईजर्स ही इसके सदस्य बने थे। मेरठ मे सारू स्मेल्टिंग के कटु अनुभव के कारण मैं दिलचस्पी नहीं ले रहा था और बाकी स्टाफ मेरी गैर हाज़िरी वाली किसी भी यूनियन मे शामिल नहीं हो रहा था।

सुदीप्तों मित्रा का बैंक आफ बरोदा मे DRO के रूप मे सिलेक्शन हो गया। होटल मुगल कर्मचारी संघ का महामंत्री पद रिक्त हो गया। प्रेसीडेंट अशोक भल्ला साहब और ज्वाईंट सेक्रेटरी योगेन्द्र कुमार सिक्का ने कमेटी की बैठक मे महामंत्री पद पर मेरे चुनाव की घोषणा कर दी जबकि हकीकत मे मैं तो साधारण सदस्य भी न था। सार्वजनिक घोषणा हो चुकने के बाद  मेरा इंनकार 'पलायन' हो जाता  अतः 'गले पड़े का ढ़ोल बजाना' मेरी मजबूरी हो गई। एक सप्ताह मे सदस्यता 250 की संख्या पार कर गई। यूनियन के रेजिस्ट्रेशन हेतु जो इंस्पेक्टर जैन साहब कानपुर से आए थे उनसे मैंने रिटायर्ड  'डिप्टी चीफ इंस्पेक्टर आफ फेकटरीज़' श्री महेश चंद्र माथुर का हवाला देते हुये बताया कि वह हमारे नानाजी के फुफेरे भाई हैं। जैन साहब उनके आधीन काम कर चुके थे उन्होने बगैर कुछ चेक किए ही यूनियन रेजिस्टर्ड करने की सिफ़ारिश कर दी।

जेनेरल मेनेजर सरदार चरण जीत सिंह पेंटल ओबेराय ग्रुप मे यूनियन दो फाड़ करने मे कामयाब रहे थे उनको पर्सोनेल मेनेजर हरी मोहन झा साहब ज़्यादातर मेनेजर्स को अपने साथ लामबंद करके तथा स्टाफ फेल्फेयर कमेटी (एवं यूनियन)के सदस्यों को पोट-पाट कर अपने पाले मे करते हुये झुका लेते थे। झा साहब खुद को रिंग मास्टर कहते थे। मेरे यूनियन का महामंत्री बनने पर भी  उन्होने पुराना खेल जारी रखना चाहा जो न चल सका। मैंने यूनियन को पूरी तरह कर्मचारी हितों के साथ जोड़ दिया और मेनेजमेंट की गुटबाजी का मोहरा न बनने दिया। झा साहब ने मुझे चेतावनी  देने के तौर पर अपना पुराना किस्सा सुनाया था जो इस प्रकार है ---

झा साहब डॉ जगन्नाथ मिश्रा एवं ललित नारायण मिश्रा जी के भतीज दामाद थे और इसी योग्यता के आधार पर कालेज से मात्र बी ए करने बाद जमशेदपुर मे टाटा के यहाँ पर्सोनेल आफ़ीसर बन गए थे। यूनियन का बुजुर्ग घाघ महामंत्री हर मेनेजर को काबू रखता था। इनमे नया जोश था इनहोने एक दिन उसे धक्का देकर अपने आफिस से हटा दिया वह चला भी गया। जेनेरल मेनेजर ने इनको बुला कर हवाई टिकट पकड़ा कर प्रमोशन पर कलकत्ता रवाना कर दिया और हिदायत दी कि सामान भूल जाओ वहाँ कंपनी बंदोबस्त कर देगी ।जब स्टाफ को एकत्र कर वह मजदूर नेता पहुंचा तो जी एम ने उसे झूठ कह दिया कि झा को बर्खास्त करके हटा दिया है अतः वह भाग गया।

