मंगलवार, 30 सितंबर 2014

हश्र क्या हुआ सफल रैली का ? ---विजय राजबली माथुर

30 सितंबर 2013 की सफल रैली की वर्षगांठ के अवसर पर विशेष :




मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था। :
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

मेरे इस आंकलन  का कारण  प्रदीप तेवारी  द्वारा  डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट  लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा। 

यह  है पिछली पोस्ट  का एक अंश। कहने की आवश्यकता नहीं है  कि उस सफल  रैली  के बाद मैंने जो आंकलन  किया था वह  शतशः सही निकला  है। डॉ साहब  रमेश कटारा  के नए अवतार  प्रदीप तेवारी  के पूर्ण प्रभाव में उसी प्रकार हैं जिस प्रकार 1992 में आगरा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी  रमेश कटारा के प्रभाव में थे। आगरा में सम्पन्न हुई राज्य काउंसिल के लिए  रमेश कटारा हेतु पार्टी का समर्थन हासिल न कर पाने पर मिश्रा जी ने केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से जातिवाद का प्रभाव डाल कर रमेश कटारा को राज्य कंट्रोल कमीशन में नामित करा दिया था। और इसकी कीमत मिश्रा जी को जिलमंत्री पद से नौ वर्ष लगातार वंचित रह कर चुकानी पड़ी थी। 'बोध' होने पर उन्होने रमेश कटारा को पार्टी से निष्कासित करा दिया था एवं पुनः नौ वर्ष आगरा के जिलामंत्री पद पर आसीन रहे ,आज भी वहाँ सर्वमान्य हैं लेकिन इस स्वीकृति हेतु उनको अपनी भूल को सुधारना पड़ा था। 

आज अभी तक  द्वितीय रमेश कटारा:प्रदीप  तेवारी का नशा डॉ साहब के सिर चढ़ कर बोल रहा है। जब पिछली पोस्ट मैंने उनको टैग करना चाहा तो ज्ञात हुआ कि सुबह बर्द्धन जी के जन्मदिन वाली पोस्ट मेरे लगाने के बाद उन्होने खिन्न होकर वह पोस्ट हटा कर मुझे फेसबुक पर ब्लाक कर दिया है। एक तरफ 16 सितंबर 2014 को उन्होने यह स्टेटस दिया था।:















