सोमवार, 11 सितंबर 2017

11 सितंबर 1978 का एग्रीमेंट : ट्रेड यूनियन के तथ्य और कथ्य ------ विजय राजबली माथुर

39 वर्ष पूर्व 11 सितंबर 1978 को होटल मुगल कर्मचारी संघ , आगरा और प्रबंधन के मध्य जो पहला एग्रीमेंट हुआ था उसको सम्पन्न कराने में यूनियन के महामंत्री की हैसियत से मुझे जो भूमिका निभानी पड़ी थी वह काफी जटिलताओं से परिपूर्ण थी। होटल के पर्सोनेल मेनेजर हरिमोहन झा साहब बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के भतीज दामाद थे। वह खुद को रिंग मास्टर कहा करते थे। उनका दावा था कि, सारे मेनेजर्स को वह अपने साथ लामबंद कर चुके हैं और यूनियन को भी उनके अनुसार ही चलना होगा। वह अक्सर जमशेदपुर का किस्सा सुनाते थे जिसमें वहाँ टाटा कारखाने की यूनियन के सेक्रेटरी जेनरल को धक्के देकर वह आफिस से निकाल चुके थे। भले ही टाटा मेनेजमेंट ने उनको यूनियन के प्रकोप से बचाने के लिए अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया था। अब जब वह आई टी सी ग्रुप में थे तब कंपनी  चेयरमेन अजित नारायण हकसर के तत्कालीन पी एम इन्दिरा गांधी के सलाहकार परमेश्वरी नारायण हकसर का रिश्तेदार होने के कारण उनके हौसले बुलंद थे। लेकिन जेनेरल मेनेजर चरणजीत सिंह पेंटल साहब भी तत्कालीन केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री चरणजीत चानना साहब के रिश्ते के चाचा थे और वह झा साहब की तिकड़मों को झटकने हेतु मौके की तलाश में थे। उनको यह मौका मिला यूनियन को खुला समर्थन दे देने के कारण।

जून 1975 में एमर्जेंसी के दौरान मेरठ का जाब समाप्त  होने पर आगरा आये थे राजनीतिक लक्ष्य के तहत और युनियन से दूर रहना चाहते थे लेकिन  थुप गई गंभीर जिम्मेदारी.काम ओढ़ लिया तो करना था पूरी क्षमता से.अतः जब यूनियन के रजिस्ट्रेशन के लिए एक इन्स्पेक्टर जैन साहब उप-श्रमायुक्त कार्यालय, आगरा में पधारे तो मैंने उनके समक्ष महेश नानाजी का जिक्र कर दिया जो मेरठ से डिप्टी चीफ   इन्स्पेक्टर आफ फैक्टरीज होकर कानपुर गए थे. हालांकि उस वक्त वह रिटायर हो चुके थे.परन्तु जैन साहब ने कहा वह हमारे बॉस रहे हैं और तुम उनके रिश्तेदार हो और युनियन के सेक्रेटरी हो तो समझो इंस्पेक्शन हो गया और यूनियन रजिस्टर्ड हो गई इस आशय का लेटर डाक से भेज देंगे.सच में जैन साहब ने अपना वायदा पूरा किया और ०३.०४ .१९७८ की ता.में यूनियन रजिस्टर्ड होने का लेटर हमें जल्दी ही मिल गया.

हमारी युनियन के अध्यक्ष सी.पी.भल्ला साहब ने रजिस्ट्रेशन होते ही मेनेजमेंट के समक्ष मान्यता प्रदान करने की मांग रख दी.पर्सोनल मेनेजर झा साहब ने जेनेरल मेनेजर पेंटल साहब से पक्ष में सिफारिश कर दी.हमारी युनियन-'होटल मुग़ल कर्मचारी संघ'को मेनेजमेंट ने मान्यता शीघ्र ही दे दी ,जिस दिन यह घोषणा हुई उस दिन फ़ूड एंड बेवरेज मेनेजर कार्यवाहक जी.एम्.थे .उन्होंने मेनेजमेंट की तरफ से सम्पूर्ण स्टाफ को 'गाला लंच' देने का भी एलान कर दिया.मैं वैसे वहां लंच नहीं लेता था,परन्तु अध्यक्ष,कार्यकारिणी सदस्यों तथा झा साहब का आग्रह टाल न सका और उस दिन वह लंच करना ही पडा.

यूनियन रजिस्टर्ड होने तथा मान्यता भी मिल जाने से स्टाफ का भारी दबाव था कि वेतन बढ़वाया जाए ,हालांकि उस वक्त होटल मुग़ल आगरा का हायेस्ट पे मास्टर था. हम लोगों ने एक चार्टर आफ डिमांड बना कर पर्सोनल मेनेजर को सौंप दिया. हमारे साथियों ने जितना चाहते थे उसका दुगुना वेतन बढाने की मांग रख दी जिसे देखते ही झा साहब व्यंग्य से मुस्करा दिए और बोले इसे तो हेड क्वार्टर भी मंजूर नहीं करने वाला.कई बैठकों के बाद भी जब कार्यकारिणी ने बार-बार इसी की पुष्टि कर दी तो झा साहब नया तर्क ले कर आये कि यह चार्टर आफ डिमांड उन पदाधिकारियों द्वारा बनाया गया है जिन्हें स्टाफ ने नहीं चुना था,लिहाजा फ्रेश मेंनडेट लेकर आओ .भल्ला साहब जो कभी ओबेराय होटल में भी पेंटल साहब के साथ काम कर चुके थे स्टाफ का भरोसा नहीं जीत सकते थे लिहाजा मैंने खुद एक दुसरे व्यक्ति को अध्यक्ष पद के लिए यह कह कर तैयार किया कि प्रत्यक्ष तौर पर तो मुझे भल्ला साहब का ही समर्थन करना होगा लेकिन जिताएंगे तुम्हे ही .वह शख्स ट्रेड यूनियन्स से अनजान थे और मुफ्त में युनियन की अध्यक्षता मिलती नजर आ रही थी. खुशी -खुशी राजी हो गए.

अध्यक्ष पद के दो उम्मेदवार हो गए किन्तु मेरे सेक्रेटरी जेनरल तथा कोषाध्यक्ष पद के लिए कोई दावेदार नहीं था.एक सज्जन को पकड़ कर कोषाध्यक्ष पद हेतु नामांकन कराया क्योंकि उस समय के कोषाध्यक्ष को संभावित प्रमोशन के कारण पद छोड़ना था.दो पद निर्विरोध निर्वाचित घोषित हुए.केवल अध्यक्ष पद का ही चुनाव हुआ.कार्यकारिणी सदस्य भी विभागों से निर्विरोध निर्वाचित हो गए थे.अध्यक्ष भल्ला साहब हर जगह मुझे साथ-साथ अपने प्रचार में ले जाते थे. मैं यही कहता था -आप लोगों ने भल्ला साहब का कार्य देखा है ,संतुष्ट हैं तो इन्हें ही पुनः मौक़ा दें.

