शनिवार, 5 दिसंबर 2015

किस्सा ए मतलबी दुनिया - मतलबी लोग ------ विजय राजबली माथुर


****** एक नेक राय पर वाजिब सवाल :
पूनम रावनी साहब की राय सिद्धान्त और नैतिकता के लिहाज से उत्तम है और मैं खुद भी इसी दृष्टिकोण पर अब तक चलता भी रहा हूँ जिस कारण बार-बार तिकड़मी-फितरती लोग धोखा देते व नुकसान पहुंचाते रहे हैं। इसी वर्ष जून में  इलाहाबाद के एक प्रोफेसर साहब (तत्कालीन फेसबुक फ्रेंड ) को भी सहायता पहुंचाई थी और उनका एक साक्षात्कार भी यहाँ के एक बड़े दैनिक समाचार पत्र में हमारे परिचय के आधार पर हमारे एक वामपंथी मित्र ने छपवा दिया था। इलाहाबाद के उन प्रोफेसर साहब के पुराने मित्र एक मिश्रा जी ने लखनऊ के मिश्रा जी से मिल कर उन प्रोफेसर साहब को मेरे विरुद्ध भड़का दिया और फेसबुक पर वह मेरे विरुद्ध लिखने लगे जिस कारण उनको हटाना पड़ा। इस ताजी घटना के बावजूद नगर के इस प्रतिष्ठित व्यक्ति व उसकी पुत्री की जन्म पत्रियों के विश्लेषण व समाधान दिये थे। अपना मतलब हल होते ही यह व्यक्ति उन मिश्रा जी व उनकी टीम के प्रभाव में आ कर मेरे विरुद्ध अप्रत्यक्ष विष-वमन करने लगा तब मजबूरन  मुझे भी उसका कच्चा-चिट्ठा देना पड़ा। वह शख्स इसलिए और भड़क गया कि मैंने उसके बलियावासी मित्र मिश्रा जी की जन्म पत्र बना कर विश्लेषण देने से इन्कार कर दिया। 

पूनम रावनी साहब की राय मानने पर मुझे आगे भी और धोखा खाना  व प्रताड़ना झेलते रहना होगा। 
जो लोग सोशलमीडिया पर निजी दुखों को साझा करते रहते हैं उनके लिए-
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय॥
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कल दो दिसंबर को एक पंडीजी का यह बयान फेसबुक पर आया है लेकिन उनके द्वारा यह नहीं बताया गया है कि जो लोग सोशल मीडिया पर अपने पद,पैसे,अक्ल के गुमान का ढिंडोरा पीटते रहते हैं उनके लिए रहीमदास जी ने क्या कहा है। बादशाह अकबर के फुफेरे भाई होने के बावजूद रहीम जी को वन-वन क्यों भटकना पड़ा इस पर पंडीजी का बयान नहीं है।
फेसबुक पर एक साहब जो अक्सर अपना निजी रोना भी रोते हैं व्यक्तिगत रूप से घर आए और अपनी पुत्री व अपनी खुद की जन्म पत्रियों का विश्लेषण भी करवा कर ले गए ,अनावश्यक रूप से किसी मिश्रा जी का गुण गान करते रहते हैं।एक नहीं अनेक मिश्रा जी का कच्चा-चिट्ठा जब मैंने दिया तब पंडीजी का 'रहीम जी' का उद्धृण कल आ गया फिर आज उन साहब का फिर किसी मिश्रा जी की तारीफ़ों का बयान आया है। मिश्रा प्रशंसक शख्स का यह कदम क्या एहसान फरामोशी की श्रेणी में नहीं आता है?




