(१४-११-२००९ को गृह प्रवेश हवन का फोटो) |
भुना चना -परमल खा -खा कर आगरा वाले मकान की किश्तें पूरी की थीं क्योंकि मुझे जाब-विहीन कर दिया गया था .दुकान -दुकान नौकरी करके गुजारा कर रहे थे .इस तरह हासिल उस बड़े मकान को बेच कर यहाँ छोटा मकान लेना भी हमारे निकटतम व घनिष्ठतम रिश्तेदारों को बुरा लगा है .ज्यादातर को हमारा वापिस लखनऊ आना ही नहीं सुहाया है .पहले मेरी पत्नी पूनम पर शक किया गया कि उनके रिश्तेदार यहाँ होंगे इस लिए लखनऊ पसंद किया होगा .हकीकत यह है कि पूनम पटना क़े श्रीवास्तव परिवार की हैं जिनका कोई रिश्तेदार न आगरा में था न लखनऊ में है .जब यह लगा कि यशवन्त की ख्वाहिश लखनऊ आने की थी तो उसके विरुद्ध हो गए -यहाँ तक कि गत वर्ष जब वह कानपुर में जाब कर रहा था और वहां अकेला था उसको जनम -दिन की बधाई नहीं दी गई उन लोगों द्वारा भी जिनके खुद क़े ही नहीं उनके बच्चों और बच्चों क़े भी बच्चों क़े जनम -दिन पर हम बिला नागा मुबारकवाद देते हैं .मेरे लिए तो इस बात का कोई महत्त्व नहीं था परन्तु खुद यशवन्त को थोडा अटपटा लगा ;अब वह इस वर्ष हम लोगों क़े साथ है और उसका कहना है कि यदि इस बार वे जनम -दिन पर संपर्क करेंगे तो उस पर मैं उन लोगों से बात करने का दबाव न डालूं क्योंकि पूरे एक वर्ष उन लोगों ने उसका हाल-चाल तक न पूंछा है .हमारी बउआ की एक रिश्तेदार जिन्होंने १९७३ में मुझे अपने माता -पिता से अलग होने को कहा था और मैंने उन्हें ससम्मान ऐसा करने से इनकार कर दिया था . (१९७८ से मृत्यु पर्यंत १९९५ तक बउआ -बाबूजी मेरे साथ ही रहे )संभवतः उन्ही ने अपने न्यू हैदराबाद क़े संपर्कों क़े आधार पर एक ब्लागर को भरमाकर यशवन्त को मेरे विरुद्ध करने का प्रयास किया ;उन्हें कामयाबी मिली या नाकामयाबी इसे वे लोग ही जाने .मै इतना ही बताना चाहता हूँ कि हमारी माँ क़े विरुद्ध अभियान चलाने वाली और हमारे भाई को हमारे विरुद्ध करने वाली उन रिश्तेदार की अपनी छोटी पुत्र -वधु उनके पौत्र को लेकर अलग हो गई है और उन पर मुकदमा चला दिया है ; उन्ही क़े एक देवर ने बताया था .परमात्मा और पृकृति क़े न्याय का ढंग बेहद अनूठा होता है जिसे "मानव " प्राणी समझ ही नहीं पाता है और ठोकरें खा कर भी गलती पर गलती करता जाता है क्योंकि वह अहंकार में अपने को सदा सही ही समझता रहता है .खैर गलतियां करना और गालियाँ देना तो आज क़े बड़े (समृद्ध )लोगों का दस्तूर है.
हमारे इर्द -गिर्द भस्मासुर इ .सा :की मेहरबानी से मेरे ही नहीं मेरे पुत्र क़े भी पोफेशन क़े विरुद्ध दुष्प्रचार करने वालों की कमी नहीं है.मेरी श्रीमती जी को यह सब बहुत कचोटता है .मुझे फर्क इसलिए नहीं पड़ता क्योंकि मैं इस सब क़े होने वाले अंजाम का अंदाजा रखता हूँ .लखनऊ नगर क़े ही एक और अच्छे ब्लागर सा :से सपर्क हुआ और फोन वार्ता भी लेकिन अब नाम सार्वजनिक नहीं कर रहा हूँ .स्थानीय लोग हमें मूर्ख समझते हैं जबकि ब्लाग -जगत में यशवन्त को तथा कुछ हद तक मुझे भी विद्वजनो की प्रशंसा व समर्थन मिल रहा है. पत्रकार स्व .शारदा पाठक ने स्वंय अपने लिए जो पंक्तियाँ लिखी थीं ,मैं भी अपने ऊपर लागू समझता हूँ :-
लोग कहते हम हैं काठ क़े उल्लू ,हम कहते हम हैं सोने क़े .
