शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

लखनऊ में २०१०

जैसा कि,पहले ही बताया है कि रघुवीर सहाय फिराक गोरखपुरी सा : क़े बलिया/आगरा क़े वक्तव्य से प्रभावित होकर आगरा में बस गये थे;परन्तु आज क़े आगरा क़े लोगों क़े व्यवहार से क्षुब्ध होकर आगरा छोड़ दिया एवं २००९ में ९ अक्टूबर को लखनऊ आ गये थे.२०१० पूरा अपने लखनऊ क़े नये मकान में गुजरा है.यह भी पहले ही बताया जा चुका है कि,हमारे कुछ रिश्तेदारों को हमारा लखनऊ में पुनः आना बेहद नागवार लगा है और वे लगातार हमें परेशान कर रहे हैं.भास्मासुरों ने जो अतीत में मुझसे ज्योतिषीय लाभ उठा चुके हैं तो हर हथकंडे अपनाए ही;लखनऊ से ही सम्बंधित एक ब्लागर को भी मेरे व मेरे परिवारीजनों क़े विरुद्ध तैनात कर दिया.क्योंकि मैं ज्योतिष में ढोंग व पाखण्ड का प्रबल विरोध करता हूँ,इसलिए ऐसे लोग जिनकी आजीविका  ही ढोंग व पाखण्ड पर अवलंबित है भी उस गुट में शामिल होकर कुछ तांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा हमें निरन्तर परेशान करने लगे.लेकिन जहाँ तक मेरा प्रश्न है,मैंने सदैव ही सकारात्मक -वैज्ञानिक पूजा पद्धति को अपनाए रखा और उसी क़े बल पर खुद अपना व अपने परिवार का बचाव किया है.

बिल्डर को मिलाकर हमारे मकान में गड़बड़ियाँ तो कराई हीं.अगल-बगल क़े लोगों को भी दुष्प्रचार द्वारा हमारे विरुद्ध जुटाया गया.सबसे भीषण हमला हुआ मेरी पत्नी पर २७ दिसंबर ,सोमवार को.तांत्रिक प्रक्रिया द्वारा उनके मस्तिष्क को विचलित किया गया जिसके परिणामस्वरूप वह सीढ़ियों पर बिलकुल ऊपर पहुँच कर धुलक गईं और एकदम नीचे आकर गिरीं.यशवन्त ने घबराकर मुझे आवाज दी और मैं पूजा बीच में छोड़ कर नीचे उतरा तथा सहारा देकर उन्हें ऊपर ले गया.उपलब्ध दवाईयों तथा वैज्ञानिक स्तुतियों का सहारा लिया. हालाँकि,अभी बदन ,सिर आदि में दर्द व बुखार का प्रकोप पूरा नहीं हटा है,परन्तु खतरे को काबू कर लिया है.

कोशिश यह है कि,किसी तरह मेरी पत्नी ही लखनऊ को रिजेक्ट कर दें और मुझे यहाँ से हटना पड़े.यशवन्त को भी जाब में परेशान  किया गया था तो उसे साईबर कैफे खुलवा दिया था.अब उसके व्यवसाय तथा मेरे ज्योतिष को आर्थिक क्षति पहुंचाई जा रही है.लेकिन धन ही सब कुछ नहीं होता ऐसा हमारे विरोधियों को नहीं पता है.

यशवन्त क़े माध्यम से हम ब्लाग जगत से जुड़े और हमें कुछ विद्वान -सज्जन लोगों से सम्मान तथा सहानुभूति भी प्राप्त हुई है एवं वही हमारे लिये सबसे बड़ी पूंजी है.मैं किसी भी प्रकार की न तो समीक्षा करना चाहता हूँ न ही किसी को अच्छा या बुरा बताना चाहता हूँ ,परन्तु जिनसे प्रेरणा व ज्ञान प्राप्त हुआ या जिनके आलेख/कविता आदि हमें पसन्द आये उनका ज़िक्र करना और उनका शुक्र -गुज़ार होना  तो हमारा कर्त्तव्य बनता ही है.क्रन्तिस्वर पर केवल तीन ही विद्वानों-डा.टी.एस.दराल सा :,सलिल वर्माजी (चला बिहारी ब्लागर बनने वाले),विजय कुमार वर्माजी का ही उल्लेख हुआ है.इनके आलावा भी -अल्पना वर्मा जी ,वीना श्रीवास्तव  जी,रंजना जी,मोनिका शर्मा जी,मनोज  कुमार जी,महेंद्र वर्मा जी,पी.सी.गोदियाल सा :,क़े.क़े.यादव जी और आकांक्षा जी क़े ब्लॉगों से बहुत कुछ सीखने समझने को मिला है -इन सब का भी आभारी हूँ.और भी बहुत से ब्लाग ऐसे हैं जिनसे कुछ न कुछ सीखा ही है.*

