शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

बाबूजी का जन्मदिन पर एक स्मरण ------ विजय राजबली माथुर

**जन्मदिन 24 अक्तूबर पर एक स्मरण बाबूजी का :
(ताज राजबली माथुर : जन्म 24 -10-1919 मृत्यु 13-06-1995 )
हमारे बाबूजी का जन्म 24-10-1919 को दरियाबाद, बाराबंकी में हुआ था और मृत्यु 13-06-1995 को आगरा में । बाबूजी जब चार वर्ष के ही थे तभी दादी जी नहीं रहीं और उनकी देख-रेख तब उनकी भुआ ने की थी। इसीलिए जब बाबूजी को बाबाजी ने जब पढ़ने के लिए काली चरण हाई स्कूल, लखनऊ भेजा तो वह कुछ समय अपनी भुआ के यहाँ व कुछ समय स्कूल हास्टल में रहे। 

भीखा लाल जी उनके सहपाठी और  कमरे के साथी भी थे। जैसा बाबूजी बताया करते थे-टेनिस के खेल में स्व.अमृत लाल नागर जी ओल्ड ब्वायज असोसियेशन की तरफ से खेलते थे और बाबूजी उस समय की स्कूल टीम की तरफ से। स्व.ठाकुर राम पाल सिंह जी भी बाबूजी के खेल के साथी थे। बाद में जहाँ बाकी लोग अपने-अपने क्षेत्र के नामी लोगों में शुमार हुए ,हमारे बाबूजी 1939-45  के द्वितीय  विश्व-युद्ध में भारतीय फ़ौज की तरफ से शामिल हुए। 

अमृत लाल नागर जी हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हुए तो ठा.रामपाल सिंह जी नवभारत टाइम्स ,भोपाल के सम्पादक। भीखा  लाल जी पहले पी.सी एस. की मार्फ़त तहसीलदार हुए ,लेकिन स्तीफा देके भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए और प्रदेश सचिव भी रहे। बाबूजी को लगता था  जब ये सब बड़े लोग बन गए हैं तो उन्हें पहचानेंगे या नहीं ,इसलिए फिर उन सब से संपर्क नहीं किया। एक आन्दोलन में आगरा से मैं लखनऊ आया था तो का.भीखा  लाल जी से मिला था,उन्होंने बाबूजी का नाम सुनते ही कहा अब उनके बारे में हम बताएँगे तुम सुनो-उन्होंने वर्ष का उल्लेख करते हुए बताया कब तक दोनों साथ-साथ पढ़े और एक ही कमरे में भी रहे। उन्होंने कहा कि,वर्ल्ड वार में जाने तक की खबर उन्हें है उसके बाद बुलाने पर भी वह नहीं आये,खैर तुम्हें भेज दिया इसकी बड़ी खुशी है। बाद में बाबूजी ने स्वीकारोक्ति की कि, जब का.भीखा लाल जी विधायक थे तब भी उन्होंने बाबूजी को बुलवाया था परन्तु वह संकोच में नहीं मिले थे। 


बाबूजी के फुफेरे भाई साहब स्व.रामेश्वर दयाल माथुर जी के पुत्र कंचन ने (10  अप्रैल 2011  को मेरे घर आने पर) बताया कि ताउजी और बाबूजी  दोस्त भी थे तथा उनके निवाज गंज के और साथी थे-स्व.हरनाम सक्सेना जो दरोगा बने,स्व.देवकी प्रसाद सक्सेना,स्व.देवी शरण सक्सेना,स्व.देवी शंकर सक्सेना। इनमें से दरोगा जी को 1964  में रायपुर में बाबाजी से मिलने आने पर व्यक्तिगत रूप से देखा था बाकी की जानकारी पहली बार प्राप्त हुई थी । 



