बुधवार, 15 अगस्त 2012

ई -बुक द्वितीय खंड

जैसा कि इस ब्लाग की वर्षगांठ पर ज़ाहिर किया था कि---
"आगरा से लखनऊ आने तक लगभग 15 वर्ष का विवरण लिखना शेष है। इस दौरान इस वर्ष जनवरी मे 'विद्रोही स्व-स्वर मे-प्रथम भाग' को ई बुक के रूप मे संकलित भी किया जा चुका है। उम्मीद है कि शीघ्र सम्पन्न कर सकूँगा।


रिश्तेदार जलन के कारण मुझे सफल नहीं देखना चाहते,सांप्रदायिक तत्व अपने पर चोट के कारण और प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक होने का दावा करने वाले इसलिए नहीं कि वस्तुतः उनकी कथनी और करनी मे अन्तर है। मेरा प्रयास 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करके सांप्रदायिक शक्तियों के नीचे से ज़मीन खींच लेने का था परंतु वह नक्कारखाने मे तूती की आवाज़ बन कर रह गया है।"

इस ब्लाग के माध्यम से जीवन मे आए संकटों,संघर्षों और उनका सामना कैसे किया-अनुभव के आधार पर वर्णन कर रहा था। यदि लोग 'क्रांतिस्वर' के साथ इसका भी सम्यक अवलोकन करते तो उनको मेरी रण-नीति,कार्य-शैली आदि का बोध रहता और वे हिमाकत न करते जैसे कि बचपन मे RSS से संबन्धित एक सहपाठी जो कथावाचक का पुत्र था को 'कब्बडी' मे एक बार कैसे परास्त किया था ,इस तथ्य को ध्यान रखा होता तो विदेश स्थित एक प्रोफेसर साहब नाहक आघात करके बुरे न फंसे होते।

उस पिछली पोस्ट मे मैंने यह भी लिखा था-"कुछ लोगों को हमारा लेखन खूब अखरता है और कुछ लोगों को जीवन। अतः 17 जूलाई 2012 को 'श्रद्धांजली सभा की सैर' शीर्षक से किसके क्या विचार मेरे बारे मे हैं अपने को श्रद्धांजली के रूप मे प्रकाशित कर दिये थे।"

परंतु अब जब इस ब्लाग मे जो जैसा है वैसा ही लिखने मे असमर्थ हूँ तो मुझे यह स्वीकार करने मे कोई झिझक नहीं है कि हमारे तमाम विरोधी और विपक्षी-रिश्तेदार,गैर
रिश्तेदार,अड़ौसी,पड़ौसी,राजनीति,ब्लाग्स,फेसबुक आदि से संबन्धित (जिंनका सफल नेतृत्व छोटी बहन डॉ शोभा,उनके पति के बी माथुर साहब और उनकी छोटी पुत्री पूनावासी मुक्ता मणि माथुर साहिबा ने किया ) मुझ  को परास्त करने मे कामयाब रहे ।  फिलहाल इस ब्लाग को यहीं  तक अनिश्चित काल के लिए स्थगित करके अब तक के लेखन को 'विद्रोही स्व-स्वर मे-द्वितीय खंड' के रूप मे ई-बुक का रूप दिया जा रहा है।

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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

