बुधवार, 24 अप्रैल 2013

जहां गड्ढा होता है पानी तो वहीं भरता है ---विजय राजबली माथुर

इस अंक के शीर्षक और इस उद्धरण मे सीधा -सीधा कोई साम्य तो नहीं है परंतु दोनों का चयन जान-बूझ कर ही किया है। पिछले तीन अंकों में 'उदारता और पात्र की अनुकूलता' का जो विवरण दिया है उस पर उनमे उल्लिखित (नाम नहीं दिया था केवल चरित्र वर्णन था )एक नेता ने अपने से वरिष्ठ नेता से शिकायत की कि उन पर अनावश्यक प्रहार किया जा रहा है। जब मेरी ओर से किसी नाम का उल्लेख न होने पर मात्र चरित्र-वर्णन के आधार पर उन्होने उसे अपने लिए मान लिया तो स्पष्ट है कि वह खुद कबूल कर रहे हैं कि वह वैसे ही हैं। इसी के प्रतीक के रूप में 'शीर्षक' का चयन किया गया है और यह उद्धरण भी उन्हीं महात्मा जी पर चस्पा होता है। क्योंकि वह महात्मा जी दूसरों को गिराने (down करने) का कोई भी अवसर चूकते ही नहीं हैं। वह तो अपने से काफी वरिष्ठ-राष्ट्रीय नेताओं को भी 'लांछन' लगाने से बाज़ नहीं आते हैं फिर मैं तो उनके आगे 'किसी भी खेत की मूली ' नहीं हूँ। 

उन्होने शिकायत मे यह भी जोड़ा है कि मेरे विरुद्ध उनको 'फोन' पर टिप्पणियाँ मिल रही हैं। ब्लाग पर माडरेशन होने के बावजूद मैंने आश्वासन दिया है कि उनके पक्ष में अपने विरुद्ध टिप्पणियों को मैं ब्लाग मे स्थान दे दूंगा। उनका यह कथन भी इस बात को ही सिद्ध करता है कि जिन लोगों के साथ उनके संपर्कों/सम्बन्धों का उल्लेख किया था वे ही लोग उनको फोन के माध्यम से पार्टी मे अपने 'पद' व 'रुतबे' का इस्तेमाल करके मेरे विरुद्ध कारवाई की मांग कर रहे होंगे। इन लोगों की यह कारवाई 'मारेंगे भी और रोने भी नहीं देंगे' जैसी है। 

अतः पिछले तीनों अंकों का मेरा लेखन सटीक व सार्थक रहा और तीर निशाने पर ही लगा;चूका नहीं। यह इस बात से भी पुष्ट होता है कि जिन बड़े नेता से उन्होने शिकायत की थी उन्होने मुझे कुछ कार्य सौंपा था जिसका निष्पादन मैं समय पर और ठीक से न कर सकूँ इसके लिए उन्होने 'तांत्रिक प्रक्रिया' से मेरा स्वास्थ्य चौपट करने का यत्न किया। लगातार नाक बहना,छींक आना और सिर मे भारी दर्द होना वे कारण थे जो कंप्यूटर पर बैठने और लिखने से रोक रहे थे। अंततः स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर तौलिया लेकर बहती नाक पोंछते हुये वह कार्य करके ई-मेल द्वारा भेज दिया और sms से सूचित कर दिया। परंतु इस घटनाक्रम से उनकी 'strong people' होने की बात का भी खुलासा हो गया। 

मैंने वरिष्ठ नेता कामरेड साहब को यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उनके सहयोगी जो प्रादेशिक राजनेता अपनी पार्टी से बगावत करके नई पार्टी बनाना चाहते हैं वह मुझसे सहयोग चाहते हैं और मैंने उनको दो-टूक कह दिया है कि मैं तो पार्टी से भाग नहीं रहा हूँ यदि मुझे अलग भी किया जाता है तो भी 'लेखन' तो करता ही रहूँगा। रांची स्थित अपने रिश्तेदार की ब्लागर पत्नी जो उनके दूसरी पार्टी के प्रादेशिक नेता की भी रिश्तेदार हैं की लामबंदी के कारण वह शिकायतकर्ता नेता मेरे विरुद्ध षड्यंत्र मे अनावश्यक रूप से शामिल होकर अपनी ही ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। शिकायतों का पुलिंदा सजा कर वह यही सिद्ध कर रहे हैं कि,'जहां गड्ढा होता है पानी तो वहीं भरता है '।

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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

उदारता और पात्र की अनुकूलता(भाग-3 ) ---विजय राजबली माथुर

"डॉ साहब ऐसे लोग दूसरे लोगों को विभ्रम मे रखने हेतु अधूरा या द्वंदात्मक परिचय देते हैं क्योंकि उनके इरादे नेक नहीं होते हैं। ऐसे लोगों की फ्रेंड रिक्वेस्ट मिलने पर आप सदृश्य प्रतिष्ठित लोगों के म्यूचुयल नाम देख कर स्वीकार तो कर लेता हूँ परंतु उनकी एक- दो पोस्ट्स पढ़ते ही भेद खुल जाता है और उनको तत्काल ब्लाक कर देता हूँ । अभी-अभी ऐसे ही एक सज्जन को ब्लाक किया है जिनके बीच आप समेत 54 लोग म्यूचुयल थे।"18 अप्रैल 2013 को एक स्टेटस पर मेरी यह टिप्पणी यों ही बेवजह नहीं है। 

