सोमवार, 20 सितंबर 2010

शाहजहाँपुर में---(प्रथम चरण)

 बाबु जी का तबादला तो सिलीगुड़ी हुआ और हम लोगों को नाना जी के पास शाहजहांपुर रहना था अतः NOVEMBER के माह में किस  स्कूल में दाखिला मिलता?इसलिए नाना जी तलउआ स्थित विश्वनाथ जू.हा.स्कूल के प्रबंधक से मिले जिनकी माँ कभी हमारे नाना जी के बचपन में उन के घर खाना बनाया करती थीं.उन लोगों ने अभावों में शिक्षा प्राप्त की थी अतः उन के बड़े भाई ने सरकारी अधिकारी बनते ही शाहजहांपुर में उस स्कूल की स्थापना की थी और नाम शिव उपासक होने के कारण ही ऐसा रखा था.उनकी हिदायत थी की उनके विद्यालय से किसी को लौटाया न जाए.विद्यालय के प्रधानाचार्य शर्मा जी जो पहले सरदार पटेल इंटर कोलेज के प्रिंसिपल थे मात्र आनरेरियम पर स्कूल देखते थे उनकी पूर्व छवि बहुत दबंग की थी परन्तु बहुत अच्छा पढ़ते थे.उनकी शक्ल देखते ही शोरगुल बंद हो जाता था.मेरी ही तरह कक्षा ६ में निर्मल कुमार श्रीवास्तव भी देर से एडमिट हुआ था उस के पिता जी का दरोगा के रूप में  तबादला लखनऊ से शाहजहांपुर हुआ था वह क्लास में स्वच्छंद घूमता था,पढने में दिलचस्पी नहीं रखता था.एक दिन सेकिंड हेड मास्टर साः (अचल बिहारी बाजपेयी जी)ने उसे आड़े हाथ लेते हुए कहा-निर्मल यह अमीनाबाद बाज़ार नहीं है अगर तुम पढना नहीं चाहते तो तुम्हारे पिता जी को बुला कर तुम्हारा नाम कटवा लेने को कहेंगे.उस के बाद से वह ठीक हो गया,पिता से शिकायत के नाम पर सहम गया था.आज तो पुलिस में सिपाही की बच्चे भी पूरे रौब -दाब में रहते हैं.
मैं अन्ताक्षरी वगैरह में भाग लेता था इस लिए बाजपेयी जी ने जिला वाद-विवाद प्रतियोगिता में पक्ष में बोलने के लिए मेरा भी चयन किया था.मुझे व विपक्ष में बोलने वाले साथी को लेकर वह गवर्नमेंट हा.स्कूल.रिक्शा से ले गए थे.दोनों ही प्रतियोगिता में स्थान नहीं बना पाए,किन्तु उन्होंने मुझे आश्वासन दिया था कि,कोई बात नहीं अगले साल फिर मौका देंगे और वाकई अगले साल फिर उन्होंने मेरा नाम पक्ष में बोलने के लिए रखा,विषय-वस्तु उन्होंने ही उपलब्ध करायी थी.साड़े चार मिनट में मैं बोल कर जब अपने स्थान की ओर आ रहा था तो उन्होंने धीरे से कहा ''शाबाश बैठ जाइये''.इस बार जिला स्तर पर मुझे प्रथम स्थान मिला था.स्कूल का वार्षिक समरोह शिवरात्रि पर होता था,उस अवसर पर मुझे जय शंकर प्रसाद की ''कामायनी''तथा शील्ड मिली.शील्ड तो एक माह बाद स्कूल में जमा हो गयी-कामायनी को ले कर माँ से उन के चचेरे भाई ने कहा की ७ वीं कक्षा में विजय को B A स्तर की किताब मिल गयी वह क्या समझेगा?(आगे सिलीगुड़ी में प्राचार्य ओझा जी ने एक बार बताया कि कामायनी के एक छंद को लेकर प्रतिष्ठित कवियों में विवाद छिड़ गया कि इसका यह अर्थ है -वह अर्थ है-फैसले के लिए जब वे कवि जय शंकर प्रसाद के पास पहुंचे तो उन्होंने उत्तर दिया -उस समय क्या सोच कर लिखा था मुझे याद नहीं है आप लोग अपने अपने हिसाब से मतलब निकाल लें)तो छायावादी रहस्यवादी काव्य का अर्थ समझना तो B A में भी संभव नहीं था.
