मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

कैसा बीता यह वर्ष?---विजय राजबली माथुर

यों तो परंपरागत रूप से जिस नव-वर्ष के आधार पर देश के तीज-त्योहार आदि चलते हैं वह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है और सरकारी वर्ष भी पहली अप्रैल से आरंभ होता है परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नव-वर्ष का प्रारम्भ पहली जनवरी से होता है। अतः जनवरी से दिसंबर तक ई. सन 2013  हमें कैसा लगा यही सार्वजनिक करना इस पोस्ट का उद्देश्य है।

02 जनवरी 2013  को गांधी प्रतिमा,हजरतगंज,लखनऊ पर एक प्रतिरोध धरने में जिसका आयोजन 'राही मासूम रजा साहित्य एकेडमी' ने किया था भाग लिया था। फेसबुक लेखन के आधार पर पुलिस द्वारा अवैध गिरफ्तारियों के विरोध में आयोजित इस धरने में नगर के साहित्यकारों,रंगकर्मियों और जागरूक राजनीतिज्ञों ने भाग लिया था। मुझे एकेडमी के महासचिव और फारवर्ड ब्लाक,उत्तर प्रदेश के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष कामरेड  राम किशोर जी ने शामिल होने को कहा था,वह हमारी पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर अक्सर आते रहते थे और उनका सम्मान हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता गण भी करते थे अतः उनके कहने पर इस पुनीत कार्य में मैं भी शामिल हुआ था।

इसके बाद उनकी एकेडमी द्वारा आयोजित कई साहित्यिक गोष्ठियों में उनके साथ भाग लिया जिनमें हमारी पार्टी से संबन्धित कई रंग कर्मी भी शामिल होते रहे थे। 07 अप्रैल को सम्पन्न एक गोष्ठी में उनके साथ भाग लेने जाते वक्त उन्होने मुझसे कहा कि कहाँ सी पी आई में पड़े हो हमारे साथ आ जाओ। वस्तुतः वह अपनी पार्टी छोड़ कर एक अलग पार्टी बनाने जा रहे थे और उसी में मुझको शामिल करना चाहते थे। लिहाजा उस दिन के बाद से मैंने उनकी साहित्यिक गोष्ठियों में भाग लेना बंद कर दिया। किन्तु वह मेरे पुत्र से अपनी पार्टी और एकेडमी के समाचार/विज्ञप्तियाँ आदि हेतु सहयोग लेने घर तब तक  आते रहे थे जब तक कि उनको घर आने से मना नहीं कर दिया था।

23 मई 2013  से अपनी पार्टी के प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश जी के निर्देश पर 'पार्टी जीवन' के कार्यकारी संपादक को सहयोग देने पार्टी कार्यालय जाने लगा। का सं महोदय काम की बात कम फिजूल की बातें ज़्यादा करते थे जैसे कि उनके पिताजी ने अपने बचपन में एक सहपाठी को कमीज़ से पकड़ कर उठा कर फेंक दिया। उन्होने खुद ने अपनी स्टूडेंट लाईफ में अपने एक सहपाठी को सीतापुर में भीड़ भरे चौराहे पर पीट दिया। पार्टी कार्यालय में AIYF के एक वरिष्ठ नेता को उन्होने झन्नाटेदार झांपड़ रसीद किया आदि-आदि। उन्होने मुझे पार्टी ब्लाग पर एडमिन राईट्स देकर लिखने को कहा जबकि पिछले छह वर्षों से पार्टी के प्रदेश सचिव तक को उन्होने एडमिन नहीं बनाया था। मुझे इसमें उनकी गहरी चाल नज़र आई और मैंने पार्टी के प्रदेश सचिव डॉ गिरीश जी व प्रदेश सह-सचिव डॉ अरविंद राज जी को उनकी अनुमति लेकर एडमिन बना दिया। इस पर का सं महोदय मुझसे ज़बरदस्त खार खा गए। उन्होने अपने समक्ष मुझे ब्लाग पोस्ट करने को कहा जिससे कि वह मेरा ID पासवर्ड जान कर अपने अज़ीज़ ब्लागर्स से संबन्धित मेरे पोस्ट्स डिलीट कर सकें। मैं उतना तो मूर्ख नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं। पार्टी कार्यालय छोड़ते ही मैंने पुत्र को फोन करके अपना पासवर्ड बदलने को कहा जिसे पहले ही अपने ब्लाग्स में एडमिन बनाया हुआ था अन्यथा मेरे साईकिल से घर पहुँचते-पहुँचते वह साहब अपने घर स्कूटर से पहुँच कर मेरा पासवर्ड स्तेमाल करके अपना गुल खिला चुकते। प्रदेश सचिव व सह-सचिव को इस कृत्य की मौखिक सूचना दे दी थी। फिर भी उनके निर्देश पर जाता रहा तब का सं महोदय ने चाय में कुछ टोटके बाज़ी करके पिला दिया था जिससे लौटते में मार्ग में मुझे काफी दिक्कत हुई।अतः मैंने पार्टी कार्यालय में चाय पीना ही बंद कर दिया , इससे पूर्व भी मार्ग में कार व स्कूटर द्वारा एक्सीडेंट कराने का जो प्रयास हुआ उसमें उनका ही हाथ नज़र आया था और इसका उल्लेख इसी ब्लाग में तभी किया भी था।

