* ब्राह्मण - व्यापारी गठजोड़ ने उसी स्वरूप की पूजा में गण - जनता को उलझा दिया।
* * शिव, पार्वती, लिंग, गणेश की पाखंड युक्त ढोंगवादी / ब्राह्मणवादी व्याख्याओं का ही दुष्परिणाम है कि, एक राजनेता को शिव जो वस्तुतः भारत देश है और उसकी पत्नी को पार्वती जो यथार्थता इस देश की प्रकृति है के रूप में चित्रित करके अपने देश व इसकी प्रकृति का घोर अपमान कर दिया गया है।
* * शिव, पार्वती, लिंग, गणेश की पाखंड युक्त ढोंगवादी / ब्राह्मणवादी व्याख्याओं का ही दुष्परिणाम है कि, एक राजनेता को शिव जो वस्तुतः भारत देश है और उसकी पत्नी को पार्वती जो यथार्थता इस देश की प्रकृति है के रूप में चित्रित करके अपने देश व इसकी प्रकृति का घोर अपमान कर दिया गया है।
"ॐ नमः शिवाय च का अर्थ है - Salutation To That Lord The Benefactor of all "यह कथन है संत श्याम जी पाराशर का। अर्थात हम अपनी मातृ - भूमि भारत को नमन करते हैं। वस्तुतः यदि हम भारत का मान-चित्र और शंकर जी का चित्र एक साथ रख कर तुलना करें तो उन महान संत क़े विचारों को ठीक से समझ सकते हैं। शंकर या शिव जी क़े माथे पर अर्ध-चंद्राकार हिमाच्छादित हिमालय पर्वत ही तो है। जटा से निकलती हुई गंगा -तिब्बत स्थित (अब चीन क़े कब्जे में)मानसरोवर झील से गंगा जी क़े उदगम की ही निशानी बता रही है। नंदी (बैल)की सवारी इस बात की ओर इशारा है कि, हमारा भारत एक कृषि -प्रधान देश है। क्योंकि आज ट्रेक्टर-युग में भी बैल ही सर्वत्र हल जोतने का मुख्य आधार है। शिव द्वारा सिंह -चर्म को धारण करना संकेत करता है कि, भारत वीर-बांकुरों का देश है। शिव क़े आभूषण (परस्पर विरोधी जीव)यह दर्शाते हैंकि, भारत "विविधताओं में एकता वाला देश है। " यहाँ संसार में सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र चेरापूंजी है तो संसार का सर्वाधिक रेगिस्तानी इलाका थार का मरुस्थल भी है। विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं तो पोशाकों में भी विविधता है। बंगाल में धोती - कुर्ता व धोती - ब्लाउज का चलन है तो पंजाब में सलवार - कुर्ता व कुर्ता -पायजामा पहना जाता है। तमिलनाडु व केरल में तहमद प्रचलित है तो आदिवासी क्षेत्रों में पुरुष व महिला मात्र गोपनीय अंगों को ही ढकते हैं। पश्चिम और उत्तर भारत में गेहूं अधिक पाया जाता है तो पूर्व व दक्षिण भारत में चावल का भात खाया जाता है। विभिन्न प्रकार क़े शिव जी क़े गण इस बात का द्योतक हैं कि, यहाँ विभिन्न मत - मतान्तर क़े अनुयायी सुगमता पूर्वक रहते हैं। शिव जी की अर्धांगिनी -पार्वती जी हमारे देश भारत की संस्कृति (Culture )ही तो है। भारतीय संस्कृति में विविधता व अनेकता तो है परन्तु साथ ही साथ वह कुछ मौलिक सूत्रों द्वारा एकता में भी आबद्ध हैं। हमारे यहाँ धर्म की अवधारणा - धारण करने योग्य से है। हमारे देश में धर्म का प्रवर्तन किसी महापुरुष विशेष द्वारा नहीं हुआ है जिस प्रकार इस्लाम क़े प्रवर्तक हजरत