इस पर उन विद्वान डाइरेक्टर  साहब ने यह जवाब दिया है-" भाई ! विचित्र मित्र ग़लती से बन जाते हैं । प्रायः उनकी वाल पढ़ लेने से ऐसी ग़लती की सम्भावना क्षीण हो जाती है । फिर भी कभी कभी फूल के साथ काँटे आ ही जाते हैं । चुभने पर उन्हें निकाल देने में कोई हर्ज भी नहीं ।"

दूसरी पार्टी के प्रादेशिक राजनेता श्रीवास्तव साहब को यदि उनकी बुजुर्गीयत के चलते और अपनी पार्टी के प्रदेश नेताओं द्वारा  उनको दिये जाने वाले सम्मान को देखते हुये मैंने भी उनको सम्मान दिया और उनके कार्यों का निशुल्क सम्पादन/निराकरण  कर दिया तो इसका अभिप्राय यह नहीं है कि मैं उनके आगे झुक या दब गया हूँ परंतु वह यही समझ रहे हैं । चाहे यह उनका गलत आंकलन हो या साजिशन वह ऐसा करते हों यह तो वही जानें। अभी 17 अप्रैल को  ही वह एक लेख पढ़ते हुये यह भी देख गए थे कि मेरी फ्रेंड लिस्ट मे कौन-कौन हैं?उसके मद्दे नज़र एक हाई कोर्ट वकील से उन्होने फ्रेंड रिक्वेस्ट भिजवाई जिसने 'एबाउट' मे अधूरा परिचय दिया हुआ था उसको स्वीकारते ही पोस्ट्स सामने आ गई जिनसे पोल खुल गई और ब्लाक कर दिया। 

यह श्रीवास्तव राजनेता साहब पूना प्रवासी-भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर की रांची स्थित हमदर्द  ब्लागर के रिश्तेदार हैं और पटना मे इनकी गहरी पैठ है। पूना प्रवासी ब्लागर ने पटना प्रवासी अपनी ब्राह्मण शिष्या (जिसने उनको 'द्रोणाचार्य'कहते हुये प्रशंसात्मक कविता लिखी थी)ब्लागर की मार्फत पहले यशवन्त को पूना मे नौकरी करने का प्रस्ताव भिजवाया था जिसे ठुकरा देने के बाद पटना प्रवासी ब्लागर ने अपने पति के आफिस मे उसको जाब का आफ़र दिलाया था। इन चालों और जालों मे न फँसने देने का परिणाम यह हुआ कि पूना प्रवासी और पटना प्रवासी ब्लागर्स ने मिल कर पटना मे पूनम के घर वालों  को तांत्रिक प्रक्रियाओं से परेशान करना प्रारम्भ कर दिया है जिसमे अब यह राजनेता श्रीवास्तव साहब भी जुड़ गए हैं।गत वर्ष हम लोग हाई कोर्ट वकील हरी मोहन माथुर  साहब(बड़े ताऊजी की बेटी बीना के पति) के यहाँ सिटी बस से जा रहे थे तब बस मे ही इन राजनेता श्रीवास्तव साहब का फोन आया कि,हम आपके घर आ रहे हैं। मजबूरन बताना पड़ा कि हम घर पर नहीं हैं,इन साहब ने आस-पास के कई वकीलों को हमारी खुफियागिरी करने के काम मे लगाया हुआ है और वह यही कनफर्म करना चाहते थे कि क्या हम वास्तव मे घर पर नहीं हैं। यह  श्रीवास्तव साहब अपनी पार्टी से बगावत इस आधार पर करना चाहते हैं कि उनकी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मुलायम सिंह जी के पक्षधर हैं। यह इस बात को भूल रहे हैं कि रांची वाले जिस ब्लागर से रिश्तेदारी के आधार पर यह  हमारे खिलाफ अभियान मे जुटे हुये हैं उसी रांची के मूल  निवासी एक श्रीवास्तव IAS महोदय ने मुलायम सिंह जी को मैनपुरी मे पिछले चुनावों मे  परेशान किया था यदि मुलायम सिंह जी अब केंद्र की सत्ता मे आ जाएँ तो उन IAS महोदय से बदला ले सकते हैं तब यह श्रीवास्तव राजनेता साहब कैसे अपनी ब्रादरी के अफसर का बचाव करा पाएंगे?

