सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष (१३ )

डॉ. मिश्री  लाल झा - मेरे ज्वाईनिंग के वक्त सरू स्मेल्टिंग के पर्सोनेल मेनेजर थे और कंकर-खेडा में रहते थे.तब वहां गैस- सर्विस नहीं थी.हम लोगों के मिलेटरी क्वार्टर तक केंट  में आई.ओ.सी.की सर्विस थी. डॉ. झा ने हमारे घर का पता दे कर गैस सुविधा का लाभ उठा लिया. वह और उनकी श्रीमती जी हमारे माता-पिता का पूर्ण सम्मान करते थे.बहन से मिसेज झा पढ़ाई में भी सहायता ले लेती थीं.शोभा रेगुलर थी वह प्राईवेट थीं.पहली बड़ी बेटी के बाद जब उनकी दो जुड़वां बेटियां हुईं तो उन्होंने शानदार दावत दी थी.मालिकों और मैनेजरों को आमंत्रित किया था मुझे माता-पिता-बहन समेत व्यक्तिगत रूप से बुलाया था.अजय तो आगरा में मेकेनिकल इन्जीनीरियिंग की पढ़ाई कर रहा था वहां नहीं था.बउआ -बाबूजी न खुद गए न शोभा को भेजा.मैं तो पहले से मदद करने हेतु उनकी इच्छा के अनुरूप गया था.जब दावत ख़त्म होने तक ये लोग नहीं पहुंचे तो झा सा :ने खीर-पुरी आदि समस्त भोजन टिफिन करियर में पैक कर उनके लिए मेरे हाथ भेजा था बिलकुल जबरदस्ती.
अगले दिन बहन को लेकर बउआ धन्यवाद देने उनके घर गईं.श्रीमती झा रांची की थीं और डॉ. सा :की ही तरह उनका व्यवहार भी अच्छा था.
सरू स्मेल्टिंग छोड़ कर झा सा :गुडगाँव चले गए थे ,परिवार मेरठ में ही था.अतः मेरठ यूनिवर्सिटी खुलते ही उन्होंने ए.आर.के रूप में वहां ज्वाईन कर लिया.उन्होंने मुझे भी अपने साथ ले जाने का प्रयास किया लेकिन गलती से उन्होंने हमारे यूनियन प्रेसिडेंट को बता दिया जिसने पलीता लगा दिया और उनके प्रयास विफल हो गये.उनके साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध अपरिवर्तित रहे. वह यूनिवर्सिटी केम्पस में रहने लगे तब भी संपर्क बना रहा और जब आगरा के अजय के सहपाठी की बहन की मार्क-शीट में कुछ प्राब्लम आई तो झा सा :के कारण चुटकियों में कार्य संपन्न हो गया.
इधर यूनियन के इन्टरनल मामलों में प्रेसीडेंट की गतिविधियों के चलते मैंने उसके विपक्षी नेताओं को समर्थन दे दिया.लेकिन वे लोग समझदार नहीं थे.यूनियन के आधार स्तम्भ वकील एस.पी.सहगल सा:थे.वह प्रेसिडेंट को सपोर्ट करते थे.प्रेसिडेंट ने मेनेजमेंट से मिल कर मुझे सस्पेंड करा दिया और खाना-पूर्ती की इंक्वायरी के बाद मेरी सेवाएं समाप्त कर दी गईं.
मेरे सस्पेंशन काल में सीनियर लेखाधिकारी गौड़ सा : ने अपना पुत्र होने के उपलक्ष्य में दावत दी.उन्होंने मेनेजमेंट के साथ स्टाफ को भी बुलाया था. मुझे व्यक्तिगत रूप से बुलाया था.तब तक हमारे माता-पिता,बहन आगरा जा चुके थे क्योंकि अजय की दिक्कत की वजह से बाबूजी ने अपने खर्च पर आगरा ट्रांसफर करा लिया था.वैसे श्रीमती गौड़ भी मेरी बहन से पढ़ाई में मदद लेती थीं ,वह भी प्राईवेट थीं.इत्तिफाक की बात है ,गौड़ सा :भी उसी माकन में रह रहे थे जिसमें कभी झा  सा :रहते थे.जैसे झा सा :की पार्टी के बाद उनकी सर्विस गई उसी प्रकार की स्थिति गौड़ सा :के साथ भी बन गई एवं मेरे आगरा पहुँच जाने के बाद गौड़ सा :को भी हटा दिया गया.
गौड़ सा :के मित्र कंकर-खेडा टाउन एरिया कमेटी के सदस्य थे उनसे हमारे बाबूजी का पता वेरीफाई करा दिया था जिस   कारण राशन कार्ड सुगमता से बन गया था.उनके घर भी हम-लोगों का आना-जाना था.वे लोग भी अच्छे व्यवहार वाले थे.मुझे कं.में प्रोमोशन दिलाने में गौड़ सा :की मुख्य भूमिका थी और श्री भल्ला ने स्ट्रोगली रिकमेंड किया था.
१९७२ में मेरे सर्विस करने के बाद जब 'एशिया ७२' चल रहा था दिल्ली जाना हुआ.हुआ यह था कि मौसी बीमार तो चल ही रही थीं उनके एक बेटे महेश ने (बाद में उसकी भी मृत्यु हो गयी ) बउआ को पोस्ट कार्ड पर लिख कर भेजा था कि, माँ बहुत बीमार हैं मौसी आकर देख जाओ .बउआ और मैं गए थे.महेश के पत्र भेजने की बात मौसाजी एवं मौसी को मालूम नहीं थी.दो-तीन रोज वहां रहे थे.गोपाल (अब इनकी भी मृत्यु हो चुकी है),रमेश और महेश को मैं 'एशिया ७२ 'दिखने ले गया था.पहली बार अपने से छोटों पर खर्च करने का मौका मिला था.
मौसी को देखने नानाजी भी आये थे ,वहां से मेरठ भी हम लोगों के इस क्वार्टर में भी आये ,कुछ दिन रुक कर फिर दिल्ली होकर दोबारा मौसी से मिल कर शाहजहांपुर वापिस गए.
भुआ-फूफा जी भी इस क्वार्टर में आये थे तथा और भी थोडा विवरण मेरठ का अगली बार ......




