मैंने झा  साहब की कहानी सुन कर कोई जवाब नहीं दिया लेकिन मन मे दृढ़ निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो उनके आगे झुकना नहीं है। बदली परिस्थितियों मे जेनेरल मेनेजर मीटिंग मे मेरे द्वारा प्रस्तुत सुझावों को तत्काल मंजूर करने लगे जिससे झा साहब को झटका लगा और स्टाफ के समक्ष मेरी साख और बढ़ गई। भल्ला साहब एवं सिक्का जी तो पहले ही पंजाबी होने के कारण पेंटल साहब के प्रति सौम्य थे किन्तु झा साहब की किलेबंदी मे फंस जाते थे जो अब नहीं होने से प्रसन्न थे। 03-04-1978 के दिनांक से यूनियन रेजिस्टर्ड होने का पत्र आने पर मेनेजमेंट ने यूनियन को मान्यता भी दे दी। जो चार्टर् आफ डिमांड सुदीप्तों मित्रा पेश कर गए थे उसमे झा साहब रद्दो-बदल करवा कर विवाद खड़ा करना चाहते थे मैंने दृढ़ता पूर्वक किसी भी बदलाव से इंकार कर दिया।झा  साहब ने तब मेंडेट न होने का दांव चल दिया।  हमने यूनियन के चुनाव घोषित कर दिये। भल्ला साहब पर जी एम के पिट्ठू का ठप्पा होने से मैंने उनका समर्थन न करके पी बी सिंह का समर्थन किया। सिंह साहब को झा साहब ने कालांतर मे तोड़ लिया,किन्तु मैं पहले ही जिन दीपक भाटिया साहब को नया ज्वाईंट सेक्रेटरी बनवा चुका था वह मेरे बहुत काम आए। दीपक भाटिया जी पहले जया भादुरी जी के पी ए थे और शादी के बाद अमिताभ जी से कह कर उनका एडीशनल  पी ए जया जी उनको बनवा दिया था। पेंटल साहब से अमिताभ जी ने आगरा मे दीपक भाटिया को  नौकरी देने की सिफ़ारिश की थी और वह पेंटल साहब के मुंह लगे थे। हालांकि उनको ज्वाईंट सेक्रेटरी बनवाने पर लोगों को ताज्जुब भी हुआ था कि मैंने ऐसा क्यों किया। झा साहब की चाल बाजियों को पेंटल साहब तक वह पहुंचा देते थे और पेंटल साहब मुझे समर्थन देकर मेनेजमेंट की गुटबाजी मे झा साहब को झकझोर देते थे। 11-09-1978 को जो सम्झौता हुआ उसमे झा साहब की एक भी दाल न गली। 

झा साहब ने पी बी सिंह को भड़का कर यूनियन मे विवाद खड़ा करना चाहा लेकिन मैंने मध्यावधी चुनाव करा दिये। खुद मैंने चुनाव नहीं लड़ा और दीपक सरकार को समर्थन देकर खड़ा करा दिया। झा साहब के इशारे पर मुकेश भटनागर उनके विरोध मे खड़ा हो गया। प्रेसीडेंट का निर्वाचन निर्विरोध करा दिया और भटनागर साहब मेरा समर्थन न होने के कारण हार गए। जी एम पेंटल साहब और पर्सोनेल मेनेजर झा साहब अन्यत्र स्थानांतरित हो गए। नए पर्सोनेल मेनेजर हेमंत कुमार जी ने मुझे एक नई यूनियन खड़ी करने के लिए अनेक प्रलोभन दिखाये किन्तु मैंने कर्मचारी विरोधी कोई भी कदम उठा कर निजी लाभ लेना मंजूर नहीं किया। बाद मे अप्रैल 1984 मे सस्पेंड करके 19-01-1985 से मेरी सेवाएँ समाप्त कर दी गई ,इसी प्रकार होटल मौर्य शेरेटन ,दिल्ली मे यूनियन सेक्रेटरी बी सी गोस्वामी  के कर्मचारी हितैषी होने के कारण सेवाएँ समाप्त कर दी गई थीं। 


आज दिनांक 07-11-2012 के हिंदुस्तान लखनऊ मे नारायण मूर्ती साहब के केजरीवाल संबन्धित खुलासे के बाद कारपोरेट घरानों का यह पुराना खेल याद आ गया कि किस प्रकार कर्मचारियों मे अपने नुमाईन्दे फिट करके कारपोरेट कंपनियाँ मजदूर आंदोलनों को छिन्न-भिन्न करने हेतु कर्मठ कर्मचारी नेताओं को बर्खास्त कर देते हैं। ये कारपोरेट घराने जनता के बीच जन-हितैषी नेताओं की छ्वी धूमिल करने हेतु हज़ारे/केजरीवाल/रामदेव जैसे लोगों को फ़ाईनेन्स करके फर्जी नेता बना कर खड़ा कर देते हैं। मजदूर आंदोलनों की भांति ही जन-आंदोलन भी ध्येय से इन लोगों के कारण भटक जाते हैं और जनता का शोषण बदस्तूर चलता-बढ़ता रहता है।



हिंदुस्तान,लखनऊ,07-11-2012,पृष्ठ 14

  • Danda Lakhnavi दोहों के आगे दोहे
    ===========
    पद-परमिट-कोटा तथा, टिकट-भवन-भूखंड।
    आदि सुखों का देवता, पूज्य......पार्टी-फ़ंड॥
    ===========

    सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी

    आपका कथन सत्य है....प्राय: ऐसा होता है ...
  • Vijai RajBali Mathur डॉ Danda Lakhnavi साहब बहुत-बहुत धन्यवाद ,पीड़ा समझने हेतु।
     (फेसबुक 'जनहित' ग्रुप मे प्राप्त टिप्पणी और उसका जवाब)