मोहम्मद व ईसाईयत क़े प्रवर्तक ईसा मसीह थे। हमारे यहाँ राम अथवा कृष्ण धर्म क़े प्रवर्तक नहीं बल्कि धर्म की ही उपज थे। राम और कृष्ण क़े रूप में मोक्ष -प्राप्त आत्माओं का अवतरण धर्म की रक्षा हेतु ही, बुराइयों पर प्रहार करने क़े लिये हुआ था। उन्होंने कोई व्यक्तिगत धर्म नहीं प्रतिपादित किया था। आज जिन मतों को विभिन्न धर्म क़े नाम से पुकारा जा रहा है ; वास्तव में वे भिन्न -भिन्न उपासना -पद्धतियाँ हैं न कि, कोई धर्म अलग से हैं। लेकिन आप देखते हैं कि, लोग धर्म क़े नाम पर भी विद्वेष फैलाने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे लोग अपने महापुरुषों क़े आदर्शों को सहज ही भुला देते हैं।
शिव - पार्वती के पुत्र गणेश से अभिप्राय इस देश के राष्ट्रपति से है।
गणेश = गण + ईश = गण अर्थात जनता का नायक अर्थात राष्ट्रपति।
' लिंग ' स्वरूप का अभिप्राय यह है कि , यदि हम अखिल ब्रह्मांड को एक मानव आकृति के रूप में लें तो हमारी ' पृथ्वी ' का स्थान ब्रह्मांड में वही है जो मानव शरीर में लिंग / योनि का होता है। सृजन या सृष्टि का हेतु होने के कारण मानव शरीर में लिंग / योनि एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। देश के निवासियों से यह अपेक्षा है कि वे अपने इस देश की रक्षा उसी प्रकार करें जिस प्रकार शरीर में लिंग / योनि की करते हैं।
परंतु बुद्धि, ज्ञान , विवेक को प्रयोग न करके लोग लिंग की स्थापना करके उसे शिव मानते हुये पूजते हैं बजाए संरक्षण करने के , यह मात्र ढोंग है और पूजा नहीं है।
बेलपत्र को सामग्री में मिला कर आहुती देने से उदर - विकार दूर होते हैं किन्तु ढोंगवाद में बजाए हवन में आहुती देने के बेल - पत्र को व्यर्थ नष्ट कर दिया जाता है। वात - पित्त - कफ आदि जब तक शरीर को धारण करते हैं तब तक ' धातु 'और जब मलिन करने लगते हैं तब ' मल ' एवं जब दूषित करने लगते हैं तब ' दोष ' कहलाते हैं। ये त्रिदोष शरीर को शूल करते हैं। इनसे बचने के लिए अर्थात ' त्रिशूल ' निवारण के लिए तीन फ़लक वाले बेलपत्र से आहुती का विधान रखा गया था लेकिन चित्रकारों ने ' त्रिशूल ' हथियार बना कर शिव, पार्वती और गणेश का मानवीकरण करके प्रस्तुत कर दिया और ब्राह्मण - व्यापारी गठजोड़ ने उसी स्वरूप की पूजा में गण - जनता को उलझा दिया।
शिव, पार्वती, लिंग, गणेश की पाखंड युक्त ढोंगवादी / ब्राह्मणवादी व्याख्याओं का ही दुष्परिणाम है कि, एक राजनेता को शिव जो वस्तुतः भारत देश है और उसकी पत्नी को पार्वती जो यथार्थता इस देश की प्रकृति है के रूप में चित्रित करके अपने देश व इसकी प्रकृति का घोर अपमान कर दिया गया है।
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अंधविश्वास से और मूर्ति पूजा से देश को मुक्ति दिलाने की सख्त आवश्यकता है. .. लेकिन यहां तो इसरो के वैज्ञानिक भी सैटेलाइट छोड़ने से पहले नारियल फोड़ते हैं ...
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