शुक्रवार, 20 मार्च 2015

'नेकी न कर ,दूरियाँ बढ़ा' --- विजय राजबली माथुर



 30-10-12 का नोट :
नेकी कर और दरिया मे बहा' -यह कहावत बचपन से सुनते आए हैं और अब तक इसके मतलब यह समझते थे कि,किसी की मदद करके उसे भूल जाओ एवं उससे बदले मे मदद की उम्मीद मत करो। लेकिन अब हकीकत मे किसी की मदद करने का मतलब हो गया है-तौहीन का सामना करना और नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना। केवल फेसबुक और ब्लाग जगत मे ही नहीं परिचितों और रिशतेदारों से भी।
किसी को नेत्र आपरेशन से बचाव हेतु 'केलकेरिया फ्लोर'6 X का 4 tds स
ेवन करने का सुझाव दिया ,किसी चिकित्सक से पूछ कर 'मुलेठी'और 'निर्मल सुपारी' पार्सल से भिजवाई किन्तु उस मरीज ने इंनका उपयोग नहीं किया। एक सरकारी अफसर की पत्नी होने के कारण अस्पताल मे आपरेशन कराना 'स्टैंडर्ड' जो था । आपरेशन मे जो तकलीफ और खर्चा हुआ उसी से तो समाज मे बड़े आदमी होने का आभास जो दिलाया जा सकता था।
आज के युग मे 'नेकी न कर ,दूरियाँ बढ़ा' कहावत गढ़ कर उस पर अमल करने की ज़रूरत महसूस होती है।
30 अक्तूबर 2012 को यह नोट लिखा था उसके बाद 25 जनवरी 2015 को निम्न संदर्भित पोस्ट के माध्यम से उसका और खुलासा करना पड़ा था। 
http://vidrohiswar.blogspot.in/2015/01/blog-post_25.html
परंतु इस रिश्तेदार के रिश्तेदारों के माध्यम से  समझाने की तमाम कोशिशों के बावजूद बचाव को न प्रस्तुत हुये। एक बीमारी के इलाज को कई बीमारियों तक बढ़ाने में उनकी जिन चाचियो/चचिया सासों का योगदान रहा उनके ही चंगुल में फंसे चल कर स्वास्थ्य व धन की काफी बरबादी कर ली फिर भी ठोकर खा कर भी सुधार की कोई संभावना नहीं दिखाई देती है। प्रत्येक को अपनी व अपने परिवार के हितों की रक्षा प्राथमिकता के आधार पर करनी चाहिए और यही सलाह इन लोगों को 1996 से सार्वजनिक रूप से देते आए हैं। लेकिन चूंकि इनके चचेरे भाइयों को अपने घर इसलिए नहीं पहुँचने दिया कि उनकी माताओं की भूमिका घातक रही है। अतः इन लोगों ने अपनी मदद हेतु भी अपने घर हम लोगों को नहीं पहुँचने दिया।
हमें तो विपरीत परिस्थितियों से जूझना ही पड़ता है अतः किसी भी प्रकार के प्रतिरोध का सामना करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते हैं। परंतु इन लोगों के व्यवहार से  सीख यह मिलती है कि आज के जमाने में किसी के भले के लिए सोचना व आगाह करना गुनाह है और उससे बचना चाहिए।

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