शनिवार, 24 अगस्त 2013

वस्तुतः रक्षाबंधन है क्या?---विजय राजबली माथुर


 Danda Lakhnavi जी की फेसबुक वाल पर एक कमेन्ट पर उनकी प्रतिक्रिया देख कर मैंने एक पोस्ट दी थी जिसे नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है परंतु उससे पूर्व एक और पुरानी पोस्ट उद्धृत है जिसमें ब्रह्मसूत्रेण अर्थात जनेऊ की उपयोगिता लक्षित है। 
वैदिक काल में श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन उपनयन=जनेऊ संस्कार करके विद्याध्यन करने की व्यवस्था की गई थी जो कि लड़का/लड़की और वर्ण भेद के बगैर प्रत्येक विद्यार्थी के लिए थी। जनेऊ के धागे ही 'रक्षा-सूत्र'कहे जाते थे और इसी कारण इस पर्व का नामकरण 'रक्षाबंधन' हुआ था। किन्तु जैसा कि अन्य पर्वों के साथ छेड़-छाड़ पोंगापंथी पुरोहितों/ब्राह्मणवादियों ने की है उसी प्रकार इस रक्षाबंधन पर्व को भी विकृत कर दिया गया है।  आज यह बहन-भाई का त्यौहार बना दिया गया है लेकिन उसका भी तथाकथित राष्ट्र वादी( जो अपनी फेसबुक वाल पर 'वंदे मातरम'लिखते और भारत माता का चित्र और भारत का मानचित्र लगाते हैं )घृणित प्रयोग करते हैं जिस पर डॉ डंडा लखनवी जी ने वेदना व्यक्त की थी। 
जिन आधारों पर त्यौहार बने हैं .... उनमें यदि प्रेरक तत्व न रहे तो पुर्न समीक्षा की आवश्यकता है|)
केवल और केवल महिला वर्ग ही अपने पुरातन सिद्धांतों को बहाल कर सकता है क्योंकि वही पोंगापंथियों की जकड़न में ज़्यादा है और उसे ही उनके प्रति विद्रोह करने की आवश्यक्ता है। 
बुधवार, 13 अक्तूबर 2010
"ब्रह्मसूत्रेण पवित्रीकृतकायाम''
सातवीं शताब्दी में बाण भट्ट ने कादम्बरी में लिखा है कि लड़कियों का भी उपनयन होता था .वर्णन है कि महाश्वेता ने जनेऊ पहन रक्खा है.जनेऊ या उपनयन संस्कार शिक्षा प्रारम्भ करने के समय  किया जाता है तब तक लड़के -लड़कियों का भेद हमारे देश में नहीं था .यह तो विदेशी शासकों ने भारतीय समाज की रीढ़ -परिवारों को कमज़ोर करने के लिए लड़कियों की उपेक्षा की कहानियें चाटुकार और लालची विद्वानों से धार्मिक -ग्रंथों में उस समय लिखवाई हैं जिनका दुष्परिणाम आज तक सामजिक विद्वेष व विघटन में परिलक्षित हो रहा है .
जनेऊ के तीन धागे :-१.आध्यात्मिक ,२ .आधिदैविक ,३ .आधिभौतिक तीनो दुखों को दूर करने की प्रेरणा देते हैं .
(अ)-माता ,पिता और गुरु का ऋण उतरने की  प्रेरणा .
(ब )-अविद्या,अन्याय और आभाव दूर करने की जीवन में प्रेरणा .
(स )-हार्ट (ह्रदय ),हार्निया (आंत्र स्खलन ),हाईड्रोसिल /युरेटस  सम्बंधी बीमारयों का शमन ये जनेऊ के तीन धागे ही करते हैं -इसीलिए शौच /लघु शंका करते समय इन्हें कान पर लपेटने की व्यवस्था थी .
 जब ,तब लड़का -लड़की का समान रूप से जनेऊ होता था तो स्वाभाविक रूप से पुत्री -पुत्र सभी के कल्याण की कामना की  जाती थी .गुलाम भारत में पोंगापंथ  के विकास के साथ -२(जो आज निकृष्टत्तम  स्तर पर सर्वव्याप्त है )लड़का -लड़की में भेद किया जाने लगा .लड़कियों /स्त्रियों को दबाया -कुचला जाने लगा जिसे आज आजादी के 66 वर्ष बाद भी दूर नहीं किया जा सका है .इन नवरात्रों में स्त्री -शक्ति आगे बढ़ कर व्रत (संकल्प )करें कि अन्यायपूर्ण पोंगापंथ का शीघ्र नाश करेंगी तभी नारी -मुक्ति संभव है .
 