दूरदर्शिता का यही आभाव ही था जिसने भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर के उकसावे पर ज्योतिष के विरोध मे लेख लिखने व मेरे विरुद्ध टिप्पणी करने वाले लखनऊ के ब्लागर को अपने अंतर्राष्ट्रीय कंपटीशन मे मेरे समर्थन से वंचित कर दिया। 

वस्तुतः 19 अप्रैल 2012 को एक लेख-'रेखा राजनीति मे आने की संभावना' (http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_19.html) दिया था 
और 26 अप्रैल 2012 को तत्कालीन राष्ट्रपति महोदया ने रेखा जी को राज्यसभा मे मनोनीत करने की घोषणा कर दी थी। मेरे इस ज्योतिशियात्मक विश्लेषण से भयभीत होकर ही पूना प्रवासी-भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग ब्लागर ने IBN7,दिल्ली मे कार्यरत अपने चमचा सजातीय ब्लागर से 'ज्योतिष एक मीठा जहर' लेख तथा लखनऊ वाले ब्लागर से ज्योतिष की खिल्ली उड़ाने वाले लेख लिखवाये थे। 
मैंने पूर्व राज्यसभा सदस्य शबाना आज़मी जी को पुरस्कार मिलने पर भी ज्योतिशियात्मक विश्लेषण दिया था और बताए गए समय के भीतर ही उनको पुनः इस वर्ष लिमका पुरस्कार भी मिल गया है। 

पिछले अंक मे जिस FIR की कापी दी थी उन लोगों ने नाहक ही हम लोगों को सताया था उन पैसे वाले दुष्ट प्रवृति के लोगों का हम कोई बिगाड़ नही सिर्फ अपना बचाव करना चाहते थे। परमात्मा और प्रकृति की ओर से वे स्वतः ही दंडित हो गए। कमलेश बाबू के भतीज दामाद 'कुक्कू' को फ़ालिज लगा तो उसके पार्सल बाबू भाई को TB हुई। यह दूसरी बात है कि वे लोग फिर भी बदमाशियों मे लगे हुये हैं।  इसी प्रगर 'ठग' ब्लागर व उसके चमचे-चमचियों को भी कभी न कभी परमात्मा व प्रकृति की मार झेलनी ही पड़ेगी क्योंकी उनकी बदमाशियों का हमारे द्वारा जवाब न देने से वे हमे कमजोर समझ कर लगातार प्रहार किए जा रहे हैं। 

राजनेता श्रीवास्तव साहब भी अहंकार से ग्रसित होने के कारण हमारी 'उदारता' को कमजोरी मान कर चलने के कारण उतपीडनात्मक कारवाई जारी रखे हुये हैं। मुझे नहीं लगता कि ये लोग कभी भी वास्तविकता को समझ सकेंगे। हमारे बहन-बहनोई भी वैसे तो हमे परेशान कराने का दंड -नौ वर्ष तक झांसी मे एक मुकदमे का सामना करके भुगत चुके हैं परंतु वे भी समय-समय पर हमसे ज्योतिषीय मदद लेने के बावजूद ब्लागर्स,राजनेताओं और रिशतेदारों के माध्यम से अब भी हमे परेशान रखना जारी रखे हुये हैं। इन लोगों के प्रति भी उदारता बरतना काफी मंहगा पड़ गया है। इन लोगों को परमात्मा और प्रकृति द्वारा दंडित किए जाने पर भी हमे पीड़ा ही होगी। 

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बुधवार, 17 अप्रैल 2013

उदारता और पात्र की अनुकूलता(भाग-2) ---विजय राजबली माथुर

"जीवन में जिनका साथ छूट जाता है
वो कभी किनारे पर होकर भी
अपने नहीं हो पाते
समय को पहचान कर, ये मान कर तभी
साथ रहती रेत और हवायें
कहती तुम लिखों और हम मिटाएं….
अपना वजूद कभी खतम न होने पाए…!"
http://tewaronline.com/?p=3892

यथार्थ और सत्य की अभिव्यक्ति है 'अनीता गौतम'जी की इन काव्य पंक्तियों मे। गतांक मे भुक्त-भोगी घटना का उल्लेख किया है उसकी भी पुष्टि प्रथम तीन पंक्तियों से हो जाती है। बाहरी दबाव मे पुनः मेरे मेल कर लेने का परिणाम मुझे कमजोर समझ कर निगलने के प्रयास के रूप मे सामने आया था।

भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग पूना प्रवासी ब्लागर द्वारा हमारे ज़िले से संबन्धित रांची स्थित ब्लागर के माध्यम से उनके पति के संपर्कों द्वारा उनकी जाति के एक राजनेता तथा खुद उक्त ब्लागर के संपर्कों से उनकी खुद की जाति के एक दूसरे राजनेता को हमे क्षति पहुंचाने हेतु नियुक्त किया गया। जिस जाति मे डॉ राजेन्द्र प्रसाद,डॉ सम्पूर्णानन्द,शास्त्री जी लाल बहादुर सरीखे राजनेताओं तथा रघुवीर सहाय 'फिराक गोरखपुरी'साहब  एवं हरिवंश राय 'बच्चन'जी सरीखे विद्वानों ने जातिसूचक उपनाम का प्रयोग न करके उच्च कीर्तिमान स्थापित किए थे उसी जाति मे जन्मे  भृष्ट-धृष्ट-निकृष्ट-ठग पूना प्रवासी ब्लागर एवं उनके मददगार प्रादेशिक राजनेता जातिगत उपनाम का प्रयोग न करते हुये भी जिस मानसिकता का परिचय दे रहे हैं उससे पता चलता है कि,उनकी बुद्धि उनके मस्तिष्क मे नहीं विराजती बल्कि उनके पैर के तलवों के नीचे दबी हुई है बल्कि इन लोगों के जो सहयोगी अपनी जातीय पहचान कायम किए  हुये हैं वे तो यही आभास दे रहे हैं कि अब उनकी पूरी की पूरी ब्रादरी की बुद्धि पैर के तलवों मे रहने लगी है। इसी कारण वे लोग अपनी सजातीय मेरी पत्नी (पूनम)को चौतरफा परेशान करने के उपक्रम लगातार किए हुये हैं। वे कमलेश बाबू/शोभा और उनकी  पूना निवासी पुत्री की चालों को तो कामयाब कर रहे हैं किन्तु यह भूल रहे हैं कि यदि वे कामयाब हुये तो सर्वाधिक नुकसान पूनम का ही होना है जो खुद उन लोगों की बिरादरी की हैं और उनके श्रीवास्तव होने के कारण ही हमारे ये रिश्तेदार उनको प्रताड़ित करना चाहते हैं। उसके बाद नुकसान यशवन्त को होगा जिससे भी हमारे ये रिश्तेदार घोर नफरत करते हैं। जहां तक मेरा प्रश्न है मैं पूर्ण आयु प्राप्त कर चुका हूँ(ज्योतिष मे 60 वर्ष को पूर्ण आयु माना गया है और मैं 61 से भी ऊपर हूँ)और 'बोनस' मे चल चल रहा हूँ। जैसा कि पूना प्रवासी ब्लागर के IBN7 वाले चमचा ब्लागर ने गोली से उड़ा देने की धमकी दी थी मुझे फर्क नहीं पड़ेगा। अतः मैं किसी भी तरह घुटने नहीं टेकने जा रहा।

इन ब्लागर्स व राजनेताओं को ब्राह्मण ब्लागर्स व ब्राह्मण राजनेताओं का खुला समर्थन तो इस वजह से है कि,शोषकों-उतपीडकों के खैर ख़्वाह पोंगापंथियों को मेरे द्वारा ज्योतिष की सरल व्याख्या द्वारा जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ने के अवसर हाथ से निकलते हुये जान पड़ते हैं। केवल लोहे की आरी से लकड़ी को तब तक नहीं काटा जा सकता जब तक कि उसमे लकड़ी के हत्थे न लगा लिए जाएँ। अतः ब्राह्मणवादी शोषक ब्लागर्स तथा राजनेता इन श्रीवास्तव ब्लागर्स व राजनेताओं को 'हत्थे' के रूप मे इस्तेमाल कर रहे हैं। 

रांची स्थित ब्लागर के वह रिश्तेदार राजनेता भी मुझसे दो जन्मपत्रियों का विश्लेषण निशुल्क प्राप्त कर चुके हैं परंतु एहसान फरामोश  पूना प्रवासी ब्लागर का अनुसरण कर रहे हैं। हमारे द्वारा उनको दिया गया सम्मान उनको हमारी कमजोरी समझ आता है। लगता है उनके प्रति उदारता बरतना भी पात्र की अनुकूलता  का न होना ही था।

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रविवार, 14 अप्रैल 2013

उदारता और पात्र की अनुकूलता ---विजय राजबली माथुर


हाई स्कूल के कोर्स मे हिन्दी मे एक लेख के अंश पढे थे जो आज भी याद हैं और सही लगते हैं। "उदारता एक मानवीय गुण है और सभी को उदार होना चाहिए। किन्तु उसके साथ-साथ पात्र की अनुकूलता भी होनी चाहिए। "जब कभी अनुकूल पात्र की पहचान किए बगैर किसी  के साथ उदारता बरती है तब-तब भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। पूना प्रवासी 'भ्रष्ट,निकृष्ट और धृष्ट ब्लागर 'का मामला भी ऐसा ही है। पहले चार जन्मपत्रियों का विश्लेषण निशुल्क प्राप्त कर के फिर ज्योतिष विरोधी लेख कई दूसरे ब्लागर्स से लिखवाये गए। इनमे से एक लखनऊ वासी ब्लागर ने तो टिप्पणी मे अभद्र भाषा का भी प्रयोग मेरे लिए किया था। अब वही ब्लागर महोदय मुझे तथा यशवन्त को फोन करके अपने लिए किसी अंतर्राष्ट्रीय कंपटीशन मे 'वोट' मांग रहे हैं। इस हेतु 36 किलोमीटर दूर मेरे घर भी आने को तैयार हैं। जब पूना प्रवासी 'ठग ब्लागर' के उकसावे पर मेरे विरुद्ध टिप्पणी कर रहे थे तब तो हेंकड़ी और घमंड मे थे अब हमे समर्थन देने को किस मुंह से कह रहे हैं?यही है आज की प्रगतिशीलता?

दिनांक 11 अप्रैल,2013 को यह फेसबुक पर दिया गया स्टेटस था जिसे संबन्धित सहयोगी  ब्लाग पर भी टिप्पणी के रूप मे चस्पा कर दिया था। ब्लाग संचालक ने इस टिप्पणी को हटा दिया किन्तु फेसबुक पर आई प्रतिक्रिया और समर्थन तो हमारे पास सुरक्षित हैं ही-


  • Girish Pankaj chinta n kare. aap vijayi honge.