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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

पहचान षड्यंत्रकारी छिपे खिलाड़ियों की



 http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html

   प्रस्तुत लिंक पर मेरा लेख ---'


बृहस्पतिवार, 19 अप्रैल 2012


रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना 

 



 
और इत्तिफ़ाक से 26 अप्रैल 2012 को राष्ट्रपति महोदया प्रतिभा पाटील जी ने 'रेखा जी' को अन्य दो के साथ 'राज्यसभा' मे मनोनीत कर दिया। मेरा ज्योतिषीय विश्लेषण एक सप्ताह मे सही सिद्ध होने पर अब ज्योतिष को 'मीठा जहर'  बताने वाले कारपोरेट चेनल IBN7 के प्रतिनिधि ने अगले ही दिन 27 अप्रैल को इसकी आलोचना मे पोस्ट दी जिस पर  ये  दो टिप्पणिया उन दोनों की मनोदशा को उजागर करने हेतु पर्याप्त हैं।



कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला





  • आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
    मेरी भी शुभकामना है

     एक तीसरे ब्लाग पर पाखंड विरोधी लेख पर मेरी  टिप्पणी को ठुकराने का आग्रह इन महाशय ने पोस्ट लेखिका से किया था और मैंने इनके कुतर्क पर क्या कहा था एक नज़र उस पर भी---



     ज़ाहिर है कि कारपोरेट चेनल्स के दलाल/कारिंदे नहीं चाहते कि जनता को जागरूक किया जाये और ढोंग-पाखंड-आडंबर का पर्दाफाश करके उनको शोषण व उत्पीड़न से बचाया जाये। अतः अपने आकाओं के व्यापारिक हितों के संरक्षणार्थ ऐसे लोग सच्चाई को बर्दाश्त नहीं करते और उसका भोंडा विरोध करते हैं । IBN7 और दैनिक जागरण निरंतर जन-विरोधी समाचार देने के लिए जाने जाते हैं।

    इस कारपोरेट दलाल की मन्त्र्दाता और उसकी शिष्य द्वारा  चार-चार जन्मपत्रियाँ निशुल्क विश्लेषण करवाने के बाद जिस प्रकार इस  गैंग ने 'ज्योतिष' और मेरे ज्ञान पर प्रहार किए उसी कारण 'जनहित मे' नमक ब्लाग को सार्वजनिक रूप से प्रतिबंधित कर रखा है जिसके माध्यम से उपयोगी 'स्तुतियाँ' प्रस्तुत की थीं। यदि ब्लागर्स /फेसबुक साथी इस गैंग  की निंदा करके  उस ब्लाग से सार्वजनिक लाभ उठाना चाहेंगे तो पुनः 'सार्वजनिक' किया जा सकता है। 
    http://janhitme-vijai-mathur.blogspot.in/?zx=a15232c1af410425 

     इसी प्रकार 14-10-2012 को ज्योतिष एक मीठा जहर शीर्षक से जो लेख इन महोदय ने लिखा था उस पर दो पत्रकारों की टिप्पणिया ये हैं---

    1. मुझे लगता है कि हमे उन्ही विषयो पर लिखना या टिपण्णी करनी चाहिये जिसके बारे मे कुछ समझ रखते हो। ज्योतिष सही है या गलत इस संबंध मे आपने किसी ज्योतिषी की राय नही ली कि आखिर आधार क्या है योटिश का। बेहतर होता आप राय लेकर के उसे तर्को के सहारे कातते । रह गई ग्रह नक्षत्रो की बाद तो ज्वार भाटा के आने का कारण चंद्र्मा की स्थिति मे परिवर्तन है। इन गर्हो के मुमवेंट का असर आदमी के मन और दिमाग पर भी पडता है जिससे बहुत सारे काम और काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। क्षमा करे , परन्तु आपका यह लेख सतही है।






      1. मदन भाई साहब आप यहां आए स्वागत है।
        आप बताएं फिर तो सबसे पहले मीडिया हाउस को बंद कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि हम मेडिकल के बारे में बारे में लिखते है, मैं एमबीबीएस तो है नहीं, रेलवे की इंजीनियरिंग सिस्टम पर हम लिखते हैं हमने इंजीनियरिंग भी नहीं की है। सेना को कवर करने जाते हैं किसी ने सैन्य प्रशिक्षण तो लिया नहीं।

