मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

कैसा बीता यह वर्ष?---विजय राजबली माथुर

यों तो परंपरागत रूप से जिस नव-वर्ष के आधार पर देश के तीज-त्योहार आदि चलते हैं वह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होता है और सरकारी वर्ष भी पहली अप्रैल से आरंभ होता है परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नव-वर्ष का प्रारम्भ पहली जनवरी से होता है। अतः जनवरी से दिसंबर तक ई. सन 2013  हमें कैसा लगा यही सार्वजनिक करना इस पोस्ट का उद्देश्य है।

02 जनवरी 2013  को गांधी प्रतिमा,हजरतगंज,लखनऊ पर एक प्रतिरोध धरने में जिसका आयोजन 'राही मासूम रजा साहित्य एकेडमी' ने किया था भाग लिया था। फेसबुक लेखन के आधार पर पुलिस द्वारा अवैध गिरफ्तारियों के विरोध में आयोजित इस धरने में नगर के साहित्यकारों,रंगकर्मियों और जागरूक राजनीतिज्ञों ने भाग लिया था। मुझे एकेडमी के महासचिव और फारवर्ड ब्लाक,उत्तर प्रदेश के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष कामरेड  राम किशोर जी ने शामिल होने को कहा था,वह हमारी पार्टी के प्रदेश कार्यालय पर अक्सर आते रहते थे और उनका सम्मान हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता गण भी करते थे अतः उनके कहने पर इस पुनीत कार्य में मैं भी शामिल हुआ था।

इसके बाद उनकी एकेडमी द्वारा आयोजित कई साहित्यिक गोष्ठियों में उनके साथ भाग लिया जिनमें हमारी पार्टी से संबन्धित कई रंग कर्मी भी शामिल होते रहे थे। 07 अप्रैल को सम्पन्न एक गोष्ठी में उनके साथ भाग लेने जाते वक्त उन्होने मुझसे कहा कि कहाँ सी पी आई में पड़े हो हमारे साथ आ जाओ। वस्तुतः वह अपनी पार्टी छोड़ कर एक अलग पार्टी बनाने जा रहे थे और उसी में मुझको शामिल करना चाहते थे। लिहाजा उस दिन के बाद से मैंने उनकी साहित्यिक गोष्ठियों में भाग लेना बंद कर दिया। किन्तु वह मेरे पुत्र से अपनी पार्टी और एकेडमी के समाचार/विज्ञप्तियाँ आदि हेतु सहयोग लेने घर तब तक  आते रहे थे जब तक कि उनको घर आने से मना नहीं कर दिया था।

23 मई 2013  से अपनी पार्टी के प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश जी के निर्देश पर 'पार्टी जीवन' के कार्यकारी संपादक को सहयोग देने पार्टी कार्यालय जाने लगा। का सं महोदय काम की बात कम फिजूल की बातें ज़्यादा करते थे जैसे कि उनके पिताजी ने अपने बचपन में एक सहपाठी को कमीज़ से पकड़ कर उठा कर फेंक दिया। उन्होने खुद ने अपनी स्टूडेंट लाईफ में अपने एक सहपाठी को सीतापुर में भीड़ भरे चौराहे पर पीट दिया। पार्टी कार्यालय में AIYF के एक वरिष्ठ नेता को उन्होने झन्नाटेदार झांपड़ रसीद किया आदि-आदि। उन्होने मुझे पार्टी ब्लाग पर एडमिन राईट्स देकर लिखने को कहा जबकि पिछले छह वर्षों से पार्टी के प्रदेश सचिव तक को उन्होने एडमिन नहीं बनाया था। मुझे इसमें उनकी गहरी चाल नज़र आई और मैंने पार्टी के प्रदेश सचिव डॉ गिरीश जी व प्रदेश सह-सचिव डॉ अरविंद राज जी को उनकी अनुमति लेकर एडमिन बना दिया। इस पर का सं महोदय मुझसे ज़बरदस्त खार खा गए। उन्होने अपने समक्ष मुझे ब्लाग पोस्ट करने को कहा जिससे कि वह मेरा ID पासवर्ड जान कर अपने अज़ीज़ ब्लागर्स से संबन्धित मेरे पोस्ट्स डिलीट कर सकें। मैं उतना तो मूर्ख नहीं हूँ जितना लोग मुझे समझते हैं। पार्टी कार्यालय छोड़ते ही मैंने पुत्र को फोन करके अपना पासवर्ड बदलने को कहा जिसे पहले ही अपने ब्लाग्स में एडमिन बनाया हुआ था अन्यथा मेरे साईकिल से घर पहुँचते-पहुँचते वह साहब अपने घर स्कूटर से पहुँच कर मेरा पासवर्ड स्तेमाल करके अपना गुल खिला चुकते। प्रदेश सचिव व सह-सचिव को इस कृत्य की मौखिक सूचना दे दी थी। फिर भी उनके निर्देश पर जाता रहा तब का सं महोदय ने चाय में कुछ टोटके बाज़ी करके पिला दिया था जिससे लौटते में मार्ग में मुझे काफी दिक्कत हुई।अतः मैंने पार्टी कार्यालय में चाय पीना ही बंद कर दिया , इससे पूर्व भी मार्ग में कार व स्कूटर द्वारा एक्सीडेंट कराने का जो प्रयास हुआ उसमें उनका ही हाथ नज़र आया था और इसका उल्लेख इसी ब्लाग में तभी किया भी था।

12 जूलाई 2013  को प्रदेश सचिव और प्रदेश सह-सचिव  के जीप द्वारा बांदा जाते हुये विंड मिरर में विस्फोट हुआ और वे सौभाग्य से ड्राईवर समेत सुरक्षित बचे। इस घटना का ज़िक्र खुद डॉ गिरीश जी ने पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अनजान साहब एवं खुद का सं महोदय की उपस्थिती में 13 जूलाई 2013 को किया था। उस रोज ज़िला काउंसिल की बैठक के बाद यह अनौपचारिक वार्ता थी। उस दिन की मीटिंग के दौरान ही का सं महोदय ने मिनिट्स लिखने के दौरान पहले मेरी कुर्सी फिर मेरे पैरों पर अपने पैरों से ठोकर मारी फिर मेरे पेट में उंगली भोंक कर अनावश्यक निर्देश देने शुरू किए। उस दिन के बाद से मैंने पार्टी जीवन के कार्य हेतु उनको सहयोग करना बंद कर दिया किन्तु ब्लाग में लिखता रहा था जिसके लिए मैंने नई ID व पास वर्ड बना लिए थे। 09 सितंबर को का सं महोदय ने राष्ट्रीय सचिव कामरेड अनजान साहब से संबन्धित मेरी एक पोस्ट भी ब्लाग से डिलीट कर दी और मुझे एडमिन व आथरशिप से हटा दिया।

अगले ही दिन 10 सितंबर 2013  को मैंने 'साम्यवाद (COMMUNISM)' नामक एक अलग ब्लाग बना कर उसमें उस  डिलीटेड पोस्ट को भी प्रकाशित कर दिया। तब से अब तक 112 दिन में 92 पोस्ट्स प्रकाशित हो चुकी हैं जिनको 5441 बार पढ़ा जा चुका है और 18 ब्लाग फालोर्स हो चुके हैं। जब  04 जून को पहली पोस्ट मैंने पार्टी ब्लाग में दी थी तब उसके फालोअर्स 50 थे और जब मुझे उससे प्रथक किया गया -09 सितंबर को उस ब्लाग के फालोअर्स बढ़ कर 65 हो चुके थे। 20 नवंबर 2013  से हमने एक नया फेसबुक ग्रुप 'UNITED COMMUNIST FRONT' भी प्रारम्भ कर दिया है  और आज तक 216 कामरेड्स उसके सदस्य बन चुके हैं।

हालांकि इस ओर ध्यान देने से हमारे पहले से चल रहे ब्लाग्स -'क्रांतिस्वर', 'विद्रोही स्व-स्वर में' , 'जनहित में', 'सर्वे भवन्तु....', 'कलम और कुदाल' तथा श्रीमती जी का ब्लाग 'पूनम वाणी' पर लेखन प्रभावित हुआ है किन्तु उनको भी हम चला रहे हैं।

प्रश्न यह उठता है कि का सं महोदय ने ऐसा क्यों किया? उनको मुझसे क्या दुश्मनी थी? कामरेड राम किशोर जी इन महोदय के न केवल अभिन्न मित्र हैं बल्कि रिश्तेदार भी हैं उनके द्वारा मुझे पार्टी से बाहर कराने में विफल रहने पर उन्होने भीतर ही परेशान करके मुझे हटाने का षड्यंत्र रचा था जिसमें उनके एक जाति बंधु ने भी उनको सहयोग दिया है मुझे श्रद्धांजली देकर:


इस फोटो से ज्ञात होता है कि अपने षडयंत्रों में विफल रहने पर ये लोग किस स्तर तक गिर सकते है कि 'श्रद्धांजली' तक दे डालते हैं। तुर्रा यह है कि ये सभी पार्टी के बड़े नेता हैं जबकि मैं एक मामूली सा कार्यकर्ता हूँ।
मात्र एक माह की जान-पहचान कितना बड़ा झूठ लिखा है ?इन पंडित जी ने । सितंबर में हमारे 'साम्यवाद' ब्लाग की कई पोस्ट्स यह शेयर करते रहे थे और फ्रेंड रिक्वेस्ट भी खुद भेजी थी जिसे स्वीकार करके शायद मैंने गलती कर दी थी। 20 नवंबर 2013 को तो मैं पार्टी कार्यालय में प्रदेश सचिव जी से मिलने गया था जहां यह पंडित जी भी मिले थे व्यक्तिगत रूप से और 30 सितंबर की रैली में मेरे द्वारा उनसे न मिलने पर उलाहना भी  यह फेसबुक पर दे चुके थे। जो 'झूठ' को बड़ा हथियार मानते हों वे व्यावहारिक रूप से भले ही अच्छे माने जाएँ अपने दुष्कृत्यों में सफल होंगे यह सुनिश्चित नहीं है।   का सं महोदय व उनके यह सहयोगी दोनों ही राष्ट्रीय सचिव कामरेड अनजान व पूर्व महासचिव कामरेड बर्द्धन के व्यक्तिगत विरोधी हैं जिसका खुलासा मैंने अपने ब्लाग के माध्यम से कर दिया जिस कारण ये मुझसे घनघोर शत्रुता करने लगे। हम उम्मीद करते हैं इन दुष्कृत्यों को ये लोग 2013  की समाप्ती के साथ-साथ छोड़ सकें और 2014 में एक साफ-सुथरा जीवन शुरू कर सकें।

सभी जनों को आने वाले वर्ष 2014 की अग्रिम शुभकामनायें। 

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सोमवार, 23 दिसंबर 2013

शबाना आज़मी को सम्मान क्यों? ---विजय राजबली माथुर


हिंदुस्तान,लखनऊ,05 अप्रैल 2012 को प्रकाशित चित्र जो राष्ट्रपति महोदया  से  'पद्म भूषण'  लेते समय का है।

हिंदुस्तान,आगरा,03 जून,2007 को प्रकाशित कुंडली 




 शीर्षक देख कर चौंके नहीं। मै शबाना आज़मी जी को पुरस्कार प्राप्त होने का न कोई विरोध कर रहा हू और न यह कोई विषय है। मै यहाँ आपको प्रस्तुत शबाना जी की जन्म कुंडली के आधार पर उन ग्रह-नक्षत्रो से परिचय करा रहा हूँ जो उनको सार्वजनिक रूप से सम्मान दिलाते रहते हैं।

शुक्र की महा दशा मे राहू की अंतर्दशा 06 मार्च 1985 से 05 मार्च 1988 तक फिर ब्रहस्पत की अंतर्दशा 05 नवंबर 1990 तक थी। इस दौरान शबाना आज़मी को 'पद्म श्री' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी कुंडली मे पंचम भाव मे चंद्रमा,सप्तम भाव मे बुध,अष्टम भाव मे शुक्र और दशम भाव मे ब्रहस्पत स्व-ग्रही हैं। इन अनुकूल ग्रहो ने शबाना जी को कई फिल्मी तथा दूसरे पुरस्कार भी दिलवाए हैं। वह कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री भी इनही ग्रहो के कारण चुनी गई हैं। सूर्य और ब्रहस्पत की स्थिति ने उन्हे राजनीति मे भी सक्रिय रखा है। वह भाकपा की कार्ड होल्डर मेम्बर भी रही हैं। 06 नवंबर 1996 से 05 जनवरी 1998 तक वह शुक्र महादशा मे केतू की अंतर्दशा मे थीं तभी उन्हे राज्य सभा के लिए नामित किया गया था।

वर्तमान 'पद्म भूषण'पुरस्कार ग्रहण करते समय चंद्रमा की महादशा के अनर्गत शुक्र की अंतर्दशा चल रही है  जो 06 नवंबर 2011 से लगी है और 05 जूलाई 2013 तक रहेगी।* यह समय स्वास्थ्य के लिहाज से कुछ नरम भी हो सकता है। हानि,दुर्घटना अथवा आतंकवादी हमले का भी सामना करना पड़ सकता है। अतः खुद भी उन्हे सतर्क रहना चाहिए और सरकार को भी उनकी सुरक्षा का चाक-चौबन्द बंदोबस्त करना चाहिए। इसके बाद 29 नवंबर 2018 तक समय उनके अनुकूल रहेगा।

शबाना जी की जन्म लग्न मे राहू और पति भाव मे केतू बैठे हैं जिसके कारण उनका विवाह विलंब से हुआ। पंचम-संतान भाव मे नीच राशि का मंगल उनके संतान -हींन रहने का हेतु है। यदि समय पर 'मंगल' ग्रह की शांति कारवाई गई होती तो वह कन्या-संतान प्राप्त भी कर सकती थी। इसी प्रकार वर्तमान अनिष्टकारक समय मे 'बचाव व राहत प्राप्ति' हेतु उन्हें शुक्र मंत्र-"ॐ शु शुकराय नमः " का जाप प्रतिदिन 108 बार पश्चिम की ओर मुंह करके और धरती व खुद के बीच इंसुलेशन बना कर अर्थात किसी ऊनी आसन पर बैठ कर करना चाहिए।

