शनिवार, 29 जनवरी 2011

क्रांति नगर मेरठ में सात वर्ष(८)

महेश नानाजी -


हमारे नानाजी क़े पांच फुफेरे भाईयों में चौथे नं.क़े थे महेश नानाजी .उनसे छोटे भाई श्री नारायण स्वरूप माथुर ,सीनियर पब्लिक प्रौसिक्यूटर ने जार्ज फर्नाडीज क़े विरुद्ध चले बड़ौदा डायना माईट केस में सरकार का पक्ष रखा था.वह हमारे बाबूजी क़े साथ लखनऊ में कामर्स पढ़ चुके थे.इसलिए जब भी महेश नानाजी क़े घर मिलते थे तो बाबूजी से मित्रवत ही व्यवहार करते थे ,हालाँकि रिश्ते में बड़े हो गये थे.महेश नानाजी और नानीजी भी बउआ और बाबूजी को मान देते थे. एक बार बउआ दोपहर में अजय क़े साथ उनके घर गईं थीं.मंजू मौसी हमारी बउआ  को हाथ जोड़ कर नमस्ते करके अन्दर चली गईं तो नानीजी ने उन्हें आवाज़ देकर बुलाया और कहा कि, तुमने इन्हें पहचाना नहीं.मंजू मौसी ने तत्काल बउआ से जीजी नमस्ते कह कर  पुनः अभिवादन किया इतना महत्त्वपूर्ण जोर  रिश्तों पर उनका था.एक बार शाहजहांपुर में जब हम लोग नानाजी क़े पास तब थे जब बाबूजी सिलीगुड़ी में थे.महेश नानाजी रोज़ा फैक्टरी का इंस्पेक्शन करके जल्दी लौट आये थे और अगले दिन फिर उन्हें रोजा जाना था अतः रात में रुक रहे थे.टाउनहाल में कोई सर्कस लगा था.छोटे नानाजी क़े बच्चों को दिखाने ले जा रहे थे,बउआ से कहा हम तीनों को उनके साथ भेज देने को .बउआ ने नानाजी क़े बाजार में उस वक्त होने का बहाना बनाया तो महेश नानाजी ने तपाक से कहा-क्या हम इन बच्चों क़े नानाजी नहीं हैं?क्या तुम्हारे चाचा नहीं हैं?.जब हम ले जा रहे हैं तो दादा क्यों ऐतराज करेंगें?बउआ को हम लोगों को महेश नानाजी क़े साथ भेजना ही पड़ा.


नानाजी की एक भुआ जो एक और रिश्ते में उनकी साली की पुत्री  अर्थात बउआ की मौसेरी बहन थीं,मेरठ में ही बाउनड्री रोड पर रहती थीं.रोजाना कालेज जाते-आते में उनका मकान हमारे रास्ते में पड़ता था.परन्तु हमारे माता-पिता को लगता था कि,वे बहुत बड़े लोग हैं.मौसाजी स्व.कुंवर बिहारी माथुर ,I .A .& A .S .वहीं मेरठ में डिप्टी कंट्रोलर आफ डिफेन्स एकाउंट्स क़े पद से रिटायर्ड हुए थे.महेश नानाजी ने बउआ को समझाया कि, इतने सगे रिश्ते क़े बाद उनसे क्यों नहीं मिलती वे बहुत अच्छे लीग हैं जरूर जाओ .ट्रायल क़े लिये मुझे भेजा गया. मैं बात-व्यवहार पर ही ध्यान देता हूँ और खाने-नाश्ते से मुझे कोई ताल्लुक नहीं रहता है.मुझे मौसी-मौसाजी और उनके सभी बच्चों का व्यवहार बेहद अच्छा लगा.तब पहले बउआ फिर बाद में बाबूजी भी मेरे साथ उनके घर गये और उन लोगों का व्यवहार पसन्द आया. सिर्फ महेश नानाजी की प्रेरणा से यह संपर्क कायम हुआ अन्यथा हमारे माता-पिता तो संकोच में ही रह जाते.बाद में सीता मौसी वेस्ट-एन्ड रोड पर शिफ्ट हो गईं ,वहां भी आना -जाना होता रहा.उनके एक बेटे की शादी में भी हम लोग गये थे.उस शादी में डा.पी.डी.पी.माथुर (जो बाद में उ.प्र.क़े डी .जी.हेल्थ भी बने),एडीशनल सिविल सर्जन ,मेरठ भी शामिल हुए थे जो रिश्ते में मुझ से छैह पीढी छोटे थे.उम्र में वह बड़े थे और मुझे भाई सा :संबोधित करते थे.वस्तुतः उनकी दादी जी रिश्ते में हमारी भतीजी (राय राजेश्वर बली की बहन)थीं.मामाजी(सीता मौसी क़े भाई)इन डा.सा :क़े मित्र एवं सह-विद्यार्थी थे.जब सीता मौसी साकेत-कालोनी में शिफ्ट हो गईं तो मैंने उन्हें अपने रूडकी-रोड वाले क्वार्टर पर आमंत्रित कर दिया ;माता-पिता को घबराहट हुई कि इतनी ऊँची पोस्ट पर रहे अतिथियों का सत्कार करने लायक कोई बंदोबस्त ही न था.मौसा जी ने यह कहा था तुम आकर ले जाओगे तो हम चले चलेंगें,वह फालिज से ठीक हुये थे और ज्यादा ढूंढ-धाड़ करने में असमर्थ थे.दिये गये समय शाम क़े ५ बजे से ५ मि.पहले मैं पहुँच गया था.वह प्रसन्न हुये कि मैंने समय का ध्यान रखा.उनका कहना था आज-कल क़े लड़के समय-पाबन्द नहीं हैं.उन्हें तब जितनी (५००० रु.)पेंशन मिलती थी उतना कुल वेतन महेश नानाजी को मिलता था लेकिन रिश्ता और मेल प्रगाढ़ था.