तीसरे वर्ष मे

दो वर्ष पूर्व 03 अगस्त 2010 को इस ब्लाग को शुरू किया गया था ,उद्देश्य था 'लखनऊ से लखनऊ' तक के सफर का विवरण संकलित करना। जितना जो याद है और जितना लिखना आवश्यक है उतना अलग-अलग पोस्ट मे देता जा रहा हूँ। बीच-बीच मे कुछ असाधारण परिस्थितियों ने लेखन-क्रम को सिलसिलेवार रूप से हट कर लिखने पर विवश किया है। कभी-कभी न चाहते हुये भी बाहरी परिस्थितियाँ आंतरिक परिस्थितियों को प्रभावित कर ही देती हैं। लोगों को सहायता देना उनकी मदद करना एक शौक रहा है ,हालांकि इससे खुद को हानि ही हुई है। ब्लाग और फेसबुक से संबन्धित लोगों को निशुल्क ज्योतिषीय परामर्श देना भी इसी श्रेणी मे आता है। पूना मे प्रवास कर रही एक ब्लागर महोदया ने अपने बच्चों की चार कुंडलियों बनवाने के बाद एक दूसरे ब्लाग पर मेरे ज्योतिषीय विश्लेषण की खिल्ली उड़ाई । 19 अप्रैल 2012 को रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना के अंतर्गत 'रेखा जी' की कुंडली का विश्लेषण दिया था और 26अप्रैल 2012 को राष्ट्रपति महोदया ने उनको राज्यसभा मे मनोनीत कर दिया था। 

 रेखा के मनोनयन पर ही वह खिल्ली उड़ाई गई थी। उस खिल्ली की चेतावनी देने के लिए X-Y कुंडलियों का विश्लेषण दिया था। तब तमाम लोगों ने अपना-अपना भविष्य जानने के लिए मुझसे अपने विश्लेषण करवाए थे जिनमे चार कम्युनिस्ट विचारधारा के बड़े लोग भी शामिल थे। उनमे एक ने अपना विश्लेषण हासिल करने के बावजूद विदेश मे प्रवास करते हुये पूना प्रवासी का अनुसरण किया बल्कि और दस कदम आगे निकल गए ।उन महाशय ने 'लाल झण्डा यूनिटी सेंटर' ग्रुप मे  मुझे ब्लाक कर दिया जबकि वह और मैं दोनों ही प्रवर्तक द्वारा एडमिन बनाए गए थे। जिन पोस्ट को आधार बना कर मुझे ब्लाक किया गया उनमे कुछ और जोड़ कर उनकी एक ई-बुक 'जन-क्रान्ति' मुंशी प्रेम चंद जी के जन्मदिन 31 जूलाई पर प्रकाशित की जा चुकी है।

 यह ब्लाग हमारी बड़ी भांजी की बेटी के जन्मदिन पर शुरू किया गया था। पहले हम उन सबके जन्मदिन पर हवन करते थे। अप्रैल  2011 मे बहन जी के हमारे घर आगमन के बाद जो खुलासे हुये उनके मद्दे नज़र अब इस प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया है। कुछ लोगों को हमारा लेखन खूब अखरता है और कुछ लोगों को जीवन। अतः 17 जूलाई 2012 को 'श्रद्धांजली सभा की सैर' शीर्षक से किसके क्या विचार मेरे बारे मे हैं अपने को श्रद्धांजली के रूप मे प्रकाशित कर दिये थे। उसका विवरण भी उन ढ़ोंगी साम्यवादी पोंगा पंडित को पीड़ादायक लगा था। उनके संबंध मे लिखे मेरे नोट्स और लेख फेसबुक के दूसरे ग्रुप्स मे साम्यवादी चिंतकों द्वारा सराहे गए हैं। उस ग्रुप के प्रवर्तक ने भी अप्रत्यक्ष रूप से मेरा समर्थन किया है-'आप अपना लेखन जारी रखें,RSS के कुत्ते दम दबा कर भाग जाएँगे...'। वाशिंगटन स्थित एक भारतीय परमाणु वैज्ञानिक ने मुझे सुझाव दिया है की जिस ग्रुप मे मेरे निष्कर्षों को महत्व और मुझे सम्मान दिया जाये उसी मे मैं सक्रिय रहूँ उनका सुझाव सहर्ष स्वीकार कर लिया है।  27 जूलाई 2012 को 'जनहित' नामक एक  नए ग्रुप का गठन भी कर दिया है।