बाबू जी ने खेती कर पाने में विफल रहने पर पुनः नौकरी तलाशना शुरू कर दिया। उसी सिलसिले में इलाहाबाद जाकर लौट रहे थे तब उनकी कं.के पुराने यूनिट कमांडर जो तब लेफ्टिनेंट कर्नल बन चुके थे और लखनऊ में सी.डब्ल्यू.ई.की पोस्ट पर एम्.ई.एस.में थे उन्हें इलाहाबाद स्टेशन पर मिल गए। यह मालूम होने पर कि बाबूजी  पुनः नौकरी की तलाश में थे उन्हें अपने दफ्तर में बुलाया। बाद में बाबूजी जब उनसे मिले तो उन्होंने स्लिप देकर एम्प्लोयमेंट  एक्सचेंज भेजा जहाँ तत्काल बाबूजी का नाम रजिस्टर्ड करके फारवर्ड कर दिया गया और सी.डब्ल्यू ई. साहब ने अपने दफ्तर में उन्हें ज्वाइन करा दिया।  घरके लोगों ने ठुकराया तो बाहर के साहब ने रोजगार दिलाया। सात साल लखनऊ,डेढ़ साल बरेली,पांच साल सिलीगुड़ी,सात साल मेरठ,चार साल आगरा में कुल  चौबीस साल छः माह  दुबारा नौकरी करके 30  सितम्बर 1978  को बाबू जी रिटायर हुए.तब से मृत्यु पर्यंत (13  जून 1995 )तक मेरे पास बी-560  ,कमला नगर ,आगरा में रहे। बीच-बीच में अजय की बेटी होने के समय तथा एक बार और बउआ  के साथ फरीदाबाद कुछ माह रहे। 

कुल मिला कर बाबूजी का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष और अभावों का रहा। लेकिन उन्होने कभी भी ईमान व स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। मैं अपने  छोटे भाई-बहन की तो नहीं कह सकता परंतु मैंने तो उनके इन गुणों को आत्मसात कर रखा है जिनके परिणाम स्वरूप मेरा जीवन भी संघर्षों और अभावों में ही बीता है जिसका प्रभाव मेरी पत्नी व पुत्र  पर भी पड़ा है।चूंकि बाबूजी अपने सभी भाई-बहन में सबसे छोटे थे और बड़ों का आदर करते थे इसलिए अक्सर नुकसान भी उठाते थे। हमारी भुआ उनसे अनावश्यक दान-पुण्य करा देती थीं। अब उनकी जन्म-पत्री के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इससे भी उनको जीवन में भारी घाटा उठाना पड़ा है। उनकी जन्म-कुंडली में ब्रहस्पति 'कर्क' राशिस्थ है अर्थात 'उच्च' का है अतः उनको मंदिर या मंदिर के पुजारी को तो भूल कर भी 'दान' नहीं करना चाहिए था किन्तु कोई भी पोंगा-पंडित अधिक से अधिक दान करने को कहता है फिर उनको सही राह कौन दिखाता? वह बद्रीनाथ के दर्शन करने भी गए थे और जीवन भर उस मंदिर के लिए मनी आर्डर से रुपए भेजते रहे। इसी वजह से सदैव कष्ट में रहे। 1962 में वृन्दावन में बिहारी जी के दर्शन करके लौटने पर बरेली  के गोलाबाज़ार स्थित घर पहुँचने से पूर्व ही उनके एक साथी ने नान फेमिली स्टेशन 'सिलीगुड़ी' ट्रांसफर की सूचना दी। बीच सत्र में शाहजहांपुर में हम लोगों का दाखिला बड़ी मुश्किल से हुआ था।  

बाबूजी के निधन के बाद जो आर्यसमाजी पुरोहित शांति-हवन कराने आए थे उनके माध्यम से मैं आर्यसमाज, कमलानगर- बल्केश्वर, आगरा में शामिल हो गया था और कार्यकारिणी समिति में भी रहा। किन्तु ढोंग-पाखंड-आडंबर के विरुद्ध व्यापक संघर्ष चलाने वाले स्वामी दयानन्द जी के आर्यसमाज संगठन में आर एस एस वालों की घुसपैठ देखते हुये संगठन से बहुत शीघ्र ही अलग भी हो गया था परंतु  पूजा पद्धति के सिद्धान्त व नीतियाँ विज्ञान-सम्मत होने के कारण अपनाता हूँ।  

