शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

आगरा/1992-93/भाग-6

अप्रैल 1985 से जिन सेठ जी के यहाँ काम कर रहे थे और जिन्हें अपीलेट इन्कम टैक्स कमिश्नर श्रीमती आरती साहनी द्वारा जेल भेजने की कारवाई से राहत वकील साहब की राय पर दिलवाई उनके दुर्व्यवहार के कारण एक झटके मे नौकरी तो छोड़ दी किन्तु आर्थिक संकट विकट रूप मे सामने आ गया। एक तो रु 290/- की मकान की किश्त जमा करना होता था और बाद मे रेजिस्टरी के समय लगने  वाले स्टेम्प्स हेतु एक आर डी अकाउंट रु 110/-का खोला था उसकी भी किश्त जमा करनी थी। मैंने शंकर लाल जी से कोई और पार्ट टाईम जाब दिलवाने का निवेदन किया। एक-दो माह आश्वासन देते रहने के बाद जब उन्हें याद लगातार दिलाते रहे तो वह बोले जिन लोगों ने आश्वासन दिया था वे मुकर गए हैं अतः मैं खुद ही अपने यहाँ फ़ुल टाईम रख लेता हूँ और अपने बदले मे पार्ट टाइम अपने छोटे भाई के यहाँ दिला देता हूँ। चूंकि 06 घंटों वाले फुल टाईम के सेठ जी रु 1800/- देते थे अतः शंकर लाल जी ने फुल टाईम 04 घंटे रखते हुये रु 1200/- ही दिये। एक -दो माह बाद एक घंटे का पार्ट टाईम अपने छोटे भाई के यहाँ रु 400/- पर दिला दिया। राहत तो मिली किन्तु आमदनी पहले से कम हो गई। मंहगाई तो निरंतर ही बढ़ती ही रहती है लेकिन यदि स्वाभिमान की रक्षा करना था तो हानि सहना ही था।

जिस दौरान शंकर लाल जी और उनके भाई का जाब नहीं था किसी काम से कमलेश बाबू फरीदाबाद रुकते हुये हमारे पास आगरा आए थे। हमने बाबू जी से  जो उस समय अजय के पास फरीदाबाद मे थे कोई जिक्र नहीं किया था। सुबह का खाना बउआ ने अजय की श्रीमती जी से कमलेश बाबू को खिलवा दिया था। हमारे घर उन्हें चार बजे साँय पहुंचना था ट्रेन राईट टाईम आई थी किन्तु वह पहुंचे पाँच बजे। शालिनी ने सूजी का हलवा और बेसन की पकौड़ी नाश्ते मे चाय के साथ परोसी थीं। चुटकी भर हलवा चख कर पकौड़ी खाने से कमलेश बाबू ने इंकार कर दिया क्योंकि स्टेशन पर उतरने के बाद वह ठेले पर पकौड़ी खा कर,चाय पी कर आए थे। जब हमने यह पूछा की घर आ रहे थे तो स्टेशन के ठेले पर नाश्ता क्यों किया?क्या आपको बाबूजी-बउआ की गैर हाजिरी मे यहाँ भूखा रहने का शक था?उनका जवाब था की भूख ज़ोर से लग रही थी। इसका अर्थ यह हुआ कि फरीदाबाद मे अजय की श्रीमती जी ने उन्हें भरपेट खाना नहीं खिलाया जबकि बाद मे बउआ ने लौटने पर बताया कि वहाँ तो उन्होने पेट भर जाने की बात कही थी। बउआ झूठ नहीं बोलती थीं जिसका अर्थ हुआ कि कमलेश बाबू अजय की श्रीमती जी को नाहक बदनाम कर रहे थे। हालांकि वह उनकी एक ममेरी बहन की नन्द हैं और इसी लिए उनहीने शादी भी तय करवाई थी किन्तु शादी के समय उनके घर 'चार की मेवा' मे शराब की बोतल भेज कर बारात लौटने के बाद अजय से भयंकर झगड़ा भी किया था। कमलेश बाबू से शोभा की एंगेजमेंट के एक-डेढ़ माह के भीतर ही अजय का भयंकर एक्सीडेंट एम जी रोड पर हुआ था जिसमे तीन दिन डाक्टरों ने रिसकी बताए थे। आज तक उसकी पीड़ा से अजय ग्रसित हैं तब भी कमलेश बाबू कैसे-कैसे पाँसे फेंकते रहे हैं। दुर्भाग्य से हम उन्हें समय पर पहचान नहीं पाये। हमने हमेशा छोटे बहनोई के नाते उनकी बातों का  समर्थन किया जिसका खामियाजा भी खूब उठाया लेकिन आँखें नहीं खुलीं और उन्हें अच्छा  ही अच्छा समझने की भूल लगातार करते रहे,नुकसान उठाते रहे और शक दूसरों पर करते रहे।