ऐसा इसलिए समझता हूँ जैसा कि सरदार पटेल क़े बारदौली वाले किसान आन्दोलन क़े दौरान बिजौली में क्रांतिकारी स्व .विजय सिंह 'पथिक 'अपने लिए कहते थे मैं उसे ही अपने लिए दोहराता रहता हूँ :-
यश ,वैभव ,सुख की चाह नहीं ,परवाह नहीं जीवन न रहे .
इच्छा है ,यह है ,जग में स्वेच्छाचार औ दमन न रहे ..
अपनी क्षमता व सामर्थ्य क़े अनुसार अपने ब्लाग क़े माध्य्यम से लोगों को जागरूक करने और पाखण्ड से हटाने का प्रयास करता रहता हूँ .यदि कोई एक भी इनसे लाभ उठा सका तो वह मेरे लिए बोनस है ;वर्ना मै तो अपना कर्त्तव्य समझ कर लिखता जा रहा हूँ ,उसका फल तो उसे ही मिलेगा जो उसका पालन करेगा ,मुझे तो उतना ही फल मिलेगा जितने का मै पालन करता हूँ .दीपावली पर कुछ अन्य ब्लागर्स ने भी पटाखा,कृत्रिम रोशनी आदि आडम्बरों क़े विरुद्ध अपने आलेख लिखे जिन्हें पढ़ कर खुशी हुयी और यह एहसास भी हुआ कि सिर्फ मै ही अकेला नहीं हूँ .मैंने पटाखों को मानवीय क्रूरता का द्योतक बताया था तो उसकी पुष्टी एक अन्य ब्लागर क़े आलेख से हो जाती है जिसमे उन्होंने बताया है कि ,सिवाकासी में लगभग एक लाख बच्चे आतिशबाजी क़े धंधे में लगे हैं और अक्सर दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं.विदेशियों ने उन पर फीचर फिल्म तैयार की है और हमारे देशवासी उनकी ओर से मुंह मोड़े हुए हैं .ऐसे ब्लागर्स का समर्थन करना मेरा फ़र्ज़ था अतः मैंने उनके यहाँ अपनी अनुकूल टिप्पणियाँ दीं हैं .जैसा कुछ ब्लागर्स ने लिखा है कि टिपणी लिखना लेन -देन है (एक अच्छे ब्लागर सा :ने दीवाली गिफ्ट से तुलनात्मक व्यंग्य किया वह अलग बात है )मैं उनसे सहमत नहीं हो सकता . ठीक बात है तो हमारा नैतिक दायित्व है कि हम उनका समर्थन करें और यह उम्मीद मैं नहीं करता हूँ कि बदले में वे भी आकर मेरे ब्लाग पर जवाबी टिप्पणी करें .मैं तो स्वान्तः सुखाय ,सर्वजन -हिताय लिखता हूँ और लिखता रहूँगा .मेरी तो ख्वाहिश यह है कि पाठक ब्लॉगर बजाये मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने क़े अपने जीवन में उन बातों से जो लाभ उठा सकते हैं -अवश्य उठायें .
(दीवाली हवन क़े फोटो) |
न खींचो तीर -कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अखबार निकालो .
"क्रांति -स्वर " व "विद्रोही स्व -स्वर में" दो अखबार निकालना चाहते थे ,आर्थिक व व्यवसायिक क्षमता नहीं थी इसलिए बेटे क़े व्यवसाय का इस्तेमाल कर इसी नाम क़े दो ब्लॉग आप लोगों की सेवा में प्रस्तुत किये हैं .आप लोगों का यदि कुछ भी भला हो सके तो वही मेरी सफलता है.मैं तो नन्द लाल जी द्वारा बताई आत्मिक -शक्ति का पालन करता हूँ ,आप भी चाहें तो सुन सकते हैं. :-
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Adarniya Vijay Mathur ji
जवाब देंहटाएंNamaskar
Mathur ji..
apke lekh padh kar bahut hi achi jaankari milti hai aur sath hi bahut kuch sikhne ko milta hai
..........hume to aap ki lekhne ke sath apka asirwaad bhi chahiye
Adarniya Vijay Mathur ji
जवाब देंहटाएंNamaskar
Mathur ji..
apke lekh padh kar bahut hi achi jaankari milti hai aur sath hi bahut kuch sikhne ko milta hai
..........hume to aap ki lekhne ke sath apka asirwaad bhi chahiye
Mthur ji.
जवाब देंहटाएंaapke naye ghar me ek saal poora hone ki badhaiye
aur aap salo sal bitaye...
.......ghar ki yaden kabhi nahi mitati.
आप का लेख पढ़ा बहुत अच्छा लगा| गृह प्रवेश की वर्षगांठ पर बहुत बहुत बधाई|
जवाब देंहटाएंaadarniy sir
जवाब देंहटाएंapne anubhavo v praranapad aalekho se hame anugrahit karne ke liye avam mera utsah vardhan karne ke liye hardik abhinandan.
poonam