12 जूलाई 2013  को प्रदेश सचिव और प्रदेश सह-सचिव  के जीप द्वारा बांदा जाते हुये विंड मिरर में विस्फोट हुआ और वे सौभाग्य से ड्राईवर समेत सुरक्षित बचे। इस घटना का ज़िक्र खुद डॉ गिरीश जी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान साहब एवं खुद का सं महोदय की उपस्थिती में 13 जूलाई 2013 को किया था। उस रोज ज़िला काउंसिल की बैठक के बाद यह अनौपचारिक वार्ता थी। उस दिन की मीटिंग के दौरान ही का सं महोदय ने मिनिट्स लिखने के दौरान पहले मेरी कुर्सी फिर मेरे पैरों पर अपने पैरों से ठोकर मारी फिर मेरे पेट में उंगली भोंक कर अनावश्यक निर्देश देने शुरू किए। उस दिन के बाद से मैंने पार्टी जीवन के कार्य हेतु उनको सहयोग करना बंद कर दिया किन्तु ब्लाग में लिखता रहा था जिसके लिए मैंने नई ID व पास वर्ड बना लिए थे। 09 सितंबर को का सं महोदय ने राष्ट्रीय सचिव कामरेड अनजान साहब से संबन्धित मेरी एक पोस्ट भी ब्लाग से डिलीट कर दी और मुझे एडमिन व आथरशिप से हटा दिया।

अगले ही दिन 10 सितंबर 2013  को मैंने 'साम्यवाद (COMMUNISM)' नामक एक अलग ब्लाग बना कर उसमें उस  डिलीटेड पोस्ट को भी प्रकाशित कर दिया। तब से अब तक 112 दिन में 92 पोस्ट्स प्रकाशित हो चुकी हैं जिनको 5441 बार पढ़ा जा चुका है और 18 ब्लाग फालोर्स हो चुके हैं। जब  04 जून को पहली पोस्ट मैंने पार्टी ब्लाग में दी थी तब उसके फालोअर्स 50 थे और जब मुझे उससे प्रथक किया गया -09 सितंबर को उस ब्लाग के फालोअर्स बढ़ कर 65 हो चुके थे। 20 नवंबर 2013  से हमने एक नया फेसबुक ग्रुप 'UNITED COMMUNIST FRONT' भी प्रारम्भ कर दिया है  और आज तक 216 कामरेड्स उसके सदस्य बन चुके हैं।

हालांकि इस ओर ध्यान देने से हमारे पहले से चल रहे ब्लाग्स -'क्रांतिस्वर', 'विद्रोही स्व-स्वर में' , 'जनहित में', 'सर्वे भवन्तु....', 'कलम और कुदाल' तथा श्रीमती जी का ब्लाग 'पूनम वाणी' पर लेखन प्रभावित हुआ है किन्तु उनको भी हम चला रहे हैं।

प्रश्न यह उठता है कि का सं महोदय ने ऐसा क्यों किया? उनको मुझसे क्या दुश्मनी थी? कामरेड राम किशोर जी इन महोदय के न केवल अभिन्न मित्र हैं बल्कि रिश्तेदार भी हैं उनके द्वारा मुझे पार्टी से बाहर कराने में विफल रहने पर उन्होने भीतर ही परेशान करके मुझे हटाने का षड्यंत्र रचा था जिसमें उनके एक जाति बंधु ने भी उनको सहयोग दिया है मुझे श्रद्धांजली देकर:


इस फोटो से ज्ञात होता है कि अपने षडयंत्रों में विफल रहने पर ये लोग किस स्तर तक गिर सकते है कि 'श्रद्धांजली' तक दे डालते हैं। तुर्रा यह है कि ये सभी पार्टी के बड़े नेता हैं जबकि मैं एक मामूली सा कार्यकर्ता हूँ।
मात्र एक माह की जान-पहचान कितना बड़ा झूठ लिखा है ?इन पंडित जी ने । सितंबर में हमारे 'साम्यवाद' ब्लाग की कई पोस्ट्स यह शेयर करते रहे थे और फ्रेंड रिक्वेस्ट भी खुद भेजी थी जिसे स्वीकार करके शायद मैंने गलती कर दी थी। 20 नवंबर 2013 को तो मैं पार्टी कार्यालय में प्रदेश सचिव जी से मिलने गया था जहां यह पंडित जी भी मिले थे व्यक्तिगत रूप से और 30 सितंबर की रैली में मेरे द्वारा उनसे न मिलने पर उलाहना भी  यह फेसबुक पर दे चुके थे। जो 'झूठ' को बड़ा हथियार मानते हों वे व्यावहारिक रूप से भले ही अच्छे माने जाएँ अपने दुष्कृत्यों में सफल होंगे यह सुनिश्चित नहीं है।   का सं महोदय व उनके यह सहयोगी दोनों ही राष्ट्रीय सचिव कामरेड अनजान व पूर्व महासचिव कामरेड बर्द्धन के व्यक्तिगत विरोधी हैं जिसका खुलासा मैंने अपने ब्लाग के माध्यम से कर दिया जिस कारण ये मुझसे घनघोर शत्रुता करने लगे। हम उम्मीद करते हैं इन दुष्कृत्यों को ये लोग 2013  की समाप्ती के साथ-साथ छोड़ सकें और 2014 में एक साफ-सुथरा जीवन शुरू कर सकें।

सभी जनों को आने वाले वर्ष 2014 की अग्रिम शुभकामनायें। 

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सोमवार, 23 दिसंबर 2013

शबाना आज़मी को सम्मान क्यों? ---विजय राजबली माथुर


हिंदुस्तान,लखनऊ,05 अप्रैल 2012 को प्रकाशित चित्र जो राष्ट्रपति महोदया  से  'पद्म भूषण'  लेते समय का है।

हिंदुस्तान,आगरा,03 जून,2007 को प्रकाशित कुंडली 




 शीर्षक देख कर चौंके नहीं। मै शबाना आज़मी जी को पुरस्कार प्राप्त होने का न कोई विरोध कर रहा हू और न यह कोई विषय है। मै यहाँ आपको प्रस्तुत शबाना जी की जन्म कुंडली के आधार पर उन ग्रह-नक्षत्रो से परिचय करा रहा हूँ जो उनको सार्वजनिक रूप से सम्मान दिलाते रहते हैं।

शुक्र की महा दशा मे राहू की अंतर्दशा 06 मार्च 1985 से 05 मार्च 1988 तक फिर ब्रहस्पत की अंतर्दशा 05 नवंबर 1990 तक थी। इस दौरान शबाना आज़मी को 'पद्म श्री' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कुंडली मे पंचम भाव मे चंद्रमा,सप्तम भाव मे बुध,अष्टम भाव मे शुक्र और दशम भाव मे ब्रहस्पत स्व-ग्रही हैं। इन अनुकूल ग्रहो ने शबाना जी को कई फिल्मी तथा दूसरे पुरस्कार भी दिलवाए हैं। वह कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री भी इनही ग्रहो के कारण चुनी गई हैं। सूर्य और ब्रहस्पत की स्थिति ने उन्हे राजनीति मे भी सक्रिय रखा है। वह भाकपा की कार्ड होल्डर मेम्बर भी रही हैं। 06 नवंबर 1996 से 05 जनवरी 1998 तक वह शुक्र महादशा मे केतू की अंतर्दशा मे थीं तभी उन्हे राज्य सभा के लिए नामित किया गया था।

वर्तमान 'पद्म भूषण'पुरस्कार ग्रहण करते समय चंद्रमा की महादशा के अनर्गत शुक्र की अंतर्दशा चल रही है  जो 06 नवंबर 2011 से लगी है और 05 जूलाई 2013 तक रहेगी।* यह समय स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ नरम भी हो सकता है। हानि,दुर्घटना अथवा आतंकवादी हमले का भी सामना करना पड़ सकता है। अतः खुद भी उन्हे सतर्क रहना चाहिए और सरकार को भी उनकी सुरक्षा का चाक-चौबन्द बंदोबस्त करना चाहिए। इसके बाद 29 नवंबर 2018 तक समय उनके अनुकूल रहेगा।