        खैर लेख लिखने के पहले हमने ज्योतिष के बारे में पढने के बाद ही लिखा है। अच्छा होता कि आप लेख में जहां खामियां है उस पर मेरा ध्यान केंद्रित करते।
        फिर भी आपने वक्त दिया ब्लाग पर मैं आभारी हूं..
    2. महेंद्र जी, आप सन्दर्भ बिलकुल सही है और शायद हमें इसी तरह के लेख की जरुरत आज के समय में है. लेकिन एक शिकायत जो आप के साथ साथ सभी मीडिया के साथियों से है वो यह की आप कृपया अपने लेख के शीर्षक का ध्यान रखें. ज्योतिष यानि मीठा जहर का अर्थ एक सामान्य मनुष्य को येही आएगा की आप ज्योतिष को को गलत बता रहे हैं. पर आपने इसने नाम पे जो बुराइयाँ उजागर की हैं वो अति सुन्दर है. शेष अति सुन्दर...
    3. महेंद्र जी, आप सन्दर्भ बिलकुल सही है और शायद हमें इसी तरह के लेख की जरुरत आज के समय में है. लेकिन एक शिकायत जो आप के साथ साथ सभी मीडिया के साथियों से है वो यह की आप कृपया अपने लेख के शीर्षक का ध्यान रखें. ज्योतिष यानि मीठा जहर का अर्थ एक सामान्य मनुष्य को येही आएगा की आप ज्योतिष को को गलत बता रहे हैं. पर आपने इसने नाम पे जो बुराइयाँ उजागर की हैं वो अति सुन्दर है. शेष अति सुन्दर...








      1. आप यहां तक आए, यही काफी है।
        बाकी आप मीडिया के बारे में कितना जानते हैं, मुझे नहीं पता।

        ज्योतिष को मीठा जहर बताने पर जहां चापलूसों की फौज ने उन दोनों का पुरजोर समर्थन किया वहीं 'बिहार मीडिया'के संचालक और एडवोकेट साहब ने विमत व्यक्त किया जिस पर इस गरूरी ब्लागर ने -''मदन भाई साहब आप यहां आए स्वागत है।
        आप बताएं फिर तो सबसे पहले मीडिया हाउस को बंद कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि हम मेडिकल के बारे में बारे में लिखते है, मैं एमबीबीएस तो है नहीं, रेलवे की इंजीनियरिंग सिस्टम पर हम लिखते हैं हमने इंजीनियरिंग भी नहीं की है। सेना को कवर करने जाते हैं किसी ने सैन्य प्रशिक्षण तो लिया नहीं।''
        यह लिख कर ज़ाहिर भी कर दिया विषय-विशेष के ज्ञान के बगैर उसकी आलोचना करना उनके जाब का हिस्सा है।

        दूसरे पत्रकार जो 'सहारा समय' चेनल मे कार्य कर चुकने के बाद अब रायपुर,छत्तीसगढ़ मे एक  दैनिक अखबार बतौर सम्पादक निकाल रहे हैं  और उनका समर्थन भी कर रहे हैं,सिर्फ 'शीर्षक' पर आपत्ति थी उनको ,तो इस कारपोरेट दलाल ने यह कह कर लताड़ ही दिया-''



        1. आप यहां तक आए, यही काफी है।
          बाकी आप मीडिया के बारे में कितना जानते हैं, मुझे नहीं पता।''
          कितने मज़े की बात है कि,जिसे कुछ नहीं पता होता है वह कितनी अल्हड्ता से ब्लाग सुविधा का दुरुपयोग करता है। क्यों करता है?जानें इस चित्र से ---

          IBN7के प्रतिनिधि (ज्योतिष को मीठा जहर लिखने वाले )और उनकी मन्त्र्दाता,विमान नगर,पूना मे पाँच घंटों के प्रवास मे   गुफ्तगू करते  हुये

          पर्यावरण को शुद्ध रखना और ग्रह नक्षत्रों का शमन करना ज्योतिष विज्ञान सिखाता है.हम ज्योतिष के वैज्ञानिक नियमों का पालन कर के अनूठी दुनिया  का अधिक से अधिक लुत्फ़ उठा सकते हैं.आवश्यकता है सच को सच स्वीकार करने की और अपनी इस धरती को तीन लोक से न्यारी बनाने की. 
          http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_27.html

          चार-चार जन्म्पत्रियों का विश्लेषण पूना के ब्लागर व उनकी पटना की शिष्य ने निशुल्क प्राप्त करने के बाद जो ज्योतिष विरोधी मुहिम चला रखी है वह कितना वाजिब है?

          इस सम्बंध मे पिछले अंक मे  विस्तृत वर्णन दिया जा चुका है---
         इस पोस्ट पर अपने विचार (टिप्पणी) देने के लिये कृपया यहाँ क्लिक करे।
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    शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

    मीठा जहर कौन?