कुल मिला कर ऐसा कुछ नहीं है जो हमें हताश कर सके और हमारे क़दमों को रोक सके.अभी २६ दिस.को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी क़े ८५ वें स्थापना दिवस पर उनकी गोष्ठी में सुनने का अवसर मिला.वक्ताओं ने भ्रष्टाचार व चुनाव -सुधार पर व्यापक विचार व्यक्त किये."हमें तुम्हारे स्विस बैंक खातों का हिसाब चाहिए"यह था नारा (स्लोगन).का.अतुल अँजान ने बताया कि,घोटालों-घपलों से आवारा पूंजी जन्मी जिसने भ्रष्टाचार को आसमान पर पहुंचा दिया.उनसे पूर्व का. गिरीश ने भी बताया था कि,भ्रष्टाचार अंग्रेजों क़े ज़माने से-नजराना,शुकराना,भेंट आदि क़े रूप में चलता आया है,परन्तु तब इसे हिकारत की निगाह से देखा जाता था.पकडे जाने पर भ्रष्टाचारी की ज़लालत होती थी.टी.टी.कृष्णामाचारी,केशव देव मालवीय आदि भ्रष्टाचार क़े कारण मंत्री-मण्डल से हटाये गये थे.धीरे-धीरे भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बताया जाने लगा और यह आज बेशर्मी की सारी हदें पार कर चुका है.

मैं न तो विद्वान हूँ न ही कोई विशेषज्ञ परन्तु मेरी अल्प बुद्धी ने जो समझा है,वह यह है कि हमारी प्रचलित संस्कृति ही भ्रष्टाचार क़े मूल में है.लोग-बाग अपने भगवान से सौदे-बाजी करते है कि,यह या वह काम पूरा होने पर इतने/उतने रु.का प्रशाद चढ़ाएंगे.इसी प्रकार मतलब साधने वाले इन्सान से भी सौदेबाजी होती है.

यदि समाज से सिर्फ पैसे वालों का सम्मान करने की प्रवृती समाप्त हो जाये तो भ्रष्टाचार का निर्मूलन होते देर नहीं लगेगी.आईये नव-वर्ष २०११ में संकल्प लें कि, योग्यता व विद्वता को ही पूजेंगे,धनाढ्यता  को नहीं.२०११ का वर्ष आप क़े लिये व आपके सभी परिवारीजनों क़े लिये मंगलमय,शुभ,स्वास्थ्यकारी एवं उज्जवल हो.


*क़े आर .जोशी जी (Patali the village ),पूनम श्रीवास्तव जी (झरोखा),जाकिर अली 'रजनीश' साहब (तस्लीम),क़े नाम जल्दी जल्दी में छूट  गये थे.

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शनिवार, 18 दिसंबर 2010

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष (४ )

रूडकी रोड चुंगी क़े पास स्थित इस क्वार्टर से बाबूजी का दफ्तर और हम लोगों क़े कालेज तो पास हो गये थे परन्तु बहन को उसी कंकर खेड़ा क़े कालेज में काफी दूर पैदल चल कर जाना पड़ता था.सी .डी .ए .कर्मचारियों की पुत्रियों क़े साथ बहन का आना-जाना होता था.

