सोमवार, 29 दिसंबर 2014

वर्ष 2014 की सबसे मूल्यवान उपलब्धि --- विजय राजबली माथुर

बहुत कम ही ऐसे अवसर रहे हैं जबकि मेरे कार्यों या निर्णयों को समर्थन मिला हो। अधिकांशतः मुझे आलोचनाओं व विरोध का ही सामना करना पड़ता रहा है। किन्तु विगत 30 नवंबर 2014 ,रविवार का दिन मेरे लिए इस संदर्भ में इसलिए स्मरणीय बना रहेगा कि इस दिन मेरे निर्णयों व कार्यों को हमारे ऊपर की पीढ़ी के हमारे चाचा  (पिताजी के एक चचेरे भाई ) द्वारा सही ठहराया गया। 1978 में जब हमने अपने निजी मकान (कमला नगर,आगरा ) में प्रवेश किया था तब हमारे माता-पिता दोनों जीवित थे अतः भाई-बहन तो आते ही रहते थे बल्कि ऊपर की पीढ़ी के भुआ-फूफाजी व एक ताऊजी भी वहाँ आए थे। माँ के दो चाचा, एक चाची और चचेरे भाई-बहन भी वहाँ आए थे। किन्तु 1995 में माता-पिता के न रहने के  तत्काल बाद माईंजी आईं थीं । एक अरसे बाद   पिताजी के एक चचेरे भाई व माँ के एक चचेरे भाई ही हमसे मिलने आए जबकि 2009 में लखनऊ आ जाने के बाद से अब तक छोटी बहन -बहनोई व बड़ी भांजी सपरिवार आए जबकि एक चचेरे भाई व एक चचेरी भांजी ही सपरिवार आए हैं।

30 नवंबर को पिताजी के दूसरे चचेरे भाई जब हमसे मिलने आए तो बेहद  खुशी हुई  कि अभी हमें बुज़ुर्गों ने  भुलाया नहीं  है। माता-पिता द्वारा पूनम से मेरे पुनर्विवाह का निर्णय लेने के बाद उन दोनों का ही निधन हो जाने के कारण जहां छोटे भाई -बहन सहित अधिकांश रिश्तेदार पूनम से विवाह किए जाने को गलत ठहरा रहे थे इन चाचा ने स्पष्ट कहा कि तुमने भाई साहब -भाभी जी की बात उनके बाद भी मान कर सही निर्णय लिया है।उन्होने मेरे ब्लाग -लेखन को भी सही ठहराया। उन्होने पैतृक संपति न लेने के हमारे पिताजी के निर्णय को भी सही ठहराया। पिताजी की ईमानदारी व परिवार के प्रति निभाए कर्तव्यों की भी चाचा ने सराहना की। इससे यह ढाड़स  मिला की अभी भी ईमानदारी अपना कर हमने कुछ भी गलत नहीं किया है और इसी पथ  पर आगे भी चलते रहना चाहिए। 

1975 में बहन की शादी हुई थी और 1976 में बहनोई साहब ने बहन से माँ को कहलाया था कि बाबूजी को दरियाबाद की पैतृक संपति ले लेनी चाहिए उसकी देख-रेख करने के लिए वह BHEL की अपनी नौकरी भी छोडने को तैयार थे। उनका यह भी कहना था कि यदि बाबूजी मकान बनाते हैं तो उनको एक-एक कमरे के ही सही तीन मकान बनाने होंगे। परंतु बाबूजी जब 1978 में रिटायर हुये तो उनको पूरी पेंशन भी इसलिए न मिली कि वह पहले ही बहन की शादी के वक्त पेंशन बेच चुके थे तो मकान कैसे बनाते? मेरे द्वारा 15 वर्षीय किश्तों पर आगरा में मकान लेना उनको भी नागवार गुजरा था। होटल मुगल में जाब खत्म कराने में उनकी भी भूमिका रही थी जिसका अब जाकर खुलासा हुआ है। वे लोग सोचते थे किश्तें अदा न कर पाने के कारण मेरा एलाटमेंट केन्सिल हो जाएगा।  परंतु मैंने भूखे रह कर भी किश्तें चुका दीं थी और उसी मकान को बेच कर अब लखनऊ में घाटे पर लिया है। मेरा लखनऊ आना तो उनको इतना अखरा कि तिकड़म करके मेरे पुत्र का जाब भी खत्म करा दिया। दरियाबाद में बाबूजी के भतीजों को भी अपने साथ लामबंद करके उन्होने हमें अलग-थलग करने की किलेबंदी कर रखी है।

ब्लाग-जगत में दरियाबाद से संबन्धित रांची स्थित एक ब्लागर के माध्यम से पटना के पूना प्रवासी ब्लागर को अपनी छोटी बेटी के संपर्क द्वारा मेरे व पुत्र के लेखन के विरुद्ध भी बवंडर खड़ा किया गया। उन्ही संपर्कों द्वारा हमारी पार्टी के एक प्रदेश नेता को भी मेरे विरुद्ध जुटाया गया जो मेरे लेखन का प्रखर विरोधी और आलोचक बन कर मुझे उत्पीड़ित करने का हर प्रयास करता रहता है। 

ऐसी परिस्थितियों के बीच हमारे चाचा ने हमारे घर आकर हमको सही ठहराया यही हमारी वर्ष 2014 की सबसे मूल्यवान उपलब्धि है। 

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गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

दो कलियाँ आज भी प्रेरक फिल्म ----- विजय राजबली माथुर

 वीभत्स आतंकवाद (पेशावर कांड ) के शिकार सवा सौ से अधिक बच्चों के मार्मिक दुखांत ने हमें 1968 में रिलीज़ हुई 'दो कलियाँ' देखने को प्रेरित कर दिया। जिसमें बाल-कलाकार के रूप में नीतू सिंह की मुख्य भूमिका है। निर्देशक द्वय आर कृष्णन व एस पंजू ने इस फिल्म के माध्यम से मनोरंजन करते हुये जो संदेश दिया है वह वास्तव में नितांत गंभीर है। इसके माध्यम से समाज की तमाम विकृतियों, विभ्रम, स्वार्थ-लिप्सा, अनैतिक कार्यों के दृष्टांत प्रस्तुत करते हुये यह भी दिखाया गया है कि इसी पथ -भ्रष्ट समाज में कुछ लोग  अपने साहस व लगन के द्वारा उन पर विजय हासिल करने में भी समर्थ हैं। हालांकि फिल्म के उपसंहार में बालाजी पर आस्था व विश्वास के दृश्यों द्वारा समाज में व्याप्त अंध-विश्वास व ढोंग को महिमामंडित कर दिया गया है जिससे जनता में कर्तव्य पथ से परे परा -  शक्ति  पर भरोसा रखने की प्रवृत्ति को बेजा बढ़ावा मिलता है। यदि फिल्म के अंतिम पाखंडी दृश्यों की उपेक्षा कर दी जाये तो बाकी फिल्म प्रेरक प्रतीत होती है जिसने दो छोटी-छोटी बच्चियों के साहस,बुद्धि-कौशल व दृढ़ निश्चय को दर्शाया है। इन दोनों जुड़वां बहनों ने न केवल अपनी माँ के प्रति उत्पन्न अपने पिता की गलत फहमी को दूर किया वरन अपनी घमंडना  नानी को एड़ियों के बल खड़ा होने पर मजबूर कर दिया। 

'गंगा'/'जमुना'  के रूप में बाल-कलाकार बेबी सोनिया नाम से  नीतू सिंह की भूमिकाएँ और उनका प्रस्तुतिकरण सराहनीय व प्रशंसनीय हैं।  किरण के रूप में माला सिन्हा की भूमिकाएँ ठीक रही हैं जबकि निगार सुलताना को उनकी माँ के रूप में विकृत चेहरा प्रस्तुत करना पड़ा है। उनके समकक्ष शबनम की माँ मधुमती  के रूप में मनोरमा को भी अनैतिकता का सहारा लेते दिखाया गया है। सुजाता के रूप में सुजाता की भूमिका भी आदर्श प्रस्तुतीकरण है।शेखर के रूप में  बिस्वजीत किरण की माँ के व्यवहार की प्रतिक्रिया  वश मधुमती के  प्रपंच व जाल में फँसते दिखाये गए हैं।

गंगा जब वेश बदल कर जमुना के रूप में ननसाल में माँ के साथ रहती है तो उसकी मार्मिक भूमिका में बालिका नीतू सिंह का कमाल इस गीत के माध्यम से देखिये- 
 

किरण के पिता के रूप में ओमप्रकाश व शेखर के मित्र के रूप में महमूद अली की भूमिकाएँ भी कम सराहनीय नहीं हैं। समाज में फैले भ्रष्टाचार, कर-चोरी, जनता के शोषण-उत्पीड़न पर हास्य प्रस्तुति के रूप में महमूद के कृत्य का कायल हुये बगैर नहीं रहा जा सकता है- 
   

खुले दिल और दिमाग से देखें  और पाखंड को त्याज्य दें तो आज की परिस्थितियों में भी फिल्म 'दो कलियाँ' एक आदर्श मनोरंजक फिल्म सिद्ध होती है।

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बुधवार, 26 नवंबर 2014

ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है----- विजय राजबली माथुर


अतीत के ज्योतिष्यात्मक राजनीतिक विश्लेषण
ज्योतिष विज्ञान को 'ढोंग-पाखंड' कहने वाले विद्व्-जनों को धैर्य-संयम के साथ विचार करना चाहिए की 'ज्योतिष' नहीं बल्कि उसके धन-लोलुप ज्ञाता ही ढ़ोंगी-पाखंडी हैं जो उल्टे उस्तरे से जनता को मूढ़ते हैं। आवश्यकता है अपने बुद्धि-विवेक को जाग्रत रखते हुये सही व्यक्ति से संपर्क करने की। 'नाच न आवे आँगन टेढ़ा' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुये जब गलत व्यक्ति से संपर्क करेंगे तो गलत ही तो परिणाम होगा। फिर ज्योतिष विज्ञान को नहीं खुद अपने को दोष दीजिये। भाकपा नेताओं ही नहीं अतीत में अन्य नेताओं के संबंध में भी विश्लेषण करता रहा हूँ।





Thursday, 21 July 2011

अतीत के ज्योतिष्यात्मक राजनीतिक विश्लेषण

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अतीत के ज्योतिष्यात्मक राजनीतिक विश्लेषण

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अतीत के  ज्योतिष्यात्मक राजनीतिक विश्लेषण
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अतीत के ज्योतिष्यात्मक राजनीतिक विश्लेषण
अतीत के ज्योतिष्यात्मक राजनीतिक विश्लेषण



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Saturday, December 4, 2010


ज्योतिष और अंधविश्वास

http://krantiswar.blogspot.in/2010/12/blog-post_04.html 

 पिछले कई अंकों में आपने जाना कि,ज्योतिष व्यक्ति क़े जन्मकालीन ग्रह -नक्षत्रों क़े आधार पर भविष्य कथन करने वाला विज्ञान है और यह कि ज्योतिष कर्मवादी बनाता  है -भाग्यवादी नहीं. इस अंक में आप जानेंगे कि ,अंधविश्वास ,ढोंग व पाखण्ड का ज्योतिष से कोई सरोकार नहीं है.

कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने ज्योतिष -विज्ञान का दुरूपयोग करते हुए इसे जनता को उलटे उस्तरे से मूढ्ने का साधन बना डाला है.वे लोग भोले -भले एवं धर्म -भीरू लोगों को गुमराह करके उनका मनोवैज्ञानिक ढंग से दोहन करते हैं और उन्हें भटका देते हैं.इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति ज्योतिष को अंधविश्वास मानने लगता है और इससे घृणा करनी शुरू कर देता है.ज्योतिष -ज्ञान क़े आधार पर होने वाले लाभों से वंचित रह कर ऐसा प्राणी घोर भाग्यवादी बन जाता है और कर्म विहीन रह कर भगवान् को कोसता रहता है.कभी -कभी कुछ लोग ऐसे गलत लोगों क़े चक्रव्यूह में फंस जाते हैं जिनके लिए ज्योतिष गम्भीर विषय न हो कर लोगों को मूढ्ने का साधन मात्र होता है.इसी प्रकार कुछ कर्मकांडी भी कभी -कभी ज्योतिष में दखल देते हुए लोगों को ठग लेते हैं.साधारण जनता एक ज्योतषीऔर ढोंगी कर्मकांडी में विभेद नहीं करती और दोनों को एक ही पलड़े पर रख देती है .इससे ज्योतिष विद्या क़े प्रति अनास्था और अश्रद्धा उत्पन्न होती है और गलतफहमी में लोग ज्योतिष को अंध -विश्वास फ़ैलाने का हथियार मान बैठते हैं .जब कि सच्चाई इसके विपरीत है.मानव जीवन को सुन्दर,सुखद और समृद्ध बनाना ही वस्तुतः ज्योतिष का अभीष्ट है

७ वर्ष पूर्व २००३ ई .क़े नवरात्रों में एक ढोंगी व पाखंडी कर्मकांडी द्वारा कमला नगर ,आगरा निवासी एक व्यवसायी की माता की निर्मम हत्या व लूट -पाट तथा उसकी पत्नी को घायल कर दिया गया.पुलिस प्रशासन द्वारा पाखंडी को बचाने हेतु नाटक रचा गया और पीड़ित परिवार का चरित्र हनन किया गया.इस हरकत की जनता में उग्र प्रतिक्रिया हुई .फलस्वरूप दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित होना पड़ा.इतने वीभत्स और कारुणिक काण्ड पर एक प्रतिष्ठित मिशनरी विद्द्यालय क़े प्रतिष्ठित शिक्षक की प्रतिक्रिया थी कि,उस कर्मकांडी क़े बयान में कुछ सच्चाई है और कि पुलिस अधिकारी निष्पक्ष व ईमानदार हैं.क्या आप जानना चाहेंगे कि,एक तथा -कथित सभ्रांत शिक्षक क़े ऐसे उदगार क्यों हैं ?नितांत आर्थिक आधार.अतीत में कभी पीड़ित परिवार का कोई बच्चा उक्त शिक्षक से पंद्रह दिन ट्यूशन पढ़ा था और बाद में उनका पारिश्रमिक भुगतान इसलिए नहीं किया गया था कि,उस बच्चे पर कोई तवज्जो नहीं दी गई थी .बस इतने मात्र से उक्त पीडिता को दोषी कहने में इन शिक्षक महोदय ने कोई संकोच नहीं किया .
आइये ,इन शिक्षक महोदय की ऐसी सोच का ज्योतिषीय विश्लेषण करें.यह शिक्षक एक ऐसे सम्प्रदाय (गायत्री परिवार )क़े अनुयायी हैं जो ज्योतिष को अन्धविश्वासी मानता है और इसी कारण इन महोदय ने अपने आवास पर इस प्रकार निर्माण -परिवर्तन कराया है जो ज्योतिष और वास्तु क़े विपरीत है.वास्तु ज्योतिष का ही एक अंग है और ग्रह नक्षत्रों की स्थिति क़े आधार पर गृह -निर्माण की विधि बताता है.संदर्भित शिक्षक महोदय ने अपने आवास क़े ईशान में दोनों मंजिलों पर शौचालय निर्मित करा लिए;उत्तर दिशा में रसोई स्थानांतरित कर ली ,जो कि वास्तु -शास्त्र क़े अनुसार (दोनों कृत्य) बुद्धि -विपर्याय क़े सूचक हैं.ईशान दिशा बृहस्पति का क्षेत्र है जो कि ज्ञान -विज्ञान ,बुद्धि -प्रदाता ग्रह है.इस क्षेत्र को नियमानुसार खाली या हल्का रखते हैं अथवा पूजा -स्थल का वहां निर्माण कराते हैं.जिससे  बुद्धि व ज्ञान का संचार सुचारू रूप से होता रहे.प्रस्तुत उदाहरण में शिक्षक महोदय ने ज्ञान क़े देवता को (शौचालय निर्मित कर ) मल -मूत्र से आवृत करके अपनी बुद्धि पर कुठाराघात कर लिया और इस अंध विश्वास से ग्रस्त हैं कि ,ज्योतिष ही अंध विश्वास का वाहक है.इस निर्माण कार्य को ७ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और वहां बुद्धि -विभ्रम का बहुत कुछ खेल हो चुका है (जिसका वर्णन वास्तु दोष एक प्रेक्टिकल उदाहरण में भी हुआ है और "श्रधा ,विश्वास और ज्योतिष "में भी आगे होगा ).

अब आइये ,इन्हीं की तर्ज़ पर हू -ब -हू निर्मित एक पुलिस अधिकारी क़े आवास से इस वास्तु दोष को समझते हैं,जिनके निर्माण काल को अब ११ वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और उस भवन क़े निवासियों पर समस्त वास्तु दोष सिर पर चढ़ कर बोल रहे हैं.उत्तर की रसोई और ईशान क़े दोनों मंजिलों वाले शौचालय युक्त आवास क़े निवासी पुलिस अधिकारी पब्लिक में तो सौम्य व विनम्र अधिकारी क़े रूप में जाने जाते हैं (अब रिटायर्ड ),परन्तु घर में अब उनका नियंत्रण समाप्त हो गया है.उनके बेटे -बेटियां पिता को कुछ समझते ही नहीं हैं और कहते हैं कि ,पुलिसिया डंडा घर में नहीं चलेगा. इनकी पत्नी इन्हें देखते ही गुर्राने लगती हैं.अधिकारी महोदय भी अपनी शिक्षिका पत्नी को कुछ महत्त्व नहीं देते हैं.फलतः इनका घर भानुमती का कुनबा बनकर रह गया है. इस ईशान -दोष ने बेटे -बेटियों क़े विवाह में अनावश्यक बाधाएं खडी कीं (गुण मिल जाने क़े बावजूद लड़के वाले बाद में बिदक जाते थे और कभी इन्ही क़े किसी रिश्तेदार की बेटी से विवाह करके इन अधिकारी महोदय को धोखा खिला देते थे;उपाए करने क़े बाद ही उन बच्चों का विवाह हो सका ).यही नहीं ,इस ईशान -दोष ने अधिकारी महोदय को रक्त -चाप का मरीज़ बना कर रख दिया है.घर में घुसते ही यह चिडचिडे बन जाते हैं.इनकी शिक्षिका पत्नी को गठिया रोग ने घेर लिया है और अब घर क़े कार्यों से भी लाचार हो गई हैं और पुत्रियों फिर बहुओं पर निर्भर होकर रह गई हैं.इस परिवार की बुद्धि इतनी विकृत हो गई है कि,किसी भी प्रकार का उपचार व निराकरण भी सम्यक रूप से करने को कोई तैयार नहीं है और अपनी अकर्मण्यता को छिपाने हेतु भगवान् की मर्जी को ढाल बना लेते हैं.

"अंधविश्वास "से ग्रस्त लोग ज्योतिष और वास्तु को ठुकरा कर किस प्रकार अपना अहित कर लेते हैं,इसका एक और उदाहरण उक्त शिक्षक महोदय क़े सलाहकारों पर एक नज़र डालने से मिल जाएगा .इनके एक सलाहकार बचपन क़े सहपाठी और अब दूरसंचार अधिकारी कहते हैं कि,आज विज्ञान क़े युग में ज्योतिष को केवल मूर्ख -लोग ही मानते हैं.(उन्हीं महोदय को अपनी पुत्री नीलम क़े विवाह की अडचने दूर करने हेतु मेरा परामर्श मानने पर मजबूर होना पड़ा और समुचित उपाय  करने क़े बाद ही उसका विवाह सम्पन्न हो सका ).इनके दूसरे सलाहकार चुनावों में परास्त एक छुट -भैय्ये नेता का कहना है-भाग्य में जो होना है वह हो कर रहता है और ज्योतिष का कोई लाभ नहीं है.उनके अपने निवास में जो वास्तु दोष हैं उनका उपचार वह करना नहीं चाहते और बेटे -बेटियों की बढ़ती उम्र क़े बावजूद शादी न होने से हताश हैं और  भगवान् को कोसते रहते हैं. "ऐसे  अन्धविश्वासी लोगों क़े लिए बस यही कहा जा सकता है -जो होना है ,सो होना है.फिर  किस बात का रोना है.."

ज्योतिष को अंधविश्वास का प्रतीक मानने वाली एक महिला राजनेता का रसोई घर तो पहले से ही द.-प .(S .W .)में था जो कलह की जड़ था ही;अब उसी क्षेत्र में नल -कूप भी लगवा लिया है.परिणामस्वरूप पहली छमाही  क़े भीतर ही ज्येष्ठ पुत्र को आपरेशन का शिकार होना पड़ गया.

इसी प्रकार कान्वेंट शिक्षा प्राप्त लोग प्रतीक चिन्हों का उपहास उड़ाते हैं जबकि छोटा सा चिन्ह भी गूढ़ वैज्ञानिक रहस्यों को समेटे हुए है.उदाहरण स्वरूप इस स्वास्तिक चिन्ह को देखें और इस मन्त्र का अवलोकन करें :-
            (कृपया स्कैन को इनलार्ज कर पढ़ें इसी आलेख का भाग है )



१ .चित्रा-२७ नक्षत्रों में मध्यवर्ती तारा है जिसका स्वामी इंद्र है ,वही इस मन्त्र में प्रथम निर्दिष्ट है.
२ .रेवती -चित्रा क़े ठीक अर्ध समानांतर १८० डिग्री पर स्थित है जिसका देवता पूषा है.नक्षत्र विभाग में अंतिम नक्षत्र होने    क़े कारण इसे मन्त्र में विश्ववेदाः (सर्वज्ञान युक्त )कहा गया है.
३ .श्रवण -मध्य से प्रायः चतुर्थांश ९० डिग्री की दूरी पर तीन ताराओं से युक्त है.इसे इस मन्त्र में तार्क्ष्य (गरुण )है.
४ .पुष्य -इसके अर्धांतर पर तथा रेवती से चतुर्थांश ९० डिग्री की दूरी पर पुष्य नक्षत्र है जिसका स्वामी बृहस्पति है जो मन्त्र क़े पाद में निर्दिष्ट हुआ है.

इस प्रकार हम देखते हैं कि धार्मिक अनुष्ठानों में स्वास्तिक निर्माण व स्वस्ति मन्त्र का वाचन पूर्णतयः ज्योतिष -सम्मत है.धर्म का अर्थ ही धारण करना है अर्थात ज्ञान को धारण करने वाली प्रक्रिया ही धर्म है.इस छोटे से स्वस्ति -चिन्ह और छोटे से मन्त्र द्वारा सम्पूर्ण खगोल का खाका खींच दिया जाता है.  अब  जो लोग इन्हें अंधविश्वास कह कर इनका उपहास उड़ाते हैं वस्तुतः वे स्वंय ही अन्धविश्वासी लोग ही हैं जो ज्ञान (Knowledge ) को धारण नहीं करना चाहते.अविवेकी मनुष्य इस संसार में आकर स्वम्यवाद अर्थात अहंकार से ग्रस्त हो जाते हैं.अपने पूर्व -संचित संस्कारों अर्थात प्रारब्ध में मिले कर्मों क़े फलस्वरूप जो प्रगति प्राप्त कर लेते हैं उसे भाग्य का फल मान कर भाग्यवादी बन जाते हैं और अपने भाग्य क़े अहंकार से ग्रसित हो कर अंधविश्वास पाल लेते हैं.उन्हें यह अंधविश्वास हो जाता है कि वह जो कुछ हैं अपने भाग्य क़े बलबूते हैं और उन्हें अब किसी ज्ञान को धारण करने की आवश्यकता नहीं है.जबकि यह संसार एक पाठशाला है और यहाँ निरंतर ज्ञान की शिक्षा चलती ही रहती है.जो विपत्ति का सामना करके आगे बढ़ जाते हैं ,वे एक न एक दिन सफलता का वरन कर ही लेते हैं.जो अहंकार से ग्रसित होकर ज्ञान को ठुकरा देते हैं,अन्धविश्वासी रह जाते हैं.ज्योतिष वह विज्ञान है जो मनुष्य क़े अंधविश्वास रूपी अन्धकार का हरण करके ज्ञान का प्रकाश करता है.