    पहले कारपोरेट जगत के खिलाड़ी ब्लागर साहब की कुछ  सुर्खियां देखें---

    Saturday, 13 October 2012


    ज्योतिष यानि मीठा जहर ... 


    दरअसल कुछ तथाकथित अनाड़ियों ने इस ज्योतिष विज्ञान की ऐसी तैसी कर दी और इसे एक व्यवसाय बना डाला है।

     मेरी व्यक्तिगत राय में तो ज्योतिष और त्योतिषी दोनों मीठे जहर के समान हैं, जिसके भी जीवन में ये घुल जाते हैं, उसे कहीं का नहीं छोड़ते। ज्योतिष भय प्रधान है जो मुख्य कर्म में हमेशा बाधक बनता है। 


    यहां आपको ये भी बता दूं कि नोबेल पुरस्कार विजेता डा. वेंकटरमन रामा कृष्णन ने पूरे ज्योतिष शास्त्र को ही फर्जी बता दिया है।  

    पूजा,प्रार्थना को ज्योतिषी से जोड़कर नहीं देखना है,क्योंकि प्रार्थना यानि पूजा प्रभु के आगे याचक की तरह खड़ा होना है .... होनी,अनहोनी जो भी है-वह इश्वर के हाथ में है-जिसके लिए हम दुआ कर सकते हैं मन के सुकून के लिए,पर मूल्य के हिसाब से उसमें रद्दो बदल हास्यास्पद है . ऐसा होना होता तो गुरु वशिष्ठ राम को वन नहीं जाने देते , अपनी विद्या से रावण को छू कर देते .
    आलेख बहुत ही बढ़िया है










    1. जी बिल्कुल, इसी बात का जिक्र मैने भी करने की कोशिश की है।
      मुझे लगता है कि ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने वाला अभी धरती पर कोई नहीं होगा। विधि का विधान बदलना संभव नहीं है।
    2. वो तो कभी नहीं होगा ....


      अब देखिये  एक फेसबुक फ्रेंड के  15-10-2012 का मेसेज और उनको जवाब  ---

      agar aap uske liye kuchh charge karte hain to i'm also ready for dat

      ---'साहब फीस के चार्ज की बात नहीं थी । रश्मी प्रभा और सोनिया बहुखंडी ने चार-चार कुंडलियाँ निशुल्क बनवाई थीं लेकिन अब वे दोनों और एक कुंडली निशुल्क  बनवाने वाले अरुण प्रकाश मिश्रा फेसबुक व ब्लाग्स मे मेरे तथा ज्योतिष के ज्ञान के खिलाफ लेख व टिप्पणियाँ लिख रहे हैं। IBN7 के महेंद्र श्रीवास्तव उनकी वकालत मे 'ज्योतिष मीठा जहर' जैसे लेख ब्लाग मे डाल रहे हैं। इसी कारण आपका व एक और शर्मा जी का काम रोक दिया था। यदि काम करवाने के बाद आप उन लोगों की तरह मेरी मुखालफत न करने का आश्वासन दें एवं उन चारों की निंदा का मेसेज दें तो उसके बाद काम शुरू कर सकता हूँ। यह झगड़ा न खड़ा हुआ होता तो अब तक आप समाधान पा चुके होते।

       Allah ko hazir wa nazir maan kar asam khata hu'n ki mai is tarah ka koi kaam nahi karunga (Ghaddaari waala)

      ab khush? Ehsan Faramoshi hamaare blood me nahi hai sir
      wink

      • mai un charo ki tarah ehsaan faramosh nahi hu na hi meri aankho me suwar ka baal hai jo mai apne shubhchintak ke hi khilaaaf zaher uglu'n ....... aap befikr rahe'n waise bhi mai blog ki duniya se door hu us din aise hi check kar lia tyha smile
      • aapka blog
      • is it ok sir? ab to hjo jayega na mera kaam?

         OK,please wait for 3 days

         ji will be waiting

        10 अक्तूबर 2012 को प्रकाशित मेरे  लेख

        संसार का मूलाधार है---त्रैतवाद 

          का प्रतिवाद है 13 अक्तूबर का कारपोरेट दलाल का  उपरोक्त वर्णित लेख ठीक उसी प्रकार जैसे कि19 अप्रैल 2012 के लेख मे मैंने 'रेखा के राजनीति मे आने की संभावना' लिखा और वह 26 अप्रैल को राज्यसभा मे मनोनीत हो गई तब 27 अप्रैल 2012 को इन महान विद्वान साहब ने अपने लेख मे उसकी खिल्ली उड़ाई। साँच को आंच कहाँ -प्रत्यक्ष देखिये---