 
http://vijaimathur.blogspot.in/2014/09/blog-post_28.html
कहाँ तो डॉ साहब ' वामपंथियों को जल्द से जल्द ' वास्तविक तथ्य को समझ लेने का आव्हान कर रहे हैं और एकता के पक्ष में सहमति दे रहे हैं लेकिन खुद ही वास्तविकता से आँखें मूँद कर मात्र प्रदीप के मोह में वैसे ही जनता से सिकुड़ी हुई पार्टी को जनोन्मुखी बनाने की बजाए कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न में प्रदीप की पक्षधरता कर रहे हैं। फेसबुक पर मुझे ब्लाक करना उसी कड़ी का पहला कदम है और प्रदीप द्वारा मुझे पार्टी ब्लाग की एडमिनशिप से हटाने के कृत्य पर सार्वजनिक रूप से मोहर भी (प्रदीप ने ब्लाग चलाने के छह वर्ष तक न तो शास्त्री जी को न ही डॉ साहब को ब्लाग एडमिन बनाया था बल्कि मैंने न केवल डॉ साहब वरन अरविंद राज जी को भी निवेदन करके ब्लाग एडमिन बनवा दिया था जो कि प्रदीप को खूब अखरा भी था )।प्रदीप उनके फेसबुक पर आने का भी विरोधी था मैंने ही उनको फेसबुक पर आने व सक्रिय होने में सक्रिय सहयोग दिया था। उनको तमाम ग्रुप्स में शामिल किया व अपनी मित्र सूची से उनको फ्रेंड्स सजेस्ट किए थे। जब चल गए तो प्रदीप की गोद में बैठ कर उसके इशारों पर चलने लगे न अपने पद की गरिमा का ख्याल किया न ही व्यक्तिगत कोई ज़रा सा भी लिहाज।  हो सकता है ज़िला सम्मेलन से पूर्व वह मुझे पार्टी से निष्कासित करवाने का  कदम उठा कर प्रदीप को और भी खुश करें। पुरानी कहावत है :'काजर की कोठरी  में कैसे हु सयानों जाये एक लीक काजर की लागिहे पे लागिहे । ' यही बात डॉ साहब पर अब बखूबी चस्पा हो रही है। जब वह  हाथरस से रामवीर उपाध्याय के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे थे तब ब्राह्मण बहुल क्षेत्र में 'डॉ गिरीश' नाम से किन्तु पोंगापंथी प्रदीप से प्रभावित होकर अब :
13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब ने प्रदीप की उपस्थिती में ही अंजान साहब को बताया था कि एक दिन पूर्व जब वह बांदा जा रहे थे उनकी जीप का विंड मिरर धमाके के साथ ब्लास्ट कर गया था और उसके काँच के घाव उनके शरीर पर भी थे जिन्हे उन्होने अंजान साहब को दिखाया भी था। संभवतः यह प्रदीप की कोई 'तांत्रिक करामात' ही होगी जिसने डॉ साहब के दिमाग को उसी प्रकार अपने कब्जे में कर रखा है जिस प्रकार तब रमेश कटारा ने रमेश मिश्रा जी के साथ कर रखा था।डॉ साहब ने स्वतः ही अंजान साहब को अपनी यह खूबी भी बताई थी कि उन्होने फारवर्ड ब्लाक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर जी को उनकी पार्टी से निकलवा दिया है । उन्होने उनको अपने सेक्रेटरी से सफलता पूर्वक भिड़ा दिया था। बड़े ही गर्व के साथ डॉ साहब ने यह भी बताया था कि फारवर्ड ब्लाक के  नए प्रदेश अध्यक्ष और सेक्रेटरी को उन्होने अलग-अलग अपने कब्जे में कर रखा है। 
  जी पी ओ पार्क,लखनऊ स्थित गांधी प्रतिमा पर महिला फेडरेशन के एक धरने  के दौरान डॉ साहब ने प्रदीप व मेरे मध्य साँप-नेवले के संबंध की बात कही थी। कहाँ तो प्रदीप प्रदेश कोषाध्यक्ष और कहाँ मैं ज़िला काउंसिल का सदस्य दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता अथवा समानता की बात ही कहाँ थी? परंतु डॉ साहब ऐसी तुलना कर रहे थे क्यों? 
मई 2012 में डॉ साहब ने खुद अपनी जन्मपत्री का व 06-11-12 को अपनी पत्नी की जन्मपत्री का तथा प्रदीप ने 12-11-12 को अपनी पुत्री की जन्मपत्री का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था । किन्तु ये दोनों उसी प्रकार मेरा अनर्गल विरोध कर रहे हैं जिस प्रकार प्रदीप की भाभी की मित्र पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों  का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त करके ब्लाग जगत में किया था। क्या एक निकृष्ट ब्लागर और इन बड़े राजनेताओं में कोई फर्क नहीं होना चाहिए था?

 परंतु गलत व्यक्ति को लाभ पहुंचा कर न तो पार्टी को मजबूत बनाया जा सकता है न ही जनता के मध्य लोकप्रिय। 
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_24.html

Tuesday, 24 December 2013


अवाम की आवाज़ और चेहरा :लखनऊ की शान और उत्तर प्रदेश का सितारा - अतुल अनजान:

"कामरेड अतुल अनजान लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और AISF के भी पूर्व अध्यक्ष तो हैं ही। वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 'राष्ट्रीय सचिव' तथा AIKS-अखिल भारतीय किसानसभा के 'राष्ट्रीय महामंत्री हैं'।  न केवल अपनी ओजस्वी वाक-शैली वरन जनता के मर्म को समझने वाले एक जन-प्रिय नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। 

यदि भाकपा केंद्रीय नेतृत्व उनके राष्ट्रीय कृत्यों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पार्टी के पथ -प्रदर्शक के रूप में उनको अतिरिक्त भार  दे दे  तो पार्टी को अत्यंत लाभ हो सकता है। "  