शबाना जी की जन्म लग्न मे राहू और पति भाव मे केतू बैठे हैं जिसके कारण उनका विवाह विलंब से हुआ। पंचम-संतान भाव मे नीच राशि का मंगल उनके संतान -हींन रहने का हेतु है। यदि समय पर 'मंगल' ग्रह की शांति कारवाई गई होती तो वह कन्या-संतान प्राप्त भी कर सकती थी। इसी प्रकार वर्तमान अनिष्टकारक समय मे 'बचाव व राहत प्राप्ति' हेतु उन्हें शुक्र मंत्र-"ॐ शु शुकराय नमः " का जाप प्रतिदिन 108 बार पश्चिम की ओर मुंह करके और धरती व खुद के बीच इंसुलेशन बना कर अर्थात किसी ऊनी आसन पर बैठ कर करना चाहिए।

कुछ तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी ज्योतिष की कटु आलोचना करते हैं और इसके लिए जिम्मेदार हैं ढ़ोंगी लोग जो जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं। ऐसे ही लोगो के कारण 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद व समृद्ध'बनाने वाला ज्योतिष विज्ञान हिकारत की नजरों से देखा जाता है। ये ग्रह-नक्षत्र क्या हैं और इंनका मानव जीवन पर प्रभाव किस प्रकार पड़ता है यदि यह समझ आ जाये तो व्यक्ति दुखो व कष्टो से बच सकता है यह पूरी तरह उस व्यक्ति पर ही निर्भर है जो खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है। जो भाग्य को कोसते हैं उनको विशेषकर नीचे लिखी बातों को ध्यान से समझना चाहिए की भाग्य क्या है और कैसे बंनता या बिगड़ता है-

सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म -का फल जो व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन मे प्राप्त नहीं कर पाता है आगामी जीवन हेतु संचित रह जाता है। ये कर्मफल भौतिक शरीर नष्ट होने के बाद आत्मा के साथ-साथ चलने वाले कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर के साथ गुप्त रूप से चलते रहते हैं। आत्मा के चित्त पर गुप्त रूप से अंकित रहने के कारण ही इन्हे 'चित्रगुप्त' संज्ञा दी गई है। चित्रगुप्त ढोंगियों द्वारा बताया गया कोई देवता या कायस्थों का सृजक नहीं है।

कर्मानुसार आत्मा 360 डिग्री मे बंटे ब्रह्मांड मे (भौतिक शरीर छोडने के बाद ) प्रतिदिन एक-एक राशि मे भ्रमण करती है और सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म जो अवशिष्ट रहे थे उनके अनुसार आगामी जीवन हेतु निर्देश प्राप्त करती है। 30-30 अंश मे फैली एक-एक राशि के अंतर्गत सवा दो-सवा दो नक्षत्र आते हैं। प्रत्येक नक्षत्र मे चार-चार चरण होते हैं। इस प्रकार 12 राशि X 9 ग्रह =108 या 27 नक्षत्र X4 चरण =108 होता है। इसी लिए 108 को एक माला का क्रम माना गया है जितना एक बार मे जाप करना निश्चित किया गया है। इस जाप के द्वारा अनिष्ट ग्रह की शांति उच्चारण की तरंगों (VIBRATIONS) द्वारा उस ग्रह तक संदेश पहुंचाने से हो जाती है।

जन्मपत्री के बारह भाव 12 राशियों को दर्शाते हैं और जन्म समय ,स्थान और तिथि के आधार पर ज्ञात 'लग्न' के अनुसार अंकित किए जाते हैं। नवो ग्रह उस समय की आकाशीय स्थिति के अनुसार अंकित किए जाते हैं। इनही की गणना से आगामी भविष्य का ज्ञान होता है जो उस व्यक्ति के पूर्व जन्म मे किए गए सदकर्म,दुष्कर्म एवं अकर्म पर आधारित होते हैं। अतः व्यक्ति खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है वह बुद्धि,ज्ञान व विवेक का प्रयोग कर दुष्प्रभावो को दूर कर सकता है या फिर लापरवाही करके अच्छे को बुरे मे बदल डालता है।

उपरोक्त कुंडली का विश्लेषण वैज्ञानिक आधार पर है। कुंडली जैसी अखबार मे छ्पी उसे सही मान कर विश्लेषण किया गया है।

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शनिवार 07 अप्रैल 2012 को यह लेख पूर्व प्रकाशित है-
http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html

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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