        बावजूद इस चेतावनी के उक्त ब्लागर ने अपनी हेंकड़ी जारी रखते हुये दूसरे ब्लागो पर टिप्पणियों मे भी मेरे 'रेखा' वाले ज्योतिषीय विश्लेषण पर हमला जारी रखा जैसा कि नीचे स्पष्ट है और यशवन्त को भी ई-मेल मे 'गनीमत' शब्द लिख कर ठेस पहुंचाई जबकि वह उक्त ब्लागर का दिया टास्क अपनी भूख-प्यास छोड़ कर करता रहा है। अतः इसी 'गनीमत'पर उसने भी उक्त ब्लागर की हकीकत उजागर कर दी है। 


        (रश्मि प्रभा...Apr 27, 2012 07:21 AM

        कब मैं हिट होउंगी ... और राज्य सभा की सदस्य बनूँगी - आईला



        आप जल्दी राज्यसभा में पहुंचें,
        मेरी भी शुभकामना है)


        *=एक दूसरे ब्लाग पर उक्त ब्लागर की टिप्पणी इसलिए उद्धृत की है कि सभी को पता चल जाये कि उक्त ब्लागर मेरे विश्लेषण को किस कदर गलत साबित करने पर उतारू रहा कि विश्लेषण एक सप्ताह मे ही सही सिद्ध होने पर बौखलाहट मे अपनी तुलना 'रेखा' से करने की ज़रूरत पड़ गई। कौन सी  पार्टी आत्मघाती कदम (अपनी पार्टी को तहस-नहस करने और अपनी सरकार की छीछालेदार करवाना) उठाना चाहेगी जो उक्त ब्लागर को  राज्य-सभा सदस्य बनवाएगी ? क्योंकि उक्त ब्लागर तो अपनी ही संतानों का भी सगा नहीं है जो 'राष्ट्र और समाज' की सेवा क्या खाकर करेगा?-(आत्म-भंजक पार्टी से मै भी उक्त ब्लागर को राज्य सभा मे भिजवाने की सिफ़ारिश करता हूँ )- 


        उक्त ब्लागर की इच्छा पर गलत सलाह न देने के कारण उक्त ब्लागर ने मेरे पुत्र के साथ भी झूठ-छल का प्रयोग किया ,जिस कारण-शबाना आज़मी,रेखा और प्रस्तुत विश्लेषण सार्वजनिक रूप से देने पड़े हैं। 


        उक्त ब्लागर ने मेरे अतिरिक्त बोकारो की एक ज्योतिषी से भी निशुल्क परामर्श लिया था और उसे भी नहीं माना था।चूंकि वह सब ब्यौरा मेरे पास भी उपलब्ध है  अतः अब 'जन्मकुंडलिया गलत होती हैं' सरीखे वाक्यांश अपने पिटठू से लिखवाये हैं। क्योंकि शबाना जी ,रेखा जी एवं X-Y के दिये विश्लेषणों से स्पष्ट है कि जन्मपत्र द्वारा एक सटीक आंकलन प्रस्तुत किया जा सकता है और उन ब्लागर को भय है कि यदि उनकी पोल-पट्टी सबके सामने आ गई तो उनके छल-व्यापार -ठगी का धंधा चौपट हो जाएगा। अपनी धनाढ्यता के रौब मे मुझे दबाव डाल कर गलत विश्लेषण न प्राप्त कर पाने के कारण अपने चाटुकार से ज्योतिष-विरोधी लेख लिखवाने शुरू करवाए हैं। 



        http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_10.html


        आचार्य डॉ सोमदेव शास्त्री,संपादक निष्काम परिवर्तन पत्रिका


        यह लेख आर्यसमाज -कमलनगर,आगरा मे डॉ सोमदेव शास्त्री जी द्वारा दिये प्रवचनों के एक अंश का सार मात्र है । इस लेख की खास-खास बातें ये हैं---

        1- इस संसार ,इस सृष्टि का नियंता और संचालक परम पिता परमात्मा है। परमात्मा के संबंध मे हमारे देश मे अनेकों मत और धारणाये प्रचलित हैं। इनमे से प्रमुख इस प्रकार हैं---

        अद्वैतवादी- सिर्फ परमात्मा को मानते हैं और प्रकृति तथा आत्मा को उसका अंश मानते हैं जो कि गलत तथ्य है क्योंकि यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो बुरे कर्म नहीं करता और प्रकृति भी चेतन होती जड़ नही।

        द्वैतवादी -परमात्मा (चेतन)और प्रकृति (जड़)तो मानते हैं परंतु ये भी आत्मा को परमात्मा का ही अंश मानने की भूल करते हैं;इसलिए ये भी मनुष्य को भटका देते हैं।

        त्रैतवादी-परमात्मा,आत्मा और प्रकृति तीनों का स्वतंत्र अस्तित्व मानना यही 'त्रैतवाद 'है और 'वेदों' मे इसी का वर्णन है। अन्य किसी तथ्य का नहीं।

