शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष(७)

पिछले तीन वर्षों में इन्टर और बी.ए.करने क़े दौरान कॉलेजेस का विवरण तो आ गया परन्तु अन्य बातें पीछे छूट गईं.इसलिए अब उन पर भी विचार कर लेते हैं. १९६९ में मई या जून क़े माह में लता मौसी(बउआ की चचेरी बहन)की शादी में शाहजहांपुर जाना हुआ.बाबूजी नहीं गये थे बाकी सभी जन गये थे.शादियों में चिकना-तला खाना ज्यादा चलता है जो मुझे पसन्द नहीं है.इसलिए मैं कोई सादी सब्जी मिले तभी लेता हूँ वर्ना दही -सोंठ से हल्का खाना ले लेता हूँ.बारात वाले दिन जब मैंने सिर्फ भिन्डी की सब्जी,दही- सोंठ ही लिया तो मामाजी मुझे आलू की सब्जी परोसने लगे,मैंने मना कर दिया तो उन्हें काफी आश्चर्य हुआ और बउआ से बोले कि विजय आलू नहीं खाता है?मामाजी तो जल्दी ही लखनऊ लौट गये,बाद में माईजी मौसी और उनके साथ आये बच्चों तथा हम लोगों को लखनऊ अपने साथ ले आईं.अजय वहां से हापुड़ होते हुए मेरठ लौट गया था.बादशाह बाग कालोनी ,यूनीवर्सिटी क़े बंगले में मामाजी क़े घर हफ्ता भर रहे.मौसी की वजह से एक बार फिर बनार्सीबाग चिड़ियाघर माईंजी सब को ले गई. उनके घर सुबह नौ बजे नाश्ता,दोपहर एक बजे खाना,रात को आठ बजे खाना सब निश्चित समय पर ही चलता था.लखनऊ मेल से हम सब लौटे.मौसी सीधे दिल्ली गईं और हम लोग हापुड़ उतर  कर पेसेंजर से मेरठ गये. इसी लखनऊ प्रवास में मामाजी ने बउआ से कहा था कि,हिस्ट्री पढ़ कर कम्युनल दिमाग हो जाता है अतः जीजाजी से कह कर विजय से छुडवा दो.उन्होंने विकल्प में सोशियोलोजी लेने को कहा था और यह भी कहा था कि,एम.ए.उनके पास आ कर एन्थ्रोपोलोजी  से कर लूं अपने यहाँ ही सर्विस दिला देंगें.परन्तु बाद में मैंने बी.ए. करके ही पढ़ाई छोड़ दी थी.

पढ़ाई छोड़ कर सर्विस की तलाश में ५०० रु. तक जब खर्च हो गये तो वह भी मैंने बन्द कर दिया.नानाजी क़े एक फुफेरे भाई श्री महेश चन्द्र माथुर उस समय मेरठ में इन्स्पेक्टर आफ फैक्टरीज ,इंचार्ज मेरठ रीजन,मेरठ थे मैंने उनका सहारा लेने की बात कही तो बाबूजी सिफारिश करने क़े लिये तैयार न थे.

महेश नानाजी क़े बारे में-

जब हम लोग १९६१-६२ में बरेली में थे तब भी महेश नानाजी वहीं पर थे.उनके घर हम लोग जाते थे.उनको व नानीजी को रिश्तेदारी खूब आती थी.एक बार नानाजी ने बाबूजी की साईकिल रस्सी से बांध कर कार की छत पर रख ली और हम सब को छोड़ने सिविल लाईन्स से गोला बाजार आये थे.थापर नगर मेरठ में भी हम लोग उनके घर आते जाते रहते थे.अतः मैंने स्वंय उनसे मुझे कोई नौकरी दिलाने को कहा था.उन्होंने शर्त लगा दी पहले एक महीना हमारे घर दो-दो-दिन पीछे मिलने आते रहो तभी नौकरी मिलेगी.हमने जब उनकी शर्त पूरी कर दी तो एक माह बाद उन्होंने कहा अब एक बार अपने बउआ -बाबूजी को साथ लेकर आओ.मेरे माता-पिता से उन्होंने कहा यह लड़का नौकरी कर लेगा ,लेकिन तुम लोग यह बताओ कि यह तो नहीं कहोगे इसे नौकरी क्यों दिलाई,बहुत से मा-बाप बाद में लड़ने आ जाते हैं .उनकी सहमति मिलने क़े बाद उन्होंने एक निश्चित दिन मुझसे आने को कहा इस बाबत बाद में.अभी कुछ उनके सम्बन्ध में ही........(अगले अंक में)

Link to this post-



3 टिप्‍पणियां:

ढोंग-पाखंड को बढ़ावा देने वाली और अवैज्ञानिक तथा बेनामी टिप्पणियों के प्राप्त होने के कारण इस ब्लॉग पर मोडरेशन सक्षम कर दिया गया है.असुविधा के लिए खेद है.

+Get Now!