मंगलवार, 28 मई 2013

तीन वर्षों में क्या खोया,क्या पाया---विजय राजबली माथुर

चूंकि हम लखनऊ यशवन्त की इच्छानुसार आए थे और उसका ट्रांसफर कानपुर से लखनऊ नहीं किया जा रहा था तब हमने उसको जाब छोड़ कर आने को कहा एवं विकल्प के रूप में उसे घर पर ही साईबर चलाने को कहा जिसका प्रारम्भ तीन वर्ष पूर्व आज ही के दिनांक को हुआ था। इन तीन वर्षों में यद्यपि आर्थिक रूप से कोई लाभ नहीं हुआ परंतु इसके माध्यम से लेखन के क्षेत्र में हमें मान-सम्मान तो मिला ही एक अलग  पहचान भी  प्राप्त हुई।

कुछ कारणों से व्यवसायिक रूप से तो साईबर का संचालन जारी नहीं रखा है परंतु लेखन के क्षेत्र में प्राप्त सुविधा का लाभ आज भी ले ही रहे हैं।इससे विद्वेष रखते हुये  ही   ब्लाग -लेखन क्षेत्र में कुछ निहित स्वार्थ वाले लोगों ने हमें विचलित करने व हम पर अनर्गल कीचड़ उछालने का कार्य भी किया। 
"यादें-संस्मरण अक्सर खट्ट्-मीठे होते हैं पर ये रोचक रहे..."
उस समय इस टिप्पणी को साधारण समझा था जबकि यही टिप्पणी 'स्लो प्वाइजन' निकली। टिप्पणी दाता ने अपने ज़िले एवं श्वसराल के संपर्कों के आधार पर ब्लाग जगत में 'धन-लोलुप'ब्लागर्स के सहयोग से हमारे विरुद्ध घृणित प्रचार अभियान तो चलाया ही इन संपर्कों के आधार पर ही हमारी पार्टी व निवास क्षेत्र में भी लोगों को हमारे विरुद्ध उकसाया। टिप्पणी दाता ने अपने एक निकटतम रिश्तेदार के माध्यम से हमारे सभी परिवारी जनों पर नाहक तोमहतें लगवाईं। वह महानुभाव हमारे संपर्क के लोगों को हमारे विरुद्ध करने का अभियान चलाने लगे। क्योंकि संपर्क हेतु उन्होने साईबर में अपने कागजात टाईप करवाने का बहाना खोजा था अतः उनके कार्य को सम्पन्न करने से इंनकार करवा दिया है। अब भी यदि वह अपनी दुष्प्रवृत्ति जारी रखेंगे तो मजबूरन उनका नाम भी उजागर करना पड़ेगा। ऐसा उनको उनके फोन काल के उत्तर में भी सूचित कर दिया है। 
 
इस सबके बावजूद पिछले तीन वर्षों को निराशाजनक कतई नहीं कहा जा सकता। तीन वर्षों में परिवार के तीनों सदस्यों के ब्लाग -लेखन का कार्य चल रहा है। चार ब्लाग सार्वजनिक रूप से अपने व एक पूनम का और दो ब्लाग निजी तौर पर  मैं खुद संचालित कर रहा हूँ।  यशवन्त चार ब्लाग व्यक्तिगत रूप से और एक ब्लाग सामूहिक रूप से संचालित कर रहा है।   फेसबुक एवं ब्लाग-लेखन के माध्यम से हम लोगों की एक पहचान राजनीतिक क्षेत्र मे बन गई है। आर्थिक सफलता न सही राजनीतिक सफलता ही हौसला अफजाई के लिए काफी है।
 
 

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3 टिप्‍पणियां:

  1. .सराहनीय प्रयास .आभार . छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने

    साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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  2. बाबूजी,
    शुभ प्रभात
    आलोचना-समालोचना
    ये तो रचनाकार को मिलते ही रहते हैं
    और यही रचनाकार को
    सम्बल, सहकार, प्रदान करने के साथ-साथ
    अपने कार्य शैली में सुधार भी करवाते हैं
    संघर्ष..
    व....
    मंथन..
    ये ही दोनों कार्य हैं
    जो निरंतर करने पड़ते हैं
    "नवनीत" इन दोनों कार्य का प्रतिफल है
    उसे मिलना ही होगा
    सादर

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