कुछ तथाकथित प्रगतिशील और तथाकथित विज्ञानी ज्योतिष की कटु आलोचना करते हैं और इसके लिए जिम्मेदार हैं ढ़ोंगी लोग जो जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं। ऐसे ही लोगो के कारण 'मानव जीवन को सुंदर,सुखद व समृद्ध'बनाने वाला ज्योतिष विज्ञान हिकारत की नजरों से देखा जाता है। ये ग्रह-नक्षत्र क्या हैं और इंनका मानव जीवन पर प्रभाव किस प्रकार पड़ता है यदि यह समझ आ जाये तो व्यक्ति दुखो व कष्टो से बच सकता है यह पूरी तरह उस व्यक्ति पर ही निर्भर है जो खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है। जो भाग्य को कोसते हैं उनको विशेषकर नीचे लिखी बातों को ध्यान से समझना चाहिए की भाग्य क्या है और कैसे बंनता या बिगड़ता है-

सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म -का फल जो व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन मे प्राप्त नहीं कर पाता है आगामी जीवन हेतु संचित रह जाता है। ये कर्मफल भौतिक शरीर नष्ट होने के बाद आत्मा के साथ-साथ चलने वाले कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर के साथ गुप्त रूप से चलते रहते हैं। आत्मा के चित्त पर गुप्त रूप से अंकित रहने के कारण ही इन्हे 'चित्रगुप्त' संज्ञा दी गई है। चित्रगुप्त ढोंगियों द्वारा बताया गया कोई देवता या कायस्थों का सृजक नहीं है।

कर्मानुसार आत्मा 360 डिग्री मे बंटे ब्रह्मांड मे (भौतिक शरीर छोडने के बाद ) प्रतिदिन एक-एक राशि मे भ्रमण करती है और सदकर्म,दुष्कर्म,अकर्म जो अवशिष्ट रहे थे उनके अनुसार आगामी जीवन हेतु निर्देश प्राप्त करती है। 30-30 अंश मे फैली एक-एक राशि के अंतर्गत सवा दो-सवा दो नक्षत्र आते हैं। प्रत्येक नक्षत्र मे चार-चार चरण होते हैं। इस प्रकार 12 राशि X 9 ग्रह =108 या 27 नक्षत्र X4 चरण =108 होता है। इसी लिए 108 को एक माला का क्रम माना गया है जितना एक बार मे जाप करना निश्चित किया गया है। इस जाप के द्वारा अनिष्ट ग्रह की शांति उच्चारण की तरंगों (VIBRATIONS) द्वारा उस ग्रह तक संदेश पहुंचाने से हो जाती है।

जन्मपत्री के बारह भाव 12 राशियों को दर्शाते हैं और जन्म समय ,स्थान और तिथि के आधार पर ज्ञात 'लग्न' के अनुसार अंकित किए जाते हैं। नवो ग्रह उस समय की आकाशीय स्थिति के अनुसार अंकित किए जाते हैं। इनही की गणना से आगामी भविष्य का ज्ञान होता है जो उस व्यक्ति के पूर्व जन्म मे किए गए सदकर्म,दुष्कर्म एवं अकर्म पर आधारित होते हैं। अतः व्यक्ति खुद ही अपने भाग्य का निर्माता है वह बुद्धि,ज्ञान व विवेक का प्रयोग कर दुष्प्रभावो को दूर कर सकता है या फिर लापरवाही करके अच्छे को बुरे मे बदल डालता है।

उपरोक्त कुंडली का विश्लेषण वैज्ञानिक आधार पर है। कुंडली जैसी अखबार मे छ्पी उसे सही मान कर विश्लेषण किया गया है।

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शनिवार 07 अप्रैल 2012 को यह लेख पूर्व प्रकाशित है-
http://krantiswar.blogspot.in/2012/04/blog-post_07.html

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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

ब्रह्मचारी 'त्याग'व 'परोपकार' की शिक्षाप्रद मनोरंजक कथा ---विजय राजबली माथुर




बासु चटर्जी निर्देशित फिल्म 'ब्रह्मचारी' अपने हास्य प्रसंगों के कारण भले ही मनोरंजक समझी जाये किन्तु उसके द्वारा एक साथ अनेक शिक्षाएं ग्रहण की जा सकती हैं।

जब ब्रह्मचारी को यह पता चला कि वह एक अनाथ बालक था तब उसने अनाथ बच्चों के भविष्य को सँवारने का निश्चय किया। 'ब्रह्मचारी आश्रम' खोल कर उसने अनाथ बच्चों को प्रश्रय देना प्रारम्भ किया उनके लालन-पालन और पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारियाँ पूरी करने के कारण उसे अपना घर भी गिरवी रखना पड़ा और 20 हज़ार रु .का कर्ज उस पर चढ़  गया।  जिस अखबार में वह बच्चों के फोटो छ्पवाकर कुछ आय प्राप्त कर लेता था उसके संपादक-मालिक ने आगे से ऐसा करने से मना कर दिया और किसी लड़की के फोटो लाने को कहा जो कुछ विशेष हो। इस तलाश में ब्रह्मचारी समुद्र तट पर विचरण कर रहा था जहां उसे शीतल चौधरी नामक एक लड़की डूबने के प्रयास में मिली जो ब्रह्मचारी की आवाज़ सुन कर ठिठक गई। ब्रह्मचारी उसे अपने आश्रम पर ले आया और वह भी बच्चों की सेवा में लग गई।

चूंकि शीतल के आत्म-हत्या के प्रयास का कारण उसके बचपन के मंगेतर रवि खन्ना द्वारा विवाह से इंनकार करना था। अतः ब्रह्मचारी ने रवि की पसंदगी के मुताबिक शीतल को ट्रेंड किया और उसके समक्ष हाजिर किया।क्योंकि वह होटल में गाना गा कर अर्थोपार्जन करता था जिस कारण रवि से परिचित था।  इस प्रकार शीतल के समक्ष रवि का असली चरित्र सामने आ गया किन्तु अब बदली हुई शीतल को रवि अपनी गिरफ्त में लेना चाहता था अतः उसके माँ और मामा को रुपया देकर अपनी ओर  मिला कर ब्रह्मचारी से दूर करवा दिया। उसने  शीतल से जबरन विवाह करने हेतु ब्रह्मचारी के प्रति नफरत लाने में ब्रह्मचारी पर दबाव बनाया । ब्रह्मचारी और आश्रम के बच्चे शीतल को बचाना चाहते थे क्योंकि रवि की  नवजात संतान उस आश्रम में पहुंचाई गई थी और वे रूपा को उसका वास्तविक हक दिलाना चाहते थे।

रवि ने बच्चों का अपहरण करवा कर उनको मारने का षड्यंत्र रचा किन्तु ब्रह्मचारी के प्रयास से बच्चे भी सुरक्षित बच गए और रवि की माँ की कृपा से रूपा और उसकी संतान को भी रवि को अपनाना पड़ा। अंततः शीतल चौधरी का विवाह ब्रह्मचारी के साथ , रवि द्वारा उन सबसे माफी मांगने के बाद सम्पन्न हो गया।

जहां एक ओर शीतल की माँ व मामा का चरित्र निकृष्ट रहा जो अपनी बेटी व भांजी का ही अहित करने पर तुले थे। वहीं ब्रह्मचारी व रवि की माँ का चरित्र एक आदर्श दृष्टांत उपस्थित करता है।

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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

चिराग तले अंधेरा -बहुत मुश्किल है कुछ यादों को भुलाया जाना (भाग-6 ) ---विजय राजबली माथुर


26 दिसंबर 2010  को प्रदेश भाकपा कार्यालय में पार्टी के 86  वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता थे पार्टी के राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान साहब लेकिन उनके  सम्बोधन के मध्य  IAC के अरविंद केजरीवाल साहब वहाँ पधारे थे और सर्व-मान्य परम्पराओं को तोड़ते हुये संचालक प्रदीप तिवारी जी ने जो कि अंजान साहब से व्यक्तिगत रूप से नफरत करते हैं  केजरीवाल साहब को मुख्य वक्ता के बाद सभा में भाषण देने को सहर्ष आमंत्रित किया था। अतः उनके ही बंधु आनंद तिवारी जी द्वारा अंजान साहब के प्रति  व्यक्त दुर्भावनापूर्ण दृष्टिकोण अनायास ही नहीं है। 

 "मैंने 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' ब्लाग में पाँच सितंबर 2013 को कामरेड अतुल अंजान साहब की मऊ  में सम्पन्न रैली के समाचार की कटिंग देते हुये एक पोस्ट निकाली थी। इस पोस्ट को प्रदीप तिवारी साहब ने इसलिए हटा दिया क्योंकि वह अपने राष्ट्रीय सचिव कामरेड  अतुल अंजान साहब को व्यक्तिगत रूप से  नापसंद करते हैं। इतना ही नहीं इस पोस्ट के प्रकाशन का दायित्व मेरा था इसलिए मुझको भी ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। "
http://communistvijai.blogspot.in/2013/09/blog-post_11.html
जबकि हकीकत यह है कि लखनऊ और लखनऊ के बाहर भी अतुल अंजान साहब भाकपा के पर्याय माने जाते हैं और पार्टी के भीतर जो लोग उनके बारे में अनर्गल प्रचार करते हैं वे वस्तुतः निजी स्वार्थों के कारण पार्टी को बढ़ते नहीं देखना चाहते । 

http://krantiswar.blogspot.in/2011/09/blog-post_22.html
वे सभी लोग काफी समझदार थे उन्हें आसानी से सारी बातें समझ आ गईं और उन्होने मुझ से मेरे ब्लाग्स के रेफरेंस भी लेकर नोट कर लिए। फिर मेरा परिचय मांगने पर जब उन्हें बताया कि पेशे से ज्योतिषी और राजनीतिक रूप से कम्यूनिस्ट हूँ तो उन्हें आश्चर्य भी हुआ और स्पष्टीकरण मांगा कि कम्यूनिस्ट पार्टी माने अतुल अनजान  की पार्टी । जब जवाब हाँ मे दिया तो बोले अनजान साहब की पार्टी तो अच्छी पार्टी है । जैसे आगरा मे भाकपा की पहचान चचे की पार्टी या हफीज साहब की पार्टी के रूप मे थी उसी प्रकार लखनऊ मे भाकपा से तात्पर्य अनजान साहब की पार्टी से लिया जाता है। उनमे से दो-तीन लोग तो यूनीवर्सिटी मे अनजान साहब के साथ के पढे हुये भी थे ,इसलिए भी अनजान साहब की पार्टी मे मेरा होना उन्हें अच्छा लगा।

उनमे से एक जो बैंक अधिकारी थे ने बताया कि अब यू पी मे AIBEA को उसके नेताओं ने कमजोर कर दिया है जो खुद तो लाभ व्यक्तिगत रूप से उठाते हैं लेकिन कर्मचारियों की परवाह नहीं करते। इसी कारण छोटे स्तर के नेता प्रमोशन लेकर आफ़ीसर बन गए और दूसरे संगठनों की आफ़ीसर यूनियन से सम्बद्ध हो गए। वह यह चाहते थे कि अनजान साहब कुछ हस्तक्षेप करके AIBEA को फिर से पुरानी बुलंदियों पर पहुंचाने मे मदद करे जिसका लाभ पार्टी को भी मिलेगा।

30 सितंबर की लखनऊ रैली को अंजान साहब ने 'राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने वाली'  कहा था। 

मैंने तब भी आशंका व्यक्त की थी :
 जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा? 

और अब तिवारी बंधुओं के कारनामे इस आशंका को सही ही ठहरा रहे हैं। प्रदीप तिवारी जी ने रैली की सफलता और प्रदेश सचिव कामरेड डॉ गिरीश जी की प्रशंसा से खिन्न होकर उनको रैली के ग्लैमर से भ्रमित होना  लोगों के बीच फुसफुसाया था। 
इन परिस्थितियों में सुधा सिंह जी भाकपा से क्या आशा कर सकेंगी? 