लोगों को पता था मैं किसे चाहता हूँ और उन्हें वोट किसे देना है.झा साहब ने कूटनीति फेंकते हुए लोगों द्वारा मेरी पसन्द के उम्मेदवार को ही जिताने का अपनी और से प्रयास किया ताकि भल्ला साहब को बाद में समझाया जा सके और मेरे विरोधी के तौर  पर खड़ा किया जा सके.जैसा कि स्वभाविक था ठाकुर पुष्पेन्द्र बहादुर सिंह लगभग एकतरफा वोट पाकर जीत गए.भल्ला साहब चाहते थे मैं उनकी हार के बाद पद त्याग कर दूँ.परन्तु पेंटल साहब खूब होशियार थे उन्होंने यह समझते और बूझते हुए कि भल्ला साहब हारे ही इसलिए कि उन्हें मेरा समर्थन था ही नहीं,एक अन्य कार्यकारिणी सदस्य  श्री दीपक भाटिया के माध्यम से उन्होंने मुझे सन्देश भिजवाया कि यदि  मैं श्री भाटिया को पदाधिकारी बना लूं तो पेंटल साहब हर विवाद में मेरा ब्लाइंड समर्थन करेंगें.चूंकि झा साहब खुद को रिंग मास्टर समझते थे और युनियन को पाकेट युनियन बनाना चाहते थे इसलिए मुझे भी अपनी बातें मनवाने के लिए पेंटल साहब का समर्थन मिलने का आश्वासन घाटे  का सौदा नहीं लगा. 

श्री दीपक भाटिया पहले फिल्म ऐक्ट्रेस जया भादुरी के पी.ए.थे और उनकी शादी अमिताभ बच्चन से हो जाने पर कुछ दिन जया  के कहने पर भाटिया को अपना अतिरिक्त पी.ए.बनाये रखा परन्तु वह सरप्लस ही थे.आगरा के होने के कारण भाटिया को श्री बच्चन ने पेंटल साहब से कह कर ही मुग़ल में जाब दिलवाया था और वह पेंटल साहब के प्रति एहसानमंद भी थे.अतः श्री पेंटल ने भल्ला के बदले भाटिया को तरजीह दे दी. हमने श्री भाटिया को सेकिंड ज्वाइंट सेक्रेटरी पद दे दिया.

 पुनः चुनावों में जीत कर आई नई कार्यकारिणी ने भी पुराने चार्टर  आफ डिमांड को ही पास कर दिया अतः झा साहब के पास निगोशिएशन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.कई दौर की धुंआ धार मीटिंगों के बाद एक निश्चित वेतन मान को लेकर मेनेजमेंट के साथ सहमति बनाने के फार्मूले को ढूँढा गया.इसमें न्यूनतम वेतन-वृद्धि रु.४५/-और अधिकतम रु.९०/-किया जाना था सबसे निचले ग्रेड को अधिकतम और ऊपर उठते ग्रेड्स में कम वृद्धि होनी थी.आफिस के लोगों विशेषकर  लेखा विभाग वालों की कम वृद्धि का प्रस्ताव था.बस यहीं झा साहब को खेल करने का मौका भी था.उन्होंने अध्यक्ष को और पुराने अध्यक्ष को लेखा विभाग के मेरे साथियों के मध्य मेरी छवि ख़राब करने की मुहीम पर लगा कर कार्यकारिणी में एक अलग स्वर उठवा दिया जिसे मेनेजमेंट-युनियन मीटिंग में उन्होंने खुला समर्थन भी दिया ,उद्देश्य था लोअर स्टाफ जिसकी तादाद ज्यादा थी के मध्य मेरी इमेज बिगड़ जाए.श्री दीपक भाटिया के माध्यम से पेंटल साहब का सन्देश मुझे मिल गया वही होगा जो मैं चाहता हूँ.११ सितम्बर १९७८ की मीटिंग में पेंटल साहब ने निर्णायक तौर पर कह दिया आज के बाद और कोई मीटिंग नहीं होगी और सेक्रेटरी जेनेरल द्वारा समर्थित वेतन वृद्धि को वह मंजूर करते हैं अब कोई बदलाव उन्हें मंजूर नहीं है.

प्रोमोशन के लिए जो लिस्ट मैंने दी थी उसमें से अपना नाम मुझे हटाना पड़ा,इसी विवाद  के कारण अतः मेरे अतिरिक्त सभी लोगों को अपग्रेड भी करने की बात मान ली गई.पेंटल साहब ने उठते-उठते कहा आप लोगों की डिमांड नहीं थी फिर भी साल में एक बार फ्री जूता यूनिफार्म के साथ देंगें.उनके इतना कहते ही मैंने तपाक से कह दिया और आप अपनी तरफ से दे ही क्या सकते हैं.मेरे जवाब पर सभी लोग ठट्टे लगाते हुए उठ गए और इस प्रकार 'एग्रीमेंट सेटलमेंट'सम्पन्न हो गया.

 हमारे चार्टर आफ डिमांड में लोअर स्टाफ का अधिक ख्याल रखने का मुद्दा हमारे आफिस स्टाफ के हितों के प्रतिकूल पड़ता था.झा साहब आफिस वालों को मेरे विरुद्ध उकसा रहे थे और मैं बहुमत साथ रखने की खातिर आफिस वालों का विरोध सहने के लिए पूरे तौर पर तैयार था.मैंने अपना 'सुपरसेशन' वाला केस भी विद्ड्रा कर लिया जिससे किसी को यह भी कहने का मौका न मिले कि खुद तो प्रमोशन ले लिया और बाकी साथियों का ख्याल नहीं रखा.