ब्रह्मचारी 'त्याग'व 'परोपकार' की शिक्षाप्रद मनोरंजक कथा ---विजय राजबली माथुर




बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म 'ब्रह्मचारी' अपने हास्य प्रसंगों के कारण भले ही मनोरंजक समझी जाये किन्तु उसके द्वारा एक साथ अनेक शिक्षाएं ग्रहण की जा सकती हैं।

जब ब्रह्मचारी को यह पता चला कि वह एक अनाथ बालक था तब उसने अनाथ बच्चों के भविष्य को सँवारने का निश्चय किया। 'ब्रह्मचारी आश्रम' खोल कर उसने अनाथ बच्चों को प्रश्रय देना प्रारम्भ किया उनके लालन-पालन और पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारियाँ पूरी करने के कारण उसे अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा और 20 हज़ार रु .का कर्ज उस पर चढ़  गया।  जिस अखबार में वह बच्चों के फोटो छ्पवाकर कुछ आय प्राप्त कर लेता था उसके संपादक-मालिक ने आगे से ऐसा करने से मना कर दिया और किसी लड़की के फोटो लाने को कहा जो कुछ विशेष हो। इस तलाश में ब्रह्मचारी समुद्र तट पर विचरण कर रहा था जहां उसे शीतल चौधरी नामक एक लड़की डूबने के प्रयास में मिली जो ब्रह्मचारी की आवाज़ सुन कर ठिठक गई। ब्रह्मचारी उसे अपने आश्रम पर ले आया और वह भी बच्चों की सेवा में लग गई।

चूंकि शीतल के आत्म-हत्या के प्रयास का कारण उसके बचपन के मंगेतर रवि खन्ना द्वारा विवाह से इंनकार करना था। अतः ब्रह्मचारी ने रवि की पसंदगी के मुताबिक शीतल को ट्रेंड किया और उसके समक्ष हाजिर किया।क्योंकि वह होटल में गाना गा कर अर्थोपार्जन करता था जिस कारण रवि से परिचित था।  इस प्रकार शीतल के समक्ष रवि का असली चरित्र सामने आ गया किन्तु अब बदली हुई शीतल को रवि अपनी गिरफ्त में लेना चाहता था अतः उसके माँ और मामा को रुपया देकर अपनी ओर  मिला कर ब्रह्मचारी से दूर करवा दिया। उसने  शीतल से जबरन विवाह करने हेतु ब्रह्मचारी के प्रति नफरत लाने में ब्रह्मचारी पर दबाव बनाया । ब्रह्मचारी और आश्रम के बच्चे शीतल को बचाना चाहते थे क्योंकि रवि की  नवजात संतान उस आश्रम में पहुंचाई गई थी और वे रूपा को उसका वास्तविक हक दिलाना चाहते थे।

रवि ने बच्चों का अपहरण करवा कर उनको मारने का षड्यंत्र रचा किन्तु ब्रह्मचारी के प्रयास से बच्चे भी सुरक्षित बच गए और रवि की माँ की कृपा से रूपा और उसकी संतान को भी रवि को अपनाना पड़ा। अंततः शीतल चौधरी का विवाह ब्रह्मचारी के साथ , रवि द्वारा उन सबसे माफी मांगने के बाद सम्पन्न हो गया।

जहां एक ओर शीतल की माँ व मामा का चरित्र निकृष्ट रहा जो अपनी बेटी व भांजी का ही अहित करने पर तुले थे। वहीं ब्रह्मचारी व रवि की माँ का चरित्र एक आदर्श दृष्टांत उपस्थित करता है।

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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

चिराग तले अंधेरा -बहुत मुश्किल है कुछ यादों को भुलाया जाना (भाग-6 ) ---विजय राजबली माथुर


26 दिसंबर 2010  को प्रदेश भाकपा कार्यालय में पार्टी के 86  वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता थे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब लेकिन उनके  सम्बोधन के मध्य  IAC के अरविंद केजरीवाल साहब वहाँ पधारे थे और सर्व-मान्य परम्पराओं को तोड़ते हुये संचालक प्रदीप तिवारी जी ने जो कि अंजान साहब से व्यक्तिगत रूप से नफरत करते हैं  केजरीवाल साहब को मुख्य वक्ता के बाद सभा में भाषण देने को सहर्ष आमंत्रित किया था। अतः उनके ही बंधु आनंद तिवारी जी द्वारा अंजान साहब के प्रति  व्यक्त दुर्भावनापूर्ण दृष्टिकोण अनायास ही नहीं है। 