मेरे पाँच वर्ष की आयु से ही बाबूजी 'स्वतन्त्र भारत' प्रति रविवार को ले देते थे। बाद में बरेली व मेरठ में दफ्तर की क्लब से पुराने अखबार लाकर पढ़ने को देते थे जिनको उसी रोज़ रात तक पढ्ना  होता था क्योंकि अगले दिन वे वापिस करने होते थे,  पुराने मेगजीन्स जैसे धर्मयुग,हिंदुस्तान,सारिका,सरिता आदि पूरा पढ़ने तक रुक जाते थे फिर दूसरे सप्ताह के पुराने पढ़ने को ला देते थे। अखबार पढ़ते-पढ़ते अखबारों में लिखने की आदत पड़ गई थी। इस प्रकार कह सकता हूँ कि आज के मेरे लेखन की नींव तो बाबूजी द्वारा ही डाली हुई है। इसलिए जब कभी भूले-भटके कोई मेरे लेखन को सही बताता या सराहना करता है तो मुझे लगता है इसका श्रेय तो बाबूजी  को जाता है क्योंकि यह तो उनकी 'दूरदर्शिता' थी जो उन्होने मुझे पढ़ने-लिखने का शौकीन बना दिया था। आज उनको यह संसार छोड़े हुये बीस वर्ष व्यतीत हो चुके हैं परंतु उनके विचार और सिद्धान्त आज भी मेरा 'संबल' बने हुये हैं।  
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बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

झूठ की हांडी फूट गई --- विजय राजबली माथुर

काठ की हांडी दोबारा आग पर  चढ़ती है?  :
कहावत तो यह है कि, काठ की हांडी दोबारा आग पर नहीं चढ़ती है। लेकिन इलाहाबादी प्रोफेसर साहब अपनी काठ की हांडी को दोबारा आग पर चढ़ाने की असफल कोशिश कर रहे हैं। विगत आठ जून को उनसे पहली व्यक्तिगत मुलाक़ात हुई और उनका एक परिचित के माध्यम से एक साक्षात्कार समाचार पत्र में छपवाने का कार्य क्या सम्पन्न करवा दिया उनको लगा कि एक 'गुलाम' मिल गया। बीस जून को वह घर पर आए तो एक अतिथि के रूप में उनको भोजन, चाय-नाश्ता भी करा दिया तो उनको लगा कि इस बेवकूफ को अपनी एक उंगली पर नचाया जा सकता है। 'अतिथि सत्कार', 'सहायता' और 'गुलामी' को इन प्रोफेसर साहब ने पर्यायवाची समझ लिया तो गलती किसकी है?
बीस जून को अनावश्यक मुस्कराहट फेंकने वाले अश्लीलता समर्थक बाजारवादी के प्रति प्रोफेसर साहब को आगाह किया था किन्तु तब यह पता नहीं था कि वह उसी मुस्कराहटे के इशारे पर छल कर रहे हैं। मुस्कराहटे ने अपनी जासूस के माध्यम से भी गुमराह करने का असफल प्रयास किया था। अब फिर से प्रोफेसर साहब को सक्रिय किया गया है। एक बार धोखा खाने व नुकसान उठाने के बाद कौन उनके झांसे में फँसेगा ? जबकि मैंने तो  पटना के पत्रकार एक फेसबुक फ्रेंड को भी उनके प्रति 'एलर्ट' रहने का निवेदन किया था  तब मैं खुद ही प्रोफेसर साहब की जली हुई काठ की हांडी को दोबारा आग पर चढ़वा दूंगा ऐसा सोचना प्रोफेसर साहब की 'नादानी' है या कोई 'गंभीर साजिश '? इसे समझना क्या मुश्किल है ? 

