शुक्रवार, 13 जून 2014

पिताजी को श्रद्धांजली के बहाने ---विजय राजबली माथुर

बाबूजी (निधन-13 जून 1995 )और बउआ(निधन-25 जून 1995) चित्र 1978 मे रिटायरमेंट से पूर्व  लिया गया
आज बाबूजी को यह संसार छोड़े हुये 19 वर्ष व्यतीत हो गए हैं। परंतु उनकी दी हुई शिक्षा व सीख आज भी मेरे लिए पथ -प्रदर्शक के रूप मेरे साथ बनी हुई हैं। आर्थिक रूप से जिस प्रकार बाबूजी समृद्ध नहीं हो पाये थे उसी प्रकार 62 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुकने के बाद भी मैं भी आर्थिक समृद्धता से कोसों दूर हूँ और इसी लिए दूर हूँ निकटतम एवं घनिष्ठतम कहे जाने वाले रिशतेदारों से भी। आज रिश्तों का नहीं आर्थिक समृद्धि का महत्व है जिसमें मैं पिछड़ा हुआ हूँ। एक बार मैंने बाबूजी से सवाल उठाया था कि आपने बचपन से ईमानदारी ऐसी सिखा दी है जो मुझे न ऊपर उठने देती है और न ही आर्थिक समृद्धि मिलने देती है। बाबू जी ने इस प्रश्न के उत्तर में बड़ी सीधी बात कही थी कि हमने तो तुम तीनों को एक सी बातें बताई हैं लेकिन जब तुम्हारे छोटे भाई-बहन उनको ठुकरा कर आगे बढ़ गए हैं तो तुम भी ठुकरा सकते थे। यदि मैं माँ-पिताजी को ठुकरा सकता होता तो 1973 में ही माईंजी की बात मान कर ठुकरा सकता था। मैं मेरठ से एल आई सी की एक परीक्षा देने लखनऊ आया था और बादशाह बाग में मामाजी के घर ठहरा था। उसी मौके पर माईंजी ने कहा था कि विजय अब तुम सर्विस कर रहे हो जीजी-जीजाजी से अलग हो जाओ नहीं तो उनकी ही तरह रह जाओगे। मैंने माईंजी से विनम्रतापूर्वक कह दिया था कि माईंजी चाहे जो हो बउआ-बाबूजी को छोडना व ठुकराना मेरे लिए संभव नहीं है और 1995 में मृत्यु-पर्यंत वे दोनों मेरे साथ ही रहे जबकि उनसे एक वर्ष पूर्व शालिनी का निधन हो चुका था। वे लोग पूनम से मेरे पुनः विवाह कर ने का दबाव बनाए हुये थे उनके पिताजी से पत्राचार चला चुके थे। बाबूजी के निधन और माँ के अचेतावस्था में पहुँच जाने के बाद छोटे भाई व बहन चाहते थे कि आगे पत्राचार वे करें परंतु मैंने उन दोनों को हस्तक्षेप नहीं करने दिया। जब माईंजी देहरादून से आगरा शोक व्यक्त करने आईं थीं तब फिर उन्होने कहा था कि विजय तुम किसी नीडी और कम पढ़ी लड़की से विवाह करो और जीजी-जीजाजी की पसंद का ख्याल न करो । उस अवसर पर मैंने माईंजी को कोई जवाब तो नहीं दिया था चुप ही रहा परंतु उनके सुझाव पर अमल नहीं किया। नतीजा यह है कि आज माईंजी को आदर्श मानने वाले छोटे भाई-बहन मेरे खिलाफ तो हैं ही खिलाफत में  लामबंदी भी किए हुये हैं।  

