रूडकी रोड चुंगी क़े पास स्थित इस क्वार्टर से बाबूजी का दफ्तर और हम लोगों क़े कालेज तो पास हो गये थे परन्तु बहन को उसी कंकर खेड़ा क़े कालेज में काफी दूर पैदल चल कर जाना पड़ता था.सी .डी .ए .कर्मचारियों की पुत्रियों क़े साथ बहन का आना-जाना होता था.
१९६९ में मैंने इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी.बहुत तडके अखबार वाला .५० पै.लेकर रिज़ल्ट दिखा गया था.परन्तु हाई स्कूल की परीक्षा छोटा भाई उत्तीर्ण न कर सका उसे फिर उसी कक्षा व कालेज में दाखिला लेना पड़ा जबकि,बाबूजी ने मुझे मेरठ कालेज में बी .ए .में दाखिला करा लेने को कहा और मैंने वैसा ही किया.उस समय वहां क़े प्रधानाचार्य वी.पुरी सा :थे जो बाद में अपनी यूनियन का पदाधिकारी चुने जाने क़े बाद त्याग-पत्र दे गये.फिलासफी क़े एच .ओ .डी .डा .बी.भट्टाचार्य कार्यवाहक प्रधानाचार्य बने जिनके विरुद्ध उन्हीं क़े कुछ साथियों ने छात्र नेताओं को उकसा कर आन्दोलन करवा दिया.डी.एम्.ऋषिकेश कौल सा :कालेज कमेटी क़े पदेन अध्यक्ष थे और उनका वरद हस्त डा.भट्टाचार्य को प्राप्त था.नतीजतन एक माह हमारा कालेज पी.ए.सी.का कैम्प बना रहा और शिक्षण कार्य ठप्प रहा.रोज़ यू .पी.पुलिस मुर्दाबाद क़े नारे लगते रहे और पुलिस वाले सुनते रहे.
एक छात्र ने स्याही की दवात डा .भट्टाचार्य पर उड़ेल दी और उनका धोती-कुर्ता रंग गया ,उन्हें घर जाकर कपडे बदलने पड़े.समाजशास्त्र की कक्षा में हमारा एक साथी सुभाष चन्द्र शर्मा प्रधानाचार्य कार्यालय का ताला तोड़ कर जबरिया प्रधानाचार्य बन गया था और उसने डा.भट्टाचार्य समेत कई कर्मचारियों -शिक्षकों की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया था.उसे गिरफ्तार कर लिया गया और बहुत दिन तक उसकी मुकदमें में पेशी होती रही;वैसे कालेज क़े सामने कचहरी प्रांगण में ही उसका ढाबा भी चलता था.सुनते थे कि,वह पंद्रह दिन संसोपा में और पंद्रह दिन जनसंघ में रह कर नेतागिरी करता था.पढ़ाई से उसे ख़ास मतलब नहीं था डिग्री लेने और नेतागिरी करने क़े लिए वह कालेज में छात्र बना था.हमारे साथ एन.सी.सी.की परेड में भी वह कभी -कभी भाग ले लेता था,सब कुछ उसकी अपनी मर्जी पर था.
पिछले वर्षों तक कालेज यूनियन क़े प्रेसीडेंट रहे सतपाल मलिक (जो भारतीय क्रांति दल,इंदिरा कांग्रेस ,जन-मोर्चा,जनता दल होते हुए अब भाजपा में हैं और वी.पी.सिंह सरकार में उप-मंत्री भी रह चुके) को डा.भट्टाचार्य ने कालेज से निष्कासित कर दिया और उनके विरुद्ध डी.एम.से इजेक्शन नोटिस जारी करा दिया.