युनियन प्रेसीडेंट और बाकी कार्य कारिणी सदस्य झा साहब के इन्फ्लुएंस में चल रहे थे.दीपक भाटिया पूरे तौर पर मेरे साथ थे उनकी ड्यूटी ही ऐसी थी कि अनेकों बार जी.एम्.से सामना होता था उनके माध्यम से मुझे पता था कि पेंटल साहब झा साहब से कितना दुखी हैं और वह हर हाल में मेरे ऊपर झा साहब को नहीं हावी होने देंगे यदि मैं अड़ा रहा तो.इसलिए गिनती के हिसाब से अल्पमत में होते हुए भी और इसलिए भी कि मेरे हटने पर कोई भी सेक्रेटरी जेनरल बनने को तैयार न होता मैं अपने निर्णय को लागू करने में पूर्ण कामयाब रहा.झा साहब की कूटनीति उनके और उनके समर्थक कार्यकारिणी सदस्यों के खिलाफ पड़ गई.सारे स्टाफ के मध्य सन्देश साफ़ था केवल विजय माथुर की अड़ के कारण लोअर स्टाफ का बेनिफिट हुआ है.लिहाजा झा साहब को अपना स्टैंड बदलना पडा.झा साहब के सिखाये आफिस के लोग भी अब पूरी तौर पर मेरे फैसले के पक्ष में हो गए .

तब की बात और थी आज ट्रेड यूनियन्स में लोग सौदेबाजी करके अपना मतलब साधते हैं और कर्मचारियों के हित बलाए ताक पर रख दिये जाते हैं जिस कारण 'संविदा ' और एन जी ओ कर्मियों की भरमार हो रही है और स्थाई कर्मचारी छंटनी का सामना करने को मजबूर हैं। 


Link to this post-



रविवार, 6 अगस्त 2017

संस्कृत को बाजारू बनाने के भयंकर दुष्परिणाम होंगे ------ विजय राजबली माथुर

संस्कृत को बाजारू बनाने के भयंकर दुष्परिणाम होंगे  




(१ ) गणेश स्तुति में एक शब्द आता है - 'सर्वोपद्रवनाश्नम ' अब यदि बाजारू संस्कृत में इसे ऐसे ही पढ़ा गया तो इसका अर्थ होगा 'सारा धन नाश कर दो '. 
इस शब्द को लिखे अनुसार नहीं संधि विच्छेद करके पढना चाहिए यथा - सर्व + उपद्रव + नाश्नम जिसका अर्थ होगा सारे उपद्रव / झंझटों का नाश कर दो. 
(२ ) गणेश स्तुति में ही एक और शब्द है ' बुद्धिरज्ञाननाशो ' इसे बाजारू संस्कृत में जैसे का तैसा पढ़ा गया तो उसका अर्थ होगा बुद्धि और ज्ञान का नाश कर दो. इस शब्द को वस्तुतः संधि विच्छेद करके पढना चाहिए यथा - बुद्धि + अज्ञान + नाशो ' जिसका अर्थ होगा बुद्धि का अज्ञान नष्ट कर दो. 
( ३ ) दुर्गा स्तुति में एक शब्द है ' चाभयदा ' यदि इसे बाजारू संस्कृत में ज्यों का त्यों पढ़ा जाए तो अर्थ होगा ' और भय दो ' . इसको संधि विच्छेद करके च + अभय + दा पढना चाहिए जिसका अर्थ होगा ' और अभय दो '. 
संस्कृत एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा है उसको इस प्रकार बाजारू बनाना षड्यंत्र प्रतीत होता है जिसका साधारण जनता को बेहद बुरा खामियाजा भुगतना पड़ेगा. संस्कृत में तमाम शब्द 'समास ' रूप में प्रयुक्त किये गए हैं लेकिन उनका उच्चारण संधि विच्छेद करके किया जाना उपयुक्त होता है. लेकिन बाजारू संस्कृतबाज़ जनता को ये गूढ़ रहस्य न बता रहे हैं न समझा रहे है - यह घोर अनर्थ है.

