शनिवार, 21 नवंबर 2015

ज़िदगी की जमीन पर रिश्ते नातों की हरियाली ------ विजय राजबली माथुर

सौजन्य से पुष्पा अनिल जी 


सौजन्य से पुष्पा अनिल जी 



कभी-कभी अचानक कुछ ऐसा होता है जिससे खुशी हासिल हो जाती है। कल कुछ ऐसा ही हुआ कि, हमारे एक चचेरे भाई अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के सपरिवार मिलने आए। उनका तीन वर्षीय पुत्र मुझसे 60 वर्ष छोटा भतीजा है। किसी पूर्व निर्धारित कार्य से जाना ज़रूरी होने के कारण यशवन्त को एक घंटे के लिए घर से जाना पड़ा। इस कारण भतीजे का मन उचाट हो गया और वह घर लौटने की कहने लगा। मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे नीचे कंप्यूटर के कमरे में लाकर बाल गीत के वीडियो दिखाये जिनको उसने बड़े चाव से देखा और खुश हो गया।
उसने बातों -बातों में बताया कि, की-बोर्ड और माउस तो ऐसे ही हैं लेकिन उसका कंप्यूटर बड़ा है। (दरअसल वह पुराने बड़े स्क्रीन को कंप्यूटर बोल गया ) । 'बुलबुल','मोयना' वाला तथा 'चिड़िया','कौआ','भालू','बंदर' वाला गाना उसने कह कर दुबारा सुना।
पूनम और यशवन्त से तो वह तुरंत हिल -मिल गया था , गाने सुन कर मुझ से भी सही तालमेल उसका हो गया। परसों ही पूनम कह रही थीं कि हमारे घर बड़े-बुजुर्ग लोग तो आते हैं बच्चे किसी के नहीं आते। कल जब भाई अपने बेटे को भी लेकर आए तो उनको अत्यधिक प्रसन्नता हुई और आज उन्होने भतीजे तथा उसकी माँ से फोन पर बातें भी कीं। हालांकि वह पहली बार ही कल हमारे घर पहुंचा लेकिन फोन पर अपनी ताई जी (पूनम ) से आज काफी घुल-मिल कर बातें कीं। छोटे बच्चों की निश्छल बातों से भला किस को खुशी नहीं होती होगी ?
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Comments
Pushpa Anil वाकई बिना रिश्तों के जिंदगी भी कोई जिंदगी है
ज़िदगी की जमीन पर रिश्ते नातों की हरियाली न हो तो जिंदगी बंजर सी है बे मजा है,

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बात जब भतीजे के रिश्ते की चली है तब यहीं लखनऊ निवासी दो और भतीजों का ज़िक्र करना भी समीचीन रहेगा। एक जो मुझसे मात्र पाँच वर्ष छोटे होंगे पुराने लखनऊ में इसी 60 वर्ष छोटे भतीजे के अगल-बगल के मोहल्ले में अपनी पुरानी हवेली के एक हिस्से में रहते हैं।उनको भी ज्योतिष व वास्तु शास्त्र की जानकारी है तथा दूसरों को इससे लाभान्वित कराते रहते हैं। दूसरे भतीजे साहब उम्र में मुझसे 15 वर्ष बड़े होंगे और वह लगभग दो किलो मीटर के फासले पर रहते हैं। यह हमारे घर एक बार आ भी चुके हैं परंतु उनकी उम्र व बीमारी को देखते हुये हम ही अक्सर उनको देखने व मिलने चले जाते हैं। वह रेलवे विभाग में इंजीनियर के ओहदे से रिटायर्ड़ हैं। अनुभव व अध्यन के आधार पर उनको काफी व्यावहारिक ज्ञान है। यह उनका तकिया कलाम है कि आज की शिक्षा 'साक्षर' - litrate तो बना रही है परंतु 'ज्ञान' - learning इसमें नहीं है। आज शिक्षा को व्यवसाय से जोड़ दिया गया है चरित्र निर्माण को भुला दिया गया है। मुझे भी उनका कथन शतशः सही प्रतीत होता है।

