रविवार, 29 मार्च 2015

ज्योतिष पर अविश्वास से विश्वास करने तक का सफर --- विजय राजबली माथुर

बाबू जी ने भुआ के कहने पर उनके किसी जानकार को हम सब कि,जन्मपत्रियाँ दिखाई होंगी। उन सज्जन ने मेरी जन्मपत्री देख कर कहा था कि यह बालक अपने पिता को 11 वर्ष की अवस्था मे गद्दी पर बैठा देगा। जब मैं 11वे वर्ष मे चल रहा था चीनी आक्रमण के दौरान  नवंबर 1962 मे बाबूजी का तबादला नान फेमिली स्टेशन-सिलीगुड़ी हो गया था। परिवार दो स्थानों पर रहने को बाध्य था अतः उस समय से मेरे मन मे ज्योतिष और ज्योतिषियों के प्रति काफी 'कटु' नफरत थी। बड़ों के साथ-साथ मंदिर जाना मजबूरी थी परंतु मन मे मुझे वह 'ढोंग' नापसंद था। इसका एक कारण तो पाँच वर्ष की अवस्था मे लखनऊ के अलीगंज मंदिर मे भीड़-भड़क्का के बीच कुचलते-कुचलते बचने की घटना थी और दूसरे मूर्तियों के दलाल -पंडितों का दुर्व्यवहार।वृन्दावन के बाँके बिहारी मंदिर से दर्शन करके लौटते ही बाबूजी का तबादला सिलीगुड़ी होने की सूचना मिली थी। यह भी मंदिरों के 'भगवानवाद' पर अविश्वास का प्रबल कारण था।
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जून 1975 मे एमर्जेंसी के दौरान मेरठ की नौकरी छूटने के बाद सितंबर 1975 मे  आगरा मे होटल मुगल मे दूसरी नौकरी मिल गई थी। 14 सितंबर को लिखित 'टेस्ट' हुआ था जिसमे 20 प्रतिभागी शामिल हुये थे और उनमे से हम चार लोगों का 20 सितंबर को साक्षात्कार हुआ था। साक्षात्कार मे मेरे अतिरिक्त सुदीप्तों मित्रा,विनोद श्रीवास्तव और कोई सक्सेना साहब शामिल थे। मेरे और मित्रा के नियुक्त हो जाने के बाद विनोद श्रीवास्तव यूं ही हम लोगों से मिलने आते रहते थे। अतः उन से हमदर्दी हो गई थी। मेन कंट्रेक्टर लूथरा साहब ने अपने आफिस के लिए विश्वस्त लेखा सहायक बताने को मुझसे कहा और मैंने विनोद श्रीवास्तव का नाम सुझा दिया और वह वहाँ नियुक्त हो गए। इस प्रकार प्रतिदिन अनेकों बार हम लोग परस्पर संपर्क मे रहते थे।


लूथरा साहब के एक विश्वस्त सुपरवाईजर थे-अमर सिंह जी जो बार्डर सिक्योरिटी फोर्स के रिटायर्ड़ सब इंस्पेक्टर थे। वह हस्तरेखा एवं ज्योतिष मे पारंगत थे। विनोद उनसे सलाह मशविरा करते रहते थे। चूंकि मैं तब ज्योतिष का घोर विरोधी था अतः मैं विनोद की इस बात के लिए कड़ी आलोचना करता था। एक दिन सुदीप्तों और विनोद ने ज़बरदस्ती मेरा हाथ अमर सिंह जी को देखने का आग्रह किया जो कुछ उन्होने बताया पिछला सही था । अगले के बारे मे उन्होने कहा कि अधिक से अधिक  कुल 15 वर्ष नौकरी करोगे बाकी 'दिमाग से खाओगे'। 26 वर्ष की उम्र मे अपने मकान मे पहुँच जाओगे और 43 वर्ष की उम्र मे उसके मालिक बन जाओगे 48 वर्ष की उम्र मे 'राजदूत स्तर' का दर्जा मिलेगा।उस समय मुझे रु 275/-मासिक वेतन मिलता था बचत कुछ न थी ,रिश्वत/कमीशन लेता न था मकान कहाँ से बनेगा  मुझे यह सब  हास्यास्पद लगा था और मैंने अपना ऐतराज भी उनको जता दिया था,जिस पर हँसते हुये उन्होने कहा था कि आज तुम मुझ पर हंस रहे हो आने वाले समय मे तुम खुद ही सबको उनका भविष्य समझाओगे। प्रोजेक्ट पूर्ण होने पर कंट्रेक्टर के साथ अमर सिंह जी दिल्ली चले गए। लूथरा साहब ने 'अमर सिंह पामिस्ट एंड एस्ट्रोलाजर' नाम से उनका आफिस खुलवा दिया और अपना परामर्शदाता बना कर अपने निवास पर ही उनको रहने का स्थान प्रदान कर दिया।

