20जनवरी की रात मे नरेश का अचानक फोन आया कि 19 जनवरी 2012 की दोपहर दो बजे माधुरी जीजी इस दुनिया को छोड़ गई हैं। 21 ता .की शाम को उनके निवास पर शान्ति हवन होगा और उसमे मुझे शामिल होने को उन्होने कहा। जहां तक माधुरी जीजी का प्रश्न था उनका व्यवहार सभी के साथ मधुर था मेरे प्रति भी। अतः उनके इस कार्यक्रम मे शामिल होने मे हर्ज नहीं था। पूनम को भी वही एकमात्र ऐसी नन्द लगीं जिन्हें उनसे लगाव रहा। इसीलिए उनके निधन के समाचार से पूनम को रुदन आ गया जबकि अपने माता-पिता के निधन के समय भी पूनम संयम बनाए रहीं। इच्छा उनकी भी थी माधुरी जीजी के घर चलने की किन्तु कुछ उनकी तबीयत और कुछ मेरे अपने राजनीतिक कार्यक्रमों के कारण उन्हें साथ ले चलना संभव नहीं हुआ। मुझे घर से 11 बजे निकालना था क्योंकि 12 बजे पार्टी कार्यालय मे हमारी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव घोषणा पत्र जारी करने की प्रेस वार्ता थी एवं उसके बाद जिला काउंसिल की बैठक भी। लिहाजा ढाई बजे मै बैठक समाप्त होते ही वरिष्ठ नेताओं को बता कर राजीपुरम के लिए चला। अमीनाबाद से टेम्पो पकड़ कर उनके घर तीन बज कर 53 मिनट पर पहुँच गया। हवन मेरे सामने ही प्रारम्भ हुआ और 04-45 पर समाप्त भी हो गया। आर्यसमाजी पुरोहित थे परंतु उन्होने विधान के अनुसार हवन नही कराया था क्योंकि उन्हें कहीं दूसरी जगह भी जाना था।
(1996 मे लिया गया माधुरी जीजी का चित्र)
हवन के बाद मैंने जीजी के बड़े पुत्र शरद से पूछा कि उनकी बीमारी के समय क्यों नहीं सूचित किया?शरद ने मौन रखा और अपने ऋषि मामा की ओर मुखातिब हो लिए। उमेश जो यहीं अशरफाबाद मे रहते हैं उनसे पूछा तो जवाब था तब जल्दी इलाज की थी। नरेश का जवाब था आपका फोन नंबर गायब हो गया था फिर गुड़िया (माधुरी जीजी की बेटी) से लेकर सूचित किया था। वस्तुतः 2009 मे लखनऊ आने के बाद हम सबसे पहले माधुरी जीजी के ही घर जाना चाहते थे किन्तु दरियाबाद से नरेश ने सूचित किया उनकी बेटी हमारी ही कालोनी मे है उससे मिल लूँ। गुड़िया ने तब बताया था कि जीजी को डायलिसिस कराना पड़ रहा है जब हम 20जनवरी 2010 को गुड़िया के घर गए थे। अतः 27 जनवरी 2010 को हम माधुरी जीजी के घर गए वह तो काफी उल्लास के साथ मिली थी। शरद को ही हमारा जाना शायद अच्छा न लगा था। वह अपने मौसा महेंद्र (कमलेश बिहारी के अजीज -ओ-अजीज हम प्याला साढ़ू) के यहाँ भी मुझे जाने का दबाव बना रहे थे जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया था। शरद की पत्नी ने हम लोगों से उमेश के घर जाने को कह कर बीच का रास्ता निकाला था। उमेश ने भी अपने घर अन्यमनसकता ही प्रदर्शित की थी। गुड़िया के घर अभय जी की जन्मपत्री देने गए थे तो वह भी अन्यमनसक ही दिखे। यही कारण था कि फिर मै किसी के भी घर नहीं गया। एक-ही दो दिन पहले पूनम ने कहा था कि माधुरी जीजी के घर चलना चाहिए उनका व्यवहार अच्छा है बच्चों के व्यवहार पर मै ध्यान न दूँ। मैंने कहा भी था कि किसी दिन चलेंगे किन्तु उसकी नौबत न आ पाई और जीजी दुनिया ही छोड़ गई ।