Friday, 23 August 2013
आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?
ढोंग को धर्म मानने का दुष्परिणाम:तथाकथित राष्ट्र वादी का भद्दा कमेन्ट ---



एक तू ही धनवान हैं गोरी बाकी सब कंगाल —
— with Vikash Goyal.
Danda Lakhnaviआज रक्षा-बंधन का दूसरा दिन है| अभी रक्षा -बंधन पर बंधा धागा खुला नहीं होगा ... एक भाई को एक बहन गोरी दिख रही है. आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?

आदरणीय डॉ डंडा लखनवी जी ने यह वाजिब सवाल उठाया है -"आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?" 
एक तरफ तो हर त्यौहार को धर्म के साथ जोड़ा जाता है दूसरी ओर धर्म विरुद्ध आचरण किया जाता है तो उससे स्पष्ट है कि धर्म को 'धर्म' के रूप में नहीं बल्कि 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'के रूप में केवल 'मौज -मस्ती' के लिए प्रयोग किया जा रहा है। तभी तो कुत्सित विचारों का प्रदर्शन किया जाता है जिन पर डॉ साहब ने समयोचित-सटीक टिप्पणी की है। ऐसे कुत्सित लोगों को रामदेव-आशा राम सरीखे ढोंगियों से बल मिलता है और समाज में अराजकता की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रतिक्रिया स्वरूप लोग धर्म को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं क्योंकि ढ़ोंगी जो धर्म के ध्वजा वाहक बन जाते हैं। आवश्यकता है ढोंगियों का पर्दाफाश करने एवं 'धर्म' की वास्तविक मीमांसा जन -जन को समझाने की।

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रविवार, 18 अगस्त 2013

घोटालू का नया कारनामा भी विफल हुआ

घोटालू है क्या?
घोटालू यूनियन बैंक का एक कारिंदा है। यूनियन बैंक के अधिकारियों ने कमलानगर आर्यसमाज,आगरा में बताया था कि,'इस अर्थ पर अर्थ के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है'। लिहाजा घोटालू का कार्य अर्थ अर्थात धन उगाहना है चाहे उसके लिए जितने भी पाप कर्म करने पड़ें। घोटालू को ईमानदारी और कर्तव्य का पालन करने वाले लोगों से घोर नफरत है। लिहाजा मैं उसकी हिट लिस्ट में सबसे ऊपर हूँ।

ब्लाग जगत में पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर ने मेरे ज्योतिष ज्ञान के विरोध में जो मुहिम चलाई थी और जिसे कानपुर से संबन्धित डॉ अरुण प्रकाश मिश्रा और पटना प्रवासी सोनिया बहुखंडी गौड़ ने बल प्रदान किया था उनका सजातीय हमदर्द  होने के कारण घोटालू ने अपने नवीनतम कदम के रूप में मेरे विश्लेषण को गलत साबित करने का प्रयास किसी अवधेश पांडे को मोहरा बना कर किया था।

अवधेश पांडे खुद को 39 वर्षीय बेरोजगार बताते हुये मुझसे ज्योतिषीय परामर्श लेने जब प्रथम बार आया था तो उसे निर्धारित समय पर संपर्क करने को कह दिया था। 13 अगस्त को वह निर्धारित समय पर आया और अपने बारे में जो  विवरण लिख कर दे गया उसके अनुसार दो बातों की जानकारी चाही थी:
OBJECT,GOAL(CARIEER)
उसे 18 अगस्त को संपर्क करने को कह दिया था। उसका जो विश्लेषण उसे सौंपा था उसे पढ़ने के बाद उसने अपने जन्म वर्ष का काशी का पत्रा और कई कंप्यूटराइज्ड जन्मपत्रियाँ दिखते हुये गलत घोषित कर दिया और किसी और का हवाला देते हुये चुनौती देने लगा। उसके जवाब में उसे बता दिया कि न हम किसी को चुनौती देते हैं न किसी की चुनौती लेते हैं उसे परेशान रहना है तो शौक से परेशान होता रहे हमें कोई दिक्कत नहीं है और अपना विश्लेषण अपने पास ही रोक लिया ।