नतीजतन सतपाल मलिक यूनियन क़े चुनावों से बाहर हो गयेऔर उनके साथ उपाद्यक्ष रहे राजेन्द्र सिंह यादव (जो बाद में वहीं अध्यापक भी बने) और महामंत्री रहे तेजपाल सिंह क्रमशः समाजवादी युवजन सभा तथा भा.क्र.द .क़े समर्थन से एक -दूसरे क़े विरुद्ध अध्यक्ष पद क़े उम्मीदवार बन बैठे.बाज़ी कांग्रेस समर्थित महावीर प्रसाद जैन क़े हाथ लग गई और वह प्रेसिडेंट बन गये.महामंत्री पद पर विनोद गौड (श्री स.ध.इ.कालेज क़े अध्यापक लक्ष्मीकांत गौड क़े पुत्र थे और जिन्हें ए.बी.वी.पी.का समर्थन था)चुने गये.यह एम्.पी.जैन क़े लिए विकट स्थिति थी और मजबूरी भी लेकिन प्राचार्य महोदय बहुत खुश हुए कि,दो प्रमुख पदाधिकारी दो विपरीत धाराओं क़े होने क़े कारण एकमत नहीं हो सकेंगे.
लेकिन मुख्यमंत्री चौ.चरण सिंह ने छात्र संघों की सदस्यता को ऐच्छिक बना कर सारे छात्र नेताओं को आन्दोलन क़े एक मंच पर खड़ा कर दिया.
ताला पड़े यूनियन आफिस क़े सामने कालेज क़े अन्दर १९७० में जो सभा हुई उसमें पूर्व महामंत्री विनोद गौड ने दीवार पर चढ़ काला झंडा फहराया और पूर्व प्रेसीडेंट महावीर प्रसाद जैन ने उन्हें उतरने पर गले लगाया तो सतपाल मलिक जी ने पीठ थपथपाई और राजेन्द्र सिंह यादव ने हाथ मिलाया.इस सभा में सतपाल मलिक जी ने जो भाषण दिया उसकी ख़ास -ख़ास बातें ज्यों की त्यों याद हैं (कहीं किसी रणनीति क़े तहत वही कोई खण्डन न कर दें ).सतपाल मलिक जी ने आगरा और बलिया क़े छात्रों को ललकारते हुए,रघुवीर सहाय फिराक गोरखपुरी क़े हवाले से कहा था कि,उ .प्र .में आगरा /बलिया डायगनल में जितने आन्दोलन हुए सारे प्रदेश में सफल होकर पूरे देश में छा गये और उनका व्यापक प्रभाव पड़ा.
(श्री मलिक द्वारा दी यह सूचना ही मुझे आगरा में बसने क़े लिए प्रेरित कर गई थी ).
मेरठ /कानपुर डायगनल में प्रारम्भ सारे आन्दोलन विफल हुए चाहे वह १८५७ ई .की प्रथम क्रांति हो,सरदार पटेल का किसान आन्दोलन या फिर,भा .क .पा .की स्थापना क़े साथ चला आन्दोलन हो.श्री मलिक चाहते थे कि आगरा क़े छात्र मेरठ क़े छात्रों का पूरा समर्थन करें.श्री मलिक ने यह भी कहा था कि,वह चौ.चरण सिंह का सम्मान करते हैं,उनके कारखानों से चौ.सा :को पर्याप्त चन्दा दिया जाता है लेकिन अगर चौ.सा : छात्र संघों की अनिवार्य सदस्यता बहाल किये बगैर मेरठ आयेंगे तो उन्हें चप्पलों की माला पहनने वाले श्री मलिक पहले सदस्य होंगें.चौ.सा :वास्तव में अपना फैसला सही करने क़े बाद ही मेरठ पधारे भी थे और बाद में श्री सतपाल मलिक चौ. सा : की पार्टी से बागपत क्षेत्र क़े विधायक भी बने और इमरजेंसी में चौ. सा :क़े जेल जाने पर चार अन्य भा.क्र.द.विधायक लेकर इंका.में शामिल हुए.