शक  ओ  शुबहा -अब सवाल उस संदेह का है जो विद्व जन व्यक्त करते हैं ,उसके लिए वे स्वंय ज़िम्मेदार हैं कि वे अज्ञानी और ठग व लुटेरों क़े पास जाते ही क्यों हैं ? क्यों नहीं वे शुद्ध -वैज्ञानिक आधार पर चलने वाले ज्योत्षी से सम्पर्क करते? याद रखें ज्योतिष -कर्मकांड नहीं है,अतः कर्मकांडी से ज्योतिष संबंधी सलाह लेते ही क्यों है ? जो स्वंय भटकते हैं ,उन्हें ज्योतिष -विज्ञान की आलोचना करने का किसी भी प्रकार हक नहीं है. ज्योतिष भाग्य पर नहीं कर्म और केवल कर्म पर ही आधारित शास्त्र है.  






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गुरुवार, 20 नवंबर 2014

सादगी से रहने वाले,काम करने वाले,'राजनीति ' में किसे पसंद आते हैं? ---विजय राजबली माथुर

शाह नवाज़ साहब का यह कथन  व्यावहारिक धरातल पर  'अकाट्य सत्य-वचन' है। काफी पहले लखनऊ भाकपा के जिलामंत्री के दाहिना हाथ के रूप में प्रचारित एक साहब ने मुझको घर पर आ कर चेताया था कि प्रदीप तिवारी अब यू पी AIBEA के अध्यक्ष भी बन गए हैं इसलिए उनके विरुद्ध कोई कारवाई नहीं की जा सकती है जिस कारण मुझको ही हटा दिया जाएगा। फिर 16 सितंबर को मतगणना स्थल पर उनके बायाँ हाथ माने जाने वाले दूसरे साहब ने भी कहा था कि प्रदीप तिवारी और आपके बीच 36 का रिश्ता है उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा अतः मुझे हटा दिया जाएगा। 14 नवंबर को उनके जासूस के तौर पर कार्यरत एक साहब ने मुझको घर पर आकर बताया कि ज़िला सम्मेलन में मुझको प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा । मैंने पहले भी कई- कई बार स्पष्ट कर दिया था कि न तो आगरा में और न ही लखनऊ में मैंने पार्टी सदस्यता या पद के जरिये कोई भी जायज/नायज लाभ उठाया है न उठाना है जो मैं प्रदीप तिवारी के आगे झुकूँ जिसने 13 जूलाई 2013 को काउंसिल मीटिंग में मुझ पर अपने पैरों से प्रहार किया था। 
दीवार के उस पार का दीदार :
1992 में आगरा के तत्कालीन जिलमंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी से सबसे पहले इस बात का ज़िक्र किया था कि आप लोग केवल दीवार पर लिखा या दीवार तक का दृश्य देखते हैं जबकि मैं दीवार के उस पार क्या है देख कर ही कोई विचार, निर्णय या कार्य करता हूँ। यह विवाद  भाकपा प्रदेश कंट्रोल कमीशन के सदस्य रमेश कटारा से संबन्धित था। उस वक्त मिश्रा जी कटारा को ठीक समझ रहे थे लेकिन बाद में उनके द्वारा ही कटारा को पार्टी से निकलवाया गया था तब मन में ज़रूर उनको मेरे द्वारा कही बात याद आई होगी  तभी तो 2006 मे तत्कालीन प्रदेश सह-सचिव डॉ गिरीश जी  की उपस्थिती में मुझे वापिस पार्टी में शामिल किया था।

लेकिन आज डॉ गिरीश जी कटारा के एक नए अवतार से वशीभूत चल रहे हैं और दीवार के उस पार लिखा हुआ अनदेखा कर रहे हैं बावजूद इस तथ्य के कि एक तो भाकपा में नया कौन आ ही रहा है? ऊपर से दिसंबर 2014 तक की राहत के बाद पार्टी की 'मान्यता' एक राष्ट्रीय दल के रूप में समाप्त होने की कगार पर है तो भी कटारा के नए अवतार की रक्षा व बचाव के लिए राष्ट्रीय नेताओं तक से गलत बात लिखवा ले रहे हैं। 



यहाँ लखनऊ में तो न ही ज्योति बसु जी की और न ही अभी तक भूपेश गुप्ता जी की शताब्दी का कोई कार्यक्रम ही हुआ है। बल्कि ज़िला काउंसिल में तय होने के बावजूद सी राजेश्वर राव साहब की शताब्दी का भी कोई कार्यक्रम सम्पन्न नहीं हुआ था।


जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर साहब देश की प्रथम निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार में केरल के शिक्षा मंत्री रहे थे। बाद में नेहरू सरकार द्वारा वह सरकार बर्खास्त किए जाने के बाद अय्यर साहब फिर से  वकालत करने लगे तथा सर्वोच न्यायालय के न्यायाधीश पद तक पहुंचे। उनके कार्यकाल में मजदूरों के हक में कई फैसले हुये।* इन्दिरा जी के कार्यकाल में विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने हेतु उन्होने पद-त्याग कर दिया था। 

ISCUS-इंडो सोवियत कल्चरल सोसाइटी के भी आप काफी समय अध्यक्ष रहे । इसी हैसियत से आगरा में एक कार्यक्रम में अय्यर साहब पधारे भी थे तब उनको देखने व सुनने का अवसर प्राप्त  हुआ था। अपने इस जीवित महान नेता के जन्म दिवस पर भी लखनऊ में अलग से कोई कार्यक्रम होना तो दूर बल्कि 15 नवंबर को ही सम्पन्न ज़िला काउंसिल की बैठक में उनका कोई उल्लेख तक नहीं किया गया जबकि प्रदेश नेतृत्व की भी उपस्थिती थी। 

'कथनी और करनी' का अंतर तथा 'सत्य'  को स्वीकार न करने की प्रवृति ही भाकपा को जनता से दूर किए हुये है। यदि पार्टी को जन-प्रिय बनाने हेतु सुझाव दिये जाते हैं तो उनको 'जानकारी का आभाव' और 'गलत फैसले' कह कर ठुकरा दिया जाता है। इस प्रकार कटारा के अवतार जैसों को तो निजी लाभ पहुँच जाता है और पार्टी को क्षति होती रहती है। सही को गलत और गलत को सही कह कर जनता का विश्वास नहीं अर्जित किया जा सकता भले ही कार्यकर्ताओं को 'अनुशासन' के 'डंडे ' से चुप करा दिया जाये। 
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* 04-12-2014 
 04 Dec.2014

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रविवार, 9 नवंबर 2014

संकीर्ण एवं पोंगापंथी सोच 'साम्यवाद' को जन-प्रिय नहीं होने देंगे-----विजय राजबली माथुर





'एकला चलो रे' के अनुगामी कुमार कुलदीप साहब को इस लेख में काफी सच्चाई दिखाई दी :

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2014

सच का सामना किए बगैर जीतना मुमकिन नहीं ---

किन्तु आगरा भाकपा  व माकपा से सम्बद्ध कामरेड्स को इसी लेख पर घोर आपत्ति भी है।  हो सकता है कि ये दृष्टिकोण उन दोनों के व्यक्तिगत हों परंतु मुझे लगता है कि उनके दृष्टिकोण 'संकीर्ण एवं पोंगापंथी सोच' पर आधारित हैं। माकपा वाले वकील साहब तो 'लकीर के फकीर' वाले सिद्धान्त पर चलने वाले हैं अतः कुछ भी सुनना व मानना पसंद नहीं करेंगे। 

लेकिन भाकपा वाले इंजीनियर साहब ने 'पार्टी अनुशासन' का उल्लेख कर या तो बात को जान बूझ कर कुरेदा है या अतीत से मुंह फेर कर केवल अपनी सोच की पसंद ज़ाहिर की है। आगरा में पार्टी कार्यालय जिस सुंदर होटल, राजा-की-मंडी में पूर्व में स्थित था उसी कार्यालय में डॉ राम विलास शर्मा जी को उनके प्रगतिशील विचारों के कारण साईकिल की चेन से पीटने वाले दो कामरेड्स के विरुद्ध कौन सा अनुशासन लागू हुआ था? वे दोनों तो 9 +3 +9 वर्ष वहाँ जिलमंत्री भी बाद में बने थे जबकि डॉ राम विलास शर्मा जी को सेंट जान्स कालेज, आगरा का जाब छोड़ कर दिल्ली शिफ्ट होना पड़ा था। उसी कार्यालय में प्रदेश कंट्रोल कमीशन के सदस्य होते हुये भी रमेश कटारा साहब ने जिन कामरेड को पीटा था वह वैसे तो इंजीनियर साहब के पड़ौसी थे किन्तु उनको अपना व्यवसाय दिल्ली शिफ्ट करके चले जाना पड़ा। 

डॉ राम गोपाल सिंह चौहान साहब को कामरेड महादेव नारायण टंडन साहब शाहजहाँपुर से लेकर आए थे और जब मैं वहाँ पार्टी  में शामिल हुआ था उस वक्त तक बावजूद वृद्धावस्था के वह ज़िला पार्टी की रीढ़ थे। उस समय के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी उनको अपना 'गुरु' कहते थे किन्तु कटारा द्वारा मिश्रा जी को वशीभूत कर लेने के बाद डॉ चौहान साहब मिश्रा जी से थोड़ा विचलित भी हुये थे।  बेइमानी का पर्याय  कटारा का मुक़ाबला करने के लिए ईमानदारी पर चलने के कारण उन्होने मुझको अपने  सामने ही अपने उत्तराधिकारी के रूप में कोषाध्यक्ष बनवा दिया था। सम्पूर्ण घटनाक्रम से खुद इंजीनियर साहब अवगत हैं। अब तो प्रदेश में कटारा का एक नया अवतार हावी है जो कि लखनऊ का ही सदस्य होते हुये भी  इंचार्ज बनने के कारण 'सुपर जिलामंत्री' के रूप में है जो ज़िला काउंसिल के मंच से सिर्फ उसके अपने प्रशंसकों को ही बात रखने के अवसर दिलवाता है। सही और सच्च बातों को सुना नहीं जाता है तो 'अनुशासन मानना ही पड़ेगा' और 'पार्टी के मंच से अपनी बात कहें' जैसे शब्दों का प्रयोग क्या इंगित करता है? यही न कि बावजूद इसके कि पार्टी की मान्यता 'एक राष्ट्रीय दल' के रूप में समाप्त होने के कगार पर पहुँच जाने के बावजूद अभी भी पार्टी को 'जन-प्रिय' नहीं होने देने का मंसूबा संकीर्ण एवं पोंगापंथी सोच वाले पाले बैठे हैं। कोई भी ऐसी बात जो पार्टी की स्वीकार्यता जनता में उत्पन्न कर सके इन निहित स्वार्थी तत्वों को मंजूर नहीं है और वैसी बात करने वालों को 'अनुशासन' का डंडा दिखा कर चुप करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है। लेकिन वैसे अनुशासन से पार्टी का तो भला नहीं ही होगा , हाँ कटारा ब्रांड नीति-निर्धारक आगे भी लाभान्वित होते रहेंगे।

