जैसा कि इस ब्लाग की वर्षगांठ पर ज़ाहिर किया था कि---
"आगरा से लखनऊ आने तक लगभग 15 वर्ष का विवरण लिखना शेष है। इस दौरान इस वर्ष जनवरी मे 'विद्रोही स्व-स्वर मे-प्रथम भाग' को ई बुक के रूप मे संकलित भी किया जा चुका है। उम्मीद है कि शीघ्र सम्पन्न कर सकूँगा।
रिश्तेदार जलन के कारण मुझे सफल नहीं देखना चाहते,सांप्रदायिक तत्व अपने पर चोट के कारण और प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक होने का दावा करने वाले इसलिए नहीं कि वस्तुतः उनकी कथनी और करनी मे अन्तर है। मेरा प्रयास 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करके सांप्रदायिक शक्तियों के नीचे से ज़मीन खींच लेने का था परंतु वह नक्कारखाने मे तूती की आवाज़ बन कर रह गया है।"
इस ब्लाग के माध्यम से जीवन मे आए संकटों,संघर्षों और उनका सामना कैसे किया-अनुभव के आधार पर वर्णन कर रहा था। यदि लोग 'क्रांतिस्वर' के साथ इसका भी सम्यक अवलोकन करते तो उनको मेरी रण-नीति,कार्य-शैली आदि का बोध रहता और वे हिमाकत न करते जैसे कि बचपन मे RSS से संबन्धित एक सहपाठी जो कथावाचक का पुत्र था को 'कब्बडी' मे एक बार कैसे परास्त किया था ,इस तथ्य को ध्यान रखा होता तो विदेश स्थित एक प्रोफेसर साहब नाहक आघात करके बुरे न फंसे होते।
उस पिछली पोस्ट मे मैंने यह भी लिखा था-"कुछ लोगों को हमारा लेखन खूब अखरता है और कुछ लोगों को जीवन। अतः 17 जूलाई 2012 को 'श्रद्धांजली सभा की सैर' शीर्षक से किसके क्या विचार मेरे बारे मे हैं अपने को श्रद्धांजली के रूप मे प्रकाशित कर दिये थे।"
परंतु अब जब इस ब्लाग मे जो जैसा है वैसा ही लिखने मे असमर्थ हूँ तो मुझे यह स्वीकार करने मे कोई झिझक नहीं है कि हमारे तमाम विरोधी और विपक्षी-रिश्तेदार,गैर
रिश्तेदार,अड़ौसी,पड़ौसी,राजनीति,ब्लाग्स,फेसबुक आदि से संबन्धित (जिंनका सफल नेतृत्व छोटी बहन डॉ शोभा,उनके पति के बी माथुर साहब और उनकी छोटी पुत्री पूनावासी मुक्ता मणि माथुर साहिबा ने किया ) मुझ को परास्त करने मे कामयाब रहे । फिलहाल इस ब्लाग को यहीं तक अनिश्चित काल के लिए स्थगित करके अब तक के लेखन को 'विद्रोही स्व-स्वर मे-द्वितीय खंड' के रूप मे ई-बुक का रूप दिया जा रहा है।
"आगरा से लखनऊ आने तक लगभग 15 वर्ष का विवरण लिखना शेष है। इस दौरान इस वर्ष जनवरी मे 'विद्रोही स्व-स्वर मे-प्रथम भाग' को ई बुक के रूप मे संकलित भी किया जा चुका है। उम्मीद है कि शीघ्र सम्पन्न कर सकूँगा।
रिश्तेदार जलन के कारण मुझे सफल नहीं देखना चाहते,सांप्रदायिक तत्व अपने पर चोट के कारण और प्रगतिशील एवं वैज्ञानिक होने का दावा करने वाले इसलिए नहीं कि वस्तुतः उनकी कथनी और करनी मे अन्तर है। मेरा प्रयास 'धर्म' की वास्तविक व्याख्या प्रस्तुत करके सांप्रदायिक शक्तियों के नीचे से ज़मीन खींच लेने का था परंतु वह नक्कारखाने मे तूती की आवाज़ बन कर रह गया है।"
इस ब्लाग के माध्यम से जीवन मे आए संकटों,संघर्षों और उनका सामना कैसे किया-अनुभव के आधार पर वर्णन कर रहा था। यदि लोग 'क्रांतिस्वर' के साथ इसका भी सम्यक अवलोकन करते तो उनको मेरी रण-नीति,कार्य-शैली आदि का बोध रहता और वे हिमाकत न करते जैसे कि बचपन मे RSS से संबन्धित एक सहपाठी जो कथावाचक का पुत्र था को 'कब्बडी' मे एक बार कैसे परास्त किया था ,इस तथ्य को ध्यान रखा होता तो विदेश स्थित एक प्रोफेसर साहब नाहक आघात करके बुरे न फंसे होते।
उस पिछली पोस्ट मे मैंने यह भी लिखा था-"कुछ लोगों को हमारा लेखन खूब अखरता है और कुछ लोगों को जीवन। अतः 17 जूलाई 2012 को 'श्रद्धांजली सभा की सैर' शीर्षक से किसके क्या विचार मेरे बारे मे हैं अपने को श्रद्धांजली के रूप मे प्रकाशित कर दिये थे।"
परंतु अब जब इस ब्लाग मे जो जैसा है वैसा ही लिखने मे असमर्थ हूँ तो मुझे यह स्वीकार करने मे कोई झिझक नहीं है कि हमारे तमाम विरोधी और विपक्षी-रिश्तेदार,गैर
रिश्तेदार,अड़ौसी,पड़ौसी,राजनीति,ब्लाग्स,फेसबुक आदि से संबन्धित (जिंनका सफल नेतृत्व छोटी बहन डॉ शोभा,उनके पति के बी माथुर साहब और उनकी छोटी पुत्री पूनावासी मुक्ता मणि माथुर साहिबा ने किया ) मुझ को परास्त करने मे कामयाब रहे । फिलहाल इस ब्लाग को यहीं तक अनिश्चित काल के लिए स्थगित करके अब तक के लेखन को 'विद्रोही स्व-स्वर मे-द्वितीय खंड' के रूप मे ई-बुक का रूप दिया जा रहा है।
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