 

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शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष (१२)

मैंने हाईस्कूल पास करते ही कामर्स छोड़ दी थी,लेकिन यहाँ एम्.डी.सा :ने कहा हमारे पास एकाउंट्स में ही जगह है वहीं काम करो.वजह यह थी कि(ये सब बातें बाद में पता चलीं),लेखाकार श्री वी.पी.अग्रवाल एक को छोड़ कर सारे स्टाफ को अपने साथ मोदी रबर में ले गए थे.एक श्री हंस कुमार जैन नहीं गए थे क्योंकि यह जैनियों की फर्म थी.हंस कुमार जी मैनजर श्री लेख राज प्रूथी (जो पी.एन.बी.के अवकाश प्राप्त मैनजर थे)को प्राईवेट काम की जानकारी न होने के कारण परेशान करते थे,मुझे भी बौड़म सिद्ध करने के खेल में लग गए.लेजर मुझे टोटल करने को दिया -पेन्सिल से.मेरे टोटल कर देने के बाद वह रबर से अंकों में फेर-बदल करके मैनेजर सा :को दिखा कर कहते जो आदमी सही जोड़-घटाव नहीं कर सकता वह यहाँ क्या काम करेगा.दो-तीन दिन के बाद प्रूथी सा :ने मुझे खाली बैठे रहने को कहा,वह दिन तो वैसे ही गुजरा और शाम को बाबूजी से सब बातें बताईं.बाबूजी ने सलाह दी कि,मैनेजर सा:से पुरानी फाईलें पढने की इजाजत  ले कर पढो और समझो.प्रूथी सा:ने सहर्ष परमीशन दे दी.तीन दिनों के अध्ययन से वाउचर बनाना आ गया और उनसे आग्रह किया मुझे भी वाउचर बनाने दें.ट्रायल के लिए दो-दो,तीन-तीन वाउचर मुझे देते रहे ठीक पाते  जाने पर सं.बढ़ाते रहे.एक हफ्ते बाद हंस कुमार जी ने प्रूथी सा :को कहा आपके और माथुर के बीच में मैं हूँ मेरे जरिये चेक करा कर वाउचर पास करिए.  उन्होंने स्वीकार कर लिया.धीरे-धीरे हंस कुमार जी मुझ पर वाउचरों का बोझ बढ़ाते गए,अंततः वह चेकर बन  गए और मैं प्रिपेयर .बाबूजी ने कहा गधे की तरह काम अपने ऊपर लाद लो परफेक्ट हो जाओगे.मैंने वही किया.अब तो जो हंस कुमार जी मुझे उखाड़ने जा रहे थे वही मुझे अपना प्रिय बताने लगे ,मैं आज्ञाकारी सहायक जो था.लेकिन उनके तथा मैनेजर सा :के झगडे में मैं मैनेजर सा:के साथ रहता था.हंस जी को काम करने की आदत छूट गयी थी मुझ पर निर्भर थे लिहाजा झुक जाते थे.इस प्रकार प्रूथी सा :का वजन भी बढ़ता गया उन्हें एम्.डी.सा :का वरद-हस्त था (दोनों टेनिस क्लब के साथी थे)वही उन्हें अपनी गाडी में बैठा कर चार्ज दिलाने लाये थे.मुझ पर अत्यधिक काम का बोझ देख कर प्रूथी सा :ने दो और लोग भर्ती करा लिए,एक एम्.डी .सा :और एक चेयरमैन सा :के परिचित के पुत्र थे.हंस कुमारजी ने मैनेजर सा :को परेशान करने का नया रास्ता निकाला कि,जेनरल मैनेजर और डायरेक्टर मुल्तान सिंह जैन सा : से उन्हें अपमानित कराने लगे.टाईम-कीपर सुरजीत सिंह पाबला के पिताजी जो जसवंत शुगर मिल में बौइलर इंचार्ज थे के माध्यम से प्रूथी सा :ने वहां सी.ई.ओ.के रूप में ज्वाईन कर लिया;उन्होंने मुझे भी अपने साथ ले जाने का प्रयास किया परन्तु मैं जा न सका क्योंकि वह फैक्टरी काफी दूर थी और यहाँ तो बस रेलवे लाईन पार की आ गए.
