बुधवार, 29 सितंबर 2010

सिलीगुडी में सवा तीन साल--(अंतिम भाग): विजय राजबली माथुर

(पिछली पोस्ट से आगे...)

वस्तुतः ईस्टर्न कमांड अलग बन जाने के बाद हालात ये थे कि रिटायरमेंट तक इधर से गए सभी लोगों को वहीँ रहना था.वह तो डिफेन्स यूनियनों के नेता और कम्युनिस्ट समर्थित सांसद सुरेन्द्र मोहन बनर्जी के संसद के भीतर व बाहर किये गए प्रयासों का फल था कि सेंट्रल कमांड से गए लोगों को वापिस आने का मौका मिल रहा था. कब कहाँ का ट्रांसफर ऑर्डर मिल जाए यह तय नहीं था.अतः सितम्बर में हम लोग फिर एक बार नाना जी के पास शाहजहांपुर पढने के लिए गए.लेकिन इन सवा तीन वर्षों में सिलीगुड़ी में जिन लोगों के साथ रहे उनका भी ज़िक्र करना यहाँ ज़रूरी है.जिस मकान में पहले पहल उतरे थे वह बाबू जी के S D O राजकुमार अग्रवाल साः के घर के सामने था उन्हीं ने दिलवाया था जो उनके मकान मालिक चक्रवर्ती साः के छोटे भाई का था जो रेलवे में ड्राइवर थे.सब लोग व्यवहार में बहुत अच्छे थे.एक और S D O गोयल साः के घर से भी आना जाना था.दर असल सिलीगुड़ी में सभी गैर बंगाली अधिकारी और मातहत सभी मिलजुल कर चलते थे.सब एक दुसरे से घरेलू सम्बन्ध रखते थे.बंगाली पडौसी भी सभी अच्छे थे.दुसरे मकान में भी हम लीगों के अलावा बाकी सभी किरायेदार बंगाली थे-सब अच्छे थे.वहां बरसात में कुँए का जल स्तर इतना ऊपर आ जाता था कि मन पर थोडा झुकने पर बाल्टी सीधे डुबो कर पानी भर लेते थे.अख़बारों के मुताबिक़ अब वहां भी जल स्तर गिर गया है.

''नक्सल बाड़ी आन्दोलन''--चुनावों के बाद १४ पार्टियों के मोर्चे की सरकार अजोय मुखर्जी के नेतृत्व में बनी थी.उप मुख्यमंत्री व गृह मंत्री ज्योती बसु बने थे.खाद्य मंत्री प्रफुल्ल चन्द्र घोष थे.सिलीगुड़ी से डाक्टर मैत्रेयी बसु सांसद चुनी गयी थीं जो हुमायूँ कबीर के बांगला कांग्रेस की थीं.यह वही कबीर साः थे जिनकी पुत्री लैला कबीर जॉर्ज फर्नांडीज़ की पत्नी बनीं.नई सरकार में C P M सबसे बड़ी पार्टी थी और इसके  कुछ कार्यकर्ताओं ने सिलीगुड़ी से ८ या १० कि.मी.दूर स्थित नक्सलबाड़ी में आदिवासियों को आगे कर के बड़े किसानों की जमीनों पर कब्ज़ा कर लिया था.पुलिस का रूख आन्दोलनकारियों के प्रति नरम था आखिर गृह मंत्री की पार्टी के तो कार्यकर्ता थे.हमारे मकान मालिक के साढू सपरिवार अपनी भैंस,भैंसे लेकर उनकी शरण में आये उनके कमला (संतरा)बगान और खेत सब छिन गए थे.न्यू मार्केट में मारवाड़ियों की दुकानें जला दी गयीं थीं. बड़ी अफरा तफरी मच गयी थी.स्कूल,कॉलेज बंद हो गए.हम लोग तो वैसे ही नहीं जा रहे थे.कुछ दिनों बाद C P M ने संसदीय प्रणाली में विश्वास जताया और अपने कार्यकर्ताओं से अवैध कब्ज़े छोड़ने को कहा तिस पर उन लोगों ने अलग पार्टी का गठन कर लिया जिन में,चारु मजूमदार,कानू सान्याल और M T नागी रेड्डी प्रमुख थे.नक्सलबाड़ी से फांसीद्वार थाना आदि होते हुए असाम के नल बाड़ी तक यह आन्दोलन बढ़ गया (अब तो पूरे देश में फ़ैल गया है).

सरकार की सख्ती से भू स्वामियों को ज़मीनें वापिस मिलीं और मारवाड़ियों ने नुक्सान से ज्यादा पैसा इंश्योरेंस कम्पनियों से वसूल लिया.नुक्सान गरीब बंगाली मजदूरों का हुआ,मारवाड़ियों ने उन्हें निकाल कर दूसरे कर्मचारी रख लिए.एक आदर्श मांग को गलत तरीके से उठाने और पाने के प्रयास में यह आन्दोलन आज भटकाव में उलझा है और सरकारी दमन का शिकार हो रहा है.नतीजा गरीब भूमिहीन आदिवासियों मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है.सिलीगुड़ी में बांगला भाषा में तब कुछ ऐसे पोस्टर भी चिपके थे जिन पर लिखा था--''चीन के चेयरमैन माओ हमारे चेयरमैन''.इस आधार पर इस आन्दोलन को चीन प्रेरित मान कर भी कुचला गया.