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Vijai RajBali Mathur
2 0 -11-2015 Lucknow
हमारे रिश्ते में एक और भतीजे थे राय राजेश्वर बली जो आज़ादी से पहले यू पी गवर्नर के एजुकेशन सेक्रेटरी भी रहे और रेलवे बोर्ड के सदस्य भी। उन्होने ही 'भातखण्डे यूनिवर्सिटी आफ हिन्दुस्तानी म्यूज़िक' की स्थापना करवाई थी जो अब डीम्ड यूनिवर्सिटी के रूप में सरकार द्वारा संचालित है। उसके पीछे ही उनके ही एक उत्तराधिकारी की यादगार में 'राय उमानाथ बली' प्रेक्षागृह है , वह भी सरकार द्वारा संचालित है।
अपने से 15 वर्ष बड़े जिन भतीजे का ज़िक्र किया है वह भी उनके ही परिवार से हैं। राय राजेश्वर बली साहब की एक बहन के पौत्र डॉ पी डी पी माथुर साहब से मेरठ में तब संपर्क था जब वह वहाँ एडीशनल CMO थे , जो बाद में उत्तर-प्रदेश के डी जी हेल्थ भी बने थे। उम्र में काफी बड़े होने किन्तु रिश्ते में छह पीढ़ी छोटे होने के कारण वह मुझे भाई साहब कह कर ही संबोधित करते थे।
राय राजेश्वर बली साहब की एक भुआ (जो हमारी बहन हुईं ) से मुलाक़ात आगरा में हुई थी , वह भी मुझसे काफी बड़ी थीं बल्कि उनके पुत्र डॉ अजित ही (जो माथुर सभा, आगरा के अध्यक्ष भी रहे ) मुझसे उम्र में बड़े होने के कारण मुझे भाई साहब ही संबोधित करते रहे। डॉ अजित के घर एक बार उनके बहन-बहनोई भी मिले थे और उन लोगों ने अपने बारे में हस्तरेखा के आधार पर जानकारी भी हासिल की थी। डॉ साहब के बहनोई साहब ज्योतिष पर विश्वास नहीं करते थे और उनसे यह पहली ही मुलाक़ात थी वह हाथ दिखाने के इच्छुक भी नहीं थे; किन्तु डॉ साहब की पत्नी जी के कहने पर अन्यमन्सकता पूर्वक राज़ी हुये थे। जब मैंने पहले उल्टे दोनों हाथ और उसके बाद हथेलियों का अवलोकन करने के बाद उनसे कहा कि, आप को या तो मिलेटरी में होना चाहिए या फिर डॉ होना चाहिए। तब उनको कुछ विश्वास हुआ और उन्होने प्रश्न किया कि हाथ देख कर यह कैसे पता चल सकता है ? उनको उनके हाथ की स्थिति से समझा दिया। उन्होने स्वीकार किया कि दोनों बातें सही हैं वह ए एम सी (ARMY MEDICAL COR ) में डॉ है। फिर जो भी बातें उनको बताईं सभी को उन्होने स्वीकार किया और आश्चर्य भी व्यक्त किया कि मैंने सही बता दिया जबकि पंडित लोग नहीं बताते हैं। मैंने उनको स्पष्ट किया कि पंडित जो मंदिर का पुजारी होगा या कर्मकांडी ज़रूरी नहीं कि ज्योतिष जानता भी हो लेकिन जनता को ठगता ज़रूर है वह सही बता ही नहीं सकता है। परंतु दुर्भाग्य से लोग बाग पहले तो ऐसे धोखेबाज़ों को ही ज्योतिषी मानते व लुटते हैं फिर ज्योतिष की निंदा करने लगते हैं। मैं खुद भी ऐसे पंडितों का पर्दाफाश करने के लिए ही ज्योतिष के क्षेत्र में उतरा जबकि पहले ज्योतिष पर उन लोगों के कारण ही विश्वास नहीं करता था ।

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/971468262915150



Rai Rajeshwar Bali Mathur
(Photo courtesy - Kartik Mathur )


जब राय राजेश्वर बली साहब उत्तर-प्रदेश के शिक्षामंत्री थे (आज़ादी से पूर्व सम्बोधन एजुकेशन सेक्रेटरी था ) तब उन्होने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए स्त्री-शिक्षा को विशेष महत्व दिया था। संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना करवाना भी इसी दिशा में उठाया गया कदम था। 