मेरी उपरोक्त पोस्ट भी डॉ साहब व प्रदीप को नागवार गुज़री थी किन्तु यह हकीकत है कि यदि उत्तर-प्रदेश में भाकपा को मजबूत करना है तो अंजान साहब का सहयोग लेना ही पड़ेगा जो कि डॉ साहब व प्रदीप गठबंधन के पूर्वाग्रहों के कारण संभव नहीं है क्योंकि अंजान साहब की मौजूदगी में प्रदीप निर्बाध मनमानी नहीं चला सकेगा जैसी की डॉ साहब की कृपा से अभी चला रहा है और पार्टी को निरंतर सिकोड़ता जा रहा है। 

उदारता एक मानवीय गुण है सभी को उदार होना चाहिए किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। :

विगत वर्ष (30 सितंबर 2013 ) को आगरा के एक वरिष्ठ कामरेड  साहब से  रैली स्थल पर भेंट हुई थी तब वह मंच की ओर पीठ कर के खड़े हुये थे(जबकि आगरा में मैंने उनके व डॉ साहब के  मध्य मधुर संबंध देखे थे )।  इस दृष्टांत से पूर्व जिलामंत्री  डॉ जवाहर सिंह धाकरे साहब द्वारा दी गई इस जानकारी की पुष्टि हो गई कि चंडीगढ़ के महिला फेडरेशन के कार्यक्रम हेतु ट्रेन में जाते समय उन वरिष्ठ कामरेड की कामरेड पत्नी को  डॉ साहब अभद्र व अश्लील चुट्कुले सुनाते गए थे। आगरा के तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी ने तबके प्रदेश सहायक सचिव डॉ साहब को इस बात के लिए कड़ी फटकार लगाई थी और भविष्य में फिर ऐसा न करने का आश्वासन देकर डॉ साहब ने पिंड छुड़ाया था। फिर भी इस जानकारी के बावजूद  भी मैंने लखनऊ में उनके प्रति उनके द्वारा बताई बात कि उनकी बीमारी के कारण यहाँ के कामरेड्स उनसे घृणा करते हैं उनके प्रति उदार रवैया अपनाया था । किन्तु डॉ साहब उस उदारता हेतु अनुकूल पात्र नहीं निकले। 

डॉ साहब के रुष्ट होने का एक बड़ा कारण उनके एक फेसबुक मित्र को 07 अगस्त को भेजा मेरा यह संदेश भी हो सकता है :

"आदरणीय कामरेड, लाल सलाम, उम्मीद है कि आप सपरिवार कुशल-मंगल होंगे। कुछ ज़रूरी सूचना देना चाहता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप अन्यथा न लेंगे। 05 अगस्त को एक प्रो ए के सिंह (का. अशोक कुमार सेठ ) आए थे और लगभग ढाई घंटे बैठे थे । आते ही उनका कहना था कि डॉ गिरीश जी के आदेश से आए हैं व उनको मेरा फोन न . कामरेड ख़ालिक़ ने दिया था। उनकी तमाम बातों का लबबों-लुआब यह था कि मुझको कामरेड अतुल अंजान साहब का विरोध करना चाहिए। चुप-चाप उनकी सारी बातें सुन ली किन्तु जब उनके द्वारा प्रदीप तिवारी की बात सुनी तो मैंने उनको स्पष्ट कर दिया था कि वही पार्टी को क्षति पहुंचा रहा है और कामरेड अंजान साहब नहीं। फिर कल 06 अगस्त को उनका फोन आया कि पार्टी आफिस में उनकी डेढ़ घंटे गिरीश जी से बातें हुईं व वह प्रदीप का ठोस समर्थन कर रहे हैं। आप लोग अतुल जी का विरोध करें या प्रदीप तिवारी का समर्थन करें इसमें मेरा तो कोई वास्ता नहीं है। किन्तु मैं भी अतुल जी का विरोध करूँ इसकी क्या ज़रूरत है ?मैं ऐसा नहीं कर सकता। हाँ मैं प्रदीप तिवारी का विरोध करता रहूँगा क्योंकि उस कमबख्त ने 13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक में मेरे पेट में न केवल उँगलियाँ भोंकी बल्कि मेरे पैरों पर अपनी लातों से भी प्रहार किया था। मुझे मालूम चला है कि प्रदीप मुझे पार्टी से निष्कासित कराना चाहता है और वह ऐसा कर सकता है। मोहम्मद ख़ालिक़ या अकरम की तरह मेरी कोई दूकानदारी पार्टी के दम पर नहीं चल रही है और न ही पार्टी के दम पर प्रदीप की तरह मैं किसी बैंक मेनेजर या व्यापारियों को ब्लैकमेल कर रहा हूँ जो मुझे निष्कासित होने पर घाटा हो जाएगा। उस सूरत में मैं तो प्रदीप तिवारी के विरुद्ध FIR करने के लिए स्वतंत्र हो जाऊंगा। आपसे सानुरोध विनम्र प्रार्थना है कि डॉ गिरीश जी से कहें कि जिस प्रकार उन्होने प्रो साहब को मेरे पास आने का आदेश दिया है उसी प्रकार उनको मुझसे मिलने से मना कर दें। वरना उनका फोन आने पर मैं खुद तो मना कर ही दूँगा और घर पर फिर भी आ गए तो उसी प्रकार बैरंग कर दिया जाएगा  जिस प्रकार प्रदीप तिवारी के इशारे पर आने वाले कामरेड राम किशोर जी को प्रतिबंधित कर दिया है। अपने ब्लाग्स व फेसबुक के माध्यम से मैं प्रदीप तिवारी का विरोध व अतुल अंजान साहब का समर्थन जारी रखूँगा। उसके लिए डॉ गिरीश जी की बात नहीं मानी जा सकती हैं। वैसे व्यक्तिगत रूप से डॉ गिरीश जी का सम्मान करता रहूँगा। धन्यवाद।"