https://www.facebook.com/vijai.mathur/posts/703406903054622

"प्रदेश भाकपा के आह्वान पर लखनऊ में 22-क़ैसर बाग स्थित कार्यालय से एक प्रदर्शन जुलूस जिलाधिकारी कार्यालय तक निकाला गया। प्रदर्शन का उद्देश्य महिलाओं पर हिंसा,बच्चियों की सुरक्षा,बिगड़ी कानून-व्यवस्था,प्रशासन और अपराधियों की मिली-भगत से महिलाओं की इज्ज़त और ज़िंदगी पर हो रहे घातक हमलों के प्रति जनता का ध्यानकर्षण करना व राज्यपाल महोदय को प्रदेश सरकार की अकर्मण्यता के बारे में ज्ञापन द्वारा सूचित करना था।
ज्ञापन में मांग की गई है कि,घरेलू हिंसा हेतु अधिनियम-2005 लागू किया जाये,प्रदेश में वादों के जल्दी निपटारे हेतु विशेष अदालतों का गठन किया जाये तथा उसकी समय सीमा निर्धारित की जाये। हिंसा पीड़ित बेसहारा महिलाओं के पुनर्वास की व्यवस्था की जाये ।महिलाओं व बच्चियों पर हिंसा व उनकी हत्या को अंजाम देने वाली वीभत्स घटनाओं को रोका जाये।
जिलाधिकारी की ओर से सिटी मेजिस्ट्रेट ने ज्ञापन लिया और ज़रूरी कारवाई किए जाने का आश्वासन दिया।
प्रदर्शन का नेतृत्व डॉ गिरीश व कामरेड आशा मिश्रा ने किया जिसमें जिलामंत्री के अतिरिक्त अन्य लोगों में शामिल होने वाले प्रमुख कामरेड थे-दीपा पांडे,बबीता,अपने पुत्र सहित मुख्तार साहब,मास्टर सत्यनारायन,कनहाई लाल,रूपनारायण लोधी,मधुराम मधुकर एवं विजय माथुर। "


कल 12 जून 2014 को फेसबुक पर यह नोट प्रदर्शन में भाग लेने के उपरांत दिया था। तब 39 वर्ष पूर्व 12 जून 1975 को अलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा साहब के उस निर्णय का भी स्मरण हो आया था जिसमें उन्होने प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिराजी के 1971 के रायबरेली से निर्वाचन को अवेद्ध घोषित कर दिया था। एक 12 जून को एक शक्तिशाली महिला के विरुद्ध कोर्ट का निर्णय आता है और उसी 12 जून को भाकपा ने महिला उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष -दिवस के रूप में चुना। इस संघर्ष आंदोलन में भाग लेने हेतु मुझे फोन करके समय व स्थान की जानकारी हासिल करनी पड़ी।ज़िले की ओर से  अधिकृत रूप से अखबार या व्यक्तिगत रूप से कोई जानकारी मुझे नहीं दी गई थी।प्रदर्शन के बाद लौटते में  प्रदेश सचिव जी को मैंने इस बात की सूचना मौखिक रूप से दे दी थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में 543 में से भाकपा को केवल एक स्थान प्राप्त हुआ है जबकि 1952 में 17 स्थान प्राप्त करके यह  पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में थी। इस स्थिति के बावजूद प्रदेश के एक पदाधिकारी जो लखनऊ ज़िले के सदस्य होते हुये भी ज़िले के इंचार्ज हैं मुझे निष्क्रिय कराने हेतु पार्टी मीटिंग्स की सूचनाएँ भी प्राप्त नहीं होने देते हैं। जब फेसबुक पर CPIML के लोगों द्वारा CPI की आलोचना देखता हूँ तो व्यथित हो जाता हूँ परंतु जब इस प्रकार का अंदरूनी व्यवहार देखता हूँ तब लगता है कि वे सही कह रहे हैं। जब नए लोग आ ही नहीं रहे हैं तब पुराने लोगों को हटाने का प्रयास तो CPIML के दृष्टिकोण का ही समर्थन करता है। यशवंत को भी पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवा दी थी किन्तु दो वर्षों में एक बार भी ज़िले में जेनरल बाडी मीटिंग नहीं हुई है जिसमें वह भाग ले सकता। आगरा में तो वर्ष में दो-तीन जेनरल बाडी मीटिंग्स में साधारण सदस्यों को भाग लेने  व पार्टी-शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिल जाया करता था। बाबूजी के सहपाठी और रूम मेट रहे कामरेड भीखा लाल जी की पार्टी होने के कारण मैं तो अपमान सह कर भी बना हुआ हूँ किन्तु क्या आगे यशवंत और उस जैसे लोग बने रहना पसंद करेंगे?


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