सुदीपतो मित्रा कहीं से कुछ ज्योतिष की किताबें लेकर आए और मुझे पढ़ने को दी ,चूंकि किताबें पढ़ने का तो मैं शौकीन था हीं सबको पढ़ा एवं कुछ खास-खास बातों को नकल उतार कर अपने पास लिपिबद्ध कर लिया। बाद मे हरीश छाबरा ने भी कुछ हस्तरेखा व अंक शास्त्र की पुस्तकें पढ़ने को दीं उनसे भी कुछ-कुछ लिख कर रख लिया। प्रकट मे ज्योतिष का विरोध जारी रखते हुये अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकलता रहता था। 1970 मे मेरठ मे  साईकिल से मेरा एक्सीडेंट मेरी ही गलती से हुआ था किन्तु चोट ज़्यादा मोटर साईकिल सवार को लगी थी। नवभारत टाईम्स मे रत्न लाल शास्त्री'रतनामबर' ने उस दिन के भविष्य फल मे बाबूजी को आर्थिक हानी बताई थी और मेरा ठीक था। गलती होते हुये भी मुझे कम चोट लगी थी। साईकिल टूटी थी और आटा सड़क पर आधा बिखर गया था। अर्थात बाबूजी को आर्थिक हानि  तो हुई ही थी इससे इंकार नहीं किया जा सकता था। किन्तु ऊपर से मैंने ज्योतिष का विरोध जारी रखते हुये अब इसके निष्कर्षों पर निगाह रखनी शुरू कर दी थी। अतः 1977 मे चुनावों की घोषणा होते ही मैंने मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने की घोषणा करके अपने निष्कर्ष को सार्वजनिक कर दिया था। मेरा खूब मखौल उड़ाया गया जो लोग यह मानते भी थे कि इन्दिरा जी सत्ता मे न आ सकेंगी उनका आंकलन बाबू जगजीवन राम के प्रधानमंत्री बनने का था। आगरा से सेठ अचल सिंह के हारने  पर राय बरेली से इन्दिरा जी के हारने की भी घोषणा मैंने कर रखी थी। सभी बातें हास्यास्पद थीं जो कि चुनावों के बाद मेरे आंकलन को सही सिद्ध कर गई।
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1972 से 75 तक तीन वर्षों मे रु 3000/- मेरठ मे वेतन से बचा कर उसी फर्म मे एफ डी कर रखे थे। सेवा समाप्ती के बाद वे रिफ़ंड नहीं भेज रहे थे। बाबूजी के एक सहकर्मी आगरा मे 'कंचन डेरी' नाम से व्यवसाय करते थे उन्होने सलाह दी कि उनको लीगल नोटिस भेज दो । अपने मित्र वकील साहब से उनका लेटर हेड लाकर उन्होने दिया और उस पर मैंने सुदीप्तों मित्रा से अपनी भाषा लिखवाकर रेजिस्टर्ड डाक से भेज दिया। इधर उसी वर्ष   1976 मे हमारे एक साथी आवास-विकास का मकान के लिए फार्म भर रहे थे मुझ पर भी फार्म भरने का दबाव बनाया। मैंने फार्म तो भर दिया परंतु लीगल नोटिस के जवाब मे वहाँ से दो चेक दिल्ली बैंक पर बना कर वहाँ से भेजे गए थे जिंनका कैश मिलने पर ही ड्राफ्ट बनवा सकता था। इत्तिफ़ाक से 25 मार्च 1977 को जब मोरारजी देसाई दिल्ली के रामलीला मैदान में नई सरकार की  स्थापना के बाद सभा कर रहे थे मैं आगरा कैंट सेंट्रल बैंक से तीन हज़ार का ड्राफ्ट हाउसिंग बोर्ड के नाम बनवा रहा था।