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बुधवार, 5 नवंबर 2014

'अपनत्व ' राजनीति की धुरी है और इसका आभाव?--- विजय राजबली माथुर


अमर उजाला में एक समाचार प्रकाशित हुआ है कि दिल्ली में कांग्रेस के छह विधायक तोड़ कर भाजपा सरकार बनाने जा रही थी। किन्तु सोनिया जी ने अपने एक विधायक को फोन करके उसकी निजी समस्याओं पर चर्चा की और कभी मिलने को घर आने को कहा। विधायक जी सोनिया जी से मिले और वार्ता के बाद साथियों सहित भाजपा को समर्थन न देने का निश्चय किया और भाजपा को मन मसोस कर रह जाना पड़ा।

इसी पर उपरोक्त टिप्पणी है इन पत्रकार बंधु की फेसबुक पर।

लगता है यह एक सही और सटीक  निष्कर्ष है ।  'राजनीति ' शब्द POLITICS के समानार्थी के रूप में प्रयुक्त होता है। ग्रीक शब्दों POLY + TRICS का समन्वय है POLITICS जिसका शब्दानुवाद है मल्टी ट्रिक्स अर्थात मतलब निकालने के विभिन्न तरीके। अधिकांश लोग राजनीति को इसी अर्थ में लेते हैं जिस कारण इसे घृणा की दृष्टि से भी देखा जाता है। किन्तु सोनिया जी की भांति ही कुशल राजनीतिज्ञ 'अपनत्व ' के आधार पर ही राजनीति चलाते हैं और वे अक्सर सफल भी रहते हैं। आक्रामकता द्वारा भावावेष से क्षणिक सफलता ही हासिल की जा सकती है 'स्थाई ' नहीं।

इस संदर्भ में 24-22  वर्ष पूर्व का घटनाक्रम याद आ गया है। 1992 में उत्तर-प्रदेश भाकपा का राज्य सम्मेलन आगरा में आयोजित हुआ था। आगरा के तत्कालीन  जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी का कहना था कि राज्य सचिव का .जगदीश नारायण त्रिपाठी जी ने ज़बरदस्ती यह उन पर थोप दिया था । उस समय एक प्राइमरी अध्यापक रमेश कटारा साहब ने अपनी तांत्रिक प्रक्रियाओं से रमेश मिश्रा जी व उनके परिवार की बुद्धि जाम कर दी थी। अतः मिश्रा जी कटारा साहब को राज्य काउंसिल में भेजना चाहते थे लेकिन आगरा के कामरेड्स कटारा की स्वार्थलिप्सा को समझते थे। वे जानते थे कि कटारा न केवल पार्टी बल्कि मिश्रा जी के निजी व्यवसाय तथा भवन पर भी निगाह जमाये हुआ था। उन सबने कटारा का सामूहिक विरोध किया जिस कारण वह राज्य काउंसिल में न भेजे जा सके।
मिश्रा जी ने अपने निजी 'अपनत्व-सम्बन्धों' के आधार पर केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से प्रभाव डलवा कर कटारा को प्रदेशीय कंट्रोल कमीशन में समायोजित करवा दिया। इसका खामियाजा मिश्रा जी को अपनी कुर्सी खो कर भुगतना पड़ा फिर वह नौ वर्ष बाद ही पुनः ज़िला मंत्री बन पाये तब ही जबकि कटारा को उन्होने पार्टी से निकलवा दिया। कुर्सी जाने पर उसके लिए मिश्रा जी ने मुझको दोषी माना और मुझे कटारा के कहने पर पार्टी से निकलवाने का प्रस्ताव पास करा दिया जिसे अवैधानिक ठहराया गया और मैं अपने पदों पर बहाल रहा था। किन्तु यह आभास हो गया था कि आगे भी कटारा और कुछ हरकत कर सकता है। अतः 1994 में प्रदेश सचिव मित्रसेन यादव जी व रामचन्द्र बख़्श सिंह साहब के साथ मैं सम्मान जनक तरीके से चला गया था।

सामूहिक धरने-प्रदर्शन आदि पर भाकपा के वरिष्ठ नेता गण मिलते रहते थे और उनसे सौहाद्र पूर्ण वार्तालाप होते रहते थे। जब बेनी प्रसाद वर्मा जी  और राज बब्बर साहब ने भी सपा नहीं छोड़ी थी उनसे पूर्व ही मैं निष्क्रिय बैठ गया था।  2006 में एक दिन दयालबाग क्षेत्र में अनायास  ही कामरेड रमेश मिश्रा जी से मुलाक़ात हो गई तो उनका पहला प्रश्न था कि आजकल किसी आंदोलन में दिखाई नहीं पड़ते ,क्या बात है? जब मैंने बताया कि आप तो जानते ही हैं कि मैं दीवार के उस पार भी क्या है ताड़ लेता हूँ तब आप आसानी से समझ सकते हैं कि क्यों मैंने बब्बर साहब व वर्मा जी से बहुत पहले सपा को अलविदा कर दिया था।
(मध्य में डॉ जितेंद्र रघुवंशी जी के दाहिने हाथ पर बैठे हुये हैं-कामरेड रमेश मिश्रा जी )

इस पर मिश्रा जी का मुझसे  कहना था कि राजनीतिक व्यक्ति खाली नहीं बैठ सकता और वह मुझे खाली नहीं बैठे रहने देंगे। उन्होने स्पष्ट किया कि अब कटारा को पार्टी से निकलवा दिया है और मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी अतः मैं वापिस भाकपा में लौट आऊँ। व्यक्तिगत रूप से मिश्रा जी के 'अपनत्व ' से मैं वाकिफ था और उसे नकारा नहीं जा सकता था अतः मैंने विचार करने का आश्वासन दे दिया था। किन्तु मिश्रा जी जब-तब मेरे घर पर 'अपनत्व' के तौर पर फिर आने लगे व एक-दो पार्टी कार्यक्रमों में अपने साथ ले भी गए जबकि मुझे सदस्यता लेना बाकी भी था। उनका कहना था कि -" आपकी निष्ठा व ईमानदारी पर कभी कोई संदेह नहीं था और आपके साथ रहने से हमें बल मिलता है"।

ऐसे ही कमिश्नरी पर हुये 2006 में एक प्रदर्शन में जन-मोर्चा अध्यक्ष राज बब्बर साहब के साथ उत्तर-प्रदेश भाकपा के तत्कालीन सह-सचिव डॉ गिरीश भी  आगरा आए थे। लौटते में डॉ साहब भी उसी ट्रेक्टर ट्राली में बैठ कर ज़िला पार्टी कार्यालय आए जिसमें मैं भी था।डॉ साहब की उपस्थिती में ही मिश्रा जी ने पार्टी सदस्यता का फार्म मुझसे भरवा कर विधिवत सदस्यता प्रदान कर दी । क्योंकि मैं पूर्व में ज़िला पार्टी में था अतः तत्काल पूर्ण सदस्यता मिली।मिश्रा जी का  'अपनत्व' ही वह आधार था जो मुझे पुनः भाकपा में लौटा लाया।

समय चक्र के अनुसार 2009 में मैं आगरा से लखनऊ चला आया और निजी समस्याओं के सुलझते ही 25 सितंबर 2010 को प्रदेश सचिव डॉ गिरीश जी से पार्टी कार्यालय में संपर्क किया जो कि आगरा से ही जानते थे। अतुल अंजान साहब व अशोक मिश्रा जी भी आगरा से ही जानते थे। इन सबसे बात 'अपनत्व ' के आधार पर ही होती रही ,किन्तु रमेश कटारा साहब का एक नया अवतार प्रदेश में निर्णायक पदाधिकारी बना हुआ  था जो डॉ साहब को मुझसे दूर करने में सफल हो चुका है। 13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल मीटिंग में कटारा के उस नए अवतार ने मेरे पेट में उँगलियाँ भोंकी व अपने पैरों से मेरे पैरों पर प्रहार किए किन्तु डॉ साहब ने उससे 'मोह' के वशीभूत उसको कुछ नहीं कहा। मेरे द्वारा अंजान साहब व वर्द्धन जी के विचार पार्टी ब्लाग में पोस्ट  करने पर उस अवतार ने न केवल वे पोस्ट डिलीट कर दिये बल्कि मुझको ब्लाग एडमिनशिप तथा आथरशिप से भी हटा दिया। डॉ साहब ने कटारा-अवतार के कृत्य का समर्थन किया था। उस अवतार ने न तो विश्वनाथ शास्त्री जी को और न ही डॉ गिरीश जी को पार्टी के अधिकृत ब्लाग में एडमिन रखा था न ही आथर। फिर मुझको आथर व एडमिन क्यों बनाया ?उसके पीछे उसकी जो चाल थी वह विफल हो गई थी। अतः मैंने प्रदेश सचिव डॉ गिरीश जी व प्रदेश सह सचिव डॉ अरविंद राज स्वरूप जी को उन दोनों से निवेदन करके उन दोनों को ही पार्टी ब्लाग में आथर व एडमिन बना दिया था। इससे भी अवतार चिढ़ गया था। अब इस अवतार ने ( जो कि प्रदेश की ओर से ज़िले का सदस्य होते हुये भी पर्यवेक्षक बनाने से खुद को सुपर जिलामंत्री समझ लिया है ) अपने तो खास लोगों से मुझको ज़िला सम्मेलन से पूर्व तिकड़म द्वारा  पार्टी से हटाये जाने का ऐलान कर दिया है। 
 न तो आगरा में और न ही लखनऊ में मैंने किसी पार्टी पोस्ट से कोई निजी या नाजायज लाभ उठाया है अतः मुझे उससे कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा। यह तो रमेश मिश्रा जी का  ' अपनत्व ' ही था जो मुझे वापिस पार्टी में लौटा लाया था वरना मैं किसी लोभवश नहीं आया था। अवतार साहब का निजी लोभ मुझको बोझ समझता है तो समझता रहे।

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गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

साम्यवादी दल का वर्चस्व पुनः स्थापित किया जा सकता है ?---विजय राजबली माथुर


उपरोक्त फोटो से स्पष्ट होगा कि एक टिप्पणीकर्ता साहब इस बात पर ही यकीन नहीं कर रहे हैं कि अभी कुछ माह पूर्व ही केरल भाजपा के लोग केरल माकपा में शामिल किए गए हैं और उसके बाद पश्चिम बंगाल माकपा के लोग वहाँ की भाजपा में चले गए हैं। वह साहब करात साहब को बुद्धिजीवी विद्वान मानते हैं। यह करात साहब ही तो थे जिन्होने कामरेड ज्योति बसु को 1996 में प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया था जिसे बाद में बसु साहब ने ऐतिहासिक भूल कहा था। 1997में भूतपूर्व कम्युनिस्ट इंदर गुजराल साहब तभी प्रधानमंत्री बन सके थे जबकि करात साहब से प्रभावित माकपा महासचिव कामरेड हरिकिशन सिंह सुरजीत साहब एक दिवसीय दौरे पर मास्को गए हुये थे जो कि मुलायम सिंह जी को देवगौड़ा साहब के स्थान पर पी एम बनाने पर सहमत थे किन्तु गृह मंत्री कामरेड इंद्रजीत गुप्त , पूर्व पी एम- वी पी सिंह आदि ने कामरेड ज्योति बसु से गुजराल साहब की घोषणा करवा दी थी। यदि करात साहब की दाल गल जाती तो गुजराल साहब की जगह मुलायम सिंह ही पी एम बनते जिनको 2014 में फिर एक बार करात साहब ने पी एम बनवाने का पाँसा फेंका था। 