१९६९ में मैंने इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी.बहुत तडके अखबार वाला .५० पै.लेकर रिज़ल्ट दिखा गया था.परन्तु हाई स्कूल की परीक्षा छोटा भाई उत्तीर्ण न कर सका उसे फिर उसी कक्षा व कालेज में दाखिला लेना पड़ा जबकि,बाबूजी ने मुझे मेरठ कालेज में बी .ए .में दाखिला करा लेने को कहा और मैंने वैसा ही किया.उस समय वहां क़े प्रधानाचार्य वी.पुरी सा :थे जो बाद में अपनी यूनियन का पदाधिकारी चुने जाने क़े बाद त्याग-पत्र दे गये.फिलासफी क़े एच .ओ .डी .डा .बी.भट्टाचार्य कार्यवाहक प्रधानाचार्य बने जिनके विरुद्ध उन्हीं क़े कुछ साथियों ने छात्र नेताओं को उकसा कर आन्दोलन करवा दिया.डी.एम्.ऋषिकेश कौल सा :कालेज कमेटी क़े पदेन अध्यक्ष थे और उनका वरद हस्त डा.भट्टाचार्य को प्राप्त था.नतीजतन एक माह हमारा कालेज पी.ए.सी.का कैम्प बना रहा और शिक्षण कार्य ठप्प रहा.रोज़ यू .पी.पुलिस मुर्दाबाद क़े नारे लगते रहे और पुलिस वाले सुनते रहे.
एक छात्र ने स्याही की दवात  डा .भट्टाचार्य पर उड़ेल  दी और उनका धोती-कुर्ता रंग गया ,उन्हें घर जाकर कपडे बदलने पड़े.समाजशास्त्र की कक्षा में हमारा एक साथी सुभाष चन्द्र शर्मा प्रधानाचार्य कार्यालय का ताला तोड़ कर जबरिया प्रधानाचार्य बन गया था और उसने डा.भट्टाचार्य समेत कई कर्मचारियों -शिक्षकों की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया था.उसे गिरफ्तार कर लिया गया और बहुत दिन तक उसकी मुकदमें में पेशी होती रही;वैसे कालेज क़े सामने कचहरी प्रांगण में ही उसका ढाबा भी चलता था.सुनते थे कि,वह पंद्रह दिन संसोपा में और पंद्रह दिन जनसंघ में रह कर नेतागिरी करता था.पढ़ाई से उसे ख़ास मतलब नहीं था डिग्री लेने और नेतागिरी करने क़े लिए वह कालेज में छात्र बना था.हमारे साथ एन.सी.सी.की परेड में भी वह कभी -कभी भाग ले लेता था,सब कुछ उसकी अपनी मर्जी पर था.पिछले वर्षों तक कालेज यूनियन क़े प्रेसीडेंट रहे सतपाल मलिक (जो भारतीय क्रांति दल,इंदिरा कांग्रेस ,जन-मोर्चा,जनता दल होते हुए अब भाजपा में हैं और वी.पी.सिंह सरकार में उप-मंत्री भी रह चुके) को डा.भट्टाचार्य ने कालेज से निष्कासित कर दिया और उनके विरुद्ध डी.एम.से इजेक्शन नोटिस जारी करा दिया.

नतीजतन सतपाल मलिक यूनियन क़े चुनावों से बाहर हो गयेऔर उनके साथ उपाद्यक्ष रहे राजेन्द्र सिंह यादव (जो बाद में वहीं अध्यापक भी बने) और महामंत्री रहे तेजपाल सिंह क्रमशः समाजवादी युवजन सभा तथा भा.क्र.द .क़े समर्थन से एक -दूसरे क़े विरुद्ध अध्यक्ष पद क़े उम्मीदवार बन बैठे.बाज़ी कांग्रेस समर्थित महावीर प्रसाद जैन क़े हाथ लग गई और वह प्रेसिडेंट बन गये.महामंत्री पद पर विनोद गौड (श्री स.ध.इ.कालेज क़े अध्यापक लक्ष्मीकांत गौड क़े पुत्र थे और जिन्हें ए.बी.वी.पी.का समर्थन था)चुने गये.यह एम्.पी.जैन क़े लिए विकट स्थिति थी और मजबूरी भी लेकिन प्राचार्य महोदय बहुत खुश हुए कि,दो प्रमुख पदाधिकारी दो विपरीत धाराओं क़े होने क़े कारण एकमत नहीं हो सकेंगे.लेकिन मुख्यमंत्री चौ.चरण सिंह ने छात्र संघों की सदस्यता को ऐच्छिक बना कर सारे छात्र नेताओं को आन्दोलन क़े एक मंच पर खड़ा कर दिया.