        2-वेद आदि ग्रंथ हैं---प्रारम्भ मे ये श्रुति व स्मृति पर आधारित थे अब ग्रंथाकार उपलब्ध हैं। अब से लगभग दो अरब वर्ष पूर्व जब हमारी यह पृथ्वी 'सूर्य' से अलग हुई तो यह भी आग का एक गोला ही थी। धीरे-धीरे करोड़ों वर्षों मे यह पृथ्वी ठंडी हुई और गैसों के मिलने के प्रभाव से यहाँ वर्षा हुई तब जाकर 'जल'(H-2 O)की उत्पत्ति हुई। पृथ्वी के उस भाग मे जो आज 'अफ्रीका' कहलाता है ,उस भाग मे भी जो 'मध्य एशिया' और 'यूरोप'के समीप है तथा तीसरे उस स्थान पर जो 'त्रिवृष्टि'(तिब्बत)कहलाता है परमात्मा ने 'युवा-पुरुष' व 'युवा-स्त्री' रूपी मनुष्यों की उत्पत्ति की और आज की यह सम्पूर्ण मानवता उन्ही तीनों  पर उत्पन्न मनुष्यों की संतति हैं।

        3- वेदों के अनुसार ---(1 )परमात्मा,(2 )आत्मा और (3 )प्रकृति इन तीन तत्वों पर आधारित इस संसार मे प्रकृति 'जड़' है और स्वयं कुछ नहीं कर सकती जो तीन तत्वों के मेल से बनी है---(1 )सत्व,(2 )रज और (3 )तम। ये तीनों जब 'सम' अवस्था मे होते हैं तो कुछ नहीं होता है और वह 'प्रलय' के बाद की अवस्था होती है। आत्मा -सत्य है और अमर है यह अनादि और अनंत है। 'परमात्मा' ='सत्य' और 'चित्त'के अतिरिक्त 'आनंदमय' भी है---सर्व शक्तिमान है,सर्वज्ञ है और अपने गुण तथा स्वभाव के कारण आत्माओं के लिए प्रकृति से 'सृष्टि' करता है ,उसका पालन करता है तथा उसका संहार कर प्रलय की स्थिति ला देता है,पुनः फिर सृष्टि करता है और आत्माओं को पुनः प्रकृति के 'संयोजन'से 'संसार' मे भेज देता है=G(जेनरेट)+O(आपरेट)+D(डेसट्राय)। ये सब कार्य वह खुद ही करता (खुदा ) है।

        4- 'सृष्टि' के नित्य ही 'संसर्ग' करने अर्थात 'गतिमान' रहने के कारण ही इसे 'संसार' कहा गया है। 'आत्मा' ,'परमात्मा' का अंश नहीं है उसका स्वतंत्र अस्तित्व है और वह भी 'प्रकृति' तथा 'परमात्मा' की भांति ही कभी भी 'नष्ट नहीं होता है'। विभिन्न कालों मे विभिन्न रूपों मे (योनियों मे )'आत्मा' आता-जाता रहता है और ऐसा उसके 'कर्मफल' के परिणामस्वरूप होता है। 'मनुष्य'=जो मनन कर सकता है उसे मनुष्य कहते हैं। 'परमात्मा' ने 'मानव जीवात्मा' को इस संसार मे 'कार्य-क्षेत्र' मे स्वतन्त्रता दी है अर्थात वह जैसे चाहे कार्य करे परंतु परिणाम परमात्मा उसके कार्यों के अनुसार ही देता है अन्य योनियों मे आत्मा 'कर्मों के फल भोगने' हेतु ही जाता है। यह उसी प्रकार है जैसे 'परीक्षार्थी' परीक्षा भवन मे कुछ भी लिखने को स्वतंत्र है परंतु परिणाम उसके लिखे अनुसार ही मिलता है जिस पर परीक्षार्थी का नियंत्रण नहीं होता। इस भौतिक शरीर के साथ आत्मा को सूक्ष्म शरीर घेरे रहता है और भौतिक शरीर की मृत्यु के बाद भी वह 'सूक्ष्म शरीर' आत्मा के साथ ही चला जाता है। मनुष्य ने अछे या बुरे जो भी 'कर्म' किए होते हैं वे सभी 'गुप्त' रूप से 'सूक्ष्म शरीर' के 'चित्त' मे अंकित रहते हैं और उन्ही के अनुरूप 'परमात्मा' आगामी फल प्रदान करता है---इसी को 'चित्रगुप्त' कहा जाता है।