*जब दादरी में अनिल अंबानी के बिजली घर के वास्ते किसानों की ज़मीनें मुलायम शासन में जबरन छीनी जा रही थीं तब वी पी सिंह साहब द्वारा राज बब्बर के साथ मिल कर एक जबर्दस्त आंदोलन खड़ा किया गया था। किसान सभा के राष्ट्रीय महामंत्री और भाकपा के राष्ट्रीय सचिव की हैसियत से कामरेड अतुल अंजान साहब ने भी उसमें सहयोग किया था। इसी सिलसिले में पी एंड टी ग्राउंड ,आगरा में एक जनसभा में कामरेड अतुल अंजान ,वी पी सिंह और राज बब्बर के साथ  मंच पर बैठे थे जैसे ही उनकी निगाह आगरा,भाकपा के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी पर पड़ी जो ज़िला-स्तर  के अन्य पार्टी नेताओं के साथ बैठे हुये थे। अंजान साहब ने अपने ठीक बगल में एक कुर्सी रखवा कर कामरेड मिश्रा जी को अपने साथ बैठा लिया था जो कि उनकी संवेदनाओं को ठीक से समझने का अनुपम दृष्टांत पेश करता है। 
*कामरेड अतुल अंजान के किसान हितों में किए गए कार्यों हेतु ही बांगला देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा उनको ढाका बुला कर सम्मानित किया गया था जो तिवारी बंधुओं की आँखों से ओझल हैं। 
*कामरेड  रमेश मिश्रा जी ने ही कामरेड अंजान की एक और विशेषता  का उल्लेख किया था कि जबकि वह किसी कार्यवश अजय  भवन ,दिल्ली गए थे और वापीसी की ट्रेन पकड़ने हेतु स्टेशन जा रहे थे। कामरेड अंजान को अपनी कार से कहीं अन्यत्र जाना था किन्तु आगरा के जिलामंत्री रमेश मिश्रा जी पर निगाह पड़ते ही उनको कार से स्टेशन छोडने का प्रस्ताव कर दिया और उनके इस आग्रह पर भी कि वह  खुद चले जाएँगे क्योंकि कामरेड अंजान को दूसरी दिशा में जाना है। कामरेड अंजान ने पहले मिश्रा जी को स्टेशन छोड़ा फिर अपने गंतव्य को गए। 

*2007 में विधानसभा चुनावों के दौरान आगरा  में राज बाबर के 'जन मोर्चा ' उम्मीदवार  डॉ डी सी  गोयल को भाकपा  का समर्थन होने के कारण मुझे भी उनके प्रचार में भाग लेना पड़ा था । तब लखनऊ में PWD में इंजीनियर रहे डॉ साहब के बड़े भाई साहब से मुलाक़ात हुई थी उनका भी यही कहना था कि उत्तर-प्रदेश कम्युनिस्ट पार्टी के एक जुझारू नेता के रूप में वह भी कामरेड अतुल अंजान को ठीक समझते हैं तब उनके अनुसार अंजान साहब के दिल्ली चले जाने के बाद से यहाँ कोई दूसरा जुझारू नेता नहीं बचा है। 30 सितंबर 2013 की सफल रैली जिसे अंजान साहब ने संबोधित करते हुये  राजनीतिक सन्नाटा तोड़ने  
वाली बताया था डॉ गिरीश  उस रिक्तता की पूर्ती करते नज़र आए थे। किन्तु उनके सहयोगी तिवारी बंधु यहाँ किसी के भी सफल होने पर अपने स्वार्थों की गाड़ी अटकने के अंदेशे से अफरा-तफरी और टोटकेबाजी करके उनके मार्ग को अवरुद्ध कर रहे हैं।

डॉ गिरीश का मार्ग अवरुद्ध करके एवं एक सहृदय लोकप्रिय कामरेड  अतुल अंजान पर प्रहार करके तिवारी बंधु उत्तर प्रदेश में भाकपा को मजबूत नहीं होने देना चाहते हैं । क्योंकि यदि यहाँ कामरेड अतुल अंजान की अगुवाई में वामपंथी वैकल्पिक मोर्चा बंनता है तो जनता उसके प्रति निश्चय ही आकृष्ट होगी और उससे भाकपा को मजबूती एवं सफलता ही मिलेगी। 'चिराग तले अंधेरा' का इससे बड़ा और क्या उदाहरण हो सकता है?

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मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

डा.राजेन्द्र प्रसाद की जन्म कुंडली- (03दिसंबर जयंती पर विशेष) ---विजय राजबली माथुर


भारत क़े प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की जयंती प्रतिवर्ष 03 दिसंबर को धूम धाम से मनाई जाती है। आइये देखें इतनी विलक्षण क्षमता प्राप्त कर क़े वह कैसे इतना ऊपर उठ सके  :


उनकी जन्म कुंडली से स्पष्ट है कि चन्द्रमा से केंद्र स्थान में बृहस्पति बैठकर गजकेसरी योग बना रहा है इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति अनेक मित्रों,प्रशंसकों व सम्बन्धियों में घिरा रहता है व उनके द्वारा सराहा जाता है। स्वभाव से नम्र,विवेकवान व गुणी होता है। तेजस्वी,मेधावी,गुणज्ञ,तथा राज्य पक्ष में प्रबल उन्नति प्राप्त करने,उच्च  पद प्राप्त करने तथा मृत्यु क़े बाद भी अपनी यश गाथा अक्षुण रखने वाला होता है। ठीक ऐसे ही थे राजेन्द्र बाबू जिनका जन्म बिहार क़े छपरा जिले में जीरादेई ग्राम में हुआ था। एक किसान परिवार में जन्म लेकर अपने बुद्धि कौशल से राजेन्द्र बाबू ने वकालत पास की उस समय कायस्थ वर्ग सत्ता क़े साथ था परन्तु राजेन्द्र बाबू ने गोपाल कृष्ण गोखले क़े परामर्श से देश की आजादी क़े आन्दोलन में कूदने का निश्चय किया और कई बार जेल यात्राएं कीं। राजेन्द्र बाबू ने स्वंत्रता आन्दोलन क़े दौरान जेल में रहकर कई पुस्तकें लिखीं जिन में 'खंडित भारत' विशेष उल्लेखनीय है। इसमें राजेन्द्र बाबू ने तभी लिख दिया था कि यदि अंग्रेजों की चाल से देश का विभाजन हुआ तो क्या क्या समस्याएँ उठ खडी होंगी और हम आज देखते हैं कि दूर दृष्टि कितनी सटीक थी। डा.राजेन्द्र प्रसाद मध्यम मार्ग क़े अनुगामी थे और उन्हें नरम तथा गरम दोनों विचारधाराओं का समर्थन प्राप्त था। जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस महात्मा गांधी क़े उम्मीदवार डा.पट्टाभि सीता रमैया को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो गये तो गांधी जी क़े प्रभाव से उनकी कार्यकारिणी में कोई भी शामिल नहीं हुआ और सुभाष बाबू को पद  त्याग करना पडा। उस समय कांग्रेस की अध्यक्षता  राजेन्द्र बाबू ने संभाली और स्वाधीनता आन्दोलन को गति प्रदान की। राजेन्द्र बाबू की कुडली क़े चतुर्थ भाव में मीन राशी है जिसके प्रभाव से वह धीर गंभीर और दार्शनिक बन सके। इसी कारण धार्मिक विचारों क़े होते हुए भी वह सदा नवीन विचारों को ग्रहण करने को प्रस्तुत रहे। राजेन्द्र बाबू ने एक स्थान पर लिखा है कि यदि जो कुछ पुरातन है और उससे कोई नुक्सान नहीं है तो उसका पालन करने में कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन उनके इसी भाव में स्थित हो कर केतु ने उनको जीवन क़े अंतिम वर्ष में कष्ट एवं असफलता भी प्रदान की। पंडित नेहरु से मतभेद क़े चलते राजेन्द्र बाबू को तीसरी बार राष्ट्रपति पद नहीं मिल सका और इस सदमे क़े कारण ६ माह बाद उनका निधन हो गया। परन्तु इसी केतु ने उन्हें मातृ -पितृ भक्त भी बनाया विशेषकर माता से उन्हें अति लगाव रहा। एक बार माता की बीमारी क़े चलते बोर्ड परीक्षा में वह एक घंटा की देरी से परीक्षा हाल में पहुंचे थे और उनकी योग्यता को देखते हुए ही उन्हें परीक्षा की अनुमति दी गयी थी तथा राजेन्द्र बाबू ने उस परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था। षष्ठम भावस्थ उच्च  क़े चन्द्र ने भी उन्हें हर प्रकार क़े सुख प्राप्त करने में सहायता की। नवम क़े बृहस्पति तथा दशम क़े राहू ने राजेन्द्र बाबू को राजनीति में दक्षता प्रदान की तो द्वादश क़े सूर्य ने शिक्षा क़े क्षेत्र में प्रसिद्धि दिला कर दार्शनिक बना दिया। 


समय करे नर क्या करे,
समय बड़ा बलवान।

असर ग्रह सब पर करे

परिंदा,पशु,इंसान। ।

हम देखते हैं कि विद्वान् कवि क़े ये उदगार राजेन्द्र बाबू पर हू ब हू लागू होते हैं.उनके जन्मकालीन ग्रह नक्षत्रों ने उन्हें स्वाधीन भारत क़े प्रथम राष्ट्रपति क़े पद तक पहुंचाया.आजादी से पूर्व वह संविधान निर्मात्री सभा क़े अध्यक्ष भी रहे.अपने पूर्वकालीन संस्कारों से अर्जित प्रारब्ध क़े आधार पर ग्रह नक्षत्रों क़े योग से डा.राजेन्द्र प्रसाद स्तुत्य बन सके ।


 
 http://krantiswar.blogspot.in/2010/12/03.html

(02 दिसंबर 2010 को यह लेख प्रस्तुत लिंक पर पूर्व प्रकाशित है। )

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गुरुवार, 28 नवंबर 2013

हँसता हुआ भागा रोता हुआ रोगी और एक ही फायर में मुर्दा जी उठा ---विजय राजबली माथुर


(स्व .हर मुरारी लाल ,स्व.के .एम् .लाल और स्व .सावित्री देवी माथुर )
(चित्र में कुर्सी पर बैठे हुये माँ के फूफाजी स्व .हर मुरारी लाल साहब खड़े हैं गोपाल मामजी -स्व.के .एम् .लालसाहब एवं रानी मौसी -स्व .सावित्री देवी माथुर साहिबा )

बहुत मुश्किल है कुछ यादों को भुलाया जाना (भाग-5-माँ के फूफाजी ).........................................
आज फिर बउआ के फूफाजी का स्मरण यों ही अनायास नहीं है। अभी कुछ समय पहले ही हमने स्वास्थ्य संबंधी एक नया ब्लाग अपनी श्रीमतीजी के कहने पर शुरू किया है। तब से ही मन में उनके द्वारा की गई कुछ चर्चाएं घुमड़ रही थीं। अक्सर वह हमारे नानाजी से मिलने आते रहते थे और हम लोग बाबूजी की सिलीगुड़ी पोस्टिंग के दौरान नानाजी के पास कुछ वर्ष रहे थे अतः उनकी बातें सुनने का सौभाग्य मिल गया था। कुछ रहस्यपूर्ण राजनीतिक बातें तो उन्होने विशेष रूप से मुझसे ही की थीं जिस पर नाना जी और उनके दूसरे भाई भी आश्चर्य चकित हुये थे तथा उनसे प्रश्न किया था कि उन लोगों को अब तक ये बातें क्यों नहीं बताई थीं?जिसके उत्तर में उनका कहना था यह लड़का आगे इंनका लाभ उठा सकेगा आप लोग सुन कर भी कुछ नहीं करते। उनका आंकलन गलत नहीं था परंतु मैं उनके अनुमान का आधार नहीं जानता। इसी प्रकार चूंकि नानाजी होम्योपेथी चिकित्सा करते थे उनसे चिकित्सकों के बारे में वह चर्चाएं करते रहते थे। आज उन्हीं पर प्रकाश डालना चाहता हूँ।

एक घटना के बारे में उन्होने बताया था कि एक डाक्टर साहब नियमों के पक्के और हर गरीब-अमीर से समान व्यवहार करने वाले थे। उनके पास मरीजों की काफी भीड़ लगी रहती थी क्योंकि वह नाम मात्र शुल्क पर इलाज करते थे। एक रोज़ उनके क्षेत्र का एक सफाई कर्मी रोता चिल्लाता उनके पास लाया गया और उनसे अनुरोध किया गया कि वह उसे पहले देख लें। किन्तु उन्होने उसे अपने नंबर आने तक इंतज़ार कराने को कहा। उसकी कराह और पीड़ा को देख कर दूसरे मरीजों ने भी आग्रह किया कि डॉ साहब उसको ही पहले देख लीजिये। लेकिन डॉ साहब ने नियम का हवाला देते हुये उसे अपनी बारी का इंतज़ार  करने को कहा। डॉ साहब ने तब तक के लिए उसके  तीमारदार से उसे भुने चने खिलाते रहने को कह दिया। दो -ढाई घंटे बाद जब उसको नंबर आने पर बुलाया गया तब वह नदारद था। इंतज़ार में बैठे बाकी मरीजों ने बताया कि डॉ साहब वह तो हँसता-हँसता चला गया यह कहता हुआ कि ,"कौन डॉ साहब का इन्तजार करे?मेरा तो दर्द उनको दिखाये बगैर ही ठीक हो गया।अब तो मैं शौच को जा रहा हूँ ।  "
डॉ साहब ने भी हँसते हुये कहा कि उसके दर्द की वही दवा थी जो मैंने उसको दिलवा दी थी तो फायदा तो होना ही था और इस बात को मैं जानता था। लोगों की उत्सुकता पर डॉ साहब ने बताया कि कल रात बस्ती में एक शादी थी जिसमें उसने खूब चर्बी वाले भोजन खाये होंगे और वह चर्बी आंतों पर दबाव बना रही होगी जिसको भुने चनों ने सोख लिया और  उसका पेट दर्द खत्म हो गया होगा ।

एक और घटना का ज़िक्र नानाजी से माँ के फूफा जी ने जो किया था उसका उल्लेख करना इसलिए ज़रूरी है कि आज के एलोपेथी चिकित्सक तो इस घटना को झुठला देंगे जबकि वह डॉ साहब भी एलोपेथी के ही थे। उनकी बताई घटना इस प्रकार थी :
एक गर्भिणी स्त्री को अक्सर मूर्च्छा आ जाया करती थी जिसका इलाज यह डॉ साहब करते थे। किन्तु किसी रिश्तेदार के कहने पर उस महिला के घर वालों ने किसी बड़े डॉ के फेर में इनको दिखाना बंद कर दिया था। एक सुबह जब डॉ साहब टहल कर लौट रहे थे तो उन्होने देखा कि उस महिला के घर वाले एक अर्थी ले जा रहे हैं जिससे खून की बूंदें भी टपकती जा रही थीं। किसी से उन्होने उत्सुकता वश पूछ लिया कि कौन है यह जब उनको बताया गया कि एक प्रिगनेंट औरत कल रात में मर गई है और यह उसी की अर्थी है। डॉ साहब बुदबुदाये कि ज़िंदा को फूंकने जा रहे हैं ,पुलिस को खबर हो जाये तो सबके सब बंद हो जाएँगे और तेज़-तेज़ कदमों से आगे बढ़ गए।

डॉ साहब की बात पर लोगों में फुसफुसाहट हुई कि डॉ साहब ने यह क्यों कहा कि ज़िंदा को फूंकने जा रहे हैं। कुछ जानकारों ने हिम्मत करके लपक कर डॉ साहब को रोका और पूछा कि डॉ साहब आप क्या कह रहे थे?डॉ साहब बोले कि कुछ नहीं कहा आप लोग अपना काम करें। एक साहब बोले कि डॉ साहब आपने कहा था कि ज़िंदा को फूंकने जा रहे हैं। डॉ साहब बोले तो जाओ फूँकों। लोगों की मिन्नत के बाद बोले कि इस मुर्दे को लेकर हमारे साथ हमारे घर चलो । लोगों ने वैसा ही किया। 