  • भूपट शूट उसे अब गरज हैं वोट और बड़े आदमी के रूप में आपके समर्थन से भी सहयोग लेकर उभरने की.
    12 hours ago · Unlike · 2

    कितने आश्चर्य की बात है टिप्पणी हटाने वाले ब्लाग संचालक साहब ने 12 अप्रैल 2013 को किसी इंटरवियू मे किसी खास ब्लाग की निंदा कर दी और उसके संचालक ने संपादक से उन ब्लागर साहब द्वारा रुपयों के एवज मे नाम छापने का इल्जाम लगा दिया जिस पर अब इल्जामकरता ब्लागर को 'मान हानि' का मुकदमा झेलने को कहा गया है। एक वकील साहब ने रुपए देने वालों को यह धमकी देकर कि 'लेना व देना'दोनों अपराध हैं चुप रहने का इशारा किया है। 'चोर की दाढ़ी मे तिनका'कहावत को चरतार्थ करते हुये 'भृष्ट-धृष्ट-ठग'ब्लागर ने टिप्पणी दी है-
    ..... ' ने कहा…
    "लोग अपने कार्य से अलग किस उधेड़बुन में हैं !!! बहुत दुखद है = किताब के पैसे देना या साहित्य में अपना योगदान देना पैसे माँगना है तो ऐसी सोच के साथ कुछ नहीं कर सकते ...... मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है ".
    ये तो ऐरे-गैरे-नत्थू -खैरे लोग थे जो ब्लाग के माध्यम से हमसे ज्योतीषीय लाभ लेकर आंखे तरेर गए। लेकिन जिनसे कभी रिश्ता रहा और उस रिश्ते के  आधार पर उन लोगों ने हमसे लाभ उठाया और हमारे वक्त पर उन लोगों ने आंखे तरेरते हुये कहा था कि मैंने उनको इसलिए मदद की थी कि मैं बेवकूफ था। लिहाजा उन लोगों से संपर्क समाप्त कर दिया था। पहले पूनम ने उन लोगों से संपर्क पुनः जोड़ना चाहा था फिर एक रिश्तेदार के माध्यम से उनसे आना-जाना चालू करने पर उन्होने यशवन्त को मोहरा बना कर किस प्रकार उत्पीड़न करने का कुत्सित प्रयास किया वह निम्नाकिंकित स्कैन कापियों से ज्ञात हो जाएगा---  



    यह भी दृष्टव्य : है कि,उन लोगों के यहाँ रिश्ता जुड़वाने वाले कमलेश बाबू ऊपर-ऊपर हम लोगों के सगे बने रहे और अंदरूनी तौर पर हम लोगों के विरुद्ध उन लोगों को मदद करते रहे क्योंकि उनको कुक्कू जो उनका भतीज दामाद है को प्लीज़ करना था। हमारे यशवन्त की इच्छानुसार  आगरा छोड़ कर लखनऊ आने की बात भी उन्हें न सुहाई। अपने भाई के माध्यम से हमे परेशान करने मे विफल रहने पर अपनी पूनावासी छोटी पुत्री के माध्यम से उन्होने पूना प्रवासी 'भृष्ट-धृष्ट-ठग'ब्लागर का चयन किया जिसने बाराबंकी और रांची स्थित ब्लागरों की मदद से ब्लाग जगत व हमारी पार्टी मे भी हमे परेशान करने का उपक्रम किया। 

    आम तौर पर धनाढ्य लोग समझते हैं कि वे अपने 'धन' और 'छल' से सबको अपने पीछे लामबंद करके जिसे चाहे उसे नेस्तनाबूद कर सकते हैं। वे यह नहीं समझ पाते कि 'सत्य,नीति और न्याय' के मार्ग पर चलने वाला चाहे कितना ही अभाव-ग्रस्त  क्यो न हो कभी भी धनवानों के समक्ष घुटने नहीं टेक सकता है। परमात्मा और प्रकृति ही ऐसे धूर्त लोगों को समय पर सीख दे देते हैं। अतः मैंने कभी भी किसी भी आक्रमण का उसी तरह का जवाब देने का प्रयास नहीं किया है। उस ग्रुप मे आपस मे मुक़दमेबाज़ी की धमकियाँ और सफाई उनके गुनाहों को भले ही ढकने मे कामयाब हो जाएँ परंतु अंततः अपने कुकर्मों का फल तो उन्हें ही भोगना होगा। किसी की उदारता को उसकी कमजोरी समझना,समझने वाले की अपनी भूल है। 

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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