* एहसान फरामोश मिश्रा प्रशंसक शख्स की उस पोस्ट पर एक सौ तीस लाईक्स हो चुके हैं जिनमें दिग्गज प्रख्यात लोग भी शामिल हैं। सूरत, हैसियत,रुतबा और निजी हानि-लाभ जहां लाईक्स का मान-दंड हो वहाँ इस संख्या के और बढ्ने की प्रबल संभावनाएं बनी हुई हैं। वहीं अपनी लिस्ट में बचे हुये सात मिश्रा जी को मैंने उसके प्रतिरोध में अंफ्रेंड कर दिया है। इंतज़ार है इस बात का कि, 'मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं' सिद्धान्त के अनुयाई यह शख्स कब मुझे अंफ्रेंड/ब्लाक करते हैं और उस सम्यावधी आंकलन करना कोई नैतिक बाध्यता न होने से अपनी ओर से भी उनको अंफ्रेंड कर सकता हूँ। उनकी पोस्ट को लाईक करने वालों की एक झांकी यह है :---
" लखनऊ के अमीनाबाद इंटर कॉलेज से वाईस प्रिंसिपल के पद से सेवा निवृत हुए हैं। इसी कॉलेज के कभी वो विद्यार्थी थे। हम....................................
Virendra Yadav, Pramod Joshi, Manmohan Nahar and 127 others like this."

बड़े बाप का बेटा होने से ही कोई खुद को बड़ा आदमी मानता है तो यह उसकी व्यक्तिगत सोच है लेकिन जब दूसरे लोग भी सिर्फ इसी वजह से उसे बड़ा महत्व दें तब क्या मतलब निकलता है ? यही न कि, चापलूसी इस दुनिया का आज दस्तूर है।
एक तरफ तो ऐसा शख्स एक वरिष्ठ और लोकप्रिय नेता का खुद को प्रशंसक भी घोषित करता है दूसरी तरफ उनके कटु आलोचक और अश्लीलता समर्थक बाजारवादी मिश्रा व उनकी बिरादरी के गीत गाता है। धोखा-धड़ी और छल की इससे बड़ी मिसाल और क्या हो सकती है? जब पहली बार ही आने पर वह अपनी बड़ी बहन , पत्नि , पुत्र,पुत्री और भांजे की आलोचना कर गया तो उसके बारे में ज़्यादा खोज-बीन करने की ज़रूरत ही नहीं रह गई थी इसी से साफ था कि वह एक खुदगर्ज , विद्वेषी और अविश्वसनीय व्यक्ति है। जो शख्स अपने परिवारीजनों की तो निंदा करे साथ-साथ 'दोस्ती' का नाम देकर 'मिश्रा' की तारीफ़ों के पुल बांधे तो साफ है कि वह नंबरी झूठा और मक्कार शख्स है। वह लिखता है कि, उसके लिए दोस्ती ज़्यादा महत्वपूर्ण है और वह दोस्तों का सबसे बड़ा हमदर्द है। फिर इस प्रश्न का क्या उत्तर है कि ,अपने परिवार का आलोचक वह क्यो है?
दोस्ती या मित्रता कोई ऐसी चीज़ नहीं होती कि उसे खरीदा या हड़पा जा सके। इसे परखना है तो 'राम-सुग्रीव' व 'कृष्ण-सुदामा' की मैत्री में परखा जा सकता है।
दोस्ती की दुहाई देने वाला शख्स यह भी तो बताए कि मेरे पास 'फेसबुक फ्रेंडशिप' के नाम पर अपनी व अपनी पुत्री की जन्म पत्रियों का विश्लेषण प्राप्त करने आया और मतलब हल होने के बाद मुझ पर ही प्रहार करने लगा यह किस किस्म की दोस्ती हुई? स्पष्ट है कि वह अश्लीलता समर्थक बाजारवादी 'मिश्रा-तिवारी' के डेस्टरकटिव एजेंट के रूप में एक साजिश के तहत दोस्ती का स्वांग रचता हुआ आया था। लेकिन क्या अब वह या उसकी जाति/क्षेत्र का कोई दूसरा व्यक्ति भी फिर से मुझसे कोई सहायता/लाभ प्राप्त कर सकेगा?

Comments
Punam Rawani मिँत्रवर , एक की गलती की सजा सबो को न देँ ।

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