कल 02 अगस्त को रक्षाबंधन पर्व था। 19 वर्ष पूर्व 1993 मे भी 02 अगस्त को यही पर्व था जिस दिन हमारी बहन जी फरीदाबाद से (मुझसे छोटे भाई अजय के पास से  उनको राखी बांध कर ) हमारे घर कमला नगर,आगरा  आई थीं । स्टेशन हम लोग लेने गए थे ,टिकट उनका गिर गया और उनके पैर के नीचे दब गया ,पर्स ,अटेची सब खोल कर देख लिया नहीं मिला जगह से हिल नहीं रही थीं एक ही रट कि पेनल्टी दे देंगे। समय खराब हो रहा था घर पर बउआ-बाबू जी इंतज़ार कर रहे थे। मैंने ज़बरदस्ती  हटाने के इरादे से कहा कि जब पेनल्टी देना ही है तो चलो तो ,जैसे ही आगे पैर बढ़ाया टिकट सामने दीख गया। शाम को हमने मोपेड़ खरीदने का तय किया हुआ था ले आए। बहन जी को चुभ गया। बउआ द्वारा मँगवाई मिठाई उन्होने नहीं खाई,अगले दिन खाने को कह कर टाल दिया। और अगले दिन यह कह कर तमक गई कि हम मीठा खा कर सफर नहीं कर सकते अतः न खाया। झांसी स्टेशन पर कमलेश बाबू उनको लेने पहुंचे थे परंतु दोनों एक-दूसरे को ढूंढते रहे और डॉ शोभा अकेले घर पहुँचीं। पूरी ट्रेन देख लेने और ट्रेन छूट जाने के बाद कमलेश बाबू घर पहुंचे। हमारी सहूलियत देख कर चिढ़ी थीं खुद तकलीफ उठाई। ऐसे ही दुनिया के और लोग हैं जाने क्यों उनको हमारी खुशी से कोफ्त होती है?                                          

आगरा से लखनऊ आने तक लगभग 15 वर्ष का विवरण लिखना शेष है। इस दौरान इस वर्ष जनवरी मे 'विद्रोही स्व-स्वर मे-प्रथम भाग' को ई बुक के रूप मे संकलित भी किया जा चुका है। उम्मीद है कि शीघ्र सम्पन्न कर सकूँगा।


रिश्तेदार जलन के कारण मुझे सफल नहीं देखना चाहते,सांप्रदायिक तत्व अपने पर चोट के कारण और प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक होने का दावा करने वाले इसलिए नहीं कि वस्तुतः उनकी कथनी और करनी मे अन्तर है। मेरा प्रयास 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करके सांप्रदायिक शक्तियों के नीचे से ज़मीन खींच लेने का था परंतु वह नक्कारखाने मे तूती की आवाज़ बन कर रह गया है। जहां एक ओर कारपोरेट लाबी का पसंदीदा  'कबीर'; नामक NGO  का कर्ता जनता की वाहवाही बटोर रहा है वहीं 'कबीर कला मंच' की शीतल साठे भूमिगत रह कर जनता की सेवा मे तत्पर हैं ,सुनिए उनकी आवाज़ मे देश की दशा-


Aye Bhagat singh tu Zinda hai by Hashiya

 शहीदे आजम भगत सिंह 'सत्यार्थ प्रकाश' के अध्यन के बाद क्रांतिकारी बने थे। उन्होने खुद कॉ 'नास्तिक' घोषित किया था क्योंकि उस समय नास्तिक का अभिप्राय जिसका ईश्वर पर विश्वास न हो से लिया जाता था। स्वामी विवेकानंद ने बताया था कि 'आस्तिक=जिसका खुद पर विश्वास हो' और 'नास्तिक=जिसका खुद पर विश्वास न हो'। भगत सिंह जी कॉ खुद पर विश्वास था अतः वह आस्तिक हुये न कि नास्तिक।मैं  अपने ऊपर आस्था और विश्वास रखते हुये अर्थात आस्तिक होते हुये अपने सीमित अवसरों एवं साधनों से जन-कल्याण के कार्यों मे तत्पर रहता हूँ क्योंकि अपने लिए जिये तो क्या जिये?   'बाजारवाद ' के विरुद्ध संजीव कुमार जी की अदाकारी भरा संघर्ष देखें-


 

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