 "मैंने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ब्लाग में पाँच सितंबर 2013 को कामरेड अतुल अंजान साहब की मऊ  में सम्पन्न रैली के समाचार की कटिंग देते हुये एक पोस्ट निकाली थी। इस पोस्ट को प्रदीप तिवारी साहब ने इसलिए हटा दिया क्योंकि वह अपने राष्ट्रीय सचिव कामरेड  अतुल अंजान साहब को व्यक्तिगत रूप से  नापसंद करते हैं। इतना ही नहीं इस पोस्ट के प्रकाशन का दायित्व मेरा था इसलिए मुझको भी ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। "
http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post_11.html
जबकि हकीकत यह है कि लखनऊ और लखनऊ के बाहर भी अतुल अंजान साहब भाकपा के पर्याय माने जाते हैं और पार्टी के भीतर जो लोग उनके बारे में अनर्गल प्रचार करते हैं वे वस्तुतः निजी स्वार्थों के कारण पार्टी को बढ़ते नहीं देखना चाहते । 

http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post_22.html
वे सभी लोग काफी समझदार थे उन्हें आसानी से सारी बातें समझ आ गईं और उन्होने मुझ से मेरे ब्लाग्स के रेफरेंस भी लेकर नोट कर लिए। फिर मेरा परिचय मांगने पर जब उन्हें बताया कि पेशे से ज्योतिषी और राजनीतिक रूप से कम्यूनिस्ट हूँ तो उन्हें आश्चर्य भी हुआ और स्पष्टीकरण मांगा कि कम्यूनिस्ट पार्टी माने अतुल अनजान  की पार्टी । जब जवाब हाँ मे दिया तो बोले अनजान साहब की पार्टी तो अच्छी पार्टी है । जैसे आगरा मे भाकपा की पहचान चचे की पार्टी या हफीज साहब की पार्टी के रूप मे थी उसी प्रकार लखनऊ मे भाकपा से तात्पर्य अनजान साहब की पार्टी से लिया जाता है। उनमे से दो-तीन लोग तो यूनीवर्सिटी मे अनजान साहब के साथ के पढे हुये भी थे ,इसलिए भी अनजान साहब की पार्टी मे मेरा होना उन्हें अच्छा लगा।

उनमे से एक जो बैंक अधिकारी थे ने बताया कि अब यू पी मे AIBEA को उसके नेताओं ने कमजोर कर दिया है जो खुद तो लाभ व्यक्तिगत रूप से उठाते हैं लेकिन कर्मचारियों की परवाह नहीं करते। इसी कारण छोटे स्तर के नेता प्रमोशन लेकर आफ़ीसर बन गए और दूसरे संगठनों की आफ़ीसर यूनियन से सम्बद्ध हो गए। वह यह चाहते थे कि अनजान साहब कुछ हस्तक्षेप करके AIBEA को फिर से पुरानी बुलंदियों पर पहुंचाने मे मदद करे जिसका लाभ पार्टी को भी मिलेगा।

30 सितंबर की लखनऊ रैली को अंजान साहब ने 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली'  कहा था। 

मैंने तब भी आशंका व्यक्त की थी :
 जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा? 

और अब तिवारी बंधुओं के कारनामे इस आशंका को सही ही ठहरा रहे हैं। प्रदीप तिवारी जी ने रैली की सफलता और प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश जी की प्रशंसा से खिन्न होकर उनको रैली के ग्लैमर से भ्रमित होना  लोगों के बीच फुसफुसाया था। 
इन परिस्थितियों में सुधा सिंह जी भाकपा से क्या आशा कर सकेंगी? 