प्रेरक व्यक्तित्व- महादेव नारायण टंडन ---विजय राजबली माथुर

06 अप्रैल पुण्य तिथि पर विशेष---
"डा राम गोपाल सिंह चौहान ने रिटायरमेंट के बाद कालेज का बंगला -6,हंटले हाउस  अपनी पुत्री (जो आगरा कालेज मे हिन्दी विभाग मे पढ़ाती थीं)के नाम करवा लिया था और उन्हीं के लान मे पार्टी की बड़ी मीटिंग्स होती थीं। वह A I P S O मे भी सक्रिय थे और उसमे भी मुझे बुलाते थे। इस 'विश्व शांति और एकजुटता संगठन' मे कम्यूनिस्टों के अतिरिक्त कांग्रेस,जनता पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी के भी सदस्य थे। आगरा मे इसका नेतृत्व का महादेव नारायण टंडन (संस्थापक जिला मंत्री,आगरा-भाकपा)करते थे जो कम्यूनिस्ट पार्टी पर प्रतिबंध के समय A I C C मे सक्रिय थे और गोपनीय ढंग से पार्टी चला चुके थे। 1987 मे कानपुर एप्सो का एक सम्मेलन था जिसमे भाग लेने को टंडन जी ने मुझ से कहा परंतु मैंने आर्थिक आधार पर असमर्थता व्यक्त कर दी। उन्होने कहा हम तुम्हें भेजेंगे तुम टिकट की चिंता न करो। एक वृद्ध सज्जन *जो एन वक्त पर नहीं गए उनके टिकट पर मुझे भिजवा दिया और लौटने के टिकट का धन पार्टी फंड से मिश्रा जी ने दे दिया ।"(http://vidrohiswar.blogspot.in/2011/09/1986-87-2.html)

मेरे पूर्व प्रकाशित इन वाक्यांश से इतना तो पता चल ही जाता है कि टंडन जी की प्रवृत्ति नए लोगों को आगे बढ़ाने व ऊपर उठाने की थी। हालांकि उस समय टंडन जी पार्टी मे अधिक सक्रिय नहीं थे और विशेष कार्यक्रमों मे ही भाग लेते थे परंतु एक बार परिचय हो जाने पर सभी को याद रखते थे। मुझे उनके बारे मे अपने वरिष्ठ नेताओं के ज़िक्र करने के जरिये ही जानकारी हासिल हुई थी और खुद उनसे परिचित न था। फिर भी टंडन जी की मेहरबानी से मैं एप्सो के दो दिवसीय  अधिवेशन मे भाग ले सका।

सन 2007 और 2008 मे 06 अप्रैल को उनकी पुण्य तिथि पर आगरा मे  होने वाले स्मृति कार्यक्रमों मे भी भाग लेने का अवसर मिला था।एक वर्ष सुप्रसिद्ध लेखक कामरेड अनिल राजिम वाले साहब और एक वर्ष भाकपा के राष्ट्रीय सचिव मण्डल के सदस्य कामरेड अतुल अंजान साहब ने मुख्य वक्ता के रूप मे संबोधित किया था जिनके भाषणों से टंडन जी के व्यक्तित्व व कृतित्व की  अच्छी जानकारी मिली। यह भी ज्ञात हुआ कि टंडन जी मे व्यापक दूर दृष्टि थी और वह समय से पहले ही आगे की रूप रेखा तैयार कर लेते थे। उनके लेख विभिन्न अखबारों मे समय -संमय पर छपते रहते थे। अमर उजाला,आगरा मे छपा उनका लेख 'अमेरिका की आँख की किरकिरी है-निकारागुआ' मैंने भी पढ़ा था अतः इन विद्वानों द्वारा दी जानकारी अतिशयोक्ति न लगी।

आज यहाँ मैं टंडन जी के दार्शनिक सिद्धांतों की नही बल्कि  उनसे व्यक्तिगत रूप से प्राप्त  व्यवहारिक ज्ञान की चर्चा करना चाहता हूँ। टंडन जी पार्टी के बाहर भी लोकप्रिय थे और उनके व्यक्तिगत संबंध लोगों से मधुर थे। अपने पुत्र डॉ जितेंद्र टंडन की शादी  उन्होने दिन मे की थी ,भोज 'इम्पीरियल होटल'के लान मे था। मेरा उनसे व्यक्तिगत परिचय नहीं था परंतु मेरे पास भी उन्होने निमंत्रण पत्र भिजवाया था। डॉ जितेंद्र के शिक्षक रहे डॉ पी पी माथुर साहब भी वहाँ मिले थे। तमाम राजनीतिक  दलों के लोग वहाँ थे परंतु टंडन जी सभी से आत्मीयता से मिले थे।

मेरे होटल मुगल के केस के संबंध मे एक बार उन्होने पार्टी आफिस मे कहा था कि यदि मैं चाहूँ तो वह किसी के व्यक्तिगत प्रयास से हस्तक्षेप द्वारा हल कराने की कोशिश कर सकते हैं। इस सिलसिले मे मैं उनके निवास पर गया तो उन्होने पूरी जानकारी हासिल करके मुझे सतीश चंद्र गुप्ता जी के पास भेजा और उनको उनसे मिलने का संदेश देने को कहा। जो पता डेवलपमेंट ट्रस्ट का सेंट जांस कालेज चौराहे का टंडन जी ने मुझे दिया था वहाँ सतीश जी के पिताजी पूर्व मंत्री देवकी नन्दन विभवजी मिले,वयोवृद्ध होने के बावजूद अपने पुत्र से मिलने आए मेरे जैसे अज्ञात व्यक्ति को भी सम्मान देने के लिए वह खड़े हो गए।विभव जी उत्तर प्रदेश सरकार मे चार अवसरों पर मंत्री रह चुके थे फिर भी काफी विनम्र और व्यवहारशील थे।  मुझे बैठा कर उन्होने बात पूछी और यह मालूम होने पर कि मुझे टंडन जी ने भेजा है उनका हाल-चाल भी ज्ञात किया। सतीश जी के उस समय नेहरू नगर स्थित कार्यालय मे मिलने की सूचना और मेरे पहुँचने का रास्ता समझाया। चलते वक्त मुझसे कहा कि मैं टंडन जी को उनका अभिवादन भी कह दूँ।