''दार्जिलिंग की सैर'' --मुझे तो घूमने का कोई शौक तब भी नहीं था,परन्तु अजय दार्जिलिंग घूमना चाहता था अतः १९६६ की शरद पूर्णिमा (लक्ष्मी पूजा) के दिन हम लोगों को बाबू जी दार्जिलिंग घुमाने  ले गए.हम लोग जब नैरोगेज की गाड़ी में सिलीगुड़ी जंक्शन से बैठे तो तीन-तीन डिब्बों के बाद कुल तीन इंजन लगे थे.शुरू में पूरी एक गाड़ी थी.पहाड़ियों पर जब गाड़ी घूमती थी तो तीनों इंजन खिडकी से दीख जाते थे.किसी स्टेशन पर तीनों इंजन तीन तीन डिब्बों की तीन गाड़ियों में बंट गए जो बहुत कम फासले पर चल रही थीं और दीख रही थीं.एक स्टेशन पर मूलियाँ भी बाबू जी ने लीं-पहाडी मूलियाँ बेहद मीठी थीं.एक स्टेशन पर अजय को शौच के लिए बाबू जी ले कर उतरे  उतने में हम लोगों की गाड़ी चल दी और वे छूट गए.साथ के लोगों ने कहा कि वह पिछली गाड़ी पकड़ लेंगे चिंता की बात नहीं है.अगले स्टेशन पर वे दोनों पिछली गाड़ी से उतर के हम लोगों के साथ आ गए.हम लोग ''घूम'' स्टेशन पर उतर गए.(दार्जिलिंग अगला स्टेशन था)वहां बाबु जी ने ठहरने का प्रबंध कराया था,साथ में राशन वगैरह ले गए थे.लेकिन बाबू जी के एक S D O श्रीवास्तव साः अपने घर ले गए तो माँ ने सारा राशन उन्हीं के घर दे दिया.घूम से अगले दो दिन दार्जिलिंग शहर घूमने गए.ऊपर की सड़क से नीचे का बाज़ार रात में जगमग दीवाली सा चमकता दीखता था.कंचनजंघा देखने नहीं गए.मुझे सर्दी माफिक नहीं आती मेरे हाथ-पाँव सूज गए थे.लौटते में अलग अलग तीन गाड़ियाँ चलीं थीं जो रास्ते में फिर एक गाड़ी में बदल गयीं.वैसे हिलकार्ट रोड से भी पहाड़ियों का अवलोकन सिलीगुड़ी में हो जाता था.दार्जिलिंग की बात दूसरी थी अजय और शोभा को घूमने की प्रसन्नता थी.
सिलीगुड़ी से दार्जिलिंग जाने वाली 'हिल कार्ट रोड' के साथ-साथ नेरोगेज की रेलवे लाईन

शाहजहांपुर वापसी-जब अगस्त  १९६७ तक बाबू जी को ट्रांसफर ऑर्डर नहीं मिला तो बाबू जी ने नाना जी से पत्र लिख कर हम लोगों को एक वर्ष वहां फिर पढ़ाने हेतु भेजने को कहा तथा उनकी सहमती के बाद सितम्बर में A T मेल से RESERVATION कराकर बैठा दिया.माँ को पहली बार हम तीनों भाई-बहनों को लेकर अकेले सफ़र करना था वह भी एक दम इतनी लम्बी दूरी का परन्तु उन्होंने कहीं भी साहस नहीं छोड़ा.गाड़ी लखनऊ चारबाग की छोटी लाइन पर पहुंची और बड़ी लाइन की गाड़ी से शाहजहांपुर जाना था.छोटी लाइन के कुली काली पोशाक पहनते थे और बड़ी लाइन के कुली लाल पोशाक.एक दूसरे के स्टेशनों में नहीं जाते थे.परन्तु छोटी लाइन का एक कुली भला निकल आया उसने छोटी लाइन से ले जा कर बड़ी लाइन से शाहजहांपुर को छूटने वाली पैसेंजर गाड़ी में सामान कई फेरों में ले जा कर पहुंचा दिया.शायद कुछ ज्यादा रु.लिए होंगे.वह कुली मुझे और अजय को सामान के साथ लाकर इंजन के ठीक पीछे वाले डिब्बे में बैठा गया.सामान ज्यादा था क्योंकि बाद में बाबू जी को अकेले आना था कितना सामान ला पते?कुली बीच में अकेला ही सामान ढो कर लाया और हम भाइयों के पास रख गया.तीसरी या चौथी बार के फेरे में माँ और शोभा भी आये;गाड़ी सीटी देने लगी थी,गार्ड ने हरी झंडी दिखा दी थी-कुली ने दौड़ लगा कर पटरियां फांद कर इंजन के सामने से सामान ला दिया और भाप इंजन के ड्राइवर को रुकने का इशारा किया जब माँ और शोभा डिब्बे में चढ़ गए तब कुली ने मेहनताना लिया और धीमी चलती गाड़ी से उतर गया.आज का ज़माना होता तो लम्बी गाड़ी में इंजन का हार्न और गार्ड की सीटी की आवाज़ भी सुनाई नहीं देती और विद्युत् गति में गाड़ी दौड़ जाती.उस समय तक भलमनसाहत थी-वह अज्ञात कुली हम लोगों के लिए देवदूत सामान था उसे लाखों नमन.

(समाप्त)

Typist -यशवन्त

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