        5- परमात्मा अच्छी के अच्छे व बुरे के बुरे फल प्रदान करता है। इस जन्म के बुरे कर्म देख कर परमात्मा पूर्व जन्म के अच्छे फल नहीं रोकता;परंतु इस जन्म के बुरे कर्म उस मनुष्य के आगामी जीवन का 'प्रारब्ध' निर्धारित कर देते हैं। परंतु अज्ञानी मनुष्य समझता है कि परमात्मा बुरे का साथी है ,या तो वह भी बुरे कार्यों मे लीन होकर अपना आगामी प्रारब्ध बिगाड़ लेता है या व्यर्थ ही परमात्मा को कोसता   रहता है। परंतु बुद्धिमान मनुष्य अब्दुर्रहीम खानखाना की इस उक्ति पर चलता है---

        "रहिमन चुप हुवे  बैठिए,देख दिनन के फेर। 
        जब नीके दिन आईहैं,बनात न लागि है-बेर। । "

        6- जो बुद्धिहीन मनुष्य यह समझते हैं कि अच्छा या बुरा सब परमात्मा की मर्ज़ी से होता है ,वे अपनी गलती को छिपाने हेतु ही ऐसा कहते हैं। आत्मा के साथ परमात्मा का भी वास रहता है क्योंकि वह सर्वव्यापक है। परंतु आत्मा -परमात्मा का अंश नहीं है जैसा कु भ्रम लोग फैला देते हैं। जल का परमाणु अलग करेंगे तो उसमे जल के ,अग्नि का अलग करेंगे तो उसमे अग्नि के गुण मिलेंगे। जल की एक बूंद भी शीतल होगी तथा अग्नि की एक चिंगारी भी दग्ध करने मे सक्षम होगी। यदि आत्मा,परमात्मा का ही अंश होता तो वह भी सचिदानंद अर्थात सत +चित्त +आनंद होता। जबकि आत्मा सत और चित्त तो है पर आनंद युक्त नहीं है और इस आनंद की प्राप्ति के लिए ही उसे मानव शरीर से परमात्मा का ध्यान करना होता है। जो मनुष्य संसार के इस त्रैतवादी रहस्य को समझ कर कर्म करते हैं वे इस संसार मे भी आनंद उठाते हैं और आगामी जन्मों का भी प्रारब्ध 'आनंदमय' बना लेते हैं। आनंद परमात्मा के सान्निध्य मे है ---सांसारिक सुखों मे नहीं। संसार का मूलाधार है त्रैतवाद अर्थात परमात्मा,प्रकृति और आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व स्वीकार करना तथा तदनुरूप कर्म-व्यवहार करना।   


      अब देखिये मूल रूप से 04-12-2010 को प्रकाशित और 21 - 09 -2012 को पुनर्प्रकिशित लेख की ये पंक्तियाँ---

    "अब सवाल उस संदेह का है जो विद्व जन व्यक्त करते हैं ,उसके लिए वे स्वंय ज़िम्मेदार हैं कि वे अज्ञानी और ठग व लुटेरों क़े पास जाते ही क्यों हैं ? क्यों नहीं वे शुद्ध -वैज्ञानिक आधार पर चलने वाले ज्योत्षी से सम्पर्क करते? याद रखें ज्योतिष -कर्मकांड नहीं है,अतः कर्मकांडी से ज्योतिष संबंधी सलाह लेते ही क्यों है ? जो स्वंय भटकते हैं ,उन्हें ज्योतिष -विज्ञान की आलोचना करने का किसी भी प्रकार हक नहीं है. ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है. 

    http://krantiswar.blogspot.in/2012/09/blog-post_21.html

    उक्त13-10-2012 वाले  पोस्ट लेखक और टिप्पणी दाता दोनों ही ढोंगियों,पाखंडियों,व्यापारियों,उद्योगपतियों एवं कारपोरेट घरानों के दलाल प्रतीत होते हैं उनका उद्देश्य 'वास्तविक तथ्यों' को लुप्त करके अनर्गल एवं तथ्यहीन बातों द्वारा ग्रेशम के अर्थशास्त्र के सिद्धान्त कि,"खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है"के आधार पर वैज्ञानिक आधार पर ज्योतिष-विश्लेषण करने वालों को नाहक-झूठा बदनाम करके पृष्ठ-भूमि मे धकेलना है जिससे आम लोग फ़रेबियों के चंगुल मे ही फंस कर लुटते रहें। अतः वे दोनों जन-विरोधी ब्लागर्स - स्वतः  ही मीठा जहर उगलने वाले ब्लागर्स हैं।अब ये छली ब्लागर्स सुश्री ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए कार्पोरेटी कपट का सहारा लेंगे ताकि मेरे विश्लेषण को गलत सिद्ध कर सकें। 

    ममता बनर्जी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं ? 

    http://krantiswar.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html 


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