सतीश चंद्र जी कार्यालय मे बड़े ही सौहाद्र रूप से मिले। वह IRS अधिकारी रहे थे और उस समय आगरा पूर्वी विधानसभा क्षेत्र से इन्दिरा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव कार्यालयी हेरा-फेरी से  हरा दिये गए थे जिसे उन्होने अलाहाबाद हाई कोर्ट मे चुनौती दी हुई थी और वहाँ वोटों की पुनः मतगणना चल रही थी। ( बाद मे हाई कोर्ट मे आगरा कलेक्टरेट के कर्मचारी मिस्टर कालरा जिसका संबंध RSS से था की धांधली उजागर हुई जिसने ऊपर और नीचे 'कमल'तथा बीच मे छिपा कर 'पंजे' के वोट गिन कर भाजपा के सत्यप्रकाश विकल को जीत का सर्टिफिकेट दिलवा दिया था। हाई कोर्ट ने विकल जी का निर्वाचन रद्द करके सतीश चंद्र जी को 'विधायक' निर्वाचित करके पूरे पाँच वर्ष का वेतन-भत्ता देने का आदेश जारी कर दिया हालांकि चार वर्ष काअवेद्ध वेतन-भत्ता विकल जी से नहीं वसूला गया। ) सतीश चंद्र जी ने दिन के एक बजे टंडन जी के घर पहुँचने की बात कही और नियत समय पर पहुँच भी गए। और बात-चीत के बाद टंडन जी ने मेरी समस्या उनको बताई जिस पर उन्होने सकारात्मक कदम उठाने का आश्वासन दिया। यदि इन्दिरा कांग्रेस के दूसरे नेता एस बी शिरोमणी (रेलवे पार्सल बाबू शरद मोहन और कुक्कू यानि कमलेश बाबू के भतीज दामाद के रिश्तेदार)का हाथ मुझे बर्खास्त कराने मे न होता तो सतीश चंद्र जी मुझे बहाल कराने मे कामयाब हो जाते।जो भी हो  टंडन जी की सद्भावना  एवं सद्प्रयास तो  अविस्मरणीय ही हैं।

मुझे बड़े नेताओं से पता चला था कि टंडन जी ने आगरा मे भाकपा की स्थापना के बाद दूसरे शहरों से कई प्रतिभाशाली युवाओं को आगरा लाकर पार्टी को मजबूत किया था। इनमे से  दो का सान्निध्य मुझे भी मिला था। एक थे कामरेड अब्दुल हफीज साहब  जो टंडन जी की ही तरह स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे और पार्टी कार्यालय मे ही स्वास्थ्य ठीक रहने तक रहे। मजदूरों मे ही नहीं आम जनता मे भी वह  'चचे' नाम से जाने जाते थे। इनको टंडन जी झांसी से विद्यार्थी काल मे लाये थे। दूसरे डॉ राम गोपाल सिंह चौहान साहब को विद्यार्थी काल मे शाहजहाँपुर से टंडन जी लेकर आए थे। सुंदर होटल,राजा मंडी स्थित पार्टी कार्यालय भाकपा के साथ केवल इसी लिए बचा रहा क्योंकि टंडन जी चट्टान की भांति  पार्टी के साथ डटे रहे थे जबकि उनके अधिकांश साथी 1964 मे माकपा मे खिसक गए थे। इसी लिए तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी ने जब उस कार्यालय के मूल्य से पार्टी का नया भवन मदिया कटरा मे स्थापित करवाया तो उसका नामकरण 'कामरेड महादेव नारायण टंडन भवन' रखने का प्रस्ताव किया जिसे प्रदेश नेतृत्व ने भी मान्य किया। आगरा भाकपा का कार्यालय कामरेड महादेव नारायण टंडन की स्मृति को निरंतर बनाए रखेगा और आने वाले नए साथियों को भी उनके 'त्याग' व 'बलिदान' से परिचित कराता  तथा प्रेरणा देता रहेगा। 
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*वह वृद्ध सज्जन आदरणीय कामरेड राजेन्द्र रघुवंशी जी थे।

    

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बुधवार, 3 अप्रैल 2013

शीश कटा सकते हैं ,पर झुका सकते नहीं ---विजय राजबली माथुर

शीर्षक बनाई गई पंक्तियाँ मुझे सदा ही परम प्रिय रही हैं। निजी जीवन मे मैंने कभी किसी के समक्ष सिर नहीं झुकाया है चाहे जितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ सामने रही हों। जब इस ब्लाग का प्रारम्भ किया था तो ध्येय यही था कि ऐसी परिस्थितियों के उल्लेख से बचा रहूँगा। इसी कारण रांची के एक ब्लागर ने 06-10-2010 को यह टिप्पणी भी की थी-"यादें-संस्मरण अक्सर खट्ट्-मीठे होते हैं पर ये रोचक रहे..."। परंतु यह टिप्पणी बड़ी खौफनाक निकली और परिस्थितिए इस प्रकार की बना दी गई कि तमाम लोगों के खुलासे करने ही पड़े। 