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/954489827946327

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* युद्ध एक कला भी है और विज्ञान भी। युद्ध में विजयी होने के लिए 'धैर्य ' व 'संयम '  रखने की नितांत आवश्यकता होती है। 'दो टूक ' की हड़बड़ी तो शत्रु के जाल में फंस व उलझ कर शत्रु को ही 'विजय श्री' दिला सकती है। 
* जब शत्रु उकसाना चाहे और हम उकस कर बौखला जाएँ तो यह हमारी 'हार'- defeat का पहला कदम होगा। शत्रु को एहसास होना चाहिए कि वह 'हावी' है और वह उतावली में अपनी सम्पूर्ण 'ऊर्जा ' जल्दबाज़ी में खर्च कर डाले तो यह हमारी 'विजय ' का पहला कदम है। 
* शत्रु की यह चाल होती है कि वह हमें आपस में उलझा दे और हमें चौतरफा घेर कर परास्त कर दे। तब हमें उसके मुक़ाबले के लिए चुप बैठ कर तमाशा देखना होता है और उसकी घेरा बंदी को धीरे-धीरे तोड़ना होता है। यदि हम ऐसा करने में सफल रहे तो आक्रामक शत्रु को 'मुंह की खानी' पड़ती है। 
* इलाहाबादी प्रोफेसर  साहब को स्पष्ट जतला दिया गया था कि बाज़ारवादी ब्राह्मण समुदाय के लोग गैर-ब्राह्मण लोगों को सफल होते कभी नहीं देखना चाहते हैं फिर भी वह अपने इलाहाबादी ब्राह्मण मित्र (और उनके लखनवी मित्र व उसकी जासूस ) एवं अपनी शिष्या आदि ब्राह्मणों के प्रभाव में बने रहे। उनकी शिष्य ने उनके जिन विरोधी लोगों के नाम बताए थे उनमें उनके एक भाई (तथा उनके भी मित्र ) शामिल थे जिसकी पुष्टि उनके कृतित्व से हो भी चुकी है। तब भी प्रोफेसर साहब बजाए खुद को 'मुक्त ' कराने के उल्टे मुझे घेरने के प्रयास ही करते रहे  जैसे चाहते हों  --- 'हम तो डूबे हैं सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे '। तब यही इलाज बचता है कि आपको 'डूबना' मुबारक हो हम क्यों डूबें आपके साथ ? आप ब्राह्मणों के जाल में फंसे हैं तो फंसे रहें , अपने साथ हमें भी फाँसने का प्रयास करेंगे तो जल तो क्या दलदल में भी नहीं आप 'खुश्की' में ही डूबेंगे। 

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/954637457931564

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जब हर तरफ से अपने छल -प्रपंच को परास्त होते देख लिया तब अंततः फेसबुक पर मुझे ब्लाक कर दिया और मैंने भी उनको जवाबी ब्लाक कर दिया है। ब्लाक तो मैं उनको 20 जून 2015 को ही कर देता लेकिन उनके सारे ड्रामे देखने के इरादे से नहीं किया था। अब जब उनकी सारी स्क्रिप्ट आउट हो गईं तब जाकर उन्होने ब्लाक किया क्योंकि उपरोक्त स्टेटस पढ़ने के बाद वह समझ गए कि, वह अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस चुके हैं जिससे निकलना अब उनके लिए संभव भी नहीं है। 

दो टूक :
जहां तक दो टूक स्पष्ट करने की बात है  मेरी ओर से काफी पहले ही दो टूक स्पष्ट पोस्ट् दी गई थीं ----