एक और टिप्पणीकर्ता कामरेड नजीरुल हक साहब का दृष्टिकोण कि CPI और CPIM का विलय करके एक नई पार्टी बनाना  चाहिए तो ठीक है। परंतु व्यवहार में वैसा नहीं है जैसा कि दूसरे टिप्पणीकर्ता साहब ने कम्युनिस्ट पार्टियों में आंतरिक लोकतन्त्र होने की बात कही है। करात साहब की अधिनायकवादी और वाम  विरोधी निजी  स्वार्थपरक नीतियों के विरुद्ध ही तो येचूरी साहब को मुखर होना पड़ा है। 

भाकपा में भी कुछ पदाधिकारी करात प्रवृति के हैं कम से कम उत्तर प्रदेश में तो हैं ही। बीस वर्षों से प्रदेश पार्टी के सीताराम केसरी बने पदाधिकारी इसका ज्वलंत उदाहरण हैं। वह राजधानी के ज़िला इंचार्ज भी हैं और उस रूप में सुपर जिलामंत्री खुद को समझते हैं । प्रदेश  कंट्रोल कमीशन के पूर्व सदस्य रमेश कटारा की भांति ही वह तांत्रिक प्रक्रियाओं का सहारा भी लेते हैं और 'एथीस्ट ' भी कहाते हैं। प्रदेश के एक वरिष्ठ नेता को बदनाम करने व कमजोर करने के लिए वह अतीत में राजधानी के एक  पूर्व जिलामंत्री  को उनसे भिड़ा कर पार्टी से निकलवा चुके हैं। वह पूर्व जिलमंत्री तो अलग पार्टी बना कर विधायक व मंत्री भी बने तथा अब भाजपा सांसद बन गए हैं किन्तु उनके गुरु व प्रेरणा स्त्रोत रहे वह वरिष्ठ नेता आज भी उन सीताराम केसरी के षड्यंत्र का शिकार बने हुये हैं।  एक राष्ट्रीय सचिव व एक  वरिष्ठ नेता को गत वर्ष 30 नवंबर 2013  को मऊ में कामरेड झारखण्डे राय और कामरेड जय बहादुर सिंह की प्रतिमाएँ  जो लगभग आठ वर्षों से तैयार हैं के उदघाटन समारोह में आना था। अपने मौसेरे भाई आनंद प्रकाश तिवारी (जो अब निष्कासित हैं ) के जरिये इस पदाधिकारी ने उन वरिष्ठ कामरेड्स के विरुद्ध इतना घृणित अभियान चलवाया कि वह सम्पूर्ण कार्यक्रम ही  अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया।

ज़िला-स्तर पर कार्यकर्ताओं में विभ्रम उत्पन्न करना और परस्पर मन-मुटाव पैदा करना उनके बाएँ हाथ का खेल है। इसके लिए सारे नियम और पार्टी -परम्पराएँ तोड़ने में उनको आनंद आता है। उनकी हकीकत को उजागर करने वाले कामरेड को संघी घोषित करके निकलवा देने की अफवाह एक जन-संगठन के संयोजक से उड़वाते हैं तो दूसरे जन-संगठन के जिलाध्यक्ष से खुद के संबंध में कहलवाते हैं कि उनका विरोध करने वाला पार्टी में टिक नहीं सकता। ज़िला कार्यकारिणी के एक सदस्य से 16 सितंबर को  कहलवाया कि उनसे 36 का आंकड़ा रखने वाला बाहर का रास्ता देखने को तैयार रहे तो 2 अक्तूबर की एक गोष्ठी में अपने खास हिमायती के जरिये मुझे विचार व्यक्त करने में व्यवधान प्रस्तुत करवाया। 

किसी भी संगठन के विस्तार व विकास के लिए आवश्यक है कि 'लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं ' को सम्मान दिया जाये किन्तु ऐसी बातें केवल एक व्यक्ति की सनक की पूरती तो कर सकती हैं पार्टी का सांगठनिक विस्तार नहीं और यही उनका उद्देश्य भी है। यदि CPI और CPIM एक हो जाएँ तो ऐसे लोगों का खेल समाप्त हो सकता है तथा देश में साम्यवादी दल का वर्चस्व पुनः स्थापित किया जा सकता है।

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शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

स्मिता पाटिल और ज्योतिष विज्ञान ---विजय राजबली माथुर



उपरोक्त दोनों कटिंग्स स्वतः स्पष्ट हैं। दुनिया में दो तरह के अंध-विश्वासी हैं-एक वे जो ज्योतिष का नाम लेकर कही गई किसी भी अनर्गल बात को भी सिर माथे पर रख लेते हैं;दूसरे वे जो 'नास्तिकता' या 'एथीस्टवाद' के नाम पर ज्योतिष का  नाम लेने पर ही बिदक जाते हैं और उसे अवैज्ञानिक व अविश्वसनीय बताते नहीं थकते हैं। हालांकि ऐसे दो एथीस्टो ने खुद अपने,अपनी पत्नी एवं पुत्री की जन्मपत्रियों का विश्लेषण मुझसे करवाया भी है और ज्योतिष की आलोचना करना अपना परम धर्म भी समझते हैं। 

वस्तुतः 'विज्ञान' केवल प्रयोगशाला के बीकर में किए गए प्रयोगों का ही नाम नहीं है। "किसी भी विषय के नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्यन को विज्ञान कहा जाता है । " यह समस्त संसार स्वम्य में ही एक प्रयोगशाला है और यहाँ नित्य नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। मनुष्य के भविष्य से संबन्धित वैज्ञानिक अध्यन को ज्योतिष   विज्ञान कहा जाता है। 

ज्योतिष में गणित के सिद्धांतों के आधार पर गणना होती है । अंक गणित पर 'अंक ज्योतिष',बीज गणित पर 'जन्म कुंडली विश्लेषण' और रेखा गणित पर 'हस्त रेखा' का अध्यन आधारित है। ज्योतिष का मुख्य कारक ग्रह 'शुक्र' है साथ ही 'सूर्य'व 'बुध' भी ज्योतिष की प्रेरणा देते हैं। हथेली में यदि चंद्र रेखा का अस्तित्व हो तो इसे रखने वाला बिना किसी गणना के अन्तः प्रेरणा के आधार पर पूर्वानुमान करने में सक्षम होता है।

'स्मिता 'जी के संबंध में समाचार कहता है कि वह 'हस्त रेखा ' का ज्ञान तो रखती ही थीं ,उनको पूर्वानुमान करने की भी क्षमता प्राप्त थी। अमिताभ जी के बारे में उनकी गणना व पूर्वानुमान दोनों सही निकले थे और शबाना जी द्वारा उनके इस ज्ञान के संबंध में पुष्टि करने की भी चर्चा है। 

Saturday, April 7, 2012

शबाना आज़मी को सम्मान क्यों? http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html
Thursday, April 19, 2012

रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना--http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html
रेखा जी के सांसद मनोनीत होने पर ब्लाग जगत में पूना प्रवासी भ्रष्ट-धृष्ट-निकृष्ट ब्लागर की पहल पर( जो खुद चार जन्म कुंडलियों का निशुल्क विश्लेषण मुझसे प्राप्त कर चुका था )मेरे ज्योतिषीय ज्ञान की खिल्ली उड़ाई गई थी। IBN7 से संबन्धित  उसके समर्थक एक ब्लागर द्वारा  अनेकों पोस्ट्स के माध्यम से  ज्योतिष विज्ञान की निंदा व आलोचना की गई थी। 
'स्मिता'जी के ज्योतिषीय ज्ञान के संबंध में संबन्धित लोगों से बढ़ कर दूसरा कौन जान सकता है? उनकी कोई जन्म कुंडली तो  किसी अखबार छ्पी नहीं देखी है। परंतु जो विवरण छ्पा है उसके अनुसार उनका 'शुक्र' ग्रह निश्चय ही प्रभावशाली था जिसका एक प्रमाण उनके प्रसिद्ध कलाकार होने से ही सिद्ध हो जाता है। निश्चित ही उनकी हथेली में प्रबल 'चंद्र' रेखा का अस्तित्व रहा ही होगा जो वह स्वप्न के आधार पर अमिताभ बच्चन जी को आगाह कर सकीं। उनकी चेतावनी पर ध्यान न देने के कारण ही  अमिताभ बच्चन जी त्रस्त हुये थे। 
ज्योतिष का मखौल उड़ाना जितना आसान है उसकी अवहेलना करने पर हानि से बचना नहीं। काश स्मिता जी पूर्ण आयु प्राप्त करतीं तो समाज उनके ज्योतिषीय ज्ञान से लाभ उठा सकता था। परंतु दुनिया का यह दुखद दस्तूर है कि किसी के जीवित रहते उसको उसका वाजिब हक व सम्मान नहीं दिया जाता है। जिन साहब ने मृतयोपरांत स्मिता  पाटिल जी के ज्योतिषीय ज्ञान को रेखांकित किया वह साधूवाद के पात्र हैं। 

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जन्मदिन / स्मिता पाटिल (17 अक्टूबर)
सुनाई देती है जिसकी धड़कन, तुम्हारा दिल या हमारा दिल है !

आधुनिक भारतीय सिनेमा की महानतम अभिनेत्रियों में एक स्व. स्मिता पाटिल ने हिंदी और मराठी सिनेमा में संवेदनशील और यथार्थवादी अभिनय के जो आयाम जोड़े, उसकी मिसाल विश्व सिनेमा में भी कम ही मिलती है। रंगमंच से आई स्मिता ने 1975 में श्याम बेनेगल की फिल्मों - चरणदास चोर और निशान्त से अपनी फिल्म-यात्रा आरम्भ की ! उनके संवेदनशील और भावप्रवण अभिनय ने उन्हें उस दौर की दूसरी महान अभिनेत्री शबाना आज़मी के साथ तत्कालीन समांतर और कला सिनेमा का अनिवार्य हिस्सा बना दिया। यथार्थवादी सिनेमा के बाद व्यावसायिक फिल्मों में भी दर्शकों ने उन्हें हाथोहाथ लिया ! अपने मात्र एक दशक लंबे फिल्म कैरियर में स्मिता ने अस्सी से ज्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों में अपने अभिनय के झंडे गाड़े, जिनमें कुछ चर्चित फ़िल्में थीं - निशान्त, मंथन, भूमिका, गमन, आक्रोश, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, चक्र, सदगति, बाज़ार, अर्थ, मंडी, मिर्च मसाला, अर्धसत्य, भवनी भवाई, शक्ति, नमक हलाल, गुलामी, भींगी पलकें, सितम, दर्द का रिश्ता, चटपटी, आज की आवाज़, अनोखा रिश्ता और ठिकाना। फिल्म 'भूमिका' और 'चक्र' में श्रेष्ठ अभिनय के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों के अलावा उन्हें दूसरी फिल्मों के लिए चार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले थे। अभिनेता राज बब्बर से प्रेम और शादी उनके जीवन की त्रासदी थी ! शादी के कुछ ही वर्षों बाद 1986 में उनकी मृत्यु हो गई।
स्मिता पाटिल के जन्मदिन पर भावभीनी श्रद्धांजलि !
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=744094952333772&set=a.379477305462207.89966.100001998223696&type=1 