महेश नानाजी प्रमोशन पर डिप्टी चीफ इन्स्पेक्टर आफ फैक्टरीज होकर कानपूर चले गए थे.उनके मित्र यहाँ के फैक्टरी मैनेजर श्री महेंद्र पाल सिंह जैन तथा पर्सोनल आफीसर डा.मिश्री लाल झा भी स्तीफा देकर जा चुके थे.उन दोनों साथियों की सपोर्ट थी और मैं जैक-विहीन था.हंस कुमार जी ने जो अब लेखाकार बन चुके थे चाल फेंकी और नए फैक्टरी मैनेजर के मार्फ़त तीनों से स्तीफा देकर फ्रेश ज्वाईन कराने को कहा.बाकी दोनों ने वैसा ही किया ,मैंने इनकार कर दिया.ऍफ़.एम्.ने मुझे शो काज नोटिस मनगढ़ंत आरोप लगा कर दे दिया. मैंने डा. झा से संपर्क किया उन्हें यहाँ के मैनेजमेंट से खार तो थी ही,जबरदस्त जवाब लिखवा दिया और एम्.पी. जैन सा :से राय लेने को कहा ,उन्होंने भी झा सा :द्वारा लिखवाया जवाब ओ.के.कर दिया.मैंने हस्त-लिपि में वह ऍफ़.एम्.सा :को दे दिया.वह उठ कर मेरे पास आये और बाहर बुलाकर ले गए तथा कहा कि,तुम भी कायस्थ -मैं भी मुझ से क्यों लड़ते हो?मैंने जवाब दिया सा :यही बात तो शो काज देते वक्त भी थी,फिर आपने क्यों दिया?बोले अच्छा अब सब कागज़ फाड़ देते हैं.मैंने अपना रिकार्ड देने से इनकार करते हुए कहा आप अपने आफिस के कागज़ फाड़ दें मैं अपने पास रखूँगा लेकिन इस्तेमाल नहीं करूंगा.श्री ब्रिजेन्द्र कुमार अखोरी ने न केवल मेरी बात मान ली बल्कि भविष्य में पूर्ण सहयोग का आश्वासन भी दिया.उधर यूनियन नेताओं को लगा जो अकेला डटा रहा उसे अपने साथ लाया जाए उन्होंने मुझे दो माह पहले की सदस्यता देकर कार्यकारिणी में शामिल कर लिया.इस प्रकार ट्रेड यूनियन गतिविधियों में भाग लेकर दूसरों की भलाई करने का मौका भी मिल गया.
श्री अखोरी कानपुर के थे वह आई.एस.आई.के किसी बड़े अधिकारी की सिफारिश से आये थे. यूनियन  के साथ समझौते में उन्होंने श्रमिकों को लाभदायक स्थिति में आने दिया था. मैनेजमेंट की आँख की किरकिरी बन गए थे.फरीदाबाद में नेशनल बंगाल टेक्सटाईल्स में सीनिअर पर्सोनेल आफिसर बन कर चले गए. उनके लिए फेयरवेल एड्रेस यूनियन प्रेसिडेंट ने मुझ से लिखवाया था. उन्हें यह भी पता चल गया था.उन्होंने मुझे व्यक्तिगत रूप से बुला कर अपने साथ वहां चलने का आफर दिया.वेतन रु.६०० प्रतिमाह देने का आश्वासन था. अपनी भांजी से शादी करवाना भी चाहते थे. बिना घर में पूंछे तत्काल उनके प्रस्ताव रद्द कर दिए थे.
हंस कुमार जैन के ऊपर सीनियर लेखाकार श्री नन्द किशोर गौड़ आ गए थे.उन्होंने हम तीनों स्टाफ साथियों को सपोर्ट किया,उनके प्रयास से मेरा वेतन और ग्रेड बढ़ गया.कुछ समय बाद उनके भी ऊपर एक लेखाधिकारी श्री अरुण कुमार भल्ला आ गए ये दोनों अफसर स्टाफ के साथ तालमेल करके चलते थे.अब हंस कुमार जैन की तूती बोलना बंद हो गयी थी. वह भी हम लोगों से तालमेल बिठाने लगे थे.भल्ला जी बड़े स्वाभिमानी थे. हम लोगों से कहते थे,नौकरी करनी है लेकिन दब के नहीं करनी है.वह डा.झा की इस उक्ति से सहमत थे कि बनिया,नीम्बू और गन्ना दबाने से ही रस देते हैं.एक बार एम्.डी.सा :उनकी सीट पर बैठ गए उन्होंने रिजायीन कर दिया और नोटिस पीरियड (तीन माह) अलग स्टूल पर बैठ कर काम किया.उन्होंने सुमीतो मो कोशी जापान (या नाम कुछ और हो सकता है) में डिप्टी जेनरल मेनेजर फायीनान्स के रूप में दिल्ली में ज्वाईन कर लिया.जब हम कुछ लोग उनसे वहां मिले तो उन्होंने रिसेप्शन पर हमारे साथ सोफे पर बैठ कर बातें कीं और वहीं खुद भी हम लोगों के साथ साफ्ट ड्रिंक लिया,क्योंकि यदि वह आफिस में बैठे रहते तो अपनी सीट पर होते और हम सामने अतिथि के रूप में.वह मेरठ में थे तब भी कहते थे-सुबह नौ से पहले और शाम पांच के बाद हम सब मित्र हैं कोई छोटा- बड़ा नहीं है.हम लोग उनका सम्मान करते थे तो उन्होंने बीच का रास्ता यह निकाला कि उम्र में बड़े होने के कारण उन्हें भाई सा :संबोधन दे सकते हैं.बहुत काम सीखा भल्ला जी एवं गौड़ सा :से .डा. झा तथा गौड़ सा :मेरे माता-पिता का भी सम्मान करते थे उनसे घरेलू आना-जाना भी था.ये बातें अगली बार......