*  अपने चचेरे भाई व इन चारों ब्राह्मणों के जाल-जंजाल में यह इस बुरी तरह फंस गए हैं कि उससे निकलना अब इनके लिए मुमकिन नहीं रह गया है तभी तो अनावश्यक आरोपों का तोहफा भेंट कर गए। जवाब देना बेहद ज़रूरी था जो समुचित प्रकार से दे दिया गया है। इनके साथ उदारता बरतना व इनको सहयोग करना मुझे काफी नुकसानदायक रहा लेकिन वह तो भुगतना ही था जब 'पात्र की अनुकूलता' पर पहले ही ध्यान नहीं दिया था तो।
http://vidrohiswar.blogspot.in/2015/08/blog-post.html

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शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

मिसेज X ( रेखा की जन्मपत्री से साम्य ) व y कुंडलियों में क्या विशेष है? ---विजय राजबली माथुर


मिसेज X    (09 अक्तूबर 1954,प्रातः 04 बजे,आगरा).....................................................मिसेज Y (07 सितंबर 1979,प्रातः 07-50,आगरा)                             

03 जून 2007 को  हिंदुस्तान,आगरा के अंक मे  प्रकाशित श्रीमती शबाना आज़मी और सुश्री रेखा की जन्मपत्रियों का विश्लेषण उन्हीं को आधार मान कर किया गया था। लेकिन आज यहाँ  प्रस्तुत दोनों कुंडलियाँ मेरे द्वारा ही बनाई गई हैं और ये परस्पर माता-पुत्री की हैं। माता के लिए -मिसेज X और पुत्री के लिए मिसेज Y का प्रयोग किया जा रहा है। इस पूरे परिवार से एक ही कालोनी मे रहने  के कारण जान-पहचान थी। ग्रहों की चाल को प्रेक्टिल रूप से स्पष्ट करने हेतु इन कुंडलियों का सहारा लिया जा रहा है । मिसेज X का जन्म आगरा मे,मद्रास मे जन्मी फिल्म अभिनेत्री 'रेखा' से लगभग 31 घंटे पूर्व हुआ है। रेखा और मिसेज X की राशियाँ एक ही 'कुम्भ' हैं किन्तु लग्न अलग-अलग हैं। मिसेज X की जन्मपत्री का चयन इसी वजह से किया है कि,'रेखा' की जन्मपत्री का जो विवेचन दिया जा चुका है वह इस विश्लेषण की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है।

मिसेज X

आगरा मे 09 अक्तूबर 1954 की प्रातः 04 बजे X का जन्म हुआ है उस आधार पर जन्म कुंडली बनी है। जन्म लग्न सिंह है,राशि कुम्भ है जो सुश्री रेखा की भी है। समस्त ग्रह रेखा और X की कुंडलियों मे एक ही राशियों मे  हैं। जन्म समय मे 31 घंटे का अंतर होने के कारण सिर्फ लग्न अलग-अलग हैं। अतः ग्रह जिन भावों मे रेखा के हैं उससे भिन्न भावों मे X के हैं।  X की जन्मपत्री के जिस भाव मे जिस राशि मे ग्रह हैं उनके अनुसार फल लिखा है और प्रेक्टिकल (वास्तविक ) जीवन मे वैसा ही चरितार्थ होता दिखा है अतएव 'रेखा'की कुंडली मे उन्हीं ग्रहों के उन्हीं राशियों मे दूसरे भावों मे होने के कारण जो फल लिखा है वह भी प्रेक्टिकल (वास्तविक )जीवन मे वैसा ही चरितार्थ होना चाहिए । यही वजह X की जन्म कुंडली उदाहरणार्थ लेने का कारण बनी हैं।