(इस  पूरे मेसेज को डॉ साहब द्वारा सेठ साहब को पहुंचा दिया गया था जैसा कि सेठ साहब ने 24 अगस्त की काउंसिल बैठक के बाद ज़िक्र किया था।क्या यह डॉ साहब के ओहदे के अनुकूल प्रक्रिया हुई?) 

 अब आज 30 सितंबर 2013 की सफल रैली की वर्षगांठ के अवसर पर विगत एक वर्ष की असफलताओं का लेखा-जोखा करते हुये भविष्य में उनसे बचाने व सुधार का संकल्प लेना चाहिए; तभी भाकपा का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सकता है।

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गुरुवार, 25 सितंबर 2014

जिसकी जैसी सोच थी उसने उतना ही पहचाना मुझे ---विजय राजबली माथुर

डॉ गिरीश से लखनऊ में भेंट की पाँचवीं वर्षगांठ पर विशेष :


आगरा से लखनऊ आने के बाद मैंने भाकपा कार्यालय,क़ैसर बाग जाकर डॉ गिरीश साहब  से मिलने के प्रयत्न कई बार किए किन्तु वह अक्सर टूर पर होते थे और कामरेड अशोक मिश्रा जी भी नहीं मिल पाये थे। मैं आगरा से ही इन दोनों नेताओं से ही परिचित था तथा लखनऊ के और कामरेड्स से अनभिज्ञ था।किन्तु 25 सितंबर 2010 को मुझे लखनऊ में डॉ गिरीश साहब से भेंट करने का सुअवसर मिल ही गया और उन्होने पहचान भी लिया तथा लगभग तीन घंटे का समय मुझसे बात-चीत करने में व्यय  भी किया। इसी दौरान महिला फेडरेशन की वरिष्ठ नेत्री कामरेड आशा मिश्रा जी का भी आगमन हुआ और डॉ साहब ने उनसे भी मेरा परिचय करवाया जबकि वरिष्ठ नेता कामरेड अशोक मिश्रा जी से पूर्व परिचित था ही।

नितांत व्यक्तिगत आधार पर हुई इस भेंट में डॉ साहब ने यह भी बताया था कि यहाँ लखनऊ में उनकी बीमारी के चलते साथी कामरेड्स उनसे घृणा करते हैं तथा उनको सहयोग नहीं करते हैं। मेरा यहाँ निवास नौ किलो मीटर दूर होने के बावजूद कभी-कभी उनसे मिलते रहने को उन्होने मुझसे  कहा जिसका पालन मैंने अक्सर ही किया क्योंकि  पूर्व परिचय रहने तथा उनकी व्यथा सुनने के बाद उनसे व्यतिगत रूप से सहानुभूति भी मुझे हो गई थी।

