रविवार, 5 मार्च 2017

यादों के तहखाने से ------ विजय राजबली माथुर

****** प्रो. माशूक अली साहब का संबंध शाहजहाँपुर म्यूनिसपेलटी के चेयरमैन रहे छोटे खाँ साहब के परिवार से था जिनके यहाँ लकड़ी का व्यापार होता था। अतः माशूक साहब वेतन नहीं लेते थे, प्रबन्धक उनको रिक्शा और पान का खर्च मात्र रु 150 / - उनको भेंट करते थे। वह हमारे नानाजी ( डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब ) के एक छोटे भाई हरीश चंद्र माथुर साहब के सहपाठी रहे थे इसलिए मेरे प्रति विशेष अनुराग रखते थे। वैसे वह सभी छात्रों के प्रिय थे। हमारे हरीश नाना जी को वह अक्सर ' सलाम ' कहने को कहते थे और नाना जी भी उनको मेरे द्वारा 'सलाम ' भेजते रहते थे। 
इसी प्रकार पंजाब नेशनल बैंक के एक ब्रांच मेनेजर साहब को भी उनके पुत्र द्वारा 'सलाम' का आदान - प्रदान वह करते रहते थे। उस छात्र ( अब मुझे नाम याद नहीं है ) को भी मेरी तारह ही विशिष्ट अनुराग उनसे मिलता था। किसी रोज़ रिक्शे से घर लौटते में उन्होने उसको कुछ गाते हुये सुन लिया था अतः अगले रोज़ कक्षा में उससे वह गाना सुनाने को कहा कुछ झिझकते हुये उनका आदेश न टाल सकने  के कारण उसको वह गाना सुनाना ही पड़ा ******

विगत माह की छह तारीख को शुभेच्छुओं को धन्यवाद की पोस्ट में श्रीमती जी ( पूनम ) का उल्लेख इसलिए नहीं था कि, प्रत्येक कार्य की संपन्नता में उनके आगमन के बाद से उनका योगदान रहता ही है और घर में हर बात के लिए धन्यवाद की औपचारिकता की आवश्यकता मेरे समझ से परे है। परंतु उनका तर्क है कि, यशवन्त का नाम तो दिया था। मेरे अनुसार पुत्र पत्नी का विकल्प नहीं होता। 

चाहें राजनीतिक गतिविधियां रही हों अथवा ड्यूटी से संबन्धित अथवा  सामाजिक एवं ज्योतिष से संबन्धित उन सब में ही पूनम का पर्याप्त योगदान रहा है। उनके योगदान के बगैर ज़रा भी आगे बढ़ना संभव नहीं था। 

इस पोस्ट के माध्यम से कुछ पुरानी यादों को पुनः प्रकाश में लाना उद्देश्य था। 50 वर्ष पूर्व 1967 में जब सिलीगुड़ी से स्कूल फ़ाईनल करने के बाद बाबू जी का औपचारिक ट्रांसफर आर्डर मिलने में विलंब था हम लोगों को पढ़ाई खराब होने से बचाने के लिए माँ के साथ नानाजी के पास शाहजहाँपुर भेज दिया था। सितंबर माह में दाखिले में काफी दिक्कत आई क्योंकि न तो बाबू जी का ट्रांसफर वहाँ हुआ था और न ही स्कूल कालेज्स में जगहें बची थीं और जिन विषयों को मैं लेना चाहता था न ही  उनका कांबीनेशन सुलभ था। बहन को दाखिला मिशन स्कूल, बहादुर गंज में व भाई को उसी मिशन स्कूल में दाखिला मिल गया था जिसमें क्रांतिकारी राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी भी पढे थे। 
 जी एफ कालेज,कैंट के प्रिंसिपल चौधरी मोहम्मद वसी  साहब ने सहर्ष मेरे मन पसंद विषयों सहित इंटर फर्स्ट ईयर में दाखिले की अनुमति दे दी।उस समय इस कालेज में इंटर और बी ए की कक्षाएं चलती थीं अब यह एम ए तक हो गया है और इंटर कक्षाओं को इस्लामिया इंटर कालेज के साथ सम्बद्ध कर दिया गया है। सिविक्स के प्रोफेसर आर के इस्लाम साहब और हिस्ट्री के प्रोफेसर  माशूक अली साहब  विषय के साथ - साथ ज्ञान वर्द्धक सामान्य चर्चा भी किया करते थे। 
प्रो. माशूक अली साहब का संबंध शाहजहाँपुर म्यूनिसपेलटी के चेयरमैन रहे छोटे खाँ साहब के परिवार से था जिनके यहाँ लकड़ी का व्यापार होता था। अतः माशूक साहब वेतन नहीं लेते थे, प्रबन्धक  रिक्शा और पान का खर्च मात्र रु 150 / - उनको भेंट करते थे। वह हमारे नानाजी ( डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब ) के एक छोटे भाई हरीश चंद्र माथुर साहब के सहपाठी रहे थे इसलिए मेरे प्रति विशेष अनुराग रखते थे। वैसे वह सभी छात्रों के प्रिय थे। हमारे हरीश नाना जी को वह अक्सर ' सलाम ' कहने को कहते थे और नाना जी भी उनको मेरे द्वारा 'सलाम ' भेजते रहते थे। 

इसी प्रकार पंजाब नेशनल बैंक के एक ब्रांच मेनेजर साहब को भी उनके पुत्र द्वारा 'सलाम' का आदान - प्रदान वह करते रहते थे। उस छात्र ( अब मुझे नाम याद नहीं है ) को भी मेरी तारह ही विशिष्ट अनुराग उनसे मिलता था। किसी रोज़ रिक्शे से घर लौटते में उन्होने उसको कुछ गाते हुये सुन लिया था अतः अगले रोज़ कक्षा में उससे वह गाना सुनाने को कहा कुछ झिझकते हुये उनका आदेश न टाल सकने  के कारण उसको वह गाना सुनाना ही पड़ा , लीजिये  आप भी सुनिए ------

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