ताला पड़े यूनियन आफिस क़े सामने कालेज क़े अन्दर १९७० में जो सभा हुई उसमें पूर्व महामंत्री विनोद गौड ने दीवार पर चढ़ काला झंडा फहराया और पूर्व प्रेसीडेंट महावीर प्रसाद जैन ने उन्हें उतरने पर गले लगाया तो सतपाल मलिक जी ने पीठ थपथपाई और राजेन्द्र सिंह यादव ने हाथ मिलाया.इस सभा में सतपाल मलिक जी ने जो भाषण दिया उसकी ख़ास -ख़ास बातें ज्यों की त्यों याद हैं (कहीं किसी रणनीति क़े तहत वही कोई खण्डन न कर दें ).सतपाल मलिक जी ने आगरा और बलिया क़े छात्रों को ललकारते हुए,रघुवीर सहाय फिराक गोरखपुरी क़े हवाले से कहा था कि,उ .प्र .में आगरा /बलिया डायगनल में जितने आन्दोलन हुए सारे प्रदेश में सफल होकर पूरे देश में छा  गये और उनका व्यापक प्रभाव पड़ा.(श्री मलिक द्वारा दी  यह सूचना ही मुझे आगरा में बसने क़े लिए प्रेरित कर गई थी ).मेरठ /कानपुर डायगनल में प्रारम्भ सारे आन्दोलन विफल हुए चाहे वह १८५७ ई .की प्रथम क्रांति हो,सरदार पटेल का किसान आन्दोलन या फिर,भा .क .पा .की स्थापना क़े साथ चला आन्दोलन  हो.श्री मलिक चाहते थे कि आगरा क़े छात्र मेरठ क़े छात्रों का पूरा समर्थन करें.श्री मलिक ने यह भी कहा था कि,वह चौ.चरण सिंह का सम्मान  करते हैं,उनके कारखानों से चौ.सा :को पर्याप्त चन्दा दिया जाता है लेकिन अगर चौ.सा : छात्र संघों की अनिवार्य सदस्यता बहाल किये बगैर मेरठ आयेंगे तो उन्हें चप्पलों की माला पहनने वाले श्री मलिक पहले सदस्य होंगें.चौ.सा :वास्तव में अपना फैसला सही करने क़े बाद ही मेरठ पधारे भी थे और बाद में श्री सतपाल मलिक चौ. सा : की पार्टी से बागपत क्षेत्र क़े विधायक भी बने और इमरजेंसी में चौ. सा :क़े जेल जाने पर चार अन्य भा.क्र.द.विधायक लेकर इंका.में शामिल हुए.

जब भारत का एक हवाई जहाज लाहौर अपहरण कर ले जाकर फूंक दिया गया था तो हमारे कालेज में छात्रों व शिक्षकों की एक सभा हुई जिसमें प्रधानाचार्य -भट्टाचार्य सा :व सतपाल मलिक सा :अगल -बगल खड़े थे.मलिक जी ने प्रारंभिक भाषण में कहा कि,वह भट्टाचार्य जी का बहुत आदर करते हैं पर उन्होंने उन्हें अपने शिष्य लायक नहीं समझा.जुलूस में भी दोनों साथ चले थे जो पाकिस्तान सरकार क़े विरोध में था.राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारे यहाँ ऐसी ही एकता हमेशा रहती है,वरना अपने निष्कासन पर मलिक जी ने कहा था -इस नालायक प्रधानाचार्य ने मुझे नाजायज तरीके से निकाल  दिया है अब हम भी उन्हें हटा कर ही दम लेंगें.बहुत बाद में भट्टाचार्य जी ने तब त्याग -पत्र दिया जब उनकी पुत्री वंदना भट्टाचार्य को फिलासफी में लेक्चरार नियुक्त कर लिया गया.