बउआ बताया करती थीं कि माधुरी जीजी जो मुझसे 10 वर्ष बड़ी थीं दरियाबाद मे मुझसे 06 माह छोटी अपनी बहन को छोड़ कर मुझे ही गोद मे लेकर खेला करती थी। ताईजी इस बात पर उनसे नाराज भी होती थीं कि अपनी बहन को छोड़ कर वह चचेरे भाई को क्यों प्यार करती हैं। माधुरी जीजी से बड़े हैं गिरिराज भाई साहब जो आजकल अलीगंज के नए मंदिर मे अपनी इंडिका गाड़ी के साथ रहते हैं वह पहले हेमवती नन्दन बहुगुड़ा आदि नेताओं के प्रिय थे और अब IAS अधिकारियों के प्रिय हैं। गुड़िया की शादी मे इन्होने अपनी भांजी हेतु रु 100/- भेंट किए थे तब माधुरी जीजी ने मुझे व पूनम को शिकायती लहजे मे नोट दिखते हुये बताया था कि दादा ने गुड़िया के लिए यह दिया है। बड़े ताऊ जी के निधन पर भी मै आगरा से दरियाबाद होकर लौट गया तब तक वह वहाँ लखनऊ से नहीं पहुंचे थे। हवन/भोजन के बाद नरेश ने मुझे उनकी गाड़ी मे बैठा कर उनसे कपूरथला पर छोड़ देने को कहा था। चूंकि वह चौक होते हुये लौटे अतः मै नींबू पार्क पर उतर कर टेम्पो द्वारा घर आ गया।
माधुरी जीजी के बाद वाली अंजली जीजी दरियाबाद मे थीं वह न मिलीं। जब उमेश के घर 27-01-2010 को गए थे तो वह दूर बरामदे मे अलग-थलग बैठाई गई थीं हमारे पूछने पर उन्हे मिलने को उमेश की पत्नी ने बुलाया था। उनके बाद वाली रीता जीजी का निधन पहले कभी हो गया था ,हमे लखनऊ आने पर पता चला। उनके बाद वाली मीरा जीजी और महेंद्र जीजाजी डॉ शोभा एवं कमलेश बाबू के सलाहकार हैं,इस वक्त शहर से बाहर थे ,अच्छा हुआ जो नहीं मिले ।उनके बाद वाली बीना ही मुझसे 06 माह छोटी है वह और हरी मोहन जी मिले थे। मै उमेश ,शरदआदि के व्यवहार को देखते हुये उनसे पहले नहीं मिला था। उनके बाद वाले ऋषिराज,नरेश और उमेश मिले थे और दरियाबाद आने को कह रहे थे। दरअसल दिसंबर 2011 मे सुरेश भाई साहब के निधन के बाद से मै दरियाबाद (रायपुर) नहीं पहुंचा हूँ और मथुरा नगर इन लोगों के यहाँ जाने का मतलब उन लोगों के विरुद्ध इन लोगों के साथ होना है अतः फिलहाल कोई प्रश्न नहीं उठता है। कमलेश बाबू/उमेश चैनल ने हमारी पार्टी के एक वकील कामरेड को मिला कर उनसे यह शोशा उठवाया था कि मुझे पुश्तैनी जायदाद मे अपना हिस्सा मांगना चाहिए वह वकील साहब स्वेच्छा से मदद करेंगे। एक बार वही वकील साहब मुझसे कह रहे थे कि,"माथुर साहब बिना स्वार्थ के आजकल पानी पीने को भी कोई नहीं पूछता है" , फिर यह मेहरबानी क्यों? उनसे मैंने जवाब मे कहा था कि ,"हमारे अपने कजिंस से संबंध मधुर नहीं हैं फिर भी हम टकराव नहीं चाहते हैं"। फिर भी आज दिन मे उन्होने फोन करके किसी कर्मचारी से यह कह कर बात करवाई कि वह हमारे पिताजी के मित्र के पुत्र हैं। हमे दरियाबाद के केवल भवानी शंकर तिवारी जी का उनके मित्र होने का पता है और उनसे 1992 तथा 1996 मे मुलाक़ात भी हुई थी उनके पुत्र भी उस दिन जीजी के घर मिले थे किन्तु किन्ही चतुर्वेदी जी की हमे कोई जानकारी नहीं है। उन्नाव के कामरेड भीका लाल जी भी बाबूजी के सहपाठी और रूम मैट थे उनसे भी कामरेड सरजू पांडे जी के जमाने मे एक रैली के दौरान लखनऊ मे मुलाक़ात हो चुकी थी।
