शनिवार, 3 अगस्त 2013

चतुर्थ वर्ष में ब्लाग और अनुभव ---विजय राजबली माथुर


मंगलवार, 3 अगस्त 2010 से इस ब्लाग का प्रारम्भ इस लेख से हुआ था :

"लखनऊ तब और अब " http://vidrohiswar.blogspot.in/2010/08/blog-post.html

वैसे एक ब्लाग 'क्रांतिस्वर' पहले से चल रहा था जिसमें पूर्व प्रकाशित लेखों को देना शुरू किया था। नए विचार भी उसी में दे रहे थे। फिर इस नए ब्लाग को शुरू करने का ध्येय यह था कि उन विभिन्न घटनाओं का भी उल्लेख कर दिया जाये खास तौर पर जिनका प्रभाव जीवन पर विभिन्न प्रकार से पड़ा था और लेखन को प्रभावित करने में जिनका योगदान रहा है। गत वर्ष उल्लेख कर चुका हूँ कि आगरा 1996-97 के बाद से लखनऊ आने 2009 तक 12 वर्ष का विवरण लिखना शेष  रह गया था । http://vidrohiswar.blogspot.in/2012/08/blog-post.html

इस दौरान भी इस ब्लाग में लेखन तो हुआ है किन्तु क्रमानुसार लेखन अब बाधित हो चुका है और शायद उस प्रकार अब हो भी न सके। फिर भी यदा-कदा खास-खास घटनाओं का वर्णन करता जा रहा हूँ।

आज जब यह  ब्लाग-लेखन के तीन वर्ष पूर्ण कर चतुर्थ वर्ष में प्रविष्ट हो गया है और इसके साथ-साथ 'क्रांतिस्वर','कलम और कुदाल'तथा 'जनहित में'तीन अन्य ब्लाग भी सार्वजनिक रूप से चल रहे हैं एवं 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी'  ब्लाग में भी मुझे लिखने को कहा गया है और उसमें भी थोड़ा योगदान दे रहा हूँ प्रश्न यह उठता है कि इस सारे लेखन की सार्थकता क्या है?


मुझे कुछ भी संशय नहीं है कि जिस ध्येय से मेरा लेखन चलता है उससे वर्तमान में कोई भी सहमत होगा! जो रूढ़ीवादी अंध-विश्वास पर चलते हैं वे तो मेरे विरोधी हैं ही परंतु जो खुद को प्रगतिशील व वैज्ञानिक विचारों वाला मानते हैं वे भी मेरा विरोध करते हैं क्योंकि उनके क्षुद्र विचारों पर भी मेरा लेखन प्रश्न-चिन्ह रखता है। इसी लिए मैं 'टिप्पणियॉ'पर कोई महत्व नहीं देता हूँ जबकि ब्लाग-जगत में इन टिप्पणियों को लेन-देन का चलन माना जाता है और लोग एक-दूसरे की पीठ थपथपाने वाली टिप्पणियाँ करते व प्रसन्न होते हैं। हालांकि इसी ब्लाग में कुल प्राप्त टिप्पणियों में से कुछ चुनिन्दा टिप्पणियों को एक पोस्ट के रूप में मैं प्रकाशित कर चुका हूँ। उसका उद्देश्य विभिन्न लोगों की सोच को सार्वजनिक करना था। 

मुझे निराश व हताश करने के प्रयास जिन लोगों ने किए उनके उद्देश्यों सहित  उनका भी विस्तृत उल्लेख अनेकों बार इस ब्लाग में भी हो चुका है। प्राप्त अनुभव को सुखद या अच्छा तो नहीं कहा जा सकता है परंतु लेखन एक शौक या हाबी होने के कारण आगे भी जारी रखूँगा एवं अपने विचार दृढ़ता से रखता रहूँगा चाहे जितना भी तीव्र विरोध हो। मुझे विश्वास है कि आगामी पीढ़ियाँ मेरे इस आज के लेखन से अवश्य ही लाभ उठा सकेंगी।


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