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गुरुवार, 16 अक्तूबर 2014

उत्तर-प्रदेश में क्या कम है आपसी लड़ाई और खींचातानी ? ---विजय राजबली माथुर



बेगूसराय के कामरेड्स की खींचतान से वहाँ हुये भाकपा के पतन से चिंतित कामरेड ने  कल जो टिप्पणी की है वह ध्यान देने लायक है। उससे पूर्व उत्तर-प्रदेश की जागरूक किसान/ महिला नेत्री कामरेड ने भी इसी प्रकार की टिप्पणी द्वारा वरिष्ठ नेताओं का ध्यानाकर्षण किया था। पता चला है कि प्रदेश के नीति-निर्धारक नेतृत्व ने इस प्रकार के ध्यानाकर्षणों को नज़रअंदाज़ करने का निर्णय लिया है। 

राष्ट्रीय नेतृत्व को जब-तब निशाने पर लेते रहने वाले वरिष्ठ पदाधिकारी महोदय ने ऐसे राष्ट्रीय नेतृत्व को सही मानने वाले कामरेड्स को प्रताड़ित करने का क्रम तीव्र कर दिया है। ज़िला-स्तर पर कार्यकर्ताओं में विभ्रम उत्पन्न करना और परस्पर मन-मुटाव पैदा करना उनके बाएँ हाथ का खेल है। इसके लिए सारे नियम और पार्टी -परम्पराएँ तोड़ने में उनको आनंद आता है। उनकी हकीकत को उजागर करने वाले कामरेड को संघी घोषित करके निकलवा देने की अफवाह एक जन-संगठन के संयोजक से उड़वाते हैं तो दूसरे जन-संगठन के जिलाध्यक्ष से खुद के संबंध में कहलवाते हैं कि उनका विरोध करने वाला पार्टी में टिक नहीं सकता। ज़िला कार्यकारिणी के एक सदस्य से 16 सितंबर को  कहलवाया कि उनसे 36 का आंकड़ा रखने वाला बाहर का रास्ता देखने को तैयार रहे तो 2 अक्तूबर की एक गोष्ठी में अपने खास हिमायती के जरिये मुझे विचार व्यक्त करने में व्यवधान प्रस्तुत करवाया। 

किसी भी संगठन के विस्तार व विकास के लिए आवश्यक है कि 'लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं ' को सम्मान दिया जाये किन्तु राजधानी के प्रदेश से नियुक्त ज़िला इंचार्ज होने के नाते (जबकि लखनऊ ज़िले में ही उनकी खुद की भी पार्टी सदस्यता है जिससे वह अघोषित सुपर जिलामंत्री हुये ) उक्त पदाधिकारी नियमों को तोड़ कर परम्पराओं की अवहेलना करवाते हैं। बैठकों की कार्यवाही मान्य नियमों/परम्पराओं के अंतर्गत सम्पन्न नहीं होने देते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से उनका उद्देश्य  और कृत्य केंद्र की फासिस्ट सरकार को मजबूत करने वाला ही प्रतीत होता है। उनके रहते प्रदेश में पार्टी को न तो मजबूत किया जा सकता है न ही पार्टी का विस्तार हो सकता है और यही उनका लक्ष्य भी है। 

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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

'रेखा' ज्योतिष के आईने में-----विजय राजबली माथुर

जन्मदिवस (10 अक्तूबर ) पर विशेष रूप से -पुन :प्रकाशन

 


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सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा'
हिंदुस्तान,आगरा,03 जून 2007 मे प्रकाशित 'रेखा'की जन्म कुंडली 

सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उनके पिता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता 'जेमिनी' गनेशन ने उनकी माता सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री पुष्पावल्ली से विधिवत विवाह नहीं किया था। उन्हें पिता का सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही पिता का धन ही प्राप्त हुआ। कुल-खानदान से भी लाभ नहीं मिला और समाज से भी आलोचनाओ का सामना करना पड़ा। इतनी जानकारी पत्र-पत्रिकाओं मे छ्पी है। किन्तु ऐसा क्यों हुआ हम ज्योतिष के आधार पर देखेंगे।

धनु लग्न और कुम्भ राशि मे जन्मी रेखा घोर 'मंगली'हैं और उनके द्वादश भाव मे 'शुक्र'ग्रह स्थित है जिसने उन्हे परिवार व समाज से लाभ नहीं प्राप्त होने दिया है। उनके दशम भाव मे जो पिता,कर्म व राज्य का हेतु होता है -कन्या राशि का सूर्य है। इस भाव मे सूर्य की स्थिति उनकी माता और पिता के विचारों मे असमानता का द्योतक है। इसी सूर्य ने उनकी माता को उनके पिता से अलग रखा और इसी सूर्य ने उन्हें खुद को पिता,परिवार व कुल से लाभ नहीं मिलने दिया। तृतीय भाव मे चंद्र ने बैठ कर कुटुंब सुख को और कम किया तथा पति भाव-सप्तम मे बैठ कर 'केतू' ने पति-सुख से वंचित रखा। द्वादश भाव मे 'शुक्र' मंगल की वृश्चिक राशि मे स्थित है जो जीवन भर 'उपद्रव'कराने वाला है और इसी ने उन्हें व्यसनी भी बनाया।

लग्न मे बैठे 'मंगल' की दृष्टि ने वैवाहिक सुख तो नहीं मिलने दिया किन्तु कला-ज्ञान और धन की प्रचुरता उसी ने उपलब्ध कारवाई। लग्न मे ही बैठे 'राहू' ने उन्हें शारीरिक 'स्थूलता' प्रदान की थी जिसे उन्होने अपने प्रयासों से नियंत्रित कर लिया है। यही 'राहू'  उन्हें छोटी परंतु पैनी आँखें ,संकरा तथा अंदर खिचा हुआ सीना,चालाकी तथा ऐय्याशी भी प्रदान कर रहा है।

तृतीय भाव मे बैठा चंद्र 'रेखा' को अल्पभाषी,व म्रदुल व्यवहार वाला भी बना रहा है जिसके प्रभाव से वह कम से कम बोल कर अधिक से अधिक कार्य करके दिखा सकी हैं। अष्टम भाव मे उच्च का ब्रहस्पति उन्हें दीर्घायु भी प्रदान कर रहा है तथा धनवान व स्वस्थ भी रख रहा है।

राज योग 

दशम भाव मे कन्या राशि का सूर्य 'रेखा' को 'राज्य-भंग ' योग भी प्रदान कर रहा है। इसका अर्थ हुआ कि पहले उन्हें 'राज्य-सुख 'और 'राज्य से धन'प्राप्ति होगी फिर उसके बाद ही वह भंग हो सकता है। लग्न मे बैठा 'राहू' भी उन्हें राजनीति-निपुण बना रहा है। एकादश भाव मे बैठा उच्च का 'शनि' उन्हें 'कुशल प्रशासक' बनने की क्षमता प्रदान कर रहा है। नवम  भाव मे 'सिंह' राशि का होना जीवन के उत्तरार्द्ध मे सफलता का द्योतक है। अभी वह कुंडली के दशम भाव मे 58(मूल लेख 2012 का है ) वे वर्ष मे चल रही हैं और आगामी जन्मदिन के बाद एकादश भाव मे 59 वे वर्ष मे प्रवेश करेंगी। समय उनके लिए अनुकूल चल रहा है।

राज्येश'बुध' की महादशा मे 12 अगस्त 2010 से 23 फरवरी 2017 तक की अंतर्दशाये भाग्योदय कारक,अनुकूल सुखदायक और उन्नति प्रदान करने वाली हैं। 24 फरवरी 2017 से 29 जून 2017 तक बुध मे 'सूर्य' की अंतर्दशा रहेगी जो लाभदायक राज्योन्नति प्रदान करने वाली होगी।

अभी तक रेखा के किसी भी राजनीतिक रुझान की कोई जानकारी किसी भी माध्यम से प्रकाश मे नहीं आई है ,किन्तु उनकी कुंडली मे प्रबल राज्य-योग हैं। जब ग्रहों के दूसरे परिणाम चरितार्थ हुये हैं तो निश्चित रूप से इस राज्य-योग का भी लाभ मिलना ही चाहिए। हम 'रेखा' के राजनीतिक रूप से भी सफल होने की मंगलकामना करते हैं। 

Thursday, April 19, 2012

रेखा -राजनीति मे आने की सम्भावना---विजय राजबली माथुर

http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html 
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हिंदुस्तान,लखनऊ के 27-04-2012 अंक मे प्रकाशित सूचना-



शुभ समय ने अपना असर दिखाया और 'रेखा' जी को राज्य सभा मे पहुंचाया। हम उनकी सम्पूर्ण सफलता की कामना करते है और उम्मीद करते हैं कि वह 'तामिलनाडू' की मुख्य मंत्री पद को भी ज़रूर सुशोभित करेंगी।
27 अप्रैल,2012 

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शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

क्या घोंगावादी प्रवृती से जन -समर्थन मिल सकेगा ?

लखनऊ,03 अक्तूबर 2014 : कल गांधी/शास्त्री जयंती थी परंतु हम लोग 22-क़ैसर बाग,स्थित भाकपा कार्यालय पर पूर्व जिलामंत्री कामरेड बाबू खाँ साहब की 19 वीं पुण्य तिथि मनाने के लिए एकत्रित हुये थे।  विचार गोष्ठी की अध्यक्षता का भार वयोवृद्ध कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी के कंधों पर था। संचालन जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब ने किया। उन्होने बाबू खाँ साहब के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने हेतु सर्व प्रथम वयोवृद्ध कामरेड मुख्तार अहम्मद साहब को आमंत्रित किया।
मुख्तार साहब ने बाबू खाँ साहब के साथ काम करने के अनुभवों के आधार पर उनका सरल शब्दों में गूढ परिचय दिया। एक सादगी पसंद और नेक इंसान के रूप में उनको सदैव याद किया जाएगा ऐसी उम्मीद उन्होने ज़ाहिर की।

ओ पी अवस्थी साहब ने बताया कि उनकी जन्मतिथि उपलब्ध न होने के कारण उनकी पुण्य तिथि मनाई जा रही है। उन्होने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति के कार्यों का मूल्यांकन उसके जाने के बाद ही हो पाता है। 
मधुकर मौर्या ने नितांत निजी सम्बन्धों के आधार पर बाबू खाँ साहब का बेहद गुण गान किया। उन्होने कहा कि बाबू खाँ जैसा न कोई और कामरेड हुआ है और न आगे होगा। 

दीपा पांडे जी ने बचपन की यादें समेटते हुये बाबू खाँ साहब की विलक्षण मनोवैज्ञानिक क्षमता का उल्लेख किया कि किस प्रकार वह छोटे-छोटे बच्चों को प्रगतिशील विचार धारा की ओर मोड़ने में सक्षम रहते थे। छोटी-छोटी बातों के जरिये वह बड़ी-बड़ी बातों को सरलतम ढंग से समझाने में बड़े माहिर थे। दीपा जी ने बताया कि अबके कामरेड्स में इस गुण का आभाव होना ही कामरेड्स के बच्चों को अपनी विचार-धारा से दूर ले जा रहा है। उन्होने यह भी कहा कि लोग परिवारवाद की आलोचना करते हैं परंतु उनकी चिंता है कि जब कामरेड्स के अपने परिवार के ही सदस्य दूर जाएँगे तो हम दूसरे लोगों को कैसे अपने साथ जोड़ पाएंगे। उन्होने इसकी एक वजह यह भी बताई कि बच्चे जब यह देखते हैं कि उनके माता-पिता द्वारा त्याग करने के बावजूद पार्टी में उनकी कद्र नहीं है तो वे पार्टी से दूर रहने में ही भलाई समझते हैं जिसकी वजह से पार्टी सिकुड़ती जाती है। उन्होने अपेक्षा की कि पार्टी में  कामरेड्स की कद्र करने की ओर ध्यान दिया जाएगा और परिवारों के सदस्यों को भी विचार-धारा से जोड़ा जाएगा। सभी ने दीपा जी के सुझावों की सराहना की। 