*जब दादरी में अनिल अंबानी के बिजली घर के वास्ते किसानों की ज़मीनें मुलायम शासन में जबरन छीनी जा रही थीं तब वी पी सिंह साहब द्वारा राज बब्बर के साथ मिल कर एक जबर्दस्त आंदोलन खड़ा किया गया था। किसान सभा के राष्ट्रीय महामंत्री और भाकपा के राष्ट्रीय सचिव की हैसियत से कामरेड अतुल अंजान साहब ने भी उसमें सहयोग किया था। इसी सिलसिले में पी एंड टी ग्राउंड ,आगरा में एक जनसभा में कामरेड अतुल अंजान ,वी पी सिंह और राज बब्बर के साथ  मंच पर बैठे थे जैसे ही उनकी निगाह आगरा,भाकपा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी पर पड़ी जो ज़िला-स्तर  के अन्य पार्टी नेताओं के साथ बैठे हुये थे। अंजान साहब ने अपने ठीक बगल में एक कुर्सी रखवा कर कामरेड मिश्रा जी को अपने साथ बैठा लिया था जो कि उनकी संवेदनाओं को ठीक से समझने का अनुपम दृष्टांत पेश करता है। 
*कामरेड अतुल अंजान के किसान हितों में किए गए कार्यों हेतु ही बांगला देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा उनको ढाका बुला कर सम्मानित किया गया था जो तिवारी बंधुओं की आँखों से ओझल हैं। 
*कामरेड  रमेश मिश्रा जी ने ही कामरेड अंजान की एक और विशेषता  का उल्लेख किया था कि जबकि वह किसी कार्यवश अजय  भवन ,दिल्ली गए थे और वापीसी की ट्रेन पकड़ने हेतु स्टेशन जा रहे थे। कामरेड अंजान को अपनी कार से कहीं अन्यत्र जाना था किन्तु आगरा के जिलामंत्री रमेश मिश्रा जी पर निगाह पड़ते ही उनको कार से स्टेशन छोडने का प्रस्ताव कर दिया और उनके इस आग्रह पर भी कि वह  खुद चले जाएँगे क्योंकि कामरेड अंजान को दूसरी दिशा में जाना है। कामरेड अंजान ने पहले मिश्रा जी को स्टेशन छोड़ा फिर अपने गंतव्य को गए। 

*2007 में विधानसभा चुनावों के दौरान आगरा  में राज बाबर के 'जन मोर्चा ' उम्मीदवार  डॉ डी सी  गोयल को भाकपा  का समर्थन होने के कारण मुझे भी उनके प्रचार में भाग लेना पड़ा था । तब लखनऊ में PWD में इंजीनियर रहे डॉ साहब के बड़े भाई साहब से मुलाक़ात हुई थी उनका भी यही कहना था कि उत्तर-प्रदेश कम्युनिस्ट पार्टी के एक जुझारू नेता के रूप में वह भी कामरेड अतुल अंजान को ठीक समझते हैं तब उनके अनुसार अंजान साहब के दिल्ली चले जाने के बाद से यहाँ कोई दूसरा जुझारू नेता नहीं बचा है। 30 सितंबर 2013 की सफल रैली जिसे अंजान साहब ने संबोधित करते हुये  राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने  
वाली बताया था डॉ गिरीश  उस रिक्तता की पूर्ती करते नज़र आए थे। किन्तु उनके सहयोगी तिवारी बंधु यहाँ किसी के भी सफल होने पर अपने स्वार्थों की गाड़ी अटकने के अंदेशे से अफरा-तफरी और टोटकेबाजी करके उनके मार्ग को अवरुद्ध कर रहे हैं।

डॉ गिरीश का मार्ग अवरुद्ध करके एवं एक सहृदय लोकप्रिय कामरेड  अतुल अंजान पर प्रहार करके तिवारी बंधु उत्तर प्रदेश में भाकपा को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं । क्योंकि यदि यहाँ कामरेड अतुल अंजान की अगुवाई में वामपंथी वैकल्पिक मोर्चा बंनता है तो जनता उसके प्रति निश्चय ही आकृष्ट होगी और उससे भाकपा को मजबूती एवं सफलता ही मिलेगी। 'चिराग तले अंधेरा' का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है?

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मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

डा.राजेन्द्र प्रसाद की जन्म कुंडली- (03दिसंबर जयंती पर विशेष) ---विजय राजबली माथुर


भारत क़े प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की जयंती प्रतिवर्ष 03 दिसंबर को धूम धाम से मनाई जाती है। आइये देखें इतनी विलक्षण क्षमता प्राप्त कर क़े वह कैसे इतना ऊपर उठ सके  :