अपने घर के चबूतरे पर डॉ साहब ने उस महिला की अर्थी को रखवा कर उसके बंधन खुलवा दिये और खुद घर के भीतर घुस गए। जब लौटे तो उनके हाथ में लोडेड बंदूक थी । लोगों ने कहा कि डॉ साहब यह क्या?तब तक डॉ साहब ने हवा में फायर कर दिया और वह महिला हिलने-डुलने लगी। थोड़ी देर में उसने पूछा यह क्या तमाशा है हमारे साथ यह भीड़ क्यों और हमें बांधा क्यों?अब तो सभी लोगों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। डॉ साहब ने अपने घर से उस महिला को वस्त्र दिलवाए और लोगों को सख्त हिदायत दी कि अब से कभी भी मूर्छा आने पर वह किसी और डॉ के पास नहीं जाएँगे तथा उनको ही सूचित करेंगे। निर्धारित समय पर उस महिला ने संतान को जन्म दिया और स्वस्थ रही। 

दरअसल उस महिला को मिर्गी  नहीं थी जैसा कि उसके घर वाले समझते थे और दूसरे डॉ साहब भी। उस महिला का गर्भस्थ शिशु कभी कभी स्थानच्युत होकर अपना हाथ उस महिला के हृदय पर रख देता था जिससे उतनी देर को वह महिला मूर्छावस्था में पहुँच जाती थी। जब तक इन डॉ साहब को बुलाया जाता था यह बिना कोई दवा दिये उसके पेट पर हाथ फेर कर शिशु को सही अवस्था में पहुंचा देते थे जिससे मूर्छा हट जाती थी। लेकिन घर के लोग मृगि  के शक में दूसरे डॉ से दिखाने लगे जिनको इस तथ्य का पता न था। विगत दिवस की घटना में वह गर्भस्थ शिशु अपनी माँ के हृदय पर हाथ रखने के बाद सो गया था और मूर्छा लंबी होने से घर वालों ने मृत मान कर दाह-संस्कार का निर्णय कर लिया था। इत्तिफ़ाक से यह डॉ साहब टहल कर लौट रहे थे तो अर्थी से गिरती खून की बूंदों को देख कर समझ गए थे कि उस महिला की मौत नहीं हुई है। उनके द्वारा बंदूक के फायर करने से गर्भस्थ शिशु जाग गया था और उसने अपना हाथ अपनी माँ के हृदय के ऊपर से हटा लिया था जिससे वह पूर्व वत गतिमान हो गई थी। 

लोगों की ज़रा सी चूक और दूसरे डॉ द्वारा हकीकत न समझने से एक महिला और उसके अजन्मे शिशु की अकारण मौत हो सकती थी जिसे इन अनुभवी चिकित्सक की सोझ बूझ से बचा लिया गया था। 

नानाजी और बउआ के फूफाजी के मध्य होने वाली तमाम राजनीतिक बातों को ध्यान में रख कर मैं व्यवहार की कसौटी पर कई बार कस चुका हूँ। हालांकि आज न वह नानाजी और न ही उनके वे पुत्र-पुत्री (जो चित्र में साथ हैं)ही इस संसार में हैं किन्तु 50 वर्ष पूर्व सुनी हुई उन बातों को स्मरण करते हुये ऐसा लगता है कि अभी कल ही की तो बातें हैं। 

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रविवार, 24 नवंबर 2013

बोनस की ज़िंदगी---विजय राजबली माथुर

12 घंटे जीवित रही संतान को श्रद्धांजली स्वरूप :

दिसंबर 1981 का यह चित्र होटल मुग़ल शेरटन,आगरा में 'सुपरवाईजर अकाउंट्स'के रूप में कार्यरत रहने के दौरान साथ खड़े असिस्टेंट मेनेजर द्वारा फोटोग्राफर से खिंचवाया गया था। इस पर यूनिट फ़ाईनेंशियल कंट्रोलर रत्नम पंचाक्क्षरम साहब ने कहा था-'he looks like Chandrashekhar' जिस पर साथ खड़े कपूर साहब ने कह दिया 'tomorrow we will salute him'तिस पर पंचाक्क्षरम साहब ने कहा-'why not yesterday'। फिक्ज़्ड एसेट्स इनवेंटरी में पौने छह लाख का घपला पकड़ने पर बजाए मुझे पुरस्कृत करने के पंचाकक्षरम साहब द्वारा 1984 में मुझे सस्पेंड और 1985 में बर्खास्त करा दिया गया।
मैं कभी चंद्रशेखर को ठीक समझता था;परंतु मोरारजी के बाद बाबू जगजीवन राम के विरुद्ध खड़े होने तथा वी पी सिंह सरकार को गिराने के बाद आडवाणी से गले मिलने के चंद्रशेखर के कृत्यों के कारण वह मेरी पसंद से बाहर हो चुके हैं।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=601652216563425&set=a.154096721318979.33270.100001559562380&type=1&theater
(मेरे दाईं ओर खड़े हुये राम प्रकाश चतुर्वेदी उनके दाईं बाबू मेथ्यू बैठे हुये सुभाष कपूर,उनके दाईं खड़े ठाकुर दास,उनके दाईं बैठे एडवर्ड गोरडेन तथा सामने की ओर टेलीफोन लिए बैठे अरुण चतुर्वेदी (राज बब्बर के मित्र समीर चतुर्वेदी के छोटे भाई)


32 वर्ष पूर्व के इन चित्रों को शेयर करने का कारण मात्र उपरोक्त फेसबुक स्टेटस ही नहीं है। उसमें वर्णित होटल मुगल जाब से हटने का कारण तो तात्कालिक परिस्थितियों पर आधारित था किन्तु उसके अनंतर 'आंतरिक' और 'बाह्य' शक्तियों की ईर्ष्या भी एक सबल आधार थी जिसने परिस्थितियों को यों करवट दिलवाई। जून 1975 में आपात काल लागू होने के बाद मेरा मेरठ वाला जाब बर्खात्सगी के कारण छूट गया तो मैं आगरा आ गया और सितंबर में होटल मुगल में जाब पा गया था। 20 नवंबर 1975 को बहन शोभा का विवाह हो गया  था जिनको दिसंबर में बाबूजी ने अलीगढ़ से बुलवाया था और उनको वापिस ले जाने कमलेश बाबू जनवरी 1976 में आगरा आए थे। तब माँ ने उनसे शिकायती लहजे में कहा था कि यह (अर्थात मैं) मकान नहीं बना रहा हूँ । उस पर कमलेश बाबू का जवाब था कि 'हाँ' अब तो यही मकान बना सकते हैं बाबूजी नहीं क्योंकि चाहे एक-एक कमरे के लें उनको तो तीन मकान लेने पड़ेंगे। मतलब साफ था कि यदि बाबूजी बनाएँगे तो उसमें शोभा को भी हिस्सा देना पड़ेगा। उससे पूर्व शोभा से उन्होने अलीगढ़ में ही कहा था कि बाबूजी दरियाबाद में अपना हिस्सा ले लें तो वह BHEL,हरिद्वार से नौकरी छोड़ कर उनके बिहाफ पर देखने दरियाबाद चले जाएँगे। अर्थात उनकी निगाह तो बाबूजी की पैतृक संपत्ति तक पर थी।

इसलिए जब 1978 में मैंने कमलानगर,आगरा में आवास-विकास परिषद से एक एल आई जी मकान किश्तों पर ले लिया तो कमलेश बाबू को लगा होगा कि बाबू जी ने बेटी को हिस्सा न देने के कारण मेरे नाम कर दिया है। यदि ऐसा होता तो क्या छोटे भाई अजय ने चुप-चाप बख्श दिया होता? रु 275/-प्रतिमाह की किश्तों पर वह मकान एलाट हुआ था। अपने वेतन से किश्त अदा करने के बाद बिजली आदि के खर्च मैं ही देता था और जब रहने पहुंचे थे तो बाबूजी रिटायर हो चुके थे। लेकिन तमाम रिशतेदारों (जिनमें बहन-बहनोई भी थे उनका खुलासा तो 2011 में ही हो पाया है) समेत होटल के सहकर्मियों को भी अखरा था कि मात्र 26 वर्ष की आयु में कैसे इसका अपना मकान बन गया। असिस्टेंट मेनेजर  ईर्ष्यालु होटल कर्मियों का नायक था और चंद्रशेखर संबंधी उसका उद्धरण इसी संदर्भ में था। किश्तें 1993 तक चलनी थीं और 1985 में जाबलेस होने के कारण मैं विफल होकर मकान से वंचित हो जाऊंगा ऐसी उन सब की सोच थी। किन्तु मैंने चने-परमल भी खा कर दुकान-दुकान की नौकरी करके किश्तें पूरी चुका दी और रेजिस्टरी भी बिना रिश्वत दिये करा ली। टर्मिनेशन के बाद पिटीशन देने के कारण AITUC के और उसके जरिये CPI के संपर्क में आ गया था। 1992  में भाकपा,आगरा में दोबारा ज़िला कोषाध्यक्ष नियुक्त हुआ था।तत्कालीन जिलामंत्री कामरेड के माध्यम से गवर्नर मोती लाल बोरा जी को आवास-विकास विभाग द्वारा परेशान किए जाने की शिकायत भिजवाई थी जिस पर उन्होने राष्ट्रपति शासन के दौरान त्वरित कारवाई करवाई और मेरा कार्य बगैर रिश्वत दिये सम्पन्न हो सका था। 
1994 में शालिनी की मृत्यु के बाद शोभा ने माँ से साढ़े दस वर्षीय यशवन्त को अपने साथ ले जाने का प्रस्ताव किया और अजय की पत्नी ने उस प्रस्ताव को रद्द करा दिया (मुझे ये सब बातें बहुत बाद में तब पता चलीं जब माँ व बाबूजी ने पूनम से विवाह कर लेने की बात की)। शालिनी के सबसे बड़े भाई कुक्कू जो कमलेश बाबू के भतीज दामाद थे (2011 में ही  लखनऊ में इस बात का खुलासा हो सका) के माध्यम से 1982 में मुझे दो बार मार डालने का प्रयास हुआ था। परंतु 24 नवंबर 1982 को यशवन्त का बड़ा भाई सुबह चार बजे जन्म लेकर शाम चार बजे यह संसार छोड़ गया था जबकि मुझे मार डालने के उनके प्रयास विफल हो गए थे।
जिस प्रकार हमारी भुआ कैलाश किशोरी साहिबा ने रामेश्वरम में बिजली के DC करेंट की चपेट मे आ कर एक हाथ तुड़वाने के बावजूद अपने एक भाई से मुकदमे बाज़ी मे छल के जरिये जीत हासिल की और मेरे विरुद्ध भी सुनियोजित अभियान चलाया उसी प्रकार खुद को उनकी सगी भतीजी साबित करते हुये डॉ शोभा (पत्नी कमलेश बिहारी माथुर S/O सरदारी बिहारी माथुर,विजिलेन्स आफिसर,रेलवे,अलीगढ़)ने मेरे व यशवन्त के विरुद्ध अभियान चला रखा है। अजय व उनकी पुत्री के भी विरुद्ध हैं। माईंजी के तथा भुआ के बेटों के माध्यम से शोभा/कमलेश बाबू ने अजय का मुझसे भी संपर्क तुड़वा रखा है।  शालिनी के घर वाले तो कमलेश बाबू के रिश्तेदार पहले से ही थे जिनको मेरे विरुद्ध उनका गुप्त-आंतरिक समर्थन था।
पूना में बस गई शोभा की छोटी पुत्री चंद्रप्रभा उर्फ मुकतामणि ने पूना प्रवासी(और पटना की मूल निवासी)रश्मिप्रभा के माध्यम से न केवल ब्लाग जगत में मेरे व यशवन्त के विरुद्ध लामबंदी करके अभियान चलाया बल्कि रश्मिप्रभा की एक रिश्तेदार के माध्यम से उनके रिश्तेदार भाकपा पदाधिकारी (यूनियन बैंक आफ इंडिया का कारिंदा)के माध्यम से पार्टी में भी मेरे विरुद्ध अभियान चलवाया था जिसके अंतर्गत 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'ब्लाग में लेखन की आड़ में मेरा आई डी/पासवर्ड उस भ्रष्ट पदाधिकारी ने हासिल कर लिया जिसका उद्देश्य रश्मिप्रभा आदि ब्लागर्स संबंधी मेरे पोस्ट्स को ब्लाग से उड़ा देना था। इसमें विफल रहने पर नौ अक्तूबर 2013 को उस पदाधिकारी ने मुझे उस ब्लाग के लेखन/एडमिन कार्य से हटा दिया था। 10 अक्तूबर को ही 'साम्यवाद (COMMUNISM)'नामक एक नया ब्लाग मैंने प्रारम्भ कर दिया है और 23 नवंबर 2013 से 'UNITED COMMUNIST FRONT' नामक एक नया फेसबुक ग्रुप प्रारम्भ कर दिया है। इस प्रकार (चाहे रिशतेदारों का जितना भी विरोध हो) हमें अनेक लोगों का समर्थन और प्रोत्साहन मिल ही जाता है और वही हमारा संबल व पूंजी है।
 सच में हमारे लिए यह'आत्म बल का पुरस्कार ' 'कठिनाइयों व दुखों' की तुलना में हज़ार गुना अधिक मूल्यवान है। ज्योतिष में पूर्ण आयु 60 वर्ष को मान लिया जाता है। इस प्रकार मैं अपनी पूर्ण आयु प्राप्त कर चुका हूँ और बोनस की इस ज़िंदगी में जितना भी सार्वजनिक सेवा कार्य सम्पन्न कर सकूँगा उतना ही अधिक दूसरे लोग लाभ उठा सकेंगे। जो भी लोग मुझे रास्ते से हटाने में सफल होंगे वे सार्वजनिक सेवा के मार्ग को बाधित करके जन-द्रोही कार्य ही सम्पन्न करेंगे। इसलिए मैं पूर्ण रूप से निश्चिंत हूँ।

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मंगलवार, 12 नवंबर 2013

बहुत मुश्किल है कुछ यादों का भुलाया जाना (भाग-4)