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सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष(११)

जब हम लोग रूडकी-रोड वाले क्वार्टर में ही थे तो २१ सितम्बर १९७० को एक दुर्घटना ने मेरी सोच में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया और मैं जिस ज्योतिष को स्वंय ढोंग-पाखण्ड कहता था ,उस पर विश्वास करने पर ही मजबूर नहीं हुआ बल्कि उसी को आज आजीविका क़े रूप में अपनाए हुये भी हूँ.हमारे घर में भी तब प्रचलित पूजा-पद्धति को ही माना जाता था.उस पर मुझे विश्वास इसलिए नहीं था क्योंकि सुने हुये प्रवचनों तथा पढ़े हुये सत्यार्थ-प्रकाश,धर्म और विज्ञान,रामायण का ऐतिहासिक महत्त्व,योगीराज श्री कृष्ण,अपराधी कौन?आदि ग्रन्थ मुझे प्रभावित करते थे.परन्तु माता-पिता की इच्छा का अनुपालन तो करना ही था,सो मन न होते हुये भी पालन करता ही था.बसंत-पंचमी पर बउआ हम तीनों भाई-बहनों से सरस्वती क़े चित्र पर फूल-बेर चढ़ा कर सूजी क़े हलवे का प्रशाद लगवाती थीं.एक बार शोभा से उन्होंने हलवा बनाने को कहा था और बहन ने सूजी समझ कर इससब गोल की भूँसी का हलवा बना दिया.इस हलवे को अजय और शोभा ने तो चखा मात्र मैंने ही समेटा.इसी प्रकार एक बार बउआ को बुखार आने पर मैंने जीरे से छुंके चावलों में अत्यधिक नमक डाल दिया था उस कारण  बाबूजी समेत भाई-बहन सभी को भूंखे -पेट ही जाना पड़ा.मैंने वह भात कुछ खा लिया था,नतीजतन कालेज में पल-पल पर पानी पीने भागना पड़ता रहा.बउआ की तबियत ठीक न रहने क़े कारण और शोभा का स्कूल दोपहर ११ से शाम ५ तक होने की वजह से हम लोग घरेलू काम में उन्हें मदद करते थे.राशन का गेंहूँ गन्दा और घुना होता था उसे साफ़ करने में काफी वक्त लगता था.१२ कि.गेंहूँ साफ़ करके उसे पिसवाने लाल कुर्ती से लौट रहा था और जिस कालोनी में क्वार्टर था उसके पहले गेट से अन्दर आने हेतु साईकिल दायें मोड़ी किन्तु हाथ का सिग्नल नहीं दिया था.सामने से तेज मोटर साईकिल जोर -जोर से हार्न बजाती आ रही थी उसकी भी परवाह नहीं की ,सीधे-सीधे गलती मेरी ही थी.जोर-दार टक्कर हुई .मेरी साईकिल गिरी मामूली टूटी लेकिन आटा आधा या ज्यादा ही बिखर गया.मोटर साईकिल सवार समेत सूखे नाले में गिर गई और ज्यादा नुक्सान हुआ.सवार व्यक्ति क़े काफी चोटें लगीं,खून भी बहने लगा.सामने ही बाबूजी क़े आफिस क़े एक एस.डी.ओ.सा :का क्वार्टर था उनके पास उनके मित्र ए.एम.सी.क़े डा.सा :आये हुये थे.तुरन्त अपनी जीप लेकर सड़क पर आ गये उस व्यक्ति को इंजेक्शन आदि लगाये,दवाएं दीं और मरहम-पट्टी कर दी.मुझे किसी चीज की कोई जरूरत ही नहीं थी.बस इसी घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि,मेरी गलती और मुझे मामूली झटका ही लेकिन उस व्यक्ति जिसकी कोई गलती ही न थी इतना तगड़ा झटका और शारीरिक क्षति साथ में वाहन की टूट-फूट अलग से ऐसा क्यों हुआ.आटा बिखरने और साईकिल की मरम्मत  से आर्थिक क्षति बाबूजी को हुई उनकी भी गलती न थी.बाबूजी ने दो-तीन दिन मुझे कालेज नहीं जाने दिया.मेरे लिये क्लब से पुराने अखबार लाते थे मैं उन्हें ही पढ़ते -पढ़ते नवभारत-टाईम्स में  रतन लाल शास्त्री 'रत्नाम्बर'क़े दैनिक भविष्य फल (जो कभी नहीं देखता था)पर पहुंचा और देख कर बेहद आश्चर्य हुआ कि उस दिन यानि कि २१ सितम्बर १९७० को बाबूजी क़े राशिफल में आर्थिक हानि लिखा था तथा
मेरा दिन ठीक था.तब मेरा माथा ठनका कि हो सकता है उस व्यक्ति का दिन बेहद ख़राब रहा हो जिससे गलती न होते हुये भी उसे भुगतना पड़ा.उस दिन क़े बाद से मैं नियमित राशि फल पढने लगा और जांचने लगा.ज्यादातर बातें ठीक पाते जाने पर ज्योतिष पर कुछ-कुछ विश्वास होने लगा.