ऐसा नहीं है कि ये क्रांतिकारी कदम राजेश्वर बली साहब ने यों ही उठा लिए थे बल्कि इसकी प्रेरणा उनको वंशानुगत रूप से मिली थी। हमारा 'बली ' वंश एक ऐतिहासिक महत्व रखता है । जिस समय बादशाह अकबर की  तूती बोल  रही थी हमारे पूर्वजों ने उनके विरुद्ध मेवाड़ के महाराना प्रताप के पक्ष में बगावत कर दी थी और 'दरियाबाद' में स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली थी। परंतु उस समय अकबर के विरुद्ध अधिक समय तक आज़ादी टिकाई नहीं जा सकती थी क्योंकि चारों ओर तो अकबर का मजबूत शासन स्थापित था। नतीजा यह हुआ कि शाही सेना ने पूरे के पूरे खानदान को मौत के घाट उतार दिया। परंतु स्थानीय लोग जो हमारे पूर्वजों के प्रति एहसानमंद थे ने किसी प्रकार इस परिवार की एक गर्भिणी महिला को छिपा लिया था। नर-संहार के बाद जब शाही सेना लौट गई तब उनको आगरा उनके भाई के पास भेजने की व्यवस्था की गई जो अकबर के दरबार के ही सदस्य थे। मार्ग में 'नीम' के दरख्त के एक खोटर में उन्होने जिस बालक को जन्म दिया उनका नाम 'नीमा राय ' रखा गया। हम लोग इन्हीं नीमा राय बली  साहब के वंशज हैं।

जब नीमा राय जी 10 -12 वर्ष के हो गए तब इनके मामाजी इनको भी अपने साथ दरबार में ले जाने लगे। यह बहुत ही मेधावी व होनहार थे। कभी-कभी बादशाह अकबर इनसे भी कुछ सवाल उठाते थे और इनके जवाब से बेहद संतुष्ट होते थे। लेकिन पूछने पर भी इनके मामाजी ने इनके पिता का नाम बादशाह को कभी नहीं बताया सिर्फ यही बताया कि उनके भांजा हैं। एक दिन इनके जवाब से अकबर इतना प्रसन्न हुये कि ज़िद्द पकड़ गए कि इस होनहार बालक के पिता का नाम ज़रूर जानेंगे । मजबूर होकर इनके मामाजी को बादशाह से कहना पड़ा कि पहले आप आश्वासन दें कि मेरे इस भांजे की आप जान नहीं लेंगे तब इसके पिता का नाम बताएँगे। अकबर ने ठोस आश्वासन दिया कि इस बालक की जान नहीं ली जाएगी। तब इनके मामाजी ने इनका पूरा परिचय दिया और बताया कि आपके पूरा खानदान नष्ट करने के आदेश के बावजूद मेरी बहन को स्थानीय लोगों ने बचा कर आगरा भिजवा दिया था और रास्ते में इस बालक का जन्म हुआ था। 

अकबर ने नीमाराय साहब के पूर्वजों का छीना हुआ राज-पाट वापिस करने का फरमान जारी कर दिया  और इनको अपनी सेना के संरक्षण में दरियाबाद भिजवाया। बालक नीमाराय  ने वह जगह जहां काफी खून खराबा  हुआ था और उनका खानदान तबाह हुआ था लेने से इंकार कर दिया । तब उसके बदले में दूसरी जगह चुन लेने का विकल्प इनको दिया गया। इनको दौड़ता हुआ एक खरगोश का बच्चा पसंद आया था और इनहोने कह दिया जहां यह खरगोश का बच्चा रुकेगा वही जगह उनको दे दी जाये । दिन भर शाही कारिंदे नीमाराय जी को लेकर खरगोश के बच्चे के पीछे दौड़ते रहे आखिकार शाम को जब थक कर वह खरगोश का बच्चा एक जगह सो गया उसी जगह को उन्होने अपने लिए चुन लिया। उस स्थान पर बादशाह अकबर के आदेश पर एक महल तहखाना समेत इनके लिए बनवाया गया था। पहले यह महल खंडहर रूप में 'दरियाबाद' रेलवे स्टेशन से ट्रेन में बैठे-बैठे भी दीख जाता था। किन्तु अब बीच में निर्माण होने से नहीं दीख पाता है। 