Link to this post-



रविवार, 23 जुलाई 2017

रिश्ते सिर्फ घरेलू ही नहीं होते ? ------ विजय राजबली माथुर




* यों साधारण तौर पर 'रिश्ते' से तात्पर्य घरेलू और पारिवारिक रिश्ते - नातों से लिया जाता है। परंतु सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परस्पर संबंध भी 'रिश्ते ' ही होते हैं। कार्यस्थल पर सह-कर्मियों,अधीनस्थों और वरिष्ठों के मध्य भी रिश्ते होते हैं। मेरठ की एक प्राईवेट लिमिटेड कंपनी मे मुझे पहली नौकरी अपने नानाजी के फुफेरे भाई जो तब वहाँ इंस्पेक्टर ऑफ फैक्टरीज थे के ज़रिये मिली थी.  जब वह कानपुर प्रमोशन पर जा चुके थे और मुझे कार्य करते हुये ग्यारह माह हो चुके थे तब अचानक एक दिन कहा गया कि, लेखा विभाग के तीनों कर्मचारी त्याग - पत्र दे दें तीन दिनों के अंतराल के बाद नया नियुक्ति पत्र दे दिया जाएगा। जबकि अन्य दो लोगों ने ऐसा ही किया मैंने त्यागपत्र न देकर टर्मिनेट किए जाने को कहा।मुझे शो काज नोटिस दिया गया जिसका जवाब मैंने पूर्व पर्सोनेल आफिसर डॉ एम एल झा साहब से लिखवा लिया और उनके निर्देश पर पूर्व फैक्ट्री मेनेजर जैन साहब से वेरिफ़ाई करवाकर टाईप करा कर दे दिया। फैक्ट्री  मेनेजर बृजेन्द्र कुमार अखौरी साहब मेरी सीट पर आए और मुझे बाहर बुलाकर अपना जवाब वापिस लेने को कहा उनकी दलील थी कि, शो काज नोटिस और जवाब दोनों फाड़ देंगे। लेकिन मैंने कहा कि, आप फाड़ने के बजाए कनसेंट टू रिकार्ड कर सकते हैं। अंततः वैसा ही किया गया और मेरी नौकरी लगातार जारी रही जबकि दोनों साथियों की फ्रेश सर्विस हो गई।  
गैर मान्यता प्राप्त यूनियन के कोशाध्यक्ष महोदय ने मुझे दो माह पीछे से सदस्यता देकर यूनियन कार्यकारिणी में शामिल किए जाने का प्रस्ताव किया ( उनकी धारणा थी कि, जब मैं अकेले टकरा सकता हूँ तब मुझे सबके हित के लिए आगे आना चाहिए ) जिसे मैंने स्वीकार कर लिया और इस प्रकार 1973 में 21 वर्ष की आयु से ट्रेड यूनियन के साथ रिश्ते शुरू हुये। ** 1975 मे एमर्जेंसी के दौरान मैं वहाँ से छोड़ कर आगरा चला गया और कुछ दिन बाद निर्माणाधीन होटल मोघुल ओबेराय ज्वाइन कर लिया जो बाद में मुगल शेरटन हो गया था। 1977 मे होटल मुगल कर्मचारी संघ की स्थापना में प्रयासरत सुदीप्तो  मित्रा का बैंक आफ बरोदा में पी ओ के रूप में चयन हो गया और उनके सुझाव पर मुझे सेक्रेटरी जेनरल बना दिया गया। वस्तुतः प्रारम्भ में ही वह मुझे चाह रहे थे जबकि मैंने उनको प्रस्तावित कर दिया था। 
मेरठ के अपने अनुभवों के आधार पर मैं आगरा में अलग थलग रहना चाहता था। एक बार  शुरुआत  में पर्सोनेल मेनेजर आनंदों शोम ने मुझसे अपने आफिस में  बुला कर किसी दूसरी कंपनी में रोज़गार ढूँढने को कहा (मतलब साफ़ था कि, मुझे रिजाइन करना है ), मैंने उनको जवाब दिया कि, आप टर्मिनेट कर सकते हैं परन्तु मैं रिजाइन नहीं कर रहा और बात आई गयी ख़त्म हो गई थी किन्तु खतरा था इसी लिए मैंने युनियन के महामंत्री पद का दायित्व सम्हाल लिया था. मैंने अपने कार्यकाल में कई लोगों की नौकरी बचाने में मदद की, कई लोगों को निहायत ज़रुरत पर भी छुट्टी न मिलने पर उनको सवैतनिक अवकाश मंजूर करवाया,जिनके साथ ज्यादती हुई थी उनको वाजिब प्रोमोशन दिलवाया . इन सबका ही नतीजा था जब इन्वेंटरी में मैंने घपला पकड़ा था तब मुझको रिवार्ड न देकर निलंबित करके दोषियों को बचाया गया था . तब जनवरी १९८५ में निलंबन के दौरान हुए युनियन के चुनावों में बगैर प्रचार के भी मुझे सेकेण्ड हायेस्ट वोट मिले थे जिससे भयभीत होकर फरवरी में टर्मिनेट कर दिया गया. होटल मुग़ल के विरुद्ध श्रम न्यायालय में परिवाद (Case ) करने के सिलसिले में AITUC से संपर्क हुआ जिसके ज़रिये CPI से. पार्टी में शामिल होने के दस माह बाद ही मुझे जिला काउन्सिल में शामिल कर लिया गया और मैं पार्टी कार्यालय में सहयोग करने लगा. हालांकि जिलामंत्री तो कामरेड रमेश मिश्र थे परन्तु कार्यालय का कार्य कोषाध्यछ कामरेड डॉ रामगोपाल सिंह चौहान और डॉ एम् सी शर्मा देखते थे. वे दोनों मेरे कार्य करने से काफी प्रभावित थे. डॉ चौहान तो इतने कि, जब वह गंभीर रूप से बीमार हुए तब अपने उत्तराधिकारी के रूप में मेरा ही नाम प्रस्तावित कर दिया और उनके सम्मान को देखते हुए काफी सीनियर्स के होने के बावजूद मुझे ही उनका चार्ज दिया गया.
*** ईमानदार कार्य और परस्पर व्यवहार - रिश्तों के कारण ही युनियन और पार्टी में मुझे दायित्व मिले थे. लेकिन फिर भी कुछ लोग सभी जगहों पर जल्खोरे और चिढोकरे होते हैं उनसे CPI भी अछूती नहीं है इसी कारण आगरा में १४ वर्षों तक पार्टी से अलग रहा था परन्तु वहां के तत्कालीन जिलामंत्री के आग्रह पर पुनः पार्टी में वापिस आ गया था और लखनऊ आने पर यहाँ भी सक्रिय रहा.किन्तु यहाँ भी वैसे जल्खोरे और चिढोकरे दो लोगों के कारण फिलहाल शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं हूँ क्योंकि, एथीस्ट होने का एलान करने के बावजूद इन दोनों ने तांत्रिक प्रक्रिया से मुझे अस्वस्थ कर रखा है.
निहित स्वार्थ वाले लोगों की कथनी और करनी में अंतर होता है और उनके साथ काम करने में मुझे दिक्कत होती है. इसलिए चुप बैठना ही श्रेयस्कर भी है.

Link to this post-



रविवार, 23 अप्रैल 2017

यादों के तहखाने से ( भाग - 2 ) ------ विजय राजबली माथुर

****** " मुझे खेलों में भाग लेने का शौक नहीं था। लेकिन मुझे अपनी कक्षा के एक पहलवान टाईप सहपाठी जिसके पिताश्री पुजारी / कथावाचक थे का हमेशा कबड्डी में आउट न होना अखरता था। सुना था कि, वह रोजाना भगवा झंडे के साथ लगने  वाली शाखा में भाग लिया करता था। उसको सबक सिखाने के लिहाज से एक रोज़ मैंने उसकी विरोधी टीम में कबड्डी खेलने की इच्छा व्यक्त कर दी , ...........................उनको इस बात की खुशी थी कि, पढ़ाई में अनाड़ी छात्र ( जिसे अक्सर बेंच पर पूरे क्लास वह दंड स्वरूप खड़ा करते थे ) को खेल में भी चाहे एक ही बार सही उस छात्र ने परास्त कर दिया जिसे वह सराहते थे और जिससे अक्सर पाठ का वाचन करवाते थे। 
चूंकि पढ़ाई में फिसड्डी होने के कारण वह हम लोगों से मदद लेता था इसलिए अपनी हार पर भी प्रतिशोध उसने नहीं माना था। " ******

पचपन वर्ष पीछे 1962 में लौटते हैं तो ध्यान आता है कि, चीन के हमले के बाद जब बाबूजी का ट्रांसफर बरेली से सिलीगुड़ी हो गया था तब भी बीच सत्र में हम लोगों को दाखिले की समस्या का सामना करना पड़ा था वजह यह थी कि, बाबू जी का ट्रांसफर जहां हुआ वहाँ हम लोग नहीं गए थे । तब भी हम लोग शाहजहाँपुर नाना जी के पास रहने गए थे क्योंकि सिलीगुड़ी शुरू में नान - फैमिली स्टेशन घोषित हुआ था। बहन का दाखिला तो नाना जी ने अपने एक परिचित तिनकू  लाल वर्मा जी के प्रबंध वाले आर्य कन्या पाठशाला में सहजता से करवा दिया था। अंततः अपने एक और पूर्व परिचित के तल्लउआ, बहादुरगंज स्थित  विश्वनाथ जूनियर हाई स्कूल  में भाई व मुझे भी प्रवेश दिलवा दिया। 