१९७१ में जब अजय ने डेंटल हाईजीन का कोर्स करने की बात की तब अपने अटकल-पच्चू ज्ञान क़े आधार पर मैंने बाबूजी से शंका जताई कि पहले यह निश्चित कर लें क्या वह लोगों क़े दांत साफ़ करने का धंधा करेंगे.अन्यथा समय एवं धन बर्बाद ही होगा. मेरे आंकलन पर कौन विश्वास करता,अजय की ख्वाहिश पूरी की गई.कोर्स किंग जार्ज मेडिकल कालेज द्वारा संचालित था और तब वह यूनिवर्सिटी क़े आधीन था ,लिहाजा मामाजी क़े चलते अजय को दाखिला भी मिल गया.फीस न थी. किताबें ,आने जाने  का खर्च हुआ.अजय को मामाजी ने अपने ही घर ७८,बादशाह बाग़,यूनिवर्सिटी कैम्पस पर रखा.पढ़ाई अजय ने ठीक की.माईं जी को भी आराम हो गया उनका पुत्र सड़ी सब्जी उठा लाता था,या वह खुद जातीं या नौकर पर निर्भर करतीं थीं.अजय ने इस समस्या को हल  कर दिया.वह सस्ती तथा अच्छी सब्जी ला देता था.एक बार फिर गोमती में बाढ़ आ गई. कालेज बन्द हो गये तो माईं जी ने अजय को तब तक क़े लिये मेरठ भेज दिया.मामाजी चूंकी संघ में रहे थे और शायद गोपनीय सदस्य तब भी थे लिहाजा संघ कार्य-कर्ताओं को अपनी कोठी पर फोन करने की सुविधा दे रखी थी,जैसा कि अजय ने देखा और बताया था.बाढ़  उतरने क़े बाद आ कर अजय ने पढ़ाई पूरी की,लेकिन शायद माईं जी ने उटका  दिया था कि लोगों क़े दांत साफ़ करना कोई इज्जत का काम नहीं है.अतः अजय ने पास करने क़े बावजूद वैसा जाब  करने से इनकार कर दिया और इस प्रकार मेरे द्वारा व्यक्त आशंका सही निकली तथा मेरा विश्वास ज्योतिष पर और बढ़ गया.