http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html
प्रस्तुत लिंक पर दिये लेख द्वारा मैंने 19 अप्रैल 2012 को 'रेखा जी' के राजनीति में आने की संभावना व्यक्त की थी और तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी ने उनको 26 अप्रैल 2012  को राज्यसभा में मनोनीत करने की घोषणा कर दी थी। उसके बाद पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर ने IBN7 में कार्यरत अपने चमचा ब्लागर से 'रेखा जी' के मनोनयन की खिल्ली उड़वाता लेख एवं  'ज्योतिष एक मीठा जहर' शीर्षक दूसरा लेख लिखवाया एवं डायचेवेले पुरुसकार प्राप्त दूसरे चमचा ब्लागर से भी ज्योतिष विरोधी लेख लिखवाये थे जबकि खुद उस भृष्ट ब्लागर ने चार कुंडलियों एवं उसकी शिष्य ब्लागर ने भी चार जन्म्पत्रियों एवं डॉ अरुण प्रकाश मिश्रा ने भी एक जन्मपत्री का निशुल्क विश्लेषण मुझसे प्राप्त किया था।

इनके अतिरिक्त तब कनाडा स्थित एक ब्लागर राजेश नचिकेता जी ने अपने जाब एवं स्थान परिवर्तन संबंधी जानकारी सहित जन्मपत्री का विश्लेषण प्राप्त किया था उनको भारत में जाब भी मिल गया तथा उन्होने अपने विवाह का निमंत्रण भी भेजा था एवं आभार भी व्यक्त किया था। वहीं तब कनाडा स्थित दूसरी ब्लागर डॉ मोनिका शर्मा ने भी मुझसे जन्मपत्री का निशुल्क  ज्योतिषीय विश्लेषण प्राप्त किया था और स्थान परिवर्तन हेतु परामर्श लिया था। फेसबुक गतिविधियों से ज्ञात हुआ है कि वह भी अब मुंबई में सेटिल हो गई हैं किन्तु उनकी कविता   भृष्ट ब्लागर द्वारा निशुल्क छाप देने से वह उसके प्रभाव में हैं इसलिए उसके प्रति वफ़ाफ़ादारी निभाने के कारण- राजेश नचिकेता जी की तरह  मुझको औपचारिक सूचना देना उनको आवश्यक नहीं लगा होगा ।

आगरा कालेज में जूलाजी के विभाध्यक्ष रह चुके  डॉ वी के तिवारी जी  ने मुझसे कुल छह जन्म पत्रियों का शुल्क भुगतान करके विश्लेषण प्राप्त किया था और अपने निवास तथा पुत्र के इन्स्टीच्यूट में भी 'वास्तु' हवन मुझसे ही करवाए थे। 2004 ई में डॉ तिवारी जी ने कैंसर  का आपरेशन भी मुझसे मुहूर्त लेकर ही करवाया और सफलता प्राप्त की थी।दिवंगत होने से पूर्व  जब तक वह स्वस्थ रहे मेरे संपर्क में रहे।

भारत पेट्रोलियम के वरिष्ठ अधिकारी डॉ ब्रिज मोहन उपाध्याय जी जिनको पटना में गोली मारी गई थी जो उनके पेट को चीर कर पीठ से निकल गई थी  आगरा में मुझसे संपर्क करने के बाद लाभान्वित रहे। उनके किरायेदार -फुटवियर ट्रेनिंग सेंटर के डिप्टी डाइरेक्टर राहुल पुरी जी ने भी मुझसे न केवल परामर्श लिया बल्कि अपने निवास पर 'वास्तु' हवन करवाए तथा दिल्ली स्थित अपनी विवाहिता बहन जी  की जन्मपत्रियाँ मुझसे ही विश्लेषण करवाईं तथा सभी शुल्क सहर्ष दिये।