डॉ साहब ने 'पार्टी जीवन' अखबार के लिए प्रधान संपादक की हैसियत से उनको  सहयोग करने को मुझसे 2011 में कहा मैं तो उनके आदेश का पालन करने को तत्पर था किन्तु कार्यकारी संपादक को ठीक न लगा। AISF की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर भी डॉ साहब के निर्देश पर मैं लगातार पार्टी कार्यालय जाता रहा और इस बात का ज़िक्र उन्होने समापन गोष्ठी में मेरे नाम का भी उल्लेख उनको सहयोग देने वालों की सूची में जोड़ कर किया। 

मई 2013 में एक बार फिर डॉ साहब ने 'पार्टी जीवन' हेतु मेरी सेवाएँ लेने की बात कही और इस बार उन्होने पुराने कंप्यूटर की मरम्मत करवाकर मुझे कार्य करने हेतु उपलब्ध करा दिया। तमाम दूसरे लोगों को भी बुरा लगा हो सकता है किन्तु कार्यकारी संपादक को  मैं उनका प्रतिद्वंदी नज़र आने लगा कि कहीं उनसे कार्य छीनने की डॉ साहब की चाल तो नहीं है जबकि ऐसा था नहीं क्योंकि एक बार खुद डॉ साहब ने उनको कहा था कि तुमको 'हैंड ' की ज़रूरत थी तुमको 'हैंड' दे दिये हैं।लेकिन उस शख्स को किसी ईमानदार आदमी की ज़रूरत नहीं थी जो डॉ साहब ने मेरे रूप में उनको सुपुर्द किया था। उस शख्स का मुझसे शुरू -शुरू में ही यह  कहना था  कि यहाँ (पार्टी कार्यालय ) में हर एक का कमीशन तय है और हर काम में लोग अपना कमीशन लेते हैं जबकि मैं तो जिस प्रकार आगरा में पार्टी हित में अपनी सेवाएँ देता था उसी अनुरूप प्रदेश कार्यालय के लिए भी कर रहा था। अतः  कार्यकारी संपादक के लिए बाधक व अनफ़िट था। बीच में कार्यकारी संपादक ने एक और पाँसा फेंकते हुये डॉ साहब से मुझे पार्टी की ओर से 'वेज' लेने का प्रस्ताव दिलाया परंतु मैंने डॉ साहब को स्पष्ट कह दिया कि आपके आदेश का अनुपालन करने हेतु एक कार्यकर्ता की हैसियत से योगदान कर रहा हू और निशुल्क सेवाएँ देता रहूँगा। परंतु का .स . को ऐसा व्यक्ति चाहिए था जो पैसा लेकर दब कर गलत कार्य कर सके अतः मुझे परेशान करने  हेतु  13 जूलाई 2013 की पार्टी ज़िला काउंसिल की बैठक में उसने  अपने एक निष्क्रिय मित्र के सहायक के रूप में मुझसे कार्य कराने का प्रस्ताव डॉ साहब से रखवाया और उसे स्वीकार करने हेतु व्यक्तिगत रूप से मेरे पैरों पर अपने पैरों से प्रहार किया । 

बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब से कामरेड अतुल अंजान साहब की उपस्थिति में मैंने उसके मित्र का सहायक बनने से स्पष्ट इंकार कर दिया व उसके बाद से 'पार्टी जीवन' के लिए भी कार्य करना छोड़ दिया। तब से वह शख्स मुझे अपना निजी दुश्मन  मान कर लगातार विभिन्न तरीकों से परेशान करता आ रहा है। एक तो खुद को 'एथीस्ट ' घोषित करता है दूसरी ओर कंट्रोल कमीशन के पूर्व सदस्य रमेश कटारा की भांति 'तांत्रिक' प्रक्रियाँओं से भी उत्पीड़न करता आ रहा है।



जैसा कि प्रस्तुत फोटो से स्पष्ट है वह शख्स निजी रूप से मुझे प्रताड़ित  करने हेतु कपोल-कल्पित बातें गढ़ता रहता है। मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था।
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

मेरे इस आंकलन  का कारण  प्रदीप तेवारी  द्वारा  डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट  लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा।