सरू स्मेल्टिंग क़े टाईम कीपर चन्द्रिका प्रसाद सिंह ने एक बार जबरिया मेरा हाथ देख कर तब जो कुछ बताया था आगे जा कर ठीक निकला .मैंने गोस्वामी गिरधारी लाल की 'ज्योतिष टाईम्स' पत्रिका मंगाना  शुरू किया ,परन्तु गणित तथा संस्कृत दोनों में कमजोर होने क़े कारण समझ पाने में असमर्थ रहा.बाद में आगरा में कुछ साथियों ने जबरदस्ती ज्योतिष की किताबें पढने को दीं क्योंकि न समझ पाने क़े कारण मैं ज्योतिष की कड़ी आलोचना करता था.लेकिन चूंकि मैं किताबी कीड़ा (बुक-वार्म)भी हूँ उन किताबों को न केवल चाट गया बल्कि उनकी नक़ल भी उतार-उतार कर रखता गया और ज्योतिष की आलोचना को भी बदस्तूर जारी रखा.परिणामतः एक क़े बाद एक अच्छी-अच्छी किताबें साथी गण पढने को देते गये और मेरे पास ज्योतिष का कलेक्शन  बढ़ता गया.आगरा में एक साथी क़े सहपाठी डाक्टरी क़े साथ ही ज्योतिष कार्य भी करते थे .वह मुझे उनके पास अपनी समस्याओं का समाधान जानने हेतु अपने साथ ले जाते थे. मैं उनके विश्लेषण पर संदेह व्यक्त करता था और वह अपनी बात की पुष्टी में समझाते रहते थे. इस प्रकार मेरा ज्योतीशीय प्रशिक्षण होता गया. जानकारों को मैंने अपने विश्लेषण बताने शुरू कर दिये लेकिन पाखण्ड से रहित सुझाव ही दिये.सन २००० में पूर्णतयः जाबलेस हो जाने पर इसी ज्योतिष को आजीविका क़े रूप में अपनाना पड़ा,हालाँकि बाबूजी सा :(पूनम क़े पिताजी)ने ऐसा करने को पहले ही कहा था परन्तु उनके निधन क़े बाद परिस्थितियों वश करना ही पड़ा.आज पोंगा पंथ का विरोध करते हुये ज्योतिष कार्य में संलग्न तो हूँ,परन्तु ढोंगियों-पोंगापंथियों क़े जबरदस्त प्रहारों को झेलते हुये ही.


अभी तो जिक्र मेरठ में प्राप्त सर्विस का करना था और बात ज्योतिष की होते-होते वाया आगरा फिर लखनऊ तक पहुँच गई.अतः अगली बार उसकी चर्चा......



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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष (१०)

जैसा कि पहले ही बता चुके हैं कि सिग्नल कोर क़े K . P .Q .निर्माण हेतु हम लोगों से भी रूडकी रोड का क्वार्टर खाली करा लिया गया और हम लोग करन लाईन्स क़े मिलेटरी क्वार्टर सं-एम.टी./२ /३ में शिफ्ट हो गये थे.इसके सामने ही रेलवे फाटक और उस पार 'सरू स्मेल्टिंग प्रा.लि.' कं.थी. लिहाजा महेश नानाजी ने जब मुझे बुलाया था तो कहा कि कहाँ दूर भटकोगे तुम्हें घर क़े पास ही लगवा देते हैं.सबह ८ बजे वह मुझे अपने एक पडौसी जिनके घर टेलीफोन था ले गये.तब उनके घर निजी या सरकारी कोई फोन नहीं था.आज तो सबके पास जेब में मोबाईल रहता है ,१३ मई १९७२ शनिवार की यह बात है.उन्होंने कं.क़े चेयरमैन श्री सुल्तान सिंह जैन को कहा -आपसे एक लड़के को नौकरी देने की रेकुएस्ट है.जैन सा :ने उधर से कहा आप हुक्म दीजिये हम मानेंगे.महेश नानाजी ने पुनः रेकुएस्ट दोहरा दी. उन्होंने मुझे ११ बजे आफिस मिलने को बुलाया.जब मैं रिसेप्शन पर पहुंचा तो मुझे एक स्लिप दी गई जिसमें मैंने एस.एस.जैन सा :का नाम तथा उद्देश्य में लिखा-एज मि.एम.सी.माथुर फोन्ड.मुझे तत्काल बुला लिया गया.जैन सा :मुझसे बोले आपने माथुर सा :को क्यों परेशान किया खुद चले आते,आज कल आदमी मिलते कहाँ हैं.मेरे पास कोई अनुभव नहीं था.उन्होंने पर्सोनेल मैनेजर डा.मिश्री लाल झा को बुलवाया और उनके साथ मुझे भेज दिया.डा.झा जैन सा :क़े सहपाठी भी रहे थे.डा.झा मुझे मेनेजिंग डायेरेक्टर इं.धर्म पाल जैन क़े पास ले गये और कहा कि -'ही इज सिलेक्टेड बाई द चेयरमैन'.उनकी हिदायत क़े अनुसार डा. झा ने फार्म भरवाया और सोमवार को ज्वाईन करने को कहा.इस प्रकार १५ .०५ .१९७२ सोमवार से मुझे नौकरी मिल गई.न तो महेश नानाजी ने कुछ कहा न मैंने ही वेतन की बात की थी.लिहाजा मुझे उस समय का न्यूनतम वेतन रु.१७२ .६७ पै.प्रतिमाह दिया गया.बाबूजी ने कहा हमारे लिये तुम अब भी पढ़ रहे हो,अतः अपना वेतन बैंक में जमा रखो हम घर-खर्च में नहीं लगायेंगें.उन्होंने एक १० रु.का आर.डी.और एक सेविंग एकाउंट खुलवा दिया.थोड़े हलके-फुल्के फल ,मिठाई वगैरह ले आने की मुझे छूट मिली थी.छैह माह का वेतन जमा करके माताजी की सलाह पर मेरे लिये ऊनी कोट,बाकी माता-पिता और भाई-बहन क़े लिये सूती एक-एक वस्त्र बनवाने की मुझे इजाजत मिली.मेरे लिये एक रिस्ट वाच रु.११० की,१५० रु.का एक ट्रांजिस्टर रु.३०० का एक टेबुल फैन एक वर्ष क़े भीतर मेरे वेतन से आ सका बाकी फिर खर्च करने पर पाबंदी लग गई.सवा तीन वर्ष की उस नौकरी में रु.३००० उसी कं.में ऍफ़.डी .क़े रूप में जमा हो गये थे.बाबूजी क़े आगरा ट्रांसफर क़े बाद खाने -रहने और उनके पास आने-जाने में खर्च हुआ. यही तीन हजार रु. बाद में आगरा क़े मकान की सिक्युरिटी जमा करने क़े काम आया. आगरा का मकान बेच कर लखनऊ वापिस आने पर यह छोटा लेकिन बहुत मंहगा मकान ले सके और यशवन्त को साईबर खुलवा सके.मूल में मेरठ की नौकरी और नौकरी दिलाने में महेश नानाजी का पूर्ण योगदान था,इसलिए श्रीमतीजी (पूनम) क़े परामर्श पर महेश नानाजी का आभार व्यक्त  करना मेरा नैतिक फर्ज था.नौकरी में झगडे-टनटे,यूनियन में भागीदारी आदि काफी दिलचस्प अनुभव रहे ,फिर....    