स्कूल के बाहर खाली पड़ी ज़मीन में स्कूल के बच्चे इंटरवेल में कबड्डी वगैरह खेलते थे। मुझे खेलों में भाग लेने का शौक नहीं था। लेकिन मुझे अपनी कक्षा के एक पहलवान टाईप सहपाठी जिसके पिताश्री पुजारी / कथावाचक थे का हमेशा कबड्डी में आउट न होना अखरता था। सुना था कि, वह रोजाना भगवा झंडे के साथ लगने  वाली शाखा में भाग लिया करता था। उसको सबक सिखाने के लिहाज से एक रोज़ मैंने उसकी विरोधी टीम में कबड्डी खेलने की इच्छा व्यक्त कर दी , मैं रोज़ उसकी गतिविधियों को बारीकी से देखता रहा था। उसके विरोध की टीम का नेतृत्व हर नारायण नामक छात्र ही करता था जिसने मुझे सहर्ष शामिल कर लिया। हमारी टीम में हर नारायण समेत जब सभी छात्र आउट हो गए और मैं अकेला ही बचा तब वह पंडित पुत्र पहलवान छात्र आया मैं पीछे हटते  हुये  उसे पाले के अंतिम छोर तक ले आया और वहाँ कस कर उसका हाथ पकड़ लिया पूरी ताकत लगा कर भी वह छुड़ा न पाया , मुझे गिराया तो खुद भी गिर पड़ा और खींचता रहा किन्तु पाले तक न पहुँच पाया और उसे भी पहली बार आउट होना ही पड़ गया। यह खबर तुरंत प्राचार्य शर्मा जी तक पहुँच गई जो हम लोगों को हिस्ट्री (इतिहास ) पढ़ाते थे , वह सरदार पटेल हिन्दू इंटर कालेज के प्रिंसिपल पद से रिटायर्ड़ थे और निशुल्क पढ़ाते थे किन्तु आने - जाने का रिक्शा भाड़ा प्रबन्धक उनको दे देते थे। उनको इस बात की खुशी थी कि, पढ़ाई में अनाड़ी छात्र ( जिसे अक्सर बेंच पर पूरे क्लास वह दंड स्वरूप खड़ा करते थे ) को खेल में भी चाहे एक ही बार सही उस छात्र ने परास्त कर दिया जिसे वह सराहते थे और जिससे अक्सर पाठ का वाचन करवाते थे। 
चूंकि पढ़ाई में फिसड्डी होने के कारण वह हम लोगों से मदद लेता था इसलिए अपनी हार पर भी प्रतिशोध उसने नहीं माना था। एक बार नाना जी के साथ उनके किसी परिचित के यहाँ कथा में गए थे वहाँ भी वह अपने कथावाचक पिता जी के साथ उनके सहायक के रूप में आया था और बाद में उनको बताया था कि, हिस्ट्री में यह हमारी बहुत मदद करते हैं वैसे तो खेलते नहीं हैं लेकिन एक बार खेल कर मुझे हरा दिया था। उसके पिता जी ने हिस्ट्री में उसकी मदद कर देने के लिए शाबाशी ही दी थी। 
1963 में सिलीगुड़ी के फैमिली स्टेशन घोषित हो जाने पर माँ और बहन बाबू जी के पास चले गए थे। भाई और मैं नाना जी के पास ही रहे थे। जब नाना जी बाज़ार जाते थे हम भाई लकड़ी चीड़ कर रख देते थे और कुएं से पानी भी भर कर रख लेते थे। हालांकि नाना जी एतराज़ करते थे कि, तुम लोग पानी भरने और लकड़ी चीड़ने का काम क्यों करते हो ? इसलिए रोकने के लिए कभी कभी वह हम दोनों को भी बाज़ार अपने साथ ले जाते थे। 
वैसे तो नाना जी को गाना वगैरह पसंद नहीं था लेकिन अजय को वह अधिक चाहते थे इसलिए उसके गुनगुनाने पर एतराज़ नहीं करते थे। अजय को 'जो वादा किया वह निभाना पड़ेगा ' बेहद पसंद था उसी को अक्सर गुनगुनाते थे :

Link to this post-



रविवार, 5 मार्च 2017

यादों के तहखाने से ------ विजय राजबली माथुर

****** प्रो. माशूक अली साहब का संबंध शाहजहाँपुर म्यूनिसपेलटी के चेयरमैन रहे छोटे खाँ साहब के परिवार से था जिनके यहाँ लकड़ी का व्यापार होता था। अतः माशूक साहब वेतन नहीं लेते थे, प्रबन्धक उनको रिक्शा और पान का खर्च मात्र रु 150 / - उनको भेंट करते थे। वह हमारे नानाजी ( डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब ) के एक छोटे भाई हरीश चंद्र माथुर साहब के सहपाठी रहे थे इसलिए मेरे प्रति विशेष अनुराग रखते थे। वैसे वह सभी छात्रों के प्रिय थे। हमारे हरीश नाना जी को वह अक्सर ' सलाम ' कहने को कहते थे और नाना जी भी उनको मेरे द्वारा 'सलाम ' भेजते रहते थे। 
इसी प्रकार पंजाब नेशनल बैंक के एक ब्रांच मेनेजर साहब को भी उनके पुत्र द्वारा 'सलाम' का आदान - प्रदान वह करते रहते थे। उस छात्र ( अब मुझे नाम याद नहीं है ) को भी मेरी तारह ही विशिष्ट अनुराग उनसे मिलता था। किसी रोज़ रिक्शे से घर लौटते में उन्होने उसको कुछ गाते हुये सुन लिया था अतः अगले रोज़ कक्षा में उससे वह गाना सुनाने को कहा कुछ झिझकते हुये उनका आदेश न टाल सकने  के कारण उसको वह गाना सुनाना ही पड़ा ******

विगत माह की छह तारीख को शुभेच्छुओं को धन्यवाद की पोस्ट में श्रीमती जी ( पूनम ) का उल्लेख इसलिए नहीं था कि, प्रत्येक कार्य की संपन्नता में उनके आगमन के बाद से उनका योगदान रहता ही है और घर में हर बात के लिए धन्यवाद की औपचारिकता की आवश्यकता मेरे समझ से परे है। परंतु उनका तर्क है कि, यशवन्त का नाम तो दिया था। मेरे अनुसार पुत्र पत्नी का विकल्प नहीं होता। 

चाहें राजनीतिक गतिविधियां रही हों अथवा ड्यूटी से संबन्धित अथवा  सामाजिक एवं ज्योतिष से संबन्धित उन सब में ही पूनम का पर्याप्त योगदान रहा है। उनके योगदान के बगैर ज़रा भी आगे बढ़ना संभव नहीं था। 