सपा नेता पंडित सुरेश पालीवाल जी ने भी अपने पुत्रों,पुत्र-वधू तथा पौत्री की जन्म्पत्रियो का सशुल्क विश्लेषण मुझसे करवाया तथा निवास पर अनेकों बार 'वस्तु' हवन करवाए।

उपरोक्त सभी लोग ब्राह्मण जाति से तो थे किन्तु समझदार व पढे-लिखे होने के कारण मुझ 'कायस्थ' से ज्योतिषीय व वास्तु परामर्श लेने में हिचके नहीं। परंतु घोटालू साहब जाहिल ब्राह्मण हैं उनकी पढ़ाई-लिखाई केवल धन-उगाही तक सीमित है विचारों से वह सामंतवादी और निरे दकियानूस हैं ;हालांकि अपनी पुत्री के विवाह संबंधी जानकारी जन्मपत्री द्वारा मुझसे निशुल्क प्राप्त कर चुकने के बावजूद एहसान फरामोशी की हदें पार करते हुये मुझे सपरिवार नष्ट करने का अभियान चलाये हुये हैं।घोटालू साहब ने हमारे निवास के इर्द-गिर्द रहने वाले कम से कम चार बैंक कर्मियों एवं कई वकीलों के माध्यम से हमारे विरुद्ध मुहिम चला रखी है। अपनी ननिहाल-क्षेत्र के एक ब्राह्मण पूर्व विधायक को भी लगाया था किन्तु शायद दाल-भात में मूसलचंद बनना उनको ठीक नहीं लगा होगा और अब वह अलग हो गए। अपने ननिहाल से संबन्धित अपनी एक भाभी (जो निकृष्टम ठग ब्लागर की भी निकटस्थ हैं)के रिश्तेदार एक राजनीतिक दल के प्रदेशाध्यक्ष(जो अब पूर्व प्रदेशाध्यक्ष हो गए हैं) को भी घोटालू साहब ने अपनी दोस्ती के बूते हमारे विरुद्ध लगाया हुआ है जो कि पूर्व बैंक कर्मी होने के अलावा वकील भी हैं । 

भृष्ट-धृष्ट ब्लागर और उसके साथी ब्लागर्स तथा घोटालू साहब मेरे ज्योतिषीय विश्लेषणों को गलत साबित करके  'पोंगापंथी-ढ़ोंगी-ठग व लुटेरे' लोगों का बचाव करना चाहते हैं जो जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं। ये लोग शोषकों-उतपीडकों/व्यापारियों/उद्योगपतियों के दलाल हैं और उनके ही दूसरे ढ़ोंगी-पोंगापंथी दलालों का संरक्षण करने हेतु मुझ पर प्रहार करवा रहे हैं। अवधेश पांडे का असफल प्रयास भी इसी कड़ी का हिस्सा था।

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सोमवार, 12 अगस्त 2013

13 जूलाई कांड -दान देना घातक हुआ

हालांकि 12 जूलाई 2013 को पाक्षिक पत्रिका के संपादक महोदय और उनके साथी के बांदा के लिए प्रस्थान करते ही लखनऊ क्षेत्र के भीतर ही उनकी जीप के साथ गंभीर हादसा हुआ था जिसमे आगे का 'विंड मिरर' पूरी तरह नष्ट हो गया था और उन लोगों को वैसे ही गंतव्य तक जाना पड़ा था। 13 जूलाई को संपादक जी ने मीटिंग की समाप्ती के बाद कार्यकारी संपादक से इस घटना का ज़िक्र कई लोगों के सामने ही  किया था। किन्तु संपादक महोदय फिर भी कार्यकारी संपादक पर शक करने को तैयार नहीं हैं। परंतु 13 जूलाई को मीटिंग के दौरान कार्यकारी संपादक का जैसा व्यवहार था और उसके बाद मुझे सपरिवार जितने कष्टों को झेलना पड़ा मुझे पूरा यकीन है कि यह सब उन घोटालू साहब का ही किया धरा हुआ है।