X ने अपनी जन्मपत्री बनवाने को जब कहा तो विशिष्ट रूप से यह भी निवेदन * किया कि,लिखित मे जो दें उससे अलग हट कर उन्हें ,उनके निगेटिव प्वाईंट्स व्यक्तिगत रूप से ज़रूर बता दें। अमूमन तमाम बातें ऐसी रहती हैं कि नजदीकी से नजदीकी व्यक्ति भी निगेटिव प्वाईंट्स नहीं जान पाता है परंतु ग्रहों का ज्योतिषीय विश्लेषण उन तथ्यों को उजागर कर सकता है। चूंकि X की पुत्री Y को न्यूम्रोलाजी का कुछ ज्ञान था अतः उसने अपनी माँ को उनके अपने निगेटिव प्वाईंट्स बताये थे और उन्हीं का वेरीफिकेशन वह मुझ से कराना चाहती थीं,कि क्या ग्रहों की चाल से इतना सब वाकई ज्ञात हो सकता है ?शायद अपनी पुत्री के ज्योतिषीय ज्ञान पर उन्हें भरोसा न रहा हो किन्तु उन्होने मुझे बताया कुछ नहीं सिर्फ मुझ से बताने को कहा था और बाद मे आत्म-स्वीकृति द्वारा मेरे कथन की परिपुष्टि की थी।

X के शिक्षक पति बेहद सौम्य व्यवहार वाले थे। किन्तु उनकी (x की ) कुंडली मे स्थित राशि बता रही थी कि वह काफी उग्र स्वभाव के और आक्रामक होंगे। अतः विश्लेषण लिखना शुरू करने से पूर्व X से साफ-साफ पूछा कि क्या मास्टर साहब जैसे दिखाई देते हैं उसके उलट स्वभाव उनका है ,क्या वह वास्तव मे दबंग हैं? X का जवाब प्रश्नवाचक था कि क्या उनकी कुंडली से उनके पति का यह स्वरूप सामने आया है। हाँ कहने पर उन्होने कुबूल किया कि शहर मे तो वह नम्र रहते हैं गाँव मे दबंगी दिखाते हैं कभी वांछित व्यक्ति न मिलने पर उसके घर से भैंस खोल कर अपने घर ले आए थे। समस्त बातें रफ पेपर से पढ़ कर उन्हें सुना दी जिन्हें उन्होने स्वीकार कर लिया परंतु लिखित मे वही दिया जो पॉज़िटिव था। बाद मे X ने अपने हाथ मे भी निगेटिव बातों का ज्ञान होने की बात पूछी थी उन्हें बता दिया था कि जन्मपत्री को गणना मे गलती के आधार पर आप नकार भी दें लेकिन अपनी लकीरों को छिपा या बदल नहीं सकती हैं।

X के पति भाव मे बैठा 'चंद्र' उनके पति को ऊपर से सौम्य बनाए हुये था और लग्न पर पूर्ण सप्तम दृष्टि के कारण खुद X के चेहरे को लावण्य मय रूप  प्रदान कर रखा था ,लग्न ने कमर तक उनके शरीर को आकर्षकत्व प्रदान किया था। उनकी कुंडली मे पति का कारक ग्रह ब्रहस्पति द्वादश भाव मे उच्च का है और नवम  दृष्टि से आयु के  20 वे भाव को देख रहा है जहां  'मीन' राशि स्थित है जो खुद बृहस्पति  की ही राशि है । अतः  जीवन के 20वे वर्ष मे उनका विवाह तय हो गया और 08 दिसंबर 1974 को विवाह बंधन मे बंध गईं।उस समय वह बृहस्पति  की महादशा के अंतर्गत 'चंद्र' की अंतर्दशा मे थीं जिसका प्रभाव बाधापूर्ण होता है। तृतीय भाव मे उच्च का शनि है जिसने उनके बाद भाई नहीं उत्पन्न होने दिये। उनके बाद दो बहने और हुई तब ही भाई हुये। शनि की स्थिति उन्हें निम्न -स्तर के कार्यों हेतु प्रेरित करने वाली है। सुख भाव मे मंगल की वृश्चिक राशि मे शुक्र स्थित है जो यह दर्शाता है कि विपरीत योनि के लोग उनमे आकर्षण रखते होंगे और वह उनमे ,उनके जीवन मे उनके प्रेमियों का भी हस्तक्षेप होगा। हाथ की लकीरों से रिश्ता भी स्पष्ट था और उन्हें बता दिया कि छोटे देवर व छोटे बहनोई से उनका शारीरिक संबंध होना चाहिए जिसे यह कह कर उन्होने कुबूल किया कि इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता है। पंचम संतान भाव मे 'मंगल' व 'राहू' की स्थिति से उन्होने बचपन मे अपनी पुत्री Y के अनुत्तीर्ण होने की ही बात नहीं स्वीकारी बल्कि हँसते हुये यह भी स्वीकार किया कि " 'एबार्शन' तो जान-बूझ कर करवाए -कितने बच्चे पैदा करते?" उन्होने यह भी स्वीकार किया कि पैदा करने पर पहचान का भी भय था।उनकी प्रथम संतान पुत्र है जो ग्रह योगों के अनुरूप ही पूर्ण आज्ञाकारी है।  मिसेज Y उनकी दूसरी संतान है और उससे एक वर्ष छोटी दूसरी पुत्री है। उच्च के बृहस्पति  ने धन-दौलत,मान-सम्मान,उच्च वाहन सुख सभी प्रदान किए हैं।