1964 तक जब हम मथुरा नगर, दरियाबाद गए थे इस महल के अवशेष उस समय की याद दिला देते थे। बाहरी बैठक तब तक मिट्टी की मोटी  दीवार से बनी थी और काफी ऊंचाई पर थी उसमें दुनाली बंदूकों को चलाने के स्थान बने हुये थे। लेकिन अब  बड़े ताऊ जी के बेटों ने उसे गिरवाकर आधुनिक निर्माण करा लिया है। अब भी खंडहर रूप में पुरानी पतली वाली मजबूत ईंटें वहाँ दीख जाती हैं। हमारे बाबाजी ने रायपुर में जो कोठी बनवाई थी वह भी 1964 तक उसी तरह थी परंतु अब उसे भी छोटे ताऊ जी के पुत्र व पौत्रों ने गिरवाकर आधुनिक रूप दे दिया है। हमारे बाबूजी तो सरकारी नौकरी में और दूर-दूर रहे, इसलिए  हम लोग विशेषतः मैं तो जमींदाराना  बू से दूर रहे हैं। 

राजेश्वर बली साहब जब रेलवे बोर्ड के सदस्य थे तब उन्होने हर एक्स्प्रेस गाड़ी का ठहराव दरियाबाद रेलवे स्टेशन पर करवा दिया था । अब भी वह परंपरा कुछ-कुछ लागू है। हमारे बाबाजी के छोटे भाई साहब हैदराबाद निज़ाम के दीवान रहे थे और उनके वंशज उधर ही बस गए हैं। जहां एक ओर इस परिवार के अधिकांश लोग समयानुसार चल रहे हैं सिर्फ मैं ही समय के विपरीत धारा पर चलते हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से सम्बद्ध चल रहा हूँ। हमारे पिताजी के सहपाठी और रूम मेट रहे कामरेड भीखा लाल जी से मिलने का मुझे सौभाग्य मिला है। भाकपा एम एल सी रहे  बाराबंकी के कामरेड रामचन्द्र बख्श सिंह साहब से भी हमारा सान्निध्य रहा वह हमारे बाबाजी के चचेरे भाई राय धर्म राजबली साहब के परिचितों में थे। 

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गुरुवार, 19 नवंबर 2015

कपटी -छली इंटरनेटी का पर्दाफाश ------ विजय राजबली माथुर


             https://www.facebook.com/mukutdhari.agrawal/posts/857153307700473





एक साहब Ravi Lall नाम से एक  साहब की एक पोस्ट पर लिख कर गए कि वह जगदीश चंद्र माथुर साहब के खानदान से संबन्धित हैं। इसी आधार पर वह फेसबुक पर मेरे साथ सम्बद्ध हुये। जिसके प्रमाण उनकी इन टिप्पणियों से मिलते हैं :

फिर उन्होने अपना फेसबुक id बदल कर Rabindrnath कर लिया उसके बाद जब Rabindra Bhatnagar नाम से id को बदला तब मुझे अंफ्रेंड  कर दिया और संभवतः उन साहब को भी जिनकी पोस्ट के माध्यम से मेरे संपर्क में फेसबुक पर आए थे। उनकी इस कारगुजारी और भगवान सहाय, IAS को भगवान सहाय माथुर लिखने की उनकी बात से सिद्ध होता है कि वह न तो माथुर बिरादारी से थे न ही   जगदीश चंद्र माथुर, IAS  परिवार से थे जैसा कि उस पोस्ट पर उनहोने  झूठ लिखा था कि ,

LikeReply1July 16 at 5:33pm
Rabindra Bhatnagar I also belong to that family of Mathurs. You must have heard the name of Bhagwan sahai Mathur ICS retired some time in1958-9. who one time remained Chief Commissner of Bhpal after its merger.
Mukutdhari Agrawal श्री भगवान सहाय के बारे मे कोई संस्मरण हो तो हमे जानकारी दें ।
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यदि सच होता तो बदली id से कलई  न खुल जाती। ऐसे Fraud से सबको सतर्क व सावधान रहना चाहिए। 

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