समाज-शास्त्र परिषद् की तरफ से बंगलादेश आन्दोलन पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था.उसमें समस्त छात्रों व शिक्षकों ने बंगलादेश की निर्वासित सरकार को मान्यता देने की मांग का समर्थन किया.सिर्फ एकमात्र वक्ता मैं ही था जिसने बंगलादेश की उस सरकार को मान्यता देने का विरोध किया था और उद्धरण डा.लोहिया के हवाले से .मैंने कहा था कि,बंगलादेश हमारे लिए बफर स्टेट नहीं हो सकता और बाद में जिस प्रकार कुछ समय को छोड़ कर बंगलादेश की सरकारों ने हमारे देश क़े साथ व्यवहार किया मैं समझता हूँ कि,मैं गलत नहीं था.परन्तु मेरे बाद क़े सभी वक्ताओं चाहे छात्र थे या शिक्षक मेरे भाषण को उद्धृत करके मेरे विरुद्ध आलोचनात्मक बोले.विभागाध्यक्ष डा.आर .एस.यादव (मेरे भाषण क़े बीच में हाल में प्रविष्ट हुए थे) ने आधा भाषण मेरे वक्तव्य क़े विरुद्ध ही दिया.तत्कालीन छात्र नेता आर.एस.यादव भी दोबारा भाषण देकर मेरे विरुद्ध बोलना चाहते थे पर उन्हें दोबारा अनुमति नहीं मिली थी.गोष्ठी क़े सभापति कामर्स क़े H .O .D .डा.एल .ए.खान ने अपने  भाषण मेरी सराहना करते हुये कहा था 
हम उस छात्र से सहमत हों या असहमत लेकिन मैं उसके साहस की सराहना करता हूँ कि,यह जानते हुये भी सारा माहौल बंगलादेश क़े पक्ष में है ,उसने विपक्ष में बोलने का फैसला किया और उन्होंने मुझसे इस साहस को बनाये रखने की उम्मीद भी ज़ाहिर की थी.

मेरे लिए फख्र की बात थी की सिर्फ मुझे ही अध्यक्षीय भाषण में स्थान मिला था किसी अन्य वक्ता को नहीं.इस गोष्ठी क़े बाद राजेन्द्र सिंह जी ने एक बार जब सतपाल मलिक जी कालेज आये थे मेरी बात उनसे कही तो मलिक जी ने मुझसे कहा कि,वैसे तो तुमने जो कहा था -वह सही नहीं है,लेकिन अपनी बात ज़ोरदार ढंग से रखी ,उसकी उन्हें खुशी है.
मेरठ कालेज में अन्य गोष्ठियों आदि का विवरण अगली बार ......       



[टाइप समन्वय -यशवन्त ]

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सोमवार, 13 दिसंबर 2010

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष (३ )

मारी कक्षा में रमेश गौतम नामक एक छात्र (जिनके पिताजी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे )ने इतिहास की कक्षा में एक कमज़ोर खिड़की की लोहे की सलाख हाथ से मोड़ कर तोड़ दी थी. चीफ प्रोक्टर तेज पाल शर्मा जी जब पढ़ने आये तो पूंछा कि ,खिडकी किसने तोडी ?कोई छात्र मुंह खोलने को तैयार नहीं था ,तब खुद रमेश गौतम ने खड़े होकर कहा कि,सर आप टूटी खिड़की की मरम्मत नहीं करा रहे थे,इसलिए पूरी ही तोड़ दी.उसकी बात का शर्माजी पर पता नहीं क्या असर हुआ कि,उन्होंने उस वर्ष का चीफ प्रीफेक्ट उसे ही बना दिया तथा विगत वर्षों से चीफ प्रीफेक्ट चले आ रहे सरदार मनमोहन सिंह को एडीशनल चीफ प्रीफेक्ट बना दिया.सरदारजी मस्तमौला थे उसमें भी खुश हो गये,जब कुछ साथियों ने कुरेदा कि,भई तुमने प्रोटेस्ट क्यों नहीं किया था,एडीशनल क़े रूप में क्यों पद स्वीकार किया तो सरदार मनमोहन सिंह ने तपाक से उत्तर दिया कि,वह फ़ौजी अफसर का बिगडैल बेटा है अगर उसे चीफ प्रीफेक्ट न बनाया जाता तो वह लगातार अनुशासन तोड़ता जाता और उसे कन्ट्रोल करना  आसान नहीं होता ,इसलिए अच्छा ही हुआ कि बला टली.बाद में यही रमेश गौतम ,मेरठ कालेज में भी प्रीफेक्ट बना लिया गया था जहाँ पूर्व परिचय क़े आधार पर कार्यालय से वह मेरे कार्य अविलम्ब करवा देता था.