 पहले कुछ चाचाजी साहब की लखनऊ यात्रा के संबंध में,फिर पलटते हैं अतीत के कुछ पन्नों को :

02 नवंबर 2013 
https://www.facebook.com/groups/331682593586639/permalink/536345669786996/ 
कल धन्वन्तरी जयंती पर एक विस्तृत लेख 'सर्वे भवन्तु...'ब्लाग में दिया था समस्त मानवता के स्वस्थ जीवन व्यतीत करने हेतु। इस स्वास्थ्य संबंधी ब्लाग एवं 'साम्यवाद...'ब्लाग निकालने हेतु मुझे मेरी पत्नी 'पूनम' द्वारा प्रेरित किया गया है। कल ही पटना से चल कर पूनम के एक चाचा लखनऊ 'संजय गांधी ...'संस्थान में इलाज के वास्ते आए हैं। घरेलू उपाय न आज़माने एवं घर के वास्तु दोषों का निवारण न करवाने (जिनके बारे में उनको मैंने नौ वर्ष पूर्व बताया था)के कारण ही उनको गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। लोग एलोपेथी पर अंध भक्ति रखने के कारण जो कष्ट उठाते हैं उससे मुझे वेदना होती है इसी कारण स्वास्थ्य संबंधी ब्लाग शुरू किया था क्योंकि 'चिकित्सा समाज सेवा है-व्यवसाय नहीं'। हम इन दीपावली पर्वों पर सभी जनों के शारीरिक एवं मानसिक खुशहाली की कामना करते हैं।
08 नवंबर 2013 
 https://www.facebook.com/groups/331682593586639/permalink/539622606125969/
आजकल मेरी श्रीमतीजी के एक चाचा SPGI में किडनी की खराबी की वजह से ही इलाज कराने पटना से आए हुये हैं। उनकी तकलीफ देख कर वेदना हुई परंतु वे लोग एलोपेथी पर अंध-भक्ति के कारण इन प्राकृतिक उपचारों पर ध्यान नहीं देते हैं और न ही वास्तु दोषों (जो नौ वर्ष पूर्व अवगत करा दिये थे)का ही निवारण करा सके हैं। वे लोग चुटियाधारी,रामनामी गमछा ओढ़े पोंगा-पंडितों के चक्र में रहे हैं जिस कारण आज इतनी तकलीफ उठा रहे हैं। यदि और लोग सबक सीख कर इस पोस्ट का लाभ उठा सकें तो उत्तम है।
http://vijaimathur05.blogspot.in/2013/11/kidney-cleanser-foods.html
श्रीमतीजी को जब पटना से चाचाजी साहब के लखनऊ आने के बारे में सूचना न प्राप्त हो सकी तब उन्होने सीधे  चाची जी से फोन वार्ता द्वारा उनका हाल पूछा और हम छह नवंबर को उनसे एक घंटे इंतजार के बाद  भेंट कर सके क्योंकि वह आँखों के OT में थे जब हम SGPGI पहुंचे थे । नौ तारीख को जब हम दोबारा मिलने गए तब डॉ द्वारा उनको डिस्चार्ज करने की बात कही गई क्योंकि वह पहले से बेहतर हो गए । अतः अगले दिन10 तारीख की शाम को हम फिर मिलने गए तब उनके गोरखपुर जाकर आगे का इलाज कराने की जानकारी मिली।  चूंकि हम लोग उनके लिए खाना-नाश्ता ले जाते थे अतःडायलेसिस से आते ही  चाचा जी ने शायद उसी को  मद्दे नज़र रखते हुये पूनम व मुझे आशीर्वाद स्वरूप कुछ रुपए भेंट किए या फिर पूनम ने उनके पुत्र को छोटे भाई के रूप में जो दिया था उसमें से आधा लौटा दिया। 
चाचा जी ने अपने मकान के वास्तु-दोष का निराकरण न कराने का कारण यह बताया कि उनको किसी पंडित ने समझा दिया था कि 'नैऋत्य'कोण का बढ़ा होना उनके लिए शुभ है। मैं चूंकि ब्राह्मण या पंडित जाति का नहीं हूँ इसलिए चाचा जी ने मेरे सुझाव  को न मान कर ब्राह्मण पंडित का आसरा लिया और उसने उनको गुमराह करके कष्टों में पहुंचा दिया। इस दोष का प्रभाव उनके दोनों पुत्रों  व पौत्र पर भी पड़ा है। ब्लाग्स में भी पटना की मूल निवासी एवं पूना प्रवासी श्रीवास्तव ब्रादरी की एक ब्लागर जिसने खुद चार-चार जन्म पत्रियों का विश्लेषण मुझसे निशुल्क प्राप्त किया था मेरे ज्योतिष ज्ञान पर IBN7 में कार्यरत अपने चमचा श्रीवास्तव ब्लागर द्वारा प्रहार करवाया था। इस पूना प्रवासी ब्लागर ने पूना स्थित मेरी छोटी भांजी और चाचाजी की एक और भतीजी के साथ गठबंधन करके हमारे दोनों तरफ के रिशतेदारों के बीच भी हमारे विरुद्ध व्यापक दुष्प्रचार अभियान चलाया है जिस कारण ही गत वर्ष पूनम को बुलाने जाने पर हम लोगों ने गोलघर पर समय व्यतीत कर दिया लेकिन उनके भाई जान के घर इसलिए  नहीं गए थे,क्योंकि वह पूना स्थित अपनी चचेरी बहन(जिसके छली भाई को मैंने लखनऊ अपने घर नहीं आने दिया था तब उनका कथन था कि वह खुद  आयें या उनका वह चचेरा भाई आए एक ही बात है) और उसकी माँ को निर्दोष मानते हैं । इन सब बातों का विस्तृत वर्णन चाचाजी और चाची जी को बता दिया है। अभी तो वह इलाज में व्यस्त हैं लेकिन बाद में गौर करेंगे तो उनको ही लाभ होगा। 
अगस्त 2009 में जब हम आगरा से  पटना जाने पर इन्ही चाचाजी से मिलने गए थे क्योंकि तब वह दिल्ली हार्ट -सर्जरी के लिए जाने वाले थे।तब भी उनकी वह धूर्त भाभी (जिनकी पुत्री पूना में है) समस्त वार्ता के दौरान इस तथ्य के बावजूद उपस्थित रहीं कि मैं उनको 'नमस्ते' -अभिवादन तक नहीं करता हूँ। उनकी धूर्तता के परिणाम स्वरूप मुझे लखनऊ का मकान लेने में ज्ञात जानकारी के अनुसार एक लाख रुपयों की ठगी का शिकार होना पड़ा था। हालांकि उन धूर्त को खुद कोई लाभ तो न हुआ परंतु मुझको नुकसान पहुंचाने से उनको परम संतोष की प्राप्ति हुई । अतः मैं उन धूर्त समेत उनकी समस्त संतानों को घृणास्पद मानता हूँ और पूनम के भाई जान को मेरा यह दृष्टिकोण नापसंद है। मैं उनकी पसंदगी की खातिर और अधिक नुकसान झेलने को बिलकुल तैयार नहीं हूँ। उन्होने अपने पूरे परिवार को मेरे प्रति नफरत से भर दिया है जिसका मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पसकता और मैं उनकी धूर्त चाची (और बच्चों समेत)को रिश्तेदार के रूप में कुबूल नहीं कर सकता। 
दिसंबर में पटना में एक समारोह में शामिल होने का निमंत्रण भी है और खुद पूनम का कुछ काम भी अटका पड़ा है फिर भी इसलिए जाना संभव नहीं है कि वह कार्यालय उनके भाई जान के घर के बगल में स्थित है। हालांकि लखनऊ होकर गई  चाची जी ने तो अपने घर भी  रुकने का प्रस्ताव दिया है किन्तु कार्य हेतु तो पूनम को अपने भाई जान के पड़ौमें ही जाना होगा और फिर उनके घर न जाएँ यह उनके लिए संभव न होगा। पूना प्रवासी ब्लागर,हमारी भांजी और पूनम की एक चचेरी बहन की तिकड़ी छल द्वारा आज हमें जो नुकसान पहुंचा लें इसके खामियाजे से वे लोग भी बच न सकेंगे। यदि लखनऊ होकर लौटे चाचाजी,चाची जी इतना नुकसान-परेशानी उठाने के बाद मेरी बात समझ सके होंगे तो आगे से उनको भी बचाव करके लाभ व स्वस्थ्य लाभ दोनों मिल सकेगा। हम उनकी कुशलता के लिए मंगलकामना करते हैं। 

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गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

बाबूजी का स्मृति चित्रण ---विजय राजबली माथुर

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

रावण वध एक पूर्वनिर्धारित योजना.- (पुनर्प्रकाशन)



(यों तो हमारे पिताजी का जन्मदिन 04 सितंबर 1920  माना गया है और उसी के आधार पर 30 सितंबर 1978 को उनका रिटायरमेंट भी हुआ था। किन्तु पुराने कागजों मे उनकी एक जन्मपत्री मिली जिसके अनुसार उनका जन्म 24 अक्तूबर 1919  को हुआ था। अतः इस लेख का पुनर्प्रकाशन मैं अपने पिताजी स्व.ताज राज बली माथुर साहब को उनके जन्मदिन पर श्रद्धा पूर्वक समर्पित करता हूँ। )



गत वर्ष 'क्रांतिस्वर' ब्लाग में उपरोक्त उल्लेख के साथ बाबूजी के जन्मदिन पर पहली बार स्मरण किया था। आज यदि वह होते तो आज ही दिवंगत हुये मन्ना डे जी के समान 94 वर्ष की आयु को प्राप्त हुये होते परंतु उनको इस संसार से कूच किए हुये लगभग साढ़े 18 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं किन्तु उनकी स्मृति तो जीवन पर्यंत अक्षुण  रहेगी।

बाबूजी के आज के जन्मदिन की पूर्व वेला में कल दिनांक 23 अक्तूबर 2013 को दो ऐसे फेसबुक मित्रों से भेंट का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिन्होने अपने-अपने तरीके से मुझे प्रोत्साहित व सम्मानित किया। हालांकि फेसबुक पर ही फेसबुक मित्रों के संबंध में अनेकानेक लोग विपरीत टिप्पणियाँ करते हैं परंतु मुझको अभी तक मिल चुके तमाम फेसबुक मित्रों में से फेसबुक मित्र डॉ डंडा लखनवी जी के बाद इन दोनों में भी  'आत्मीयता' मिली।  

दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में प्रतिष्ठित एवं सम्मानित हैं। दोनों के द्वारा मेरा मान किए जाने का कारण मेरा लेखन है। एक तो सुप्रसिद्ध महान लेखक हैं जिन्होने अपनी प्रकाशित दो पुस्तकें मुझे ससम्मान/सस्नेह भेंट कीं; दूसरे ने मेरे एक ब्लाग को भविष्य हेतु आज की सामयिक आवश्यकता बताया। मैं उन दोनों का हृदय से ऋणी हूँ। 

लेकिन आज मेरे लेखन को जो मान्यता या सराहना मिल रही है उसका सम्पूर्ण श्रेय श्रद्धेय बाबूजी का है। जब मैं 7-9 वर्ष की आयु में डी पी निगम गर्ल्स जूनियर हाईस्कूल,लखनऊ में कक्षा 3-4 का छात्र था तब हमारे बाबूजी मेरे लिए प्रत्येक रविवार को 'स्वतंत्र भारत' की एक प्रति ले देते थे जिस पर हमारे फुफेरे भाइयों (जिनमें से एक पूना में सेटिल हैं तो दूसरे डेढ़ किलो मीटर की दूरी पर रहते व मुझे तुच्छ समझते हैं) को एतराज होता था। वे भुआ-फूफाजी से शिकायत करते थे कि मामाजी बेकार विजय के लिए इतना खर्चा करते हैं वह क्या समझता होगा?मुझे खुद अब कुछ याद नहीं है कि उस समय वाकई मैं अखबार पढ़ कर क्या समझता था?परंतु हमारे बाबूजी कुछ तो समझते होंगे जो मेरे लिए खुद-ब-खुद पहल कर के अखबार लेने लगे थे और उस पर माँ को भी कभी कोई आपत्ति नहीं हुई थी। 1961-62  में बरेली में कक्षा 4-5 में मुझे बाबूजी अपने दफ्तर की स्टाफ क्लब से 'धर्मयुग','साप्ताहिक हिंदुस्तान',कुछ उपन्यास (जिनमें स्वाधीनता आंदोलन के कुछ क्रांतिकारी आंदोलन पर भी आधारित थे) भी पढ़ने को ला देते थे। उस पर भी माँ की तरफ से न  कोई आपत्ति थी न  ही पढ़ने से माँ ने रोका। 

1969-71 के दौरान इंटर और बी ए की पढ़ाई के समय बाबू जी अपने आफिस की लाइब्रेरी से दैनिक 'नवभारत टाईम्स' और 'हिंदुस्तान' के विगत दिवस के अंक ला देते थे जिनको अगले दिन सुबह वापिस ले जाना होता था। इनके साथ-साथ 'धर्मयुग','हिंदुस्तान','सरिता','सारिका' और कुछ उपन्यास भी लाते थे जिनको 7 दिन में पढ़ कर वापिस करना होता था। मेरठ कालेज,मेरठ में बीच के खाली पीरियड्स में मैं लाइब्रेरी के एक अलग-थलग कोने में बैठ कर जिन पुस्तकों को पढ़ता था उनमें कुछ के नाम आज भी याद हैं-काका कालेकर साहब की गांधी जी पर पुस्तक,'हिन्दी के साहित्य सेवी' आदि। स्वामी दयानन्द 'सरस्वती' के प्रवचनों का संकलन-'धर्म और विज्ञान' पुस्तक काफी मोटी  और भारी थी कई माह में उसका अध्यन पूर्ण हो पाया था। लाइब्रेरियन साहब ने अपनी कुर्सी के नीचे उस पुस्तक को रख छोड़ा था क्योंकि उनको मालूम था कि पूरा पढे बगैर मैं रहूँगा नहीं तो रोज़-रोज़ आलमारी में रखने का झंझट वह क्यों करें?'मेरठ कालेज पत्रिका' में मेरा पहला लेख-'रावण -वध एक पूर्व निर्धारित योजना' 1970-71 के अंक में छ्पा था जिसका संशोधित और विस्तारित रूप आगरा में 'सप्तदिवा साप्ताहिक' में दो किश्तों में  1982 में प्रकाशित हुआ था जिसे 'क्रांतिस्वर' ब्लाग में 2010 में चार किश्तों मे दिया गया था। गत वर्ष 2012 में आज ही के दिन बाबूजी के जन्मदिन पर उसे पुनर्प्रकाशित किया था। इस लेख पर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के डायरेक्टर माननीय डॉ सुधाकर अदीब साहब ने जो टिप्पणी दी है वह मेरे लिए 'अमूल्य निधि' है। 