इस पोस्ट के माध्यम से कुछ पुरानी यादों को पुनः प्रकाश में लाना उद्देश्य था। 50 वर्ष पूर्व 1967 में जब सिलीगुड़ी से स्कूल फ़ाईनल करने के बाद बाबू जी का औपचारिक ट्रांसफर आर्डर मिलने में विलंब था हम लोगों को पढ़ाई खराब होने से बचाने के लिए माँ के साथ नानाजी के पास शाहजहाँपुर भेज दिया था। सितंबर माह में दाखिले में काफी दिक्कत आई क्योंकि न तो बाबू जी का ट्रांसफर वहाँ हुआ था और न ही स्कूल कालेज्स में जगहें बची थीं और जिन विषयों को मैं लेना चाहता था न ही  उनका कांबीनेशन सुलभ था। बहन को दाखिला मिशन स्कूल, बहादुर गंज में व भाई को उसी मिशन स्कूल में दाखिला मिल गया था जिसमें क्रांतिकारी राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी भी पढे थे। 
 जी एफ कालेज,कैंट के प्रिंसिपल चौधरी मोहम्मद वसी  साहब ने सहर्ष मेरे मन पसंद विषयों सहित इंटर फर्स्ट ईयर में दाखिले की अनुमति दे दी।उस समय इस कालेज में इंटर और बी ए की कक्षाएं चलती थीं अब यह एम ए तक हो गया है और इंटर कक्षाओं को इस्लामिया इंटर कालेज के साथ सम्बद्ध कर दिया गया है। सिविक्स के प्रोफेसर आर के इस्लाम साहब और हिस्ट्री के प्रोफेसर  माशूक अली साहब  विषय के साथ - साथ ज्ञान वर्द्धक सामान्य चर्चा भी किया करते थे। 
प्रो. माशूक अली साहब का संबंध शाहजहाँपुर म्यूनिसपेलटी के चेयरमैन रहे छोटे खाँ साहब के परिवार से था जिनके यहाँ लकड़ी का व्यापार होता था। अतः माशूक साहब वेतन नहीं लेते थे, प्रबन्धक  रिक्शा और पान का खर्च मात्र रु 150 / - उनको भेंट करते थे। वह हमारे नानाजी ( डॉ राधे मोहन लाल माथुर साहब ) के एक छोटे भाई हरीश चंद्र माथुर साहब के सहपाठी रहे थे इसलिए मेरे प्रति विशेष अनुराग रखते थे। वैसे वह सभी छात्रों के प्रिय थे। हमारे हरीश नाना जी को वह अक्सर ' सलाम ' कहने को कहते थे और नाना जी भी उनको मेरे द्वारा 'सलाम ' भेजते रहते थे। 

इसी प्रकार पंजाब नेशनल बैंक के एक ब्रांच मेनेजर साहब को भी उनके पुत्र द्वारा 'सलाम' का आदान - प्रदान वह करते रहते थे। उस छात्र ( अब मुझे नाम याद नहीं है ) को भी मेरी तारह ही विशिष्ट अनुराग उनसे मिलता था। किसी रोज़ रिक्शे से घर लौटते में उन्होने उसको कुछ गाते हुये सुन लिया था अतः अगले रोज़ कक्षा में उससे वह गाना सुनाने को कहा कुछ झिझकते हुये उनका आदेश न टाल सकने  के कारण उसको वह गाना सुनाना ही पड़ा , लीजिये  आप भी सुनिए ------

Link to this post-



सोमवार, 6 फ़रवरी 2017

शुभेच्छुओं को धन्यवाद ------ विजय राजबली माथुर



कल फेसबुक पर 65 वर्ष व्यतीत होने पर 66वें जन्मदिवस पर जिन लोगों ने बधाई व शुभकामनायें प्रेषित की हैं लगभग सभी को धन्यवाद प्रेषित किया है , परंतु यदि किसी को छूट गया हो तो उन सभी जनों को एक बार फिर  हार्दिक धन्यवाद।  वैसे प्लेटो के कथनानुसार तो अधिकांश लोग मुझसे नफरत ही करते हैं फिर भी सोशल मीडिया फेसबुक के जरिये इतने लोगों की सद्भावनाएं प्राप्त होना आश्चर्यजनक भी है। कुछ के कमेंट्स संग्रहीत करने के उद्देश्य से यहाँ संकलित कर लिए हैं। 


यशवंत राजबली माथुर द्वारा 









Link to this post-



सोमवार, 9 जनवरी 2017

ये चुनाव तय करेंगे भविष्य की बुनियाद : सहानुभूति लहर का फायदा पाएँगे अखिलेश यादव ------प्रो .मनीषा प्रियम / रजनीश कुमार श्रीवास्तव