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 11 माह बाद लखनऊ से मुझे सूचना मिली कि पहली किश्त जमा कर दूँ तो ठीक वरना एलाटमेंट केनसिल हो जाएगा। तब तक वेतन बढ़ कर रु 500/- हो चुका था अतः रु 290/- की मासिक किश्त भरने की दिक्कत न हुई। 1978 मे जब मुझे मकान का पज़ेशन मिला उम्र 26 वर्ष हो गई थी। तब एस्ट्रोलाजर अमर सिंह जी की बात सच साबित होने का  यह प्रमाण था। ठेकेदार के किसी काम से जब वह होटल मुगल आए थे तब उनसे मिल कर मैंने उनकी बात प्रमाणित होने की सूचना दे दी थी। 15 वर्षों की किश्तें पूरी होने के बाद रिश्वत न देने के कारण रेजिस्ट्रेशन मे व्यवधान रहा और अंततः राज्यपाल मोतीलाल बोरा जी से शिकायत करने के बाद ही 1994 मे 42 वर्ष उम्र पूरी करने के बाद ही मेरे नाम रेजिस्ट्रेशन हो सका जिससे अमर सिंह जी के आंकलन पूरी तरह सही सिद्ध हुये।

इसके बाद मैंने ज्योतिष अध्ययन पूरी तल्लीनता से किया लेकिन अब  छिट्ट-पुट्ट बातें विश्वस्त लोगों को बताने भी लगा था। सफलता से इस क्षेत्र मे आगे बढ्ने का उत्साह भी बंनता चला गया। नौकरी के साथ-साथ लोगों को निशुल्क परामर्श देना भी शुरू कर दिया और सन2000 ई .मे नौकरी बिलकुल छोड़ कर 'ज्योतिष' को ही आजीविका बना लिया। ईमानदारी पर चलने और ढोंग-पाखंड का प्रबल विरोध करने के कारण आर्थिक लाभ तो न हुआ। किन्तु मान-सम्मान ज़रूर बढ़ा। इसी कारण पूना प्रवासी कुछ चिढ़ोकरे-एहसान फरामोश ब्लागर्स ने मेरे ज्योतिष ज्ञान को लक्ष्य करके 'ज्योतिष एक मीठा जहर' सरीखे आलेख भी IBN7 के नुमाईन्दे से लिखवाये।

हमारे वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेताओं ने भी खुद को एथीस्ट कहते हुये भी मुझसे ज्योतिषीय परामर्श लिए हैं लेकिन तुर्रा यह कि वे भी मेरी सिर्फ आलोचना ही नहीं करते हैं बल्कि मुझे नुकसान पहुंचाने का हर संभव प्रयत्न  करते रहते हैं। यही हाल सभी रिशतेदारों का है चाहे वे माता-पिता की पुत्री व अलीगढ़ के मूल निवासी  दामाद हों तथा  उनके उकसाये हुये  सीतापुर के मूल निवासी कुक्कू एवं  शरद मोहन । इसी कड़ी में आरा व देवघर निवासी वे लोग भी जुड़ गए हैं जिनके परिवारी लोगों की जन्मपत्रियों के विश्लेषण किए हैं। ये सब लोग न तो इतनी शर्म रखते हैं कि अपना काम जिससे करवाया है कम से कम उसका एहसान न भी मानें तो उसका नुकसान तो न करें। बल्कि वे लोग मेरे पुत्र व पत्नी को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिशों में लगे रहते हैं। परंतु जैसा कि नवंबर 2013 में  SGPGI,लखनऊ में देवघर वाले महाशय ने रोग शैय्या से कहा था कि आप खुद तो अपना बचाव अपने ज्योतिषीय ज्ञान से कर ही लेंगे! वस्तुतः उनका कथन सत्य ही है। किन्तु वह व उनकी पत्नी खुद ही अपने भतीजे व भतीजी के विरुद्ध अपनी एक भाभी से मिल कर ऐसे अभियान में शामिल रहे हैं । उनकी एक भतीजी जो मेरी श्रीमती जी हैं से उनकी पत्नि ने तब कहा भी  था कि वे अपने भाई-भाभी व भतीजियों का ख्याल न करें अर्थात उनका अहित होने दें। तिस पर भी खूबी यह रही कि आगाह किए जाने के बावजूद  श्रीमतीजी के भाई-भाभी अपनी उन चाचियों के अनुगामी बने रह कर हाल ही में अपना शारीरिक,मानसिक,आर्थिक ज़बरदस्त नुकसान करा चुके हैं लेकिन उनसे सावधान रहने को तैयार नहीं हैं।जहां तक हमारा प्रश्न है हम एक हद से ज़्यादा नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं होते हैं और अपने को ऐसे लोगों से अलग-थलग कर लेते हैं चाहे वे किसी भी क्षेत्र के हों। मेरी श्रीमती जी तथा पुत्र को भी 'ज्योतिष' का प्रारम्भिक ज्ञान तो है ही बाकी पुस्तकाध्यन से विकसित कर सकते हैं। हमें अपने बारे में अच्छा सोचने व अच्छा करने का नैतिक हक है चाहे जो कोई जो सोचे व करे। 

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