कामरेड राजपाल यादव ने इस दोहे के साथ बात की शुरुआत की कि ---
"दुख में सुमिरन सब करें,सुख में करे  न कोय। 
जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे   होय । । "
उन्होने साफ-साफ कहा कि हमें निराश नहीं होना चाहिए और जीवन काल में ही कामरेड्स के गुणों को पहचान कर उनको सम्मान देना चाहिए। उन्होने कहा कि आदरणीय बाबू खाँ साहब जैसे और भी बहुत से कामरेड्स हमारे बीच में आज भी मौजूद हैं। इस कड़ी में उन्होने वर्तमान जिलामंत्री कामरेड मोहम्मद ख़ालिक़ साहब की तुलना पूर्व जिलामंत्री बाबू खाँ साहब से की। 

कामरेड विजय माथुर ने कहा कि हमें महापुरुषों का स्मरण उनके आचरण को अपने व्यवहार में उतारने का संकल्प लेकर करना चाहिए न कि उनकी यादगार सभा में केवल चाय -नाश्ता करके और कोरा गुण गान  करके खाना-पूर्ती करनी चाहिए। 
उन्होने  प्रारम्भ में  कामरेड नजीरुल हक साहब का लिखा वह नोट पढ़ कर सुनाया जिसमें हक साहब ने 27-28 सितंबर 2014 को इस्लामाबाद में 5 वामपंथी गुटों के द्वारा मिल कर एक 'पाकिस्तान वर्कर्स अवामी पार्टी' बनाने की सूचना दी थी और भारतीय वामपंथियों का आह्वान किया था कि 'दुनिया के मजदूरों एक हो का स्लोगन देने वाले खुद तो एक हो'। http://vijai-vidrohi.blogspot.in/2014/09/duniya-ke-mazddoro-ek-ho-ka-slogan-dene.html
इसके बाद उन्होने किसान सभा व महिला सभा की कर्मठ नेत्री कामरेड अर्चना उपाध्याय जी द्वारा जारी नोट जिसमें उत्तर-प्रदेश भाकपा से सकारात्मक कदम उठाने की मांग की गई थी का ज़िक्र किया। दीपा पांडे जी ने सुझाव देते हुये कहा कि कामरेड माथुर को नजीरुल हक साहब का नोट 'मुक्ति संघर्ष' व 'पार्टी जीवन ' को प्रकाशनार्थ भेज देना चाहिए। उनका जवाब देते हुये कामरेड माथुर ने कहा कि 'मुक्ति संघर्ष' को भेज देंगे (प्रधान संपादक शमीम फैजी साहब को फेसबुक मेसेज के जरिये अब भेज दिया है ) लेकिन 'पार्टी जीवन ' नहीं छापेगा क्योंकि उसके कार्यकारी संपादक प्रदीप तेवारी उनके प्रति वितृष्णा भाव रखते हैं। उन्होने पार्टी की सिकुड़ती हुई स्थिति व गिरती हुई साख के लिए प्रदीप तेवारी को जिम्मेदार ठहराया। 
बीच में अनाधिकृत हस्तक्षेप करते हुये मधुकर मौर्या ने माथुर को बैठ जाने को कहा। उनको टोकते हुये राजपाल जी ने पूछा कि जब  सभा अध्यक्ष जी व जिलामंत्री जी कुछ नहीं कह रहे हैं तो मधुकर मौर्या किस हैसियत से हस्तक्षेप कर रहे हैं। इस पर अध्यक्ष जी व जिलामंत्री जी ने कामरेड माथुर को अपनी बात जारी रखने को कहा। किन्तु कामरेड माथुर ने यह कहते हुये कि --- 'सोते हुओं को तो जगाया जा सकता है लेकिन जो जागते हुये सोने का उपक्रम करें उनके लिए वह अब एक शब्द भी नहीं कहेंगे। जब इंसान उनको सुनने के लिए तैयार नहीं हैं तो दीवारों को सुनाने का कुछ फायदा नहीं है' ---आगे बोलने से इंकार कर दिया। *

कामरेड ख़ालिक़ साहब ने अपने मार्मिक उद्बोद्धन में बाबू खाँ साहब को निर्भीक,साहसी और ईमानदार नेता बताया। उन्होने ज़िक्र किया कि बाबू खाँ साहब कहते थे कि 'प' अक्षर से सावधान रहना चाहिए जैसे-पड़ौसी,पार्टी,पैसा,प्रचार,'प' अक्षर वाले आदमी आदि। ख़ालिक़ साहब ने बताया कि वह सबकी निस्स्वार्थ भाव से मदद करते थे और उनको किसी प्रकार का लालच नहीं था। बेहद सादगी से रहते हुये वह दबंग विचारों के धनी थे। सरकारी अधिकारी उनकी इज्ज़त करते हुये काम कर देते थे। उन्होने कहा कि सच में हमें आज बाबू खाँ साहब के आदर्शों पर चलने की बहुत ज़रूरत है।

अंत में धन्यवाद देने से पूर्व सभा-अध्यक्ष आदरणीय कामरेड शिव प्रकाश तिवारी जी ने कामरेड बाबू खाँ साहब के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर व्यापक प्रकाश डाला। उन्होने इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए कामरेड ख़ालिक़ को विशेष धन्यवाद भी दिया। उन्होने कहा कि बाबू खाँ साहब में न तो लालच था और न ही घमंड जिस वजह से वह हमेशा कामयाब रहे। लेकिन अब के कामरेड्स उनके आचरण को अपने जीवन में उतारना ही नहीं चाहते। उन्होने युवा साथी राजपाल यादव की इस बात के लिए भूरी-भूरी प्रशंसा की कि उन्होने लखनऊ पूर्व से चुनाव लड़ कर पार्टी का झण्डा और पहचान घर-घर फिर से पहुंचा दी। उन्होने राजपाल यादव को पार्टी के लिए आशा की एक किरण बताया। उन्होने अशोक मिश्रा जी की प्रशंसा करते हुये कहा कि जब वह जिलामंत्री थे तो उन्होने उनकी काफी सहायता की थी। शिव प्रकाश जी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और किसानसभा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड अतुल अंजान को पार्टी की 'रीढ़' बताया। उन्होने कामरेड हरीश तिवारी के दामाद के भाजपा नेता होने का ज़िक्र करते हुये कहा कि कामरेड्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी सन्तानें भी पार्टी की विचार-धारा को ही आगे बढ़ाएँ इसके लिए पार्टी में सभी कामरेड्स को समान महत्व दिये जाने की उन्होने आवश्यकता बताई। पार्टी के सिकुड़ते जाने के लिए उन्होने कुछ नेताओं के अहंकार और स्टेटस को उत्तरदाई माना। इस दुर्वस्था से निकाल कर पार्टी को जनता के बीच ले जाने की ज़रूरत पर उन्होने ज़ोर दिया। 
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* ज्ञातव्य है कि मधुकर मौर्या डॉ गिरीश शर्मा/प्रदीप तेवारी गुट की ओर से जिलामंत्री पद के संभावित प्रत्याशी हैं और इसी अहंकार में अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपना कर प्रदीप तेवारी के प्रति अपनी निजी वफादारी का प्रदर्शन कर रहे थे। उनकी पुत्री AISF की प्रदेश कोषाध्यक्ष है  और प्रदीप तेवारी AISF के प्रदेश इंचार्ज जिस कारण भी उनको प्रदीप की तरफदारी करना  भी बेहद ज़रूरी था। 

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मंगलवार, 30 सितंबर 2014

हश्र क्या हुआ सफल रैली का ? ---विजय राजबली माथुर

30 सितंबर 2013 की सफल रैली की वर्षगांठ के अवसर पर विशेष :




मैंने गत वर्ष 30 सितंबर 2013 की सफल रैली के बाद डॉ साहब को आगाह करने का प्रयास किया था। :
"जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  "
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/3-30.html

मेरे इस आंकलन  का कारण  प्रदीप तेवारी  द्वारा  डॉ साहब पर रैली के संबंध में किया गया यह व्यंग्य है कि वह ग्लैमर में लगे रहते हैं : रैली निकालना उनके बूते की बात नहीं है। जबकि रैली के मंच से राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान साहब ने इस रैली को 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली रैली' की संज्ञा दी थी। किन्तु तेवारी साहब अपने दबदबे से 'अंजान' साहब के विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान चलाते रहते हैं उनकी एक पोस्ट  लगाने के कारण ही मुझे पार्टी ब्लाग के एडमिन व आथरशिप से उन्होने मुझे हटा दिया था जिस कारण मुझे 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग निकालना पड़ा। 

यह  है पिछली पोस्ट  का एक अंश। कहने की आवश्यकता नहीं है  कि उस सफल  रैली  के बाद मैंने जो आंकलन  किया था वह  शतशः सही निकला  है। डॉ साहब  रमेश कटारा  के नए अवतार  प्रदीप तेवारी  के पूर्ण प्रभाव में उसी प्रकार हैं जिस प्रकार 1992 में आगरा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी  रमेश कटारा के प्रभाव में थे। आगरा में सम्पन्न हुई राज्य काउंसिल के लिए  रमेश कटारा हेतु पार्टी का समर्थन हासिल न कर पाने पर मिश्रा जी ने केंद्रीय कंट्रोल कमीशन के चेयरमेन कामरेड काली शंकर शुक्ला जी से जातिवाद का प्रभाव डाल कर रमेश कटारा को राज्य कंट्रोल कमीशन में नामित करा दिया था। और इसकी कीमत मिश्रा जी को जिलमंत्री पद से नौ वर्ष लगातार वंचित रह कर चुकानी पड़ी थी। 'बोध' होने पर उन्होने रमेश कटारा को पार्टी से निष्कासित करा दिया था एवं पुनः नौ वर्ष आगरा के जिलामंत्री पद पर आसीन रहे ,आज भी वहाँ सर्वमान्य हैं लेकिन इस स्वीकृति हेतु उनको अपनी भूल को सुधारना पड़ा था। 

