रविवार, 6 अगस्त 2017

संस्कृत को बाजारू बनाने के भयंकर दुष्परिणाम होंगे ------ विजय राजबली माथुर

संस्कृत को बाजारू बनाने के भयंकर दुष्परिणाम होंगे  




(१ ) गणेश स्तुति में एक शब्द आता है - 'सर्वोपद्रवनाश्नम ' अब यदि बाजारू संस्कृत में इसे ऐसे ही पढ़ा गया तो इसका अर्थ होगा 'सारा धन नाश कर दो '. 
इस शब्द को लिखे अनुसार नहीं संधि विच्छेद करके पढना चाहिए यथा - सर्व + उपद्रव + नाश्नम जिसका अर्थ होगा सारे उपद्रव / झंझटों का नाश कर दो. 
(२ ) गणेश स्तुति में ही एक और शब्द है ' बुद्धिरज्ञाननाशो ' इसे बाजारू संस्कृत में जैसे का तैसा पढ़ा गया तो उसका अर्थ होगा बुद्धि और ज्ञान का नाश कर दो. इस शब्द को वस्तुतः संधि विच्छेद करके पढना चाहिए यथा - बुद्धि + अज्ञान + नाशो ' जिसका अर्थ होगा बुद्धि का अज्ञान नष्ट कर दो. 
( ३ ) दुर्गा स्तुति में एक शब्द है ' चाभयदा ' यदि इसे बाजारू संस्कृत में ज्यों का त्यों पढ़ा जाए तो अर्थ होगा ' और भय दो ' . इसको संधि विच्छेद करके च + अभय + दा पढना चाहिए जिसका अर्थ होगा ' और अभय दो '. 
संस्कृत एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक भाषा है उसको इस प्रकार बाजारू बनाना षड्यंत्र प्रतीत होता है जिसका साधारण जनता को बेहद बुरा खामियाजा भुगतना पड़ेगा. संस्कृत में तमाम शब्द 'समास ' रूप में प्रयुक्त किये गए हैं लेकिन उनका उच्चारण संधि विच्छेद करके किया जाना उपयुक्त होता है. लेकिन बाजारू संस्कृतबाज़ जनता को ये गूढ़ रहस्य न बता रहे हैं न समझा रहे है - यह घोर अनर्थ है.

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