Rajanish Kumar Srivastava
02-01-2016  · 
जनाब यू०पी० चुनाव में साईकिल फ्रीज होगी और फिर मोटरसाईकिल फर्राटे से दौड़ेगी।आश्चर्य ना कीजिएगा यह सत्य होने जा रहा है।यू०पी० चुनाव के मद्देनजर मेरा विश्लेषण है कि अगर प्रचार के चकाचौंध से इतर जमीनी हकीकत की पड़ताल की जाए तो आज भी यू०पी० का चुनाव सपा(अखिलेश यादव) के सम्भावित महागठबंधन और बसपा के बीच ही सिमटने जा रहा है।कारण बहुत स्पष्ट है कि एक ओर मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे युवा अखिलेश यादव तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री का चेहरा होंगी सुश्री मायावती।लेकिन भाजपा ने रणनीतिक गलती करते हुए मुख्यमंत्री का चेहरा किसी को ना बनाने की रणनीति अपनाई है।बिना नरेन्द्र मोदी के भाजपा का अपना वोट यू०पी० में 15% से ज्यादा कतई नहीं हैं।यह मोदी फैक्टर था जिसने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 30% वोटों तक पहुँचा दिया था। इस पृष्ठभूमि में केन्द्र सरकार भी आधा से ज्यादा कार्यकाल बिताने के बाद भी किसानों और मजदूरों के खाते में कोई ऐसी उपलब्धि नहीं डाल सकी है जिससे ग्रामीण क्षेत्र में वैसी मोदी लहर आ सके जैसी लोकसभा चुनाव में पैदा की गयी थी। लिहाजा मुख्य मुकाबला 25% से 30% तक का अक्षुण जनाधार रखने वाली बसपा और सपा (अखिलेश यादव) महागठबंधन के बीच होने जा रहा है।इसमें भी बेहतर रणनीतिक तैयारी की वजह से अखिलेश यादव महागठबंधन बड़ी जीत हासिल कर लेगा।कैसे चलिए एक पड़ताल की जाए:--
सपा में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव खेमें की वर्तमान लड़ाई अखिलेश यादव का सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक है।बेहद स्मार्ट मूव के तहत अखिलेश खेमें ने अपनी वर्तमान चुनौतियों को एक लाभ के अवसर के रूप में परिवर्तित कर लिया है।गुँण्डागर्दी के आरोप वाली परम्परावादी समाजवादी पार्टी से पीछा छुड़ा लिया है और गुण्डों और बाहुबलियों के विरुद्ध संघर्ष करने वाली और केवल विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की घोषणा करने वाली प्रगतिशील पार्टी की छवि बखूबी गढ़ ली है।पार्टी के इस अंदरूनी संघर्ष को जानबूझकर अखिलेश यादव ने चुनाव के समय नजदीक आने पर निर्णायक मोड़ दिया है और प्लान A और प्लान B दोनों तैयार रखें हैं।मुलायम खेमा चारो खाना चित गिरने जा रहा है।अब जबकि पार्टी में चुनाव चिन्ह का मामला चुनाव आयोग की दहलीज पर पहुँच चुका है तो अखिलेश खेमा तय रणनीति के तहत जानता है कि इतना कम समय चुनाव में बचा है कि चुनाव आयोग के सामने साईकिल चुनाव चिन्ह फ्रीज करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता शेष नहीं हैं ऐसे में अखिलेश खेमें ने प्लान B के तहत एक सुरक्षित पार्टी #समाजवादी जनता पार्टी# का इंतजाम पहले से सुरक्षित कर लिया है जिसका चुनाव चिन्ह है मोटरसाईकिल।जबकि मुलायम खेमा बिना तैयारी के इतना मुलायम हो जाएगा जहाँ बचेगी तो सिर्फ भगदड़। यहाँ अखिलेश यादव जहाँ एक तरफ एण्टी इन्कम्बेन्सी वाली सारी विरासत को पीछे छोड़कर प्रगतिशील पार्टी के रूप में सहानुभूति लहर का फायदा पाएँगे वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन की बड़ी ताकत के साथ लगभग तीन सौ सीटों पर फर्राटे से मोटरसाईकिल चलाते हुए दमदारी से विधानसभा भवन में प्रवेश कर जाएँगे।यानी जिसका जलवा कायम है उसका बाप मुलायम है। चुनाव परिणाम बताएगा कि मेरा विश्लेषण कितना सही है।

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1770129799978293&set=a.1488982591426350.1073741827.100009438718314&type=3
*****************************************

विभिन्न विश्लेषण व विचार पहली जनवरी के विशेष सपा अधवेशन के संबंध में आप देख पढ़ रहे हैं। हम यहाँ केवल ग्रह - नक्षत्रों का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं । 01-01-2017 को प्रातः 11:30 पर सपा के विशेष प्रतिनिधि सम्मेलन में मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव प्रस्तुत हुआ जो सर्व - सम्मति से स्वीकृत हुआ।
*यह समय चंद्र महादशा में गुरु की अंतर्दशा का हुआ जो सामान्य है और 13 दिसंबर 2017 तक रहेगा,  इसीलिए उनके लिए स्थितियाँ भी सामान्य ही बनी रहीं और बनी रहेंगी। फिर 13 जूलाई 2019 तक शुभ समय रहेगा। 13 मार्च 2023 तक श्रेष्ठ समय भी रहेगा लेकिन 13 जूलाई 2019 से 12 दिसंबर 2020 तक बीच के समय में ज़रूर सतर्कता पूर्वक चलना होगा। 
* उस समय लखनऊ में कुम्भ लग्न चल रही थी जो एक स्थिर राशि की लग्न है ।यही कारण है कि, यह पद  चुनाव स्थिर रहने वाला है  और सभी सम्झौता प्रस्ताव किसी भी कारण से असफल रहे हैं। लग्न में ही मंगल, केतू व शुक्र ग्रह स्थित हैं। जहां मंगल, केतु नेतृत्व क्षमता में दृढ़ता के परिचायक हैं वहीं शुक्र सौम्यता, मधुरता व दूरदर्शिता के लक्षण बताता है जिस कारण वह किसी दबाव या प्रलोभन में झुक न सके । 
* दिवतीय भाव में जो राज्यकृपा का होता है मीन लग्न स्थित है जिसका स्वामी ब्रहस्पति अष्टम भाव में बैठ कर पूर्ण सप्तम दृष्टि से उसे देख रहा है। अतः उन पर आगे भी राज्य - योग कृपा बनाए रखेग। 
*तृतीय भाव में जो जनमत, पराक्रम व स्वाभिमान का होता है मेष लग्न स्थित है जिसका स्वामी मंगल लग्न में ही बैठ कर अनुकूलता प्रदान कर रहा है और इसी कारण पार्टी पदाधिकारियों के 90 प्रतिशत का समर्थन ही उनको न केवल मिला वरन जनमत सर्वेक्षणों में भी लोकप्रियता हासिल रही है। इस प्रकार उनका स्वाभिमान आगे भी बरकरार रहने की संभावनाएं बनी हुई हैं। 
*चतुर्थ भाव में जो लोकप्रियता व मान -सम्मान का होता है वृष राशि स्थित है जिसका स्वामी लग्न में बैठ कर उनमें दूरदर्शिता का संचार कर रहा है अतः आगामी चुनावों में भी उनको इसका लाभ मिलने की संभावनाएं मौजूद हैं। 
*पंचम भाव में जो लोकतन्त्र का होता है मिथुन लग्न स्थित है जिसका स्वामी बुध लाभ के एकादश भाव में सूर्य के साथ स्थित है। बुध सूर्य के साथ होने पर और अधिक बलशाली हो जाता है तथा सूर्य - बुध मिल कर आदित्य योग भी बनाते हैं जो कि, राज्य योग होता है। अतः चुनावों में अखिलेश जी की सफलता लोकतन्त्र को मजबूत करने वाली ही होगी क्योंकि इससे फासिस्ट शक्तियों को मुंह की खानी पड़ेगी। 
*सप्तम भाव में जो सहयोगियों, राजनीतिक साथियों व नेतृत्व का होता है सिंह राशि स्थित है जिसका स्वामी सूर्य एकादश भाव में गुरु की राशि धनु में बुध के साथ स्थित है। इसके अतिरिक्त इस भाव में राहू भी बैठ कर कुम्भ लग्न को देख रहा है जो उसकी अपनी राशि भी मानी जाती है। इस प्रकार अखिलेश जी अपनी पार्टी के बुद्धिजीवियों, नेताओं और साथियों में अधिकांश का समर्थन पाने में सफल रहे हैं जो फिलहाल जनतंत्र व जनता के लिए उत्तम स्थितियों का ही संकेत करता है। उम्मीद है कि, अपने बुद्धि कौशल से वह ग्रहों की अनुकूलता का पूर्ण लाभ उठाने में सफल रहेंगे। 
(विजय राजबली माथुर )
https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/1297391700322803