                                     नाम का स्पष्टीकरण

७ वीं कक्षा में वाद -विवाद प्रतियोगिता में प्राप्त कामायनी में भी तथा पी .एस .डी.क़े सर्टिफिकेट में भी मेरा नाम विजय  कुमार माथुर लिखा है क्योंकि,बाबू जी ने अपने बड़े भाईयों क़े व्यवहार से क्षुब्ध होकर दरियाबाद की पुश्तैनी जायदाद में अपना हिस्सा ठुकरा दिया था और हम दोनों भाईयों क़े नाम से खानदान का परिचयात्मक विशेषण "राज बली" हटा दिया था.अपना नाम तो सर्टिफिकेट ,सर्विस आदि सब जगह बदलना (जबकि ७ वर्ष फ़ौज में भी वही नाम लिखा था ) संभव नहीं था.अतः मेरा नाम जो वास्तव में "विजय राज बली माथुर "है -स्कूल रिकार्ड क़े हिसाब से विजय कुमार माथुर हो गया.परन्तु जब से मेरे लेख पत्र -पत्रिकाओं में छपे मैंने "विजय राज बली माथुर "नाम ही दिया.व्यवहार में स्कूली नाम को छोटा करके विजय माथुर ही चलाया क्योंकि,एफीडेविट देकर वास्तविक नाम चलने का अर्थ होता -पिताजी की कार्रवाई  को रद्द करना.अतः स्कूल -कालेज क़े रिकार्ड में नाम विजय कुमार माथुर रहने दिया.परन्तु लेखन आदि में जहाँ भी मेरा वास्तविक नाम "विजय राज बली माथुर "देखते हैं तो पिताजी क़े भतीजों आदि को बेहद बुरा लगता है मानों कि,खानदान का परिचय देकर मैं कोई गुनाह कर रहा हूँ? यदि कभी दुर्भाग्य से मैं कोई अहमियत हासिल कर सका मेरी कलम में कुछ ताकत दिखाई दी  तो मैं समझता हूँ कि,वे लोग ही सबसे पहले मुझे अपना सगा भई बताने में पल भर की भी देर नहीं करेंगे.जिन लोगों ने या उनके माता -पिता ने मेरे माता -पिता को परेशां किया ,प्रताड़ित किया और तरक्की क़े सारे रास्ते बन्द कर दिए उनसे समझौता करना मेरा स्वभाव नहीं है.
                         
  कंकर -खेडा निवास क़े दौरान

मेरठ कैंट में उस समय कंकर खेडा स्वतन्त्र टाउन एरिया  कमेटी क़े आधीन था जो कि, मेरठ कैंट स्टेशन क़े पीछे सरधना रोड पर स्थित है.डिस्टिलरी की तरफ से या सरू स्मेल्टिंग की तरफ से जाने पर रेलवे फाटक क्रास करने पड़ते थे.इसलिए कभी -कभी रेलवे क़े स्टेप ब्रिज (जिस पर दोनों ओर साईकिलों को चढाने -उतारने क़े लिए स्लोप दिया हुआ था )से यार्ड और स्टेशन पार करके कालेज जाते थे.हम लोगों क़े उस मकान में पहुँचने क़े कुछ दिनों बाद हमारी मौसी वहां आईं थीं अपने बड़े बेटे लाल भाई सा :