छोटा भाई खेल-कूद में भाग लेता था उसे किसी खेल का तृतीय पुरस्कार मिला था;मेरी रुचि खेलों में नहीं थी.इंटरवल में लड़के कबड्डी आदि खेलते थे मैं मूक दर्शक ही रहता था.एक कथा वाचक का पुत्र मेरी ही ७ वीं कक्षा में था काफी बलशाली था सब खेलों में आगे था.सुना था कि रोज़ भगवा झंडे के सामने कसरत करता था.उसी की टीम रोज़ ही जीत ती थी.मैं उसका एकाधिकार  तोडना चाहता था और दस पंद्रह दिन उसके खेल और दांव पेंच पर कड़ी नज़र रखने के बाद एक दिन उसकी विपक्षी टीम में शामिल हो गया.कबड्डी -कबड्डी बोल कर खेलते थे.हमारी टीम के जब सभी लोग आउट हो गए अकेला मैं ही बचा तो वह पंडित जी का बेटा बड़ी शान से आया,मैंने पाले के आखिरी छोर तक पीछे हटते हुए उसे आने को बाध्य किया और तब पकड़ लिया,हांलांकि उसने ज़मीन पर गिरा भी दिया और लेटे लेटे  ही खींचता व बोलता रहा पर मेरी पकड़ छुड़ा कर भाग न सका और आखिर हार ही गया हांलांकि उसके आउट होने पर भी टीम उसी की जीती लेकिन बात प्रधानाचार्य शर्मा जी तक भी पहुँच गयी की आज ताकतवर पंडित जी कबड्डी में परास्त हो गए.शर्मा जी हमें इतिहास पढ़ाते थे उस लड़के से पूछा कि आज कमजोर कैसे पड़ गए -जवाब में वो सिर्फ हंस दिया,मेरी उससे कोई लड़ाई नहीं थी वह पीछे बैठता था और मैं आगे.शर्मा जी इतिहास की पुस्तक का वाचन मेरे अलावा एक और लड़के से ही करवाते थे और बीच बीच में वाक्यों को पेंसिल से UNDER लाइन कराते  थे.पूरे पाठ के बाद कहते थे इस para से उस para  तक प्रश्न (१) का जवाब इसी प्रकार सारे प्रश्नों का हल चुटकियों में कर देते थे-इतिहास पर गज़ब की पकड़ थी उनकी.
बाजपेयी जी संस्कृत पढ़ाते थे और मैं उस में कमजोर था.पहले बिना बताये टेस्ट होते थे एक दिन अचानक हुए टेस्ट में मुझे शून्य मिला.नाना जी के साथ बाज़ार हम दोनों भाई जाते रहते थे.नाना जी जो भी अध्यापक बाज़ार में दीख जाते उन से हम लोगों का ब्यौरा मांगते थे.एक दिन बाजपेयी जी ने शून्य की बात कह कर संस्कृत पर जोर देने को कहा तो नाना जी ने उन से कहा इस के पिता तो बंगाल में हैं वैसे भी हम लोग उर्दू पढ़े हैं संस्कृत आप ही देख लीजिये.  तब से बाजपेयी जी को मुद्दा मिल गया तुम्हारे नाना जी ने अधिकार दे दिया है जब तक संस्कृत का पाठ ठीक न दिखादुं वह अपने साथ मुझे दूसरे कक्षाओं में ले जाने लगे और मेरी कक्षा के दूसरे विषय छूट जाते थे-लिहाज़ा खुद ही संस्कृत पर ध्यान बढ़ा दिया.आज श्लोक आदि संस्कृत  पढ़ बोलकर हवन आदि कराने  में दिक्कत नहीं होती उस के लिए बाजपेयी जी की सख्ती के लिए आभारी हूँ.
नाना जी का घर (भारद्वाज कोलोनी में स्टेशन और टाउन हाल के मध्य)रेलवे लाइन के किनारे था.तमाम रेलों का आवागमन देखते  और स्टेशन  भी घूमने जाते थे तब यों ही टहलने पर पाबंदी नहीं थी.लाइन उस पार झाड़ियों में किसी पेड़ के पत्ते जला कर उस की भस्म शहद में मिलाकर देने से खांसी में लाभ होता था.हमारी एक मौसी (माँ की चचेरी बहन)जो मुझ से बहुत छोटी थीं उन्हें वह दवा दी जाती थी.पत्ते पडोसी के चपरासी को पहचान थे वही लाता था.एक दिन वह चपरासी कहीं बाहर गया था और नानी जी परेशान थीं,मैंने माँ से कहा की मैं वो पत्ते ला सकता हूँ और ला कर दे दिए-नानी जी ने पहचान कर कहा की ठीक हैं पर तुम झाड़ियों के बीच से चुन कर कैसे लाये मैं उस चपरासी के आने जाने झाड़ी में घुसने और पत्ते चुनने पर कड़ी निगाह रखता था उस का लाभ हो गया.माँ की चाची का घर पास ही था.
