(कामायनी शाहजहांपुर में मिली थी) |
कालांतर में (१९८६)मुझे कम्युनिस्ट आन्दोलन में सक्रिय रूप से शामिल होना पड़ा. १५ वर्षों में कितना अन्तर हो गया था.मैन इज दी प्रोडक्ट आफ हिज एन्वायरन्मेंट तो मैं कैसे बच सकता था.बहरहाल मेरठ विश्वविद्यालय में हम लोगों को एक एडीशनल आप्शनल सब्जेक्ट पढना होता था जो अपनी फैकल्टी का न हो.प्रथम सेमेस्टर में "धर्म और संस्कृति"सब क़े लिये अनिवार्य था. सेकिंड सेमेस्टर में मैंने "एवरी डे केमिस्ट्री"ले ली थी. आर्ट्स व कामर्स क़े ज्यादातर विद्यार्थी हाजिरी लगा कर भाग जाते थे,इसलिए पीछे बैठते थे. मेरे जैसे ४ -५ क्षात्र नियमित रूप से पहली रो में बैठते थे. पहले ही दिन प्रो. तारा चन्द्र माथुर ने प्रश्न उठा दिया -व्हाट इज साईंस?जब कोई नहीं बोला तो मैंने उनसे हिन्दी में जवाब देने की अनुमति लेकर बताया-"किसी भी विषय क़े नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं."वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि हिन्दी में उन्हें भी इतना नहीं पता था वैसे बिलकुल ठीक जवाब है. आज जब लोग मेरे ज्योतिष -विज्ञान कहने पर बिदकते हैं,तब प्रो. तारा चन्द्र माथुर का वह वक्तव्य बहुत याद आता है.
तीसरे और चौथे सेमेस्टर में "कार्यालय पद्धति" ले लिया ताकि हिन्दी पढ़ कर छुट्टी मिल जाये.इसके एक प्रो. विष्णु शरण इंदु का आज भी ध्यान है क्योंकि वह बहुत अच्छा पढ़ाते थे.प्रो.रघुवीर शरण मित्र लिखित "भूमिजा" वह काफी तन्मयता से पढ़ाते थे.मेरा लेख" सीता का विदोह " उसी पढ़ाई पर आधारित है.(रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना जिसकी किश्तें क्रान्ति स्वर पर निकल रही हैं सर्व प्रथम सूक्ष्म रूप में मेरठ कॉलेज की मैगजीन में ही छपा था.)प्रो. इंदु एक रोज परिवार में महिलाओं की भूमिका पर बताने लगे उन्होंने अपने एक साथी प्रो. सा :क़े घर का वाकया बगैर उनका नाम बताये सुनाया.जब वह तथा ४-५ प्रो. लोग उनके घर बिन बुलाये पहुँच गये क्योंकि,वह किसी को बुलाते ही नहीं थे न कहीं जाते थे. उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए.प्रो. इंदु ने बताया कि, वे सब यह सुन कर हैरान रह गये कि उन प्रो. सा :क़े बच्चे चावल क़े माड़ क़े लिये झगड़ रहे थे. प्रो. सा :ने उस कमरे में जाकर अपनी पत्नी को कहा -मेरे साथियों क़े बीच आज बहुत बड़ी जलालत हो गई. उनकी पत्नी ने कहा कुछ नहीं हुआ आप जाईये मैं आकर सँभाल लेती हूँ. आधे घंटे बाद वह ६ कप माड़ लेकर आईं उनमे काजू-बादाम जैसे मेवे पड़े हुये थे. प्रो. इंदु ने कहा कि, वे सब साथी प्रो. झेंप गये और बोले भाभी जी इतना अच्छा माड़ बनाती हैं तभी बच्चे झगड़ रहे थे. उनका यह सब बताने का आशय था किसी भी घर की इज्जत उस घर की महिला क़े हाथों में है.
हमारे मेरठ कालेज क़े कन्वोकेशन में राज्यपाल डा. बी. गोपाला रेड्डी आये थे. राजेन्द्र कुमार अटल क़े नेतृत्व में छात्रों ने गाउन का विरोध किया. मैं भी गाउन क़े पछ में नहीं था. बाद में उसे आप्शनल बना दिया गया. बिना गाउन क़े मैंने भी डिग्री हासिल की.मेरे सामने ही पोलिटिकल साईंस एसोसियेशन की नेशनल कान्फरेन्स भी हमारे कालेज में हुई थी. प्रो.हालू दस्तूर आदि तमाम विद्वान् तो आये ही थे,संगठन कांग्रेस क़े( पूर्व उप-प्रधान मंत्री )मोरारजी देसाई तथा कांग्रेस (आर.)क़े केशव देव मालवीय भी आये थे. दोनों में नोक-झोंक भी चली थी. मालवीय क़े भाषण क़े दौरान मोरारजी ने "हाँ पीपुल्स डेमोक्रेसी" शब्द से टोका-टाकी भी की थी.
कुल मिला कर मेरठ कालेज में पढ़ाई क़े दौरान काफी अनुभव भी हुए.चौ.चरण सिंह जो इसी कालेज से पढ़े थे देश क़े प्रधान मंत्री भी बने.उ.प्र.क़े मुख्य मंत्री भी वह हुए.यहीं क़े सत पाल मलिक भी केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं.मैं फख्र कर सकता हूँ कि, मैं भी इसी कालेज का क्षात्र रहा हूँ. मैंने आगे न पढने का निर्णय किया था. नौकरी मिलना भी आसान न था. बेरोजगारी क़े दौरान ......अगली कड़ी में.
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शानदार उपलब्धियों के लिए बधाई|
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