शुक्रवार, 8 जून 2018

ज्योतिष उपेक्षा का नहीं समझने का विषय है ------ विजय राजबली माथुर



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* ज्योतिष पर कभी मैं खुद बिलकुल भी विश्वास नहीं करता था किन्तु 1975-76 में मेरे सह - कर्मियों ने किताबों को पढ़ने की मेरी अभिरुचि को ताड़ते हुये मुझे हस्त-रेखा शास्त्र, अंक विद्या और कुंडली से संबन्धित पुस्तकें पढ़ने को दी थीं जिनको वापिस करने से पहले कुछ मुख्य - मुख्य बातों को मैंने अपने पास लिख कर रख लिया था। 1977 में आपात काल में ही चुनावों की घोषणा के साथ ही मैंने इन्दिरा गांधी और संजय के चुनाव हारने की घोषणा कर दी थी जिसका मेरे सह - कर्मियों ही नहीं अधिकारियों ने भी खूब मखौल उड़ाया था। चुनाव परिणामों ने उन सब को गलत सिद्ध कर दिया जिससे मुझे ज्योतिष का अध्ययन करने की इच्छा जाग्रत हुई और बाहरी तौर पर भी लोगों को उनका व्यक्तिगत भविष्य भी बताना शुरू कर दिया था।
** मुझे ज्योतिष की ओर प्रेरित करने वालों में से एक ने मेरी श्रीमतीजी से लगभग 15 वर्ष पूर्व कहा था कि , यह तो विरोध करते थे फिर भी डेवलप कर गए और हम ( यानि वह साहब ) डेवलप नहीं कर पाये । परंतु सत्य बात यह है कि, पर्याप्त जानकारी के बावजूद वह सेंटिमेंट्स के आधार पर भविष्य - कथन करते थे अर्थात जिनको पसंद करते थे उनका खराब भी अच्छा और जिनको नापसंद करते थे उनका अच्छा  भी खराब बता देते थे। इससे उनकी योग्यता पर लोगों का भरोसा नहीं जम सका क्योंकि फलित गलत हो गया।
*** अंक विद्या - अंक गणित पर, हस्त रेखा - रेखा गणित और कुंडली बीज गणित पर आधारित कर फलादेश किया जाये तो कभी गलत हो ही नहीं सकता। चूंकि पुरोहित - पंडित वर्ग उसमें धार्मिकता और अपने आर्थिक स्वार्थ का समिश्रण कर फलादेश करता है अतः वह भी गलत हो जाता है और अधिकांश विद्व - जन ज्योतिष - विद्या का ही विरोध कर देते हैं जबकि गलत तो ज्योतिष - कर्ता होता है।
**** मैं सेंटिमेंट्स पर चलता ही नहीं हूँ इसलिए मुझे सत्य - कथन में कोई दिक्कत होती ही नहीं। अन्य लोगों की भांति लगभग साढ़े - चार वर्ष पूर्व किसी छात्रा ने भी  अपने भविष्य के बारे में कुछ पूछा होगा जो सही निकला होगा। लेकिन अब मैंने आस - पास के लोगों को ज्योतिषीय राय देना बंद कर रखा है अतः जब वही महिला अपने बच्चे की कुंडली बनवाने आई तो उसे भी मना कर दिया।
***** किन्तु वह  पुनः आई और तर्क दिया कि वह अपनी सुसराल बनारस के भविष्य - वक्ताओं को छोड़ कर अपने बेटे का भविष्य मुझसे ज्ञात करने आई है अतः उसे अपवाद रूप में बता दिया जाये। अंततः उसके बेटे की कुंडली व भविष्य- फल  दे दिया। किन्तु सोचता हूँ जिन राजनीतिज्ञों को मुफ्त में सलाह देता हूँ वे मेरी बात न मान कर नुकसान क्यों उठाते हैं ? क्या उनमें 27 वर्षीय महिला से भी कम बुद्धि है ? या उनका अहंकार प्रबल है जिसके कारण राजनीतिक क्षति उठाना उनको मंजूर है लेकिन मेरी नेक सलाह मानना  क्यों उनको गवारा नही ?
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खुद को नास्तिक - एथीस्ट कहने वाले लोगों में से कुछ ने छिपे तौर पर तो कुछ ने सार्वजनिक तौर पर मुझसे ज्योतिषीय परामर्श लिया है। 2012 में पटना में भाकपा की कान्फरेंस में जा रहे एक बड़े ओहदे के कामरेड को उनके प्रश्न पर ' प्रश्न - कुंडली ' द्वारा प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर सचेत किया था कि, वहाँ आपकी LEG - PULLING : टांग खिचाई हो सकती है।लेकिन उसका सुधार बाद में हो जाएगा।  वह हतप्रभ होकर बोले कि, उनका तो कोई शत्रु ही नहीं है फिर कौन ऐसा करेगा ? उनको स्पष्ट बता दिया था कि कोई आपका अपना ही ऐसा करेगा। 
पटना से लौट कर उन्होने बताया कि, वाकई उनके साथ धोखा हुआ लेकिन वह अपने उस पर शक न करके ' अपने उस ' द्वारा बताए कामरेड पर शक करते रहे। उनका कहना था कि, कामरेड वर्द्धन द्वारा घोषित सूची में उनको पूर्ण कार्यकारिणी सदस्य बताया गया था किन्तु छ्पी हुई सूची में उनको आमंत्रित सदस्य दर्शाया गया। कामरेड वर्द्धन से जब उन्होने संपर्क किया तो उन्होने उनको आश्वस्त किया गलती से ऐसा हुआ और तीन माह में उनको पूर्ण सदस्य कर दिया जाएगा और कर भी दिया गया। इस प्रकरण के बाद उन वरिष्ठ कामरेड ने अपनी व अपनी श्रीमती जी की कुंडलियों का विश्लेषण मुझसे प्राप्त किया था। 
परंतु अधिकांश नास्तिक - एथीस्ट कहने वाले लोग सार्वजनिक तौर पर ज्योतिष का विरोध व आलोचना करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लोग ढ़ोंगी - पाखंडी पोंगा पंडितों से ज्योतिषीय राय लेकर अपना व परिवार का अहित करते रहते हैं। 









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