मिसेज Y

Y की राशि भी अपनी माँ वाली 'कुम्भ'ही है परंतु लग्न-'कन्या' है जो 'प्रेम' मे असफलता प्रदान करती है। और इस कुंडली मे लग्नेश,पंचमेश व सप्तमेश सभी 'द्वादश'भाव मे बैठे है जो 'व्यय भाव' होता है। अतः Y को प्रेम के मामले मे सावधानी की आवश्यकता थी जो बात  उसने अपनी माँ के माध्यम से पुछवाई थी। X को स्पष्ट रूप से बता दिया गया था कि यदि विवाह करना हो तो 'एरेंज्ड मेरेज' के जरिये ही हो वरना 'प्रेम-विवाह' सफल  नहीं हो सकता। यह बात Y के 2003  मे जाब पर बेंगलोर जाते समय X ने पूछी थी और 2008 मे जब Y ने अंतरजातीय प्रेम विवाह की बात उठाई तो मास्टर साहब ने बेटी और उसके प्रेमी को गोली से उड़ा देने की धमकी दी। X ने पूर्व जानकारी के आधार पर कोई नाटक खेला जिसमे उनका बी पी भी काफी लो हो गया और मास्टर साहब की पूर्व शिष्या लेडी डॉ के मुताबिक दिमाग पर भी झटके का असर था। लिहाजा अपनी शिष्या रही डॉ की सलाह पर मास्टर साहब 'एरेंज्ड मेरेज' करने को राजी हो गए। 15 दिन की तड़ापड़ी मे तैयारी करके 29 जनवरी 2008 को Y का विवाह किया गया।