नाना जी के घर में कूआं था.हम लोग जब नाना जी घर पर नहीं होते थे कूएँ से पानी भर कर रख देते थे और चूल्हे के लिए लकड़ी भी चीर देते थे.नाना जी माँ से कहते थे बच्चों से क्यों काम लेती हो कोई कूएँ में गिर गया तो?कूएँ के पास कटहल का ९० साल पुराना पेड़ था.फल नहीं लगता था और नाना जी पेड़ काटने के खिलाफ थे.माँ और हम लोग पेड़ के नीचे कपडे धोते थे साबुन का भी पानी जाता था उसमे फिर से कटहल लगने लगे सभी को आश्चर्य हुआ!
चीन से लड़ाई तो बहुत जल्दी निबट गयी थी.सिलीगुड़ी फॅमिली स्टेशन डिक्लेयर हो गया.दोनों भाई नाना जी के पास रह गए और माँ छोटी बहन को लेकर सिलीगुड़ी चलीं गयीं.नाना जी का सख्त हुक्म था जब तक माँ वापिस न आये तुम लोग न कूएँ से पानी भरोगे न लकड़ी चीरोगे.बाज़ार नाना जी के साथ अक्सर एक ही भाई जाता था और दूसरा कूएँ से पानी भरकर लकड़ी चीर देता था.फिर नाना जी दोनों को जबरदस्ती एक साथ ले जाने लगे.वह मरीजों को मुफ्त दवा देते थे और जब ज्यादा मरीज़ हुए तभी हम लोग दांव लगा कर पानी कूएँ से भर डालते थे और थोड़ी थोड़ी लकड़ी चीर देते थे.नाना जी कहते थे तुम्हारे माँ बाप ने पढने के लिए छोड़ा है काम करने के लिए नहीं-हमें लगता था बुढापे में नाना जी पर हम लोगों का काम बढ़ गया है मदद करनी चाहिए सो उनकी बात न मान कर भी मदद करते थे.
बाबू जी शायद माँ और बहन को पहुंचाने के लिए सिलीगुड़ी से आये हुए थे-माँ के चचेरे भाई लगभग रूआंसे हो कर बोले-जीजा जी प्रेसिडेंट कैनेडी शॉट डेड.बाबु जी भी थोड़ा उदास हो गए.चीन के हमले के समय कैनेडी ने मदद का प्रस्ताव रखा था जिसे नेहरु जी ने ठुकरा दिया था.कैनेडी के प्रति देश में सहानुभूति थी.
गर्मियों की छुट्टी के बाद बाबु जी हम सब को सिलीगुड़ी ले जाने हेतु आने वाले थे बाबा जी ने गाँव बुलाया था. वहां  से २७ मई १९६४ को लखनऊ भुआ के पास जाना  था जब तक चारबाग़ पहुंचे नेहरु जी के निधन की सूचना फ़ैल गयी थी बाज़ार आदि बंद होने लगे थे.स्टेशन पर बड़े फुफेरे भाई आये थे. 
जिस दिन हम लोगों को सिलीगुड़ी ट्रेन से जाना था उसी दिन नेहरु जी का अंतिम संस्कार होना था.बड़ी मुश्किल से स्टेशन तक के लिए तांगा का प्रबंध हो पाया था.भुआ आदि स्टेशन पहुंचाने नहीं जा पाए.नाना जी जो कभी किसी की मोटर साईकिल पर नहीं बैठे और कोई वाहन न होने के कारण मामा जी के साथ विक्की पर बैठ कर स्टेशन पहुंचाने आये थे.तब मामा जी सेकिंड हैण्ड विक्की का प्रबंध कर पाए थे.आज के प्रो.स्वंय को I A S के समकक्ष समझते हैं.
ट्रेन छोटी लाइन की थी-अवध-तिरहउत मेल.तब प्रत्येक डिब्बे का कोच कंडक्टर रात को डिब्बे में ताला बंद कर लेता था और स्टेशन पर ही खोलता था.आज की तरह एक ही कंडक्टर कई कोच नहीं देखता था.तीसरे दिन ट्रेन ने सिलीगुड़ी पहुंचा दिया था.शाहजहांपुर मेरठ जाने से पहले फिर एक वर्ष पढ़े थे वह सब द्वितीय चरण में.उससे पहले बंगाल की बातें आएँगी. 
Typist -यशवन्त माथुर

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