आज का मेरा लेखन और उसकी विद्वजनों द्वारा मान्यता हमारे बाबूजी के ही प्रयासों व आशीर्वाद का फल है। प्रस्तुत वर्णन हमारे पूरे परिवार की ओर से  बाबूजी को श्रद्धा सुमन/नमन  के रूप में अर्पित है।         

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बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

लखनऊ पुनरागमन के चार वर्ष ---विजय राजबली माथुर

 लखनऊ से लखनऊ :
जन्म से लेकर 1961 में बाबूजी के बरेली तबादले तक लखनऊ में ही रहे थे और यहीं के डी पी निगम गर्ल्स जूनियर हाईस्कूल, हुसैनगंज से चौथी कक्षा उत्तीर्ण करके गए थे। नवंबर 1962 में बाबूजी का तबादला सिलीगुड़ी होने और सिलीगुड़ी के नान फैमिली स्टेशन होने के कारण शाहजहाँपुर में नानाजी के पास रहे। 1964 में सातवीं कक्षा पास करके सिलीगुड़ी गए और वहीं से हाईस्कूल की परीक्षा 1967 में पास करके शाहजहाँपुर से इंटर फर्स्ट ईयर1968 में  किया। 1969  में इंटर फ़ाईनल मेरठ से करके, मेरठ कालेज, मेरठ से स्नातक 1971 में किया और मई  1972 से  जून 1975 तक वहीं 'सारू स्मेल्टिंग प्रा लिमिटेड' के लेखा विभाग में कार्य किया। सितंबर 1975 से जनवरी 1985 तक 'होटल मुगल शेरटन, आगरा' में फिर मार्च - 2000 तक स्वतंत्र रूप से लेखा कार्य किया। फिर ज्योतिष  क्षेत्र को अपनाया। 

जून 2006 में  यशवन्त 'बिग बाज़ार', लखनऊ ट्रेनिंग पर आया और उसे लखनऊ इतना भाया कि उसने अपना जन्म स्थान आगरा छोड़ कर मेरे जन्म स्थान वापिस लौटने का प्रस्ताव रखा। 1978 से आगरा में अपने ही घर में रहते आने के कारण हम हड़बड़ी में नहीं थे। 2007 में वह तबादला कराकर मेरठ फिर मई 2009 में कानपुर आ गया अतः सितंबर 2009 में आगरा का मकान बेच कर हम 09 अक्तूबर को लखनऊ आ गए थे और नवंबर से अपना नया मकान लेकर यहाँ रह रहे हैं। 

 लखनऊ पुनरागमन  के चार वर्ष:
वैसे तो चार वर्षों का समय अत्यल्प ही है। परंतु इन चार वर्षों में काफी कुछ ऐसा घटित हुआ है जिसे घाटे का सौदा नहीं कह सकते हैं। हालांकि मई 2010 में कानपुर -बिग बाज़ार से रिज़ाईन करवाकर यशवन्त को लखनऊ बुलवा लेना पड़ा है । घर पर ही उसने कंप्यूटर संबंधी कार्य प्रारम्भ किया जिसे आर्थिक रूप से तो सफल नहीं कहा जा सकता है किन्तु ब्लाग-लेखन के क्षेत्र हम सभी को उसके माध्यम से एक अलग पहचान मिल सकी है।इस वर्ष  ब्लाग लेखन के एक सर्वे में यशवन्त का निजी ब्लाग -'जो मेरा मन कहे' व सामूहिक ब्लाग-'नई पुरानी हलचल' तथा मेरा ब्लाग-'क्रान्ति स्वर' तीन सौ हिन्दी ब्लाग्स के बीच स्थान प्राप्त कर सके   हैं।

'क्रांतिस्वर' मेरा पहला ब्लाग है जिसका प्रारम्भ जून 2010 से हुआ है। उसके बाद 'विद्रोही स्व स्वर में', 'कलम और कुदाल', 'जनहित में', और अभी कुछ माह पूर्व 'सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामयः' एवं 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग्स अपने चला रहा हूँ ।'जनहित' नामक एक फेसबुक ग्रुप भी जूलाई 2012 से संचालित कर रहा हूँ। दूसरों के विभिन्न ग्रुप्स में भी सक्रियता रहती है,  इनके अतिरिक्त पिछले एक वर्ष से श्रीमती जी के ब्लाग 'पूनम वाणी' का भी संचालन कर रहा हूँ। 

 परोपकार एवं सेवा भाव से हम लोगों का लेखन होता है किसी आर्थिक प्रलोभन से नहीं। अतः जहां सुयोग्य विद्वानों से सराहना मिलती है वहीं 'मेरा पेट हाऊ मैं न जानू काऊ' प्रवृति के लोगों से अवहेलना व निंदा भी। 

हमारे ब्लाग-लेखन व लखनऊ आने के कारण हमारी छोटी बहन-बहनोई हमसे बिदक गए। हमारे आगरा छोडने से पूर्व भी उन्होने कहा था कि या तो मैं उनके साथ मिल कर भोपाल में रहूँ  या पूनम के भाई साहब के साथ मिल कर पटना में। उनके अनुसार मुझे यशवन्त की पसंद को नज़रअंदाज़ करना चाहिए था जो मैंने नहीं किया। अतः मेरे साथ-साथ पूनम व यशवन्त भी उन लोगों के निशाने पर हैं। छोटी भांजी ने अपने पूना नगर में प्रवास कर रही पटना की एक ब्लागर को कालोनी की पड़ौसी होने के आधार पर गुमराह करके यशवन्त व मुझे परेशान करने हेतु प्रेरित किया। बहनोई साहब ने हमारे ताउजी के पुत्रों को गुमराह करके उनके माध्यम से हमारी कालोनी में ही हमें परेशान करने की व्यवस्था की। बाराबंकी/दरियाबाद के संपर्कों के आधार पर हमारी पार्टी भाकपा में शामिल कुछ पोंगापंथी  ब्लागर राजनीतिज्ञों   के माध्यम से हमारी स्थिति खराब करने के भी प्रयास  किए गए और किए जा रहे हैं ।

जहां तक हमारा प्रश्न है न तो हम राजनीतिक क्षेत्र का दुरुपयोग करके न ही ब्लाग क्षेत्र का दुरुपयोग करके आर्थिक कमाई करते हैं जो हमें किसी प्रकार का नुकसान इन हरकतों से हो सके। अतः हम प्रत्येक हमलावर का चाहे वह कितना भी समृद्ध व शक्तिशाली क्यों न हो डट कर मुक़ाबला करते हैं। 

एक ब्लागर साहब ने अपनी एक से अधिक पोस्ट्स में मेरे नामोल्लेख के साथ मेरे ब्लाग लेखन से दूर होने व फेसबुक में सक्रिय होने का वर्णन किया है। जबकि हकीकत यह है कि मेरे द्वारा संचालित ब्लाग्स की संख्या भी बढ़ी है और स्वभावत: पोस्ट्स की भी। मैं ब्लागर्स की आपसी गुटबाजी मे पड़े बगैर अपना लेखन जारी रखे हुये हूँ। 

 'साम्यवाद (COMMUNISM)' ब्लाग तो मुझको इसलिए बनाना पड़ा क्योंकि पार्टी के सामूहिक ब्लाग से हमारे एक राष्ट्रीय सचिव संबन्धित मेरी पोस्ट को डिलीट करके मुझे उसमें लेखन अधिकार से वंचित कर दिया गया था। ऐसा करने वाला यूनियन बैंक आफ इंडिया का कारिंदा पार्टी में दरियाबाद/बाराबंकी से संबन्धित गुमराह लोगों से प्रभावित है उसने बैंक व वकालत के लोगों को हमारी कालोनी में हमारे विरुद्ध  लामबंद कर रखा है।

कुल मिला कर  'लखनऊ पुनरागमन' हमें कुछ नए हौंसले ,नई सीख देने के कारण लाभप्रद ही रहा है बावजूद गंभीर   झंझावातों के।

   

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सोमवार, 30 सितंबर 2013

बहुत मुश्किल है कुछ यादों का भुलाया जाना (भाग-3)लखनऊ 30 सितंबर रैली -- ---विजय राजबली माथुर

आनंद प्रकाश तिवारी जी की फेसबुक वाल से
आनंद प्रकाश तिवारी जी की फेसबुक वाल सेलखनऊ 30 सितंबर  2013 रैली की एक झलक
क्योंकि लखनऊ मेरा जन्मस्थान होने और प्रारम्भिक बचपन यहीं बीतने से सदा ही मेरा प्रिय -स्थान रहा है। इसलिए आगरा से जब भी भाकपा की रैलियाँ लखनऊ आती थीं मैं अवश्य ही भाग लेने आता रहा था। आज लखनऊ में निवास करते हुये भाकपा की विशाल रैली में भाग लेने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ। मैं अपने नवीनतम ब्लाग-'साम्यवाद (COMMUNISM)' के माध्यम से इस रैली की सफलता हेतु पोस्ट्स शेयर करता रहा।  नन्ही बच्ची के उपरोक्त चित्र के माध्यम से आनंद प्रकाश तिवारी जी ने  जनता का आह्वान इस रैली में भाग लेने हेतु किया था और उन्होने 'परिवर्तन चौक' पर रैली का एक विहंगम दृश्य अपने मोबाईल के माध्यम से लेकर शेयर किया था। जब यह जत्था अग्रिम जत्थे के साथ-साथ 'परिवर्तन चौक' पर था तब प्राप्त सूचनानुसार अंतिम जत्था 'चारबाग रेलवे स्टेशन' से प्रस्थान कर रहा था। जब लगभग बीस हजार कार्यकर्ता 'ज्योतिबा फुले पार्क' रैली स्थल पहुँच चुके थे तब भी विलंब से  आने वाली ट्रेनों से प्रदर्शनकारियों का आना जारी था।

जुलूस का नेतृत्व भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड सुधाकर रेड्डी,राष्ट्रीय सचिव कामरेड अतुल अंजान,प्रदेश सचिव डॉ गिरीश चंद्र शर्मा , डॉ अरविंद राज स्वरूप एवं पूर्व प्रदेश सचिव  कामरेड अशोक मिश्रा जी ने किया। लखनऊ ज़िला काउंसिल के जत्थे का एक विशेष भाग मोटर साईकिल सवार युवा प्रदर्शंनकारी रैली में आकर्षण का केंद्र बिन्दु था ।

जहां तक रैली की भौतिक सफलता का प्रश्न है रैली पूर्ण रूप से सफल रही है और कार्यकर्ताओं में जोश का नव संचार करते हुये जनता के मध्य आशा की किरण बिखेर सकी है। लेकिन क्या वास्तव में इस सफलता का कोई लाभ प्रदेश पार्टी को या राष्ट्रीय स्तर पर मिल सकेगा?यह संदेहास्पद है क्योंकि प्रदेश में एक जाति विशेष के लोग आपस में ही 'टांग-खिचाई' के खेल में व्यस्त रहते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में पार्टी का जो रुतबा हुआ करता था वह अब नहीं बन पा रहा है। ईमानदार और कर्मठ कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न एक पदाधिकारी विशेष द्वारा निर्लज्ज तौर पर किया जाता है और उसको सार्वजनिक रूप से वाह-वाही प्रदान की जाती है। एक तरफ ईमानदार IAS अधिकारी 'दुर्गा शक्ती नागपाल'के अवैध निलंबन के विरुद्ध पार्टी सार्वजनिक प्रदर्शन करती है और दूसरी तरफ उत्पीड़क पदाधिकारी का महिमामंडन भी। यह द्वंदात्मक स्थिति पार्टी को अनुकूल परिस्थितियों का भी लाभ मिलने से वंचित ही रखेगी। तब इस प्रदर्शन और इसकी कामयाबी का मतलब ही क्या होगा?  
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Communist aapsi dwand me hi mare za rahe hain.Vaikulpik Rajniti ke prati hatash hain.Zatiwad, swsrth aur Bhrushtachar me dube chhutbhaiyo ki vishwsniyta Parmanu karar mudde par sansad me dekh Chuke hain.
Bache DO Rajnitik Dal, Zin par druwikaran hota deekh raha hai.
Partner Politics kya kahti hai ?
Kidhar Jana chahenge ??....???