13 जूलाई 2013 की मीटिंग के दौरान मीटिंग अध्यक्ष की अनुमति के बगैर ही एजेंडा से हट कर एक प्रस्ताव घोटालू साहब ने संपादक जी से रखवाया जिसके अनुसार घोटालू साहब के निष्क्रिय मित्र जो डेढ़ वर्ष के दौरान एक भी मीटिंग में उपस्थित नहीं हुये थे उनके आधीन मुझे उनको सहयोग करना था जिससे निष्क्रिय साहब की सक्रियता दिखाई जा सके। मैंने एजेंडा से बाहर के उस प्रस्ताव को जो अध्यक्ष की अनुमति के बिना ही रखा गया था मीटिंग -मिनिट्स में दर्ज ही नहीं किया था। अतः घोटालू साहब की योजना ध्वस्त हो रही थी जिस कारण वह बौखला गए थे और मेरी कुर्सी में लातें ठेलते-ठेलते मेरे पैरों पर भी ठोकर मारने लगे और दबाव डालने लगे कि मैं उस अवैध प्रस्ताव को मिनिट्स में दर्ज करूँ जबकि मीटिंग संचालक एवं अध्यक्ष ने और संपादक महोदय ने भी मुझसे न लिखने पर कोई आपत्ति न की थी। घोटालू साहब की अभद्रता की इंतिहा तब हो गई जब वह मेरे पेट में उंगली भोंक कर लिखने का दबाव बनाने लगे। मैंने पूरी तरह घोटालू साहब और उनके दुष्कृत्यों की उपेक्षा कर दी। 

लेकिन यह उपेक्षा मुझे व मेरे परिवार को इतनी मंहगी पड़ेगी इसका कोई पूर्वानुमान नहीं था। घोटालू साहब मेरे प्रत्येक ब्लाग-पोस्ट की निंदा करते और अपने पिट्ठूओ से कराते रहते हैं। मेरा एक लेख था-

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

दान देना कितना घातक हो सकता है --जानिए अपने ग्रहों से http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_13.html

इस लेख के माध्यम से मैंने सर्व-साधारण को आगाह किया था कि प्रत्येक को प्रत्येक 'दान' देना घातक हो सकता है।  अतः जब घोटालू अपने मिशन में विफल हो गया था तो उसने पुनः अध्यक्ष की अनुमति के बगैर और एजेंडा से बाहर हट कर झोली फैला कर 'दान-संग्रह' प्रारम्भ कर दिया। बिना किसी पूर्व सूचना के इस प्रकार दान उगाहना कितना 'नैतिक' हो सकता है ?जब सभी लोग रु 500/-,100/-देने लगे तो मुझे भी मजबूरन रु 50/- का योगदान देना पड़ा जबकि मुझे इस प्रकार के दान नहीं देने चाहिए थे। नतीजतन अगले दिन ही मेरे पुत्र की तबीयत इतनी ज़्यादा गड़बड़ हो गई कि उसे दो दिन बाद बाहर के डाक्टर को दिखाना पड़ा (18 वर्ष बाद हमें उसे किसी बाहरी डाक्टर के पास ले जाना पड़ा),अभी वह पूरी तरह ठीक भी नहीं हो पाया कि मेरी पत्नी की तबीयत भी खराब हो गई और उनके साथ-साथ मेरी भी तबीयत गड़बड़ हो गई अर्थात सम्पूर्ण परिवार रुग्ण हो गया और एक माह उपरांत अभी तक किसी की भी तबीयत बिलकुल ठीक नहीं हो पाई है। रु 50/- का दान देकर लगभग रु 1500/- की चोट और शारीरिक/मानसिक आघात हम सबको सहना पड़ गया है।

आखिर क्यों घोटालू मुझे परेशान करता है?

वस्तुतः पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट -निकृष्ट-ठग ब्लागर की एक साथी घोटालू साहब की भाभी होती हैं जिनका ताल्लुक हमारे गृह ज़िले से है और वही घोटालू साहब के परम मित्र एक राजनीतिक दल के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष की भी रिश्तेदार हैं जिनको घोटालू साहब ने एक पूर्व विधायक के अतिरिक्त हमें परेशान करने हेतु लगाया था।  इन सबके सम्मिलित प्रयासों के बावजूद मैंने घुटने नहीं टेके तो घोटालू साहब अब निकृष्टत्तम धूर्तता पर उतर आए हैं वह यह नहीं सोच/समझ रहे हैं कि उनको यह तात्कालिक लाभ तो मिल गया किन्तु कालांतर में जब इसके दुष्परिणाम उनके सामने आएंगे तब वह क्या करेंगे?