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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष(९)

महेश नानाजी द्वारा नौकरी दिलवाने क़े समय हम लोग करन लाईन्स क़े क्वार्टर में पहुँच गये थे,परन्तु रूडकी रोड क़े क्वार्टर में रहते हुए P .O .W .का जो नज़ारा देखा था उसके उल्लेख क़े बगैर बात अधूरी ही रहेगी.मेरठ कालेज की गतिविधियों में भाग लेते हुए मैंने बांगला-देश को मान्यता देने का विरोध किया था.नवभारत टाईम्स क़े समाचार संपादक हरी दत्त शर्मा अपने 'विचार-प्रवाह'में निरन्तर लिख रहे थे-"बांग्ला-देश मान्यता और सहायता का अधिकारी".पाकिस्तानी अखबार लिख रहे थे कि,सारा बांगला देश आन्दोलन भारतीय फ़ौज द्वारा संचालित है.बांगला देश क़े घोषित राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान को भारतीय एजेंट ,मुक्ति वाहिनी क़े नायक ताज्जुद्दीन अहमद को भारतीय फ़ौज का कैप्टन तेजा राम बताया जा रहा था.लेफ्टिनेंट जेनरल टिक्का खां का आतंक पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ता जा रहा था और उतनी ही तेजी से मुक्ति वाहिनी को सफलता भी मिलती जा रही थी.जनता बहुमत में आने पर भी याहिया खां द्वारा मुजीब को पाकिस्तान का प्रधान-मंत्री न बनाये जाने से असंतुष्ट थी ही और टिक्का खां की गतिविधियाँ आग में घी का काम कर रही थीं.रोजाना असंख्य शरणार्थी पूर्वी पाकिस्तान से भाग कर भारत आते जा रहे थे. उनका खर्च उठाने क़े लिये अद्ध्यादेश क़े जरिये एक रु.का अतिरिक्त रेवेन्यु स्टेम्प(रिफ्यूजी रिलीफ) अपनी जनता पर इंदिरा गांधी ने थोप दिया था.असह्य परिस्थितियें होने पर इंदिरा जी ने बांगला-देश मुक्ति वाहिनी को खुला समर्थन दे दिया और उनके साथ भारतीय फौजें भी पाकिस्तानी सेना से  टकरा गईं.टिक्का खां को पजाब क़े मोर्चे पर ट्रांसफर करके लेफ्टिनेंट जेनरल ए.ए.क़े.नियाजी को पूर्वी पाकिस्तान का मार्शल ला एडमिनिस्ट्रेटर बना कर भेजा गया .राव फरमान अली हावी था और नियाजी स्वतन्त्र नहीं थे.लेकिन जब भारतीय वायु सेना ने ढाका में छाताधारी सैनिकों को उतार दिया तो फरमान अली की इच्छा क़े विपरीत नियाजी ने हमारे लेफ्टिनेंट जेनरल सरदार जगजीत सिंह अरोरा क़े समक्ष आत्म-समर्पण कर दिया.९०००० पाक सैनिकों को गिरफ्तार किया गया था. इनमें से बहुतों को मेरठ में रखा गया था. इनके कैम्प हमारे क्वार्टर क़े सामने भी बनाये गये थे.
[फोटो साभार:दैनिक हिंदुस्तान]
 मेरठ से रूडकी जाने वाली सड़क क़े दायीं ओर क़े मिलेटरी क्वार्टर्स थे.गेट क़े पास वाले में हम लोग थे.सड़क उस पार सेना का खाली मैदान तथा शायद सिग्नल कोर की कुछ व्यवस्था थी.उसी खाली मैदान में सड़क की ओर लगभग ५ फुट का गैप देकर समानांतर विद्युत् तार की फेंसिंग करके उसमें इलेक्टिक करेंट छोड़ा गया था.उसके बाद अन्दर बल्ली,लकड़ी आदि से टेम्पोरेरी क्वार्टर्स बनाये गये थे.यह कैम्प परिवार वाले सैनिकों क़े लिये था जिसमें उन्हें सम्पूर्ण सुविधाएँ मुहयिया कराई गई थीं.सैनिकों/सैन्य-अधिकारियों की पत्नियाँ मोटे-मोटे हार,कड़े आदि गहने पहने हुये थीं.यह भारतीय आदर्श था कि वे गहने पहने ही सुरक्षित वापिस गईं.यही यदि पाकिस्तानी कैम्प होता तो भारतीय सैनिकों को अपनी पत्नियों एवं उनके गहने सुरक्षित प्राप्त होने की सम्भावना नहीं होती.पंजाब तथा गोवा क़े पूर्व राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल  जे.ऍफ़.जैकब ने अपनी शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक में लिखा है (हिंदुस्तान ७/ १ /२०११ ) ढाका में तैनात एक संतरी से जब उन्होंने उसके परिवार क़े बारे में पूंछा "तो वह यह कहते हुए फूट-फूट कर रो पड़ा कि एक हिन्दुस्तानी अफसर होते हुए भी आप यह पूछ रहे हैं जबकि हमारे अपने किसी अधिकारी ने यह जानने की कोशिश नहीं की".तो यह फर्क है भारत और पाकिस्तान क़े दृष्टिकोण का.इंदिराजी ने शिमला -समझौते में इन नब्बे हजार सैनिकों की वापिसी क़े बदले में तथा प.पाक क़े जीते हुए इलाकों क़े बदले में कश्मीर क़े चौथाई भाग को वापिस न मांग कर उदारता का परिचय दिया? वस्तुतः न तो निक्सन का अमेरिका और न ही ब्रेझनेव का यू.एस.एस.आर.यह चाहता था कि कश्मीर समस्या का समाधान हो और जैसा कि बाद में पद से हट कर पी. वी.नरसिंघा राव सा :ने कहा (दी इनसाईडर) -हम स्वतंत्रता क़े भ्रम जाल में जी रहे हैं.भारत-सोवियत मैत्री संधी से बंधी इंदिराजी को राष्ट्र हित त्यागना पड़ा.अटल जी द्वारा दुर्गा का ख़िताब प्राप्त इंदिराजी बेबस थीं.


