आगरा से हम लोगों के पटना चलने वाले दिन लखनऊ से माधुरी जीजी का भेजा निमंत्रण पत्र भी मिला जिसमे उन्होने अपनी बेटी गुड़िया की शादी मे आने को कहा था। अतः टिकट सीधा आगरा का होने के बावजूद हम लोग कानपुर सेंट्रल पर उतर गए और बस द्वारा लखनऊ पहुंचे तथा चारबाग बस स्टेशन से राजाजीपुरम का टेम्पो करके जीजी के घर पहुंचे। गुड़िया को हम लोगों के पहुँचने से प्रसन्नता हुई उसने नरेश से खुशी के साथ कहा -नरेश मामा ,विजय मामा आ गए।मैंने जीजाजी को तो देखा ही नहीं 19891 मे उनकी मृत्यु भी हो गई थी तब गुड़िया और उसके दोनों भाई बहुत छोटे थे। 1991 मे बड़े ताऊ जी की मृत्यु के बाद जब मैं दरियाबाद गया था तब वहीं पहली बार गुड़िया को देखा था तब भी काफी छोटी थी। 1992 मे ऋषिराज की शादी के समय लखनऊ आने पर बच्चों ने अपने हाथ दिखाये थे,गुड़िया ने भी दिखाया था,मैं तो यह भूल चुका था कि किसको क्या बताया था किन्तु जीजी को याद होगा उन्होने पूनम को बताया कि विजय ने जो उम्र शादी की बताई थी और जो नाम 'अ' अक्षर वाला बताया था गुड़िया पर दोनों बातें हू-ब -हू लागू हो रही हैं। ताऊ जी-ताई जी का व्यवहार चाहें जैसा हमारे माता-पिता के साथ रहा हो माधुरी जीजी जैसे बचपन मे ताई जी की डांट की परवाह न करके अपनी बहन को छोड़ कर मुझे खेलने को ले जाती थीं उसी प्रकार का अनुराग अब भी रखती थीं और वह हम लोगों के आने से काफी प्रसन्न थीं।
माधुरी जीजी के बड़े भाई (गिरिराज भाई साहब) उस समय पहुंचे थे जब बरातियों के खाने के बाद घराती खाना खा रहे थे हालांकि वह अलीगंज के हनुमान मंदिर मे तब भी रहते थे और अब भी वहीं रहते हैं। उन्होने गुड़िया के लिए जीजी को सौ रुपए का एक नोट दिया था। शुगन के नेक कार्यों मे 51/-,101/- ,21/-,11/- का चलन होने के बावजूद संम संख्या मे भांजी के लिए भेंट देना जीजी को अच्छा नहीं लगा था और उन्होने मुझे वह नोट दिखाते हुये कहा था -"दादा ने गुड़िया के लिए यह दिया है"।
यों तो जीजी सभी का ख्याल रखती थीं किन्तु भोजन के दौरान भी मेरे पास आकर विशेष रूप से पूंछा था "विजय तुमने ठीक से खा लिया?" यह उनके यहाँ बनी वीडियों फिल्म मे भी दर्ज हो गया था जिसे देखने के बाद उनके सगे भाइयों को भी यह तंज़ था कि जीजी तो विजय भाई साहब को ही मानती हैं। ऋषिराज,नरेश,उमेश ने मिल कर रु 8000/- 'भात' की रस्म मे खर्च किए थे जैसा कि महेंद्र जीजाजी के मुंह से सुना था ,उन्होने अपनी बेटी की शादी मे रु 80000/- खर्च करने की उन लोगों से मांग की थी। मीरा जीजी ने पूनम से हमारी बउआ की तीखी आलोचना की थी किन्तु महेंद्र जीजाजी और कमलेश बाबू मे गहरी बनती है इसलिए डॉ शोभा कहती हैं कि मीरा जीजी तो अच्छी हैं लेकिन माधुरी जीजी बउआ की बुराई करती हैं। मुझसे या पूनम से तो माधुरी जीजी ने हमारे माता-पिता की कभी भी बुराई नहीं की बल्कि हमेशा कहा छोटे चाचा-चाची अच्छे थे। माधुरी जीजी हमारी हैसियत से वाकिफ थीं इसलिए पूनम ने जो कुछ गुड़िया को दिलवाया उसको उन्होने बहुत ज़्यादा बताया। चलते समय उन्होने मुझे,पूनम व यशवन्त को कपड़े दिये।
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गुड़िया और अभय जी और उनको देखता हुआ यशवन्त जिसके पीछे खड़े हैं -माधुरी जीजी और देवेन्द्र भाई साहब* |
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अभय जी और गुड़िया के साथ पूनम (अग्रिम पंक्ति मे ) |
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गुड़िया को हल्दी चढ़ते हुये पूनम,पीछे बैठी हैं रीता जीजी |
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यशवन्त,पूनम,गुड़िया,मैं और किसी अतिथि के बच्चे |
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पूनम गुड़िया के साथ
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* देवेंद्र भाई साहब-
हमारी भुआ के बड़े बेटे -देवेन्द्र भाई साहब HAL,लखनऊ मे तब एरोनाटिकाल इंजीनियर थे और इन्दिरा नगर मे रहते थे जो अब पूना मे सेटिल हो गए हैं। जब हुसैन गंज मे हम लोग रहते थे और तीसरी-चौथी कक्षा मे मेरे लिए हर इतवार को बाबूजी 'स्वतंत्र भारत' अखबार लेते थे और बाढ़-पीड़ित शरणार्थी के रूप मे भुआ का परिवार हमारे यहाँ टिका था तब इन देवेन्द्र भाई साहब और इनके छोटे भाई -लाखेश भाई साहब को वह अच्छा नहीं लगता था। वे लोग भुआ-फूफा जी से कहते थे कि मामा जी विजय के लिए अखबार लेते हैं उसे क्या समझ आता होगा?ये लोग तब आदेश देकर ग्लास माँज कर चमका कर उसमे पानी पिलाने को कहते थे और हम खुशी-खुशी वैसा ही करते थे। 5 वें अटेम्प्ट मे देवेन्द्र भाई साहब ने और दूसरे अटेम्प्ट मे लाखेश भाई साहब ने हाई स्कूल पास किया था और मैंने पहले ही अटेम्प्ट मे। लेकिन यह सरकारी अफसर थे और इनके छोटे भाई IEL के अफसर जबकि मेरा हाएस्ट पोस्ट -सुपरवाइज़र अकाउंट्स रहा। उस वक्त दुकानों मे काम कर रहा था। निश्चय ही उन लोगों के मुक़ाबले मे कहीं नहीं टिकता था। फिर भी देवेन्द्र भाई साहब की ख़्वाहिश पर उनका भी यह फोटो ले लिया था ,इच्छा न होते हुये भी। भुआ ने भी मेरे विरुद्ध मेरे भाई-बहन को काफी भड़काया था। आज भी डॉ शोभा और कमलेश बाबू लाखेश भाई साहब के पैरोकार हैं।
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