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शनिवार, 3 अगस्त 2013

चतुर्थ वर्ष में ब्लाग और अनुभव ---विजय राजबली माथुर


मंगलवार, 3 अगस्त 2010 से इस ब्लाग का प्रारम्भ इस लेख से हुआ था :

"लखनऊ तब और अब " http://vidrohiswar.blogspot.in/2010/08/blog-post.html

वैसे एक ब्लाग 'क्रांतिस्वर' पहले से चल रहा था जिसमें पूर्व प्रकाशित लेखों को देना शुरू किया था। नए विचार भी उसी में दे रहे थे। फिर इस नए ब्लाग को शुरू करने का ध्येय यह था कि उन विभिन्न घटनाओं का भी उल्लेख कर दिया जाये खास तौर पर जिनका प्रभाव जीवन पर विभिन्न प्रकार से पड़ा था और लेखन को प्रभावित करने में जिनका योगदान रहा है। गत वर्ष उल्लेख कर चुका हूँ कि आगरा 1996-97 के बाद से लखनऊ आने 2009 तक 12 वर्ष का विवरण लिखना शेष  रह गया था । http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/08/blog-post.html

इस दौरान भी इस ब्लाग में लेखन तो हुआ है किन्तु क्रमानुसार लेखन अब बाधित हो चुका है और शायद उस प्रकार अब हो भी न सके। फिर भी यदा-कदा खास-खास घटनाओं का वर्णन करता जा रहा हूँ।

आज जब यह  ब्लाग-लेखन के तीन वर्ष पूर्ण कर चतुर्थ वर्ष में प्रविष्ट हो गया है और इसके साथ-साथ 'क्रांतिस्वर','कलम और कुदाल'तथा 'जनहित में'तीन अन्य ब्लाग भी सार्वजनिक रूप से चल रहे हैं एवं 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'  ब्लाग में भी मुझे लिखने को कहा गया है और उसमें भी थोड़ा योगदान दे रहा हूँ प्रश्न यह उठता है कि इस सारे लेखन की सार्थकता क्या है?


मुझे कुछ भी संशय नहीं है कि जिस ध्येय से मेरा लेखन चलता है उससे वर्तमान में कोई भी सहमत होगा! जो रूढ़ीवादी अंध-विश्वास पर चलते हैं वे तो मेरे विरोधी हैं ही परंतु जो खुद को प्रगतिशील व वैज्ञानिक विचारों वाला मानते हैं वे भी मेरा विरोध करते हैं क्योंकि उनके क्षुद्र विचारों पर भी मेरा लेखन प्रश्न-चिन्ह रखता है। इसी लिए मैं 'टिप्पणियॉ'पर कोई महत्व नहीं देता हूँ जबकि ब्लाग-जगत में इन टिप्पणियों को लेन-देन का चलन माना जाता है और लोग एक-दूसरे की पीठ थपथपाने वाली टिप्पणियाँ करते व प्रसन्न होते हैं। हालांकि इसी ब्लाग में कुल प्राप्त टिप्पणियों में से कुछ चुनिन्दा टिप्पणियों को एक पोस्ट के रूप में मैं प्रकाशित कर चुका हूँ। उसका उद्देश्य विभिन्न लोगों की सोच को सार्वजनिक करना था। 

मुझे निराश व हताश करने के प्रयास जिन लोगों ने किए उनके उद्देश्यों सहित  उनका भी विस्तृत उल्लेख अनेकों बार इस ब्लाग में भी हो चुका है। प्राप्त अनुभव को सुखद या अच्छा तो नहीं कहा जा सकता है परंतु लेखन एक शौक या हाबी होने के कारण आगे भी जारी रखूँगा एवं अपने विचार दृढ़ता से रखता रहूँगा चाहे जितना भी तीव्र विरोध हो। मुझे विश्वास है कि आगामी पीढ़ियाँ मेरे इस आज के लेखन से अवश्य ही लाभ उठा सकेंगी।


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