उनकी जन्म कुंडली से स्पष्ट है कि चन्द्रमा से केंद्र स्थान में बृहस्पति बैठकर गजकेसरी योग बना रहा है इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति अनेक मित्रों,प्रशंसकों व सम्बन्धियों में घिरा रहता है व उनके द्वारा सराहा जाता है। स्वभाव से नम्र,विवेकवान व गुणी होता है। तेजस्वी,मेधावी,गुणज्ञ,तथा राज्य पक्ष में प्रबल उन्नति प्राप्त करने,उच्च  पद प्राप्त करने तथा मृत्यु क़े बाद भी अपनी यश गाथा अक्षुण रखने वाला होता है। ठीक ऐसे ही थे राजेन्द्र बाबू जिनका जन्म बिहार क़े छपरा जिले में जीरादेई ग्राम में हुआ था। एक किसान परिवार में जन्म लेकर अपने बुद्धि कौशल से राजेन्द्र बाबू ने वकालत पास की उस समय कायस्थ वर्ग सत्ता क़े साथ था परन्तु राजेन्द्र बाबू ने गोपाल कृष्ण गोखले क़े परामर्श से देश की आजादी क़े आन्दोलन में कूदने का निश्चय किया और कई बार जेल यात्राएं कीं। राजेन्द्र बाबू ने स्वंत्रता आन्दोलन क़े दौरान जेल में रहकर कई पुस्तकें लिखीं जिन में 'खंडित भारत' विशेष उल्लेखनीय है। इसमें राजेन्द्र बाबू ने तभी लिख दिया था कि यदि अंग्रेजों की चाल से देश का विभाजन हुआ तो क्या क्या समस्याएँ उठ खडी होंगी और हम आज देखते हैं कि दूर दृष्टि कितनी सटीक थी। डा.राजेन्द्र प्रसाद मध्यम मार्ग क़े अनुगामी थे और उन्हें नरम तथा गरम दोनों विचारधाराओं का समर्थन प्राप्त था। जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस महात्मा गांधी क़े उम्मीदवार डा.पट्टाभि सीता रमैया को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो गये तो गांधी जी क़े प्रभाव से उनकी कार्यकारिणी में कोई भी शामिल नहीं हुआ और सुभाष बाबू को पद  त्याग करना पडा। उस समय कांग्रेस की अध्यक्षता  राजेन्द्र बाबू ने संभाली और स्वाधीनता आन्दोलन को गति प्रदान की। राजेन्द्र बाबू की कुडली क़े चतुर्थ भाव में मीन राशी है जिसके प्रभाव से वह धीर गंभीर और दार्शनिक बन सके। इसी कारण धार्मिक विचारों क़े होते हुए भी वह सदा नवीन विचारों को ग्रहण करने को प्रस्तुत रहे। राजेन्द्र बाबू ने एक स्थान पर लिखा है कि यदि जो कुछ पुरातन है और उससे कोई नुक्सान नहीं है तो उसका पालन करने में कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन उनके इसी भाव में स्थित हो कर केतु ने उनको जीवन क़े अंतिम वर्ष में कष्ट एवं असफलता भी प्रदान की। पंडित नेहरु से मतभेद क़े चलते राजेन्द्र बाबू को तीसरी बार राष्ट्रपति पद नहीं मिल सका और इस सदमे क़े कारण ६ माह बाद उनका निधन हो गया। परन्तु इसी केतु ने उन्हें मातृ -पितृ भक्त भी बनाया विशेषकर माता से उन्हें अति लगाव रहा। एक बार माता की बीमारी क़े चलते बोर्ड परीक्षा में वह एक घंटा की देरी से परीक्षा हाल में पहुंचे थे और उनकी योग्यता को देखते हुए ही उन्हें परीक्षा की अनुमति दी गयी थी तथा राजेन्द्र बाबू ने उस परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था। षष्ठम भावस्थ उच्च  क़े चन्द्र ने भी उन्हें हर प्रकार क़े सुख प्राप्त करने में सहायता की। नवम क़े बृहस्पति तथा दशम क़े राहू ने राजेन्द्र बाबू को राजनीति में दक्षता प्रदान की तो द्वादश क़े सूर्य ने शिक्षा क़े क्षेत्र में प्रसिद्धि दिला कर दार्शनिक बना दिया। 


समय करे नर क्या करे,
समय बड़ा बलवान।

असर ग्रह सब पर करे

परिंदा,पशु,इंसान। ।

हम देखते हैं कि विद्वान् कवि क़े ये उदगार राजेन्द्र बाबू पर हू ब हू लागू होते हैं.उनके जन्मकालीन ग्रह नक्षत्रों ने उन्हें स्वाधीन भारत क़े प्रथम राष्ट्रपति क़े पद तक पहुंचाया.आजादी से पूर्व वह संविधान निर्मात्री सभा क़े अध्यक्ष भी रहे.अपने पूर्वकालीन संस्कारों से अर्जित प्रारब्ध क़े आधार पर ग्रह नक्षत्रों क़े योग से डा.राजेन्द्र प्रसाद स्तुत्य बन सके ।


 
 http://krantiswar.blogspot.in/2010/12/03.html

(02 दिसंबर 2010 को यह लेख प्रस्तुत लिंक पर पूर्व प्रकाशित है। )

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