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शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

बहुत मुश्किल है कुछ यादों का भुलाया जाना (भाग-2 ) ---विजय राजबली माथुर


कामरेड डॉ गिरीश  जी
चार वर्ष पूर्व जब हम आगरा से लखनऊ आए थे तो कुछ उलझनों में फंस जाने के कारण क़ैसर बाग पार्टी कार्यालय में संपर्क न कर सके ,पहला उद्देश्य यहाँ सेटिल होना था। सेटिल होने के बाद 25 सितंबर 2010 को हम डॉ गिरीश जी से संपर्क कर सके उससे पूर्व जब भी हम गए वह बाहर के टूर पर रहे। डॉ गिरीश जी को हम आगरा से इसलिए जानते थे कि वह अक्सर ही वहाँ पार्टी कार्यालय और पार्टी कार्यक्रमों में आते रहते थे। कामरेड अशोक मिश्रा जी से भी पूर्व परिचय था किन्तु इत्तिफ़ाक से वह भी न मिल पाये थे। डॉ साहब ने प्रदेश पार्टी के मुखिया होते हुये भी जिस आत्मीयता से भेंट की वह स्मरणीय रहेगी। लगभग तीन घंटे हम उनके साथ रहे। आगरा पार्टी ,वहाँ के कामरेड्स और मेरी घरेलू समस्याओं पर भी उन्होने चर्चा की। उनका कहना था कि यदि मैं पहले मिला होता तो मेरी समस्याओं का निदान वह कामरेड ख़ालिक़ के माध्यम से सहजता से करा देते। 

जब भी कभी मैं कार्यालय में उनसे मिला वह पूर्ण सौहाद्र के साथ मिले। कामरेड मिश्रा जी ने भी पहचान लिया था। AISF के कार्यक्रम के दौरान मैं डॉ साहब के निर्देशानुसार उपस्थित रहा था। उस कार्यक्रम के समापन के अवसर पर जब डॉ साहब ने उनको सहयोग करने वालों के नाम घोषित किए तो उनमें मेरा भी नाम शामिल था। यह डॉ साहब की महानता ही थी कि मुझ जैसे क्षुद्र कार्यकर्ता का नाम भी उन्होने भरे सभागार में अत्यंत सक्रिय कामरेड्स के साथ लिया। उनके निर्देशानुसार यशवन्त ने भी अपनी उपस्थिती दर्ज कराई थी अतः उसे भी मेरे अतिरिक्त AISF के बैग डॉ साहब ने प्रदान किए। 

यों तो मैं ज़िले का कार्यकर्ता हूँ परंतु डॉ साहब के निर्देश पर जब भी उन्होने याद किया मैं हाजिर होता रहा। मई 2013 में उन्होने मुझसे प्रदेश कार्यालय में कंप्यूटर कार्य में सहयोग करने को कहा और मैं सुविधानुसार वहाँ पहुँच जाता था। परंतु जिनके साथ कार्य करना था वह किसी दूसरे का दखल नहीं चाहते थे। इस बात से डॉ साहब के टूर से लौटने पर मैंने अवगत करा दिया था और स्पष्ट कर दिया था कि इसी कारण बीच-बीच में अनुपस्थित रहा था। वह साहब डॉ साहब के सामने बड़े भोले बन जाते थे लेकिन उन के टूर पर जाते ही अपने असली रंग  में दिखने लगते थे जिन सब बातों का ज़िक्र पिछले पोस्ट्स में विस्तृत रूप से हो चुका है।

मैंने 11 जूलाई 2013 को डॉ साहब से संदेह व्यक्त कर दिया था कि वह जनाब अब 'टकराव'के रास्ते पर हैं। 13 जूलाई 2013 की मीटिंग में वह मेरी कुर्सी और मेरे पैरों पर ही ठोकरें नहीं मारते रहे बल्कि पेट में भी उंगली भोंकते रहे। मैं डॉ साहब के सम्मान के कारण चुप-चाप बर्दाश्त करता रहा किन्तु उनको बाद में सूचित कर दिया था। इसी कारण 07 सितंबर 2013 की मीटिंग में मैं अनुपस्थित (पहली बार) हुआ। 09 सितंबर को कामरेड अतुल अंजान से संबन्धित मेरी एक पोस्ट को डिलीट करने के साथ ही साथ उन प्रदीप तिवारी साहब ने मुझे ब्लाग एडमिन एंड आथरशिप से हटा दिया। छह वर्ष से पी टी साहब ने प्रदेश सचिव को ब्लाग से दूर रखा था मैंने प्रदेश सचिव डॉ गिरीश साहब एवं प्रदेश सह -सचिव डॉ अरविंद राज स्वरूप साहब को निवेदन दिया कि वे ब्लाग एडमिन बन जाएँ जिसे उन दोनों ने स्वीकार कर लिया। किन्तु पी टी साहब को तीखा चुभ गया और उस पर अंजान साहब के समाचार को ब्लाग पोस्ट के रूप में देना उनको बिलकुल भी बर्दाश्त न हुआ। 

प्रदीप तिवारी द्वारा मुझे धमकाना,ठोकर मारना,पेट में उंगली भोंकना आदि-आदि तो 'सोशल एप्रोच' है। लेकिन अंजान साहब या गुरुदास दासगुप्ता जी से संबन्धित पोस्ट मेरे द्वारा देना 'व्यक्तिगत एप्रोच' है। अतः एक नया ब्लाग-,शुरू कर दिया है। इस नए ब्लाग के माध्यम से अपने राष्ट्रीय नेताओं के विचारों को सुगमता से'साम्यवाद(COMMUNISM)'  प्रकाशित कर सकूँगा। यदि डॉ साहब मुझे बुला कर मुझसे कार्य न करवाते तो मैं आज यह नया ब्लाग चलाने के बारे में सोच भी न सकता था। अतः मैं हृदय  से आदरणीय डॉ गिरीश जी का आभारी हूँ कि उन्होने मुझे इस लायक बनने की प्रेरणा दी।

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मंगलवार, 10 सितंबर 2013

पूर्वानुमान सही निकला---विजय राजबली माथुर

http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/06/blog-post_9.html
दिये गए लिंक पर मैंने 09 जून 2013 को ही लिखा था-
1)-उनके प्रवचनों का अर्थ मैंने यह तत्काल लगा लिया था कि वह मुझे परेशान करने व उखाड़ने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे।
2)- पी टी एस साहब ने तिकड़म करते हुये मेरा आई डी/पास वर्ड हासिल कर लिया तो उसका मुक़ाबला करने हेतु पास वर्ड भी तब्दील करना पड़ा एवं एक नई आई डी/पास वर्ड सार्वजनिक कार्य हेतु बनाना पड़ा। 
  3)-बहरहाल याह बात साफ है कि यदि मैं दिये आश्वासन की पूर्ती करता हूँ तो कितनी जोखिम उठानी पड़ेगी पी टी एस  महोदय की क्या-क्या कृपा हो सकती हैं? मुझे पूर्वानुमान है। 

http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/07/blog-post.html 

इस लिंक पर 03 जूलाई को लिखा था-

1)-"पी टी एस के मुझसे खफा होने का कारण मात्र इतना सा है कि उनके बड़े नेता जी  ने मुझे उनकी सहायता करने को कहा है जिसे मैंने सहर्ष निस्वार्थ भाव से स्वीकार कर लिया है। पहले उन्होने इर-रिलीवेंट कहानियाँ सुना -सुना कर मुझे भयभीत करने का प्रयास किया जिसमें असफल रहने पर  फिर तांत्रिक  प्रक्रियाओं के सहारे से मुझे ही नहीं परिवारी जनों को भी त्रस्त करने लगे। एक रोज़ मार्ग में साईकिल में पीछे से 'उ.प्र.सचिवालय' की तख्ती लगाए कार ने  टक्कर मारी तो अगले दिन एक स्कूटर ने सामने से हैंडिल में टक्कर मारी।फिर उन्होने सार्वजनिक ब्लाग में लेखन अधिकार देने के साथ-साथ एडमिन राईट्स भी दे दिये जिसके आधार पर उनके सामने मुझे अपनी आई डी से ब्लाग पोस्ट निकालने को कहा। स्व्भाविक रूप से उन्होने आई डी पासवर्ड हासिल किया होगा जिसे मैंने घर पहुँचने से पूर्व ही पुत्र के माध्यम से बदलवा लिया और वह अपने मिशन में असफल रह गए। लेकिन अब मैंने सार्वजनिक लेखन हेतु एक नई आई डी ही बना ली अतः पुनः अपने सामने उनके द्वारा पोस्ट डलवाने पर मुझे कोई दिक्कत नहीं रही किन्तु उन्होने इसके पासवर्ड से खिलवाड़ करने का प्रयास किया जिससे यह आभास हुआ कि वह मूलतः मेरी निजी आई डी का पासवर्ड हस्तगत करके मेरे ब्लाग में पूना प्रवासी ब्लागर और उसके समर्थकों के संबंध में लिखे विषय में हेरा-फेरी करके उन लोगों को साफ-साफ बचाना चाहते थे। "

2)-जो बड़े कम्युनिस्ट के रूप में स्थापित होने के बाद भी क्षुद्र ब्लागर्स के हितों के संरक्षणार्थ तांत्रिक प्रक्रियाओं का सहारा लेकर खुद को सहायता देने वाले को ही तहस-नहस कर देना चाहते हैं। यह खुद भी एक जन्मपत्री का वैवाहिक विश्लेषण मुझसे प्राप्त कर चुके हैं। 

http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/08/13.html 
इस लिंक पर लिखा था-

 1)-मैंने एजेंडा से बाहर के उस प्रस्ताव को जो अध्यक्ष की अनुमति के बिना ही रखा गया था मीटिंग -मिनिट्स में दर्ज ही नहीं किया था। अतः घोटालू साहब की योजना ध्वस्त हो रही थी जिस कारण वह बौखला गए थे और मेरी कुर्सी में लातें ठेलते-ठेलते मेरे पैरों पर भी ठोकर मारने लगे और दबाव डालने लगे कि मैं उस अवैध प्रस्ताव को मिनिट्स में दर्ज करूँ जबकि मीटिंग संचालक एवं अध्यक्ष ने और संपादक महोदय ने भी मुझसे न लिखने पर कोई आपत्ति न की थी। घोटालू साहब की अभद्रता की इंतिहा तब हो गई जब वह मेरे पेट में उंगली भोंक कर लिखने का दबाव बनाने लगे। मैंने पूरी तरह घोटालू साहब और उनके दुष्कृत्यों की उपेक्षा कर दी। 

2)-वस्तुतः पूना प्रवासी भृष्ट-धृष्ट -निकृष्ट-ठग ब्लागर की एक साथी घोटालू साहब की भाभी होती हैं जिनका ताल्लुक हमारे गृह ज़िले से है और वही घोटालू साहब के परम मित्र एक राजनीतिक दल के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष की भी रिश्तेदार हैं जिनको घोटालू साहब ने एक पूर्व विधायक के अतिरिक्त हमें परेशान करने हेतु लगाया था।  इन सबके सम्मिलित प्रयासों के बावजूद मैंने घुटने नहीं टेके तो घोटालू साहब अब निकृष्टत्तम धूर्तता पर उतर आए हैं। 

http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/08/blog-post_18.html 
 इस लिंक पर लिखा था-
 
"भृष्ट-धृष्ट ब्लागर और उसके साथी ब्लागर्स तथा घोटालू साहब मेरे ज्योतिषीय विश्लेषणों को गलत साबित करके  'पोंगापंथी-ढ़ोंगी-ठग व लुटेरे' लोगों का बचाव करना चाहते हैं जो जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ते हैं। ये लोग शोषकों-उतपीडकों/व्यापारियों/उद्योगपतियों के दलाल हैं और उनके ही दूसरे ढ़ोंगी-पोंगापंथी दलालों का संरक्षण करने हेतु मुझ पर प्रहार करवा रहे हैं।"
http://vidrohiswar.blogspot.in/2013/09/1.html

इस अंक में लिखा था-
13 जूलाई को उसी शख्स ने मीटिंग के दौरान मेरे कुर्सी पर,पैरों पर अपने पैरों से  और मेरे पेट  पर अपनी उंगली से प्रहार किए थे। उसी की कारगुजारी के कारण मुझे 18 वर्ष बाद बाहर के डाक्टर का आसरा लेकर पुत्र का इलाज करना पड़ा। तब से अब तक परिवार के सभी सदस्यों के इलाज पर लगभग रु 2000/-फिजूल खर्च हो चुके है। इस नए रमेश कटारा ने अपने मित्र एक दूसरे दल के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के माध्यम से मुझे पार्टी से अलग करवाने का विफल प्रयास किया था और अब सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ लोगों को मेरी छवी खराब करने के अभियान में लगाया है।
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मैंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ब्लाग में 04 जून 2013 को पहली पोस्ट दी थी और कल दिनांक 09 सितंबर 2013 की पोस्ट देने के बाद उन तिकड़मी महोदय ने मुझे लेखन अधिकार से वंचित  कर दिया है। 04 जून तक ब्लाग फालोर्स की संख्या छह वर्षों में कुल 50 थी और 09 सितंबर तक कुल 68 अर्थात जहां छह वर्षों में पार्टी ब्लाग का प्रचार नहीं किया गया था वहीं मेरे प्रयत्नों से 95 दिनों में कुल 18 नए फालोर्स बढ़ गए थे। पिछले छह वर्षों में प्रदेश पार्टी सचिव को ब्लाग से दूर रखा गया था किन्तु मैंने प्रदेश पार्टी सचिव एवं सहायक सचिव को भी ब्लाग लेखन में एडमिन बनवा दिया था। शायद यह बात भी अहंकारी प्रदीप तिवारी साहब को अखरी होगी इसी लिए मुझे लेखन अधिकार से वंचित कर दिया -उनकी तानाशाही उनको मुबारक। हो सकता है कि अब वह मुझे पार्टी से निकलवाने का भी उपक्रम करें। 

उनको तो पार्टी पोस्ट से आय होती है लेकिन मैं सार्वजनिक किसी भी संस्था और पार्टी के जरिये कभी भी कोई कमाई नहीं करता रहा हूँ इसलिए मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैं अपने निजी 5 और पत्नी का एक कुल 6 ब्लाग पहले से ही संचालित कर रहा हूँ इसलिए पार्टी ब्लाग से हटाये जाने के लिए प्रदीप तिवारी साहब का शुक्रिया अदा करता हूँ। 

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शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

बहुत मुश्किल है कुछ यादों का भुलाया जाना (भाग-1 ) ---विजय राजबली माथुर

आर्यसमाज -कमलानगर,आगरा में यशपाल आर्य जी ने एक प्रवचन देते हुये एक ब्रिटिश जज साहब का वृतांत सुनाया था जिसके अनुसार वह जज साहब शार्ट -कट के लिए घर से अदालत जाते वक्त 'रेड लाईट एरिया' का रास्ता अपना लेते थे। यद्यपि वह संयमित प्राणी थे किन्तु उनके अवचेतन मस्तिष्क पर वहाँ चल रही गालियां अंकित हो गई थीं। जब वृद्धावस्था में वह गंभीर रुग्ण हुये और अनकांशस  रहने लगे तब कभी-कभी उनके मुख से वे भद्दी गलियाँ निकल जाती थीं जो उन्होने कभी रास्ते में सुनी थीं। डाक्टरों ने जब इसकी खोज की तब पता चला कि जज साहब अदालत जाने के लिए जिस रास्ते का उपयोग करते थे ये गालियां उसी का दुष्परिणाम हैं। यह तो अवचेतन मस्तिष्क की बात थी। किन्तु चेतन अवस्था में कुछ घटना-क्रम इस प्रकार असर डालते हैं कि चाह कर भी उनको भुलाना संभव नहीं होता क्योंकि फिर-फिर उसी प्रकार की घटनाओं का जब-जब दोहराव होता है तब-तब उन पुरानी घटनाओं की यादें तरो-ताजा हो जाती हैं। 

