कालेज क़े प्रिंसिपल फतह चंद पाठक जी काफी सख्त माने जाते थे और किसी कक्षा को नहीं पढ़ाते थे,उनका सम्बन्ध कांग्रेस पार्टी से था.जब मध्यावधी चुनाव हुए तो पाठक जी ने बड़ी कक्षाओं क़े छात्रों को अपने पास बुला -बुला कर जायजा लिया कि ,किस क्षेत्र में किस पार्टी का जोर रहा ;तब सबसे खूब मुस्करा -मुस्करा कर पूछ रहे थे.
चीफ प्रोक्टर तेज पाल शर्मा जी बेहद सख्त आदमी थे ,हमें इतिहास पढ़ाते थे.ज़्यादातर छात्र उनकी कक्षा में खौफ जदा रहते थे.इतिहास मेरा प्रिय विषय था और शाहजहांपुर में प्रधानाचार्य शर्माजी द्वारा इतिहास पढाया जाना खूब भाता था उसका लाभ पांच वर्ष बाद यहाँ मेरठ में भी मिला कि,टी .पी .शर्माजी कक्षा में मुझ से प्रसन्न रहते थे जब जो पूछते थे उत्तर सही मिल जाता था.बाद में तो उन्होंने मुझसे पूछना ही बन्द कर दिया था .जब कभी सारे छात्र उत्तर बताने में असफल रहते थे तभी मुझसे कहते थे कि,तुम ही बता दो और मेरा उत्तर सुन कर बाकी लोगों को नसीहत देते थे.
अर्थशास्त्र हमें राम भरोसे पाठक जी पढ़ाते थे उनसे भी अधिकाँश छात्र भयभीत रहते थे.मैं रटने में माहिर था अतः उनका भी सौहाद्र प्राप्त करने में सफल रहा जब जो पूछा ,मेरा दिया उत्तर सही ही गया.
नागरिक शास्त्र हरवीर शर्माजी पढ़ाते थे.उनके पढ़ने में कुछ नाटकीयता का पुट रहता था ,अब लगता है कि,शायद वह इप्टा से सम्बंधित रहे हों.वह पी.एस .डी. (प्रदेशीय शिक्षा दल )की भी ट्रेनिंग देते थे और उन्होंने सी.ए .वी.इन्टर कालेज में सम्पन्न युवक समारोह १९६८ -६९ में पी .एस.डी.की तरफ से "सलामी परेड "तथा "समाज सेवा "में मेरी भी ड्यूटी लगा दी थी.आम तौर पर खेलों से दूर भागने वाले इन्सान क़े लिए यह अनोखी घटना थी.
उन्होंने जबतक समारोह स्कूल की पढ़ाई से अलग अपने साथ टीम में रखा.कक्षा में नागरिक शास्त्र में दिलचस्पी व जागरूकता देखते हुए ही शायद उन्होंने अपने साथ इस समारोह क़े लिए मेरा भी चयन कर लिया था या वह मुझे क़े नज़दीक ले जाना चाहते थे,यह मैं तब भी नहीं समझ पाया था,आज भी नहीं समझ सका हूँ.
हमें हिन्दी गिरीश चन्द्र शर्माजी पढ़ाते थे,वह भी अच्छे थे.एक अध्यापक सरलजी क़े नाम से मशहूर थे कभी -कभी खाली पीरियड में हमारी कक्षा में आ जाते थे.शर्मिला टैगोर की नवाब मंसूर अली खां पटौदी से शादी पर उनमें काफी आक्रोश था और लगभग साम्प्रदायिक प्रवचन उन्होंने दे डाला था. एक अन्य अध्यापक रस्तोगी जी विधायक रह चुके थे,बाद में कांग्रेस (ओ )में चले गयेथे.एक शिक्षक लक्ष्मीकांत गौड जी कट्टर जनसंघी थे.ये लोग हमें नहीं पढ़ाते थे.
शोभा कंकर -खेडा में ही गुरुनानक गर्ल्स इन्टर कालेज में पढ़ती थी.वह पैदल जाती थीऔर हम भाई अलग -अलग साईकिलों से -सब का समय अलग अलग था.
कंकर -खेडा की कुछ बातें और नाम का स्पष्टीकरण आगे की पोस्ट में
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अच्छा लगा आपके साथ संस्मरण का सफ़र।
जवाब देंहटाएंविजय जी आपका मेरठ का सफर बहुत सारे पहलू उजागर करता है ।
जवाब देंहटाएंकितना कुछ आपने अपनी यादों के गुलदस्ते में कितने करीने से सहेज कर रखा है ।
पुरानी यादें पढ़ कर बहुत अच्चा लगा|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत रचना...मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ मेरी कविताएँ "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी हर सोमवार, शुक्रवार प्रकाशित.....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे......धन्यवाद
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