***********************

Facebook Comments : 

Link to this post-



मंगलवार, 3 जनवरी 2017

कहते हैं लालाजी निर्मल साहब : 'अगर आप धनपशु नहीं हैं तो आज की राजनीति में सर्वाईव नहीं कर सकते' ------ विजय राजबली माथुर



हिंदुस्तान,लखनऊ,02-01-2016,पृष्ठ ---02

वर्ष 1979 में  RSS (राजनारायन संजय संघ ) के सहयोग से चौधरी चरण सिंह जी प्रधानमंत्री बन चुके थे और उनके भांजे साहब को होटल मौर्य कर्मचारी संघ ,दिल्ली का अध्यक्ष बना दिया गया था जो आगरा आकर होटल मुगल कर्मचारी संघ के पदाधिकारियों को दिल्ली  आमंत्रित कर गए थे। आगरा से पाँच प्रतिनिधि दिल्ली गए थे जिनमें महामंत्री की हैसियत से मैं भी शामिल था। लौटते में G T एक्स्प्रेस में हमारे साथियों का सीट को लेकर विवाद जिन सज्जन से हुआ वह डॉ राजेन्द्र कुमारी बाजपेयी (राज्यसभा सदस्य एवं यू पी की पूर्व विद्युत मंत्री ) के भांजे साहब थे। मैंने उनको बैठने का स्थान उपलब्ध करा दिया और चर्चा के दौरान उनसे उनके राजनीति में शामिल होने के बारे में  उनके विचार पूंछे । वह तब बिजनेस प्रारम्भ किए ही थे और उनका कहना था कि, जब पर्याप्त धन जुटा लेंगे तभी राजनीति में उतरेंगे; मेरे लिए भी उनका सुझाव था कि, यदि मुझे राजनीति में आना हो तो पहले बिजनेस करके धन एकत्र करूँ तभी आऊँ वरना कामयाब नहीं हो पाऊँगा। आज की परिस्थितियों में उनका कथन अक्षरश : सत्य प्रतीत होता है।

सारू स्मेल्टिंग कर्मचारी  संघ,मेरठ  की कार्यकारिणी और फिर होटल मुगल कर्मचारी संघ, आगरा के महामंत्री रह चुकने के बाद AITUC की मार्फत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, आगरा के ज़िला कोषाध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर चुका हूँ तथा सक्रिय राजनीति में भी शामिल रहता हूँ लेकिन कोई बिजनेस या व्यवसाय न करने के कारण वरिष्ठ नेताओं को प्रभावित कर पाने  में असमर्थ रहता हूँ। बीच मे (बाद में 2006 में पुनः भाकपा में वापिस लौट चुका हूँ और अब लखनऊ में सक्रिय हूँ  ज़िला काउंसिल में भी रहा हूँ )जब कामरेड मित्रसेन यादव जी के साथ  सपा में रहा था तब आगरा में नगर कार्यकारिणी में भी मुझे शामिल किया गया था। जब  2002 में आगरा मे सपा का विशेष राष्ट्रीय अधिवेन्शन हुआ था तब नगर महामंत्री फारुखसियर ने मुझसे पूछा था आपके पास वाहन क्या है? मेरे जवाब देने पर कि, साईकिल वह बिदक गए थे, मतलब कि, साधन - सम्पन्न होना ही सफलता का मंत्र था और यहाँ फिर 1979 में मिले रेल यात्री बाजपेयी साहब का कथन सत्य हो रहा था।
अभी सपा में जो राजनीतिक घमासान दीख रहा है वह वस्तुतः आर्थिक घमासान है जैसा कि, किरण्मय नंदा साहब ने कहा भी है कि, अमर सिंह सपा में व्यापार करने आए थे। मूलतः अमर सिंह राजनीतिज्ञ नहीं विशुद्ध व्यापारी ही हैं। जब वीर बहादुर सिंह जी यू पी के सिंचाई विभाग में ठेकेदार थे तब अमर सिंह जी उनके साथ पेटी ठेकेदार थे। वीर बहादुर जी कांग्रेस सरकार में सिंचाई मंत्री ही बनते थे क्योंकि उसी विभाग में उनका बिजनेस चलता था , मुख्यमंत्री होते हुये भी सिंचाई विभाग अपने ही पास रखे रहे थे। उसी समय विरोधी दल के नेता मुलायम सिंह जी को वीर बाहादुर सिंह जी के गोपनीय सूत्र उपलब्ध कराते रहने के कारण  उनके हितैषी बन गए  और आज भी बने हुये हैं पूर्व सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह जी भी उनके चहेते हैं। सिंचाई विभाग की ठेकेदारी से ही अपना बिजनेस बढ़ाते हुये आज उद्योगपति बन चुके हैं और राजनीति को प्राभावित करने की अपार क्षमता अर्जित कर चुके हैं।

वर्तमान परिस्थितियाँ भी उस व्यापारिक गतिविधि से उत्पन्न हुई हैं जिसे ZEE NEWS के मालिक सुभाष चंद्रा  साहब के राज्यसभा सदस्य बनने के उपलक्ष्य में दी गई अमर सिंह जी की पार्टी में जन्म मिला था। भाजपा के ज़ी न्यूज़ वाले अमर सिंह जी के सहयोग से यू पी में अपना बिजनेस खड़ा करना चाहते थे जिसमें मुख्यसचिव दीपक सिंघल का सहयोग मिलता। इसी कारण मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी ने राहुल भटनागर साहब को सिंघल साहब के स्थान पर मुख्यसचिव बना दिया था जिसकी कीमत उनको यू पी सपा के अध्यक्ष पद से हटने  के रूप में चुकानी पड़ी। चूंकि भाजपा सांसद यू पी में अपना बिजनेस नहीं जमा सके तो अमर सिंह जी के माध्यम से अखिलेश यादव जी के समक्ष पारिवारिक - राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया गया। वर्तमान परिस्थितियों  में जनतंत्र समर्थक और सांप्रदायिकता विरोधी शक्तियों को एकजुट होकर अखिलेश यादव जी का ठोस समर्थन करना चाहिए अन्यथा 2019 में फासिस्ट शक्तियाँ और मजबूत होकर सामने आ सकती हैं।


****************************************
Facebook Comments : 
04-01-2017 
04-01-2017 

Link to this post-



+Get Now!