मंगलवार, 19 अगस्त 2014

सच्चाई कुछ और है ---विजय राजबली माथुर



चाहे जितनी बंदर सफारियां बना ली जाये समस्या ज्यों की त्यो रहेगी। हमारे अनुभव में तो वृन्दावन जाना हमेशा नुकसानदायक रहा है। परंतु माँ के लगाव के कारण पिताजी भी अक्सर जाते थे और हम लोग बच्चा होने के कारण जाने को बाध्य थे। लेकिन तब ये बंदर इस प्रकार लोगों को परेशान नहीं करते थे और न ही तब गुसाईं लोग ज़ोर ज़बरदस्ती करते थे। 

मथुरा के विश्राम घाट क्षेत्र में अब तो छोटे-छोटे गुसाईं पुत्र लोगों को दक्षिणा लेकर विश्राम घाट घुमाने की बात उठा कर घेर लेते हैं और जो दक्षिणा नहीं दे सकते उनको विश्राम घाट नहीं पहुँचने देते हैं। हमारे रिश्तेदार एक भाई बल्केश्वर कालोनी ,आगरा में रहते हैं और मेडिकल प्रेक्टिस करते हैं। उनकी सुसराल मथुरा में होने के कारण बहुधा जाते रहते हैं तब वृन्दावन के बाँके बिहारी मंदिर भी जाते हैं। उनके जरिये मालूम हुआ कि इन बंदरों को प्रशिक्षित करके वृन्दावन लाया गया है और इन बंदरों के जरिये गुसाईं लोग आने वाले लोगों को ठगने का कार्य करते हैं। जो लोग चश्मा पहनते हैं बंदर उनका चश्मा छीन कर भाग जाते हैं फिर गुसाईयों को रु 100/-कम से कम भेंट करने पर वे उस बंदर से चश्मा लाकर वापिस देते हैं। इसलिए वे लोग सफारी में भेजने के लिए बंदरों को पकड़ने ही नहीं देंगे। 

सत्य तो यह है कि तथाकथित तीर्थ स्थान आज कल ठगी और लूट-व्यापार के केंद्र बने हुये हैं। ढ़ोंगी आस्था के नाम पर जो लोग वहाँ पहुँचते है अपना शोषण करा कर ही वापिस लौटते हैं। व्यापारियों और पुजारियों की मिली भात से यह लूट चलती है और वे बिलकुल भी अपनी आम्दानी कम नहीं होने देंगे उनसे चढ़ावे की रकम से सुविधाओं की अपेक्षा करना व्यर्थ है।  

Link to this post-



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!