 कल दिनांक 24 सितंबर 2014 की ज़िला काउंसिल द्वारा 'चुनाव समीक्षा' बैठक में ज़िला इंचार्ज के नाते तेवारी साहब ने जिला मंत्री द्वारा एक प्रस्ताव के जरिये 60 वर्ष की आयु से अधिक के कामरेड्स के पदाधिकारी बनने पर रोक लगवा दी है। यदि इस प्रस्ताव को प्रदेश में भी लागू करवाया जा सका तो प्रदेश सचिव डॉ साहब व प्रदेश के सहायक सचिव अरविंद जी भी दौड़ से बाहर हो जाएँगे और तेवारी साहब का रास्ता 'निष्कंटक ' हो जाएगा।

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सोमवार, 15 सितंबर 2014

मेरे विरुद्ध कुत्सित भ्रामक प्रचार ---विजय राजबली माथुर

एक जिम्मेदार ओहदे पर होते हुये भी एक एथीस्ट साहब मेरे विरुद्ध कुत्सित भ्रामक प्रचार करने में संलिप्त रहते हैं। पार्टी हित में उनका कदम कितना अनुकूल है? वह इसी प्रकार हतोत्साहित करके पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न करने में मशगूल रहते हैं। क्या उनके प्रयास पार्टी को मजबूत करने वाले हैं? जिस बयान को वह मेरी लेखनी बता रहे हैं उसके विचारों से मैं पूरी तरह असहमत हूँ और यह बात मैंने बयानदाता भाकपा प्रत्याशी को स्पष्ट भी कर दी थी। किन्तु आदित्यनाथ का प्रतिवाद होने के कारण उसे मैंने भी शेयर कर दिया था।
लेकिन हिंदूमहासभा और आर एस एस के प्रखर नेता व सांसद आदित्यनाथ का बचाव करने हेतु कम्युनिस्ट रूप धारी ढ़ोंगी पोंगा-पंडितवाद के संरक्षक ने जिस प्रकार व्यक्तिगत रूप से मेरा नाम लेकर मेरे ऊपर प्रहार किया है वह अकारण नहीं है। क्योंकि मैं उस ढ़ोंगी द्वारा उपेक्षित किए जाने वाले अपने वरिष्ठ नेता गण -कामरेड ए बी वर्द्धन साहब और कामरेड अतुल अंजान साहब के बयानों को अपने ब्लाग्स में ससम्मान स्थान देता हूँ और पार्टी ओहदे से निजी अवैध कमाई करने वाला और मूल रूप से आर एस एस से सहानुभूति रखने वाला यह पोंगापंडितवादी अपने ही दल के इन वरिष्ठ नेताओं के प्रति घृणा भाव से ग्रसित है तब उसके लिए मैं किस खेत की मूली हूँ?*
— with Vijai Raj Vidrohi and 10 others.
  • Wednesday, 11 September 2013


    यह नया ब्लाग क्यों बना?---विजय राजबली माथुर

    मैंने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ब्लाग में पाँच सितंबर 2013 को कामरेड अतुल अंजान साहब की मऊ  में सम्पन्न रैली के समाचार की कटिंग देते हुये एक पोस्ट निकाली थी। इस पोस्ट को प्रदीप तिवारी साहब ने इसलिए हटा दिया क्योंकि वह अपने राष्ट्रीय सचिव कामरेड  अतुल अंजान साहब को व्यक्तिगत रूप से  नापसंद करते हैं। इतना ही नहीं इस पोस्ट के प्रकाशन का दायित्व मेरा था इसलिए मुझको भी ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। 

    पिछले छह वर्षों से उक्त ब्लाग संचालित हो रहा है परंतु पी टी साहब ने न तो पूर्व और न ही वर्तमान प्रदेश सचिव कामरेड को ब्लाग एडमिन बनाया था। मैंने न केवल प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश को बल्कि प्रदेश सह सचिव कामरेड  डॉ अरविंद राज स्वरूप को भी ब्लाग एडमिन एंड आथर बनने का निवेदन किया जिसे उन दोनों ने स्वीकार कर लिया था। यह भी एक कारण प्रदीप तिवारी द्वारा मुझसे खार खाने का था जो मुझे हटाने का हेतु बना क्योंकि वह पार्टी ब्लाग व पार्टी अखबार को खुद की निजी मिल्कियत समझते हैं । अतः यह नया ब्लाग अस्तित्व में आया  जिसके द्वारा अपने राष्ट्रीय नेताओं के विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।  http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post_11.html

