सोमवार, 24 सितंबर 2018

ये ऊल - जलूल नियम फेसबुक के इनके क्या कहने ! ------ विजय राजबली माथुर



*****  इस ब्लाग का प्रारम्भ 03 अगस्त 2010 से किया गया था *****


यह समीक्षा  NDTV के वरिष्ठ पत्रकार द्वारा की गई थी जो 'हिंदुस्तान, लखनऊ  02 फरवरी 2011 ' के अंक में प्रकाशित हुई थी। ब्लाग में प्रकाशित पोस्ट्स को समय समय पर फेसबुक और इसके विभिन्न ग्रुप्स में शेयर किया जाता रहा है किन्तु 21 सितंबर 2018 को हमारी दो पोस्ट्स को फेसबुक द्वारा हटा दिया गया है , क्योंकि उनके अनुसार कुछ लोगों ने इन पोस्ट्स को एब्युसिव बताया है  :








जबकि  हमारे न्यूयार्क निवासी चाचा ने इसके लिए यह प्रशंसा पत्र भेजा है  : 


इस ब्लाग  के अतिरिक्त हमारे दूसरे ब्लाग की समीक्षा  ' जनसंदेश टाईम्स , लखनऊ ' में डॉ जाकिर आली रजनीश द्वारा भी प्रकाशित कराई गई है : 



न तो फेसबुक के पास ऐसा कोई साधन या उपकरण है न  ही यह जांच करना संभव है कि, रिपोर्ट करने वालों का मन्तव्य क्या है ? और वे किस तथ्य को एब्युसिव कह रहे हैं इस की ही कोई जानकारी फेसबुक ने नहीं दी है , बस कुछ लोगों ने रिपोर्ट कर दी और उनके द्वारा  ' विद्रोही स्व - स्वर में ' ब्लाग को ब्लाक कर दिया गया है। ऐसे ही पहले हमारे एक और ब्लाग  ' सुर - संगीत ' को ब्लाक कराया जा चुका है। यदि अन्य ब्लाग्स भी कुछ लोगों के कहने पर फेसबुक द्वारा ब्लाक कर दिये जाएँ तो कोई ताज्जुब नहीं होगा क्योंकि ज्वलनशील प्रवृति के लोग जो खुद  कुछ लिख नहीं सकते दूसरे के लिखे को भी सबके सामने आने से रोकना चाहते  हैं फिर ऐसा ही कर सकते हैं भले ही एक ही व्यक्ति द्वारा अनेक फेक आई डी बना कर ऐसी रिपोर्ट्स की गई हों । जो फिर भी पढ्ना  चाहेंगे वे सीधे ब्लाग्स पर जाकर पढ़ ही लेंगे तो फेसबुक के इन प्रतिबंधों का औचित्य क्या है ? 

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