(मौसी क़े साथ लाल भाई साहब और गोदी में मिथ्थे जीजी ) 
(श्री आनंद बिहारी लाल माथुर जो चित्र में चीनी -रोटी खा रहे हैं और अब डाक -तार विभाग में आडिटर क़े पद से रिटायर्ड हो कर दिल्ली में ज्योतिष की प्रैक्टिस कर रहे हैं ) क़े साथ.हमारी मौसी स्व.भगवती देवी माथुर और मौसा जी स्व.राम बिहारी लाल माथुर बेहद मिलनसार और सज्जन थे,जब कि उनके दूसरे भी जीवित पुत्र रमेश तथा जीवित पुत्री मिथ्थे जीजी (भोपाल में बस गईं श्रीमती मिथलेश माथुर पत्नी श्री सतवन्त किशोर माथुर -रिटायर्ड सीनियर ट्रैफिक आफिसर ,इन्डियन एयर लाईन्स जो गुडगाँव क़े मूल -निवासी हैं ) बेहद विपरीत स्वभाव क़े हैं.
मौसी दो -तीन दिन रह कर चली गईं थीं.१९५९ या ६० में तब   हम लोग बचपन में लखनऊ से मौसी क़े घर दिल्ली में दो -तीन हफ्ते रहे थे.  मौसाजी को लांसर रोड पर सरकारी क्वार्टर मिला हुआ था.उनके साथ रिजर्व बैंक में अधिकारी उनके छोटे भाई भी रहते थे.वह मौसाजी व उनके बच्चों की मदद करते थे परन्तु जब मौसेरे भाई -बहन बड़े हुए तो अपने चाचा -चाची का साथ रहना उन्हें पसन्द नहीं आया अतः मौसाजी क़े भाई अलग अपने बैंक क़े बंगले में चले गये और फिर उसके बाद अपना मकान बना लिया.जब हम लोग दिल्ली गये थे मौसाजी क़े भाई -भौजाई भी हम लोगों क़े साथ वैसा ही व्यवहार करते थे जैसा कि मासी -मौसा जी का था.हम लोग उन्हें भी मौसी -मौसाजी ही कहते थे.
मकान मालिक सरदार जी (मोगिया सा :)और उनकी पत्नी भी अच्छे व्यवहार क़े धनी थे.सरदारजी ने अपनी सगी छोटी साली को जनमते ही दत्तक पुत्री बना लिया था.बाद में उनका स्वंय का भी पुत्र हो गया था और असल में वे मौसी -भान्जा ,भाई -बहन क़े रूप में रहते थे.
कुछ माह बाद बाबूजी को रूडकी रोड पर सरकारी क्वार्टर मिल गया था और हम लोग वहां चले गये थे.उसकी
चर्चा अगली पोस्ट में  --------------- 
  

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शनिवार, 11 दिसंबर 2010

क्रांतिनगर मेरठ में सात वर्ष (२ )

अन्ततः बाबूजी क़े आफिस क़े एक सरदारजी मोगिया सा :ने अपने मकान में दो कमरे किराये पर दे दिए.इस प्रकार हम लोग प्रेमपुरी,मेरठ सिटी से कंकर  खेडा ,मेरठ कैंट शिफ्ट हो गये.बाबूजी का सी .डब्ल्यू .ई .आफिस ढाई -तीन कि .मी .रहा होगा और उससे थोडा ही आगे श्री सनातन धर्म ब्वायज इन्टर कालेज में हम दोनों भाईओं का दाखिला क्रमशः कक्षा १२ और १० में हो गया .कालेज क़े वाईस प्रिंसिपल प्रकाश नारायण माथुर सा :ने मेरी फीस आधी माफ़ करा दी (ऐसा नियम था कि ,दो भाईयों में जिसकी फीस कम हो उसकी आधी माफ़ कर दी जाती थी;भाई साईंस का विद्यार्थी था इसलिए कक्षा १० में उसकी फीस ज्यादा थी.)पी .एन .माथुर सा :ने बाबूजी को बुलवाकर उनसे बात की और उन्हें माथुर सभा मेरठ की गतिविधियों में भाग लेने को कहा.उनके अनुरोध पर बाबूजी होली क़े बाद वार्षिक समारोह में जाने लगे, हम सब भी शामिल होते थे.हम लोगों क़े सामने जो पहला कार्यक्रम हुआ वह बी .ए .वी .इन्टर कालेज में हुआ था.माथुर सभा क़े तत्कालीन सेक्रेटरी आर .सी .माथुर सा : हिंदुस्तान टाईम्स क़े पत्रकार थे जो अध्यक्ष महोदय की ही भांति काफी मिलनसार थे.बाद में दोनों की ही  मृत्यु उसी वर्ष हो गई.अच्छे लोगों से मुलाकात बहुत छोटी ही रही.