जब भारत का एक हवाई जहाज लाहौर अपहरण कर ले जाकर फूंक दिया गया था तो हमारे कालेज में छात्रों व शिक्षकों की एक सभा हुई जिसमें प्रधानाचार्य -भट्टाचार्य सा :व सतपाल मलिक सा :अगल -बगल खड़े थे.मलिक जी ने प्रारंभिक भाषण में कहा कि,वह भट्टाचार्य जी का बहुत आदर करते हैं पर उन्होंने उन्हें अपने शिष्य लायक नहीं समझा.जुलूस में भी दोनों साथ चले थे जो पाकिस्तान सरकार क़े विरोध में था.
राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारे यहाँ ऐसी ही एकता हमेशा रहती है,वरना अपने निष्कासन पर मलिक जी ने कहा था -इस नालायक प्रधानाचार्य ने मुझे नाजायज तरीके से निकाल दिया है अब हम भी उन्हें हटा कर ही दम लेंगें.बहुत बाद में भट्टाचार्य जी ने तब त्याग -पत्र दिया जब उनकी पुत्री वंदना भट्टाचार्य को फिलासफी में लेक्चरार नियुक्त कर लिया गया.
समाज-शास्त्र परिषद् की तरफ से
बंगलादेश आन्दोलन पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था.उसमें समस्त छात्रों व शिक्षकों ने बंगलादेश की निर्वासित सरकार को मान्यता देने की मांग का समर्थन किया.
सिर्फ एकमात्र वक्ता मैं ही था जिसने बंगलादेश की उस सरकार को मान्यता देने का विरोध किया था और उद्धरण डा.लोहिया के हवाले से .मैंने कहा था कि,बंगलादेश हमारे लिए बफर स्टेट नहीं हो सकता और बाद में जिस प्रकार कुछ समय को छोड़ कर बंगलादेश की सरकारों ने हमारे देश क़े साथ व्यवहार किया मैं समझता हूँ कि,मैं गलत नहीं था.परन्तु
मेरे बाद क़े सभी वक्ताओं चाहे छात्र थे या शिक्षक मेरे भाषण को उद्धृत करके मेरे विरुद्ध आलोचनात्मक बोले.विभागाध्यक्ष डा.आर .एस.यादव (मेरे भाषण क़े बीच में हाल में प्रविष्ट हुए थे) ने आधा भाषण मेरे वक्तव्य क़े विरुद्ध ही दिया.तत्कालीन छात्र नेता आर.एस.यादव भी दोबारा भाषण देकर मेरे विरुद्ध बोलना चाहते थे पर उन्हें दोबारा अनुमति नहीं मिली थी.
गोष्ठी क़े सभापति कामर्स क़े H .O .D .डा.एल .ए.खान ने अपने भाषण मेरी सराहना करते हुये कहा था
हम उस छात्र से सहमत हों या असहमत लेकिन मैं उसके साहस की सराहना करता हूँ कि,यह जानते हुये भी सारा माहौल बंगलादेश क़े पक्ष में है ,उसने विपक्ष में बोलने का फैसला किया और उन्होंने मुझसे इस साहस को बनाये रखने की उम्मीद भी ज़ाहिर की थी.
मेरे लिए फख्र की बात थी की सिर्फ मुझे ही अध्यक्षीय भाषण में स्थान मिला था किसी अन्य वक्ता को नहीं.इस गोष्ठी क़े बाद राजेन्द्र सिंह जी ने एक बार जब सतपाल मलिक जी कालेज आये थे मेरी बात उनसे कही तो मलिक जी ने मुझसे कहा कि,वैसे तो तुमने जो कहा था -वह सही नहीं है,लेकिन अपनी बात ज़ोरदार ढंग से रखी ,उसकी उन्हें खुशी है.
मेरठ कालेज में अन्य गोष्ठियों आदि का विवरण अगली बार ......
[टाइप समन्वय -
यशवन्त ]