इसी क्वार्टर में हमारे मौसाजी एक बार मिथ्थे जीजी तथा महेश को कुछ दिन हमारे यहाँ रहने हेतु छोड़ने आये थे.उनकी भेजी चिठ्ठी उन्हीं क़े सामने पोस्ट मैन ने लाकर दी थी,अतः उनका आगमन अचानक था.इत्तिफाक से आटा ख़त्म था.चक्की दूर लाल-कुर्ती में थी. मौसाजी को लौटती गाडी से जाना था,इसलिए चना मिले आटे  की रोटियां उन्हें मिल पायीं.उन्होंने  खुशी से खाया और कोई शिकवा उन्हें नहीं हुआ.परन्तु उसी दिन बगैर किसी पूर्व सूचना क़े रानी  मौसी-मौसा जी भी अचानक तब आ गये जब बाबूजी स्टेशन मौसा जी को छोड़ने गये हुए थे.लिहाजा उन लोगों को भोजन नहीं कराया जा सका क्योंकि उन्हें चने क़े आटे का बना भोजन इसलिए नहीं कराया गया कि वे पहली बार हमारे घर आये थे. इसका उलाहना जब तक हम लोग मेरठ में रहे उनकी ओर से मिलता रहा.उनकी किसी संतान क़े जनम क़े बाद फंक्शन पर अजय को प्रतिनिधित्व हेतु बाबूजी ने भेजा था और वह उनके घर से बगैर भोजन किये न पूंछे जाने क़े कारण चला आया तो उसका कोई जिक्र उन्होंने कभी नहीं किया.
सीता-मौसी ,कुंवर बिहारी मौसा जी हमारे घर जब आये थे तो जो भी उनको दिया जा सका खुश थे,हालाँकि वे काफी ऊंचे पद पर रहे थे जबकि गोविन्द बिहारी मौसाजी पी.डब्ल्यू.डी.में क्लर्क थे .


सिग्नल कोर क़े विस्तार क़े कारण जो सिविलियन (सी.डी.ए.,एम.ई.एस.क़े कर्मचारी )थे उनसे ये क्वार्टर वापिस ले लिये गये .बाबूजी को करन लाईन्स वाला एक मिलीटरी क्वार्टर एलाट हो गया. हम लोग उसमें शिफ्ट हो गये जो रेलवे लाईन क़े इस ओर था और उस ओर एक फैक्टरी थी जिसमें महेश नानाजी ने मुझे नौकरी दिलवा दी,उसका विवरण अगली बार......











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