कालेज क़े प्रिंसिपल फतह चंद पाठक जी काफी सख्त माने जाते थे और किसी कक्षा को नहीं पढ़ाते थे,उनका सम्बन्ध कांग्रेस पार्टी से था.जब मध्यावधी चुनाव हुए तो पाठक जी ने बड़ी कक्षाओं क़े छात्रों को अपने पास बुला -बुला कर जायजा लिया कि ,किस क्षेत्र में किस पार्टी का जोर रहा ;तब सबसे खूब मुस्करा -मुस्करा कर पूछ रहे थे.
चीफ प्रोक्टर तेज पाल शर्मा जी बेहद सख्त आदमी थे ,हमें इतिहास पढ़ाते थे.ज़्यादातर छात्र उनकी कक्षा में खौफ जदा रहते थे.इतिहास मेरा प्रिय विषय था और शाहजहांपुर में प्रधानाचार्य शर्माजी द्वारा इतिहास पढाया जाना खूब भाता था उसका लाभ पांच वर्ष बाद यहाँ मेरठ में भी मिला कि,टी .पी .शर्माजी कक्षा में मुझ से प्रसन्न रहते थे जब जो पूछते थे उत्तर सही मिल जाता था.बाद में तो  उन्होंने मुझसे पूछना ही बन्द कर दिया था .जब कभी सारे छात्र  उत्तर बताने में असफल रहते थे तभी मुझसे कहते थे कि,तुम ही बता दो और मेरा उत्तर सुन कर बाकी लोगों को नसीहत देते थे.

अर्थशास्त्र हमें राम भरोसे पाठक जी पढ़ाते थे उनसे भी अधिकाँश छात्र भयभीत रहते थे.मैं रटने में माहिर था अतः उनका भी सौहाद्र प्राप्त करने में सफल रहा जब जो पूछा ,मेरा दिया उत्तर सही ही गया.
नागरिक शास्त्र हरवीर शर्माजी पढ़ाते थे.उनके पढ़ने में कुछ नाटकीयता का पुट रहता था ,अब लगता है कि,शायद वह इप्टा से सम्बंधित रहे  हों.वह पी.एस .डी. (प्रदेशीय शिक्षा दल )की भी ट्रेनिंग देते थे और उन्होंने सी.ए .वी.इन्टर कालेज में सम्पन्न युवक समारोह १९६८ -६९ में पी .एस.डी.की तरफ से "सलामी परेड "तथा "समाज सेवा "में मेरी भी ड्यूटी लगा दी थी.आम तौर पर खेलों से दूर भागने वाले इन्सान क़े लिए यह अनोखी घटना थी.


उन्होंने जबतक समारोह  स्कूल की पढ़ाई से अलग अपने साथ टीम में रखा.कक्षा में नागरिक शास्त्र में दिलचस्पी व जागरूकता देखते हुए ही शायद उन्होंने अपने साथ इस समारोह क़े लिए मेरा भी चयन कर लिया था या वह मुझे क़े नज़दीक ले जाना चाहते थे,यह मैं तब भी नहीं समझ पाया था,आज भी नहीं समझ सका हूँ.
हमें हिन्दी गिरीश चन्द्र शर्माजी पढ़ाते थे,वह भी अच्छे थे.एक अध्यापक सरलजी क़े नाम से मशहूर थे कभी -कभी खाली पीरियड में हमारी कक्षा में आ जाते थे.शर्मिला टैगोर की नवाब मंसूर अली खां पटौदी से शादी पर उनमें काफी आक्रोश था और लगभग साम्प्रदायिक प्रवचन उन्होंने दे डाला था. एक अन्य अध्यापक रस्तोगी जी विधायक रह चुके थे,बाद में कांग्रेस (ओ )में चले गयेथे.एक शिक्षक लक्ष्मीकांत गौड जी कट्टर जनसंघी थे.ये लोग हमें नहीं पढ़ाते थे.
शोभा कंकर -खेडा में ही गुरुनानक गर्ल्स इन्टर कालेज में पढ़ती थी.वह पैदल जाती थीऔर हम भाई अलग -अलग साईकिलों से -सब का समय अलग अलग था.

कंकर -खेडा की कुछ बातें और नाम का स्पष्टीकरण आगे की पोस्ट में

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