कामरेड रमेश मिश्रा :
होटल मुगल शेरटन,आगरा से 'सुपर वाईजर  अकाउंट्स' की पोस्ट से बर्खास्तगी को कानूनी चुनौती देने के दौरान कामरेड अब्दुल हफीज साहब से संपर्क हुआ था जो त्याग की सच्ची मूर्ती थे और उनको संत कामरेड की संज्ञा प्राप्त थी। उनको लोग प्यार से 'चचे' भी पुकारते थे और वह आगरा में भाकपा के पर्यायवाची थे। कम्युनिस्ट पार्टी से अभिप्राय आम जनता में चचे की पार्टी से था। यह ठीक उसी प्रकार था जैसे कि लखनऊ में कम्युनिस्ट पार्टी से अभिप्राय यहाँ के आम नागरिक कामरेड अतुल अंजान की पार्टी से लेते हैं। हफीज साहब ने पार्टी के आडिटर कामरेड हरीश आहूजा एडवोकेट के पास मुझे भेज दिया जिन्होने मेरा केस तैयार कराया। कामरेड आहूजा ने मुझे भाकपा में शामिल कर लिया। वह प्रत्येक ब्रहस्पतिवार को 'मजदूर भवन' पर एक स्कूल चलाते थे जिसमें बतौर पार्टी शिक्षक कामरेड डॉ रामगोपाल सिंह चौहान,कामरेड डॉ महेश चंद्र शर्मा और पार्टी के जिलामंत्री कामरेड रमेश मिश्रा आया करते थे।

एक दिन मैं किसी और कार्य से मजदूर भवन की तरफ से निकल रहा था तो आहूजा साहब ने इशारा करके मुझे पास बुलाया और कहा कि आपको डॉ चौहान और डॉ शर्मा पार्टी आफिस में याद करते हैं और आप कल ही उनसे संपर्क करें और वहीं जाया करें यहाँ आने की आवश्यकता नहीं है। कामरेड डॉ चौहान साहब ने मुझे पार्टी कार्यालय में कार्य करने को कहा और मैं उनके तथा डॉ शर्मा जी के निर्देशन में  उनको सहयोग करने लगा। जिलमंत्री कामरेड रमेश मिश्रा जी ने मुझे अपने घर से कुछ पार्टी साहित्य भी पढ़ने को दिया और कई सभाओं में मुझे मेरे घर से लेकर अपने साथ गए और वापिस भी घर पहुंचा देते थे। डॉ चौहान के बीमार पड़ने पर उनके सुझाव पर मुझे ज़बरदस्ती ज़िला कोषाध्यक्ष के पद पर नियुक्त करा दिया। उनका पूर्ण विश्वास मुझे हासिल रहा। प्राइमरी शिक्षक संघ के एक नेता कामरेड रमेश कटारा जो कुछ 'तांत्रिक' प्रक्रियाओं के भी विशेज्ञ थे एक के बाद एक मिश्रा जी के विश्वस्तों को उनसे दूर कराते जा रहे थे। कटारा साहब ने मिश्रा जी का मस्तिष्क जाम कर दिया था और उनका विवेक समाप्त कर दिया था उनके बड़े पुत्र को पढ़ाई से विरक्त कर दिया था। उनकी निगाह मिश्रा जी का कारोबार हड़पने पर लगी थी जिसके लिए उनको उनसे सहयोग करने वालों से दूर करना ज़रूरी था। मिश्रा जी के माध्यम से कटारा साहब प्रदेश कंट्रोल कमीशन में शामिल हो गए थे। उनकी फितरत के कारण मुझे भी 1994 में भाकपा से अलग होना पड़ा था। 

कई आंदोलनों में मिश्रा जी कलेक्टरेट पर मिलते थे और घरेलू हाल-चाल पूछते रहते थे। एक बार दयालबाग में इत्तिफ़ाकीया वह मिल गए तो बोले आजकल दिखाई नहीं पड़ते क्या बात है? मैंने जब कहा कि अब मैं किसी भी राजनीतिक दल में नहीं हूँ और निष्क्रिय हूँ। तब कामरेड मिश्रा जी ने कहा कि यह नहीं हो सकता कि एक राजनीतिक व्यक्ति निष्क्रिय बैठा रहे आप को वापिस अपनी मूल पार्टी में लौटना होगा मैं आपके घर आऊँगा। और वाकई मिश्रा जी मुझे मेरे घर से अपने साथ लेकर पार्टी कार्यक्रमों में शामिल करने लगे जबकि औपचारिक रूप से मैं पुनः सदस्य भी नहीं बना था।2006 में  आगरा कमिश्नरी पर संसद-सदस्य  राज बब्बर के साथ डॉ गिरीश (जो अब प्रदेश सचिव हैं) एक प्रदर्शन में शामिल हुये थे। मिश्र जी मुझे लेकर गए थे और पार्टी के नए कार्यालय पर चलने को कहा था जहां डॉ गिरीश जी एक ट्रेक्टर ट्राली पर बैठ कर गए थे मैं भी उसी में था। पार्टी कार्यालय पर डॉ गिरीश जी की उपस्थिती में कामरेड मिश्रा जी ने मुझे पुनः सदस्यता प्रदान करने की औपचारिकता पूर्ण की थी। 2008 के सम्मेलन में मिश्रा जी ने मुझे भी सह-सचिव के रूप में अपने साथ नियुक्त किया था। किन्तु कुछ घरेलू कारणों से मुझे 2009 में  आगरा छोड़ कर लखनऊ सेटिल होना पड़ा और अब लखनऊ की पार्टी ज़िला काउंसिल में सक्रिय हूँ।

आज चार वर्ष बाद अचानक कामरेड रमेश मिश्रा जी की याद आने का प्रबल कारण यह है कि जिस रमेश कटारा को मिश्रा जी ने प्रदेश कंट्रोल कमीशन में शामिल कराया था और जिसके कारण मुझसे उनकी दूरी बनी थी उसको खुद मिश्रा जी ने ही पार्टी से निष्कासित करा दिया था और उसी के बाद मुझसे संपर्क किया था। आज उस रमेश कटारा का नया अवतार प्रदीप तिवारी के रूप में मुझे नज़र आ रहा है जिसने 12 जूलाई को डॉ गिरीश जी की जीप के साथ एक हादसा करने में सफलता प्राप्त की थी।13 जूलाई को उसी शख्स ने मीटिंग के दौरान मेरे कुर्सी पर,पैरों पर अपने पैरों से  और मेरे पेट  पर अपनी उंगली से प्रहार किए थे। उसी की कारगुजारी के कारण मुझे 18 वर्ष बाद बाहर के डाक्टर का आसरा लेकर पुत्र का इलाज करना पड़ा। तब से अब तक परिवार के सभी सदस्यों के इलाज पर लगभग रु 2000/-फिजूल खर्च हो चुके है। इस नए रमेश कटारा ने अपने मित्र एक दूसरे दल के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष के माध्यम से मुझे पार्टी से अलग करवाने का विफल प्रयास किया था और अब सत्तारूढ़ पार्टी के कुछ लोगों को मेरी छवी खराब करने के अभियान में लगाया है। काश आज कामरेड रमेश मिश्रा जी प्रदेश में पदाधिकारी बने होते तो इस नए रमेश कटारा  को उसका सही रास्ता दिखा देते। 




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शनिवार, 24 अगस्त 2013

वस्तुतः रक्षाबंधन है क्या?---विजय राजबली माथुर


 Danda Lakhnavi जी की फेसबुक वाल पर एक कमेन्ट पर उनकी प्रतिक्रिया देख कर मैंने एक पोस्ट दी थी जिसे नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है परंतु उससे पूर्व एक और पुरानी पोस्ट उद्धृत है जिसमें ब्रह्मसूत्रेण अर्थात जनेऊ की उपयोगिता लक्षित है। 
वैदिक काल में श्रावणी पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के दिन उपनयन=जनेऊ संस्कार करके विद्याध्यन करने की व्यवस्था की गई थी जो कि लड़का/लड़की और वर्ण भेद के बगैर प्रत्येक विद्यार्थी के लिए थी। जनेऊ के धागे ही 'रक्षा-सूत्र'कहे जाते थे और इसी कारण इस पर्व का नामकरण 'रक्षाबंधन' हुआ था। किन्तु जैसा कि अन्य पर्वों के साथ छेड़-छाड़ पोंगापंथी पुरोहितों/ब्राह्मणवादियों ने की है उसी प्रकार इस रक्षाबंधन पर्व को भी विकृत कर दिया गया है।  आज यह बहन-भाई का त्यौहार बना दिया गया है लेकिन उसका भी तथाकथित राष्ट्र वादी( जो अपनी फेसबुक वाल पर 'वंदे मातरम'लिखते और भारत माता का चित्र और भारत का मानचित्र लगाते हैं )घृणित प्रयोग करते हैं जिस पर डॉ डंडा लखनवी जी ने वेदना व्यक्त की थी। 
जिन आधारों पर त्यौहार बने हैं .... उनमें यदि प्रेरक तत्व न रहे तो पुर्न समीक्षा की आवश्यकता है|)
केवल और केवल महिला वर्ग ही अपने पुरातन सिद्धांतों को बहाल कर सकता है क्योंकि वही पोंगापंथियों की जकड़न में ज़्यादा है और उसे ही उनके प्रति विद्रोह करने की आवश्यक्ता है। 
बुधवार, 13 अक्तूबर 2010
"ब्रह्मसूत्रेण पवित्रीकृतकायाम''
सातवीं शताब्दी में बाण भट्ट ने कादम्बरी में लिखा है कि लड़कियों का भी उपनयन होता था .वर्णन है कि महाश्वेता ने जनेऊ पहन रक्खा है.जनेऊ या उपनयन संस्कार शिक्षा प्रारम्भ करने के समय  किया जाता है तब तक लड़के -लड़कियों का भेद हमारे देश में नहीं था .यह तो विदेशी शासकों ने भारतीय समाज की रीढ़ -परिवारों को कमज़ोर करने के लिए लड़कियों की उपेक्षा की कहानियें चाटुकार और लालची विद्वानों से धार्मिक -ग्रंथों में उस समय लिखवाई हैं जिनका दुष्परिणाम आज तक सामजिक विद्वेष व विघटन में परिलक्षित हो रहा है .
जनेऊ के तीन धागे :-१.आध्यात्मिक ,२ .आधिदैविक ,३ .आधिभौतिक तीनो दुखों को दूर करने की प्रेरणा देते हैं .
(अ)-माता ,पिता और गुरु का ऋण उतरने की  प्रेरणा .
(ब )-अविद्या,अन्याय और आभाव दूर करने की जीवन में प्रेरणा .
(स )-हार्ट (ह्रदय ),हार्निया (आंत्र स्खलन ),हाईड्रोसिल /युरेटस  सम्बंधी बीमारयों का शमन ये जनेऊ के तीन धागे ही करते हैं -इसीलिए शौच /लघु शंका करते समय इन्हें कान पर लपेटने की व्यवस्था थी .
 जब ,तब लड़का -लड़की का समान रूप से जनेऊ होता था तो स्वाभाविक रूप से पुत्री -पुत्र सभी के कल्याण की कामना की  जाती थी .गुलाम भारत में पोंगापंथ  के विकास के साथ -२(जो आज निकृष्टत्तम  स्तर पर सर्वव्याप्त है )लड़का -लड़की में भेद किया जाने लगा .लड़कियों /स्त्रियों को दबाया -कुचला जाने लगा जिसे आज आजादी के 66 वर्ष बाद भी दूर नहीं किया जा सका है .इन नवरात्रों में स्त्री -शक्ति आगे बढ़ कर व्रत (संकल्प )करें कि अन्यायपूर्ण पोंगापंथ का शीघ्र नाश करेंगी तभी नारी -मुक्ति संभव है .
 
Friday, 23 August 2013
आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?
ढोंग को धर्म मानने का दुष्परिणाम:तथाकथित राष्ट्र वादी का भद्दा कमेन्ट ---



एक तू ही धनवान हैं गोरी बाकी सब कंगाल —
— with Vikash Goyal.
Danda Lakhnaviआज रक्षा-बंधन का दूसरा दिन है| अभी रक्षा -बंधन पर बंधा धागा खुला नहीं होगा ... एक भाई को एक बहन गोरी दिख रही है. आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?

आदरणीय डॉ डंडा लखनवी जी ने यह वाजिब सवाल उठाया है -"आखिर यूँ त्यौहारों की लकीर पीटने से क्या हासिल होता है ?" 
एक तरफ तो हर त्यौहार को धर्म के साथ जोड़ा जाता है दूसरी ओर धर्म विरुद्ध आचरण किया जाता है तो उससे स्पष्ट है कि धर्म को 'धर्म' के रूप में नहीं बल्कि 'ढोंग-पाखंड-आडंबर'के रूप में केवल 'मौज -मस्ती' के लिए प्रयोग किया जा रहा है। तभी तो कुत्सित विचारों का प्रदर्शन किया जाता है जिन पर डॉ साहब ने समयोचित-सटीक टिप्पणी की है। ऐसे कुत्सित लोगों को रामदेव-आशा राम सरीखे ढोंगियों से बल मिलता है और समाज में अराजकता की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रतिक्रिया स्वरूप लोग धर्म को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं क्योंकि ढ़ोंगी जो धर्म के ध्वजा वाहक बन जाते हैं। आवश्यकता है ढोंगियों का पर्दाफाश करने एवं 'धर्म' की वास्तविक मीमांसा जन -जन को समझाने की।

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