आज अभी तक  द्वितीय रमेश कटारा:प्रदीप  तेवारी का नशा डॉ साहब के सिर चढ़ कर बोल रहा है। जब पिछली पोस्ट मैंने उनको टैग करना चाहा तो ज्ञात हुआ कि सुबह बर्द्धन जी के जन्मदिन वाली पोस्ट मेरे लगाने के बाद उन्होने खिन्न होकर वह पोस्ट हटा कर मुझे फेसबुक पर ब्लाक कर दिया है। एक तरफ 16 सितंबर 2014 को उन्होने यह स्टेटस दिया था।:















 
http://vijaimathur.blogspot.in/2014/09/blog-post_28.html
कहाँ तो डॉ साहब ' वामपंथियों को जल्द से जल्द ' वास्तविक तथ्य को समझ लेने का आव्हान कर रहे हैं और एकता के पक्ष में सहमति दे रहे हैं लेकिन खुद ही वास्तविकता से आँखें मूँद कर मात्र प्रदीप के मोह में वैसे ही जनता से सिकुड़ी हुई पार्टी को जनोन्मुखी बनाने की बजाए कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न में प्रदीप की पक्षधरता कर रहे हैं। फेसबुक पर मुझे ब्लाक करना उसी कड़ी का पहला कदम है और प्रदीप द्वारा मुझे पार्टी ब्लाग की एडमिनशिप से हटाने के कृत्य पर सार्वजनिक रूप से मोहर भी (प्रदीप ने ब्लाग चलाने के छह वर्ष तक न तो शास्त्री जी को न ही डॉ साहब को ब्लाग एडमिन बनाया था बल्कि मैंने न केवल डॉ साहब वरन अरविंद राज जी को भी निवेदन करके ब्लाग एडमिन बनवा दिया था जो कि प्रदीप को खूब अखरा भी था )।प्रदीप उनके फेसबुक पर आने का भी विरोधी था मैंने ही उनको फेसबुक पर आने व सक्रिय होने में सक्रिय सहयोग दिया था। उनको तमाम ग्रुप्स में शामिल किया व अपनी मित्र सूची से उनको फ्रेंड्स सजेस्ट किए थे। जब चल गए तो प्रदीप की गोद में बैठ कर उसके इशारों पर चलने लगे न अपने पद की गरिमा का ख्याल किया न ही व्यक्तिगत कोई ज़रा सा भी लिहाज।  हो सकता है ज़िला सम्मेलन से पूर्व वह मुझे पार्टी से निष्कासित करवाने का  कदम उठा कर प्रदीप को और भी खुश करें। पुरानी कहावत है :'काजर की कोठरी  में कैसे हु सयानों जाये एक लीक काजर की लागिहे पे लागिहे । ' यही बात डॉ साहब पर अब बखूबी चस्पा हो रही है। जब वह  हाथरस से रामवीर उपाध्याय के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे थे तब ब्राह्मण बहुल क्षेत्र में 'डॉ गिरीश' नाम से किन्तु पोंगापंथी प्रदीप से प्रभावित होकर अब :
13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक के तुरंत बाद डॉ साहब ने प्रदीप की उपस्थिती में ही अंजान साहब को बताया था कि एक दिन पूर्व जब वह बांदा जा रहे थे उनकी जीप का विंड मिरर धमाके के साथ ब्लास्ट कर गया था और उसके काँच के घाव उनके शरीर पर भी थे जिन्हे उन्होने अंजान साहब को दिखाया भी था। संभवतः यह प्रदीप की कोई 'तांत्रिक करामात' ही होगी जिसने डॉ साहब के दिमाग को उसी प्रकार अपने कब्जे में कर रखा है जिस प्रकार तब रमेश कटारा ने रमेश मिश्रा जी के साथ कर रखा था।डॉ साहब ने स्वतः ही अंजान साहब को अपनी यह खूबी भी बताई थी कि उन्होने फारवर्ड ब्लाक के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम किशोर जी को उनकी पार्टी से निकलवा दिया है । उन्होने उनको अपने सेक्रेटरी से सफलता पूर्वक भिड़ा दिया था। बड़े ही गर्व के साथ डॉ साहब ने यह भी बताया था कि फारवर्ड ब्लाक के  नए प्रदेश अध्यक्ष और सेक्रेटरी को उन्होने अलग-अलग अपने कब्जे में कर रखा है। 
  जी पी ओ पार्क,लखनऊ स्थित गांधी प्रतिमा पर महिला फेडरेशन के एक धरने  के दौरान डॉ साहब ने प्रदीप व मेरे मध्य साँप-नेवले के संबंध की बात कही थी। कहाँ तो प्रदीप प्रदेश कोषाध्यक्ष और कहाँ मैं ज़िला काउंसिल का सदस्य दोनों के मध्य प्रतिद्वंदिता अथवा समानता की बात ही कहाँ थी? परंतु डॉ साहब ऐसी तुलना कर रहे थे क्यों? 
मई 2012 में डॉ साहब ने खुद अपनी जन्मपत्री का व 06-11-12 को अपनी पत्नी की जन्मपत्री का तथा प्रदीप ने 12-11-12 को अपनी पुत्री की जन्मपत्री का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था । किन्तु ये दोनों उसी प्रकार मेरा अनर्गल विरोध कर रहे हैं जिस प्रकार प्रदीप की भाभी की मित्र पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट ब्लागर ने चार जन्मपत्रियों  का निशुल्क विश्लेषण प्राप्त करके ब्लाग जगत में किया था। क्या एक निकृष्ट ब्लागर और इन बड़े राजनेताओं में कोई फर्क नहीं होना चाहिए था?

 परंतु गलत व्यक्ति को लाभ पहुंचा कर न तो पार्टी को मजबूत बनाया जा सकता है न ही जनता के मध्य लोकप्रिय। 
http://communistvijai.blogspot.in/2013/12/blog-post_24.html

Tuesday, 24 December 2013


अवाम की आवाज़ और चेहरा :लखनऊ की शान और उत्तर प्रदेश का सितारा - अतुल अनजान:

"कामरेड अतुल अनजान लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और AISF के भी पूर्व अध्यक्ष तो हैं ही। वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के 'राष्ट्रीय सचिव' तथा AIKS-अखिल भारतीय किसानसभा के 'राष्ट्रीय महामंत्री हैं'।  न केवल अपनी ओजस्वी वाक-शैली वरन जनता के मर्म को समझने वाले एक जन-प्रिय नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। 

यदि भाकपा केंद्रीय नेतृत्व उनके राष्ट्रीय कृत्यों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में पार्टी के पथ -प्रदर्शक के रूप में उनको अतिरिक्त भार  दे दे  तो पार्टी को अत्यंत लाभ हो सकता है। "  

मेरी उपरोक्त पोस्ट भी डॉ साहब व प्रदीप को नागवार गुज़री थी किन्तु यह हकीकत है कि यदि उत्तर-प्रदेश में भाकपा को मजबूत करना है तो अंजान साहब का सहयोग लेना ही पड़ेगा जो कि डॉ साहब व प्रदीप गठबंधन के पूर्वाग्रहों के कारण संभव नहीं है क्योंकि अंजान साहब की मौजूदगी में प्रदीप निर्बाध मनमानी नहीं चला सकेगा जैसी की डॉ साहब की कृपा से अभी चला रहा है और पार्टी को निरंतर सिकोड़ता जा रहा है। 

उदारता एक मानवीय गुण है सभी को उदार होना चाहिए किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। :

विगत वर्ष (30 सितंबर 2013 ) को आगरा के एक वरिष्ठ कामरेड  साहब से  रैली स्थल पर भेंट हुई थी तब वह मंच की ओर पीठ कर के खड़े हुये थे(जबकि आगरा में मैंने उनके व डॉ साहब के  मध्य मधुर संबंध देखे थे )।  इस दृष्टांत से पूर्व जिलामंत्री  डॉ जवाहर सिंह धाकरे साहब द्वारा दी गई इस जानकारी की पुष्टि हो गई कि चंडीगढ़ के महिला फेडरेशन के कार्यक्रम हेतु ट्रेन में जाते समय उन वरिष्ठ कामरेड की कामरेड पत्नी को  डॉ साहब अभद्र व अश्लील चुट्कुले सुनाते गए थे। आगरा के तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी ने तबके प्रदेश सहायक सचिव डॉ साहब को इस बात के लिए कड़ी फटकार लगाई थी और भविष्य में फिर ऐसा न करने का आश्वासन देकर डॉ साहब ने पिंड छुड़ाया था। फिर भी इस जानकारी के बावजूद  भी मैंने लखनऊ में उनके प्रति उनके द्वारा बताई बात कि उनकी बीमारी के कारण यहाँ के कामरेड्स उनसे घृणा करते हैं उनके प्रति उदार रवैया अपनाया था । किन्तु डॉ साहब उस उदारता हेतु अनुकूल पात्र नहीं निकले। 

डॉ साहब के रुष्ट होने का एक बड़ा कारण उनके एक फेसबुक मित्र को 07 अगस्त को भेजा मेरा यह संदेश भी हो सकता है :

"आदरणीय कामरेड, लाल सलाम, उम्मीद है कि आप सपरिवार कुशल-मंगल होंगे। कुछ ज़रूरी सूचना देना चाहता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप अन्यथा न लेंगे। 05 अगस्त को एक प्रो ए के सिंह (का. अशोक कुमार सेठ ) आए थे और लगभग ढाई घंटे बैठे थे । आते ही उनका कहना था कि डॉ गिरीश जी के आदेश से आए हैं व उनको मेरा फोन न . कामरेड ख़ालिक़ ने दिया था। उनकी तमाम बातों का लबबों-लुआब यह था कि मुझको कामरेड अतुल अंजान साहब का विरोध करना चाहिए। चुप-चाप उनकी सारी बातें सुन ली किन्तु जब उनके द्वारा प्रदीप तिवारी की बात सुनी तो मैंने उनको स्पष्ट कर दिया था कि वही पार्टी को क्षति पहुंचा रहा है और कामरेड अंजान साहब नहीं। फिर कल 06 अगस्त को उनका फोन आया कि पार्टी आफिस में उनकी डेढ़ घंटे गिरीश जी से बातें हुईं व वह प्रदीप का ठोस समर्थन कर रहे हैं। आप लोग अतुल जी का विरोध करें या प्रदीप तिवारी का समर्थन करें इसमें मेरा तो कोई वास्ता नहीं है। किन्तु मैं भी अतुल जी का विरोध करूँ इसकी क्या ज़रूरत है ?मैं ऐसा नहीं कर सकता। हाँ मैं प्रदीप तिवारी का विरोध करता रहूँगा क्योंकि उस कमबख्त ने 13 जूलाई 2013 की ज़िला काउंसिल बैठक में मेरे पेट में न केवल उँगलियाँ भोंकी बल्कि मेरे पैरों पर अपनी लातों से भी प्रहार किया था। मुझे मालूम चला है कि प्रदीप मुझे पार्टी से निष्कासित कराना चाहता है और वह ऐसा कर सकता है। मोहम्मद ख़ालिक़ या अकरम की तरह मेरी कोई दूकानदारी पार्टी के दम पर नहीं चल रही है और न ही पार्टी के दम पर प्रदीप की तरह मैं किसी बैंक मेनेजर या व्यापारियों को ब्लैकमेल कर रहा हूँ जो मुझे निष्कासित होने पर घाटा हो जाएगा। उस सूरत में मैं तो प्रदीप तिवारी के विरुद्ध FIR करने के लिए स्वतंत्र हो जाऊंगा। आपसे सानुरोध विनम्र प्रार्थना है कि डॉ गिरीश जी से कहें कि जिस प्रकार उन्होने प्रो साहब को मेरे पास आने का आदेश दिया है उसी प्रकार उनको मुझसे मिलने से मना कर दें। वरना उनका फोन आने पर मैं खुद तो मना कर ही दूँगा और घर पर फिर भी आ गए तो उसी प्रकार बैरंग कर दिया जाएगा  जिस प्रकार प्रदीप तिवारी के इशारे पर आने वाले कामरेड राम किशोर जी को प्रतिबंधित कर दिया है। अपने ब्लाग्स व फेसबुक के माध्यम से मैं प्रदीप तिवारी का विरोध व अतुल अंजान साहब का समर्थन जारी रखूँगा। उसके लिए डॉ गिरीश जी की बात नहीं मानी जा सकती हैं। वैसे व्यक्तिगत रूप से डॉ गिरीश जी का सम्मान करता रहूँगा। धन्यवाद।"

(इस  पूरे मेसेज को डॉ साहब द्वारा सेठ साहब को पहुंचा दिया गया था जैसा कि सेठ साहब ने 24 अगस्त की काउंसिल बैठक के बाद ज़िक्र किया था।क्या यह डॉ साहब के ओहदे के अनुकूल प्रक्रिया हुई?) 

 अब आज 30 सितंबर 2013 की सफल रैली की वर्षगांठ के अवसर पर विगत एक वर्ष की असफलताओं का लेखा-जोखा करते हुये भविष्य में उनसे बचाने व सुधार का संकल्प लेना चाहिए; तभी भाकपा का भविष्य उज्ज्वल बनाया जा सकता है।

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