झांसी लौट कर कमलेश बाबू ने शोभा से बाबूजी को चिट्ठी मे लिखवा दिया कि मेरी फुल टाईम जाब छूट गई है। मैंने या शालिनी ने कुछ नहीं कहा था किन्तु यशवन्त से उन्हें पता चला होगा। बाबूजी ने वहाँ से रु 2500/- का चेक मुझे डाक से भेज दिया। मैंने वह चेक अपने अकाउंट मे जमा करके अपना चेक रु 2500/- का बाबू जी के अकाउंट मे जमा कर दिया। हालांकि बाबूजी ने लौट कर जब पास बुक मे एंट्री कराई तो मुझ पर नाराज भी हुये कि रुपए क्यों लौटाए?प्रतीत होता है कि कमलेश बाबू लगातार आग लगाने-फूट डालने के कृत्य करते रहे ,बाबूजी और बउआ को उनके लक्षण कभी भी पसंद नहीं आए सिर्फ मेरी ही बुद्धि भ्रष्ट चल रही थी जो हर बार मै उनके बचाव मे ढाल बन कर खड़ा होता रहा तब भी जब वह बउआ के निष्कर्ष के मुताबिक यशवन्त को दिमागी ठेस पहुंचाने के कृत्य करते रहे।





एक बार1984 मे  वह रात नौ बजे हमारे घर झांसी से पहुंचे थे ,उन्हें कोई शादी आगरा केंट मे अटेण्ड करनी थी। उपरोक्त चित्र से ज्ञात होगा कि यशवन्त तब कितना बड़ा था। रात के सवा नौ बजे एक बड़ा सेव उसे खाने को पकड़ा दिया वह नही खा पा रहा था उसे घुड़क-घुड़क कर खाने का आदेश देते रहे। सोफ़े और चारपाई के बीच ठंडी जमीन पर उसे बैठा दिया तब तक वह बैठ नाही पाता था और बार-बार गिर जाता था ,उसके सिर मे चोट लगने से  रोने लगता था,मुझे या शालिनी को वह यशवन्त को पकड़ने नहीं दे रहे थे। अंततः बाबूजी ने अपनी गोद मे उसे सहारा दिया तब जाकर चुप हो पाया। वह नाश्ता करके लौट गए क्योंकि शादी की दावत खाना था लिहाजा हमारे घर भोजन नहीं किया। बउआ ने उनके जाने के बाद स्पष्ट कहा था कि शोभा की दोनों लड़कियां हैं इसलिए कमलेश बाबू यशवन्त की खोपड़ी मे चोट लगा कर उसका दिमाग कमजोर करना चाहते थे हालांकि वह उसके लिए खिलौने और मिठाई भी लाये थे जो चित्र मे दीख रहे हैं । पता नहीं क्यों मैंने समझा कर अपनी माँ को चुप कराया ?

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2 टिप्‍पणियां:

  1. गुरूजी प्रणाम ! दुनिया रंगरंगीली है !

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  2. इस दुनिया में बहुत से येसे भी लोग है जो दूसरों का भला नही चाहते ..ईश्वर सब को देखता है...उस पर विश्वास रखना चाहिए..

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