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सोमवार, 1 सितंबर 2014

उसने कहा था का संदेश क्या था?---विजय राजबली माथुर

अपनी तीन कहानियों-उसने कहा था,बुद्धू का काँटा और सुखमय जीवन की रचना करके हिन्दी साहित्य में अमर स्थान प्राप्त करने वाले चंद्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी की कहानी 'उसने कहा था' को आधार बना कर बिमल राय साहब ने मोनी भट्टाचार जी के निर्देशन में इसी नाम से निर्मित फिल्म को 1960 में प्रदर्शित किया था। जैसा कि मूल कहानी को दो किश्तों में प्रकाशित करते हुये हिंदुस्तान अखबार में बताया गया है कि सौ वर्ष पूर्व लिखी गई यह कहानी आदर्श प्रेम कहानी है। फिल्म में मूल कहानी के सिक्ख लहना सिंह को गैर सिक्ख नंदू (सुनील दत्त ) के रूप में प्रस्तुत किया गया है।मूल कहानी में वर्णित  युद्ध में यूरोप की  फ्रांस/बेल्जियम सीमा पर जर्मन फौज से भिड़ंत को फिल्म में  एशिया में जापानी फौज से भिड़ंत में बदल दिया गया है। यह परिदृश्य चंद्रधर शर्मा जी और उनकी मूल कहानी 'उसने कहा था' के साथ न्याय नहीं करता है। 

फिल्म में कमली (नंदा ) की शादी कराने वाले मध्यस्थ एक व्यापारी हैं और वह कमली के मामा से युद्ध के दौरान होने वाले बे इंतिहा मुनाफे का ज़िक्र करते हैं। मूल कहानी में भी ज़िक्र है कि भारतीय सैनिक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के मुनाफे की खातिर कुर्बान हुये थे।

 वस्तुतः 28 जून 1914 को आस्ट्रिया के राजकुमार की हत्या की गई थी जिसके बाद युद्ध की चिंगारी सुलग उठी थी ।जर्मन सम्राट विलियम कौसर द्वितीय का प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रिंस बिस्मार्क ने जर्मनी  को ब्रिटेन के मुक़ाबले श्रेष्ठ साबित करने और जर्मन साम्राज्य स्थापित करने में बाधक 'प्रशिया' प्रांत को जर्मनी से निकाल दिया था जबकि प्रशियन जर्मनी में बने रहना चाहते थे और इस हेतु संघर्ष छेड़ दिया था। जर्मनी सामराज्य स्थापना करके ब्रिटेन के लिए चुनौती न प्रस्तुत करे इसलिए ब्रिटेन ने  04 अगस्त 1914 को जर्मनी के विरुद्ध   युद्ध की घोषणा कर दी थी ।

उस समय के प्रभावशाली कांग्रेस नेता बाल गंगाधर तिलक   मांडले जेल मे कैद थे और मोहनदास करमचंद गांधी  अफ्रीका से भारत आ गए थे और  गोपाल कृष्ण गोखले के स्वर मे स्वर मिलाने लगे थे । लाला हरदयाल ने विदेश में जाकर  गदर पार्टी की स्थापना देश को आज़ाद कराने हेतु की थी जिसको  सिंगापूर मे सफलता भी मिली थी।गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार को इस आश्वासन के बाद युद्ध में सहयोग किया था कि युद्ध समाप्त होते ही भारत को आज़ाद कर दिया जाएगा। इस युद्ध में  62 हज़ार मारे गए एवं 67 हज़ार घायल हुये  थे भारतीय सैनिक। उनमें से ही एक थे सरदार लहना सिंह अर्थात फिल्म के नंदू ।

 गुलेरी जी ने लहना सिंह के बचपन के प्रेम को आधार बना कर इस कहानी के माध्यम से युद्ध की विभीषिका,छल-छद्यम,व्यापार मुनाफा,काला बाजारी सभी बातों को जनता के समक्ष रखा है सिर्फ प्रेम-गाथा को नहीं । सैनिकों की मनोदशा,उनके कष्टों तथा अदम्य साहस का वर्णन भी इस कहानी तथा फिल्म दोनों में है। 






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