 महेश नानाजी ने अपने बड़े बेटे (विजय मामाजी)की शादी में लडकी वालों का भी खर्च अपने ऊपर ले लिया था क्योंकि उन माईंजी क़े पिताजी नहीं थे और उनके चाचा  तथा माँ को शादी करनी थी.बारात में १०० से अधिक कारें थीं ,मेरठ क्षेत्र क़े लगभग सभी उद्योगपतियों का प्रतिनिधित्व  था.भोजन-व्यवस्था R .S .Bros .को सौंपी थी,जिनका कचहरी में मेरठ कालेज क़े सामने रेस्टोरेंट था.(आर.एस.माथुर सा :क़े छोटे भाई का पौत्र अतुल मेरे साथ १९८१ में कारगिल में पोस्टेड रहा था).भोजन -फलहारी,शाकाहारी तथा मांसाहारी तीन प्रकार का तीन अलग-अलग दिशाओं में रखा गया था.हमारे नानाजी शाहजहांपुर से शादी में भाग लेने आये थे परन्तु हमारे घर उतरे थे ,मेरे साथ उनसे मिलने साईकिलों पर गये थे.महेश नानाजी ने उनसे कहा पहले आप हमारे घर रहें फिर शादी क़े बाद वहां(हमारे यहाँ)जा सकते हैं. नानाजी ने वैसा ही किया.रिसेप्शन में महेश नानाजी ने भोजन क़े बजाये मिठाई ,चाट,छौंकी हुई हरी मटर ,आलू-टिक्की आदि-आदि का प्रबंध किया था और अपना प्रोग्राम अग्रिम नानाजी को बता दिया था.नानाजी ने कहा कि उनको यह सब पसन्द नहीं है,उनके अनुसार बिना पूरी-कचौरी की यह कैसी दावत हुई?महेश नानाजी ने आश्वस्त किया कि, उन्हें घर में भोजन बनवाकर करवा देंगें.रिसेप्शन वाले दिन नानीजी (एन.एस.माथुर,एस.पी.पी.सा :की पत्नी) ने स्वंय अपने हाथ से भोजन बना कर नानाजी को परोसा था.


मुझे आज भी अच्छे तरीके से याद है कि (मेरी ५ -६ वर्ष की उम्र में) हजरतगंज ,लखनऊ क़े नानाजी क़े फूफाजी क़े घर हमारे माता-पिता भी अक्सर जाया करते थे.तब वहां सिर्फ एन.एस.नानाजी तब पी.पी.पोस्टेड थे.महेश नानाजी से तो शाहजहाँपुर में मुलाकात होती थी,फिर बरेली प्रवास में आना-जाना हुआ और मेरठ में काफी घनिष्ठता हो गई थी.इसी कारण खुद को नौकरी दिलाने का उनसे आग्रह किया था ,जिसे उन्होंने पूरा भी किया.कैसे?................................................अगली बार .....


[बउआ=अपनी माँ को हमलोग बउआ कहते थे,माँईंजी=मामी]  



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