X और Y की जब तुलना की जाये तो ग्रहों की चाल का असर साफ-साफ समझ आ जाएगा। इंटर पास X को सफलता और क्वालिफ़ाईड इंजीनियर Y को असफलता अपने-अपने ग्रहों के अनुरूप ही मिल रही थी। यदि पूर्व मे ज्योतिषीय ज्ञान से खतरे का आंकलन न होता तो निश्चय ही Y को अपने प्रेमी सहित मौत का सामना करना पड़ता क्योंकि कुंडली मे चंद्रमा षष्ट भाव मे राहू के साथ 'ग्रहण योग' बना रहा है। X की कुंडली मे लग्नेश सूर्य बुध की राशि मे है और बुध शुक्र की राशि मे शनि के साथ जो कि सप्तमेश है ,पंचम 'प्रेम' भाव मे शनि सरीखा राहू तो है ही पंचमेश बृहस्पति  'चंद्र' की राशि मे है और 'चंद्र' सप्तम भाव मे शनि की राशि मे। इस प्रकार लग्नेश,पंचमेश और सप्तमेश मे अच्छा तालमेल होने के कारण X विवाहोपरांत भी प्रेमियों से सफल संपर्क कायम रख सकीं जबकि Y को फजीहत और झगड़े के बाद ही X की तिकड़म और हस्तक्षेप से मन की  मुराद पूरी करानी पड़ी। X के हाथ मे विवाह रेखा के समानान्तर दो और सफल रेखाएँ स्पष्ट रूप से स्थित हैं जबकि Y के हाथ मे एक ही रेखा भी जटिल संकेत देती है।
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 *'रेखा',X और Y के विश्लेषणों द्वारा माता-पिता और संतान के अंतर सम्बन्धों का भी परिचय स्पष्ट मिलता है। इसके अतिरिक्त y की कुंडली में लग्न, पंचम व सप्तम भावों के स्वामी क्रमशः बुध,शनि व बृहस्पति में परस्पर संबंध होने के बावजूद जो कि 'प्रेम-विवाह' के योग उपस्थित तो करते हैं परंतु कुंडली के बारवें स्थान में अवस्थित होने के कारण 'मारक' योग भी प्रदान करते हैं। इसीलिए पितृ भाव में उसके स्वामी 'बुध' के शत्रु 'मंगल' की उपस्थिती ने पिता के विरोध को प्रकट किया था जबकि मातृ भाव का स्वामी 'बृहस्पति' y की माँ की कुंडली में बारवें भाव में होने के बावजूद 'उच्च' का y की माँ के लिए सहायक व शुभ था जबकि y की कुंडली में बारवें होने के कारण 'मारक'। परंतु माँ  x के सहयोग ने  पुत्री y को अपने प्रेमी को ही पति बनाने का सुअवसर विजातीय होने के बावजूद प्रदान कर दिया है।  

x की जन्मपत्री उनके हस्तरेखा के अध्यन के आधार पर बनानी पड़ी क्योंकि जन्म दिनांक,समय व वर्ष उपलब्ध नहीं था। अतः हस्तरेखाओं के आधार पर पहले यह पुष्टि की कि, विवाह 21 वें वर्ष में हुआ था फिर संतान रेखाओं के आधार पर जीवित संतानों व कराये गए 'एबारशंस' की पुष्टि जिसके बाद ही गणना करना संभव हुआ। जन्मतिथि व माह एवं वर्ष की गणना करने हेतु x का अनेकों बार हस्त-परीक्षण करना पड़ा और इस क्रम में पुष्टि हेतु अनेकों प्रश्न पूछने पड़े जिनका सही-सही उत्तर x द्वारा दिया गया कारण यह भी था कि y जो उनकी पुत्री है पहले ही अपनी माँ को उस ओर सचेत कर चुकी थी। अन्यथा किसी महिला द्वारा इतनी आसानी से नितांत गोपनीय बातों को अन्य व्यक्ति के समक्ष स्वीकारना संभव न था। 

y का विवाह 30 वें वर्ष में जिस भाव पर पति कारक ग्रह बृहस्पति की पूर्ण सप्तम दृष्टि थी सम्पन्न हुआ।  y की लग्न 'कन्या' व पंचम- संतान  भाव में स्थित राशि मकर के कारण प्रथम संतान कन्या उत्पन्न हुई। जबकि x की लग्न 'सिंह' व पंचम -संतान भाव में 'धनु' राशि स्थित होने के कारण प्रथम संतान पुत्र हुआ। x का लग्नेश 'सूर्य ' दिवतीय भाव जो वाणी का भी कारक भाव है में अपने मित्र ग्रह बुध की कन्या राशि में स्थित है जिस कारण 'x ' का व्यवहार व बोली काफी मधुर हुई जो लोगों को उनकी ओर आकर्षित करने में सहायक रही। यही कारण था कि 20 वर्ष की आयु में भी और 54 वर्ष की आयु में भी ' x ' विपरीत योनि के लोगों को आकर्षित करने में सफल रहीं। घर-परिवार-समाज में भी सफल व सम्मानित रहीं। 

ग्रह- नक्षत्रों के प्रभाव को कोई स्वीकार करे अथवा अस्वीकार उनका जीवन में अमिट प्रभाव पड़ता ही पड़ता है। 

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