04 अगस्त 1995 को एक डाक्टर साहब (जो अपने श्वसुर साहब के रेजिस्ट्रेशन पर अपनी पत्नी के नाम पर औश्द्धालय चलते थे)मुझ पर यह दबाव डालने आए कि मैं उनके चचिया श्वसुर डॉ साहब(जिनको हमारे बहनोई साहब ने अपने भतीज दामाद-'कुक्कू '  के माध्यम से खरीदवा कर धोखा दिलवाया था)से पुनः मेल-जोल कायम करूँ अन्यथा वह पैसे के ज़ोर से मुझे झुका लेंगे।उस समय मैं घर पर अकेला था यशवन्त स्कूल मे था और शालिनी, बाबूजी व बउआ का निधन हो चुका था । मैंने उनको जवाब दिया था-"मिस्टर उपाध्याय आप पैसे के ज़ोर से मेरा सिर कटवा तो सकते हैं पर झुकवा नहीं सकते।" इतना सुनते ही वह चुप-चाप खिसक लिए थे। बाद मे किसी झमेले मे फँसने पर उनको डाक्टरी की प्रेक्टिस बंद करनी पड़ी थी। 

 एक मेनेजमेंट इन्स्टीच्यूट के संचालक एक हेंकड़बाज ने जब मुझसे बिला वजह यह  कहा कि  मुझको वह अभी छह इंच छोटा कर देंगे( यशवन्त इस समय भी स्कूल मे था) और मैं तत्काल घर से बाहर निकल आया और कहा कि जानते हैं तुम बड़े मर्डरर हो अभी और इसी वक्त हमारा भी मर्डर करते जाओ ,मेरे साथ-साथ पूनम भी आ गई और उन्होने भी कहा कि उनका भी मर्डर हाथ के हाथ करते जाओ। उस दिन के बाद से कई वर्ष तक वह हेंकड़बाज़ सामने पड़ने पर सिर झुका कर मुंह छिपा कर बचता फिरता रहा फिर उसके एक दोस्त ने मुझसे कहा कि उसे छोटा समझ कर माफ कर दीजिये उसकी गलती के लिए वह दूसरे सज्जन खुद माफी मांगने लगे। 

प्रारम्भ मे जिस टिप्पणी का ज़िक्र हुआ है उस टिप्पणी दाता ने हमारे ज़िले बाराबंकी  के एक ब्लागर और पूनम के ज़िले पटना के एक ब्लागर को ब्लाग जगत मे हमारे विरुद्ध अनर्गल प्रचार हेतु उकसाया/भड़काया और लामबंद किया। ऊपर दिये गए दोनों उदाहरणों मे केवल बाहरी लोग थे उन से सख्ती करने पर वे ढीले पड़ गए। परंतु इन  ब्लागर्स को पर्दे के पीछे से हमारी छोटी बहन-बहनोई,भांजी का भी शह-समर्थन मिला हुआ है और हमारे खान-दान के भाई-बहनों का भी। इसलिए इन ब्लागर्स के पीछे ब्लागर्स के अलावा भी और कई लोग समर्थन मे आ डटे हैं। चूंकि बहन-बहनोई नहीं चाहते थे कि माता-पिता के निधन के बाद उनके द्वारा पसंद की गई पूनम से मैं विवाह करता। अतः उनकी श्रीवास्तव बिरादरी के ब्लागर्स को ही चुन कर षड्यंत्र का सूत्रधार बनाया गया। एक प्रादेशिक राजनेता श्रीवास्तव साहब को भी मेरे विरुद्ध षड्यंत्र का मोहरा बनाया जा रहा है। उक्त टिप्पणी दाता ब्लागर की श्वसुराल से संबन्धित दो ब्राह्मण राजनेताओं को भी हमारे परिवार को नुकसान पहुंचाने हेतु नियुक्त किया गया है।

मनसा-वाचा-कर्मणा न तो हमने किसी को नुकसान पहुंचाया है न बुरा किया है बल्कि इनमे से कई ने पहले हमसे ज्योतिषीय लाभ प्राप्त किया और उसके बाद एहसान फरामोशी की है। परमात्मा और प्रकृति की मार से उनका बचना नितांत असंभव ही होगा परंतु अपने धन/ज्ञान के गरूर मे वे ब्लागर्स और राजनेता एक के बाद एक गलत कदम उठाते जा रहे हैं और मैं उनके खुद उनके  अपने ही बुने जाल मे फँसने का इतमीनान से इंतज़ार कर रहा हूँ ;किन्तु इस 'धैर्य व संयम' को वे सभी मेरी कमजोरी के रूप मे आंक रहे हैं। उनका यह आंकलन ही हमारा संबल व पूंजी है। 

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