27-01-2010 को हमे माधुरी जीजी ने बताया था कि,कमलेश बाबू और उनके दूसरे भाई अपने सबसे छोटे भाई योगेश से अपनी पुश्तैनी जमीन मे हक मांग रहे हैं जबकि सभी सेटिल हैं और योगेश केवल खेती पर निर्भर हैं। माधुरी जीजी योगेश की पत्नी की माईंजी होने के नाते उनके प्रति सहानुभूति रखती थीं। डॉ शोभा ने माधुरी जीजी की यह कह कर कड़ी आलोचना की थी कि वह हमारी बउआ की उनसे बुराई करती हैं। डॉ शोभा के मुक़ाबले मै अधिक बार माधुरी जीजी से मिला किन्तु उन्होने अपने चाचा- चाची (हमारे माता-पिता) की कभी मुझसे बुराई नहीं की ,अप्रैल 2011 मे यहाँ आने पर डॉ शोभा ने माधुरी जीजी की बुराई की थी जबकि आगरा मे डॉ शोभा खुद ही अपनी माँ से अभिवादन किए बगैर ही झांसी लौटी हैं। अब चूंकि योगेश की आपरेशन बिगड़ने से दोनों आँखों की रोशनी चली गई थी उनसे जमीन मे हिस्सा मांगना कमलेश बाबू को मंहगा पड़ता उन्होने दरियाबाद मे सुसराल की जमीन मे हिस्सा मांगने का उपक्रम तैयार किया है जिस जमीन की खातिर वह 1976 मे BHEL,हरद्वार से स्तीफ़ा देने तक को उद्यत थे। हमने ऐसा सुना है कि दरियाबाद मे बाबूजी के नाम के हिस्से को उन लोगों ने अजय तथा मेरे नाम मे कागजों पर करा रखा है। तब तक लड़कियों को खेती मे हिस्सा नहीं मिलता था,वह कानून बाद मे बना है जिसका लाभ लेने हेतु कमलेश बाबू डॉ शोभा से उम्मीद लगाए हैं। इन लोगों की चाल है कि यदि हम वकील साहब के जाल मे फंस जाएँ तो आज के कानून के हिसाब से अजय और मेरे साथ डॉ शोभा का क्लेम भी बीच मे लगाया जा सके।
ऋषि,नरेश और उमेश सब डॉ शोभा से छोटे हैं,सुरेश भाई साहब के सभी बहन-भाई अब जीवित नहीं हैं। अजय और मेरे अलावा गिरिराज भाई साहब ही डॉ शोभा से बड़े हैं। मंदिर के पुजारी गिरिराज भाई साहब अपने तीनों भाइयों का साथ देंगे। अजय और मुझसे कमलेश बाबू ने डॉ शोभा का झगड़ा करा रखा है। अब यशवन्त समेत हम लोगों का अनिष्ट करना ही कमलेश बाबू और डॉ शोभा का अभीष्ट रह गया है। लेकिन बड़े होने के नाते हम बहन-बहनोई और भाँजियों का अनिष्ट नहीं सोच सकते। माधुरी जीजी अपने भाइयों समेत सभी चचेरे भाइयों की एकता की पक्षधर थीं। हालांकि जीजाजी (स्व.दर्श बिहारी माथुर )से मै कभी नहीं मिला लेकिन अजय ने उनकी काफी तारीफ की है। उस दिन जीजी के यहाँ उनके एक मित्र पांडे जी बता रहे थे कि जीजाजी ने अपने पी एफ से लोन ब्याज पर लेकर बिना ब्याज के अपने साथियों को उधर दिया था जिसकी जानकारी जीजी को न थी किन्तु जीजा जी की मृत्यु के बाद उनके मुस्लिम साथी कहीं और से बंदोबस्त करके पूरी रकम जीजी को दे गए तभी उन्हें पता चला जबकि हिन्दू साथी रकम डकार गए , जीजी ने पता चलने पर भी कोई तकाजा नहीं किया था।
मुझे और विशेषकर पूनम को माधुरी जीजी के निधन का वाकई मे काफी दुख हुआ है। हम परम पिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि माधुरी जीजी और दर्श बिहारी जीजाजी की आत्माओं को शांति प्रदान करें।
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